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Date: 02/07/2012
प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्संरचना (पुनर्निर्माण) कंपनियों को जारी निदेशों/अनुदेशों पर मास्टर परिपत्र

भारिबैं/2012-13/21
गैबैंपवि.(नीति प्रभा.) कंपरि. नं.30 / एस सी आरसी/26.03.001/2012-13

2 जुलाई 2012

प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्संरचना (पुनर्निर्माण) कंपनियों को जारी निदेशों/अनुदेशों पर मास्टर परिपत्र

जैसा कि आप विदित है कि उल्लिखित विषय पर सभी मौजूदा अनुदेश एक स्थान पर उपलब्ध कराने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक मास्टर परिपत्र जारी करता है। बैंक द्वारा प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्संरचना कंपनियों को जारी परिपत्रों का 30 जुन 2012 तक का अद्यतित सारांश नीचे पुनरुत्पादित किया गया है। विस्तरित परिपत्र बैंक की वेबसाइट (http://www.rbi.org.in) पर भी उपलब्ध है।

भवदीया,

(उमा सुब्रमणियम)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक


अनुबंध

  1. प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी का कारोबार प्रारंभ करने/जारी रखने के लिए पंजीकरण प्रमाणपत्र हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत करना

    1 भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण प्रमाण पत्र चाहने वाली प्रतिभूतिकरण कंपनियाँ या पुनर्निर्माण कंपनियाँ रिज़र्व बैंक द्वारा विनिर्दिष्ट फार्मेट (7 मार्च 2003 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि.1/सीजीएम(सीएसएम)-2003 का अनुबंध) में अपने विधिवत भरे हुए आवेदन पत्र संबंधित अनुबंधों/ सपोर्टिंग दस्तावेजों के साथ प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक, गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग, केंद्रीय कार्यालय, भारतीय रिज़र्व बैंक, केंद्र -1, विश्व व्यापार केंद्र, कफ परेड, कोलाबा, मुंबई-400005 को प्रस्तुत करेंगी।

  2. प्रतिभूतिकरण या आस्ति पुनर्निर्माण कारोबार करने के लिए न्यूनतम स्वाधिकृत निधियों को बनाए रखना(मेनटेन करना)

    2 बैंक द्वारा 29 मार्च 2004 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि.4/सीजीएम(ओपीए)-2004 द्वारा जारी मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुसार प्रतिभूतिकरण या आस्ति पुनर्निर्माण का कारोबार प्रारंभ करने के लिए प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी को सकल आधार पर अपने द्वारा अर्जित की गई या अर्जित की जानेवाली कुल वित्तीय आस्तियों के 15% या 100 करोड़ रुपए में से जो भी कम हो, के स्तर तक न्यूनतम स्वाधिकृत निधियाँ बनाए रखनी होंगी, भले ही आस्तियाँ प्रतिभूतिकरण के प्रयोजन से स्थापित न्यास को अंतरित की गई हों या नहीं। इसके अलावा प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी इस स्तर तक स्वाधिकृत निधियाँ तब तक धारण किए रहेंगी जब तक कि आस्तियों की वसूली न हो जाए और ऐसी आस्तियों के बदले जारी प्रतिभूति रसीदों का भुगतान न हो जाए। प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी, न्यास द्वारा प्रत्येक योजना के अंतर्गत जारी प्रतिभूति रसीदों में (निवेशार्थ) इस राशि का उपयोग कर सकती हैं। इससे अर्जित की गई आस्तियों में प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी की हिस्सेदारी(स्टेक) सुनिश्चित हो सकेगी।

  3. प्रतिभूतिकरण कंपनियों/ पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा कारोबार प्रांरभ करना

    3 बैंक ने 19 अक्तूबर 2006 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि.6/मुमप्र(पीके)-2006 के द्वारा मार्गदर्शी सिद्धांत जारी किए हैं जिनके अनुसार प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी को पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदान किये जाने की तारीख से 6 माह के अंदर कारोबार प्रारंभ कर देना चाहिए। प्रतिभूतिकरण कंपनी/पुनर्निमाण कंपनी द्वारा आवेदन करने पर बैंक एतदर्थ 6 माह के बाद भी मुहलत दे सकता है जो किसी भी मामले में पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी होने की तारीख से 12 माह से अधिक नहीं होगी।

