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nesce >> FAQs - Display
Date: 10/01/2017
एनबीएफसी के बारे में आपके जानने योग्य संपूर्ण जानकारी

(10 जनवरी 2017 तक अदयतन किया गया)

A. परिभाषाएं

1. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) किसे कहते हैं?

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी एक ऐसी कंपनी है जो कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत पंजीकृत है जो ऋण और अग्रिम देने, शेयरों/स्टॉक/बांड्स/डिबेंचरों/सरकार या स्थानीय प्राधिकरणों द्वारा जारी प्रतिभूतियों या उसी प्रकार के बिक्री योग्य अन्य प्रतिभूतियों के अधिग्रहण, पट्टे पर देने, किराया-खरीद(हायर-पर्चेज), बीमा कारोबार, चिट संबंधी कारोबार में लगी हों किंतु उनमें ऐसी कोई संस्था शामिल नहीं है जिनका मूल कारोबार कृषि कार्य, औद्योगिक गतिविधि, किसी वस्तु की खरीद बिक्री (प्रतिभूतियों के अलावा) अथवा कोई सेवा प्रदान करना तथा अचल संपत्ति की खरीद/बिक्री/निर्माण है। ऐसी गैर बैंकिंग वित्तीय संस्था जो एक कंपनी है और जिसका मूल कारोबार किसी योजना या प्रबंध या किसी अन्य प्रकार से जमाराशियां प्राप्त करना है, वह भी एक गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (अवशिष्ट गैर बैंकिंग कंपनी) है।

2. ''प्रमुख व्यवसाय/मूल कारोबार'' के रूप में वित्तीय गतिविधि संचालन से क्या तात्पर्य है?

वित्तीय गतिविधि ‘प्रमुख व्यवसाय’ तब कहलाएगी, जब कंपनी की वित्तीय आस्तियां कुल आस्तियों की 50 प्रतिशत से अधिक हो और वित्तीय आस्तियों से होने वाली आय कुल आय के 50 प्रतिशत से अधिक हो। वह कंपनी जो ये दोनों मानदंड पूरा करती है, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा एनबीएफसी के रूप में पंजीकृत की जाएगी। 'प्रमुख व्यवसाय' शब्द को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है। रिज़र्व बैंक ने इसे इसलिए स्पष्ट किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल उन्हीं कंपनियों का उसके पास पंजीकरण, विनियमन और पर्यवेक्षण हो जो मुख्य रूप से वित्तीय गतिविधि से जुड़ी हैं। अत: यदि ऐसी कंपनी जिनका मूल कारोबार कृषि कार्य, औद्योगिक गतिविधि, किसी वस्तु की खरीद बिक्री, कोई सेवा प्रदान करना, अचल संपत्ति की खरीद/बिक्री/निर्माण है और वह अल्प स्वरूप में कुछ वित्तीय कारोबार करती हो, उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित नहीं किया जाएगा। दिलचस्पी से, इस परीक्षण को आमतौर पर 50-50 परीक्षण के रूप में जाना जाता है और इसका प्रयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि कंपनी वित्तीय व्यवसाय में है या नहीं।

3. गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां, बैंकों के समान कार्य कर रही है। बैंकों और वित्तीय कंपनियों में क्या अंतर है?

गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां, बैंकों की तरह कार्य करती है, तथापि इसमें निम्नलिखित अंतर है:

(i) गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी मांग पर देय जमाराशियां स्वीकार नहीं कर सकती है।

(ii) गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी भुगतान और निपटान प्रणाली का हिस्सा नहीं हैंऔर वे अपने ग्राहकों को चेक जारी नहीं कर सकती है और

(iii) गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के जमाकर्ताओं को, बैंकों के जमाकर्ताओं की असदृश निपेक्ष बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम से निक्षेप बीमा की सुविधा प्राप्त नहीं है।

4. क्या यह आवश्यक है कि प्रत्येक गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी भारतीय रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत हो।

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45-झ(क) के अनुसार कोई भी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी रू 25 लाख निवल स्वाधिकृत निधि के बिना (अप्रैल 1999 से रू 2 करोड़) तथा रिज़र्व बैंक से पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त किए बगैर गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान का कारोबार नहीं कर सकती अथवा जारी नहीं रख सकती। तथापि, दोहरा विनियम टालने के लिए गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के कुछ वर्गों जैसे सेबी से पंजीकृत वेंचर कैपिटल फंड/मर्चेंट बैंकिंग कंपनियों/ स्टॉक ब्रोकिंग कंपनियों, बीमा विनियामक एंव विकास प्राधिकरण (आइआरडीए) द्वारा जारी किया गया वैध पंजीकरण प्रमाणपत्र धारण करने वाली बीमा कंपनियों, कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 620ए के तहत अधिसूचित निधि कंपनियों, चिट फंड अधिनियम, 1982 की धारा 2 के खंड (ख) के अंतर्गत परिभाषित चिट कंपनियों और राष्ट्रीय आवास बैंक द्वारा विनियमित आवास वित्त कंपनियों, स्टॉक एक्सचेंज़ अथवा म्युचुअल बेनिफिट कंपनी को, भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण कराने से छूट दी गई है।

5. भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण के लिए क्या आवश्यकताएं होती है?

कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत गठित कंपनी तथा भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45झ(क) के तहत वर्णित गैर बैंकिंग वित्तीय कारोबार को प्रारंभ करने की इच्छा रखने वाली कंपनी को निम्नलिखित का अनुपालन करना होगा:

i. कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत यह कंपनी के रूप में पंजीकृत होनी चाहिए।

ii. इसकी न्यूनतम निवल स्वाधिकृत निदि रू 200 लाख होनी चाहिए। (विशिष्ठ एनबीएफसी जैसे एनबीएफसी-एमएफआइ, एनबीएफसी-फैक्टर, सीआइसी के लिए न्यूनतम निवल स्वाधिकृत निधि (एनओएफ) को विशिष्ठ एनबीएफसी के लिए अलग एफएक्यू में दर्शाया गया है)

6. पंजीकरण के लिए रिजर्व बैंक को आवेदन की प्रक्रिया क्या है?

आवेदक कंपनी के लिये यह जरूरी है कि ऑनलाइन आवेदन करे और भारतीय रिजर्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय को आवश्यक दस्तावेजों के साथ आवेदन की एक भौतिक प्रतिलिपि प्रस्तुत करे। आवेदन को रिजर्व बैंक की सुरक्षित वेबसाइट https://cosmos.rbi.org.in के द्वारा ऑनलाइन प्रस्तुत किया जा सकता। इस स्तर पर, आवेदक कंपनी को कॉसमॉस application पर लॉग ऑन करने की जरूरत नहीं और अत: इसके यूजर आईडी की आवश्यकता नहीं होगी। कंपनी कॉसमॉस अनुप्रयोग के लॉगिन पृष्ठ पर कंपनी पंजीकरण के लिए "क्लिक" पर क्लिक कर सकते हैं। एक्सेल आवेदन फार्म डाउनलोड के लिए उपलब्ध "दर्शाने वाला एक विंडो प्रदर्शित किया जाएगा इस प्रकार कंपनी, उपरोक्त वेबसाइट से उपयुक्त आवेदन फार्म (अर्थात एनबीएफसी या एससी / आरसी), डाउनलोड करके, डेटा दर्ज और आवेदन फार्म अपलोड कर सकती हैं। कंपनी को, एक्सेल आवेदन पत्र में "ब्यौरे अनुबंध-पहचान" में क्षेत्र "सी-8" में क्षेत्रीय कार्यालय का सही नाम इंगित करने के लिए नोट करना है। उसके बाद कंपनी को पंजीकरण प्रमाणपत्र आवेदन ऑन लाइन करने के लिए एक आवेदन संदर्भ संख्या मिलेगी। इसके बाद कंपनी को, संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को आवेदन पत्र की हार्ड कॉपी (कंपनी का ऑनलाइन आवेदन संदर्भ संख्या दर्शाते हुए पुष्टिकारक दस्तावेजों के साथ) प्रस्तुत करना होगी। बाद में कंपनी, ऊपर उल्लेखित सुरक्षित वेबसाइट से, पावती संख्या दर्ज कर के, आवेदन की स्थिति की जाँच कर सकती है।

7. आवेदन पत्र के साथ कौन से आवश्यक दस्तावेज़ भारतीय रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय को प्रस्तुत किया जाना है।

आवेदन पत्र के साथ प्रस्तुत की जाने वाले दस्तावेजों की निर्देशात्मक जांच सूची तथा आवेदन पत्र www.rbi.org.in → site map → NBFC List → Forms/Returns पर उपलब्ध है।

8. प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां किसे कहते हैं?

जिन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की परिसंपत्तियों का आकार पिछले लेखापरीक्षा किए गए तुलनपत्र के अनुसार रू 500 करोड़ या उससे अधिक हो उन्हें प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां माना जाता है। इस प्रकार से वर्गीकरण किए जाने के लिए तर्काधार यह है कि इन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की गतिविधियों का पूरे अर्थव्यवस्था की वित्तीय स्थिरता पर प्रभाव पड़ेगा।

B. भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित संस्थाएं

9. क्या भारतीय रिज़र्व बैंक सभी वित्तीय कंपनियों का विनियमन करता है?

नहीं। आवास वित्त कंपनियां, मर्चेंट बैंकिंग कंपनियां, स्टॉक एक्सचेंजेस, स्टॉक ब्रोकिंग/सब ब्रोकिंग का कारोबार करने वाली कंपनियां, वेंचर कैपिटल कंपनियां, निधि कंपनियां, बीमा कंपनियां तथा चिट फंड कंपनियां एनबीएफसीज है परंतु कुछ शर्तों के अधीन इन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45-झ(क) के तहत पंजीकरण से छूट प्राप्त है।

आवास वित्त कंपनियां राष्ट्रीय आवास बैंक से विनियमित होती है, मर्चेंट बैंक/वेंचर कैपिटल फंड कंपनी/स्टॉक–एक्सचेंज़/स्टॉक ब्रोकर/सब-ब्रोकर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) से विनियमित होती है तथा बीमा कंपनियां भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आइआरडीए) द्वारा विनियमित होती है। इसी प्रकार, निधि कंपनियां, चिट फंड कंपनियां कार्पोरेट कार्य मंत्रालय, भारत सरकार से विनियमित होती है। ऐसी कंपनियां जो वित्तीय कारोबार करती है तथा अन्य विनियामकों से विनियमित होती है ऐसी कंपनियों अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक से उसकी विनियामक आवश्यकताएं पर विशिष्ठ छूट प्राप्त है ताकि दोहरे विनियमन को टाला जा सके।

यह भी उल्लेख किया जाता है कि बंधक (मार्गेज) गारंटी कंपनियों को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45झ(च)(iii) के तहत गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी के रूप में अधिसूचित किया गया है। रू 100 से कम परिसंपत्ति आकार वाली कोर निवेश कंपनी तथा रू 100 करोड़ तथा उससे अधिक परिसंपत्ति आकार वाली कंपनियां परंतु जो सार्वजनिक निधि नही लेती है, उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण से छूट प्राप्त है।

10. भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ पंजीकृत एनबीएफसी के अलग-अलग प्रकार/श्रेणियाँ क्या हैं?

एनबीएफसी को इस तरह वर्गीकृत किया गया हैं - ए) जमाराशियाँ स्वीकार करने वाली और जमाराशियाँ स्वीकार न करने वाली बी) जमाराशियाँ स्वीकार न करने वाली एनबीएफसी उनके आकार से, प्रणालीबद्ध रूप से महत्वपूर्ण और जमाराशियाँ स्वीकार न करने वाली अन्य एनबीएफसी (एनबीएफसी-एनडीएसआई और एनबीएफसी-एनडी) और सी) वे जिस प्रकार की गतिविधि करती हैं। इस व्यापक वर्गीकरण के भीतर गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के विभिन्न प्रकार निम्नानुसार हैं:

I. आस्ति वित्त कंपनी (एएफसी): एएफसी एक ऐसी कंपनी है, जो एक वित्तीय संस्था है, जो अपने प्रमुख व्यवसाय के रूप में, मोटर वाहन, ट्रैक्टर, खराद मशीन, जनरेटर सेट, भू-स्थान-परिवर्तन और सामग्री हैंडलिंग उपकरण, स्वयम-शक्ति पर चलती बिजली और सामान्य प्रयोजन की औद्योगिक मशीनों, जो कि उत्पादक/आर्थिक गतिविधियों को सहायता देते हैं, का वित्तपोषण करती है। इस उद्देश्य के लिए प्रमुख व्यवसाय को, वास्तविक/भौतिक, आर्थिक गतिविधि-समर्थक, परिसंपत्तियों के वित्तपोषण का राशिकृत कारोबार और उससे उत्पन्न होने वाली आय क्रमशः इसकी कुल संपत्ति और कुल आय के 60% से कम नहीं है, में परिभाषित किया गया है।

II. निवेश कंपनी (आईसी): निवेश कंपनी एक ऐसी कंपनी है, जो एक वित्तीय संस्था है, जो अपने प्रमुख व्यवसाय के रूप में, प्रतिभूतियों के अधिग्रहण करती है।

III. ऋण कंपनी: ऋण कंपनी एक ऐसी वित्तीय संस्था है, जो अपने प्रमुख व्यवसाय के रूप में, अपने खुद को छोड़कर अन्य गतिविधियों के लिए ऋण या अग्रिम वित्त उपलब्ध करती है, लेकिन इसमे आस्ति वित्त कंपनी शामिल नहीं।

IV. इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी (आईएफसी): आईएफसी एक ऐसी गैर-बैंकिंग वित्त कंपनी है जो क) बुनियादी सुविधाओं के ऋण में अपनी कुल संपत्ति का कम से कम 75 प्रतिशत रखती है। ख) इसके पास न्यूनतम निवल स्वाधिकृत 300 करोड़ रुपये का निधि होता है। ग) इसकी न्यूनतम क्रेडिट रेटिंग 'ए' या समकक्ष होती है। घ) और सीआरएआर 15% होता है।

V. प्रणालीगत महत्वपूर्ण कोर निवेश कंपनी (सीआईसी-एनडी-एसआई): सीआईसी-एनडी-एसआई ऐसी एनबीएफसी है, जो शेयरों और प्रतिभूतियों के अधिग्रहण का व्यवसाय, निम्न शर्तों को पूरा करके करती हैं:-

(ए) यह इक्विटी शेयर, अधिमान शेयर, ऋण या समूह की कंपनियों में ऋण में निवेश के रूप में अपनी कुल परिसंपत्तियों का कम से कम 90% रखती है;

(बी) समूह कंपनियों में इक्विटी शेयर में निवेश (ऐसी लिखतों सहित, जो निर्गम की तिथि से 10 वर्ष से अनधिक अवधि के भीतर अनिवार्यतः परिवर्तनीय इक्विटी शेयरों में परिवर्तित) अपनी कुल परिसंपत्तियों का कम से कम 60% गठन करती हैं;

(सी) यह विलयन या विनिवेश के प्रयोजन के लिए ब्लॉक बिक्री माध्यम को छोड़कर, समूह कंपनियों में शेयर, ऋण या कर्ज के रूप में अपने निवेश में व्यापार नहीं करती है;

(डी) यह, बैंक जमाराशि में निवेश, मुद्रा बाजार लिखत, सरकारी प्रतिभूतियाँ, समूह कंपनियों की ओर से जारी गारंटियाँ या समूह कंपनियों के कर्ज निर्गमों के लिए ऋण और निवेश को छोड़कर भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 45-झ(क) और 45झ(च)में उल्लेखित किसी भी अन्य वित्तीय गतिविधि में क्रियाशील नहीं है।

