6 दिसंबर 2017
पांचवां द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2017-18
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का संकल्प
भारतीय रिज़र्व बैंक
मौद्रिक नीति समिति ने आज की अपनी बैठक में वर्तमान और उभरती समष्टिगत आर्थिक परिस्थितियों के आकलन के आधार पर यह निर्णय लिया है कि –
- चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत नीतिगत रिपो दर को 6.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा जाए।
परिणामस्वरूप, एलएएफ के तहत रिवर्स रिपो दर 5.75 प्रतिशत पर, और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर 6.25 प्रतिशत पर बरकरार रहती हैं।
एमपीसी का निर्णय मौद्रिक नीति के तटस्थ रुझान के अनुरूप है। इसका तारतम्य, वृद्धि को सहारा प्रदान करते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति के 4 प्रतिशत के मध्यावधिक लक्ष्य को +2/-2 प्रतिशत के दायरे में रखने रखने के उद्देश्य से भी है। इस निर्णय के समर्थन में प्रमुख विवेचनों का वर्णन नीचे दिए गए विवरण में किया गया है।
आकलन
2. अक्टूबर 2017 में एमपीसी की अंतिम बैठक से वैश्विक आर्थिक गतिविधि इस वर्ष की अंतिम तिमाही से मुख्य रूप से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) के कारण गति पकड़ रही है। अमेरिकी वृद्धि भूचालों के प्रति मुख्य रूप से लचीली रही और इसमें वर्ष 2017 की तीसरी तिमाही में पिछले तीन वर्षों में उच्चतम गति से वृद्धि हुई जिसमें निजी उपभोग, निवेश गतिविधि और निवल निर्यात का सकारात्मक योगदान रहा। बेरोजगारी दर अक्टूबर में कम होकर 4.1 प्रतिशत हो गई जो पिछले 17 वर्षों में सबसे कम है। यूरो क्षेत्र में, आर्थिक वृद्धि में विस्तार हुआ जिसे उदार मौद्रिक नीति और मजबूत नौकरी अभिलाभों से सहायता मिली। जापानी अर्थव्यवस्था भी तीसरी तिमाही में लगातार बढ़ती रही जिसमें मुख्य रूप से बाह्य मांग से सहायता मिली जिसने घरेलू उपभोग के धीमे होने की क्षतिपूर्ति में मदद की।
3. प्रमुख उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में सेवा क्षेत्र चीन में तीसरी तिमाही में वृद्धि का मुख्य संचालक रहा। तथापि, रियल एस्टेट और निर्माण गतिविधि में कमजोरी से वृद्धि में धीमापन रहा। ब्राजील में आवक आंकड़े बताते हैं कि तीसरी तिमाही में सुधार ने और गति पकड़ी जहां बेरोजगारी ने सितंबर में वर्ष के अंदर कम आंकड़े को छुआ। कारोबार और उपभोक्ता विश्वास अक्टूबर में बढ़ गया। रूस में, औद्योगिक उत्पादन में कमजोरी के चलते आर्थिक गतिविधि तीसरी तिमाही में नरम रही। दक्षिण अफ्रीका अर्थव्यवस्था कमजोर विनिर्माण गतिविधि, बेरोजगारी के बढ़े हुए स्तर और राजनीतिक अस्थिरता के कारण विपरीत परिस्थितियों का सामना करती रही।
4. तीसरी तिमाही के लिए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का नवीनतम आकलन कम होते निर्यात आदेशों के कारण वैश्विक व्यापार में गति का अभाव दर्शाता है। बाजार को पुनर्संतुलित करने के लिए पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) के प्रयासों के कारण नवंबर की शुरुआत में कच्चे तेल की कीमतें ढ़ाई वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। बुलियन कीमतें बढ़ते अमेरिकी डॉलर के कारण कुछ बिक्री दवाब में रही हैं। कमजोर गैर-तेल पण्य-वस्तुओं की कीमतें और नियंत्रित मजदूरी गतिकी ने कई उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखा है जबकि प्रमुख उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति परिदृश्य विविध रहा है।
