आरबीआई/2012-13/60
शबैंवि.केंका.बीपीडी (पीसीबी).एमसी.सं. 9/12.05.001/2012-13
02 जुलाई 2012
मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
महोदया / महोदय
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों में निरीक्षण और
लेखापरीक्षा प्रणालियों पर मास्टर परिपत्र
कृपया उपर्युक्त विषय पर 01 जुलाई 2011 का हमारा मास्टर परिपत्र शबैंवि . बीपीडी . (पीसीबी) .एमसी. सं. 9/ 12.05.001/ 2011-12 (भारतीय रिज़र्व बैंक की वेब साइट www.rbi.org.in पर उपलब्ध) देखें। संलग्न मास्टर परिपत्र में 30 जून 2012 तक जारी सभी अनुदेशों/दिशानिर्देशों को समेकित और अद्यतन किया गया है तथा परिशिष्ठ में उल्लिखित है।
भवदीया
(ए.उदगाता)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक
संलग्नक: यथोक्त
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों में निरीक्षण
और लेखापरीक्षा प्रणालियाँ
पर
मास्टर परिपत्र
विषय सूची
मास्टर परिपत्र
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों में निरीक्षण
और लेखापरीक्षा प्रणालियाँ
1. परिचय
1.1 यह पाया गया है कि बहुधा बैंकों का आंतरिक निरीक्षण तंत्र अनुचित ऋण मूल्यांकन करने, ऋण मंजूरी की शर्तों का पालन किए बिना संवितरण करने, संवितरण के पश्चात् उचित पर्यवेक्षण कर पाने में विफल होने, अनधिकृत रूप से अधिक आहरण की अनुमति देने, बिलों एवं चेकों में हेराफेरी आदि से संबंधित सूचनाओं को दबाने जैसी बड़ी एवं गंभीर अनियमितताओं को पकड़ने और उन्हें प्रमुखता से उजागर करने में नाकाम रहा है।
1.2 आंतरिक निरीक्षण रिपोर्टों में विरले ही नियंत्रक / प्रधान कार्यालयों के अधिकारियों की नाकामी पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी की जाती है। यह पाया गया है कि आंतरिक निरीक्षण / लेखापरीक्षा रिपोर्टों के माध्यम से धोखाधड़ियों तथा कादाचारपूर्ण कृत्यों के बहुत कम मामले प्रकाश में आते हैं जिससे यह संकेत मिलता है कि निरीक्षण की गुणता में और सुधार लाने की गुंजाइश है। आंतरिक निरीक्षण तंत्र की विफलता का मुख्य कारण आंतरिक निरीक्षण से जुड़े कर्मचारियों की अक्षमता तथा कार्य करने का चलताऊ ढंग है। निरीक्षण पर अनुवर्ती कार्रवाई गंभीरता से नहीं की जाती है। ऐसे कार्मिक जिन्हें अन्य संवेदनशील / महत्वपूर्ण क्षेत्रों नें तैनात नहीं किया जा सकता है, उन्हें निरीक्षण / लेखापरीक्षा विभाग में लगा दिया जाता है ।
2. आंतरिक निरीक्षण और लेखा परीक्षा पर घोष समिति की सिफ़ारिशें
भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों में धोखाधड़ियों तथा कदाचारपूर्ण कृत्यों से संबंधित विभिन्न पहलुओं की जांच करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के तत्कालीन उप गवर्नर श्री. ए. घोष की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। समिति ने अनेक सिफारिशें की थीं तथा बैंकों में धोखाधड़ी तथा कदाचारपूर्ण कृत्यों को रोकने के लिए बरती जानेवाली सावधानियां सुझाई थीं। भारतीय रिज़र्व बैंक ने उन सिफारिशों की समीक्षा की थी। प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों द्वारा अपनाए जाने के लिए समिति द्वारा संस्तुत कुछ सिफारिशें नीचे दर्शाई गई हैं :
2.1 आंतरिक लेखापरीक्षा तंत्र
बैंकों को आंतरिक लेखापरीक्षा की एक सुदृढ़ प्रणाली प्रारंभ करनी चाहिए। धोखाधड़ियों /कदाचारपूर्ण कृत्यों के मामलों का पता लगाने में निरीक्षण प्रणाली की विश्वसनीयता को मजबूत करने की दृष्टि से निरीक्षण/लेखा परीक्षा तंत्र को सशक्त बनाने और निरीक्षण विभाग के अधिकारियों की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए आवश्यक उपाय किए जाने की आवश्यकता है । मुख्यालय स्थित निरीक्षण विभाग का प्रमुख एक काफी वरिष्ठ अधिकारी होना चाहिए जो गतिविधियों की सूचना सीधे अध्यक्ष को दे। बैंक के यदि क्षेत्रीय कार्यालय भी हों तो उनके क्षेत्राधिकार में आने वाली शाखाओं की आवधिक लेखापरीक्षा करने के लिए क्षेत्रीय कार्यालय प्रमुख के रूप में काफी वरिष्ठता वाले एक अधिकारी के मातहत एक लेखापरीक्षा तंत्र होना चाहिए। इस विभाग में तैनात अधिकारियों के पास पर्याप्त अनुभव और जानकारी होनी चाहिए। विभाग का प्रमुख ऐसा अधिकारी हो जो काफी वरिष्ठ हो और उसकी निष्ठासिध्द हो चुकी हो । इस विभाग की तरफ सक्षम स्टाफ को आकर्षित करने के लिए निरीक्षण विभाग में कम से कम तीन वर्षों के सतत अनुभव को वेतनमान IV एवं उससे ऊपर के वेतनमान में पदोन्नति की एक पूर्व आवश्यकता बना देना चाहिए ।
2.2 आंतरिक लेखापरीक्षा की आवधिकता
शाखाओं की आंतरिक परीक्षा की आवधिकता 12 माह में कम से कम एक बार होनी चाहिए जो वास्तव में आकस्मिक स्वरूप की होनी चाहिए ।
2.3 आंतरिक लेखापरीक्षा की व्याप्ति
2.3.1 इस प्रकार के निरीक्षणों की व्याप्ति को, अन्य बातों के साथ-साथ, नियंत्रक कार्यालयों को प्रस्तुत विभिन्न आवधिक नियंत्रण विवरणियों सहित शाखाओं में विद्यमान आंतरिक नियंत्रण प्रणाली की समग्र समीक्षा को शामिल करने के लिए और भी व्यापक बनाया जाना चाहिए । आंतरिक निरीक्षण रिपोर्ट में भारतीय रिज़र्व बैंक की निरीक्षण रिपोर्ट में इंगित अनियमितताओं की स्थिति पर विशेष रूप से टिप्पणी की जानी चाहिए। निरीक्षण / लेखापरीक्षा अधिकारियों को निरीक्षण करने के दौरान ऋण-प्रस्तावों का मूल्यांकन, बहियों का मिलान, अंतर-शाखा लेखाओं का समायोजन, समाशोधन लेनदेनों के निपटान, उचंत लेखा, परिसरों एवं स्टेशनरी लेखा जैसे भ्रष्टाचार / धोखाधड़ी प्रवण क्षेत्रों का भी सघन विश्लेषण तथा उनका गहराई से अध्ययन करना चाहिए ताकि पता न लगाए गए कदाचारपूर्ण कृत्यों / अनियमितताओं की गुंजाइश न रहे ।
2.3.2 आंतरिक निरीक्षक को निरीक्षण / दौरे के दौरान उचंत खातों की संवीक्षा करनी चाहिए तथा प्रविष्टियों के शीघ्र प्रत्यावर्तन के लिए विशेष अनुदेश देने चाहिए ।
