19 जून 2015
हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं बैंकर और ग्राहक के बीच सेतु का काम कर सकती हैं :
डॉ. रघुराम जी. राजन, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक, जून 19, 2015
“पिछले दिनों कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिनमें पॉन्ज़ी स्कीम्स (Ponzi schemes) में गरीब लोगों का धन जमा करा लिया जाता है। अक्सर इस तरह की योजनाओं में लोग अपनी जीवन भर की कमाई गवां बैठते हैं। कहीं न कहीं यह सरकार और बैंकिंग क्षेत्र की जिम्मेदारी बनती है कि हम ऐसे लोगों को, जिनके पास जमा करने के लिए पैसे तो हैं लेकिन फॉर्मल बैंकिंग से जुड़ने के अवसर नहीं हैं, उन्हें उनकी समझ में आने वाली भाषा में बैंकिंग सुविधाएं दें। साथ ही उनकी समझ में आने वाली भाषा में वित्तीय साक्षरता की भी व्यवस्था करें। इस तरह के प्रयासों में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं बैंकर और ग्राहक के बीच सेतु का काम कर सकती हैं।”
भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर, डॉ. रघुराम जी. राजन ने आज मुंबई में यह बात कही। वे विजेता बैंकों को
वर्ष 2013-14 के लिए राजभाषा शील्ड प्रदान कर रहे थे।
इस अवसर पर भारतीय रिज़र्व बैंक के उप गवर्नर, श्री एस.एस. मूंदड़ा ने विजेता बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं को बधाई देते हुए कहा कि आज बैंकिंग का इंटरफेस लगातार बदल रहा है। ईंट-पत्थर की शाखाओं से निकलकर बैंक कंप्यूटर से होते हुए अब मोबाइल तक सिमट गए हैं। गाँवों में भी बिज़नेस कॉरेस्पोंडेंट्स के जरिए बैंकिंग सुविधाओं को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। जैसे-जैसे बैंकिंग का दायरा बढ़ रहा है, इससे जुड़े मुद्दे भी बदल रहे हैं। तकनीकी रूप से उन्नत होने का एक प्रतिफल हैकिंग के खतरों से जूझना भी है। ग्राहकों को साइबर सिक्युरिटी की विभिन्न सावधानियों से परिचित कराना भी हमारी एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है। मैं समझता हूँ, इस ज़िम्मेदारी का भलीभांति निर्वाह करने में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं हमारी सहायक होंगी।
कार्यपालक निदेशक श्री के.के. वोहरा ने कार्यक्रम में भाग ले रहे बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के मुख्य कार्यपालकों का स्वागत किया और श्रीमती सुरेखा मरांडी, मुख्य महाप्रबंधक (राजभाषा) ने आभार व्यक्त किया।
समारोह में बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के अध्यक्ष तथा अन्य वरिष्ठ कार्यपालक उपस्थित थे।
संगीता दास
निदेशक
प्रेस प्रकाशनी: 2014-2015/2699 |