आरबीआई/2014-15/18
शबैंवि.केंका.बीपीडी (पीसीबी).एमसी.सं.9/12.05.001/2014-15
01 जुलाई 2014
मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
महोदया/ महोदय
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों में
निरीक्षण और लेखापरीक्षा प्रणालियों पर मास्टर परिपत्र
कृपया उपर्युक्त विषय पर 01 जुलाई 2013 का हमारा मास्टर परिपत्र शबैंवि.बीपीडी.(पीसीबी).एमसी. सं.9/12.05.001/2013-14 (भारतीय रिज़र्व बैंक की वेब साइट www.rbi.org.in पर उपलब्ध) देखें। संलग्न मास्टर परिपत्र में 30 जून 2014 तक जारी सभी अनुदेशों/ दिशानिर्देशों को समेकित और अद्यतन किया गया है तथा परिशिष्ट में उल्लिखित है।
भवदीय
(ए.के.बेरा)
प्रधान मुख्य महाप्रबंधक
संलग्नक: यथोक्त
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंको में निरीक्षण और लेखापरीक्षा प्रणालियाँ
पर मास्टर परिपत्र
विषय सूची
1. परिचय
1.1 यह पाया गया है कि बहुधा बैंकों का आंतरिक निरीक्षण तंत्र अनुचित ऋण मूल्यांकन करने, ऋण मंजूरी की शर्तों का पालन किए बिना संवितरण करने, संवितरण के पश्चात् उचित पर्यवेक्षण कर पाने में विफल होने, अनधिकृत रूप से अधिक आहरण की अनुमति देने, बिलों एवं चेकों में हेराफेरी आदि से संबंधित सूचनाओं को दबाने जैसी बड़ी एवं गंभीर अनियमितताओं को पकड़ने और उन्हें प्रमुखता से उजागर करने में नाकाम रहा है। आंतरिक निरीक्षण रिपोर्टों में विरले ही नियंत्रक/ प्रधान कार्यालयों के अधिकारियों की नाकामी पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी की जाती है। यह पाया गया है कि आंतरिक निरीक्षण/ लेखापरीक्षा रिपोर्टों के माध्यम से धोखाधड़ियों तथा कादाचारपूर्ण कृत्यों के बहुत कम मामले प्रकाश में आते हैं जिससे यह संकेत मिलता है कि निरीक्षण की गुणता में और सुधार लाने की गुंजाइश है। आंतरिक निरीक्षण तंत्र की विफलता का मुख्य कारण आंतरिक निरीक्षण से जुड़े कर्मचारियों की अक्षमता तथा कार्य करने का चलताऊ ढंग है। निरीक्षण पर अनुवर्ती कार्रवाई गंभीरता से नहीं की जाती है। ऐसे कार्मिक जिन्हें अन्य संवेदनशील/ महत्वपूर्ण क्षेत्रों नें तैनात नहीं किया जा सकता है, उन्हें निरीक्षण/ लेखापरीक्षा विभाग में लगा दिया जाता है।
2. आंतरिक निरीक्षण और लेखा परीक्षा पर घोष समिति की सिफ़ारिशें
भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों में धोखाधड़ियों तथा कदाचारपूर्ण कृत्यों से संबंधित विभिन्न पहलुओं की जांच करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के तत्कालीन उप गवर्नर श्री. ए. घोष की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। समिति ने अनेक सिफारिशें की थीं तथा बैंकों में धोखाधड़ी तथा कदाचारपूर्ण कृत्यों को रोकने के लिए बरती जानेवाली सावधानियां सुझाई थीं। भारतीय रिज़र्व बैंक ने उन सिफारिशों की समीक्षा की थी। प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों द्वारा अपनाए जाने के लिए समिति द्वारा संस्तुत कुछ सिफारिशें नीचे दर्शाई गई हैं :
2.1 आंतरिक लेखापरीक्षा तंत्र