2.3.3 बैंकों की यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तुलन-पत्र मदों से इतर लेनदेनों के ब्योरे रेकार्ड करने के लिए बनाई गई प्रणाली का सभी शाखाओं द्वारा समुचित रूप से अनुपालन किया जाता है । इन रेकार्डों का आवधिक रूप से मिलान किया जाना चाहिए तथा आंतरिक निरीक्षक को उसका सत्यापन करके उन पर विशेष टिप्पणी देनी चाहिए ।
2.3.4 जड़ वस्तुओं, स्टेशनरी की समुचित-सूची रखी जानी चाहिए तथा शाखा के अधिकारियों तथा आंतरिक निरीक्षकों द्वारा उनकी आवधिक अंतरालों पर जांच की जानी चाहिए ।
2.4 पूरक छोटे - छोटे निरीक्षण
वार्षिक आंतरिक निरीक्षण को विशेषत: बड़ी शाखाओं के मामलों में छोटे छोटे आकस्मिक निरीक्षणों द्वारा संपूरित किया जाना चाहिए जिनमें यथोचित रूप से उच्च स्तरीय अधिकारियों द्वारा न केवल शाखाओं की आंतरिक जांच की जानी चाहिए बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि शाखा के कर्मचारी किसी भी तरह के बदनीयतीपूर्ण कृत्य में लिप्त तो नहीं हैं। इसके अलावा, उस आशय के संकेत मिलने पर, यदि आवश्यक हो, तो तुरंत उसी स्थान पर / विशेष निरीक्षण या संवीक्षा भी करनी चाहिए ।
2.5 राजस्व लेखापरीक्षा
आंतरिक लेखापरीक्षा तथा छोटे निरीक्षणों के अतिरिक्त बड़ी शाखाओं की राजस्व संबंधी लेखा परीक्षा की एक नियमित प्रणाली भी होनी चाहिए। इस प्रकार की लेखापरीक्षा के दौरान पता चली आय में कमी के कारणों की गहराई से समीक्षा की जानी चाहिए और इन चूकों के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के विरूध्द कार्रवाई की जानी चाहिए ।
2.6 ऋण संविभाग लेखापरीक्षा
2.6.1 नियंत्रित अंतरालों पर बड़े अग्रिमों और सामूहिक ऋणों पर केंद्रित ऋण संविभाग की विस्तृत संवीक्षा की एक प्रणाली शुरू की जाए। दूसरे बैंकों से स्थानांतरित होकर आए महाप्रबंधक/ मुख्य कार्यपालक अधिकारी /प्रबंधक निदेशकों सहित कार्यपालकों / अधिकारियों के साथ अंतरित किए गए उच्च मूल्यवाले खातों की विशेष संवीक्षा की जानी चाहिए । उसी प्रकार, आंतरिक निरीक्षण के दौरान अधिकारियों के साथ - साथ शाखाओं से अंतरित होकर आए खातों की भी गहन संवीक्षा की जानी चाहिए। महत्वपूर्ण निष्कर्षों का सारांश निदेशक मंडल की समिति को प्रस्तुत किया जाना चाहिए । अंतिम सीमा से ऊपर के अनियमित खातों की सूचना भारतीय रिज़र्व बैंक को दी जाए। बैंक के निरीक्षण के निष्कर्षों पर उच्च प्रबंधन के साथ विचार - विमर्श के समय भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उठाए गए मुद्दों पर प्रभावी ढंग से अविलंब अनुवर्ती कार्रवाई करनी चाहिए तथा निदेशक मंडल के समक्ष आवधिक रूप से अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए।
2.6.2 बैंकों को सिर्फ़ ऋण संविभाग की संवीक्षा करने के लिए आंतरिक निरीक्षण तंत्र का एक पृथक अनुभाग चालू करने की आवश्यकता की समीक्षा करनी चाहिए। इस अनुभाग में सक्षम और अनुभवी कर्मचारियों को पदापित करना आवश्यक होगा जो ऋण संविभाग की गहराई से जांच करेंगे। बड़े खातों और समूहिक ऋणों की विशेष रूप से संवीक्षा करना इस अनुभाग की जिम्मेदारी होगी। सक्षम अधिकारियों के अलावा, प्रभावी होने के लिए, अनुभाग एक ऐसे वरिष्ठ अधिकारी के अधीन होना चाहिए जो सीधे बैंक के मुख्य कार्यपालक अधिकारी को रिपोर्ट करे। महत्वपूर्ण निष्कर्षों का सारांश निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति को प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
2.6.3 प्रधान कार्यालयों के अधिकारियों के पास एक ऐसा दस्ता भी होना चाहिए जो बैंक में गिरवी / दृष्टिबंधक रखी वस्तुओं का आकस्मिक निरीक्षण भी करेगा ।
2.6.4 विशेष रूप से इस बात का सत्यापन करने के लिए कि क्या आहरण शक्ति /सीमा, ब्याज दरों आदि की प्रविष्टियां ठीक से की गई हैं, शाखा स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों अथवा प्रधान कार्यालय/क्षेत्रीय कार्यालय के अधिकारियों को शाखाओं का त्रैमासिक स्नैप निरीक्षण करना चाहिए।
3. अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र
3.1 निवेश संविभाग लेखापरीक्षा
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के लिए निवेश संविभाग लेखा परीक्षा में निम्नलिखित उपायों को शामिल करना आवश्यक है :
3.1.1 आंतरिक लेखा परीक्षा विभाग द्वारा बैंक की बहियों के अनुसार एसजीएल अंतरण फार्मों के शेषों के समाधान की आवधिक जांच की जानी चाहिए ।
3.1.2 दुरूपयोग की संभावना के मद्देनज़र सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री आदि की अलग से लेखा परीक्षा आंतरिक लेखा परीक्षकों (अंतरिक लेखा परीक्षकों की अनुपस्थिति में निबंधक, सहकारी सोसायटियां द्वारा बनाए गए पैनल के सनदी लेखापालों द्वारा) द्वारा करवाई की जानी चाहिए तथा उनकी लेखा परीक्षाओं के परिणाम प्रत्येक तिमाही में एक बार निदेशक मंडल के समक्ष रखे जाने चाहिए ।
3.1.3 आंतरिक लेखा परीक्षकों (आंतरिक लेखा परीक्षकों की अनुपस्थिति में सनदी लेखापाल / सांविधिक लेखा परीक्षक) को जो कोषालय के परिचालनों की लेखा परीक्षा करते हैं, यह भी जांच करनी चाहिए कि :
3.1.3.1 प्रत्येक अनुमोदित दलाल के लिए निर्धारित संपूर्ण उच्च सीमा का पालन, बैंक द्वारा एक वर्ष के दौरान किए गए कुल लेनदेनों (खरीद और बिक्री दोनों ) के 5% की सीमा के भीतर है । आंतरिक लेखा परीक्षक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि व्यवसाय के गैर-आनुपातिक भाग का लेनदेन किसी एक या कुछ दलालों द्वारा नहीं किया गया है और प्रत्येक अनुमोदित दलाल के लिए निर्धारित संपूर्ण संविदा सीमाओं का अतिक्रमण नहीं किया गया है । इस सीमा के भीतर बैंक द्वारा शुरू किए गए व्यवसाय को तथा दलाल द्वारा बैंक के लिए की गई पेशक श /लाये गये व्यवसाय दोनों को शामिल करना चाहिए।