  4. प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा तिमाही विवरणों का प्रस्तुतीकरण

    4 वित्तीय आस्तियों के प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण एवं प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 की धारा 3(4) के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा अर्जित, प्रतिभूतिकृत तथा पुनर्निर्माणकृत आस्तियों के संबंध में तिमाही विवरण संबंधित तिमाही की समाप्ति से 15 दिनों के भीतर फार्मेट SCRC 1 तथा SCRC 2 में प्रस्तुत किए जाने हैं। ऐसा पहला विवरण 31 मार्च 2007 को समाप्त तिमाही के अनुसार प्रस्तुत होना था।

  5. प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों का विनियमन - प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा विवरणियों एवं लेखापरीक्षित तुलनपत्र का प्रस्तुतीकरण

    5 बैंक के पास पंजीकृत सभी प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण कंपनियों को सूचित किया गया था कि वे तिमाही विवरण SCRC 1 में मद सं. 1 के तहत स्वाधिकृत निधियों की स्थिति रिपोर्ट करें और प्रति वर्ष उस सामान्य बैठक जिसमें लेखापरीक्षित परिणाम अंगीकार किए जाते हैं, से एक माह के अंदर लेखापरीक्षित तुलनपत्र एवं निदेशकों की रिपोर्ट/लेखापरीक्षकों की रिपोर्ट की प्रतिलिपि भी प्रस्तुत करें जिसे 31 मार्च 2008 के लिए तैयार किये जाने वाले तुलनपत्र से प्रारंभ किया जाए।

  6. प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा बनाए गए न्यासों द्वारा जारी प्रतिभूति रसीदों में निवेश

    6 बैंक द्वारा जारी 20 सितंबर 2006 का अधिसूचना सं. गैबैंपवि.5/मुमप्र(पीके)-2006 में दिए गए मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुसार प्रतिभूतिकरण कंपनियाँ या पुनर्निर्माण कंपनियाँ एतदर्थ प्रवर्तित न्यासों की प्रत्येक योजना के तहत जारी प्रतिभूति रसीदों में तत्काल प्रभाव से 5% से न्यून राशि का निवेश करेंगी। जिन प्रतिभूतिकरण कंपनियों/ पुनर्निर्माण कंपनियों ने पहले ही प्रतिभूति रसीदें जारी कर रखी हैं, वे प्रत्येक योजना के तहत न्यूनतम अभिदान करने का लक्ष्य ऐसे मार्गदर्शी सिद्धांतों के जारी होने की तारीख से 6 माह में प्राप्त कर लें।

  7. प्रतिभूतिकरण कंपनी तथा पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा जारी प्रतिभूति रसीदों के निवल परिसपंत्ति मूल्य को घोषित करने के संबंध में मार्गदर्शी सिद्धांत

    7 विनिर्दिष्ट संस्थागत खरीददार प्रतिभूतिकरण कंपनी तथा पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा जारी प्रतिभूति रसीदों में किए गए अपने निवेश का मूल्य जान सकें, एतदर्थ वित्तीय आस्तियों के प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण एवं प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 के अंतर्गत बैंक के पास पंजीकृत प्रतिभूतिकरण कंपनी/यों तथा पुनर्निर्माण कंपनी/यों को सूचित किया गया था कि वे आवधिक अंतरालों पर प्रतिभूति रसीदों का निवल मूल्य घोषित करें।

  8. प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों का विनियमन- प्रतिभूति रसीदें जारी करते समय प्रकटीकरण

