22 मई 2016
भारत में मुक्त उद्यम को सुदृढ़ बनाना : रिज़र्व बैंक गवर्नर
“मुक्त उद्यम को बढ़ावा देने के मामले में भारत ने लंबा सफर तय किया है – छोटी दूकानों से लेकर इंटरनेट स्टार्ट-अप तक, उद्यमिता की भावना सक्रिय है। पिछले कुछ दशकों के मुकाबले अब कारोबार चलाना प्रतिष्ठा की बात है, और यह भावना बढ़ रही है। स्नातकधारी किसी प्रतिष्ठित कंसलटंसी या किसी बैंक में भर्ती होने के बजाय कारोबार शुरू करना या स्टार्टअप में काम करना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। इसके लिए बेहतर माहौल तैयार करना अब ज़रूरी है ताकि सबको अच्छे अवसर मिल सकें।” डॉ. रघुराम जी. राजन, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक ने भुवनेश्वर, ओडिशा में राज्य सरकार द्वारा आयोजित चौथे नॉलिज हब में मंत्रियों, अधिकारियों और बैंकरों को संबोधित करते हुए ऐसा कहा।
अपने व्याख्यान में गवर्नर ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत स्टार्टअप का परिवेश तैयार करने में कहां तक पहुंच पाया है और कहा कि इस दिशा में और कार्य किया जाना है। मुक्त उद्यम के पनपने के लिए आवश्यक तीन ऐतिहासिक परिस्थितियों, यथा- i) सहज प्रवेश व निकास के साथ समान अवसर क्षेत्र; ii) इनपुट और आउटपुट बाज़ारों तक पहुंच; तथा iii) संपत्ति की सुरक्षा अधिकार, के अलावा दो ऐसी परिस्थितियों, जोकि राजनीतिक रूप से व्यवहार्य हैं, का जिक्र किया, यथा- i) क्षमता की प्राप्ति के लिए अवसर बढ़ाना और ii) एक मूलभूत सुरक्षा व्यवस्था।
डॉ. राजन ने बताया कि भारत ने 1990 के दशक में लाइसेंस/पर्मिट राज की परिपाटी बंद कर दी थी और प्रवेश और प्रतिस्पर्धा के लिहाज से कारोबार के लिए अनुमति दी। हाल में सरकार ने स्पेक्ट्रम और कोयला खनन जैसे संसाधनों की पारदर्शी नीलामी करना शुरू किया है और इस प्रकार कतिपय संसाधनों के एकाधिकार को समाप्त कर दिया, अन्यथा संसाधन राज की अवधारणा पैदा हो जाती। सरकार ने स्टार्टअपों की कई प्रवेशगत अड़चनों को दूर करके इंसपेक्टर राज को कम किया है। साथ ही, उन्होंने प्रधान मंत्री द्वारा की गई पहल का उदाहरण दिया जिसके अंतर्गत एक मोबाइल ऐप के जरिए स्वप्रमाणन पर आधारित अनुपालन साकार हुआ है, जिससे स्टार्टअपों के लिए तीन वर्ष की अवधि के लिए कतिपय क्षेत्रों में विनियामकीय बोझ को कम हुआ है; तथा ‘वाइट’ श्रेणी के स्टार्टअपों के लिए पर्यावरण कानूनों का स्वप्रमाणन अनुपालन साकार हुआ है।
गवर्नर ने नए के रूप में भारांकित और विश्वभर के नए फर्मों से संबंधित वित्त पर भी प्रकाश डाला। तथापि, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के मानदंडों, विशेष रूप से सूक्ष्म और लघु उद्यमों को लक्ष्य बनाने के साथ-साथ मध्यम उद्यमों को शामिल करते हुए बैंक इस क्षेत्र को दिए गए ऋण के स्तर में काफी सुधार करने में सक्षम हुए हैं। उदाहरण के लिए, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के