3.1.3.2 सभी सौदे बैंक के सर्वोत्तम हित में किए गए हैं।
3.2 विवेकपूर्ण मानदंडों का अनुपालन
आंतरिक लेखा परीक्षकों को आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंडों का अनुपालन न किए गए मामलों को उजागर करना चाहिए ताकि उन मामलों में आवश्यक कार्रवाई की जा सके।
3.3 चेक खरीद संबंधी लेनदेन
आंतरिक निरीक्षकों को स्वीकृत सीमा से अधिक राशि के खरीदे / भुनाए गए सभी चेकों का सत्यापन करना चाहिए। उससे लेनदेनों की नमूना जांच करने के लिए भी कहना चाहिए।
4. संगामी लेखापरीक्षा प्रणाली
4.1 घोष समिति ने शाखाओं की प्रशासनिक सहायता करने, निर्धारित प्रणालियों तथा प्रक्रियाओं का पालन करने और चूकों / अनियमितताओं की रोकथाम एवं समय पर उनका पता लगाने में सहायता करने के लिए बैंकों की बड़ी और असामान्य रूप से बड़ी शाखाओं में संगामी लेखापरीक्षा शुरू करने की सिफारिश की थी। तदनुसार `50 करोड़ से अधिक की जमाराशि वाले अनुसूचित एवं अन्य प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के लिए संगामी लेखापरीक्षा प्रणाली शुरू करना आवश्यक था। तत्पश्चात् , संयुक्त संसदीय समिति, जिसने शेयर बाजार घोटाले एवं उससे जुड़े मामलों की जांच की थी, की सिफारिशों के आधार पर सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के लिए संगामी लेखापरीक्षा प्रणाली शुरू करना आवश्यक हो गया है।
4.2 संगामी लेखापरीक्षा प्रणाली को, अनियमितताओं और चूकों का समय पर पता लगाना जिससे शाखाओं में फर्जी लेनदेनों को रोकने में सहायता मिलती है, सुनिश्चित करने के लिए बैंक की पूर्व चेतावनी प्रणाली का एक भाग माना जाना चाहिए। इसलिए, बैंक प्रबंधन के लिए यह आवश्यक है कि वह समुचित और त्वरित प्रबंधकीय निर्णयों के लिए शाखाओं के चयन, व्यावसायिक परिचालनों की व्याप्ति, लेखापरीक्षकों की नियुक्ति, सूचना देने की समुचित प्रक्रियाओं, अनुवर्ती / संशोधन प्रक्रियाओं और प्रणाली से प्राप्त प्रति-सूचना के उपयोग जैसे प्रणाली के विभिन्न पहलुओं के कार्यान्वयन पर गंभीर रूप से ध्यान दे।
4.3 निदेशक मंडल को प्रणाली की प्रभावकारिता की समीक्षा करनी चाहिए तथा वर्ष में एक बार प्रणाली के दोषों को सुधारने के आवश्यक उपाय करने चाहिए।
4.4 संगामी लेखापरीक्षा प्रणाली के ब्योरे निर्धारित करना मूल रूप से प्रत्येक बैंक के प्रबंध तंत्र का कार्य है। तथापि, बैंकों के दिशानिर्देश के लिए संगामी लेखापरीक्षा प्रणाली की सामान्य विशेषताएं दर्शाने वाला नोट अनुबंध 1 में प्रस्तुत है। इस नोट में संगामी लेखापरीक्षा की अवधारणा और क्षेत्र को विस्तारपूर्वक परिभाषित किया गया है, जैसे व्यवसाय / शाखाओं की व्याप्ति, लेखा परीक्षा की सूचना देने वाली प्रणाली के अंतर्गत शामिल की जाने वाली गतिविधियों के प्रकार। इस नोट में संगामी लेखापरीक्षा के विभिन्न पहलुओं के बारे में भी विस्तार से बताया गया है ।
4.5 यह अपेक्षा की गई है कि नोट में दिए गए सुझावों से विभिन्न बैंकों द्वारा शुरू कीजाने वाली प्रणालियों में कुछ एकरूपता सुनिश्चित होगी। एक संगामी लेखापरीक्षा प्रणाली बनाते समय बैंक पहले से ही मौजूद विभिन्न प्रकार के आंतरिक निरीक्षणों और लेखापरीक्षाओं तथा प्रस्तावित संगामी लेखापरीक्षा के बीच संबंधों को स्पष्ट करें ।
4.6 संगामी परीक्षक यह प्रमाणित करें कि प्रत्येक तिमाही के सूचना देने के अंतिम शुक्रवार की स्थिति के संदर्भ में भारतीय रिज़र्व बैंक को दी गई सूचना के अनुसार बैंक द्वारा धारित निवेश भौतिक प्रतिभूतियों के रूप में प्रमाणित अभिरक्षक के विवरण के अनुसार बैंक द्वारा वास्तव में स्वाधिकृत / धारित हैं। यह प्रमाणपत्र संबंधित तिमाही की समाप्ति से तीस दिन के भीतर भारतीय रिज़र्व बैंक के उस क्षेत्रीय कार्यालय को प्रस्तुत किया जाए जिसके क्षेत्राधिकार में उक्त बैंक आता है ।
4.7 संगामी लेखापरीक्षकों को चाहिए कि वे सरकारी प्रतिभूतियों में लेनदेनों के बारे में 28 अप्रैल 2004 के परिपत्र शबैंवि.बीपीडी.एसयूबी.सं.5/09.80.00/2003-04 में निहित अनुदेशों के अनुपालन का विशेष रूप से सत्यापन करें ।
4.8 संगामी लेखापरीक्षा रिपोर्ट में बताई गई गंभीर स्वरूप की अनियमिताताओं को इस विभाग के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को तुरंत सूचित किया जाए ।
4.9 आंतरिक /संगामी लेखापरीक्षा कार्यों के लिए बैंक से संबद्ध सनदी लेखापालों / लेखापरीक्षा फर्मों को एक ही समय में सांविधिक लेखापरीक्षा नहीं करनी चाहिए। आंतरिक /संगामी लेखापरीक्षा के लिए बैंक से संबद्ध फर्मों को वर्ष के दौरान सांविधिक लेखापरीक्षा कार्य स्वीकार करने से पहले आंतरिक /संगामी लेखापरीक्षा छोड़नी नहीं चाहिए।
5. इलेक्ट्रॉनिक डाटा प्रोसेसिंग प्रणाली के लिए लेखापरीक्षा (ईडीपी)
5.1 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक जिन्होंने आंशिक / पूर्ण रूप से अपने परिचालनों को कंप्यूटरीकृत कर दिया है, को सतत आधार पर ईडीपी- लेखापरीक्षा प्रणाली शुरू करनी चाहिए। यदि इस प्रकार के बैंकों में स्वतंत्र निरीक्षण एवं लेखापरीक्षा विभाग हों तो कंप्यूटरीकृत परिचालन वाली शाखाओं / कार्यालयों में ईडीपी लेखापरीक्षा करने के लिए उनके निरीक्षण और लेखापरीक्षा विभाग के एक भाग के रूप में एक ईडीपी लेखापरीक्षा कक्ष का गठन किया जाना चाहिए। तथापि, उन प्राथमिक (शहरी) सहकरी बैकों को, जिनके पास कोई स्वतंत्र निरीक्षण और लेखापरीक्षा विभाग नहीं है, समर्पित व्यक्तियों का एक दल तैयार करना चाहिए जो, आवश्यकता पड़ने पर, एक ईडीपी लेखापरीक्षक के कार्य कर सके। इन ईडीपी लेखापरीक्षा कक्षों का समूचा नियंत्रण और पर्यवेक्षण लेखापरीक्षा समितियों के पास होना चाहिए। इस संबंध में पूर्णत: / आंशिक रूप से कंप्यूटरीकृत परिचालनों वाले सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों को परवर्ती पैराग्राफों में निर्धारित मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए ।