बैंकों को आंतरिक लेखापरीक्षा की एक सुदृढ़ प्रणाली प्रारंभ करनी चाहिए। धोखाधड़ियों/कदाचारपूर्ण कृत्यों के मामलों का पता लगाने में निरीक्षण प्रणाली की विश्वसनीयता को मजबूत करने की दृष्टि से निरीक्षण/लेखा परीक्षा तंत्र को सशक्त बनाने और निरीक्षण विभाग के अधिकारियों की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए आवश्यक उपाय किए जाने की आवश्यकता है। मुख्यालय स्थित निरीक्षण विभाग का प्रमुख एक काफी वरिष्ठ अधिकारी होना चाहिए जो गतिविधियों की सूचना सीधे अध्यक्ष को दे। बैंक के यदि क्षेत्रीय कार्यालय भी हों तो उनके क्षेत्राधिकार में आने वाली शाखाओं की आवधिक लेखापरीक्षा करने के लिए क्षेत्रीय कार्यालय प्रमुख के रूप में काफी वरिष्ठता वाले एक अधिकारी के मातहत एक लेखापरीक्षा तंत्र होना चाहिए। इस विभाग में तैनात अधिकारियों के पास पर्याप्त अनुभव और जानकारी होनी चाहिए। विभाग का प्रमुख ऐसा अधिकारी हो जो काफी वरिष्ठ हो और उसकी निष्ठासिध्द हो चुकी हो। इस विभाग की तरफ सक्षम स्टाफ को आकर्षित करने के लिए निरीक्षण विभाग में कम से कम तीन वर्षों के सतत अनुभव को उच्च स्तर के वेतनमान में पदोन्नति की एक पूर्व आवश्यकता बना देना चाहिए।
2.2 आंतरिक लेखापरीक्षा की आवधिकता
शाखाओं की आंतरिक परीक्षा की आवधिकता 12 माह में कम से कम एक बार होनी चाहिए जो वास्तव में आकस्मिक स्वरूप की होनी चाहिए।
2.3 आंतरिक लेखापरीक्षा की व्याप्ति
2.3.1 इस प्रकार के निरीक्षणों की व्याप्ति को, अन्य बातों के साथ-साथ, नियंत्रक कार्यालयों को प्रस्तुत विभिन्न आवधिक नियंत्रण विवरणियों सहित शाखाओं में विद्यमान आंतरिक नियंत्रण प्रणाली की समग्र समीक्षा को शामिल करने के लिए और भी व्यापक बनाया जाना चाहिए। आंतरिक निरीक्षण रिपोर्ट में भारतीय रिज़र्व बैंक की निरीक्षण रिपोर्ट में इंगित अनियमितताओं की स्थिति पर विशेष रूप से टिप्पणी की जानी चाहिए। निरीक्षण/ लेखापरीक्षा अधिकारियों को निरीक्षण करने के दौरान ऋण-प्रस्तावों का मूल्यांकन, बहियों का मिलान, अंतर-शाखा लेखाओं का समायोजन, समाशोधन लेनदेनों के निपटान, उचंत लेखा, परिसरों एवं स्टेशनरी लेखा जैसे भ्रष्टाचार/ धोखाधड़ी प्रवण क्षेत्रों का भी सघन विश्लेषण तथा उनका गहराई से अध्ययन करना चाहिए ताकि पता न लगाए गए कदाचारपूर्ण कृत्यों/ अनियमितताओं की गुंजाइश न रहे।
2.3.2 आंतरिक निरीक्षक को निरीक्षण/ दौरे के दौरान उचंत खातों की संवीक्षा करनी चाहिए तथा प्रविष्टियों के शीघ्र प्रत्यावर्तन के लिए विशेष अनुदेश देने चाहिए।
2.3.3 बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तुलन-पत्र मदों से इतर लेनदेनों के ब्योरे रेकार्ड करने के लिए बनाई गई प्रणाली का सभी शाखाओं द्वारा समुचित रूप से अनुपालन किया जाता है। इन रेकार्डों का आवधिक रूप से मिलान किया जाना चाहिए तथा आंतरिक निरीक्षक को उसका सत्यापन करके उन पर विशेष टिप्पणी देनी चाहिए।
2.3.4 जड़ वस्तुओं, स्टेशनरी की समुचित-सूची रखी जानी चाहिए तथा शाखा के अधिकारियों तथा आंतरिक निरीक्षकों द्वारा उनकी आवधिक अंतरालों पर जांच की जानी चाहिए।
2.3.5 विवेकपूर्ण मानदंडों का अनुपालन
आंतरिक लेखा परीक्षकों को आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंडों का अनुपालन न किए गए मामलों को उजागर करना चाहिए ताकि उन मामलों में आवश्यक कार्रवाई की जा सके।
2.3.6 चेक खरीद संबंधी लेनदेन
आंतरिक निरीक्षकों को स्वीकृत सीमा से अधिक राशि के खरीदे/ भुनाए गए सभी चेकों का सत्यापन करना चाहिए। उससे लेनदेनों की नमूना जांच करने के लिए भी कहना चाहिए।
2.4 अनुपूरक निरीक्षण/ लेखापरीक्षा
वार्षिक आंतरिक निरीक्षण को विशेषत: बडे बैंकों के मामलों में छोटे छोटे आकस्मिक निरीक्षणों, राजस्व लेखापरीक्षा, ऋण संविभाग लेखापरीक्षा द्वारा संपूरित किया जाना चाहिए। छोटे आकस्मिक निरीक्षणों को यथोचित रूप से उच्च स्तरीय अधिकारियों द्वारा किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शाखा के कर्मचारी किसी भी तरह के बदनीयतीपूर्ण कृत्य में लिप्त नहीं हैं।
2.5 राजस्व लेखापरीक्षा