    8 इसके अलावा 28 मई 2007 के परिपत्र सं. गैबैंपवि.(नीति प्रभा) कंपरि. सं. 6/SCRC/ 10.30. 049/2006-07 के पैरा 7 में प्रतिभूतिकरण कंपनियों/ पुनर्निर्माण कंपनियों को सूचित किया गया था कि वे प्रस्ताव दस्तावेज में अतर्भूत परिसंपित्तयों के घटकों (बास्केट) के संबंध में प्रकटीकरण करें जिसमें आस्तियों के अर्जन, मूल्यन और जारी होने के समय उनके द्वारा दिए जाने वाले ब्याज का जिक्र हो ताकि प्रतिभूति रसीदों में निवेशक करने वाले निवेश करने का निर्णय समबूझ कर ले सकें।

  9. वित्तीय परिसपंत्तियों का प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण एवं प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम की धारा 3(4) के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत प्रतिभूतिकरण कंपनियों/पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा तिमाही विवरण का प्रस्तुतीकरण

    9 प्राप्त अनुभव के आधार पर, बैंक ने अपने पास पंजीकृत प्रतिभूतिकरण कंपनियों /पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले तिमाही विवरण एससीआरसी 1 तथा एससीआरसी 2 के फार्मेटों को संशोधित किया है। ये विवरण पहले की तरह ही संबंधित तिमाही की समाप्ति से 15 दिन के भीतर गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग, केंद्रीय कार्यालय, भारतीय रिज़र्व बैंक, दूसरी मंजिल, बी -विंग, सेंटर -1, विश्व व्यापार केंद्र, कफ परेड, कोलाबा, मुंबई-400005 को प्रस्तुत किए जाएं। ऐसा पहला विवरण, संशोधित फार्मेट में, 31 दिसंबर 2008 को समाप्त तिमाही से प्रस्तुत किया जाए।

  10. प्रतिभूतिकरण कंपनियों/ पुनर्संरचना कंपनियों (एससी/आरसी) द्वारा वित्तीय परिसंपत्तियों का अर्जन- स्पष्टीकरण

    10 एक प्रतिभूतिकरण कंपनी/ पुनर्संरचना कंपनी सरफायसी अधिनियम, 2002 की धारा 2(1)(सी) के उपबंधों के अंतर्गत न तो "बैंक" है और न उक्त अधिनियम की धारा 2(1)(एम) के उपबंधों के अंतर्गत एक "वित्तीय संस्था", अस्तु किसी एक प्रतिभूतिकरण कंपनी/ पुनर्संरचना कंपनी द्वारा किसी अन्य प्रतिभूतिकरण कंपनी/ पुनर्संरचना कंपनी से वित्तीय परिसंपत्तियों का अर्जन सरफायसी अधिनियम, 2002 के उपबंधों के अनुरूप नहीं होगा।

    किसी प्रतिभूतिकरण कंपनी/ पुनर्संरचना कंपनी द्वारा ऋणों की पुनर्संरचना उनके द्वारा अपनी प्राप्तियों की वसूली करने का एक विकल्प/साधन हैं। इसलिए, प्रतिभूतिकरण कंपनियों/पुनर्संरचना कंपनियों द्वारा अपनी प्राप्य राशियों की वसूली मात्र के प्रयोजन से अर्जित ऋण खातों की पुनर्संरचना करने के लिए अपनी निधियों के उपयोग पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

  11. अर्जित परिसंपत्तियों से वसूली-जारी प्रतिभूति रसीदों(SRs) के शोधन की समय-सीमा में विस्तार

    11 23 अप्रैल 2003 के "प्रतिभूतिकरण कंपनियाँ तथा पुनर्संरचना कंपनियाँ (रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत एवं निदेश, 2003 (जिसे इसके बाद मार्गदर्शी सिद्धांत कहा गया है ) के पैराग्राफ 7(6)(ii) में यह विनिर्दिष्ट किया गया है कि परिसंपत्तियों की पुनर्संरचना के लिए वसूली प्लान की अवधि प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्संरचना कंपनियों द्वारा परिसंपत्तियों के अर्जन की तारीख से 5 वर्ष से अधिक नहीं होगी। वित्तीय परिसंपत्तियों से वसूली विनिर्दिष्ट समयावधि में नहीं कर सकने वाली कतिपय प्रतिभूतिकरण कंपनियों एवं पुनर्संरचना कंपनियों ने बैंक से एतदर्थ समय विस्तार देने के लिए अभिवेदन किया था। प्राप्त अभिवेदनों के मद्देनजर, अंतरिम उपाय के रूप में, बैंक ने उन प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्संरचना कंपनियों को 2 वर्ष के और समय विस्तार की मंजूरी दी है जिन्हें प्रतिभूति रसीदें जारी किए पांच वर्ष का समय हो गया है और वे संबंधित वित्तीय परिसंपत्तियों से वसूली नहीं कर सकी हैं । मौजूदा मार्गदर्शी सिद्धांतों के पैराग्राफ 7(6)(ii) के उपबंध प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्संरचना कंपनियों द्वारा जारी अन्य सभी प्रतिभूति रसीदों के संबंध में लागू बने रहेंगे।