5.2 सक्षम तथा अभिप्रेरित ईडीपी कर्मचारियों का एक दल तैयार किया जाए। कुछेक व्यक्तियों के बजाए कई व्यक्तियों को साथ लेकर सामूहिक रूप से विकसित किया गया सिस्टिम तैयार करना फायदेमंद है ताकि मुख्य व्यक्तियों की अनुपस्थिति में कार्य में बाधा न आए। ईडीपी लेखापरीक्षकों तकनीकी ज्ञान को सेमीनारों / सम्मेलनों में उनकी प्रतिनियुक्ति, तकनीकी पत्रिकाओं एवं पुस्तकों की आपूर्ति आदि की सहायता से निरंतर बढ़ाते रहना चाहिए ।
5.3 सिस्टिम प्रोग्रॅमर/डिज़ाइनर के काम सिस्टिम परिचालित करनेवाले व्यक्ति को नहीं सौंपे जाने चाहिए । सिस्टिम प्रोग्रॅम / डिज़ाइन करने के लिए अलग व्यक्ति होने चाहिए जो इस काम के लिए पूर्णत: समर्पित होंगे। सिस्टिम तैयार करनेवाला व्यक्ति केवल प्रोगॅमों में संशोधन/ सुधार करेगा और सिस्टिम परिचालित करनेवाला व्यक्ति प्रोग्रॅम में फेरबदल के किसी अधिकार के बिना उसे केवल परिचालित करेगा ।
5.4 कंप्यूटरों में सुरक्षा का उल्लंघन करनेवाले मुख्य घटक हैं - सिस्टिम का अपर्याप्त और अपूर्ण होना, प्रोग्रॅमिंग संबंधी त्रुटियां, कमजोर या अपर्याप्त अनुमति का प्रवेश नियंत्रण, क्रियाविधिगत नियंत्रणों का अभाव अथवा उनका निकृष्ट होना एवं अप्रभावी कर्मचारी पर्यवेक्षण और प्रबंध नियंत्रण। इन खामियों को निम्नलिखित द्वारा दूर किया जा सकता है :
5.4.1 सिस्टिमों में भौतिक, तार्किक और क्रियाविधिगत पहुंच को सशक्त बनाना ।
5.4.2 गुणवत्ता के आश्वासन के लिए मानकों को लागू करना और उनकी जांच और परीक्षण करते रहना।
5.4.3 ईडीपी अनुप्रयोग वाले क्षेत्रों में नियोजन से पहले कर्मचारियों की जांच-परख करना और उनके बर्ताव पर नज़र रखना ।
5.5 बैंक द्वारा अनुपालन की जानेवाली सिस्टम विकास प्रणाली, प्रोग्रॅमिंग और प्रलेखीकरण संबंधी मानदंडों की औपचारिक घोषणा की जानी चाहिए। ऐसा न करने पर सिस्टिम के रखरखाव / सुधार की गुणवत्ता को नुकसान पहुँच सकता है। ईडीपी लेखा-परीक्षकों को इसके अनुपालन की जांच कर लेनी चाहिए ।
5.6 सिस्टिम में खराबी आ जाने की स्थिति से निपटने के लिए आपातकालीन योजनाएं / क्रियाविधि लागू की जानी चाहिए और उनका आवधिक अंतरालों पर परीक्षण करते रहना चाहिए। एसी योजना कितनी प्रभावी हैं, इसका मूल्यांकन करने के लिए ईडीपी लेखा परीक्षकों को लेखापरीक्षा के दौरान ऐसी योजनाओं की जांच कर लेनी चाहिए ।
5.7 प्रत्येक बैंक को अपने निरीक्षकों / लेखापरीक्षकों के उपयोग के लिए एक अनुदेश पुस्तिका रखनी चाहिए और परिचालन क्षेत्र तथा नीतियों और क्रियाविधियों की अद्यतन गतिविधियों को उसमें शामिल करने के लिए उसे आवधिक तौर पर अद्यतन करते रहना चाहिए ।
5.8 अवांछनीय घटकों के आक्रमण से कंप्यूटर सिस्टिम को बचाने के लिए एक उपयुक्त नियंत्रण प्रणाली लागू की जानी चाहिए। किसी एक विशिष्ट हस्तचालित क्रियाविधि के स्थान पर ईडीपी अनुप्रयोग लागू करने से पहले यथोचित समयाविधि तक दोनों सिस्टिमों को एक साथ चलाकर ईडीपी अनुप्रयोग की सुरक्षा, विश्वसनीयता और उससे डाटा प्राप्त करने संबंधी सभी पहलुओं को सुनिश्चित कर लेना चाहिए ।
5.9 यह सुनिश्चित करने के लिए कि ईडीपी अनुप्रयोग डाटा संपूरित करने, संसाधित करने एवं उत्पादन देने के लिए सुसंगत विश्वसनीय रूप से सुसज्ज हो गया है, डाटा के त्रुटिपूर्ण संसाधन का पता लगाने, डाटा की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने, डाटा के असंगत होने का पता लगाने और प्रत्यक्ष फार्मो से डाटा का मिलान करने हेतु विभिन्न परीक्षण अमल में लाए जाने चाहिए।
5.10 बाहरी कंप्यूटर एजेंसियों को काम सौंपते समय बैंक को संविदा में "कार्य-स्थल पर जाकर निरीक्षण करने के अधिकारों की शर्त" को शामिल करना चाहिए ताकि बैंक को अनुप्रयोग के कार्यान्वयन की प्रक्रिया के निरीक्षण के अधिकार हो और बाहरी एजेंसियों को दिए गए डाटा / निविष्टियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
5.11 ईडीपी कार्यकलापों के संपूर्ण अधिकार-क्षेत्र को (नीति-निर्माण से लेकर कार्यान्वयन तक) निरीक्षण और लेखापरीक्षा विभाग की संवीक्षा के अंतर्गत लाया जाना चाहिए। ईडीपी विभाग के वित्तीय व्यय और उसके द्वारा निष्पादित किए जानेवाले कार्यों की समीक्षा वरिष्ठ प्रबंधन द्वारा आवधिक अंतरालों पर की जानी चाहिए।
5.12 विभिन्न शाखाओं /कार्यालयों द्वारा प्रयोग किए जा रहे साफ्टवेयर में एकरूपता लाने के लिए मानक साफ्टवेयर में परिवर्तन करने की एक निश्चित पद्धति होनी चाहिए और उसका अनुमोदन वरिष्ठ प्रबंधन द्वारा किया जाना चाहिए। नियंत्रण रखने की दृष्टि से और अन्य शाखाओं में एकरूपता बनाए रखने के लिए निरीक्षण और लेखा-परीक्षा विभाग को ऐसे परिवर्तनों का सत्यापन करना चाहिए।
6. निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति (शीर्ष लेखापरीक्षा समिति)
6.1 भारतीय रिज़र्व बैंक समय-समय पर प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के निदेशकों द्वारा सांविधिक निरीक्षण/लेखापरीक्षा रिपोर्टों के निष्कर्षों की समीक्षा करने तथा उन पर कार्रवाई करने तथा उनकी अनुपालन रिपोर्ट को प्रस्तुत करने की आवश्यकता पर बल देता रहा है। फिर भी, ज्यादातर बैंकों में भारतीय रिज़र्व बैंक की निरीक्षण रिपोर्टों, सांविधिक लेखा परीक्षकों तथा आंतरिक निरीक्षण विभाग, सतर्कता कक्ष एवं आंतरिक लेखापरीक्षकों द्वारा प्रस्तुत निरीक्षण रिपोर्टों में की गई टिप्पणियों एवं दिए गए सुझावों की जाँच करने तथा उन पर अनुवर्ती कार्रवाई करने की कोई उचित प्रणाली नहीं है। भारतीय रिज़र्व बैंक तथा आंतरिक लेखापरीक्षा/निरीक्षण रिपोर्टों के निष्कर्षों तथा जारी दिशा - निर्देशों, परिपत्रों आदि पर समय पर की गई कार्रवाई बैंकों की संपूर्ण कार्यप्रणाली तथा परिचालनात्मक दक्षता को सक्रिय करने के लिए वांछनीय समझी जाती है।