(ई) इसकी परिसंपत्ति 100 करोड रुपये या ऊपर है और

(एफ) यह सार्वजनिक निधि को स्वीकार करती है।

VI. इन्फ्रास्ट्रक्चर डेट फंड: गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (आईडीएफ-एनबीएफसी): आईडीएफ-एनबीएफसी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी के रूप में पंजीकृत कंपनी है, जो बुनियादी परियोजनाओं के लिए लंबी अवधि का ऋण सुकर करती है। आईडीएफ-एनबीएफसी न्यूनतम 5 साल की परिपक्वता अवधि के रुपया या डॉलर के अंकित बांडस के निर्गम के माध्यम से संसाधन जुटाती है। केवल इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी (आईएफसी) आईडीएफ-एनबीएफसी को प्रायोजित कर सकती है।

VII. गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी - सूक्ष्म वित्त संस्था (एनबीएफसी-एमएफआई): एनबीएफसी-एमएफआई जमाराशि न लेने वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी है, जिसकी अपनी परिसंपत्ति के कम से कम 85% परिसंपत्ति, विशेषक परिसंपत्ति के रूप में होती है और जो निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करती है:

ए. एनबीएफसी-एमएफआई द्वारा ग्रामीण उधारकर्ता को वितरित ऋण जिसकी वार्षिक आय 1,00,000 रुपये से अनधिक हो या शहरी या अर्ध-शहरी उधारकर्ता को वितरित ऋण जिसकी आय रुपये 1,60,000 से अनधिक हो।

बी. पहले चक्र में ऋण की राशि रुपये 50,000 से अनधिक हो और बाद के चक्र में 1,00,000 रुपये से अनधिक हो;

सी. उधारकर्ता को वितरित कुल ऋण 1,00,000 रुपये से अधिक न हो;

डी. रुपये 15,000 से अधिक की ऋण की राशि के लिए पूर्व भुगतान बिना दंड के साथ ऋण की अवधि 24 महीने से कम नहीं होनी चाहिये;

इ. संपार्श्विक के बिना ऋण दिया जा रहा हो;

एफ. आय सृजन के लिए दिए गए ऋणों की कुल राशि, एमएफआई द्वारा दिए गए कुल ऋण के 50 प्रतिशत से कम नहीं हो;

जी. उधारकर्ता के विकल्प पर, ऋण, साप्ताहिक पाक्षिक या मासिक किश्तों पर प्रतिदेय हो;

VIII. गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी-कारक/फैक्टर्स (एनबीएफसी-फैक्टर्स): एनबीएफसी-फैक्टर जमाराशि न लेने वाली एनबीएफसी है, जो फैक्टरिंग के प्रमुख कारोबार में लगी है। फैक्टरिंग कारोबार में वित्तीय परिसंपत्तियां, अपनी कुल परिसंपत्तियों के कम से कम 50 प्रतिशत होनी चाहिए और उसकी आय, फैक्टरिंग कारोबार से मिली आय सकल आय के 50 प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिए।

IX. बंधक (मार्गेज) गारंटी कंपनी (एमजीसी) - एमजीसी ऐसी वित्तीय संस्था है, जिसके कारोबार का कम से कम 90% बंधक (मार्गेज) गारंटी कारोबार से है या सकल आय के कम से कम 90% बंधक (मार्गेज) गारंटी कारोबार से है और निवल स्वाधिकृत निधि 100 करोड़ रुपये है।

X. एनबीएफसी - नॉन-ऑपरेटिव फाइनेंशियल होल्डिंग कंपनी (NOFHC) एक ऐसी वित्तीय संस्था है, जिसके माध्यम से प्रमोटर/प्रमोटर समूह को एक नया बैंक स्थापित करने की अनुमति दी जाएगी। यह एक पूर्ण स्वामित्व वाली नॉन -ऑपरेटिव फाइनेंशियल होल्डिंग कंपनी (NOFHC) है, जो नियामक निर्धारण के तहत बैंक के साथ-साथ भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विनियमित की जाने वाली या अन्य वित्तीय क्षेत्र के नियामकों से नियमित अन्य सभी वित्तीय सेवा कंपनियों को अपने अधीन रखेगी।

11. ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के पास क्या शक्तियां हैं, अर्थात् ऐसी कंपनियों के बारे में जो मुख्य व्यवसाय के 50-50 मानदंडों को पूरा करती हैं?

भारतीय रिज़र्व बैंक को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अंतर्गत ऐसी कंपनियों के बारे में जो मुख्य व्यवसाय के 50-50 मानदंडों को पूरा करती हैं, को पंजीकृत करने, नीति-निर्धारण करने, निर्देश देने, निरीक्षण करने, विनियमित करने, पर्यवेक्षण करने तथा उन पर निगरानी रखने की शक्तियां प्रदान की गई हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों, एवं अधिनियम के अंतर्गत जारी निदेशों अथवा आदेशों का उल्लंघन करने पर दंडित कर सकता है। दंड के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी को जारी पंजीकरण प्रमाणपत्र निरस्त कर सकता है, उसे जमाराशियां लेने से मना कर सकता है तथा उनकी आस्तियों के स्वत्वाधिकार का अंतरण कर सकता है अथवा उसे बंद करने के लिए याचिका दायर कर सकता है।

12. भारतीय रिज़र्व बैंक से विनियमित होने का झूठा/गलत दावा करने वाले किसी व्यक्ति/वित्तीय कंपनी के विरूद्ध क्या कार्रवाई की जा सकती है?

भारतीय रिज़र्व बैंक से विनियमित होने का झूठा/गलत दावा करके किसी वित्तीय संस्था या अनिगमित निकाय द्वारा जनता को गुमराह करके जमाराशि स्वीकार करना गैर कानूनी है तथा भारतीय दण्ड संहिता के तहत उन पर दण्डात्मक कार्रवाई की जा सकती है। इस संबंध में सूचना भारतीय रिज़र्व बैंक के निकटतम कार्यालय तथा पुलिस को दी जा सकती है।

13. भारतीय रिजर्व बैंक से पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त किए बिना वित्तीय कंपनियां यदि उधार देने या निवेश करने को प्रमुख व्यवसाय बनाती है तो उनके विरुद्ध क्या कार्रवाई हो सकती है?

यदि ऐसी कंपनियाँ जिन्हें एनबीएफसी के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत होना अनिवार्य है, वे पंजीकरण प्रमाणपत्र लिए बगैर प्रमुख व्यवसाय के तौर पर गैर बैंकिंग वित्तीय गतिविधियां जैसे उधार देना, निवेश करना या जमाराशियाँ स्वीकार करना, करती पाई जाती हैं तो भारतीय रिजर्व बैंक उन पर दंड या जुर्माना लगा सकता है या न्यायाधिकरण में उन पर अभियोग चला सकता है। यदि जनता को ऐसी किसी संस्था के बारे में पता चलता है जो गैर बैंकिंग वित्तीय गतिविधियां चला रही है किंतु भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर प्रदर्शित प्राधिकृत एनबीएफसी की सूची में शामिल नहीं है, तो इस बारे में रिज़र्व बैंक के निकटतम क्षेत्रीय कार्यालय को सूचित किया जाना चाहिए ताकि भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए उनके विरुद्ध समुचित कार्रवाई की जा सके।

14. पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की सूची और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को जारी किए गए निर्देश कहाँ मिल सकते है?

पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की सूची, भारतीय रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर उपलब्ध है और → www.rbi.org.in → Sitemap → NBFC List पर देखी जा सकती है। समय-समय पर गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को जारी किए गए निर्देश भी → www.rbi.org.in → Notifications → Master Circulars → Non-banking होस्ट किये जाते हैं। इसके अलावा, वे सरकारी राजपत्र अधिसूचना व प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से जारी किये जाते हैं।

15. रुपये 500 करोड़ से कम की जमाराशि स्वीकार न करने वाली एनबीएफसी पर कौन से नियम लागू होते हैं?

रुपये 500 करोड़ से कम की जमाराशि स्वीकार न करने वाली, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के विनियमन निम्नानुसार होगे:

(i) यदि उन्होंने किसी भी सार्वजनिक निधि का स्वीकार नही किया है और उनका कोई ग्राहक इंटरफ़ेस नहीं है, तो वे किसी भी विनियमन या तो विवेकपूर्ण या कारोबार परिचालन जैसे उचित-व्यवहार-संहिता, केवाईसी, आदि, के अधीन नहीं होगे।

(ii) ग्राहक इंटरफ़ेस होने के मामले में, यदि वे किसी भी सार्वजनिक निधि का स्वीकार नही कर रहे हैं, तो वे कारोबार परिचालन नियमनों; उचित-व्यवहार-संहिता, केवाईसी, आदि के अधीन होंगे।

(iii) यदि वे किसी भी सार्वजनिक निधि का स्वीकार करते हैं, तो वे सीमित विवेकपूर्ण नियमों के अधीन होंगे, ग्राहक इंटरफ़ेस न होने के मामले में वे कारोबार परिचालन नियमनों के अधीन नहीं होगे।

(iv) जिन कंपनियों में सार्वजनिक निधि का स्वीकार किया जाता है और ग्राहक इंटरफ़ेस मौजूद हैं, ऐसी कंपनियां सीमित विवेकपूर्ण विनियमों और कारोबार परिचालन नियमनों दोनों के अधीन होंगी।

16. सार्वजनिक निधि में क्या शामिल है? क्या यह सार्वजनिक जमाराशियों की तरह ही है?

सार्वजनिक निधि सार्वजनिक जमाराशियों की तरह नहीं हैं। सार्वजनिक निधि में सार्वजनिक जमाराशियाँ, अंतर-कंपनी जमाराशियाँ, बैंक वित्त और सीधे या परोक्ष रूप से प्राप्त, वाणिज्यिक पत्रों, डिबेंचर आदि बाहरी स्रोतों से प्राप्त निधि जैसे सब निधि शामिल हैं। तथापि, यद्यपि सार्वजनिक निधि में, आम तौर पर, सार्वजनिक जमाराशियाँ शामिल होती हैं, यह नोट किया जाए कि सीआईसी/सीआईसी-एनडी-एसआई सार्वजनिक जमाराशियाँ स्वीकार नहीं कर सकते।

इसके अलावा, सार्वजनिक निधि की अप्रत्यक्ष प्राप्ति का मतलब है कि धन सीधे प्राप्त नहीं हुआ लेकिन ऐसे सहयोगियों और समूह संस्थाओं के माध्यम से प्राप्त हुआ जिनकी पहुँच में सार्वजनिक धन है।

17. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों पर कौन से विभिन्न विवेकपूर्ण नियम लागू होते हैं?

बैंक द्वारा गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशि स्वीकार या धारण) कंपनी विवेकपूर्ण मानदण्ड (रिजर्व बैंक) निदेश, 2007, मानदण्ड, गैर-प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय (गैर-जमा स्वीकार या धारण), कंपनी विवेकपूर्ण मानदण्ड (रिजर्व बैंक) निदेश, 2015, और गैर प्रणालीबद्ध महत्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय (गैर-जमा स्वीकार या धारण) कंपनी विवेकपूर्ण मानदण्ड (रिजर्व बैंक) निदेश, 2015, विवेकपूर्ण मानदंडों पर विस्तृत निर्देश जारी किए हैं। एनबीएफसी के जमा स्वीकृति या प्रणालीगत महत्व के आधार पर लागू नियमों में परिवर्तन होता है।

गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए लागू निर्देशों में अन्य मदों के साथ-साथ, आय-निर्धारण, परिसंपत्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण आवश्यकताओं, एक्सपोज़र मानदंडों, बैलेंस शीट में प्रकटीकरण, पूंजी पर्याप्तता की आवश्यकता, भूमि और भवन में निवेश पर प्रतिबंध और गैर-उद्धृत शेयरों के मूल्य, मुख्य रूप से सोने के आभूषण पर ऋण देने के कारोबार में लगी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के के लिए ऋण मूल्य र अनुपात (एलटीवी) संबंधी निर्धारण, और इनके अलावा अन्य निर्देश भी शामिल हैं। जमा स्वीकार करने वाली एनबीएफसी को सांविधिक चलनिधि आवश्यकताओं का भी अनुपालन करना जरूरी है। जमाराशियाँ प्राप्त करने वाली और जमाराशियाँ प्राप्त न करने वाली एनबीएफसी के लिये लागू विवेकपूर्ण विनियमों का विवरण भारतीय रिजर्व बैंक की वेबसाइट में खंड ‘Regulation – Non-Banking – Notifications - Master Circulars’ में उपलब्ध है।

18. कृपया गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के संबंध में 'स्वाधिकृत निधि' और 'निवल स्वाधिकृत निधि' के बारे में स्पष्ट करें।

'स्वाधिकृत निधि' का मतलब है प्रदत्त कुल इक्विटी पूंजी, अधिमान (preference) शेअर्स, जो अनिवार्यत: इक्विटी में परिवर्तित होते हैं, मुक्त आरक्षित निधि, शेयर प्रीमियम खाते में बकाया राशि और हानि, आस्थगित राजस्व व्यय और अन्य अमूर्त आस्तियों के संचयित बकाये से घटाने के बाद आस्ति के पुनर्मूल्यांकन से बनाई गयी आरक्षित पूंजी। निवल स्वाधिकृत निधि, उपरोल्लिखित राशि से इन कंपनियों की ही समूह की सहायक और सहयोगी कंपनियों तथा अन्य सभी एनबीएफसीज की शेयर में निवेश और उसी समूह की सहायक और सहयोगी कंपनियों के पास रखी जमाराशियाँ, डिबेंचरस, बांडस, बकाया ऋणों और अग्रिमों, जिनमें किराया खरीद और लीज फ़ाइनेंस भी शामिल है, जो कि स्वाधिकृत निधि के 10% से अधिक की राशि है, को घटाने के बाद आनेवाली राशि हैं।

19. रिजर्व बैंक के पास पंजीकृत गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के अनुपालन और अन्य सूचना प्रस्तुत करने के संबंध में उत्तरदायित्व क्या हैं?

ए. जमाराशियाँ प्राप्त करने वाली एनबीएफसी द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले रिटर्न

  1. एनबीएस-1 पहली अनुसूची में जमा राशि पर त्रैमासिक विवरणी।

  2. एनबीएस-2 - सार्वजनिक जमाराशियाँ स्वीकार करने वाली एनबीएफसी को विवेकपूर्ण मानदडों पर त्रैमासिक विवरणी प्रस्तुत करना आवश्यक है।

  3. एनबीएस-3 - जमाराशियाँ प्राप्त करने वाली एनबीएफसी द्वारा तरल संपत्ति पर त्रैमासिक विवरणी।

  4. एनबीएस-4 - सार्वजनिक जमाराशियाँ प्राप्त करने वाली अस्वीकृत कंपनी द्वारा महत्वपूर्ण पैरामीटर्स पर वार्षिक विवरणी। (एनबीएस-5 एनबीएस अब समाप्त कर दिया गया है चूंकि एनबीएस-1 का प्रस्तुतीकरण अब त्रैमासिक किया गया है)

  5. एनबीएस-6 - जमाराशियाँ प्राप्त करने वाली ऐसी एनबीएफसी, जिसकी कुल आस्तियां रुपये 100 करोड़ और उससे ऊपर हैं, के द्वारा पूंजी बाजार के जोखिम पर मासिक विवरणी।

  6. 20 करोड़ रुपये या अधिक सार्वजनिक जमाराशियाँ प्राप्त करने वाली ऐसी एनबीएफसी, जिसकी कुल आस्तियां रुपये 100 करोड़ और उससे ऊपर हैं, के द्वारा अर्द्धवार्षिक एएलएम विवरणी

  7. सार्वजनिक जमाराशियाँ स्वीकार करने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी द्वारा, लेखा परीक्षित बैलेंस शीट और लेखा परीक्षकों की रिपोर्ट।

  8. शाखा जानकारी विवरणी।

बी. एनबीएफसी-एनडी-एसआई द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले रिटर्न

  1. एनबीएस-7 एनबीएफसी-एनडी-एसआई के लिए पूंजी निधि जोखिम भारित परिसंपत्तियां, जोखिम परिसंपत्ति अनुपात आदि का त्रैमासिक विवरण

  2. एनबीएफसी-एनडी-एसआई की महत्वपूर्ण वित्तीय पैरामीटर्स पर मासिक विवरणी

  3. एएलएम विवरणी:

    (i) अल्पावधि गतिशील तरलता की विवरणी [एनबीएस - प्रारूप ALM [NBS-ALM1] - मासिक

    (ii) संरचनात्मक तरलता की विवरणी प्रारूप [एनबीएस - ALM [NBS-ALM2) - छमाही

    (iii) ब्याज दर संवेदनशीलता का विवरण प्रारूप एएलएम में ALM -[NBS-ALM3] - छमाही

  4. शाखा जानकारी विवरणी

सी. जमाराशियाँ प्राप्त न करने वाली ऐसी एनबीएफसी – जिनकी परिसंपत्ति 50 करोड़ रुपए से अधिक की लेकिन 100 करोड़ रुपये से कम की हो, से महत्वपूर्ण वित्तीय पैरामीटर्स के आधार पर त्रैमासिक विवरणी

जमाराशियाँ प्राप्त न करने वाली एनबीएफसी जिनकी परिसंपत्ति 50 करोड़ रुपये और 100 करोड़ रुपये के बीच है, को कंपनी का नाम, पता, एनओएफ, पिछले तीन वर्षों के दौरान लाभ/हानि की आधारभूत जानकारी संबंधी त्रैमासिक जानकारी प्रस्तुत करनी है।

सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले अन्य सामान्य रिपोर्ट, जो मास्टर परिपत्र में विस्तारपूर्वक बताए गये हैं और www.rbi.org.in → Notifications → Master Circulars → Non-banking and Circular DNBS (IT) CC.No.02/24.01.191/2015-16 dated July 9, 2015 as available on www.rbi.org.in → Notifications. पर उपलब्ध है।

20. शेयरों पर आधारित उधार पर दिनांक 21 अगस्त 2014 का परिपत्र क्या मौजूदा ऋण पर भी लागू होता है?