इस प्रकार की लेखापरीक्षा के दौरान पता चली आय में कमी के कारणों की गहराई से समीक्षा की जानी चाहिए और इन चूकों के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की जानी चाहिए।
2.6 ऋण संविभाग लेखापरीक्षा
2.6.1 बड़े आकार के शहरी सहकारी बैंकों में नियंत्रित अंतरालों पर बड़े अग्रिमों और सामूहिक ऋणों पर केंद्रित ऋण संविभाग की विस्तृत संवीक्षा की एक प्रणाली शुरू की जाए। दूसरे बैंकों से स्थानांतरित होकर आए महाप्रबधक/ मुख्य कार्यपालक अधिकारी/ प्रबंध निदेशकों सहित कार्यपालकों/ अधिकारियों के साथ अंतरित किए गए उच्च मूल्यवाले खातों की विशेष संवीक्षा की जानी चाहिए। उसी प्रकार, आंतरिक निरीक्षण के दौरान अधिकारियों के साथ - साथ शाखाओं से अंतरित होकर आए खातों की भी गहन संवीक्षा की जानी चाहिए। महत्वपूर्ण निष्कर्षों का सारांश निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति को प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
3. अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र
3.1 निवेश संविभाग लेखापरीक्षा
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के लिए निवेश संविभाग लेखा परीक्षा में निम्नलिखित उपायों को शामिल करना आवश्यक है :
3.1.1 आंतरिक लेखा परीक्षा विभाग द्वारा बैंक की बहियों के अनुसार एसजीएल अंतरण फार्मों के शेषों के समाधान की आवधिक जांच की जानी चाहिए।
3.1.2 दुरूपयोग की संभावना के मद्देनज़र सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री आदि की अलग से लेखा परीक्षा आंतरिक लेखा परीक्षकों (अंतरिक लेखा परीक्षकों की अनुपस्थिति में निबंधक, सहकारी सोसायटियां द्वारा बनाए गए पैनल के सनदी लेखापालों द्वारा) द्वारा कार्रवाई की जानी चाहिए तथा उनकी लेखा परीक्षाओं के परिणाम प्रत्येक तिमाही में एक बार निदेशक मंडल के समक्ष रखे जाने चाहिए।
3.1.3 लेखा परीक्षा में यह भी जांच करनी चाहिए कि:
- प्रत्येक अनुमोदित दलाल के लिए निर्धारित संपूर्ण उच्च सीमा का पालन, बैंक द्वारा एक वर्ष के दौरान किए गए कुल लेनदेनों (खरीद और बिक्री दोनों) के 5% की सीमा के भीतर है।
- यह सुनिश्चित करना चाहिए कि व्यवसाय के गैर-आनुपातिक भाग का लेनदेन किसी एक या कुछ दलालों द्वारा नहीं किया गया है और प्रत्येक अनुमोदित दलाल के लिए निर्धारित संपूर्ण संविदा सीमाओं का अतिक्रमण नहीं किया गया है। इस सीमा के भीतर बैंक द्वारा शुरू किए गए व्यवसाय को तथा दलाल द्वारा बैंक के लिए की गई पेशकश/ लाये गये व्यवसाय दोनों को शामिल करना चाहिए।
- सभी सौदे बैंक के सर्वोत्तम हित में किए गए हैं।
4. संगामी लेखापरीक्षा प्रणाली
4.1 घोष समिति ने शाखाओं की प्रशासनिक सहायता करने, निर्धारित प्रणालियों तथा प्रक्रियाओं का पालन करने और चूकों/ अनियमितताओं की रोकथाम एवं समय पर उनका पता लगाने में सहायता करने के लिए बैंकों की बड़ी और असामान्य रूप से बड़ी शाखाओं में संगामी लेखापरीक्षा शुरू करने की सिफारिश की थी। तदनुसार `50 करोड़ से अधिक की जमाराशि वाले अनुसूचित एवं अन्य प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के लिए संगामी लेखापरीक्षा प्रणाली शुरू करना आवश्यक था। तत्पश्चात् , संयुक्त संसदीय समिति, जिसने शेयर बाजार घोटालेएवं उससे जुड़े मामलों की जांच की थी, की सिफारिशों के आधार पर सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के लिए संगामी लेखापरीक्षा प्रणाली शुरू करना आवश्यक हो गया है।