6.2 एक प्रबंधकीय साधन के रूप में आंतरिक/निरीक्षण की प्रभावकारिता सुनिश्चित करने तथा उसमें वृद्धि करने के लिए यह आवश्यक समझा गया है कि आंतरिक लेखापरीक्षा/निरीक्षण तंत्र तथा प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के अन्य कार्यपालकों का पर्यवेक्षण करने तथा उन्हें दिशा देने के लिए बोर्ड स्तर की एक शीर्ष लेखा परीक्षा समिति गठित की जानी चाहिए। निदेशक मंडल की लेखा परीक्षा समिति में अध्यक्ष तथा तीन/चार निदेशक शामिल हों जिनमें से एक या अधिक निदेशक सनदी लेखापाल हों या उन्हें प्रबंधन, वित्त, लेखाविधि तथा लेखा परीक्षा प्रणाली, आदि का अनुभव प्राप्त हो। इसमें यह भी शामिल है कि बैंक, जहाँ आवश्यक हो, इतनी ही संख्या में इस प्रकार के व्यावसायिक अनुभव वाले लोगों का अपना निदेशक मंडल गठित कर सकता है ।
6.3 निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन की समीक्षा करनी चाहिए और तिमाही अंतरालों पर उस पर एक नोट निदेशक मंडल को प्रस्तुत करना चाहिए ।
6.4 निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति के अन्य कार्य /जिम्मेदारियां निम्नलिखित हैं :
6.4.1 निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति को बैंक की लेखा परीक्षा संबंधी समग्र कार्य की देखरेख करनी चाहिए और आवश्यक निदेश देना चाहिए । लेखापरीक्षा के समग्र कार्यों में बैंक के भीतर आंतरिक लेखापरीक्षा और निरीक्षण का संचालन, परिचालन तथा गुणता नियंत्रण और बैंक की सांविधिक लेखा परीक्षा एवं रिज़र्व बैंक के निरीक्षण पर अनुवर्ती कार्रवाई शामिल होगी।
6.4.2 जहां तक आंतरिक लेखापरीक्षा का संबंध है, निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति को अनुवर्ती कार्रवाई के रूप में बैंक में लेखा परीक्षा संबंधी समस्त कार्यों के परिचालन, उसकी प्रणाली, उसकी गुणता तथा प्रभावकारिता की देखरेख करनी चाहिए और आवश्यक निर्देश जारी करने चाहिए। उसे विशेष रूप से "असंतोषजनक" शाखाओं तथा बैंक द्वारा अति विशाल शाखाओं के रूप में वर्गीकृत शाखाओं के आंतरिक निरीक्षण की रिपोर्टों पर की गई अनुवर्ती कार्रवाई की समीक्षा करनी चाहिए। उसे निम्नलिखित पर भी अपनी अनुवर्ती कार्रवाई को विशेष रूप से केंद्रित करना चाहिए :
6.4.2.1 अंतर - शाखा समायोजन खाते
6.4.2.2 अंतर - शाखा खातों और अंतर - बैंक खातों में अनिर्णित एवं बहुलंबित प्रविष्टियाँ
6.4.2.3 विभिन्न शाखाओं पर बहियों के मिलान संबंधी बकाया कार्य
6.4.2.4 धोखाधड़ियाँ
6.4.2.5 आंतरिक लेखा कार्य और व्यवस्था के अन्य मुख्य क्षेत्र
6.4.3 सांविधिक लेखापरीक्षा रिपोर्टों/संगामी लेखापरीक्षा रिपोर्टों/भारतीय रिज़र्व बैंक की निरीक्षण रिपोर्टों का अनुपालन
6.4.4 गंभीर अनियमितताओं का पता लगाने में आंतरिक निरीक्षणकर्ता अधिकारियों की तरफ से हुई चूक
6.4.5 बैंक के खातों में और अधिक पारदर्शिता तथा लेखा संबंधी नियंत्रणों की पर्याप्तता सुनिश्चित करने की दृष्टि से बैंक की लेखाकरण नीतियों/प्रणालियों की आवधिक समीक्षा
अनुबंध 1
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों
में निरीक्षण और लेखापरीक्षा प्रणालियों पर
मास्टर परिपत्र
(पैरा 4.4 के अनुसार)
संगामी लेखापरीक्षा पर नोट
1. प्रस्तावना
1.1 बैंकों में धोखाधड़ियों तथा भ्रष्टाचार के विभिन्न पहलुओं की जांच करने के लिए भारत सरकार की पहल पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा गठित उच्चस्तरीय समिति ने जून 1992 में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में शाखाओं को प्रशासनिक सहायता प्रदान करने, निर्धारित प्रणालियों एवं प्रक्रियाओं का पालन करने में उनकी सहायता करने तथा चूकों/अनियमितताओं का समय पर पता लगाने के लिए बड़ी और असाधारण रूप से बड़ी शाखाओं में संगामी लेखापरीक्षा की प्रणाली शुरू करने की सिफ़ारिश की थी।
1.2 संगामी लेखापरीक्षा प्रणाली के क्षेत्र का मानकीकरण करने की दृष्टि से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा गठित एक अनौपचारिक समूह जिसमें कुछ बड़े वाणिज्यिक बैंकों के वरिष्ठ अधिकारी तथा भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान के प्रतिनिधि शामिल हैं, ने इस प्रणाली से संबंधित विभिन्न पहलुओं की समीक्षा की थी। इसके अंतर्गत निम्नलिखित पहलुओं को शामिल किया गया है :
1.2.1 संगामी लेखापरीक्षा का क्षेत्र
1.2.2 शामिल की जाने वाली शाखाओं के प्रकार
1.2.3 शामिल किए गए कार्य
1.2.4 संगामी लेखापरीक्षा करने वाली एजेंसी
1.2.5 संगामी लेखापरीक्षकों के निष्कर्षों की सूचना देने और उन पर अनुवर्ती कार्रवाई करने की अवधि
1.2.6 बाहय लेखापरीक्षकों को देय पारिश्रमिक तथा संबंधित मामले
1.2.7 उत्तरदायित्व संबंधी पहलू
1.3 समूह के विचार - विमर्श के बाद उभरे विचार विस्तार से नीचे दिए गए हैं जिन्हें अपनाने के बारे में प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक विचार कर सकते हैं। प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों की मौजूदा आवश्यकताओं के अनुरूप कुछ पहलुओं को संशोधित करने का एक प्रयास किया गया है।
2. संगामी लेखापरीक्षा का क्षेत्र
2.1 संगामी लेखापरीक्षा वह परीक्षण है जो लेनदेन के साथ-साथ होता रहता है या यथासंभव इसे लेनदेन के समय के आस-पास ही किया जाता है। यह किसी लेनदेन और उसके परीक्षण के बीच के अंतराल को कम करने का एक प्रयास है जो एक स्वतंत्र व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो इसके प्रलेखीकरण से संबद्ध नहीं होता। जोर जाँच परीक्षण के बजाय मुख्य क्षेत्रों में वास्तविक परीक्षण पर दिया जाता है। यह लेखापरीक्षा मुख्य रूप से सुदृढ़ आंतरिक लेखांकन कार्यकलापों तथा प्रभावी नियंत्रण की स्थापना से जुड़ी एक प्रबंधन प्रक्रिया है जो गंभीर त्रुटियों एवं फर्जी ढंग के हेर-फेर को समाप्त करने के लिए एक सतर्कता आंतरिक लेखा परीक्षा करवाए जाने का संकेत देती है।