  12. प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन में परिवर्तन या के अधिग्रहण संबंधी (रिजर्व बैंक) मार्गदर्शी सिध्दांत, 2010

    12 भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने पास पंजीकृत प्रतिभूतिकरण कंपनियों/पुनर्निर्माण कंपनियों को इस मामले को हल करने के लिए वित्तीय परिसंपत्तियों के प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण और प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम (सरफायसी अधिनियम), 2002 की धारा 9(क) में विनिर्दिष्ट उपायों का आश्रय लेने हेतु प्रथम बार परिपत्र/मार्गदर्शी सिध्दांत जारी किए।

  13. प्रतिभूतिकरण कंपनी तथा पुनर्निर्माण कंपनी (रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश 2003

    13 बैंक ने प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों (एससी/आरसी) के लिए विनियामक ढांचा उपलब्ध कराने के लिए 23 अप्रैल 2003 को अधिसूचना सं. 2 जारी की थी। विगत वर्षों में अर्जित अनुभव एवं ऐसी कंपनियों को मार्गदर्शी सिद्धांतों का अनुपालन करने में आने वाली दिक्कतें को दूर करने के लिए अधिसूचना में निम्नलिखित परिवर्तन अधिसूचना की तारीख से लागू किए गए हैं।

    a. प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों को यह स्पष्ट किया जाता है कि एससी/आरसी परिसंपत्तियों का अपनी बहियों में या अपने द्वारा स्थापित ट्रस्ट की बहियों में सीधे अर्जन कर सकती हैं।

    b. प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा अर्जित परिसंपत्तियों की वसूली अवधि को उनका निदेशक बोर्ड, कतिपय शर्तों के अंतर्गत, पांच वर्ष से बढ़ाकर आठ वर्ष कर सकता है।

    c. प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों को नाबार्ड तथा सिडबी में उनकी बेशी निधियों के नियोजन के लिए अतिरिक्त रास्ते मुहैया कराए जाते हैं। प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों को उनके अपने उपयोग के लिए भूमि एवं भवन में निवेश की उच्चतम सीमा उनकी स्वाधिकृत निधियों के 10% विनिर्दिष्ट की गई है।

    d. यह विनिर्दिष्ट किया जाता है कि कोई भी परिसंपत्ति/सिक्युरिटी रसीद जो पांच वर्ष या आठ वर्ष के अंत तक अवसूलित/अप्रतिदेय बनी रहती है, अब से हानिगत परिसंपत्ति मानी जाएगी।

    e. प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों के कार्यों/परिचालनों में पारदर्शिता और बाजार अनुशासन लाने के दृष्टिकोण से - वर्ष के दौरान वसूल हुई परिसंपत्तियों, वर्ष के अंत तक वसूल न हो सकी वित्तीय परिसंपत्तियों के मूल्य, अदायगी के लिए लंबित प्रतिभूति रसीदों के मूल्य, आदि के संबंध में अतिरिक्त प्रकटीकरण करने के निर्धारण किये गये हैं।

  14. प्रतिभूतिकरण कंपनी तथा पुनर्निर्माण कंपनी (रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश 2003