5. वैश्विक वित्तीय बाजार में उछाल रहा जिसने उन्नत होता आर्थिक परिदृश्य और अमेरिकी फेडरल द्वारा मौद्रिक नीति का धीरे-धीरे सामान्यीकरण दर्शाया। इक्विटी बाजारों को उन्नत हुए कॉर्पोरेट अर्जन और अमेरिका में कर में बड़ी कटौतियों की प्रत्याशा से लाभ मिला है। हालांकि, इक्विटी बाजारों ने सामान्य रूप से उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में अभिलाभ प्राप्त किए हैं, कुछ देशों में इनको जोखिम से बचने की व्यवस्था करनी पड़ी। जबकि अधिकांश उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति दवाबों के अभाव में बॉन्ड प्रतिफल लगभग समान रहे हैं, किंतु देश-विशिष्ट कारकों की वजह से अधिकांश उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में इनमें बढ़ोतरी हुई हैं। मुद्रा बाजारों में, अमेरिकी डॉलर में वृद्धि हुई जबकि यूरो में सकारात्मक आर्थिक आंकड़ों के कारण उछाल नवंबर में राजनीतिक अनिश्चितता के कारण गायब हो गया। घरेलू कारकों की वजह से कई उभरती बाजार मुद्राएं कमजोर हो गईं। उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में जोखिम-प्रतिफल ट्रेड-ऑफ पर निवेशक की अवधारणाओं के आधार पर पूंजी प्रवाह विभिन्न देशों में अलग-अलग रहा है।
6. घरेलू मोर्चे पर, लगातार पांच तिमाहियों की मंदी के बाद संवृद्धित वास्तविक सकल मूल्य (जीवीए) वृद्धि वर्ष 2017-18 की दूसरी तिमाही में क्रमवार तेज हुई। ऐसा औद्योगिक गतिविधि में तेज अभिवृद्धि के कारण हुआ। उद्योग के सभी तीनों उप-क्षेत्रों ने उच्चतर वृद्धि दर्ज की। उद्योग के मुख्य घटक विनिर्माण क्षेत्र में जीवीए वृद्धि बढ़ी हुई मांग तथा वस्तु और सेवाकर (जीएसटी) के बात रि-स्टॉकिंग के कारण तेजी से बढ़ी। कोयला और प्राकृतिक गैस के उच्चतर उत्पादन के कारण दूसरी तिमाही में खनन क्षेत्र में वृद्धि हुई। उच्चतर मांग के कारण विद्युत, गैस, जलापूर्ति और अन्य उपयोगिता सेवा क्षेत्र में भी जीवीए वृद्धि मजबूत हुई। इसके विपरीत, कृषि और संबद्ध गतिविधियों में वृद्धि धीमी हुई जिसने प्रत्याशित से कम खरीफ फसल प्रतिलक्षित की। पहली तिमाही में सरकारी खर्च की बड़ी मात्रा में फ्रंट-लोडिंग के बाद मुख्य रूप से वित्तीय, बीमा, रियल एस्टेट और व्यावसायिक सेवाओं तथा लोक प्रशासन, रक्षा और अन्य सेवाओं (पीएडीओ) में मंदी के कारण सेवा क्षेत्र की गतिविधि में कमी आई। थोड़े सुधार के बावजूद, निर्माण क्षेत्र की वृद्धि आरईआरए तथा जीएसटी के कार्यान्वयन के क्षणिक प्रभावों के कारण धीमी रही। पिछली तिमाही की तुलना में दूसरी तिमाही में वृद्धि में कुछ मंदी के बावजूद व्यापार, होटलों, परिवहन और संचार उप-समूहों में वृद्धि लचीली रही। व्यय पक्ष पर, सकल स्थायी पूंजी निर्माण की वृद्धि में लगातार दूसरी तिमाही में सुधार हुआ। तथापि, निजी अंतिम उपभोक्ता व्यय, जो समग्र मांग का आधार है, दूसरी तिमाही में आठ तिमाहियों के सबसे नीचले स्तर पर पहुंच गया।