2.2 कोई संगामी लेखापरीक्षक किसी बैंक/शाखा प्रबंधक या किसी प्राधिकृत अधिकारी के निर्णय का निर्णायक नहीं हो सकता। तथापि, लेखापरीक्षक को यह आवश्यक रूप से देखना होगा कि क्या लेनदेन या निर्णय मुख्यालय/निदेशक मंडल द्वारा निर्धारित नीतिगत मानदंडों के दायरे में हैं, वे भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुदेशों या नीतिगत निर्धारणों का उल्लंघन तो नहीं करते हैं तथा वे प्रत्यायोजित प्राधिकार के दायरे में हैं तथा प्रत्यायोजित प्राधिकार के प्रयोग की शर्तों का अनुपालन करते हैं।
3. कारबार/शाखाओं की व्याप्ति
3.1 प्रस्तावित क्षेत्र निम्नलिखित हैं:
3.1.1 निवेश, अंतर बैंक उधार, बिल पुनर्भुनाई, स्टॉक ध निवेश योजना, क्रेडिट कार्ड प्रणाली तथा विदेशी मुद्रा कारबार सहित निधि प्रबंधन जैसे राजकोषीय कार्यकलाप करने वाले संबंधित मुख्यालय के विभाग/प्रभाग संगामी लेखापरीक्षा के अधीन हैं। इसके अतिरिक्त इस प्रकार का कारबार करने वाले सभी शाखा कार्यालय, बड़ी शाखाएं तथा डीलिंग रूम की सतत लेखा परीक्षा की जाती है।
3.1.2 ऐसी समस्याग्रस्त शाखाएं जिनकी हालत बैंक के वार्षिक निरीक्षण/लेखापरीक्षा रेटिंग में लगातार खराब होती जा रही है और जिनका आंतरिक लेखा कार्य अत्यंत खराब है, उन्हें इसके अंतर्गत शामिल किया जाए ।
3.1.3 बैंक आवश्यकता हाने पर अर्थात शाखाओं की संपूर्ण कार्यप्रणाली से संबंधित व्यावसायिक निर्णय के आधार पर अपने विवेक से अतिरिक्त शाखाओं को भी सम्मिलित कर सकते हैं ।
4. शामिल किए जानेवाले कार्यकलाप
4.1 संगामी लेखा परीक्षा की मुख्य भूमिका लेनदेनों और सत्यापनों की साथ - साथ जांच करने एवं निर्धारित प्रक्रियाओं का अनुपालन करने में बैंक के प्रयासों को संपूरित करना है। विशेष रूप से यह देखा जाता है कि लेनदेनों को समुचित रूप से प्रलेखित तथा सत्यापित किया गया है। संगामी लेखापरीक्षक सामान्य तौर पर निम्नलिखित मदों को शामिल कर सकते है।
4.1.1 नकदी
4.1.1.1 किसी प्रकार की असामान्य प्राप्तियों एवं भुगतान के विशेष संदर्भ सहित दैनिक नकदी लेनदेन
4.1.1.2 आवक एवं जावक नकदी प्रेषणों का समुचित लेखांकन
4.1.1.3 मुद्रा तिजोरी लेनदेनों (यदि कोई हों) का समुचित लेखांकन, भारतीय रिज़र्व बैंक को इसकी तुरंत सूचना देना
4.1.1.4 बड़ी राशि वाले नकदी भुगतान पर किए गए खर्च
4.1.2 निवेश
4.1.2.1 यह सुनिश्चित किया जाय कि प्रतिभूतियों की खरीद एवं बिक्री के संबंध में शाखा ने अपने प्रधान कार्यालय के अनुदेशों के अनुसार अपनी प्रत्यायोजित शक्ति के भीतर ही काम किया है ।
4.1.2.2 यह सुनिश्चित किया जाए कि शाखा की बहियों में दर्ज़ प्रतिभूतियां शाखा में मूर्त/भौतिक रूप में रखी जाती हैं ।
4.1.2.3 यह सुनिश्चित किया जाए कि शाखा बैंक रसीदों (बीआर) एस जी एल फार्मों, सुपुर्दगी पर्चियों,प्रलेखीकरण और लेखांकन के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक/प्रधान कार्यालय/निदेशक मंडल के दिशा - निर्देशों का अनुपालन कर रही है ।
4.1.2.4 यह सुनिश्चित किया जाए कि बिक्री या खरीद संबंधी लेनदेन बैंक के लिए लाभप्रद दरों पर किए जाते हैं।
4.1.3 जमा राशियां
4.1.3.1 प्राप्त की गई एवं पुनर्भुगतान की गई जमाराशियों की जांच करना ।
4.1.3.2 बड़ी जमाराशियों पर ब्याज के परिकलन के साथ-साथ जमाराशियों पर अदा किए गए ब्याज की प्रतिशत जाँच।
4.1.3.3 खोले गए नए खातों की जाँच करना। यह देखने के लिए कि कहीं कोई असामान्य परिचालन तो नहीं हो रहा है, नए चालू/बचत खातों के परिचालनों का सत्यापन प्रारंभिक दौर में ही किया जाए। इसकी भी जाँच की जाए कि क्या नए खाते खोलने से संबंधित औपचारिकताओं का अनुपालन भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुदेशों के अनुसार किया गया है।
4.1.4 अग्रिम
4.1.4.1 यह सुनिश्चित करें कि ऋण और अग्रिम सही ढंग से (अर्थात् उचित संवीक्षा एवं समुचित स्तर पर) मंजूर किए गए हैं ।
4.1.4.2 सत्यापित किया जाए कि क्या मंजूरियां प्रत्यायोजित शक्ति के अनुसार हैं।
4.1.4.3 यह सुनिश्चित करें कि प्रतिभूतियां एवं दस्तावेज प्राप्त किए गए हैं तथा उन्हें समुचित रूप से प्रभारित/पंजीकृत कर दिया गया है।
4.1.4.4 यह सुनिश्चित करें कि वितरणोत्तर पर्यवेक्षण तथा की जा रही अनुवर्ती कार्रवाई जैसे कि स्टॉक विवरण की प्राप्ति, किस्तें, सीमाओं का नवीकरण, आदि उचित है।
4.1.4.5 सत्यापित करें कि क्या ऋणों एवं अग्रिमों का कोई दुरूपयोग तो नही किया जा रहा है तथा क्या ऐसे मामले भी हैं जहां निधियों को अन्यत्र खर्च किया गया है।
4.1.4.6 जांच करें कि शाखा द्वारा जारी किए गए साख-पत्र प्रत्यायोजित शक्ति के भीतर हैं तथा यह सुनिश्चित किया जाए कि वे वास्तविक व्यापारिक लेनदेनों के लिए जारी किए गए हैं।
4.1.4.7 जारी की गई बैंक गारंटियों की जाँच करें कि क्या उनका पाठ (वर्डिंग) ठीक है और क्या उन्हें बैंक के रजिस्टर में ठीक से दर्ज किया गया है। क्या उन्हें उचित तारीख पर तत्परता से नवीकृत किया गया है।
4.1.4.8 विनिमय के अतिदेय बिलों पर उचित अनुवर्ती कार्रवाई सुनिश्चित करें।
4.1.4.9 सत्यापित करें कि क्या अग्रिमों का वर्गीकरण भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा - निर्देशों के अनुसार किया गया है।
4.1.4.10 सत्यापित करें कि क्या डी आई सी जी सी तथा ई सी जी सी को दावे समय पर प्रस्तुत किए गए।
4.1.4.11 सत्यापित करें कि प्रत्यायोजित शक्तियों का अतिक्रमण करने के मामलों की सूचना शाखा द्वारा नियंत्रक/प्रधान कार्यालय/निदेशक मंडल को दी गई है तथा अपेक्षित स्तर पर उसकी पुष्टि या अनुमोदन करवा लिया गया है।
4.1.4.12 संबंधित अधिकारियों द्वारा प्रत्यायोजित शक्तियों का अतिक्रमण करने के मामलों की बारंबारता तथा उनका औचित्य सत्यपित करें ।
4.1.5 विदेशी मुद्रा लेनदेन
