7 अप्रैल 2021
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का संकल्प
5-7 अप्रैल 2021
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आज (7 अप्रैल 2021) अपनी बैठक में वर्तमान और उभरती समष्टिआर्थिक परिस्थिति का आकलन करने के आधार पर यह निर्णय लिया है कि :
- चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ़) के तहत नीतिगत रेपो दर को 4.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा जाए।
नतीजतन, एलएएफ़ के तहत रिवर्स रेपो दर बिना किसी परिवर्तन के 3.35 प्रतिशत पर और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ़) दर एवं बैंक दर 4.25 प्रतिशत पर बनी हुई हैं।
- यह सुनिश्चित करते हुए कि मुद्रास्फीति भविष्य में लक्ष्य के भीतर बनी रहे, एमपीसी ने टिकाऊ आधार पर संवृद्धि को बनाए रखने एवं अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से जब तक आवश्यक हो समायोजनकारी रुख बनाए रखने का भी निर्णय लिया।
ये निर्णय संवृद्धि को सहारा प्रदान करते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति को +/- 2 प्रतिशत के दायरे में रखते हुए 4 प्रतिशत का मध्यावधि लक्ष्य हासिल करने के अनुरूप है।
इस निर्णय के पीछे की मुख्य सोच नीचे दिए गए विवरण में व्यक्त की गई हैं।
आकलन
वैश्विक अर्थव्यवस्था
2. फरवरी में एमपीसी की बैठक होने के बाद से, 2020 की चौथी तिमाही में वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी का प्रभाव लंबे समय तक बना हुआ है, हालांकि हाल में प्राप्त उच्च आवृत्ति संकेतकों से क्रमिक अपितु असमान रूप से वापसी होने का पता चलता है। टीकाकरण की शुरुआत की बदौलत आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा मिलने की अत्यधिक प्रत्याशा को लेकर कोविड-19 के नए रूपांतरित प्रकारों, सभी देशों में संक्रमणों की दूसरी और तीसरी लहर एवं आम तौर पर कहें तो टीका पाने में असमानता की वजह से कुछ हद तक गति अवरोध पैदा हुआ है। वर्ष 2020 की चौथी तिमाही और जनवरी 2021 में विश्व की व्यापारिक गतिविधि में सुधार हुआ है। तथापि, कोविड-19 को लेकर फिर से लॉकडाउन लगाने और कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में कमजोर मांग, शिपिंग शुल्क में इजाफा होने तथा कंटेनर में कमी आने को लेकर चिंता की स्थिति बनी हुई है। प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं (एई) में मुद्रास्फीति अनुकूल बनी हुई है, हालांकि अत्यधिक समायोजनकारी मौद्रिक नीतियों एवं उच्च राजकोषीय प्रोत्साहनों ने दुनिया भर में मुद्रास्फीति संबंधी प्रत्याशाओं को लेकर बाज़ार-आधारित संकेतकों और अस्थिर बॉण्ड बाज़ारों के ईद-गिर्द चिंता को बढ़ा दिया है। तथापि, कतिपय उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में मुद्रास्फीति लक्ष्य से अधिक है जो प्रमुख रूप से वैश्विक पण्य कीमतों में वृद्धि की वजह से है। इसने उनमें से कुछ एक को नीति दर में इजाफा करने को लेकर प्रेरित भी किया है। दीर्घ-कालिक बॉण्ड आय में वृद्धि तथा आय वक्रों के तेजी से बढ़ने की वजह से इक्विटी और मुद्रा बाज़ारों में अस्थिरता छाई हुई है। तथापि, अभी हाल में स्थिति सामान्य हुई है और मार्च में प्रमुख इक्विटी बाज़ारों ने नई ऊंचाइयों को छुआ है, जबकि सामान्य रूप से मजबूत होती अमेरिकी डॉलर की तुलना में मुद्राओं के क्रय-विक्रय में घट-बढ़ नज़र आती है। बॉण्ड बाजार में औने-पौने दाम पर बिक्री होने के चलते ईएमई की आस्तियां बिक्री के दबाव में आईं और मार्च में पूंजी बहिर्वाहों की वजह से ईएमई मुद्राओं पर मूल्यह्रास का दबाव बनने लगा है।
घरेलू अर्थव्यवस्था
3. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने 26 फरवरी 2021 को जारी अपने वर्ष 2020-21 के दूसरे अग्रिम अनुमान में भारत के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वर्ष के दौरान 8.0 प्रतिशत की गिरावट को दर्शाया है। उच्च आवृत्ति संकेतक – वाहन बिक्री; रेलवे माल यातायात; टोल संग्रहण; वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) राजस्व; ई-वे बिल; और इस्पात की खपत – दर्शाते हैं कि 2020-21 की तीसरी तिमाही में विनिर्माण और सेवा क्षेत्र की गतिविधियों में हुई वृद्धि आगे चौथी तिमाही में फैली हुई है। विनिर्माण क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) मार्च 2021 में बढ़कर 55.4 पर पहुंचा, लेकिन वह अपने फरवरी के स्तर से नीचे था। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में विनिर्माण और खनन क्षेत्रों की वजह से जनवरी 2021 में मामूली गिरावट आई। कोर उद्योगों में भी फरवरी में गिरावट आई। वर्ष 2020-21 के खाद्यान्न एवं बागवानी उत्पादन से कृषि क्षेत्र की सुदृढ़ता का स्पष्ट रूप से पता चलता है, जो 2019-20 के अंतिम अनुमानों की अपेक्षा क्रमशः 2.0 प्रतिशत एवं 1.8 प्रतिशत अधिक होने की उम्मीद की जाती है।
4. हेडलाइन मुद्रास्फीति जनवरी 2021 में घटकर 4.1 प्रतिशत होने के बाद फरवरी में बढ़कर 5.0 प्रतिशत हो गई। फरवरी में 4.3 प्रतिशत की समग्र खाद्य मुद्रास्फीति के भीतर, बारह में से पांच खाद्य उप-समूहों में मुद्रास्फीति दो अंकों में दर्ज की गई। फरवरी में ईंधन मुद्रास्फीति का दबाव थोड़ा कम हुआ, जबकि मुख्य मुद्रास्फीति सामान्य रूप से बढ़ी और 50 आधार अंकों की बढ़त के साथ 6 प्रतिशत पर पहुंची।
5. ₹5.9 लाख करोड़ के औसत दैनिक निवल चलनिधि अवशोषण के साथ प्रणालीगत चलनिधि फरवरी और मार्च 2021 में अत्यंत अधिशेष में बनी रही। मुंद्रा की मांग की वजह से आरक्षित धन (आरएम) 26 मार्च 2021 को बढ़कर 14.2 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) हो गया। 5.6 प्रतिशत की ऋण वृद्धि के साथ मुद्रा आपूर्ति (एम3) में 26 मार्च 2021 को 11.8 प्रतिशत का इजाफा हुआ। वर्ष 2020-21 (फरवरी 2021 तक) के दौरान ₹6.8 लाख करोड़ के कॉरपोरेट बॉण्ड निर्गम पिछले वर्ष की इसी अवधि में ₹6.1 लाख करोड़ की तुलना में अधिक थे। वाणिज्यिक पेपर (सीपी) के निर्गमों में दिसंबर 2020 के बाद से वापसी हुई और वे दिसंबर 2020 से मार्च 2021 के दौरान पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 10.4 प्रतिशत अधिक थे। वर्ष 2020-21 के दौरान 99.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि के साथ भारत का विदेशी मुद्रा भंडार मार्च 2021 के अंत में 577.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुंचा, जो 18.4 महीनों के आयात को संभाल सकता है और भारत के बाह्य कर्ज का 102 प्रतिशत होता है।
संभावनाएं
6. सीपीआई मुद्रास्फीति के उभरते प्रक्षेपवक्र को लेकर वृद्धि एवं गिरावट दोनों की संभावनाएं बनी हुई हैं। वर्ष 2020-21 में भरपूर खाद्यान्न उत्पादन होने की बदौलत भविष्य में अनाज की कीमतों में कमी बनी रहनी चाहिए। जहां दालों, विशेष रूप से तुअर एवं उड़द, की कीमत उच्च बनी हुई है, वहीं बाज़ारों में प्रवेश करने वाली रबी फसल एवं 2020-21 में घरेलू उत्पादन में समग्र वृद्धि की बदौलत आपूर्ति में बढ़ोतरी होनी चाहिए जो आयात के साथ मिलकर भविष्य में इन कीमतों में थोड़ी कमी लाने में सक्षम होना चाहिए। जहां खाद्य तेल मुद्रास्फीति अंतरराष्ट्रीय कीमतों के बढ़े हुए रहने की वजह से उच्च स्तर पर बनी हुई है वहीं आयात शुल्क में कटौती एवं आंतरिक तौर पर उत्पादन को बढ़ाने के समुचित प्रोत्साहन मध्यावधि में मांग और आपूर्ति के बीच एक बेहतर संतुलन बनाने की दिशा में उपयोगी हो सकते हैं। पेट्रोलियम उत्पादों की पम्प की कीमत उच्च बनी हुई है। कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में हालिया गिरावट के अतिरिक्त उत्पाद शुल्क एवं उपकरों तथा राज्य स्तर के करों में कटौती की वजह से उपभोक्ताओं को थोड़ी राहत मिल सकती है। इससे दूसरे चरण के प्रभाव के फैलने में गति अवरोध पैदा हो सकता है। विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में पण्य की उच्च अंतरराष्ट्रीय कीमतों तथा बढ़ी हुई लॉजिस्टिक लागतों के असर को महसूस किया जा रहा है। अंततः, रिज़र्व बैंक के मार्च 2021 सर्वेक्षण के अनुसार शहरी हाउसहोल्ड्स की एक साल आगे की मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं ने तीन माह आगे की समयावधि की अपेक्षा सीमांत वृद्धि दर्शाई है। इन सभी कारकों पर विचार करते हुए, सीपीआई मुद्रास्फीति अब 2020-21 की चौथी तिमाही में 5.0 प्रतिशत; 2021-22 की पहली तिमाही में 5.2 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 5.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 4.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.1 प्रतिशत होने का अनुमान किया जाता है, जिनमें जोखिम को लेकर मोटे तौर पर संतुलन बना हुआ है (चार्ट 1)।