4.2 संगामी लेखापरीक्षा प्रणाली को, अनियमितताओं और चूकों का समय पर पता लगाना जिससे शाखाओं में फर्जी लेनदेनों को रोकने में सहायता मिलती है, सुनिश्चित करने के लिए बैंक की पूर्व चेतावनी प्रणाली का एक भाग माना जाना चाहिए। इसलिए, बैंक प्रबंधन के लिए यह आवश्यक है कि वह समुचित और त्वरित प्रबंधकीय निर्णयों के लिए शाखाओं के चयन, व्यावसायिक परिचालनों की व्याप्ति, लेखापरीक्षकों की नियुक्ति, सूचना देने की समुचित प्रक्रियाओं, अनुवर्ती/ संशोधन प्रक्रियाओं और प्रणाली से प्राप्त प्रति-सूचना के उपयोग जैसे प्रणाली के विभिन्न पहलुओं के कार्यान्वयन पर गंभीर रूप से ध्यान दे।
4.3 निदेशक मंडल को प्रणाली की प्रभावकारिता की समीक्षा करनी चाहिए तथा वर्ष में एक बार प्रणाली के दोषों को सुधारने के आवश्यक उपाय करने चाहिए।
4.4 संगामी लेखापरीक्षा प्रणाली के ब्योरे निर्धारित करना मूल रूप से प्रत्येक बैंक के प्रबंध तंत्र का कार्य है। तथापि, बैंकों के दिशानिर्देश के लिए संगामी लेखापरीक्षा प्रणाली की सामान्य विशेषताएं दर्शाने वाला नोट अनुबंध 1 में प्रस्तुत है। इस नोट में संगामी लेखापरीक्षा की अवधारणा और क्षेत्र को विस्तारपूर्वक परिभाषित किया गया है, जैसे व्यवसाय/ शाखाओं की व्याप्ति, लेखा परीक्षा की सूचना देने वाली प्रणाली के अंतर्गत शामिल की जाने वाली गतिविधियों के प्रकार। इस नोट में संगामी लेखापरीक्षा के विभिन्न पहलुओं के बारे में भी विस्तार से बताया गया है।
4.5 यह अपेक्षा की गई है कि नोट में दिए गए सुझावों से विभिन्न बैंकों द्वारा शुरू कीजाने वाली प्रणालियों में कुछ एकरूपता सुनिश्चित होगी। एक संगामी लेखापरीक्षा प्रणाली बनाते समय बैंक पहले से ही मौजूद विभिन्न प्रकार के आंतरिक निरीक्षणों और लेखापरीक्षाओं तथा प्रस्तावित संगामी लेखापरीक्षा के बीच संबंधों को स्पष्ट करें।
4.6 संगामी परीक्षक यह प्रमाणित करें कि प्रत्येक तिमाही के सूचना देने के अंतिम शुक्रवार की स्थिति के संदर्भ में भारतीय रिज़र्व बैंक को दी गई सूचना के अनुसार बैंक द्वारा धारित निवेश भौतिक प्रतिभूतियों के रूप में प्रमाणित अभिरक्षक के विवरण के अनुसार बैंक द्वारा वास्तव में स्वाधिकृत/ धारित हैं। यह प्रमाणपत्र संबंधित तिमाही की समाप्ति से तीस दिन के भीतर भारतीय रिज़र्व बैंक के उस क्षेत्रीय कार्यालय को प्रस्तुत किया जाए जिसके क्षेत्राधिकार में उक्त बैंक आता है।
4.7 संगामी लेखापरीक्षकों को चाहिए कि वे सरकारी प्रतिभूतियों में लेनदेनों के बारे में 28 अप्रैल 2004 के परिपत्र शबैंवि.बीपीडी.एसयूबी.सं.5/09.80.00/2003-04 में निहित अनुदेशों के अनुपालन का विशेष रूप से सत्यापन करें।
4.8 संगामी लेखापरीक्षा रिपोर्ट में बताई गई गंभीर स्वरूप की अनियमिताताओं को इस विभाग के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को तुरंत सूचित किया जाए।
4.9 आंतरिक/संगामी लेखापरीक्षा कार्यों के लिए बैंक से संबद्ध सनदी लेखापालों/ लेखापरीक्षा फर्मों को एक ही समय में सांविधिक लेखापरीक्षा नहीं करनी चाहिए। आंतरिक/संगामी लेखापरीक्षा के लिए बैंक से संबद्ध फर्मों को वर्ष के दौरान सांविधिक लेखापरीक्षा कार्य स्वीकार करने से पहले आंतरिक/संगामी लेखापरीक्षा को त्यागना चाहिए।
5. इलेक्ट्रॉनिक डाटा प्रोसेसिंग प्रणाली के लिए लेखापरीक्षा (ईडीपी)