परिपत्र उस परिपत्र की तारीख से लागू है और इसलिए उक्त परिपत्र की तारीख से पहले दर्ज लेनदेन पर लागू नहीं होगा। हालांकि, दिशा निर्देश ऋण का रोल-ओवर/नवीकरण के मामले में लागू होगा। दिशानिर्देश उन लेनदेनों पर लागू नहीं होंगे, जहां दस्तावेज परिपत्र की तारीख से पहले निष्पादित किये गये हैं पर वितरण लंबित है।

21. शेयरों पर आधरित उधार पर परिपत्र क्या पुनर्गठित खातों पर भी लागू होगा?

नहीं। उक्त परिपत्र पुनर्गठित खातों पर लागू नहीं होगा।

22. क्या शेयरों पर आधारित उधार पर परिपत्र, उन ऋणों पर लागू हो सकता है, जहां प्राथमिक जमानत शेयर/म्युचुअल फंड की इकाइयां नहीं है?

ऋण, जो कई जमानतों के संपार्श्विक पर लिया गया है और करार में विशेष रूप से यह सहमति हुई है कि प्राथमिक जमानत शेयरों/म्युचुअल फंड की इकाइयां के अलावा कुछ अन्य होगी, तो एलटीवी लागू नहीं होगा। हालांकि, रिपोर्टिंग आवश्यकताएं बरकरार रहेंगी। ऐसे मामलों में जहां इस तरह की भिन्नता नहीं की जाती है (जिससे एनबीएफसी डिफ़ॉल्ट पर शेयर ऑफ लोड कर सकते हैं), तो एलटीवी लागू होगा।

23. क्या शेयरों की जमानत पर जारी किए गए ऋण के लिए शेयरों की scrip level पर या पोर्टफोलियो के स्तर पर गणना की जानी चाहिये?

एलटीवी की पोर्टफोलियो के स्तर पर गणना की जाएगी।

24. क्या शेयरों पर उधार परिपत्र के तहत पीओए/गैर-निपटान उपक्रम संरचना, चाहे जिस नाम से पुकारा जाए, कवर किया जाता है?

हाँ, परिपत्र लागू होगा और ऋणभार का प्रकार कोई मायने नही रखता।

25. क्या प्रणालीबद्ध महत्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय (जमाराशियाँ स्वीकार या धारण न करने वाली) कंपनी विवेकपूर्ण मानदण्ड दिशा-निर्देश, 2015 में “एक समूह की कंपनियां" की परिभाषा क्रेडिट/निवेश मानदंडों के संकेंद्रण के संबंध में लागू हैं?

नहीं, "एक समूह की कंपनियां" की परिभाषा केवल एक समूह में कई गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों पर विवेकपूर्ण मानदंडों को लागू करने के उद्देश्य के लिए है।

26. क्या एक ही समूह के भीतर, एनबीएफसी की प्रदत्त इक्विटी पूंजी के 26 प्रतिशत या अधिक के अधिग्रहण/हिस्सेदारी के स्थानांतरण, (शेयरधारिता के अंतरण) के लिये बैंक के पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होती है?

हाँ, एनबीएफसी की प्रदत्त इक्विटी पूंजी के 26 प्रतिशत या अधिक से, अधिग्रहण/हिस्सेदारी के स्थानांतरण के सभी मामलों में बैंक के पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता है। इंट्रा-समूह तबादलों के मामले में, एनबीएफसी, कंपनी के पत्र-शीर्ष (लेटर हेड) पर बैंक से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करने के लिए एक आवेदन पत्र प्रस्तुत करेगी। एनबीएफसी के आवेदन तथा मामले के आधार पर, मामले पर यह निर्णय लिया जाएगा कि क्या कंपनी के आवेदन के प्रसंस्करण के लिए, एनबीएफसी को दिनांक 9 जुलाई 2015 के गैबैंविवि (नीप्र)कंपरि.सं.065/03.10.001/2015-16 के पैरा 3 में निर्धारित दस्तावेज प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। उन मामलों में जहां, दस्तावेजों के बिना अनुमोदन प्रदान किया जाता है, हस्तांतरण की प्रक्रिया पूरी होने बाद, एनबीएफसी को ही दस्तावेज प्रस्तुत करना आवश्यक होगा।

27. एनबीएफसी द्वारा अपने उधारकर्ताओं से काफी अधिक ब्याज दर वसूल की जाती है। क्या एनबीएफसी द्वारा अपने उधारकर्ताओं से वसूल की जाने वाली ब्याजदर की कोई उच्चतम सीमा है?

भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय संस्थाओं (एनबीएफसी माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशन को छोड़कर) द्वारा उधारकर्ताओं से वसूल की जाने वाली ब्याजदर को नियंत्रण मुक्त कर दिया है। कंपनी द्वारा प्रभारित ब्याज दर उधारकर्ता और एनबीएफसी के बीच हुए ऋण करार की शर्तों के अधीन होती है। तथापि एनबीएफसी को पारदर्शी होना चाहिए और ब्याज दर एवं विभिन्न श्रेणियों के उधारकर्ताओं हेतु ब्याजदर तय करने के तरीके का उल्लेख उधारकर्ता अथवा ग्राहक के ऋण आवेदन पत्र में दर्शाया जाना चाहिए और ऋण मंजूरी पत्र आदि में इसके बारे में स्पष्ट रुप से इसे अवगत कराया जाना चाहिए।

28. गैर-बैंकिंग कंपनियों को ब्याज दर फ्यूचर्स (आईआरएफ) में लेन-देन के माध्यम से अपने एक्सपोजर को हेज करने की भारतीय रिज़र्व बैंक अनुमति देता है। वर्तमान में सिंगल स्टॉक 10 वर्षीय 8.40% 2024 प्रतिभूति पर आईआरएफ उपलब्ध है। तुलन पत्र, मीयादी/ अस्थायी ब्याज दर तथा विभिन्न ऋण प्रोफाइल के मिश्रण से बना है। क्या 10 वर्षीय एकल प्रतिभूति का 2-3 वर्ष की देयता तथा आस्ति (अवधि समायोजित) को हेज करने के लिए उपयोग किया जा सकता है अथवा उसे अन्य दीर्घावधि प्रतिभूतियों अथवा कार्पोरेट बांडस में निवेश के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। वैकल्पिक रूप से क्या आईआर्‍एफ का उपयोग समग्र रूप से आस्तियों तथा देयताओं को कुल तुलन पत्र राशि के भीतर तथा हेजिंग की परिभाषा के भीतर गतिशील ब्याज दर परिदृश्यों में हेज करने के लिए किया जा सकता है?

आईआरएफ को एकल आस्ति/देयता अथवा आस्तियों/देयताओं के समूह से संबद्ध ब्याज दर जोखिम को हेज करने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। अत: एनबीएफसी को ब्याज दर जोखिम के प्रबंधन के लिए अवधि आधारित हेजिंग का उपयोग करने की अनुमति है।

29. क्या एनबीएफसी आईआरएफ बाजार में एक ट्रेडिंग सदस्य के रूप में केवल हेजिंग के लिए सहभागी हो सकते हैं अथवा ट्रेडिंग पोजिशन ले सकते हैं?

मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार 1,000 करोड़ रुपये तथा उससे अधिक राशि की आस्तियों वाले एनबीएफसी को आईआरएफ में ट्रेडिंग सदस्य के रूप में सहभागी होने की अनुमति है। जहां स्टॉक एक्सचेंजेस के ट्रेडिंग सदस्यों को उनके अपने खाते तथा उनके ग्राहकों के खातों पर क्रय-विक्रय निष्पादित करने की अनुमति दी गई है, वहीं बैंकों तथा प्रायमरी डीलर्स को हेजिंग तथा क्रय-विक्रय, दोनों के लिए केवल अपने खाते पर आईआरएफ में लेन-देन करने के लिए अनुमति दी गई है। उन्हें ग्राहक के खाते से ऐसा करने की अनुमति नहीं है। उसी तरह एनबीएफसी को ट्रेडिंग सदस्य के रूप में केवल अपने स्वामित्व वाले व्यापार को निष्पादित करने की अनुमति है। वे अपने ग्राहकों की ओर से ऐसे लेन-देन नहीं कर सकते।

C. अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनियाँ (आरएनबीसी)

30. अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनी (आरएनबीसी) क्या है? अन्य एनबीएफसी से यह किस प्रकार भिन्न है?

अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनी एनबीएफसी की एक श्रेणी है जो एक कंपनी है तथा इसका 'प्रमुख व्यवसाय' किसी भी योजना, व्यवस्था या किसी अन्य तरीके से जमा राशियाँ प्राप्त करना है तथा ये कंपनियाँ निवेश, आस्ति वित्तपोषण या ऋण देने का कार्य नहीं करती। इन कंपनियों को भारतीय रिज़र्व बैंक के निदेशानुसार, तरल आस्तियों के अलावा निवेश को बनाये रखने की आवश्यकता होती है। निदेशों के अनुसार जमाराशियों के संग्रहण की पद्धति और जमाकर्ताओं की निधि के विनियोजन के मामले में इन कंपनियों की कार्य प्रणाली एनबीएफसी से भिन्न है। इसके अलावा, इन कंपनियों पर भी विवेकपूर्ण मानदंड निदेश लागू होते है।

31. हमें समझते है कि आरएनबीसी द्वारा जमाराशियाँ जुटाने की कोई उच्चतम सीमा नहीं है, ऐसे में उनके पास जमाराशि रखना कितना सुरक्षित है?

यह सच है कि आरएनबीसी द्वारा जमाराशियाँ जुटाने की कोई उच्चतम सीमा नहीं है। फिर भी, प्रत्येक आरएनबीसी को यह सुनिश्चित करना है कि उसके पास जमा की गई राशियों का निवेश पूरी तरह से अनुमोदित निवेशों में किया जाए। दूसरे शब्दों में, जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए, ऐसी कंपनियों से यह अपेक्षित है कि वे अपनी जमा देयता का 100 प्रतिशत अत्यधिक तरल और सुरक्षित लिखतों उदाहरणार्थ केंद्रीय/राज्य सरकार की प्रतिभूतियों, अनुसूचित वाणिज्यक बैंकों (SCB) की सावधि जमाओं, अनुसूचित वाणिज्यक बैंकों/वित्तीय संस्थानों के जमा प्रमाणपत्रों, म्युचुअल फण्ड की यूनिटों इत्यादि में निवेश करें।

32. यदि जमा-किस्तें नियमित रूप से न अदा की जाएं अथवा किस्तें जमा होना बंद हो जाए तो क्या आरएनबीसी जमाराशियों को जब्त कर सकती हैं?

नहीं, अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनी जमाकर्ताओं द्वारा जमा की गई कोई राशि या कोई ब्याज, प्रीमियम, बोनस या उस पर अर्जित किसी भी लाभ को ज़ब्त नहीं कर सकती।

33. वह ब्याज दर क्या है जिसे आरएनबीसी को जमाराशियों पर अनिवार्य रूप से चुकाना चाहिए और उनके द्वारा ली गई जमाराशियों की परिपक्वता अवधि कितनी होनी चाहिए?

एक आरएनबीसी को एकमुश्त में या मासिक अथवा लंबे अंतरालों पर जमा की गई जमाराशियों पर न्यूनतम 5% ब्याज (वार्षिक रूप से चक्रवृद्धि) का भुगतान करना चाहिए; तथा दैनिक जमा योजना के अंतर्गत जमा की गई राशियों पर न्यूनतम 3.5% ब्याज का भुगतान करना चाहिए। ब्याज में प्रीमियम, बोनस या अन्य कोई लाभ शामिल है, जोकि आरएनबीसी जमाकर्ताओं को रिटर्न के रूप में चुकाने का वादा करती है। आरएनबीसी ऐसी जमाराशियों की प्राप्ति की तिथि कम से कम 12 महीनों तथा अधिकतम 84 महीनों की अवधि हेतु जमाराशियाँ स्वीकार कर सकती हैं। वे मांग पर चुकौती योग्य जमाराशियां स्वीकार नहीं कर सकतीं। हालांकि, वर्तमान में, मौजूदा केवल एक आरएनबीसी (पियरलेस) को रिज़र्व बैंक द्वारा यह निर्देश दिया गया है कि वे जमाराशियां लेना बंद कर दें, जमाकर्ताओं को जमाराशियों की चुकौती करें और अपने आरएनबीसी व्यवसाय को समाप्त करें क्योंकि उनका व्यवसाय मॉडल स्वाभाविक रूप से अव्यवहार्य है।

D. जमाराशियों की परिभाषा, जमाराशियां स्वीकार करने योग्य/अयोग्य संस्थाएं और उनसे संबंधित मामले

34. जमाराशि और जनता की जमाराशि क्या है? क्या इनकी कहीं परिभाषा दी गई है?