7. दूसरी तिमाही से आगे देखते हुए, तीसरी तिमाही में रबी की बुआई अब तक पिछले वर्ष की तुलनात्मक अवधि के दौरान बुआई रकबे से थोड़ी सी कम रही है। अक्टूबर से बारिश दीर्घावधि औसत (एलपीए) से लगभग 13 प्रतिशत कम रही है। प्रमुख जलाशय जो रबी की फसल के दौरान सिंचाई का मुख्य स्रोत हैं, पिछले वर्ष के 67 प्रतिशत की तुलना में पूरे जलाशय स्तर का 64 प्रतिशत रहें। सकारात्मक पक्ष पर, एक वर्ष पहले की तुलना में दलहन की बुआई काफी अधिक बढ़ी जो आंशिक रूप से दलहन की सभी किस्मों के लिए निर्यात प्रतिबंध हटाने के प्रभाव को दर्शाती है।
8. उपलब्ध उच्च-बारंबारता संकेतक तीसरी तिमाही के लिए औद्योगिक गतिविधि की मिश्रित तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। अक्टूबर में मुख्य उद्योगों की वृद्धि सपाट रही क्योंकि स्टील और उर्वरकों को छोड़कर सभी संघटकों में क्रमवार मंदी हुई। कोयला खनन जिसमें दूसरी तिमाही में मजबूती से पुनरुद्धार हुआ, में भी मंदी आई जबकि सीमेंट उत्पादन कम हो गया। इसके विपरीत, विनिर्माण के लिए परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) जिसमें अक्टूबर में गिरावट आई थी, उसमें आउटपुट और नए आदेशों के चलते नवंबर में सुधार हुआ। रिज़र्व बैंक के औद्योगिक संभावना सर्वेक्षण (आईओएस) के अनुसार तीसरी तिमाही में उत्पादन के बढ़ने की संभावना है क्योंकि आदेश बहियां बढ़ रही हैं।
9. सेवा क्षेत्र में गतिविधि अक्टूबर में मिश्रित रही है। परिवहन क्षेत्र में, वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री कम हुई, यात्री वाहन और दुपहिया वाहन संकुचन मोड में चले गए। इसके विपरीत, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्री और मालभाड़े ट्रैफिक तथा रेलवे मालभाड़े में काफी वृद्धि हुई। रिज़र्व बैंक का सर्वेक्षण संकेत करता है कि तीसरी तिमाही के लिए सेवा क्षेत्र की गतिविधि संबंधी भावनाएं सकारात्मक हैं और नवंबर में ऑटो बिक्री में सुधार हुआ है। दूसरी तरफ, सेवाओं के लिए पीएमआई नवंबर में संकुचन अंचल में चला गया।
10. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में वर्ष-दर-वर्ष बदलाव से आकलित खुदरा मुद्रास्फीति ने कुछ अनुकूल आधार प्रभावों द्वारा आंशिक रूप से सुदृढ़ गति में तेज वृद्धि के कारण अक्टूबर में सात महीने का उच्च स्तर दर्ज किया। खाद्य मुद्रास्फीति पिछले दो महीनों में अस्थिर रही जो सितंबर में कम हुई और अक्टूबर में मुख्य रूप से सब्जियों और फलों के कारणों वापस बढ़ गई। दूध और अंडों की मुद्रास्फीति ने वृद्धि दर्शाई जबकि दलहन की मुद्रास्फीति अक्टूबर में लगातार ग्यारहवें महीने के लिए नकारात्मक रही। खाद्य मुद्रास्फीति स्थायी रही। ईंधन समूह की मुद्रास्फीति जो जुलाई से बढ़ोतरी पथ पर रही है, उसमें तरल पेट्रोलियम गैस (एलपीजी), केरोसिन, कोक और विद्युत की मुद्रास्फीति में तेज वृद्धि के चलते और तेजी आई।
11. खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई मुद्रास्फीति जो जुलाई से सितंबर में बढ़ गई थी, वह अक्टूबर में स्थिर रही। यह केंद्रीय और राज्य सरकारों द्वारा पेट्रोलियम उत्पादों पर करों के वापस लेने के कारण पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में आई नरमी में दिखाई दी। तथापि, 7वें केंद्रीय वेतन आयोग अवार्ड के अतंर्गत केंद्रीय कर्मचारियों के लिए उच्चतर आवास किराया भत्तों के लागू होने के बाद आवास मुद्रास्फीति सख्त हो गई।