5.1 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक जिन्होंने आंशिक/ पूर्ण रूप से अपने परिचालनों को कंप्यूटरीकृत कर दिया है, को सतत आधार पर ईडीपी- लेखापरीक्षा प्रणाली शुरू करनी चाहिए। यदि इस प्रकार के बैंकों में स्वतंत्र निरीक्षण एवं लेखापरीक्षा विभाग हों तो कंप्यूटरीकृत परिचालन वाली शाखाओं/ कार्यालयों में ईडीपी लेखापरीक्षा करने के लिए उनके निरीक्षण और लेखापरीक्षा विभाग के एक भाग के रूप में एक ईडीपी लेखापरीक्षा कक्ष का गठन किया जाना चाहिए। तथापि, उन प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैकों को, जिनके पास कोई स्वतंत्र निरीक्षण और लेखापरीक्षा विभाग नहीं है, समर्पित व्यक्तियों का एक दल तैयार करना चाहिए जो, आवश्यकता पड़ने पर, एक ईडीपी लेखापरीक्षक के कार्य कर सके। इन ईडीपी लेखापरीक्षा कक्षों का समूचा नियंत्रण और पर्यवेक्षण लेखापरीक्षा समितियों के पास होना चाहिए। ईडीपी कार्यकलापों के संपूर्ण अधिकार-क्षेत्र को (नीति-निर्माण से लेकर कार्यान्वयन तक) निरीक्षण और लेखापरीक्षा विभाग की संवीक्षा के अंतर्गत लाया जाना चाहिए। ईडीपी विभाग के वित्तीय व्यय और उसके द्वारा निष्पादित किए जानेवाले कार्यों की समीक्षा वरिष्ठ प्रबंधन द्वारा आवधिक अंतरालों पर की जानी चाहिए।
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों को ईडीपी लेखापरीक्षा करते वक्त निम्न निर्धारित मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए।
5.2 सक्षम तथा अभिप्रेरित ईडीपी कर्मचारियों का एक दल तैयार किया जाए ताकि मुख्य व्यक्तियों की अनुपस्थिति में कार्य में बाधा न आए। ईडीपी लेखापरीक्षकों तकनीकी ज्ञान को संगोष्ठियों/ सम्मेलनों में उनकी प्रतिनियुक्ति, तकनीकी पत्रिकाओं एवं पुस्तकों की आपूर्ति आदि की सहायता से निरंतर बढ़ाते रहना चाहिए।
5.3 सिस्टिम प्रोग्रॅमर/ डिज़ाइनर के काम सिस्टिम परिचालित करनेवाले व्यक्ति को नहीं सौंपे जाने चाहिए। सिस्टिम तैयार करनेवाला व्यक्ति केवल प्रोगॅमों में संशोधन/ सुधार करेगा और सिस्टिम परिचालित करनेवाला व्यक्ति प्रोग्रॅम में फेरबदल के किसी अधिकार के बिना उसे केवल परिचालित करेगा। विभिन्न शाखाओं/ कार्यालयों द्वारा प्रयोग किए जा रहे साफ्टवेयर में एकरूपता लाने के लिए मानक साफ्टवेयर में परिवर्तन करने की एक निश्चित पद्धति होनी चाहिए और उसका अनुमोदन वरिष्ठ प्रबंधन द्वारा किया जाना चाहिए। नियंत्रण रखने की दृष्टि से और अन्य शाखाओं में एकरूपता बनाए रखने के लिए निरीक्षण और लेखा-परीक्षा विभाग को ऐसे परिवर्तनों का सत्यापन करना चाहिए।
5.4 कंप्यूटरों में सुरक्षा का उल्लंघन करनेवाले मुख्य घटक हैं - सिस्टिम का अपर्याप्त और अपूर्ण होना, प्रोग्रॅमिंग संबंधी त्रुटियां, कमजोर या अपर्याप्त अनुमति का प्रवेश नियंत्रण, क्रियाविधिगत नियंत्रणों का अभाव अथवा उनका निकृष्ट होना एवं अप्रभावी कर्मचारी पर्यवेक्षण और प्रबंध नियंत्रण। इन खामियों को निम्नलिखित द्वारा दूर किया जा सकता है:
- सिस्टिमों में भौतिक, तार्किक और क्रियाविधिगत पहुंच को सशक्त बनाना।
- गुणवत्ता के आश्वासन के लिए मानकों को लागू करना और उनकी जांच और परीक्षण करते रहना।
- ईडीपी अनुप्रयोग वाले क्षेत्रों में नियोजन से पहले कर्मचारियों की जांच-परख करना और उनके बर्ताव पर नज़र रखना।
- अवांछनीय घटकों के आक्रमण से कंप्यूटर सिस्टिम को बचाने के लिए एक उपयुक्त नियंत्रण प्रणाली लागू की जानी चाहिए।
5.5 किसी एक विशिष्ट हस्तचालित क्रियाविधि के स्थान पर ईडीपी अनुप्रयोग लागू करने से पहले यथोचित समयाविधि तक दोनों सिस्टिमों को एक साथ चलाकर ईडीपी अनुप्रयोग की सुरक्षा, विश्वसनीयता और उससे डाटा प्राप्त करने संबंधी सभी पहलुओं को सुनिश्चित कर लेना चाहिए।
5.6 यह सुनिश्चित करने के लिए कि ईडीपी अनुप्रयोग डाटा संपूरित करने, संसाधित करने एवं उत्पादन देने के लिए सुसंगत विश्वसनीय रूप से सुसज्ज हो गया है, डाटा के त्रुटिपूर्ण संसाधन का पता लगाने, डाटा की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने, डाटा के असंगत होने का पता लगाने और प्रत्यक्ष फार्मो से डाटा का मिलान करने हेतु विभिन्न परीक्षण अमल में लाए जाने चाहिए।