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45झ(खख) में ‘जमाराशि’ शब्द की परिभाषा दी गई है। जमाराशि में जमा या ऋण या किसी अन्य प्रकार से किसी धन की प्राप्ति सम्मिलित है और सदैव मानी जाएगी परंतु इसमें निम्नलिखित शामिल नहीं होगी:

i. शेयर पूंजी के रूप में जुटाई गई रकम, अथवा फर्म के साझेदारों द्वारा पंजी के लिए किया गया अंशदान;

ii. अनुसूचित बैंक, सहकारी बैंक, बैंकिंग कंपनी, राज्य वित्त निगम, भारतीय औद्योगिक विकास बैंक और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनिर्दिष्ट किसी अन्य संस्था से प्राप्त राशि;

iii. सामान्य कारोबार के दौरान जमानत जमाराशि, डीलरशीप जमा, बयाना माल, संपत्ति और सेवाओं के आदेशों पर अग्रिम के रूप में प्राप्त हुई अग्रिम राशि;

iv. निगमित निकाय से इतर पंजीकृत धन उधार देने वाले से प्राप्त रकम;

v. ‘चिट’ के संबंध में अंशदान के रूप में प्राप्त राशि;

गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां जनता से जमा राशियों का स्वीकरण (रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998 के पैरा 2(1)(xii) में जनता की जमा राशियों को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45झ (खख) के अंतर्गत परिभाषित जमाराशि, जिसमें निम्नलिखित को शामिल नहीं किया गया हो, के रूप में परिभाषित किया गया है:

ए. केन्द्र/राज्य सरकार या अन्य स्रोत से प्राप्त राशि जहां केन्द्र/राज्य सरकार द्वारा चुकौती की गारंटी दी गई हो अथवा स्थानीय निकाय या विदेशी सरकार या किसी विदेशी नागरिक/ प्राधिकारी/व्यक्ति से प्राप्त कोई राशि;

बी. इस प्रयोजन के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनिर्दिष्ट वित्तीय संस्थानों से प्राप्त कोई राशि; अन्य

सी. अन्य कंपनी से किसी कंपनी को प्राप्त कोई राशि;

डी. आबंटन के लिए विचारधीन/लंबित शेयरों/स्टॉक/ बांडस या ऋणपत्रों में अभिदान के रूप में प्राप्त राशि या क्रय के लिए अग्रिम के रूप में प्राप्त राशि बशर्तें ऐसी राशि कंपनी के अंतर्नियमों के अंतर्गत सदस्यों को चुकायी न जानी हो;

ई. कंपनी के निदेशकों से प्राप्त राशि अथवा प्राइवेट कंपनी अथवा प्राइवेट कंपनी जो पब्लिक कंपनी बन गई हो के इसके शेयर धारकों से प्राप्त राशि;

एफ. कंपनी किसी अचल संपत्ति को अथवा स्थिति के अनुसार कंपनी के किसी अन्य संपत्ति को गरवी रखकर रक्षित ऋण अथवा बांडस जारी कर जुटाई गई राशि

एफए. एक वर्ष से अधिक समावधि में परिपक्वता वाली तथा रू 1 करोड तथा उससे अधिक न्यूनतम प्रति खरीदकर्ता वाली गैर-परिवर्तनीय ऋण पत्र को जारी कर जुटाई गई कोई राशि, बशर्तें कि बैंक द्वारा जारी दिशानिदेश के अनुसार हो;

जी. प्रवर्तकों द्वारा गैर जमानती ऋण के रूप में लायी गयी राशि;

एच. म्यूचुअल फंड से प्राप्त राशि;

आइ. संमिश्र या गौण ऋण के रूप में प्राप्त कोई राशि;

जे. किसी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी के निदेशक और निदेशक के रिश्तेदार से प्राप्त राशि;

के. वाणिज्यिक पत्र (कमर्शियल पेपर) जारी करके प्राप्त कोई राशि;

एल. प्रणालीगत महत्वपूर्ण जमाराशि नहीं स्वीकार करने वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी द्वारा ‘बेमियादी कर्ज लिखत’ जारी कर प्राप्त कोई राशि;

एम. इंफ्रास्ट्रक्चर वित्त कंपनी द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर बांडस जारी कर प्राप्त कोई राशि।

इस प्रकार उपर्युक्त निदेशों में जनता की जमाराशि की परिभाषा में से उन उधार देने वालों की कतिपय श्रेणी से उगाही गई राशि को बाहर रखने की कोशिश की गई है जो स्वयं निर्णय ले सकते है।

35. वे कौन-कौन सी संस्थाएं है जो वैधानिक तौर पर जनता से जमाराशियाँ स्वीकार करने हेतु अधिकृत हैं?

सहकारी बैंकों सहित सभी बैंक जमाराशियां स्वीकार कर सकते हैं। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ, जिन्हें रिज़र्व बैंक द्वारा जमाराशियाँ स्वीकार करने के विशिष्ट लाइसेंस के साथ पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी किया गया है, जनता से जमाराशियाँ स्वीकार करने के लिए पात्र हैं। दूसरे शब्दों में, रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत सभी एनबीएफसीज जमाराशियाँ स्वीकार करने के लिए पात्र नहीं है, केवल वही एनबीएफसी जमाराशियाँ स्वीकार करने के लिए पात्र हैं जिनके पास जमाराशि स्वीकार करने का पंजीकरण प्रमाणपत्र है। साथ ही, ये केवल अनुमत सीमा तक ही जमाराशियाँ स्वीकार कर सकती हैं। आवास वित्त कंपनियां जिन्हें जमाराशियां जुटाने हेतु दुबारा विशेष रूप से अधिकृत किया गया है और वे कंपनियाँ जिन्हें कारपोरेट कार्य मंत्रालय द्वारा केंद्र सरकार द्वारा कंपनी अधिनियम के अधीन बनाए गए ‘कंपनी जमा ग्रहण नियम’ के तहत जमाराशियाँ स्वीकार करने हेतु अधिकृत किया गया है, भी एक निश्चित सीमा तक जमाराशियाँ स्वीकार कर सकती हैं। सहकारी साख समितियाँ अपने सदस्यों से जमाराशियां स्वीकार कर सकती है किंतु आम जनता से नहीं। भारतीय रिजर्व बैंक केवल बैंको, सहकारी बैंको और एनबीएफसी द्वारा स्वीकार की गई जमाराशियों को विनियमित करता है।

अन्य संस्थाओं को सार्वजनिक जमाराशियां स्वीकार करने की वैधानिक अनुमति नहीं है। अनिगमित निकायों यथा व्यक्ति, भागीदारी कंपनियाँ और व्यक्तियों के अन्य समूहों को उनके प्रमुख व्यवसाय के रूप में जनता से जमाराशियां स्वीकार करने की मनाही है। ऐसे अनिगमित निकाय अगर वित्तीय व्यवसाय चलाते भी हों तो भी उन्हें जमाराशियां स्वीकार करने की अनुमति नहीं है।

36. क्या सभी एनबीएफसी जमाराशि स्वीकार कर सकती है? क्या जनता से जमाराशि स्वीकर करने हेतु कोई अधिकतम सीमा है? एनबीएफसी द्वारा स्वीकार की जाने वाली जमाराशि हेतु ब्याज दर और जमा की अवधि क्या है?

सभी एनबीएफसी जमाराशि स्वीकार करने के लिए पात्र नहीं होती है। केवल वे एनबीएफसी जिसे बैंक द्वारा विशेष रूप से प्राधिकृत किया गया है तथा जिन्हे निवेश ग्रेड रेटिंग हैं, वे अपने निवल स्वाधिकृत निधि के डेढ गुणा (1½) तक जमाराशि स्वीकार /धारण कर सकते हैं। सभी मौजूदा बगैर रेटिंग प्राप्त एएफसीज जिन्हें जमाराशि स्वीकार करने की अनुमति प्राप्त है, उन्हें 31 मार्च 2016 तक अपनी रेटिंग करनी होगी। ऐसी एएफसीज जिन्हें 31 मार्च 2016 तक रेटिंग प्राप्त नहीं होती उन्हें उसके बाद मौजूदा जमाराशियों का नवीनीकरण अथवा नयी जमाराशि स्वीकार करने की अनुमति नहीं होगी। इस बीच की अवधि के लिए अर्थात 31 मार्च 2016 तक, बगैर रेटिंग प्राप्त एएफसीज अथवा वे जिन्हें सब-इंवेस्टमेंट रेटिंग प्राप्त है, वे केवल परिपक्वता पर अपनी मौजूदा जमाराशि का नवीनीकरण कर सकती है तथा नयी जमा राशि स्वीकार नहीं कर सकती, जब तक उन्हें इंवेस्टमेंट ग्रेड रेटिंग प्राप्त नहीं हो जाता।

तथापि, सार्वजनिक नीति के मामले में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने यह निर्णय लिया है कि केवल बैंक सार्वजनिक जमाराशि स्वीकार कर सकते है इसलिए जमाराशि स्वीकार करने वाली किसी नई एनबीएफसी को वर्ष 1997 के बाद से कोई पंजीकरण प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया है।

वर्तमान में, एनबीएफसी 12.5% का अधिकतम ब्याज दर दे सकती है। ब्याज का भुगतान अथवा चक्रवृद्धि अंतराल, मासिक अंतराल से कम नहीं होना चाहिए। एनबीएफसी को न्यूनतम 12 महिनों और अधिकतम 60 महिनों के लिए नई सार्वजनिक जमाराशि स्वीकार करने /नवीनीकरण करने की अनुमति है। एनबीएफसीज को मांग पर देय जमाराशि स्वीकार करने की अनुमति नहीं है।

37. ऐसी कंपनियाँ जो वित्तीय आस्तियों एवं उनसे प्राप्त आय के 50-50 प्रतिशत मानदंड को पूरा नहीं करती हैं, पर जमाराशियाँ प्राप्त कर रही हैं – क्या वे भारतीय रिज़र्व बैंक के दायरे में आती हैं?

वह कंपनी जिसके पास उसकी कुल आस्तियों के 50% से अधिक की वित्तीय आस्तियां नहीं हैं और इन आस्तियों से होने वाली आमदनी कुल आमदनी के 50% से कम है, तो उसे एनबीएफसी नहीं कहा जाएगा। इसका प्रमुख व्यवसाय गैर–वित्तीय गतिविधि जैसे कृषि प्रचालन, औद्योगिक गतिविधि, माल की खरीद और बिक्री, या अचल सम्पत्तियों की बिक्री/निर्माण होगा और इन्हें गैर-बैंकिंग गैर–वित्तीय कंपनी माना जाएगा। गैर-बैंकिंग गैर वित्तीय कंपनी द्वारा जमा राशियाँ ग्रहण करना कार्पोरेट कार्य मंत्रालय के नियम और विनियमों द्वारा विनियमित होता है।

38. एनबीएफसी को जनता से जमाराशियाँ जुटाने की अनुमति देने में भारतीय रिजर्व बैंक का रुख इतना प्रतिबंधात्मक क्यों है?

भारतीय रिजर्व बैंक किसी भी वित्तीय संस्था के पर्यवेक्षण में जमाकर्ताओं के हित की रक्षा को अत्यंत महत्व देता है। कोई निवेशक किसी कंपनी में निवेश इस आशय के साथ करता है कि वह प्रवर्तकों के साथ जोखिम और लाभ को शेयर करेगा जबकि एक जमाकर्ता किसी भी संस्था में अपनी जमाराशि केवल विश्वास के आधार पर जमा करता है। अतएव, वित्तीय विनियमन में जमाकर्ताओं के हित की रक्षा की सर्वोच्च प्राथमिकता होती है। बैंक अत्यधिक विनियमित वित्तीय संस्थाए हैं। बैंको के विफल होने की स्थिति में निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम जमाराशियों पर एक लाख रूपये तक की बीमा राशि का भुगतान करता है।

39. वे कौन सी एनबीएफसीज हैं जिन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विशेष रूप से जमा राशि स्वीकारने के लिए प्राधिकृत किया गया है?

भारतीय रिजर्व बैंक अपनी वेब साइट www.rbi.org.in → साइट मैप → एनबीएफसी की सूची → जमा राशियां स्वीकार करने के लिए प्रधिकृत एनबीएफसीज, पर उन एनबीएफसीज के नामों की सूची प्रकाशित करता है जिनके पास जमाराशियां स्वीकार करने का वैध पंजीकरण प्रमाणपत्र है। कभी-कभी कुछ कंपनियों को अस्थायी तौर पर जनता से जमाराशियाँ स्वीकार करने हेतु प्रतिबंधित कर दिया जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जमाराशियाँ स्वीकार करने हेतु अस्थायी तौर पर प्रतिबंधित की गई ऐसी एनबीएफसीज की सूची अपनी वेबसाइट पर प्रदर्शित की जाती है। भारतीय रिजर्व बैंक इन दोनों सूचियों का अद्यतन करता है। आम जनता को सूचित किया जाता है कि वे एनबीएफसीज के पास जमाराशियां रखने के पहले इन सूचियों की जांच कर लें।

40. क्या गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी अनिवासी भारतीयों से जमाराशियां स्वीकार कर सकती हैं?

24 अप्रैल 2004 से, अनिवासी भारतीयों के अनिवासी खाते के जमा में से नामें की गई राशि को छोड़कर, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी निवासी भारतीयों के अनिवासी से जमाराशियां स्वीकार नहीं कर सकती, बशर्तें कि वह राशि अनिवासी बाह्य/विदेशी मुद्रा अनिवासी (बैंक) खाते से अंत: प्रेषण या अंतरण नहीं किया गया हो। तथापि, मौजूदा अनिवासी जमाराशियों को नवीनकृत किया जा सकता है।

41. क्या कोई को-ऑप. क्रेडिट सोसायटी जनता से जमाराशियां स्वीकार कर सकती है?

नहीं। को-ऑप. क्रेडिट सोसायटी जनता से जमाराशियां स्वीकार नहीं कर सकती। वह अपने उपनियमों के तहत निर्धारित सीमा तक ही अपने सदस्यों से जमाराशियां स्वीकार कर सकती हैं।

42. क्या वेतनभोगी व्यक्तियों की समिति जनता से जमाराशियां स्वीकार कर सकती है?

नहीं। इन समितियों का गठन वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए होता है और वे केवल अपने सदस्यों से ही जमाराशियां स्वीकार कर सकती है, न कि जनता से।

43. क्या गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के जमाकर्ताओं को नामांकन की सुविधा उपलब्ध है?

जी हां, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के जमाकर्ताओं को नामांकन की सुविधा उपलब्ध है। नामांकन की सुविधा के नियम, भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45थब में दिए गए हैं। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को बैंक विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 45यक के अंतर्गत बनाये गये बैंकिंग कंपनियां (नामांकन) नियम, 1985 अपनाने को कहा गया है। तदनुसार, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के जमाकर्ता/ओं को एक व्यक्ति को नामांकित करने की अनुमति दी गई है, जिसे जमाकर्ता/ओं की मृत्यु हो जाने की दशा में गैर बैंकिंग कंपनी जमाराशि लौटा सके। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को सूचित किया गया है कि वे उक्त नियमों में विनिर्दिष्ट किए गए अनुसार फार्म डीए 1 में जमाकर्ताओं द्वारा किए गए नामांकन स्वीकार करें और क्रमश: नामांकन निरस्त किए जाने के लिए फार्म डीए 2 और नामांकन में परिवर्तन करने के लिए फार्म डीए 3 का प्रयोग करें।

44. भारतीय रिजर्व बैंक को कैसे पता चलता है कि कोई कंपनी जो उसके पास पंजीकृत नहीं है, अनधिकृत रूप से जमाराशियाँ स्वीकार कर रही है अथवा कोई एनबीएफसी उससे पंजीकरण प्रमाणपत्र लिए बगैर उधार या निवेश की गतिविधियां चला रही है?

गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त करना है परंतु ऐसा किए बगैर कार्य करना कानून का उल्लंघन है। ऐसी कंपनियों पर भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत कार्रवाई की जा सकती है। ऐसी संस्थाओं की पहचान हेतु, भारतीय रिज़र्व बैंक के पास सूचना के अनेक स्रोत है। इसमें बाजार आसूचना, प्रभावित पार्टियों से प्राप्त शिकायतें, औद्योगिक स्रोत तथा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी लेखा परीक्षकों का रिपोर्ट (रिजर्व बैंक) निदेश 2008 के अनुसार सांविधिक लेखा परीक्षकों द्वारा प्रस्तुत अपवाद रिपोर्ट शामिल है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक तिमाही सभी केन्द्र शासित प्रदेश /राज्यों में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा राज्य स्तरीय समन्वय समिति (एसएलसीसी) आयोजित की जाती है। एसएलसीसी की अध्यक्षता अब संबंधित राज्य के मुख्य सचिव/ केन्द्र साशित प्रदेश के प्रशासक द्वारा की जाती है तथा सदस्यों के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक के अलावा, एमसीए/ आरओसी के क्षेत्रीय निदेशक, सेबी का स्थानीय युनिट, चिट रजिस्ट्रार, आइसीएआइ, राज्य पुलिस का आर्थिक अपराध ईकाइ तथा राज्य सरकार के गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय के अधिकारी होते है। जैसा कि वित्तीय क्षेत्र के सभी संबंधित विनियामक तथा प्रवर्तक ऐजेंसिया एसएलसीसी में भाग लेते है, अत: इससे सूचना का आदान प्रदान शीघ्रता से होगा तथा अप्राधिकृत और संदेहजनक कारोबार के माध्यम से सार्वजनिक जमाराशियों को जुटाने में संलिप्त संस्थाओं के विरूद्ध नियत समय में प्रभावी कार्रवाई की जा सकेगी।

45. क्या पंजीकृत एनबीएफसी से संबद्ध/असंबद्ध प्रोप्राइटरशिप/भागीदारी कंपनियाँ जनता से जमाराशियाँ स्वीकार कर सकती है?