4.1.5.1 साख पत्रों के अंतर्गत विदेशी हुंडियों में किए गए लेनदेनों की जाँच करना।
4.1.5.2 एफ सी एन आर तथा अन्य अनिवासी खातों की जाँच करना कि क्या नामे डालना तथा जमा दर्ज करना नियमों के अंतर्गत अनुमत है।
4.1.5.3 जाँच करना कि क्या आवक/जावक विप्रेषाणों को ठीक से हिसाब में लिया गया है।
4.1.5.4 विदेशी मुद्रा की खरीद एवं बिक्री के लिए वायदा संविदाओं की अवद्यि बढ़ाने एवं उनको निरस्त करने की जाँच करें। यह सुनिश्चित करें कि उन्हें विधिवत् प्राधिकृत किया गया है तथा आवश्यक प्रभारों की वसूली कर ली गई है ।
4.1.5.5 यह सुनिश्चित करें कि विभिन्न विदेशी मुद्राओं में नास्ट्रो खातों में शेष, बैंक द्वारा निर्धारित सीमा के भीतर है ।
4.1.5.6 यह सुनिश्चित करें कि विदेशी मुद्रा परिचालनों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न मुद्राओं में जरूरत से अधिक खरीद/बिक्री की स्थिति उचित है ।
4.1.5.7 डीलिंग रूम के परिचालनों के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक/बैंक के प्रधान कार्यालय द्वारा जारी किए गए दिशा - निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करें।
4.1.5.8 नास्ट्रो तथा वोस्ट्रो खातों के लेनदेनों/बकायों का सत्यापन/मिलान सुनिश्चित किया जाए।
4.1.6 आंतरिक लेखाकार्य और व्यवस्था (हाउस कीपिंग)
4.1.6.1 यह सुनिश्चित किया जाए कि नकदी एवं सामान्य लेजर के साथ खातों, लेजरों तथा रजिस्टरों का रख-रखाव और मिलान ठीक - ठाक है।
4.1.6.2 अंतर - शाखा तथा अंतर - बैंक खातों, उचंत खातों, फुटकर जमाराशि खातों, ड्राफ्ट खातों इत्यादि में बकाया प्रविष्टियों का त्वरित समाधान सुनिश्चित करें । बड़े मूल्य की प्रविष्टियों का शीघ्र समायोजन सुनिश्चित करें।
4.1.6.3 ब्याज, बट्टे, कमीशन तथा विनिमय के परिकलनों की प्रतिशत जाँच करें।
4.1.6.4 इस बात की जाँच करें कि क्या आय खाते में राशि नामे लिखने की अनुमति सक्षम प्राधिकारियों द्वारा दी गई है।
4.1.6.5 स्टाफ खातों के लेनदेनों की जांच करें ।
4.1.6.6. समाशोधन के मिलान में अंतर के मामले में यह प्रवृत्ति रही है कि अंतर का पता लगाने के बजाय उसे मध्यवर्ती उचंत खाते में दर्ज़ कर दिया जाता है। यह सत्यापित करने के लिए दैनिक बही की जाँच की जाए कि समाशोधन में अंतरों को किस प्रकार समायोजित किया गया। यदि अंतर बना रहता है तो ऐसे मामलों की सूचना प्रधान कार्यालय/निदेशक मंडल को दी जाए।
4.1.6.7 आय तथा व्यय लेखा/लेनदेनों की सधन जाँच के द्वारा राजस्व में कमी का पता लगाना और उन्हें रोकना।
4.1.6.8 वापस किए गए चेकों/वापस किए गए बिलों के रजिस्टर की जाँच की जाए तथा उन लिखतों की वापसी के कारणों की जाँच करना।
4.1.6.9 आवक और जावक विप्रेषणों (डीडी, एम टी एवं टी टी) की जाँच।
4.1.7 अन्य मदें
4.1.7.1 सुनिश्चित करें कि शाखा आंतरिक निरीक्षण/लेखा परीक्षा रिपोर्टों का उचित अनुपालन करती है।
4.1.7.2 सुनिश्चित करें कि ग्राहकों की शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई की जाती है।
4.1.7.3 विवरणों, प्रधान कार्यालय की विवरणियों, सांविधिक विवरणियों का सत्यापन ।
4.2 उपर्युक्त सूची उदाहरणात्मक है न कि परिपूर्ण। इसलिए, बैंक इस सूची में उन अन्य मदों को भी जोड़ सकते हैं जो उनके विचार में शाखा परिचालनों पर समुचित नियंत्रण के उद्देश्य से उपयोगी हैं। बड़ी शाखाओं में भारी मात्रा में होनेवाले लेनदेनों को देखते हुए संगामी लेखा परीक्षकों के लिए हमेशा शत - प्रतिशत जाँच करना संभव नहीं होगा। इसलिए, वे निम्नलिखित मानदंडों को अपनाने पर विचार कर सकते हैं:
4.2.1 तुलन पत्रेतर मदों (एल सी एवं बी जी) निवेश संविभाग, विदेशी मुद्रा लेनदेनों, धोखाधड़ी प्रवण/संवेदनशील क्षेत्रों `5 लाख से अधिक बकाया राशि वाले अग्रिमों जैसे मामलों में, यदि कोई असाधारण लक्षण दिखाई दें तो संगामी लेखा परीक्षक उन मामलों की शत - प्रतिशत जाँच करें ।
4.2.2 आय - व्यय मदों, अंतर बैंक तथा अंतर - शाखा लेखांकन, चुकता ब्याज तथा प्राप्त ब्याज, समाशोधन लेनदेनों एवं जमा खातों जैसे क्षेत्रों के मामले में लेनदेनों की संख्या के 10 से 25 प्रतिशत अंश की जांच की जा सकती है।
4.2.3 जहां कुछ क्षेत्रों में किसी शाखा का प्रदर्शन खराब हो या उसकी आंतरिक लेखा एवं व्यवस्था, ऋण एवं अग्रिमों या निवेश की सघन निगरानी की आवश्यकता हो तो संगामी लेखा परीक्षक ऐसे क्षेत्रों की गहन जाँच करें।
4.2.4 संगामी लेखा परीक्षक कम राशि वाले लेनदेनों, भले ही वे संख्या में अधिक हों, पर जांच केंद्रित करने के बज़ाय उच्च मूल्य के उन लेनदेनों पर जांच केंद्रित करें जिनका बैंक पर वित्तीय प्रभाव पड़ता हो।
4.2.5 यदि कोई प्रतिकूल टिप्पणी दिए जाने की आवश्यकता हो तो संगामी लेखा परीक्षकों को उसका कारण देना चाहिए।
4.2.6 संगामी लेखा परीक्षक स्वयं शाखा स्तर/बैंक स्तर पर समस्या वाले क्षेत्रों का पात लागएं और उनका समाधान सुझाएं।
5. लेखा परीक्षक की नियुक्ति और पारिश्रमिक
5.1 संगामी लेखा परीक्षा बाहय लेखा परीक्षकों (व्यावसायिक रूप से योग्यताप्राप्त सनदी लेखापाल) से करवाई जाए अथवा स्वयं अपने कर्मचारियों से करवाई जाए, इसका विकल्प बैंक पर छोड़ दिया जाए। यदि बैंक इस प्रयोजन के लिए बाह्य लेखा परीक्षक नियुक्त करने का निर्णय करता है, तो उनकी नियुक्ति तथा देय पारिश्रमिक की शर्तें निदेशक मंडल तथा/अथवा संबंधित राज्य के निबंधक, सहकारी सोसायटियां द्वारा अनुमोदित विस्तृत दिशा - निर्देशों के अनुसार निर्धारित की जानी चाहिए।
5.2 जाँचे गए लेनदेनों से संबंधित किसी भी कृत्याकृत्य के लिए लेखा परीक्षा फर्में जिम्मेदार हेंगी। यदि संगामी लेखा परीक्षकों (बाह्य) की कार्यप्रणाली में कोई गंभीर कृत्याकृत्य पाया जाता है तो बैंक उनकी नियुक्ति निरस्त करने पर विचार कर सकता है तथा यथोचित कार्रवाई करने के लिए भारतीय सनदी लेखापाल संस्थान को सूचित करने के साथ - साथ भारतीय रिज़र्व बैंक/निबंधक, सहकारी सोसायटियां को भी सूचित करें।