5.7 बैंक द्वारा अनुपालन की जानेवाली सिस्टम विकास प्रणाली, प्रोग्रॅमिंग और प्रलेखीकरण संबंधी मानदंडों की औपचारिक घोषणा की जानी चाहिए। ईडीपी लेखा-परीक्षकों को इसके अनुपालन की जांच कर लेनी चाहिए ।
5.8 सिस्टिम में खराबी आ जाने की स्थिति से निपटने के लिए आपातकालीन योजनाएं / क्रियाविधि लागू की जानी चाहिए और उनका आवधिक अंतरालों पर परीक्षण करते रहना चाहिए। ऐसी योजना कितनी प्रभावी हैं, इसका मूल्यांकन करने के लिए ईडीपी लेखा परीक्षकों को लेखापरीक्षा के दौरान ऐसी योजनाओं की जांच कर लेनी चाहिए ।
5.9 बाहरी कंप्यूटर एजेंसियों को काम सौंपते समय बैंक को संविदा में "कार्य-स्थल पर जाकर निरीक्षण करने के अधिकारों की शर्त" को शामिल करना चाहिए ताकि बैंक को अनुप्रयोग के कार्यान्वयन की प्रक्रिया के निरीक्षण के अधिकार हो और बाहरी एजेंसियों को दिए गए डाटा/ निविष्टियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
6. सूचना प्रणाली (आईएस) लेखापरीक्षा
शहरी सहकारी बैंकों ने प्रौद्योगिकी को अपनाया है और अपने ग्राहकों के लिए इलेक्ट्रोनिक बैंकिंग, टेली बैंकिंग, इलेक्ट्रोनिक समाशोधन/ निधि अंतरण, इलेक्ट्रोनिक मनी, स्मार्ट कार्ड आदि की सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं। उक्त को देखते हुए तथा प्रौद्योगिकी को अपनाने पर होने वाली जोखिम को देखते हुए शहरी सहकारी बैंकों के लिए आईएस लेखापरीक्षा की शुरुआत करने की ज़रूरत महसूस की गई है। अत: यह सूचित किया जाता है कि
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यदि अभी तक अपनाया नहीं गया है तो शहरी सहकारी बैंक अपने परिचालन का स्तर, व्यापार का पेचीदगी, और कंप्यूटरीकरण का स्तर को देखते हुए आईएस लेखापरीक्षा नीति को अपनाया जाए और समय समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार उसकी समीक्षा की जाए।
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सभी क्रिटिकली महत्वपूर्ण शाखाओं (व्यापार के प्रकार एवं मात्रा की दृष्टि से) को शामिल करते हुए वार्षिक आधार पर आईएस लेखापरीक्षा के प्रवर्तन के लिए शहरी सहकारी बैंकों द्वारा कार्यप्रणाली अपनाई जाए।
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इस प्रकार की लेखापरीक्षा को सांविधिक लेखापरीक्षा से पूर्व शुरू किया जाए ताकि आईएस लेखापरीक्षा के रिपोर्ट सांविधिक लेखापरीक्षकों को पहले ही प्राप्त हो सकें जिससे वे जांच कर सकें और लेखापरीक्षा रिपोर्ट में किसी प्रकार की टिप्पण होने की स्थिति में उसे समाहित किए जा सकें।
-
आईएस लेखापरीक्षा रिपोर्ट को बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किया जाना है और लेखापरीक्षा नीति में दर्शाए अनुसार के समय सीमा के अधीन अनुपालन सुनिश्चित किया जाना है।
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उक्त अनुदेश को वर्तमान वित्त वर्ष, अर्थात- 1 अप्रैल 2014 से 31 मार्च 2015 के दौरान कार्यान्वित किया जाए।
7. निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति (शीर्ष लेखापरीक्षा समिति)