    14 सितंबर 2006 की अधिसूचना सं. 5 में आंशिक संशोधन करते हुए यह अधिदेशात्मक किया जाता है कि प्रतिभूतिकरण कंपनी तथा पुनर्निर्माण कंपनी प्रतिभूतिकरण कंपनी/पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा प्रत्येक योजना एवं प्रत्येक श्रेणी (क्लास) के अंतर्गत जारी प्रतिभूति रसीदों के न्यूनतम 5% प्रतिभूति रसीदें सतत आधार पर धारण किए रहेंगी जब तक कि ऐसी योजना विशेष के अंतर्गत जारी सभी प्रतिभूति रसीदों की अदायगी नहीं हो जाती है।

  15. साख सूचना कंपनियों को सूचना प्रस्तुत करना

    15 साख सूचना कंपनियाँ (विनियमन) अधिनियम, 2005 की धारा 2 (च) (ii) के अनुसार प्रतिभूतिकरण कंपनियों/पुनर्संरचना कंपनियों को भी "साख संस्थाओं" में शामिल किया गया है। इसके अलावा साख सूचना कंपनियाँ (विनियमन) अधिनियम में अपेक्षा की गई है कि मौजूदा प्रत्येक साख संस्था कम से कम एक साख (क्रेडिट) सूचना कंपनी की सदस्य अवश्य बने। तदनुसार, साख संस्थाएं होने के नाते सभी प्रतिभूतिकरण कंपनियों/पुनर्संरचना कंपनियों से अपेक्षित है कि वे संविधि के अनुसार कम से कम एक साख (क्रेडिट) सूचना कंपनी की सदस्य अवश्य बनें।

  16. वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम 2002 (SARFAESI) के तहत केन्द्रीय इलेक्ट्रॉनिक रजिस्ट्री का गठन

    16 वित्त मंत्री का वर्ष 2011-12 के बजट भाषण में घोषणा के अनुवर्तन में , भारत सरकार , वित्त मंत्रालय ने 31 मार्च 2011 के यथा अधिसूचना संख्या एफ.नं: 56/05/2007-बीओ-II द्वारा अधिसूचित केन्द्रीय रजिस्ट्री को स्थापित कर दिया है. केन्द्रीय रजिस्ट्री के गठन का उद्देश्य , विभिन्न बैंकों से एक ही अचल संपत्ति पर एक से अधिक ऋण लिये जाने के ऋण मामले में होने वाली धोखा धडी को रोकना है. भारतीय केन्द्रीय आस्ति प्रतिभूतिकरण पुनर्गठन और प्रतिभूति हित रजिस्ट्री (CERSAI), कंपनी अधिनियम 1956 का धारा 25 के अंतर्गत एक लाइसेंसशुदा सरकारी कंपनी है जिसका गठन वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम 2002 (SARFAESI ACT ) के प्रावधानों के तहत केन्द्रीय रजिस्ट्री के परिचालन और रखरखाव के उद्देश्य से किया गया है.


प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों को जारी परिपत्रों की सूची

  1. 23 अप्रैल 2003 का सं. गैबैंपवि. नीति प्रभा.कंपरि. 1/SCRC/10.30/2002-2003

  2. 29 मार्च 2004 का सं. गैबैंपवि. नीति प्रभा.कंपरि. 2/SCRC/10.30/2003-04

  3. 20 सितंबर 2006 का सं. गैबैंपवि. नीति प्रभा. कंपरि. 3/ SCRC/10.30.000/2006-07

  4. 19 अक्तूबर 2006 का सं. गैबैंपवि.नीति प्रभा.कंपरि. 4/SCRC/10.30.000/2006-07

  5. 25 अप्रैल 2007 का सं. गैबैंपवि. (नीति प्रभा.) कंपरि. 5/ SCRC/10.30.000/2006-07

  6. 28 मई 2007 का गैबैंपवि. (नीति प्रभा.) कंपरि. 6/ SCRC/10.30.049/2006-07

  7. 5 मार्च 2008 का गैबैंपवि. (नीति प्रभा.) कंपरि. 8/ SCRC/10.30.000/2007-08

  8. 22 अप्रैल 2008 का गैबैंपवि. (नीति प्रभा.) कंपरि. 9/ SCRC/10.30.000/2007-08

  9. 26 सितंबर 2008 का गैबैंपवि.(नीतिप्रभा.)कंपरि. सं. 12 /10.30.000/2008-09

  10. 22 अप्रैल 2009 का गैबैंपवि./नीति प्रभा.(एससी/आरसी) कंपरि.सं. 13/ 26.03.001/2008-09