मानदंडों के अंतर्गत लघु और मध्यम उद्यमों को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा मार्च 2012 के अंत की स्थिति के अनुसार दिए गए ₹ 04 करोड़ की राशि काफी बढ़ोतरी दर्ज करते हुए मार्च 2015 के अंत की स्थिति के अनुसार ₹ 7 लाख करोड़ पर पहुंच गई। निजी क्षेत्र के बैंकों का कार्यनिष्पादन अपेक्षाकृत और अच्छा रहा, जिनके मामले में राशि इस अवधि में 109 हजार करोड़ से बढ़कर 232 हजार करोड़ पर पहुंच गई। मध्यम और लघु उद्यमों के ऋणों की बकाया राशि 2012 से 2015 तक की अवधि में जीडीपी के 6 प्रतिशत से बढ़कर जीडीपी के 7.7 प्रतिशत पर पहुंच गई। वीसी/पीई निधियन की राशि 2011 में दर्ज 250 मिलियन डॉलर से 2015 में 5500 मिलियन डॉलर पर पहुंच गई। गवर्नर लघु कारोबार के वित्तपोषण को आसान बनाने के लिए अन्य उपाय के तौर पर सरकार और रिज़र्व बैंक द्वारा की गई पहलों का उल्लेख किया।
उसके पश्चात गवर्नर ने नए फर्मों को लेकर रहने वाली कतिपय अनिश्चितताओं का उल्लेख किया, जैसे बुनियादी संरचना और लॉजिस्टिक्स। उन्होंने कहा कि ये लघु उद्यमों को प्रभावित कर रहे हैं। इसी प्रकार, भूमि अर्जन की समस्या भी नए फर्मों को प्रभावित कर रही है। तथापि, इन कानूनों में बदलाव लाने के लिए राज्यों के बीच होड़ रही। साथ ही, विपत्ति को त्वरित रूप से दूर करने, जैसे दिवालियापन संबंधी नई संहिता का अधिनियमित किया जाना, से विफल फर्मों को निर्बाध निकासी के लिए तथा अपने संसाधनों का पुनर्विनियोजन अधिक उपयोगी तरीके से करने में मदद मिलेगी।
गवर्नर ने स्टार्ट-अपों के लिए सरकार द्वारा निर्धारित सीमित व अनुमेय करों और 3 वर्ष के लिए दी गई आय कर छूट का उल्लेख करते हुए गवर्नर ने कहा कि कर मांगों को लेकर शेष रहने वाली अनिश्चितताओं को कम करना और कर प्रक्रिया के महत्वपूर्ण अंशों का ऑटोमेशन अब ज़रूरी हो गया है।
गवर्नर ने बताया कि लोगों को पर्याप्त शिक्षा और स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए क्षमता को बढ़ाना ज़रूरी है। उन्होंने कहा, “मुक्त उद्यम की दृष्टि से आम आदमी तब तक कोई माइना नहीं रखता जब तक वह नौकरी पाने या फर्म की स्थापना करने में सहभागिता नहीं कर सके”। उन्होंने कहा कि व्यावसायिक प्रशिक्षण सहित सरकार का स्किल इंडिया कार्यक्रम आवश्यक कौशल अर्जित करने की दिशा में की गई सही पहल है। इसके अलावा, गवर्नर ने बताया कि हमें व्यक्तियों के लिए किफायती मूलभूत सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए – बेरोज़गार बीमा, स्वास्थ्य की मूलभूत देखरेख तथा वृद्धावस्था पेंशन। उन्होंने कहा, “यदि बीमा शुरुआत में ही नहीं दिया जाए तो एक जनतांत्रिक समाज में वह एक समस्या बन सकता है” और उन्होंने यह भी कहा कि सुरक्षा व्यवस्था लोगों को जोखिम उठाने के लिए प्रोत्साहित करेगी, जिसके अभाव में लोग जोखिम से कतराते हैं।
अल्पना किल्लावाला
प्रधान परामर्शदाता
प्रेस प्रकाशनी: 2015-2016/2714 |