7.1 भारतीय रिज़र्व बैंक समय-समय पर प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के निदेशकों द्वारा सांविधिक निरीक्षण/लेखापरीक्षा रिपोर्टों के निष्कर्षों की समीक्षा करने तथा उन पर कार्रवाई करने तथा उनकी अनुपालन रिपोर्ट को प्रस्तुत करने की आवश्यकता पर बल देता रहा है। फिर भी, ज्यादातर बैंकों में भारतीय रिज़र्व बैंक की निरीक्षण रिपोर्टों, सांविधिक लेखा परीक्षकों तथा आंतरिक निरीक्षण विभाग, सतर्कता कक्ष एवं आंतरिक लेखापरीक्षकों द्वारा प्रस्तुत निरीक्षण रिपोर्टों में की गई टिप्पणियों एवं दिए गए सुझावों की जाँच करने तथा उन पर अनुवर्ती कार्रवाई करने की कोई उचित प्रणाली नहीं है। भारतीय रिज़र्व बैंक तथा आंतरिक लेखापरीक्षा/निरीक्षण रिपोर्टों के निष्कर्षों तथा जारी दिशा - निर्देशों, परिपत्रों आदि पर समय पर की गई कार्रवाई बैंकों की संपूर्ण कार्यप्रणाली तथा परिचालनात्मक दक्षता को सक्रिय करने के लिए वांछनीय समझी जाती है।
7.2 एक प्रबंधकीय साधन के रूप में आंतरिक/निरीक्षण की प्रभावकारिता सुनिश्चित करने तथा उसमें वृद्धि करने के लिए यह आवश्यक समझा गया है कि आंतरिक लेखापरीक्षा/निरीक्षण तंत्र तथा प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के अन्य कार्यपालकों का पर्यवेक्षण करने तथा उन्हें दिशा देने के लिए बोर्ड स्तर की एक शीर्ष लेखा परीक्षा समिति गठित की जानी चाहिए। निदेशक मंडल की लेखा परीक्षा समिति में अध्यक्ष तथा तीन/चार निदेशक शामिल हों जिनमें से एक या अधिक निदेशक सनदी लेखापाल हों या उन्हें प्रबंधन, वित्त, लेखाविधि तथा लेखा परीक्षा प्रणाली, आदि का अनुभव प्राप्त हो। इसमें यह भी शामिल है कि बैंक, जहाँ आवश्यक हो, इतनी ही संख्या में इस प्रकार के व्यावसायिक अनुभव वाले लोगों का अपना निदेशक मंडल गठित कर सकता है।
7.3 निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन की समीक्षा करनी चाहिए और तिमाही अंतरालों पर उस पर एक नोट निदेशक मंडल को प्रस्तुत करना चाहिए ।
7.4 निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति के अन्य कार्य/जिम्मेदारियां निम्नलिखित हैं:
7.4.1 निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति को बैंक की लेखा परीक्षा संबंधी समग्र कार्य की देखरेख करनी चाहिए और आवश्यक निदेश देना चाहिए। लेखापरीक्षा के समग्र कार्यों में बैंक के भीतर आंतरिक लेखापरीक्षा और निरीक्षण का संचालन, परिचालन तथा गुणता नियंत्रण और बैंक की सांविधिक लेखा परीक्षा एवं रिज़र्व बैंक के निरीक्षण पर अनुवर्ती कार्रवाई शामिल होगी।
7.4.2 जहां तक आंतरिक लेखापरीक्षा का संबंध है, निदेशक मंडल की लेखापरीक्षा समिति को अनुवर्ती कार्रवाई के रूप में बैंक में लेखा परीक्षा संबंधी समस्त कार्यों के परिचालन, उसकी प्रणाली, उसकी गुणता तथा प्रभावकारिता की देखरेख करनी चाहिए और आवश्यक निर्देश जारी करने चाहिए। उसे विशेष रूप से "असंतोषजनक" शाखाओं तथा बैंक द्वारा अति विशाल शाखाओं के रूप में वर्गीकृत शाखाओं के आंतरिक निरीक्षण की रिपोर्टों पर की गई अनुवर्ती कार्रवाई की समीक्षा करनी चाहिए। उसे निम्नलिखित पर भी अपनी अनुवर्ती कार्रवाई को विशेष रूप से केंद्रित करना चाहिए :
- अंतर - शाखा खातों और अंतर - बैंक खातों में अनिर्णित एवं बहुलंबित प्रविष्टियाँ
- विभिन्न शाखाओं पर बहियों के मिलान संबंधी बकाया कार्य
- आंतरिक लेखा कार्य और व्यवस्था के अन्य मुख्य क्षेत्र
- सांविधिक लेखापरीक्षा रिपोर्टों/संगामी लेखापरीक्षा रिपोर्टों/भारतीय रिज़र्व बैंक की निरीक्षण रिपोर्टों का अनुपालन
गंभीर अनियमितताओं का पता लगाने में आंतरिक निरीक्षणकर्ता अधिकारियों की तरफ से हुई चूक
-
बैंक के खातों में और अधिक पारदर्शिता तथा लेखा संबंधी नियंत्रणों की पर्याप्तता सुनिश्चित करने की दृष्टि से बैंक की लेखाकरण नीतियों/प्रणालियों की आवधिक समीक्षा
परिशिष्ट
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों में निरीक्षण
और लेखापरीक्षा प्रणालियाँ
पर मास्टर परिपत्र
क. मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