7. संवृद्धि की संभावनाओं पर नज़र डालते हैं तो पता चलता है कि ग्रामीण मांग अत्यधिक बनी हुई है और 2020-21 में कृषि उत्पादन बुलंदी को छूने की बदौलत उसकी सुदृढ़ता बढ़ रही है। आर्थिक गतिविधि सामान्य अवस्था में लौटने के बल पर शहरी मांग जोर पकड़ रही है और उसे चालू टीकाकरण अभियान से बढ़ावा मिलना चाहिए। केंद्रीय बजट 2021-22 के तहत पूंजी व्यय के आबंटन में इजाफा, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना में विस्तार तथा क्षमता उपयोग में वृद्धि (2020-21 की दूसरी तिमाही में 63.3 प्रतिशत से तीसरी तिमाही में 66.6 प्रतिशत) से मिलने वाला रोजकोषीय प्रोत्साहन निवेश मांग और निर्यात को ठोस सहारा प्रदान करना चाहिए। रिज़र्व बैंक के मार्च 2021 चरण के सर्वेक्षण में शामिल विनिर्माण, सेवा एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र से जुड़े फर्म 2021-22 में मांग जोर पकड़ने और व्यावसायिक गतिविधि में विस्तार होने को लेकर आशावदी थे। दूसरी तरफ़, कुछ राज्यों में कोविड संक्रमण में हालिया वृद्धि के चलते संभावनाओं को लेकर अनिश्चितता पनपने की वजह से उपभोक्ता विश्वास में कमी आई है। इन कारकों पर विचार करते हुए, 2021-22 हेतु 10.5 प्रतिशत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि के अनुमान को बरकरार रखा जाता है जो पहली तिमाही में 26.2 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 8.3 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत एवं चौथी तिमाही में 6.2 प्रतिशत है (चार्ट 2)।
8. एमपीसी इस बात पर गौर करती है कि मुद्रास्फीति को लेकर आपूर्ति पक्ष में दबाव बना रह सकता है। वह इस बात पर भी ध्यान देती है कि मांग-पक्ष प्रेरित मुद्रास्फीति मामूली बनी हुई है। हालांकि लागत-वृद्धि संबंधी दबाव बढ़ गया है, जिसकी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के सामान्य अवस्था में लौटने के साथ आंशिक तौर पर भरपाई की जा सकती है। पण्य की वैश्विक कीमतों से होनेवाली मुद्रास्फीति के मामले में, केंद्र एवं राज्यों द्वारा तत्काल ठोस एवं समन्वित नीतिगत कार्रवाई करने की बदौलत घरेलू निविष्टि लागतों जैसे, पेट्रोल और डीजल संबंधी करों एवं उच्च खुदरा मार्जिन को कम किया जा सकता है। देश के कुछ हिस्सों में कोविड-19 संक्रमण फिर से तेजी से फैलने और संबंधित स्थानीय लॉकडाउन की वजह से संपर्क-गहन सेवाओं की मांग कमजोर पड़ सकती है, संवृद्धि के आवेगों में रुकावट पैदा हो सकती है तथा सामान्य अवस्था में लौटने में देरी हो सकती है। ऐसे परिवेश में, सतत नीतिगत सहारा अनिवार्य बना हुआ है। इन घटनाक्रमों के मद्देनज़र, यह सुनिश्चित करते हुए कि मुद्रास्फीति भविष्य में लक्ष्य के भीतर बनी रहे, एमपीसी ने टिकाऊ आधार पर संवृद्धि को बनाए रखने एवं अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव को कम करना जारी रखने के उद्देश्य से जब तक आवश्यक हो समायोजनकारी रुख बनाए रखने का निर्णय लिया।
9. एमपीसी के सभी सदस्य – डॉ. शंशाक भिडे, डॉ. आशिमा गोयल, प्रो. जयंत आर. वर्मा, डॉ. मृदुल के. सागर, डॉ. माइकल देवव्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास – ने सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर को अपरिवर्तित रखने के पक्ष में मतदान दिया। इसके अलावा, यह सुनिश्चित करते हुए कि मुद्रास्फीति भविष्य में लक्ष्य के भीतर बनी रहे, एमपीसी के सभी सदस्यों ने टिकाऊ आधार पर संवृद्धि को बनाए रखने एवं अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से जब तक आवश्यक हो समायोजनकारी रुख बनाए रखने के पक्ष में मतदान दिया।
10. एमपीसी की बैठक के कार्यवृत्त 22 अप्रैल 2021 तक प्रकाशित किए जाएंगे।
11. एमपीसी की अगली बैठक 2 से 4 जून 2021 के दौरान निर्धारित की गई है।
(योगेश दयाल)
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2021-2022/16
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