नहीं। प्रोप्राइटरशिप/भागीदारी कंपनियाँ अनिगमित निकाय हैं। अतएव उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत जनता से जमाराशियां स्वीकार करने से प्रतिबंधित किया है।

46. ऐसी कई ज्वैलरी शॉप है जो जनता से किस्तों में पैसा लेती हैं। क्या इसे जमाराशियाँ स्वीकार करना माना जायेगा?

यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या पैसा भविष्य में आभूषणों की आपूर्ति के लिए बतौर अग्रिम लिया जा रहा है या पैसा ब्याज के साथ वापस करने के वादे के साथ लिया गया है। ज्वैलरी शॉप द्वारा करार की अवधि के अंत में आभूषणों की आपूर्ति के लिए किस्तों में पैसा लेना जमाराशि लेना नहीं है। उसे जमाराशियां तभी माना जायेगा यदि ज्वैलरी शॉप द्वारा प्राप्त पैसे की वापसी के समय मूलधन के साथ-साथ ब्याज देने का वादा भी किया गया हो।

47. यदि ऐसे अनिगमित निकाय जनता से जमाराशियाँ स्वीकार करते हैं तो उनके खिलाफ क्या कार्रवाई हो सकती है? यदि कोई एनबीएफसी जनता से जमाराशियां स्वीकार करने के लिए प्राधिकृत नहीं है और वह अपने प्रवर्तकों द्वारा बनाई गई किसी प्रोप्राइटरशिप/भागीदारी फर्म का जमाराशियां संग्रह हेतु उपयोग करती है तो क्या कार्रवाई की जा सकती है?

ऐसे अनिगमित निकाय, यदि जनता से जमाराशियां लेते हुए पाए जाते है तो उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है। इसके अलावा एनबीएफसी के किसी भी अनिगमित निकाय से संबद्ध होने को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। यदि एनबीएफसी भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम का उल्लंघन करते हुए जमाराशियां स्वीकार करने वाली किसी प्रोप्राइटरशिप/भागीदारी फर्म से जुड़ाव रखती है, तो उसके खिलाफ आपराधिक कानून या जमाकर्ता हित संरक्षण (वित्तीय संस्थाओं में) अधिनियम, यदि राज्य सरकार द्वारा पारित हो, के तहत अभियोग चलाया जा सकता है।

48. चिट फंड द्वारा धन स्वीकार करने और जमाराशियाँ स्वीकार करने में क्या अंतर है?

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 के तहत जमाराशियों को परिभाषित किया गया है बशर्ते यह शेयर कैपिटल के रूप में जुटाया गया धन, बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं से प्राप्त राशि, प्रतिभूति जमा के रूप में प्राप्त राशि, बयाना राशि, वस्तु तथा सेवाओं के सापेक्ष अग्रिम और चिट्स का अभिदान नहीं हैं। अन्य सभी राशियां जो चाहे ऋण के रूप में अथवा किसी अन्य रूप में प्राप्त की गई हों, उन्हें जमाराशि माना जाएगा। चिट फंड गतिविधि में सदस्यों द्वारा किस्तों में चिट में अंशदान किया जाता है और बारी-बारी से चिट के प्रत्येक सदस्य को चिट की राशि प्राप्त होती है। चिट्स में किए गए अंशदान को विशिष्ट रूप से जमा राशि की परिभाषा से बाहर रखा गया है और इसे जमाराशि नहीं माना जा सकता। हालांकि चिट फंड्स उपर्युक्त अभिदान संग्रहीत कर सकते हैं किंतु अगस्त 2009 से भारतीय रिज़र्व बैंक ने जमाराशियाँ स्वीकार करने से प्रतिबंधित कर दिया है।

E. जमाकर्ता संरक्षण संबंधी मामले

49. गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी में निवेश करते समय जमाकर्ता को गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी के विनियमन के संबंध में क्या-क्या विशेषताएं नोट कर लेनी चाहिए?

एनबीएफसी द्वारा जमाराशियों को स्वीकार करने संबंधी कुछ महत्वपूर्ण विनियम निम्नानुसार हैं:

  1. एनबीएफसीज को 12 महीने की न्यूनतम अवधि तथा 60 महीने की अधिकतम अवधि के लिए जनता से जमाराशियां स्वीकार करने/उनका नविकरण करने की अनुमति है। वे मांग पर प्रतिदेय जमाराशियां स्वीकार नहीं कर सकते।

  2. एनबीएफसीज भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्धारित किए गए उच्चतम दर से अधिक ब्याज दर प्रस्तावित नहीं कर सकते। मौजूदा उच्चतम दर 12.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष है। ब्याज का भुगतान/संयोजन ऐसी अंतरालों पर किया जाए जो कि मासिक अंतरालों से कम नहीं हैं।

  3. एनबीएफसीज जमाकर्ताओं को उपहार/प्रोत्साहन अथवा कोई अतिरिक्त लाभ नहीं दे सकते।

  4. एनबीएफसीज के पास कम-से-कम निवेश ग्रेड क्रेडिट रेटिंग होना चाहिए।

  5. एनबीएफसीज के पास रखी गई जमाराशियों का बीमा नहीं होता है।

  6. भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा एनबीएफसीज द्वारा उनके पास रखी गई जमाराशियों की वापसी की गारंटी नहीं दी जाती है।

  7. जमाराशियों की मांग करनेवाली कंपनी द्वारा जारी किए गए आवेदन फॉर्म में कंपनी संबंधी कतिपय अनिवार्य प्रकटीकरण किए जाने हैं।

50. एनबीएफसी में धन जमा करने से पूर्व जमाकर्ता द्वारा क्या सावधानियाँ बरती जानी चाहिए?

जो जमाकर्ता एनबीएफसी में पैसा जमा करना चाहते हैं उन्हें पैसा जमा करने के पहले निम्नलिखित की जाँच कर लेनी चाहिए:

  1. यह कि एनबीएफसी भारतीय रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत हो तथा जमाराशि स्वीकार करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विशेषरूप से प्राधिकृत हो। जमाराशि स्वीकार करने के लिए प्राधिकृत एनबीएफसीज की सूची www.rbi.org.in →साइट मैप → एनबीएफसीज सूची, पर उपलब्ध है। जमाकर्ताओं को जनता की जमाराशि स्वीकार करने वाली एनबीएफसीज की सूची जाँच लेनी चाहिए और यह भी देख लेना चाहिए कि कहीं इसका नाम उन कंपनियों की सूची में तो शामिल नहीं है जिन्हें जमाराशियाँ स्वीकार करने से प्रतिबन्धित किया गया है। जमाराशियाँ स्वीकार करने से प्रतिबन्धित की गई एनबीएफसीज की सूची रिज़र्व बैंक की वेबसाइट www.rbi.org.in → साइट मैप → एनबीएफसीज सूची → एनबीएफसीज जिन्हें निषेधात्मक आदेश जारी किए गए हैं, समापन की याचिका दायर है और चैप्टर IIIबी, IIIसी और अन्य के तहत जिनके विरुद्ध कानूनी मामले हैं, पर उपलब्ध है।

  2. एनबीएफसीज को अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राथमिकता से प्रदर्शित करना है। यह प्रमाण पत्र यह भी दर्शाता है कि एनबीएफसीज जमाराशि स्वीकार करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक से विशेष रूप से प्राधिकृत है। जमाकर्ताओं को आवश्यक रूप से प्रमाण पत्र की संवीक्षा कर यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि एनबीएफसीज जमाराशि स्वीकार करने के लिए प्राधिकृत है।

  3. एनबीएफसीज जमाकर्ताओं को 12.5% वार्षिक से अधिक ब्याजदर अदा नहीं कर सकती। भारतीय रिज़र्व बैंक समष्टि आर्थिक परिदृश्य के मद्देनज़र ब्याज दरों में परिवर्तन करता रहता है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में परिवर्तन की सूचना www.rbi.org.in → साइट मैप → एनबीएफसी सूची → अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों के अंतर्गत प्रकाशित की जाती है।

  4. जमाकर्ता द्वारा कंपनी में प्रत्येक जमा राशि के लिए उचित रसीद की मांग अवश्य करनी चाहिए। जमा रसीद कंपनी के प्राधिकृत अधिकारी से विधिवत हस्ताक्षरित होनी चाहिए तथा उसमें जमा की तारीख, जमाकर्ता का नाम, राशि अंकों व शब्दों में, देय ब्याज दर, परिपक्वता की तारीख तथा परिपक्वता राशि का उल्लेख होना चाहिए।

  5. यदि एनबीएफसीज की ओर से ब्रोकर/ऐजेंट सार्वजनिक जमाराशि स्वीकर करते है तो जमाकर्ताओं को स्वयं इसकी संतुष्टि करनी होगी कि ब्रोकर/ऐजेंट एनबीएफसी द्वारा विधिवत प्राधिकृत हो।

  6. जमाकर्ताओं को यह ध्यान में रखना होगा कि एनबीएफसीज की जमाराशिया अरक्षित है तथा एनबीएफसी के जमाकर्ताओं के पास जमाराशि बीमा सुविधा नहीं है।

  7. भारतीय रिज़र्व बैंक कंपनी की वर्तमान वित्तीय सुदृढता अथवा किसी ब्योरा का अथवा किए गए अभ्यावेदन अथवा कंपनी द्वारा व्यक्त किसी मत और कंपनी की देनदारी को चुकाना/ जमाराशि के भुगतान के संबंध में कोई गारंटी अथवा दायित्व नहीं लेता।

51. क्या रिज़र्व बैंक एनबीएफसीज द्वारा ग्रहण की गई जमाराशियों की अदायगी की गारंटी देता है?

नहीं। रिज़र्व बैंक एनबीएफसीज द्वारा स्वीकार की गई जमाराशियों की अदायगी की गारंटी नहीं देता, भले ही एनबीएफसीज को जमाराशियाँ ग्रहण करने की अनुमति दी गई हो। अतएव, एनबीएफसी में पैसा जमा करते वक्त निवेशक और जमाकर्ता खूब सोच समझकर निर्णय लें।

52. यदि कोई एनबीएफसी जमाराशियों की चुकौती करने में चूक करती है तो जमाकर्ता क्या कार्रवाई कर सकते है।

यदि कोई एनबीएफसी जमाराशियों की चुकौती में चूक करती है तो जमाकर्ता, कंपनी ला बोर्ड या उपभोक्ता मंच में जा सकता है अथवा जमाराशि की वसूली के लिए न्यायालय में सिविल वाद दायर कर सकता है। एनबीएफसी को यह भी सूचित किया जाता है कि नीचे दिए गए प्रश्न सं: 57 के उत्तर में विनिर्दिष्ट शिकायत निवारण पद्धति का अनुवर्तन करें। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकार स्तर पर जमाकर्ता हित संरक्षण (वित्तीय स्थापना के संबंध में) के प्रति राज्य कानून, राज्य सरकारों को कार्रवाई करने के लिए सशक्त करता है तथा जमाकर्ता से शिकायत प्राप्त होने पर करने के पूर्व भी यह कार्रवाई की जा सकती है। यदि कोई आपराधिक कर्म किया गया है तथा यह कृत इरादन चूककर्ता के रूप में है तो ऐसी स्थिति में राज्य सरकार संपत्ति जब्त कर सकती है।

53. जमाकर्ताओं के हितों के संरक्षण हेतु कंपनी लॉ बोर्ड की भूमिका क्या है? वहां कैसे संपर्क किया जा सकता है?

जब कोई गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी किसी जमाराशि की या उसके किसी अंश की चुकौती ऐसी जमा राशि की निबंधैत शर्तों के अनुरूप करने में असफल रहती है तो कंपनी लॉ बोर्ड स्वयं अथवा जमाकर्ता के आवेदन करने पर, आदेश जारी कर, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी को ऐसी जमाराशि अथवा उसके अंश की तत्काल अथवा ऐसे किसी समय के भीतर और आदेश में वर्णित शर्तों के अधीन चुकौती करने का आदेश दे सकता है। चुकौती के पश्चात कंपनी को भारतीय रिज़र्व बैंक के स्थानीय कार्यालय में अनुपालन दर्ज करना होता है।

जैसा कि ऊपर कहा गया है, जमाकर्ता प्रादेशिक क्षेत्राधिकार के अनुसार कंपनी लॉ बोर्ड की उचित पीठ में निर्धारित फीस के साथ, नियत फार्म में आवेदन भरकर संपर्क कर सकता है।

54. क्या आप हमें कंपनी लॉ बोर्ड (सीएलबी) के विभिन्न पीठों के पते, उनके संबंधित क्षेत्राधिकार का उल्लेख करते हुए उपलब्ध करा सकते है?

कंपनी लॉ बोर्ड (सीएलबी) के पीठासीन अधिकारियों के पते और उक्त पीठासीन अधिकारियों के प्रादेशिक क्षेत्राधिकार का ब्योरा निम्नलिखित है:

क्रम पीठ क्षेत्राधिकार टेलिफोन नम्बर
1. कंपनी लॉ बोर्ड, प्रधान पीठ, पर्यावरण भवन, बी-ब्लॉक, 3रीं मंजिल, सी.जी.ओ कॉम्पलेक्स, लोधी रोड़, नई दिल्ली-110 003 सभी राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश 011 - 24366126
2. कंपनी लॉ बोर्ड, नई दिल्ली पीठ, पर्यावरण भवन, बी-ब्लॉक, 3रीं मंजिल, सी.जी.ओ कॉम्पलेक्स, लोधी रोड़, नई दिल्ली-110 003 दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड तथा केन्द्र साशित प्रदेश चंडिगढ 011 - 24363671,
011 - 24362324
3. कंपनी लॉ बोर्ड, कोलकाता पीठ, 5 एसप्लानेड रोड (पश्चिम) कोलकाता अरूणाचल प्रदेश, असम, बिहार, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, ओडिसा, सिक्कीम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, झारखंड तथा केन्द्र साशित प्रदेश अंडामन व निकोबार तथा मिजोरम 033 - 22486330
4. कंपनी लॉ बोर्ड, मुंबई पीठ, 15 नरोत्तम मोरारजी मार्ग, बलार्ड इस्टेट, मुंबई-400 फिच रेटिंग इंडिया प्राइवेट लिइटेड
गोवा, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ तथा केन्द्र साशित प्रदेश और दादरा नगर हवेली और दमन एंव दीव 022 - 22619636
5. कंपनी लॉ बोर्ड, चेन्नै पीठ, कार्पोरेट भवन (यूटीआई बिल्डिंग) 3रीं मंजिल, नं.29 राजाजी सालै, चेन्नै-600001 आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, केन्द्र शासित प्रदेश पुडुचेरी तथा लक्ष्वदीप आइलैंड 044 - 25262791

55. हमने सुना है कि अनेक मामलों में चूक करने वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के संबंध में शासकीय परिसमापक नियुक्त किए गए हैं। उनकी क्या भूमिका है और कोई व्यक्ति उनसे कैसे संपर्क कर सकता है?