5.3 यदि बैंक अपने अधिकारियों को लेखा परीक्षा का कार्य सौंपने को तरज़ीह देता है तो बैंक को यह सुनिश्चित करना होगा कि संगामी लेखा परीक्षा करते समय आवश्यक स्वतंत्रता और वस्तुपरकता हासिल करने के लिए इन अधिकारियों को काफी अनुभव है और वरीयता प्राप्त है। लेखा परीक्षकों की आवधिक रूप से, चाहे वे आंतरिक हों या बाहय, अदला-बदली करते रहना चाहिए। इसी क्रम में आगे यह विचार भी किया जा सकता है कि बैंक के अधिकारियों के समुचित चयन एवं प्रशिक्षण से लेखा परीक्षा कार्य में अपेक्षित दक्षता विकसित कर लेने पर क्या बाह्य लेखा परीक्षकों पर निर्भरता को कम किया जा सकता है।
6. सूचना देने की प्रणाली
6.1 संगामी लेखा परीक्षक को चाहिए कि वह मामूली अनियमितताओं, गलत परिकलन आदि की सूचना शाखा प्रबंधक को दें ताकि उन्हें उसी समय सुधारा जा सके और अनुपालन प्रस्तुत किया जा सके।
6.2 यदि इन अनियमितताओं को एक उचित समयावधि जैसे कि एक सप्ताह के भीतर सुधारा नहीं जाता है तो उनकी सूचना प्रधान कार्यालय को दी जाए। यदि लेखा परीक्षक को गंभीर अनियमितताएं दिखाई पड़ती हैं तो उसे तुरंत उसकी सूचना सीधे प्रधान कार्यालय को देनी चाहिए। लेखा परीक्षक को लेखा परीक्षा के औचित्य वाले पहलू पर बल देना होगा। बैंक संगामी लेखा परीक्षकों की रिपोर्टों पर अनुवर्ती कार्रवाई की एक यथोचित प्रणाली शुरू कर सकता है । संगामी लेखा परीक्षा की कार्यपध्दति की एक वार्षिक समीक्षा प्रणाली होनी चाहिए।
7. निष्कर्ष
संगामी लेखा परीक्षा प्रणाली शुरू करते समय उसे आंतरिक लेखा परीक्षा/निरीक्षण की अन्य मौजूदा प्रणालियों से जोड़ने का प्रयास होना चाहिए। अब तक जो खामियां देखी गई हैं उनमें से एक है आंतरिक लेखा परीक्षा तथा निरीक्षणों की विभिन्न प्रणालियों में समन्वय के प्रति तथा लेखा परीक्षा संबंधी आपत्तियों/गुणताओं के प्रति संवेदनशीलता का अभाव। यह आवश्यक है कि लेखा परीक्षा, निरीक्षण तथा उन पर अनुवर्ती कार्रवाई की संपूर्ण प्रणाली को समुचित रूप से प्रलेखित किया जाय और समेकित लेखा परीक्षा प्रणाली के कार्य - निष्पादन की समय - समय पर समीक्षा की जाए ।
परिशिष्ट
प्राथमिक (शहरी ) सहकारी बैंकों में निरीक्षण
और लेखापरीक्षा प्रणालियाँ
पर
मास्टर परिपत्र
क. मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
क्र.सं. |
परिपत्र सं. |
दिनांक |
विषय |
1. |
शबैवि.बीपीडी.केंका.परि.सं.35/12.05.001/2008-09 |
21.01.2009 |
बैंकों में सांविधिक लेखापरीक्षकों द्वारा आंतरिक लेखापरीक्षा |
2. |
शबैवि.बीपीडी.एसयूबी.परि.सं.5/09.80.00/2003-04 |
28.4.2004 |
सरकारी प्रतिभूतियों में लेनदेन |
3. |
शबैवि.बीएसडी.आईपी.सं.39/12.05.01/2003-04 |
20.03.2004 |
संगामी लेखापरीक्षा - गंभीर स्वरूप की अनियमिताताएं |
4. |
बीपीडी.परि.36/09.06.00/2002-03 |
20.2.2003 |
संगामी लेखा परीक्षा |
5. |
बीपीडी.परि.37/09.06.00/2002-03 |
6.3.2003 |
निदेशक मंडल की लेखा परीक्षा समिती |
6. |
शबैवि.सं.बीएसडी.I.एसीसबी.4/12.05. 01/2000-01 |
10.4.2001 |
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के लिए ऑफ साइट निगरानी की शुरूआत |
7. |
शबैवि.सं.आयो.एसयूबी.20/09.81.00/ 97-98 |
19.2.1998 |
सरकारी प्रतिभूतियों की फुटकर बिक्री (रीटेलिंग) |
8. |
शबैवि.सं.आयो.(पीसीबी) परि.32/09.06. 00/96-97 |
5.12.1996 |
(शहरी) सहकारी बैकों में संगामी लेखा परीक्षा प्रणाली - भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों में संशोधन |
9. |
शबैवि.सं.आयो.पीसीबी.19/09.29.00/ 1996-97 |
11.09.1996 |
बैंकों का निवेश संविभाग - अप्रयुक्त बीआर फार्मों की अभिरक्षा तथा नियंत्रण की प्रणाली |
10. |
शबैवि.सं.आयो.पीसीबी./29/09.29.00/95-96 |
21.6.1996 |
बैंकों का निवेश संविभाग - प्रतिभूतियों में लेनदेन |
11. |
शबैवि. सं.आयो.(पीसीबी)9/09.06.00/94 -95 |
25.7.1994 |
बैंकों में आंतरिक लेखा परीक्षा कार्य की निगरानी-निदेशक मंडलों की लेखा परीक्षा समिति स्थापित करना |
12. |
शबैवि.सं.पॉट.77/09.06.00/93-94 |
31.5.1994 |
बैंकों में धोखाधड़ियों तथा भ्रष्टाचार पर घोष समिति की सिफरिशों के अनुसार संगामी लेखा परीक्षा प्रणाली की शुरूआत |
13. |
शबैवि.सं.आयो.74/यूबी.81/92/93 |
17.5.1993 |
बैंकों का निवेश संविभाग-प्रतिभूतियों में लेन-देन |
14. |
शबैवि.सं.आईएवंएल.21/जे-1-87/88 |
20.7.1987 |
परिचालनें में हेराफेरी /चेकों की खरीद |
ख. उन परिपत्रों की सूची जिनमें से प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों में निरीक्षण तथा लेखापरीक्षा प्रणालियों से संबंधित अनुदेशों को भी मास्टर परिपत्र में समेकित किया गया है
क्र.सं. |
परिपत्र सं. |
दिनांक |
विषय |
1. |
शबैवि.सं.केंका.बीएसडी.I.पी.पीसीबी. 44/12.05.05/2000-2001 |
23.4.2001 |
बैंकों द्वारा निवेश के वर्गीकरण और मूल्यन के लिए दिशा-निर्देश |
2. |
शबैवि.सं.पॉट.परि.पीसीबी.39/09.29.00/ 2000-01 |
18.4.2001 |
प्राथमिक निर्गमों की नीलामी में आबंटित सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री |
3. |
शबैवि.सं.आयो.एसयूबी.20/09.81.00/ 97-98 |
19.2.1998 |
सरकारी प्रतिभूतियों की फुटकर बिक्री (रीटेलिंग) |
4. |
शबैवि.21/12.15.00/93-94 |
21.09.1993 |
बैंकों में धोखाधड़ियों तथा भ्रष्टाचार से संबंधित विभिन्न पहलुओं की जाँच करने के लिए समिति - प्रथमिक (शहरी) सहकारी बैंक |
5. |
शबैवि.सं.आयो.13/यूबी.81 / 92-93 |
15.9.1992 |
बैंकों का निवेश संविभाग - प्रतिभूतियों में लेनदेन |
6. |
शबैवि.सं.2420.जे.20/83-84 |
2.4.1984 |
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों में धोखाधड़ियां, दुर्विनियोजन, गबन तथा खयानत |
|