क्र.सं. |
परिपत्र सं. |
दिनांक |
विषय |
1. |
शबैंवि.बीपीडी. परि. .71/12.09.000/2013-14 |
11.06.2014 |
शहरी सहकारी बैंकों के लिए सूचना प्रणाली (आईएस) लेखापरीक्षा की शुरुआत |
2. |
शबैवि.बीपीडी.केंका.परि.सं.35/12.05.001/2008-09 |
21.01.2009 |
बैंकों में सांविधिक लेखापरीक्षकों द्वारा आंतरिक लेखापरीक्षा |
3. |
शबैवि.बीपीडी.एसयूबी.परि.सं.5/09.80.00/2003-04 |
28.4.2004 |
सरकारी प्रतिभूतियों में लेनदेन |
4. |
शबैवि.बीएसडी.आईपी.सं.39/12.05.01/
2003-04 |
20.03.2004 |
संगामी लेखापरीक्षा - गंभीर स्वरूप की अनियमिताताएं |
5. |
बीपीडी.परि.36/09.06.00/2002-03 |
20.2.2003 |
संगामी लेखा परीक्षा |
6. |
बीपीडी.परि.37/09.06.00/2002-03 |
6.3.2003 |
निदेशक मंडल की लेखा परीक्षा समिती |
7. |
शबैवि.सं.बीएसडी.I.एसीसबी.4/12.05. 01/2000-01 |
10.4.2001 |
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों के लिए ऑफ साइट निगरानी की शुरूआत |
8. |
शबैवि.सं.आयो.एसयूबी.20/09.81.00/ 97-98 |
19.2.1998 |
सरकारी प्रतिभूतियों की फुटकर बिक्री (रीटेलिंग) |
9. |
शबैवि.सं.आयो.(पीसीबी) परि.32/09.06. 00/96-97 |
5.12.1996 |
(शहरी) सहकारी बैकों में संगामी लेखा परीक्षा प्रणाली - भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों में संशोधन |
10. |
शबैवि.सं.आयो.पीसीबी.19/09.29.00/ 1996-97 |
11.09.1996 |
बैंकों का निवेश संविभाग - अप्रयुक्त बीआर फार्मों की अभिरक्षा तथा नियंत्रण की प्रणाली |
11. |
शबैवि.सं.आयो.पीसीबी./29/09.29.00/95-96 |
21.6.1996 |
बैंकों का निवेश संविभाग - प्रतिभूतियों में लेनदेन |
12. |
शबैवि. सं.आयो.(पीसीबी)9/09.06.00/94 -95 |
25.7.1994 |
बैंकों में आंतरिक लेखा परीक्षा कार्य की निगरानी-निदेशक मंडलों की लेखा परीक्षा समिति स्थापित करना |
13. |
शबैवि.सं.पॉट.77/09.06.00/93-94 |
31.5.1994 |
बैंकों में धोखाधड़ियों तथा भ्रष्टाचार पर घोष समिति की सिफरिशों के अनुसार संगामी लेखा परीक्षा प्रणाली की शुरूआत |
14. |
शबैवि.सं.आयो.74/यूबी.81/92/93 |
17.5.1993 |
बैंकों का निवेश संविभाग-प्रतिभूतियों में लेन-देन |
15. |
शबैवि.सं.आईएवंएल.21/जे-1-87/88 |
20.7.1987 |
परिचालनें में हेराफेरी/चेकों की खरीद |
ख. उन परिपत्रों की सूची जिनमें से प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों में निरीक्षण तथा लेखापरीक्षा प्रणालियों से संबंधित अनुदेशों को भी मास्टर परिपत्र में समेकित किया गया है
क्र.सं. |
परिपत्र सं. |
दिनांक |
विषय |
1. |
शबैवि.सं.केंका.बीएसडी.I.पी.पीसीबी. 44/ 12.05.05/2000-2001 |
23.4.2001 |
बैंकों द्वारा निवेश के वर्गीकरण और मूल्यन के लिए दिशा-निर्देश |
2. |
शबैवि.सं.पॉट.परि.पीसीबी.39/09.29.00/ 2000-01 |
18.4.2001 |
प्राथमिक निर्गमों की नीलामी में आबंटित सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री |
3. |
शबैवि.सं.आयो.एसयूबी.20/09.81.00/ 97-98 |
19.2.1998 |
सरकारी प्रतिभूतियों की फुटकर बिक्री (रीटेलिंग) |
4. |
शबैवि.21/12.15.00/93-94 |
21.09.1993 |
बैंकों में धोखाधड़ियों तथा भ्रष्टाचार से संबंधित विभिन्न पहलुओं की जाँच करने के लिए समिति - प्रथमिक (शहरी) सहकारी बैंक |
5. |
शबैवि.सं.आयो.13/यूबी.81/ 92-93 |
15.9.1992 |
बैंकों का निवेश संविभाग - प्रतिभूतियों में लेनदेन |
6. |
शबैवि.सं.2420.जे.20/83-84 |
2.4.1984 |
प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों में धोखाधड़ियां, दुर्विनियोजन, गबन तथा खयानत |
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