12. रिज़र्व बैंक के परिवार सर्वेक्षण ने आगामी तीन महीनों और एक वर्ष के नवीनतम दौर में मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को बढ़ना दर्शाया है। अक्टूबर में कृषि और औद्योगिक कच्चे माल की कीमतें बढ़ गई। रिज़र्व बैंक के औद्योगिक संभावना सर्वेक्षण पर प्रतिक्रिया देने वाली फर्म इनपुट कीमतों में वृद्धि को अपनी आउटपुट कीमतों में हस्तांतरित करने की आशा करती हैं। अन्य कीमतों की बात करते हुए, संगठित क्षेत्र में मजदूरी में वृद्धि हुई है जबकि ग्रामीण मजदूरी वृद्धि, विशेषकर कृषि में, कमजोर हुई है।
13. प्रणाली में अधिशेष चलनिधि अक्टूबर और नवंबर के दौरान कम होती रही। प्रचलित मुद्रा त्यौहारों पर मांग के कारण सितंबर के अंत से तीसरी तिमाही (1 दिसंबर 2017 तक) में ₹ 736 बिलियन तक बढ़ गई। रिज़र्व बैंक ने अधिशेष चलनिधि को ओवरनाइट से 28 दिवसीय नियमित परिवर्तनीय दर प्रतिवर्ती रेपो नीलामियों के माध्यम से व्यवस्थित किया। एलएएफ के अंतर्गत चलनिधि का निवल औसत दैनिक अवशोषण सितंबर में ₹ 2,229 बिलियन से घटकर अक्टूबर में ₹ 1,400 बिलियन और नवंबर में ₹ 718 बिलियन हो गया। रिज़र्व बैंक ने अक्टूबर-नवंबर में ₹ 300 बिलियन की खुली बाजार बिक्री आयोजित की जिससे वित्तीय वर्ष में अबतक टिकाऊ चलनिधि का कुल अवशोषण ₹ 1.9 ट्रिलियन तक हो गया जिसमें खुली बाजार बिक्री के रूप में ₹ 900 बिलियन और बाजार स्थिरीकरण योजना के अंतर्गत दीर्घावधि खज़ाना बिलों का 1 ट्रिलियन शामिल है। भारित औसत कॉल दर (डब्ल्यूएसीआर) सितंबर में रेपो दर के 13 आधार अंक कम की तुलना में अक्टूबर और नवंबर के दौरान क्रमशः 12 आधार अंक और 15 अंक कम पर ट्रेड की गई।
14. लगातार 14 माह तक सकारात्मक संवृद्धि दर्शाने के बाद अक्टूबर 2017 में मर्चेन्डाइज़ निर्यातों में 1.1 प्रतिशत की गिरावट रही। माह के दौरान इंजीनियरिंग माल, पेट्रोलियम उत्पादों और रसायनों में सुस्थिर बढ़ोतरी भी रत्न और आभूषणों, रेडीमेड परिधानों और ड्रग्स तथा फार्मास्युटिकल के शिपमेंट में तीव्र गिरावट से धूमिल पड़ गई। आयातों में विस्तार बना रहा यद्यपि इसकी गति मामूली थी। यद्यपि अक्टूबर में सवर्ण के आयात में अनुक्रमिक बढ़ोतरी हुई तथापि, एक साल पहले के स्तर की तुलना में संयमित रही। परिणामस्वरूप, अक्टूबर में व्यापार घाटा फिर बढ़ गया। सितंबर में संयमित रहने क बावजूद 2017-18 की पहली छमाही में निवल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश एक साल पहले के स्तर पर ही रहा। सरकारी क्षेत्र के बैंकों के लिए पुन: पूंजीकरण योजना की घोषणा के साथ ही इक्विटी में विदेशी पोर्टफोलियो का इन-फ्लो अक्टूबर में तेजी से बढ़ा, जबकि विगत माह में बहिर्वाह दर्ज हुआ था। भारत का विदेशी मुद्रा रिज़र्व 30 नवंबर 2017 को 401.94 बिलियन यूएस डालर था।
परिदृश्य