परिसमापन याचिका में कंपनी को सुनवाई का पर्याप्त अवसर देने के पश्चात न्यायालय द्वारा शासकीय परिसमापक की नियुक्ति की जाती है। परिसमापक, परिसमापन की कार्यवाही करता है और इस संबंध में न्यायालय द्वारा सौंपी गयी जिम्मेदारियों का निर्वाहन करता है। जब न्यायालय द्वारा शासकीय परिसमापक अथवा अनंतिम परिसमापक की नियुक्ति की जाती है तो परिसमापक कंपनी की संपत्तियों का अभिरक्षक हो जाता है तथा वह कंपनी के दैनिक कारोबार का संचालन करता है। उसे निर्धारित फार्म में कंपनी की वस्तु-स्थिति विवरण तैयार करना होता है, जिसमें कंपनी की परिसंपत्तियों का विवरण, उसके ऋणों और देयताओं व उसके ऋण्दाताओं (लेनदारों) के नाम/निवास/व्यवसाय, कंपनी की लेनदारियां और इस प्रकार की अन्य सूचनाओं का, जो निर्धारित की जाएं, का वर्णन होता है। परिसमापक द्वारा योजना बनाई जाती है और इसे न्यायालय के अनुमोदन हेतु प्रस्तुत किया जाता है। परिसमापक कंपनी की परिसंपत्तियों की उगाही करता है और न्यायालय द्वारा अनुमोदित योजना के अनुसार लेनदारों को चुकौती की व्यवस्था करता है। परिसमापक सामान्यतया न्यायालय के आदेशों के अनुपालन में समाचार पत्रों में विज्ञापन जारी कर, जमाकर्ताओं/निवेशकों के दावे आमंत्रित करता है। अत: निवेशकों/जमाकर्ताओं को, परिसमापक की इस प्रकार की सूचनाओं के अनुसार नियत समय में अपने दावे प्रस्तुत करने चाहिए। भारतीय रिज़र्व बैंक जमाकर्ताओं को शासकीय समापक के पते उपलब्ध करने में सहायता प्रदान करता है।

56. जमाकर्ताओं की समस्याओं को सुलझाने में उपभोक्ता न्यायालय महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। क्या कोई उपभोक्ता मंच, सिविल न्यायालय, कंपनी ला बोर्ड में एक साथ जा सकता है/ मामला दर्ज कर सकता है?

हां, जमाकर्ता किसी एक अथवा सभी निवारण प्राधिकरणों यथा उपभोक्ता मंच न्यायालय अथवा कंपनी ला बोर्ड से संपर्क कर सकता है।

57. एनबीएफसीज के विरुद्ध शिकायतों की सुनवाई के लिए कोई लोकपाल है अथवा एनबीएफसीज के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के पास कोई शिकायत निवारण पद्धति है?

एनबीएफसीज के विरुद्ध शिकायतों की सुनवाई के लिए कोई लोकपाल नहीं है। तथापि किसी ऐसी एनबीएफसी, जो कि किसी बैंक की सहायक कंपनी है, के क्रेडिट कार्ड परिचालनों के संबंध में किसी शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत दर्ज करने की तारीख से तीस (30) दिन की अधिकतम् अवधि के भीतर यदि एनबीएफसी से कोई संतोषजनक उत्तर प्राप्त नहीं होता है तो ग्राहक के पास अपनी शिकायत/शिकायतों के निवारण के लिए संबंधित बैंकिंग लोकपाल के कार्यालय से संपर्क करने का विकल्प होगा।

यदि एनबीएफसीज के विरुद्ध शिकायतें भारतीय रिज़र्व बैंक के निकटतम कार्यालय को प्रस्तुत की जाती हैं तो शिकायतों के समाधान के लिए उन्हें संबंधित एनबीएफसीज के साथ लिया जाएगा। इसके अलावा सभी एनबीएफसीज में एक शिकायत निवारण अधिकारी तैनात होता है जिसके नाम तथा संपर्क संबंधी ब्यौंरों को एनबीएफसीज के परिसर में अनिवार्यत: प्रदर्शित किया जाना अपेक्षित है। शिकायत को शिकायत निवारण अधिकारी के समक्ष रखा जा सकता है। यदि शिकायतकर्ता एनबीएफसी के शिकायत निवारण अधिकारी द्वारा किए गए शिकायत के समाधान से संतुष्ट नहीं है तो वे शिकायत को लेकर भारतीय रिज़र्व बैंक के निकटतम कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं। रिज़र्व बैंक के कार्यालय संबंधी ब्यौरों को भी एनबीएफसी के परिसर में अनिवार्यत: दर्शाया जाना अपेक्षित है।

58. एमसीए के साथ रजिस्टर की गई लेकिन भारतीय रिज़र्व बैंक के पास एनबीएफसीज के रूप में रजिस्टर नहीं की गई कंपनियां भी उनके पास निवेश की गई जमाराशियों/ राशियों की वापसी/चूकौती में कभी-कभी चूक करते हैं? ऐसा होने पर निवेशकों के पास कौनसा उपाय उपलब्ध है? ऐसे मामलों में भारतीय रिज़र्व बैंक की कोई भूमिका है अथवा नहीं?

एमसीए के साथ रजिस्टर की गई लेकिन भारतीय रिज़र्व बैंक के पास एनबीएफसीज के रूप में रजिस्टर होने की आवश्यकता न होनेवाली कंपनियां भारतीय रिज़र्व बैंक के विनियामक क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आती हैं। जब कभी भारतीय रिज़र्व बैंक के पास एमसीए के साथ रजिस्टर की गई लेकिन भारतीय रिज़र्व बैंक के पास एनबीएफसीज के रूप में रजिस्टर न की गई कंपनियों के बारे में ऐसी शिकायतें प्राप्त होती हैं तो भारतीय रिज़र्व बैंक उन्हें किसी प्रकार की कार्रवाई के लिए संबंधित राज्य के रजिस्ट्रार ऑफ कंपनिज(आरओसी) को अग्रेषित करता है। शिकायतकर्ताओं को सूचित किया जाता है कि ऐसी कंपनियों की अनियमितताओं से संबंधित शिकायतों को त्वरित संबंधित आरओसी के पास दर्ज किया जाना चाहिए ताकि वे सुधारात्मक कार्रवाई प्रारंभ कर सकें। तथापि यदि भारतीय रिज़र्व बैंक के ध्यान में यह बात आती है कि उन कंपनियों का भारतीय रिज़र्व बैंक के पास रजिस्टर किया जाना आवश्यक था परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया है और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के अंतर्गत परिभाषित जमाराशियां भी स्वीकार की है तो भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत आवश्यक समझी गई कार्रवाई की जाएगी।

59. जमाकर्ता से दावा प्राप्त होने पर यदि कंपनी परिपक्व हुई जनता की जमाराशियों की चुकौती नहीं कर पाई है तो एनबीएफसीज को अतिदेय परिपक्व जमाराशियों पर अतिदेय ब्याज अदा करने का उत्तरदायी बनाया गया है। कृपया इस प्रावधान को विस्तार से स्पष्ट करें।

रिज़र्व बैंक के निर्देशों के अनुसार जमाकर्ताओं को अतिदेय ब्याज उस स्थिति में देय है जब कि कंपनी ने परिपक्व जमाराशियों की चुकोती में विलंब किया हो और ऐसा ब्याज, कंपनी द्वारा ऐसे दावा प्राप्त करने की तारीख अथवा जमाराशि की परिपक्वता की तारीख, इनमें से जो भी बाद मे हो, से वास्तविक भुगतान की तारीख तक देय होगा। यदि जमाकर्ता ने अपना दावा परिपक्वता की तारीख के बाद दर्ज किया है तो कंपनी को दावे की तारीख से चुकौती की तारीख तक की अवधि के लिए ब्याज का भुगतान करना होगा। परिपक्वता की अवधि तथा दावे की अवधि के बीच की अवधि के लिए ब्याज का भुगतान कंपनी के विवेकानुसार किया जाएगा। ऐसे मामलों में जहां एनबीएफसीज को प्रवर्तन प्राधिकारियों के आदेशों के आधार पर ग्राहकों की मीयादी जमाराशियों की निकासी पर रोक लगाना पड़ता है अथवा प्रवर्तन प्राधिकारियों द्वारा जमा रसीदों को जब्त किया जाता है तो वे नीचे दी गई क्रियाविधि का पालन करेगे:

  1. परिपक्वता पर ग्राहक से एक अनुरोध पत्र प्राप्त करेंगे। जमाकर्ता से नवीकरण के लिए अनुरोध पत्र प्राप्त करते समय एनबीएफसीज उसे यह भी सूचित करें कि वे जमाराशि के नवीकरण की अवधि को भी दर्शाएं। यदि जमाकर्ता नवीकरण की अवधि निर्धारित करने का विकल्प निष्पादित नहीं करता है तो एनबीएफसीज उस जमाराशि की मूल अवधि से समतुल्य अवधि के लिए नवीकरण करें।

  2. कोई नई रसीद जारी करने की आवश्यकता नहीं है। तथापि जमाराशि के लेजर में नवीकरण से संबंधित उपयुक्त टिप्पणी की जाए।

  3. जमाराशि के नवीकरण की सूचना संबंधित सरकारी विभाग को रजिस्टर्ड पत्र/स्पीड पोस्ट/कुरियर सेवा द्वारा दी जाए तथा जमाकर्ता को भी सूचित किया जाए। जमाकर्ता को दी गई सूचना में जमाराशि के नवीकरण पर उसपर देय ब्याज दर का भी उल्लेख किया जाए।

  4. यदि अनुरोध पत्र की प्राप्ति की तारीख को अतिदेय अवधि 14 दिन से अधिक नहीं है तो नवीकरण, परिपक्वता की अवधि से किया जाए। यदि वह 14 दिन से अधिक है तो एनबीएफसीज उनके द्वारा अपनाई गई नीति के अनुसार अतिदेय अवधि के लिए ब्याज का भुगतान करें और उसे अलग ब्याज मुक्त उप-खाते में रखें और मूल मीयादी जमाराशि के विमोचन के साथ उसका विमोचन किया जाए।

तथापि मूलधन तथा इस प्रकार उपचित ब्याज का अंतिम भुगतान, एनबीएफसीज द्वारा संबंधित सरकारी एजेंसियों से उसके भुगतान संबंधी अनापत्ति प्राप्त करने के बाद ही किया जाए।

60. क्या कोई कंपनी अपनी सार्वजनिक जमाराशियों का समय-पूर्व भुगतान कर सकती है?

एक एनबीएफसी अपने जमाकर्ताओं के साथ आपसी संविदा के अंतर्गत जमाराशि स्वीकार करती है। यदि कोई जमाकर्ता परिपक्वता-पूर्व भुगतान के लिए अनुरोध करता है तो भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस प्रकार की संभावना के लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी एक्सेप्टन्स ऑफ पब्लिक डिपॉजिट्स (रिज़र्व बैंक) डायरेक्शन्स, 1998 में विनियम निर्धारित किए हैं; इन विनियमों में यह निर्दिष्ट किया गया है कि एनबीएफसीज जमाराशि को स्वीकार करने की तारीख से तीन महीने (लॉक-इन अवधि) की अवधि के भीतर जनता की जमाराशियों की जमानत पर कोई ऋण प्रदान नहीं कर सकती हैं और न ही जनता की जमाराशि का समय-पूर्व भुगतान कर सकती है। तथापि जमाकर्ता की मृत्यू हो जाने की स्थिति में कंपनी उसकी अपेक्षानुसार संबंधित साक्ष्य प्रस्तुत किए जाने के पश्चात ही उत्तरजीवीता की शर्त वाले संयुक्त धारकों/नामिनी/विधिक वारिस को लॉक-इन अवधि के दौरान भी जमाराशि का भुगतान कर सकती है।

कोई भी एनबीएफसी (जो कि समस्यामूलक कंपनी नहीं है) उपर्युक्त प्रावधानों के अधीन लॉक-इन अवधी के बाद अपने एकल विवेक के आधार पर बैंक द्वारा निर्धारित ब्याज दर पर जनता की जमाराशि का परिपक्वतापूर्व भुगतान कर सकती है।

कोई भी समस्यामूलक कंपनी को किसी भी जमारशि का परिपक्वतापूर्व भुगतान अथवा जनता की जमाराशि की जमानत पर कोई ऋण प्रदान करना, जैसी स्थिति हो, निषिद्ध है। तथापि यह निषिद्धता जमाकर्ता की मृत्यु होने पर अथवा छोटी जमाराशियों अर्थात् 10000/- रुपये तक की जमाराशियों के संबंध में लॉक-इन अवधि के अधीन की गई चुकौती के मामले में लागू नहीं होगी।

61. जमाराशि स्वीकार करनेवाली कंपनियों के लिए चल आस्तियों संबंधी अपेक्षाएं क्या हैं? ये आस्तियां कहां रखी जाती हैं? क्या जमाकर्ताओं उनपर कोई दावा कर सकते हैं?

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45-आईबी के अनुसार किसी एनबीएफसी द्वारा चल आस्तयों का जो न्यूनतम स्तर बनाए रखना है वह है दूसरी पूर्ववर्ती तिमाही के अंतिम कार्य दिन को जनता की बकाया जमाराशियों का 15 प्रतिशत। इस 15% में से एनबीएफसी को अनुमोदित प्रतिभूतियों में इतना प्रतिशत निवेश करना है जो कि 10% से कम नहीं है और शेष 5% किसी भी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक में भार-रहित मीयादी जमाराशियों में रखा जा सकता है। अत: चल आस्तियों में सरकारी प्रतिभूतियां, सरकार द्वारा गारंटीकृत बॉण्ड्स तथा किसी भी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक में मीयादी जमाराशियां शामिल हो सकती हैं।

सरकारी प्रतिभूतियों में किया गया निवेश अमूर्त रूप में होना चाहिए जिसे किसी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक(एससीबी)/ स्टॉक होल्डिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लि. में ग्राहकों की सहायक सामान्य खाता बही (सीएसजीएल) खाते में रखा जा सकता हे। सरकार द्वारा गारंटीकृत बॉण्ड्स के मामले उन्हें अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक(एससीबी)/ स्टॉक होल्डिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लि. में अमूर्त रूप में रखा जा सकता हे अथवा भारतीय प्रतिभूति तथा विनिमय बोर्ड में रजिस्टर किए गए डिपॉजिटरी सहभागी के माध्यम से निक्षेपागारों में {नैशनल सेक्युरिटीज डिपॉजिटरी लि.(एनएसडीएल)/ सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज (इंडिया) लिमिटेड (सीएसडीएल)} अमूर्त खाते में। तथापि मूर्त रूप में सरकारी बॉण्ड होने की स्थिति में उन्हें एससीबी/ एसएचसीआईएल की सुरक्षित अभिरक्षा में रखा जाए।

एनबीएफसीज को निर्देश दिए गए हैं कि वे अपनी कंपनी के रजिस्टर्ड कार्यालय के स्थान पर उपर्युक्त उल्लिखित कंपनियों में इन अनिवार्य चल आस्ति प्रतिभूतियों को अमूर्त फॉर्म में रखें। तथापि यदि कोई एनबीएफसी को इन प्रतिभूतियों को अपनी कंपनी के रजिस्टर्ड कार्यालय के स्थान से अन्य स्थान पर सौंपना है तो वे भारतीय रिज़र्व बैंक से लिखित अनुमति प्राप्त करने के पश्चात ऐसा कर सकती है। यह नोट किया जाए कि अनुमोदित प्रतिभूतियो में चल आस्तियों को अमूर्त रूप में ही रखा जाना है। उपर्युक्त के अनुसार बनाए रखी गई चल आस्तियों को जमाकर्ताओं के दावों का भुगतान करने के लिए उपयोग में लाना है। तथापि चूंकि जमाराशियां असुरक्षित स्वरूप की होने के कारण जमाकर्ताओं का चल आस्तियों पर कोई प्रत्यक्ष दावा नहीं है।

62. एनबीएफसीज के जमाकर्ताओं के हितों के संरक्षण हेतु रिज़र्व बैंक क्या करता है?

एनबीएफसीज ठोस मानकों पर काम करें, इसके लिए रिज़र्व बैंक ने जमा ग्रहण करने के संबंध में विस्तृत विनियम जारी किए हैं जिसमें ग्रहण की जाने वाली जमाराशि का परिमाण, अनिवार्य क्रेडिट रेटिंग, जमाकर्ताओं के धन की अदायगी हेतु पर्याप्त तरलता की व्यवस्था, जमा-बहियों के रखरखाव का तरीका, पर्याप्त पूँजी की व्यवस्था सहित अन्य विवेकपूर्ण मानदण्ड, निवेश की सीमाएं और एनबीएफसी का निरीक्षण आदि शामिल है। यदि बैंक को अपने निरीक्षणों या लेखा परीक्षा अथवा शिकायत या मार्केट इंटेलीजेंस के जरिए यह पता चलता है कि कोई एनबीएफसी रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों का अनुपालन नहीं कर रही है तो वह एनबीएफसी को आगे जमाराशियाँ ग्रहण करने से रोक कर सकता है और उसे परिसंपतियाँ बेचने से निषिद्ध कर सकता है। इसके अतिरिक्त, यदि जमाकर्ता ने कंपनी लॉ बोर्ड के समक्ष शिकायत की है और कंपनी लॉ बोर्ड ने संबंधित एनबीएफसी को धन चुकाने का आदेश दिया है, ऐसे में एनबीएफसी द्वारा धन चुकाने संबंधी कंपनी लॉ बोर्ड के आदेश का अनुपालन न करने पर रिज़र्व बैंक एनबीएफसी पर अभियोग चला सकता है और दण्डात्मक कार्रवाही सहित कंपनी का समापन भी कर सकता है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि रिज़र्व बैंक को मार्केट इंटेलीजेंस रिपोर्ट्स, शिकायतों, कंपनी के सांविधिक लेखापरीक्षकों की अपवादात्मक रिपोर्टों, एसएलसीसी की बैठकों आदि के जरिए जैसे ही यह खबर लगती है कि कंपनी रिज़र्व बैंक के अनुदेशों/मानकों का उल्लंघन कर रही है, तो वह जुर्माना लगाने और कानूनी कार्रवाई जैसे कई त्वरित कदम उठाता है। इसके अतिरिक्त रिज़र्व बैंक राज्य स्तरीय समन्वय समिति की बैठकों में ऐसी जानकारी को वित्तीय क्षेत्र के सभी नियामकों एवं प्रवर्तन एजेंसियों के मध्य बांटता है।

एक प्रमुख नीति-निर्माता संस्थान के तौर पर एवं अपने जनोपयोगी नीतिगत उपायों के अंग के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक समय-समय पर ऐसे कई उपाय करने में आगे रहा है जिससे कि आम जनता को अपनी गाढ़ी कमाई निवेश करते समय सतर्कता बरतने की आवश्यकता के बारे में जागरूक किया जा सके। इन उपायों में प्रिंट मीडिया में चेतावनी सूचना जारी करना और सूचनापरक एवं शिक्षाप्रद ब्रोशर्स/पैम्पलेट्स का वितरण, जागरूकता/आउटरीच एवं टाउन हाल कार्यक्रमों में जनता से सीधे संपर्क, राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित व्यापार मेलों में सहभागिता एवं प्रदर्शनियाँ शामिल हैं। कई बार वह व्यापक सर्कूलेशन वाले समाचार पत्रों (अंग्रेजी और स्थानीय भाषा) से यह अनुरोध भी करता है कि वे जमा ग्रहण करने वाले अनिगमित निकायों से विज्ञापन लेने में परहेज करें।

63. जमाराशि स्वीकार करने वाली एनबीएफसीज के जमाराशि स्वीकृति हेतु कौन रेटिंग करता है?

एनबीएफसी छ: रेटिंग एजेंसी यथा क्रिसिल, इकरा, केअर, फिच रेटिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, स्मीरा और ब्रिकवर्क रेटिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड से स्वयं की रेटिंग करा सकती है।

64. विभिन्न कंपनियों के लिए न्यूनतम निवेश श्रेणी/निर्धारण के प्रतीक क्या है? जब किसी कंपनी की रेटिंग नीचे की जाती है तो क्या उस कंपनी को अपने सार्वजनिक जमाराशि स्तर को तत्काल नीचे लाना होता है अथवा कुछ समय के बाद?

रेटिंग एजेंसियों की न्यूनतम निवेश श्रेणी स्तर इस प्रकार है:

रेटिंग एजेंसियों के नाम न्यूनतम निवेश ग्रेड साख रेटिंग का नामकरण
क्रिसील   एफए- (एफए- माइनस)
इकरा एमए- (एमए माइनस)
केअर केअर बीबीबी (एफडी)
फिच रेटिंग इंडिया प्राइवेट लिइटेड
स्मीरा
टीए- (इंड)(एफडी)
एसएमईआरए ए
ब्रिकवर्क रेटिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बीडब्ल्यूआर बीबीबी

यहां यह उल्लेख किया जाता है कि ए-; ए के समकक्ष नहीं है, एए-; एए के समकक्ष नहीं है और एएए-; एएए के समकक्ष नहीं है।

तथापि, यदि किसी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी के साख निर्धारण का स्तर न्यूनतम निवेश स्तर से घटाया जाता है तो उसे जनता से जमाराशियां स्वीकार करना रोकना होगा और पंद्रह कार्य दिवस में भारतीय रिजर्व बैंक को स्थिति की सूचना देनी होगी और जनता की जमराशियों की उक्त अधिक हुई राशि को उक्त साख निर्धारण का स्तर कम किए जाने से तीन वर्षों के भीतर शून्य स्तर पर लाना होगा। नवम्बर 2014 में संशोधित विनियामक संरचना का परिचालन में आने परम जमाराशि स्वीकार करने वाले एनबीएफसी को सार्वजनिक जमाराशि स्वीकार अरने वाली कंपनी बने रहने के लिए रेटिंग एजेंसियों से निवेश ग्रेड क्रेडिट रेटिंग प्राप्त करना अनिवार्य है।

65. राज्य सरकारों का ‘वित्तीय संस्थानों में जमाकर्ताओं के हित का संरक्षण संबंधी कानून’ लागू करने का उद्देश्य क्या है?

यह कानून लागू करने का उद्देश्य जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करना है। रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों का मकसद रिज़र्व बैंक को विवेकपूर्ण विनियमन जारी करने हेतु सक्षम बनाना है ताकि वित्तीय संस्थान ठोस मानकों पर काम करें। रिज़र्व बैंक एक नागरिक निकाय (Civil Body) है और रिज़र्व बैंक अधिनियम एक नागरिक अधिनियम(Civil Act) है। दोनों में ऐसा विशेष प्रावधान नहीं है जिससे कि चूककर्ता कंपनियों, निकायों अथवा उनके अधिकारियों की परिसंपत्ति की कुर्की अथवा बिक्री के जरिए वसूली की जा सके। इसे राज्य सरकार प्रभावी रूप से कर सकती है। वित्तीय संस्थानों में जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण अधिनियम राज्य सरकार को पर्याप्त शक्तियाँ देता है जिससे कि वे चूककर्ता कंपनियों, निकायों अथवा उनके अधिकारियों की परिसंपत्ति की कुर्की अथवा बिक्री कर सकें।

66. क्या राज्य सरकारों द्वारा ‘वित्तीय संस्थानों में जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण अधिनियम’ लागू किए जाने से अनिगमित निकायों एवं कंपनियों को अनधिकृत रूप से जमाराशियाँ स्वीकार करने से रोकने में मदद मिलेगी?

हाँ, काफी हद तक। अधिनियम के तहत किसी संस्था, फर्म या कंपनी द्वारा अनधिकृत रूप से जमाराशियाँ स्वीकार करना एक संज्ञेय अपराध माना गया है और जो संस्थाएं अनधिकृत रूप से जमाराशियाँ स्वीकार करती हैं अथवा गैर-कानूनी वित्तीय गतिविधियों में शामिल हैं, को तत्काल गिरफ्तार किया जा सकता है और उन पर अभियोग चलाया जा सकता है। इस अधिनियम के अधीन विशेष न्यायालय के आदेश पर राज्य सरकार को इन संस्थाओं की परिसंपत्ति की कुर्की व बिक्री करने और उससे प्राप्त आय को जमाकर्ताओं के मध्य वितरित करने की व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हैं। राज्य सरकार/राज्य पुलिस का व्यापक तंत्र दोषियों के विरूद्ध त्वरित कार्रवाई करने में बखूबी सक्षम है। अतएव, रिज़र्व बैंक सभी राज्य सरकारों से यह अनुरोध करता रहा है कि वे अपने यहाँ ‘वित्तीय संस्थानों में जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण अधिनियम’ पारित कराएं।

67. बेईमान वित्तीय संस्थाओं द्वारा जनता के साथ धोखा करने के मामले अभी भी हो रहे हैं। कंपनियों द्वारा अनधिकृत रूप से जमाराशियां स्वीकार करने / अनधिकृत रूप से एनबीएफआई कारोबार करने के विषय में अपना निगरानी तंत्र चुस्त करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक क्या योजना बना रहा है?

रिज़र्व बैंक विभिन्न क्षेत्रीय कार्यालयों में अपने मार्केट इंटेलीजेंस व्यवस्था को मजबूत बना रहा है और उन कंपनियों की वित्तीय सूचनाओं की निरंतर जांच कर रहा है जिनके बारे में मार्केट इंटेलीजेंस या शिकायतों के जरिए जानकारी/संदर्भ प्राप्त हुए हैं। इस संदर्भ में, जनता सतर्क रहकर काफी योगदान दे सकती है, यदि उन्हें य़ह पता चलता है कि कोई वित्तीय संस्था भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम का उल्लंघन कर रही है तो वह तुरंत शिकायत दर्ज कराने से। उदाहरण के लिए, यदि वे अनधिकृत रूप से जमाराशि स्वीकार कर रहे हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक से अनुमति लिए बगैर एनबीएफसी गतिविधियां चला रहे हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि जनता बुद्धिमानी से निवेश करे तो ये संस्थाएं चल ही नहीं पाएंगी। जनता को यह भी जानना चाहिए कि निवेश पर ऊँचे रिटर्न में जोखिम भी काफी अधिक रहती है। और अटकल आधारित गतिविधियों में कोई निश्चित रिटर्न नहीं होता। निवेश करने से पहले आम आदमी यह सुनिश्चित करे कि जिस संस्था में वह निवेश कर रहा है वह वित्तीय क्षेत्र के नियामकों में से किसी भी नियामक द्वारा विनियमित संस्था हो।

F. सामूहिक निवेश योजनाएं (सीआईएस) और चिट फंड

68. क्या सामूहिक निवेश योजनाएं (सीआईएस) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित हैं?

नहीं। सीआईएस ऐसी योजनाएं है जिसमें धन को इकाइयों में बदला जाता है, भले ही वह रिसोर्ट में भागीदारी हो, लकड़ी की बिक्री से प्राप्त लाभ अथवा किसी विकसित वाणिज्यिक भूखंड या भवन से प्राप्त लाभ के रूप में हो। सामूहिक निवेश योजनाएं (सीआईएस) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित नहीं होतीं।

69. सामूहिक निवेश योजनाओं (सीआईएस) को कौन सा प्राधिकारी विनियमित करता है?

सामूहिक निवेश योजनाओं (सीआईएस) का विनियामक सेबी है। ऐसी योजनाओं के बारे में जानकारी तथा प्रवर्तकों के विरूद्ध शिकायत सेबी और राज्य सरकार के पुलिस विभाग/ आर्थिक अपराध शाखा को तत्काल भेजनी चाहिए।

70. क्या कानून के तहत चिट फंड कारोबार करने की अनुमति है?

चिट फंड कारोबार, चिट फंड अधिनियम 1982 के तहत शासित है जो एक केंद्रीय अधिनियम है और जिसका क्रियान्वयन राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। ऐसे चिट फंड जो इस अधिनियम के तहत पंजीकृत है, विधिक रूप से चिट फंड कारोबार कर सकते हैं।

71. यदि चिट फंड कंपनियाँ वित्तीय कंपनियाँ है तो भारतीय रिज़र्व बैंक इनका विनियमन क्यों नहीं करता?

चिट फंड कंपनियों को चिट फंड अधिनियम 1982 के तहत विनियमित किया जाता है जो एक केंद्रीय अधिनियम है तथा इसका क्रियान्वयन राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2009 में चिट फंड कंपनियों को जनता से जमाराशियाँ ग्रहण करने पर पाबंदी लगा दी है। यदि कोई चिट फंड जनता से जमाराशियाँ ग्रहण करता है तो भारतीय रिज़र्व बैंक ऐसे चिट फंडों पर अभियोग चला सकता है।

G. मनी सर्कुलेशन/ बहुस्तरीय विपणन (एमएलएम)/पोन्जी स्कीम/अनिगमित निकाय (यूआईबी)

72. मल्टी-लेवल मार्केटिंग कंपनियाँ, डायरेक्ट सेलिंग कंपनियाँ, ऑनलाइन सेलिंग कंपनियाँ जैसी कुछ कंपनियाँ भी हैं। क्या वे आरबीआई के दायरे में आती हैं?

नहीं, मल्टी-लेवल मार्केटिंग कंपनियाँ, डायरेक्ट सेलिंग कंपनियाँ, ऑनलाइन सेलिंग कंपनियाँ आरबीआई के दायरे में नहीं आती हैं। इन कंपनियों की गतिविधियाँ संबंधित राज्य सरकारों के विनियामक/प्रशासनिक दायरे में आती हैं। विनियामकों एवं उनके द्वारा विनियामित इकाइयों की सूची अनुबंध-। में दी गई है।

73. मनी सर्कुलेशन/ बहुस्तरीय विपणन (एमएलएम)/पोन्जी स्कीम/अनिगमित निकाय (यूआईबी) क्या हैं?

मनी सर्कुलेशन, बहुस्तरीय विपणन(एमएलएम)/श्रृंखलाबद्ध विपणन या पोन्जी स्कीम ऐसी योजनाएं हैं जो सदस्यों को नामांकित होने पर आसान या त्वरित धन का वादा करती हैं। बहुस्तरीय विपणन या पिरामिड आकार की योजनाओं में उत्पादों की बिक्री से उतनी आमदनी नहीं होती जितनी कि नामांकित सदस्यों से भारी सदस्यता शुल्क लेने से। सभी सदस्यों पर अधिक से अधिक सदस्य नामांकित करने का दायित्व होता है क्योंकि संग्रहीत सदस्यता राशि को पिरामिड के उच्चक्रम से सदस्यों के मध्य वितरित किया जा सके। इस श्रृंखला के टूटने से पिरामिड टूट जाता है और इससे पिरामिड से जुड़ा सबसे निचला सदस्य अधिकतम प्रभावित होता है। पोन्जी योजनाएं वे योजनाएं हैं जो जनता से अत्यधिक लाभ का वादा कर धन एकत्रित करती हैं। इनमे आस्तियों का निर्माण न होने के कारण जमाकर्ताओं से संग्रहीत राशि को अन्य जमाकर्ताओं को प्रतिलाभ के रूप में बांट दिया जाता है। चूकि इन योजनाओं में कोई ऐसी अन्य गतिविधि नहीं होती जिससे कि रिटर्न आ सके, अतएव योजना अव्यवहार्य हो जाती है और योजनाओं के प्रवर्तकों के लिए वादा किया गया रिटर्न एवं एकत्रित की गई मूलराशि को लौटा पाना असंभव हो जाता है। ऐसी योजनाएं अनिवार्य रूप से विफल हो जाती है तथा अपराधकर्ता धन लेकर भाग जाते हैं।

74. क्या मनी सर्कुलेशन/बहु स्तरीय विपणन/पिरामिड आकार की योजनाओं के तहत धन स्वीकार करने की अनुमति है?

नहीं। मनी सर्कुलेशन/बहु स्तरीय विपणन/पिरामिड आकार की योजनाओं के तहत धन स्वीकार करने की अनुमति नहीं है। इन योजनाओं के तहत धन स्वीकार किया जाना प्राइज चिट और मनी सर्कुलेशन(प्रतिबंधित) अधिनियम 1978 के तहत संज्ञेय अपराध है, इसलिए प्रबंधित है। इस अधिनियम के तहत नियम बनाने के लिए केन्द्र सरकार को परामर्श देना तथा सहयोग प्रदान करने के अलावा इस अधिनियम के कार्यान्यवन में भारतीय रिज़र्व बैंक की कोई भूमिका नहीं है।

75. ऐसी योजनाओं को चलाने वाली कंपनियों को कौन विनियमित करता है?

मनी सर्कुलेशन/बहुस्तरीय विपणन/पिरामिड आकार की योजनाएं, प्राइज चिट और मनी सर्कुलेशन (प्रतिबंधित) अधिनियम 1978 के तहत अपराध हैं। यह अधिनियम किसी व्यक्ति या निकाय को किसी प्राइज़ चिट या मनी सर्कुलेशन स्कीम को प्रवर्तित करने अथवा इन योजनाओं में किसी को सदस्य के रूप में नामित करने या ऐसी चिट या योजना के अनुसरण में धन प्राप्ति/प्रेषण के द्वारा किसी को सहभागी बनाने से रोकता है। इस अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन पर निगरानी और आवश्यक कार्रवाई राज्य सरकारों द्वारा की जाती है।

76. यदि कोई ऐसी योजनाएं चलाता है तो क्या करना चाहिए?

ऐसी योजनाओं के बारे में कोई जानकारी/शिकायत संबद्ध राज्य सरकार की पुलिस/आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्लू) अथवा कार्पोरेट कार्य मंत्रालय के पास भेजी जानी चाहिए। यदि रिज़र्व बैंक के संज्ञान में ऐसी जानकारी आती है तो वह राज्य सरकार के संबंधित प्राधिकारियों को उसकी सूचना देगा।

77. अनिगमित निकाय (UIBs) क्या हैं? क्या UIBs द्वारा जमा लेने की अवैध गतिविधियों को रोकने में आरबीआई कोई भूमिका निभाता है? जमा स्वीकार करने वाली UIBs के विरूद्ध कार्रवाई करने का अधिकार किनके पास है?

अनिगमित निकायों (UIBs) में व्यक्ति, फर्म या व्यक्तियों के अनिगमित एसोशिएशन शामिल होते हैं। आरबीआई अधिनियम की धारा 45एस के प्रावधान के अनुसार, इन इकाइयों को जमाराशि लेने से निषिद्ध किया गया है। अधिनियम ऐसे UIBs द्वारा जमा लेने को कारावास या जुर्माना अथवा दोनों के साथ दंडनीय बनाता है। राज्य सरकार को जमाकर्ताओं/निवेशकों के हितों की रक्षा हेतु ऐसी इकाइयों की अवैध गतिविधियों को रोकने में सक्रिय भूमिका निभानी है।

UIBs आरबीआई के विनियामक दायरे में नहीं आती हैं। जब भी आरबीआई को UIBs के विरूद्ध शिकायत मिलती है, यह इसे तत्काल राज्य सरकार की पुलिस एजेंसी (आर्थिक अपराध विंग/(EOW)) को भेज देता है। शिकायतकर्ताओं को सूचित किया जाता है कि वे अपनी शिकायत राज्य सरकार की पुलिस एजेंसी (EOW) के पास सीधे दर्ज कराएं ताकि दोषियों के खिलाफ तुरंत समुचित कार्रवाई शुरू की जाए और प्रक्रिया में तेजी आए।

आरबीआई अधिनियम की धारा 45टी के अनुसार, आरबीआई एवं राज्य सरकार दोनों को समवर्ती अधिकार दिए गए हैं। तथापि दोषियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई हेतु संबंधित राज्य सरकार की पुलिस एजेंसी या आर्थिक अपराध विंग को तुरंत जानकारी दी जाए, जो तत्काल और समुचित कार्रवाई कर सकते हैं। चूंकि राज्य सरकार की मशीनरी बहुत विस्तृत है और आरबीआई अधिनियम, 1934 के अंतर्गत राज्य सरकार को भी अधिकार प्राप्त हैं, जमा लेने वाली ऐसी इकाइयों की सूचना तत्काल संबंधित राज्य सरकार की पुलिस विभाग/EOW को दी जाए।

कई राज्य सरकारों ने वित्तीय स्थापनाओं में जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा अधिनियम को लागू किया है, जो राज्य सरकार को समय पर और समुचित कार्रवाई करने की शक्ति प्रदान करता है।

आरबीआई ने UIBs की गतिविधियों को रोकने के लिए अपनी तरफ से कई कदम उठाए हैं, जिसमें अग्रणी समाचार पत्रों में विज्ञापन देकर जनता में जागरूकता पैलाना, देश के विभिन्न जिलों में निवेशक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना, कानून का पालन कराने वाली एजेंसियों (EOW) के साथ संपर्क में रहना है।

78. ऐसी भी कुछ इकाइयाँ (कंपनियाँ नहीं) हैं जो एनबीएफसी की तरह गतिविधियाँ चलाती हैं। क्या उन्हें जमाराशि लेने की अनुमति है। उनका विनियमन कौन करता है?

ऐसा कोई भी व्यक्ति जो व्यक्ति, फर्म या व्यक्तियों का अनिगमित एसोशिएशन है, जमाराशि स्वीकार नहीं कर सकता। वह सिर्फ सबंधियों से कर्ज के माध्यम से ऐसा कर सकता है, यदि उसके कारोबार में पूर्णत: या अंशत: कर्ज, निवेश, किराया-खरीद या लीजिंग गतिविधि शामिल है या उसका प्रमुख कारोबार किसी स्कीम या व्यवस्था या किसी भी प्रकार से जमा प्राप्त करना या किसी भी प्रकार से उधार देना है।

79. अधिक ऊंची ब्याज दरों का ऑफर करने वाली स्कीमों में अपना पैसा गँवाने की संभावना से खुद को बचाने के लिए लोगों को क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

अधिक ऊंची ब्याज दरों का ऑफर करने वाली स्कीमों में निवेश करने से पहले निवेशक यह अवश्य सुनिश्चित कर लें कि ऐसे ऊंचे ब्याज देने वाली इकाइयां किसी वित्तीय विनियामक द्वारा पंजीकृत हैं या नहीं और वे जमा या अन्य किसी भी तरह धन स्वीकार करने के लिए अधिकृत हैं या नहीं। निवेशकों को सामान्यत: यह एहतियातन देखना चाहिए कि निवेश पर क्या बहुत अधिक ब्याज दिया जा रहा है। धन स्वीकार करने वाली इकाई यदि जो वादा करती है, उससे अधिक कमाने में सक्षम नहीं है तो वह निवेशक को वादा किया हुआ प्रतिलाभ नहीं दे सकती है। अधिक ऊंचा प्रतिलाभ कमाने के लिए इकाई को किए जाने वाले निवेश में अधिक जोखिम उठाना होगा। जितना अधिक जोखिम होगा, इसके निवेश उतना ही अधिक अव्यवहार्य होंगे, जिन पर कोई सुनिश्चित प्रतिलाभ नहीं होगा। ऐसे में लोगों को सावधान रहना चाहिए कि अधिक ब्याज दरें देने का वादा करने वाली स्कीमों में पैसा गँवाने की संभावना भी उतनी ही अधिक रहती है।

80. शिकायत की स्थिति में जमाकर्ता/निवेशकर्ता किसके पास जाएं?

अनुलग्नक I एवं II के रूप में दिए गये दो चार्ट यह दर्शाते हैं कि कौन सा विनियामक कौन सी गतिविधि देख रहा है। तदनुसार शिकायत को संबद्ध विनियामक को संबोधित किया जाए। यदि गतिविधि वर्जित कार्य के अंतर्गत आती है तो भुक्तभोगी राज्य पुलिस/ राज्य पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा के पास समुचित शिकायत दर्ज करा सकता है।

81. कमर्शियल रियल स्टेट एक्सपोजर क्या होता है?

किसी एक्सपोजर को CRE के रूप में वर्गीकृत करने के लिए अनिवार्य लक्षण यह है कि फंडिंग के परिणाम स्वरूप रियल स्टेट (यथा, किराया हेतु कार्यालय भवन, खुदरा दुकान के लिए स्थान, मल्टीफैमिली रिहायशी बिल्डिंग, औद्योगिक या भंडारन स्थान और होटल) का सृजन होगा, जहाँ पुनर्भुगतान की संभावना प्राथमिक तौर पर अस्तियों से सृजित नकदी प्रवाह पर निर्भर करेगी। साथ ही, चूक की स्थिति में वसूली की संभावना भी प्राथमिक तौर पर ऐसी निवेशित आस्तियों से सृजित नकदी प्रवाहों पर निर्भर करेगी जिन्हें जमानत के रूप में लिया गया है, जैसा कि समान्यत: ऐसा मामला होता है। पुनर्भुगतान के लिए नकदी प्रवाह का प्राथमिक स्रोत (अर्थात नकदी प्रवाह 50% से अधिक) सामान्य तौर पर पट्टा अथवा किराया भुगतान अथवा चूक की स्थिति में जमानत के तौर पर रखी गई आस्तियों के वसूली के लिए आस्तियों की बिक्री भी की जाती है।

ये दिशानिर्देश उन मामलों पर भी लागू होंगे जहाँ एक्सपोजर CRE के सृजन या अधिग्रहण से सीधे नहीं भी जुड़ा हो लेकिन पुनर्भुगतान CRE द्वारा सृजित नकदी प्रवाह से आएगा। उदाहरण के लिए, मौजूदा कमर्शियल रियल स्टेट पर लिए गए एक्सपोजर को भी CRE के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा, जहाँ पुनर्भुगतान की संभावना प्राथिमक तौर पर रियल स्टेट के किराए/बिक्री से प्राप्त राशि पर निर्भर करेगा। ऐसे अन्य मामलों में ये भी शामिल हैं: कमर्शियल रियल स्टेट गतिविधियाँ करने वाली कंपनियों की तरफ से गारंटी का विस्तारण, रियल स्टेट कंपनियों के साथ किए गए डेरिवेटिव लेनदेनों के कारण उत्पन्न एक्सपोजर, रियल स्टेट कंपनियों को दिए गए कार्पोरेट ऋण और रियल स्टेट कंपनियों की कर्ज लिखतों एवं इक्विटी में किए गए निवेश।

82. 10 नवंबर 2014 को जारी संशोधित विनियामक फ्रेमवर्क से संबंधित परिपत्र संख्या 002 के पैरा 7.1 के अनुसार जमा स्वीकार करने वाली एनबीएफसी सहित, यदि कोई हो तो, समूह में शामिल एनबीएफसी की कुल आस्तियों को निर्धारित करते समय जोड़ा जाएगा यदि ऐसे जोड़ दो श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं – अर्थात एनबीएफसी-एनडी (500 करोड़ से कम की आस्तियों वाली) और एनबीएफसी-एनडी-एसआई (500 करोड़ अथवा अधिक की आस्तियों वाली)। इन दो श्रेणियों पर लागू विनियम समूह की प्रत्येक एनबीएफसी-एनडी पर लागू होंगे। क्या आस्तियों का समाकलन समूह में सीआईसी की छूट प्राप्त श्रेणी पर लागू होगी?

नहीं, समूह को केवल उन एनबीएफसी की कुल आस्तियों को समाकलित करना है जिन्हें बैंक से पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी किया गया है। तथापि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सीआईसी की छूट प्राप्त श्रेणी की पूँजी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से किसी ऐसे कंपनी/समूह कंपनी से नहीं प्राप्त की गई है जिसने सार्वजनिक निधि का उपयोग किया है।

83. क्या 50% का एलटीवी म्युचुअल फंड की इकाईयों के लिए दिए जाने वाले ऋणों पर लागू होगा?

म्युचुअल फंड की इकाईयों (विशेषरूप से ऋण उन्मुख म्युचुअल फंड को छोड़कर) के लिए दिए जाने वाले ऋणों पर शेयर के बदले दिए गए ऋणों/अग्रिमों पर लागू एलटीवी नियमन लागू होंगे। इसके साथ ही विशेषरूप से ऋण उन्मुख म्युचुअल फंड के बदले ऋणों/अग्रिमों के लिए नियमन प्रत्येक एनबीएफसी द्वारा उनकी ऋण नीति के अनुसार तय किया जाना चाहिए।

84. क्या किसी एनबीएफसी ‘ए’ को किसी दूसरे एनबीएफसी/संस्था ‘बी’ के साथ विलय के लिए पूर्व लिखित अनुमोदन आवश्यक है?

इस स्थिति में ‘ए’ द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक से लिखित पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना होगा। ऐसी स्थिति में जहाँ ‘बी’ एक एनबीएफसी है, तो विलय के पश्चात यदि ‘बी’ के प्रदत्त इक्विटी पूंजी के शेयर धारिता पैटर्न में 26% से अधिक का बदलाव आने की स्थिति में भारतीय रिज़र्व बैंक से लिखित पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना होगा। यदि ‘बी’ एनबीएफसी नहीं है किंतु विलय के पश्चात पीबीसी प्राप्त करने वाली है तो भी उसे भारतीय रिज़र्व बैंक से लिखित पूर्व अनुमोदन प्राप्त करने और एनबीएफसी के रूप में पंजीकृत कराने की आवश्यकता है।

85. किसी संस्था (एनबीएफसी नहीं) को एनबीएफसी के साथ विलय के लिए क्या लिखित पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना होगा?

जब कोई गैर-एनबीएफसी किसी एनबीएफसी के साथ विलय करता है, तो भारतीय रिज़र्व बैंक से लिखित पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना होगा, यदि ऐसे विलय निम्नलिखित किसी एक अथवा दो शर्तों को पूरा करे अर्थात (i) विलय के पश्चात एनबीएफसी के शेयर धारिता में कोई परिवर्तन जिसके पश्चात एनबीएफसी के प्रदत्त इक्विटी पूंजी के शेयर धारिता पैटर्न में 26% से अधिक का बदलाव आती है (ii) एनबीएफसी के प्रबंधन में कोई परिवर्तन जिसके परिणामस्वरूप स्वतंत्र निदेशकों को छोड़कर 30 प्रतिशत से अधिक निदेशकों में बदलाव।

86. क्या किसी एनबीएफसी ‘ए’ को किसी दूसरे एनबीएफसी/संस्था ‘बी’ के साथ समामेलन के लिए पूर्व लिखित अनुमोदन आवश्यक है?

समामेलन किए जाने वाली एनबीएफसी को भारतीय रिज़र्व बैंक से लिखित पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना होगा।

87. विलय/समामेलन के लिए किसी न्यायालय अथवा न्यायाधिकरण से आदेश प्राप्त करने हेतु संपर्क करने से पहले क्या भारतीय रिज़र्व बैंक से लिखित पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना होगा?

जी हां, ऐसे सभी मामलों में विलय/समामेलन के लिए किसी न्यायालय अथवा न्यायाधिकरण से आदेश प्राप्त करने हेतु संपर्क करने से पहले भारतीय रिज़र्व बैंक से लिखित पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना होगा जो सामान्य रूप से एफएक्यु 84, 85 अथवा 86 में बताए स्थितियों के अंतर्गत आते हैं।


अनुबंध I

Chart 1

* एनबीएफसी एक वित्तीय संस्था है जो किसी भी योजना या व्यवस्था के तहत ऋण देती है या निवेश करती अथवा पैसा एकत्रित करती है लेकिन इसमें वे संस्थाएं शामिल नहीं हैं जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि गतिविधि, औद्योगिक गतिविधि, अचल संपत्तियों की खरीद या बिक्री हो। जिस कंपनी का प्रमुख व्यवसाय जमाराशियाँ स्वीकार करना है, वह भी एनबीएफसी है।


अनुबंध–II

Chart 2

संबंधित प्रेस विज्ञप्ति

31 मई 2013

वित्तीय संस्थाओं में धन जमा करने से पहले जांच करें: भारतीय रिज़र्व बैंक का परामर्श

 
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