  11. 24 अप्रैल 2009 का गैबैंपवि.(नीति प्रभा.) कंपरि.सं. 14/SCRC/ 26.01.001/2008-09

  12. 21 अप्रैल 2010 का गैबैंपवि.(नीति प्रभा.) कंपरि.सं. 17/SCRC/ 26.03.001/2009-10

  13. 21 अप्रैल 2010 का गैबैंपवि.(नीति प्रभा.) कंपरि.सं. 18/SCRC/ 26.03.001/2009-10

  14. 21 अप्रैल 2010 का गैबैंपवि.(नीति प्रभा.) कंपरि.सं. 19/SCRC/ 26.03.001/2009-10

  15. 25 नवम्बर 2010 का गैबैंपवि (नीति प्रभा) कंपरि सं: 23/SCRC/ 26.03.001/2010-11

  16. 25 मई 2011 का गैबैंपवि (नीति प्रभा) कंपरि सं: 24/SCRC/ 26.03.001/2010-11

(परिपत्र संख्या: 7, 10,11,15,16,20,21,22, 25 तथा 26 को मास्टर परिपत्र के रूप में उनके संबंधित वर्ष में जारी किया गया था)


1 23 अप्रैल 2003 का गैबैंपवि.नीति प्रभा.कंपरि.1/SCRC/10.30/2002-2003

2 29 मार्च 2003 का गैबैंपवि.नीति प्रभा.कंपरि.2/SCRC/10.30/2003-2004

3 19 अक्तूबर 2006 का गैबैंपवि.नीति प्रभा.कंपरि.4/SCRC/10.30.000/2006-2007

4 25 अप्रैल 2007 का गैबैंपवि.नीति प्रभा.कंपरि.5/SCRC/10.30.000/ 2006-07

5 5 मार्च 2008 का  गैबैंपवि.नीति प्रभा.कंपरि.8/SCRC/10.30.000/ 2007-08

6 20 सिंतम्बर 2006 का गैबैंपवि.नीति प्रभा.कंपरि.3/SCRC/10.30.000/ 2006-07

7 28 मई 2007 का गैबैंपवि.नीति प्रभा.कंपरि.6/SCRC/10.30.049/ 2006-07

8 22 अप्रैल 2008 का गैबैंपवि.(नीति प्रभा) कंपरि.सं:9/SCRC/10.30.000/2007-08

9 26 सिंतम्बर 2008 का गैबैंपवि.(नीति प्रभा) कंपरि.सं:12 /SCRC/10.30.000/2008-09  

10 22 अप्रैल 2009 का गैबैंपवि.नीति प्रभा.(एससी/आरसी) कंपरि.सं: 13/26.03.001/2008-09

11 24 अप्रैल 2009 का गैबैंपवि.(नीति प्रभा) कंपरि.सं: 14/SCRC/26.01.001/2008-09  

12 21 अप्रैल 2010 का परिपत्र सं: गैबैंपवि(नीति प्रभा) कंपरि.सं: 17/SCRC/2009-10

13 21 अप्रैल 2010 का  परिपत्र सं: गैबैंपवि(नीति प्रभा) कंपरि.सं: 18/SCRC/2009-10

14 21 अप्रैल 2010 का  परिपत्र सं: गैबैंपवि(नीति प्रभा) कंपरि.सं: 19/SCRC/26.03.001/2009-10

15 25 नवम्बर 2010 का  परिपत्र सं: गैबैंपवि(नीति प्रभा) कंपरि.सं: 23/SCRC/26.03.001/2009-10

16 25 मई 2011 का परिपत्र सं: गैबैंपवि(नीति प्रभा) कंपरि.सं: 24/SCRC/26.03.001/2009-10

 
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