15. अक्टूबर के द्विमासिक विवरण में अनुमान थे कि इस साल की दूसरी छमाही में स्फीति बढ़कर 4.2-4.6 प्रतिशत के दायरे में रहेगी, जिसमें केन्द्र द्वारा मकान किराया भत्ते (एचआरए) में बढ़ोतरी के प्रभाव को भी शामिल किया गया था। हेडलाइन स्फीति परिणाम व्यापक तौर पर अनुमानों के अनुसार रहे। आगे चलकर स्फीति का पथ विभिन्न कारकों से प्रभावित होगा प्रथम यह कि खाद्य और ईंधन को शामिल नहीं करते हुए स्फीति में जो संयम 2017-18 की पहली तिमाही में दिखा था, वह कुल मिलाकर रिवर्स हो गया। ऐसा जोखिम है कि यह उर्घ्वगामी ट्रेजेक्टरी निकट काल में बनी रहेगी। द्वितीय यह कि केन्द्र सरकार द्वारा घोषित एचआरए का प्रभाव दिसंबर में अपने शीर्ष पर होने की संभावना है। तीसरे यह, कि कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में हाल ही में हुई बढ़ोतरी बरकरार रह सकती है, खासकर ओपेक के इस निर्णय को देखते हुए कि अगले साल भी उत्पादन में कटौती की जाए। ऐसे परिदृश्य में भू-राजनैतिक गतिविधियों के कारण आपूर्ति पर कोई भी प्रतिकूल आघात हुआ तो कीमतें और आगे जा सकती हैं। सब्जियों की कीमतों में हालिया बढ़ोतरी के बावजूद सर्दियों की फसल आते ही निकट में कुछ मौसमी संयमन संभावित है। दालों की कीमतों में अधोगामी रुझान जारी है। जीएसटी परिषद ने अपनी विगत बैठक में बहुत सी खुदरा वस्तुओं और सेवाओं को निम्नतर टैक्स-दायरे में कर दिया है, जो आगे चलकर कम खुदरा कीमतों में संपरिवर्तित होना चाहिए। कुल मिलाकर इस साल की तीसरी तिमाही और चौथी तिमाही में स्फीति के 4.3 – 4.7 प्रतिशत के दायरे में रहने का अनुमान है, जिसमें जोखिमों को सम-संतुलित करते हुए एचआरए से पढ़ने वाला 35 आधार अंकों का प्रभाव भी शामिल है (चार्ट 1)।
16. जीवीए अनुमान की बात करें तो पता चलता है कि दूसरी तिमाही में वृद्धि, अक्टूबर संकल्प में अनुमानित वृद्धि की अपेक्षा कम थी। तेल की कीमतों में हाल में जो वृद्धि हुई उसका फर्म एवं जीवीए वृद्धि के मार्जिन में नकारात्मक प्रभाव पडा। खरीफ के उत्पादन एवं रबी की बुआई में कमी की वजह से कृषि की संभावना को लेकर प्रत्याशित से भी ज्यादा जोखिम का डर है। सकारात्मक पहलू को देखें तो पता चलता है कि हाल के महीनों में ऋण वृद्धि ने थोड़ा जोर पकड़ा। सरकारी क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण से ऋण प्रवाह और बेहतर हो सकते हैं। स्थावर संपदा जैसे सेवा क्षेत्र के कतिपय घटकों में कमी होने के बावजूद, रिज़र्व बैंक का सर्वेक्षण संकेत देता है कि चौथी तिमाही में सेवा और इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्रों में, मांग, वित्तीय परिस्थिति एवं समग्र कारोबार स्थिति को लेकर सुधार की उम्मीद की जाती है। उपर्युक्त कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2017-18 के लिए 6.7 प्रतिशत की वास्तविक जीवीए वृद्धि के अक्टूबर संकल्प को बरकरार रखा गया, जिसमें जोखिम को अच्छी तरह से संतुलित किया गया (चार्ट 2)।
17. एमपीसी यह उल्लेख करती है कि उभरते हुए प्रक्षेप-पथ की सावधानी पूर्वक निगरानी करनी आवश्यक है। पहला, जीवन-यापन स्थितियों की लागत और मुद्रास्फीतिक प्रत्याशाओं का निर्धारण करने के दो प्रमुख कारकों अर्थात् खाद्य और ईंधन मुद्रास्फीति में नवंबर में मामूली बढ़ोतरी हुई है। रिज़र्व बैंक द्वारा सर्वेक्षण किए गए हाउसहोल्ड की मुद्रास्फीतिक प्रत्याशाएं पहले ही दृढ़ हो चुकी हैं और खाद्य तथा ईंधन के मूल्यों में होने वाली कोई भी वृद्धि इन प्रत्याशाओं को और मजबूत करेगी। दूसरा, बढ़ती हुई इनपुट लागतों का अल्पावधि में खुदरा मूल्यों में अंतरण होने का उच्चतर जोखिम है जैसा कि विभिन्न