भारिबैं/2011-12/173
ए.पी.(डीआईआर सिरीज) परिपत्र सं.12
15 सितंबर 2011
विदेशी मुद्रा का व्यापार करने के लिए प्राधिकृत सभी बैंक
महोदया/महोदय,
भारत में निवास करने वाले व्यक्तियों द्वारा रखे गये बचत बैंक खाते –
संयुक्त खाता धारक – उदारीकरण
प्राधिकृत व्यापारी बैंकों का ध्यान 3 मई 2000 की फेमा अधिसूचना सं. 5 के विनियम 2(vi) की ओर आकृष्ट किया जाता है जिसके अनुसार अनिवासी भारतीय (एनआरआइ) का अर्थ भारत से बाहर रहने वाले उस व्यक्ति से है जो भारत का नागरिक या भारतीय मूल का व्यक्ति है ।
2. विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के अंतर्गत व्यक्तियों को सुलभ सुविधाओं की समीक्षा करने संबंधी समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की है कि निवासी व्यक्तियों को अपने निवासी बैंक खाते के संयुक्त धारकों में अपने अनिवासी घनिष्ठ संबंधियों/रिश्तेदारों (जिन्हें कंपनी अधिनियम, 1956 में परिभाषित किया गया है) को शामिल करने की अनुमति दी जाए ।
3. समीक्षा करने पर यह निर्णय लिया गया है कि भारत में निवास करने वाले व्यक्तियों को अपने निवासी बैंक खातों में संयुक्त खाता धारकों के रूप में अपने घनिष्ठ रिश्तेदारों/संबंधियों (कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 6 में यथा परिभाषित) में अनिवासी घनिष्ठ संबंधियों को 'प्रथम या उत्तरजीवी' के आधार पर संयुक्त खाता धारक बनाने की अनुमति दी जाए । हालांकि, ऐसे अनिवासी घनिष्ठ संबंधी निवासी खाताधारक के जीवन काल में खाते का परिचालन करने के लिए पात्र नहीं होंगे ।
4. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने ग्राहकों/घटकों को अवगत कराने का कष्ट करें।
5. इस परिपत्र में समाहित निर्देश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और 11(1) के अंतर्गत और किसी अन्य विधि के अंतर्गत अपेक्षित किसी अनुमति/अनुमोदन पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जारी किए गए हैं।
भवदीया,
(मीना हेमचंद्र)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक |