[विनियमित संस्थाओं में धोखाधड़ी जोखिम प्रबंधन पर 15 जुलाई 2024 को मास्टर निदेश जारी किए गए थे]
प्रश्न.1 धोखाधड़ी जोखिम प्रबंधन पर मास्टर निदेशों में अन्य बातों के साथ-साथ विनियमित संस्थाओं (आरई) को 'धोखाधड़ी के मामलों की निगरानी और अनुवर्ती कार्रवाई के लिए बोर्ड' (एससीबीएमएफ) की एक विशेष समिति या 'कार्यकारी समिति' (सीओई), जैसा भी मामला हो, गठित करना अपेक्षित है। ऐसी समिति के समक्ष मामले रखने के लिए धोखाधड़ी में शामिल राशि की सीमा क्या होनी चाहिए?
उत्तर: जैसा कि मास्टर निदेशों के अध्याय II में उल्लेख किया गया है, एससीबीएमएफ/सीओई द्वारा की गई समीक्षाओं के दायरे और आवधिकता विनियमित संस्थाओं के बोर्ड द्वारा तय की जाएगी। तदनुसार, एससीबीएमएफ/सीओई के समक्ष रखे जाने वाले धोखाधड़ी के मामलों में शामिल राशि की सीमा विनियमित संस्थाओं के बोर्ड द्वारा उनके संचालन के पैमाने और जटिलता को ध्यान में रखते हुए तय की जाएगी।
प्रश्न.2 क्या धोखाधड़ी की घटनाओं की सूचना कानून प्रवर्तन एजेंसियों (एलईए) को देने के लिए विनियमित संस्थाओं को विवेकाधिकार उपलब्ध है, विशेष रूप से छोटे मूल्य की धोखाधड़ी के मामले में? या क्या बैंकों को धोखाधड़ी पर मास्टर निदेशों के तहत पुलिस को छोटे मूल्य की धोखाधड़ी की सूचना देना अनिवार्य है?
उत्तर: मास्टर निदेशों के पैराग्राफ 5.1 के अनुसार विनियमित संस्थाओं (आरई) को धोखाधड़ी की घटनाओं को, लागू कानूनों के अधीन, तुरंत कानून प्रवर्तन एजेंसियों (एलईए) को रिपोर्ट करना अपेक्षित है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएसएस) की धारा 33 के तहत, किसी व्यक्ति को सभी अपराधों के बारे में एलईए को रिपोर्ट करना अनिवार्य नहीं है, बल्कि केवल उन अपराधों के बारे में रिपोर्ट करना आवश्यक है जो उस धारा में सूचीबद्ध हैं। हालाँकि, विनियमित संस्था को सूचित किया जाता है कि वे ₹1 लाख या उससे अधिक की राशि से जुड़ी धोखाधड़ी की घटनाओं की रिपोर्ट अनिवार्य रूप से एलईए को करें।
प्रश्न.3 क्या विनियमित संस्थाओं को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिनांक 27 मार्च 2023 के निर्णय का अनुपालन करना आवश्यक है, अर्थात क्या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अनुपालन धोखाधड़ी के सभी मामलों में किया जाना आवश्यक है या केवल अग्रिम संबंधित धोखाधड़ी के मामलों में?
उत्तर: प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुपालन को सुनिश्चित करने की आवश्यकता विनियमित संस्थाओं द्वारा धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत सभी व्यक्तियों/संस्थाओं और इसके प्रमोटरों/पूर्णकालिक और कार्यपालक निदेशकों पर लागू होती है। दूसरे शब्दों में, यह आवश्यकता धोखाधड़ी वर्गीकरण के सभी मामलों में लागू होती है, जिसके सिविल परिणाम हो सकते हैं (यानी दंडात्मक उपाय, सावधानी सूची में डालना) जैसा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के 27 मार्च 2023 के निर्णय (भारतीय स्टेट बैंक एवं अन्य बनाम राजेश अग्रवाल एवं अन्य के मामले में सिविल अपील संख्या 7300/2022) में देखा गया है।
प्रश्न 4. क्या विनियमित संस्थाओं को धोखाधड़ी निगरानी विवरणी (एफएमआर) को वापस लेने के लिए पूर्णकालिक निदेशक (डब्ल्यूटीडी) का अनुमोदन प्राप्त करना आवश्यक है, विशेष रूप से, उन मामलों में जहां विनियमित संस्थाओं द्वारा व्यक्तियों/संस्थाओं आदि के धोखाधड़ी वर्गीकरण को न्यायालयों द्वारा खारिज कर दिया गया है?
उत्तर: ऐसे मामलों में जहां न्यायालय के निदेशानुसार एफएमआर वापस लेना/अपराधी का नाम हटाना आवश्यक हो, विनियमित संस्थाएं तत्काल एफएमआर वापस लेने/अपराधी का नाम हटाने की व्यवस्था कर सकती हैं। ऐसे मामलों को बाद में सूचना के लिए डब्ल्यूटीडी स्तर के अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।
प्रश्न 5. क्या एनबीएफसी (एचएफसी सहित) की समूह इकाइयों में की गई धोखाधड़ी की रिपोर्टिंग की आवश्यकता सभी समूह कंपनियों पर लागू होती है?
उत्तर: मास्टर निदेशों के अनुसार केवल रिपोर्टिंग एनबीएफसी/एचएफसी से संबंधित समूह इकाइयों (सहायक/सहबद्ध/संयुक्त उद्यम आदि) में की गई धोखाधड़ी की रिपोर्टिंग की आवश्यकता है। दूसरे शब्दों में, रिपोर्टिंग की आवश्यकता व्यापक समूह की अन्य इकाइयों पर लागू नहीं होती है, जिससे रिपोर्टिंग एनबीएफसी/एचएफसी संबंधित है, जो रिपोर्टिंग एनबीएफसी/एचएफसी की सहायक/सहबद्ध/संयुक्त उद्यम आदि नहीं हैं।
प्रश्न 6. क्या बैंकों द्वारा धोखाधड़ी पर मासिक प्रमाणपत्र, मासिक केंद्रीय धोखाधड़ी रजिस्ट्री (सीएफआर) प्रमाणपत्र और फ्लैश रिपोर्ट दाखिल करना/रिपोर्ट करना जारी रहेगा?
उत्तर: संशोधित मास्टर निदेशों के अनुसार, बैंकों को आरबीआई को ऐसे प्रमाणपत्र/फ्लैश रिपोर्ट प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है। |