सर्वेक्षणों द्वारा संकेत प्रदान किया गया है। तीसरा, चुनिंदा राज्यों द्वारा कृषि ऋण माफी के क्रियान्वयन, पेट्रोलियम उत्पादों के मामले में उत्पाद शुल्क और वैट को आंशिक रूप से वापस लेना और कई वस्तुओं और सेवाओं के लिए जीएसटी की दरों में कमी के कारण राजस्व में कमी होने से राजकोषीय चूक परिणत हो सकती है जिसका सहायक प्रभाव मुद्रास्फीति पर पड़ सकता है। चौथा, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीति के सामान्य स्थिति में लौटने के संबंध में अस्थिरता/उसकी धीमी गति के कारण वैश्विक वित्तीय अस्थिरता एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में राजकोषीय विस्तार से मुद्रास्फीतिक जोखिम हो सकता है। सब्जियों और फलों के मूल्यों में आशा के अनुरूप होने वाली मौसमी कमी, जीएसटी परिषद द्वारा हाल में की गई जीएसटी कर दरों में कटौतियों से वृद्धिशील दबावों में कमी आने की संभावना है। तदनुसार, एमपीसी ने नीतिगत रेपो दर को बरकरार रखने का निर्णय लिया है। तथापि, उत्पादन अंतर प्रत्यावर्तनों (डॉयनेमिक्स) को ध्यान में रखते हुए एमपीसी ने तटस्थ रुख बनाए रखने और आगामी आंकड़ों पर सावधानीपूर्वक निगाह रखने का निर्णय लिया है। एमपीसी शीर्ष मुद्रास्फीति को टिकाऊ आधार पर 4 प्रतिशत के आस-पास बनाए रखने के लिए कटिबद्ध है।
18. मौद्रिक नीति समिति के आकलन में, हाल की अवधि में बहुत सी महत्वपूर्ण गतिविधियां होती रही हैं जो आगे चल कर वृद्धि की दृष्टि से शुभ संकेत मानी जा सकती हैं। प्रमुख गतिविधियां इस प्रकार रहीं - प्रथम, प्राथमिक पूंजी बाजार से उगाही गई पूंजी में कई वर्षों की मंद गतिविधि के बाद उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। चूंकि, उगाही गई पूंजी का अविनियोजन नई परियोजाएं स्थापित करने में किया गया इसलिए इससे अल्पावधि में मांग बढ़ेगी और मध्याविध में इसके कारण अर्थव्यवस्था की वृद्धि की अंतर्निहित क्षमता में बढ़ोत्तरी होगी। द्वितीय, कारोबार करने की सहूलियत के श्रेणी क्रम में सुधार होने के कारण अर्थव्यवस्था में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश बरकरार रखने में मदद मिलेगी। तृतीय, दबावपूर्ण बड़े उधारकर्ताओं को दिवाला और शोधन-अक्षमता संहिता (आईबीसी) के अंतर्गत लाया जा रहा है तथा सरकारी क्षेत्र के बैंकों का पुनर्पूंजीकरण किया जा रहा है, जिससे वितरण दक्षता में सुधार होना चाहिए। तथापि, मौद्रिक नीति समिति ने यह नोट करती है कि बकाया ऋणों के संबंध में पिछले मौद्रिक नीतिगत परिवर्तनों को बैंकों द्वारा बेहतर ढंग से लागू करते हुए घरेलू उधारियों की लागत में कमी लाकर इन घटकों के प्रभाव को मजबूत बनाया जा सकता है।
19. डॉ. चेतन घाटे, डॉ. पामी दुआ, डॉ. माइकल देबब्रत पात्र, डॉ. विरल वी. आचार्य और डॉ. उर्जित आर. पटेल मौद्रिक नीति निर्णय के पक्ष में थे, जबकि डॉ. रविंद्र एच. ढोलकिया ने नीतिगत दर में 25 आधाभूत अंकों की कमी करने के पक्ष में मत दिया। मौद्रिक नीति समिति के कार्यवृत्त 20 दिसंबर 2017 तक प्रकाशित किए जाएंगे।
20. मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक 6 और 7 फरवरी 2018 को होना निर्धारित किया गया है।
जोस जे. कट्टूर
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2017-2018/1542 |