आरबीआई /2012-13/43
बैंपविवि.सं.सीआइडी. बीसी. 10/20.16.003/2012-13
2 जुलाई 2012
11 आषाढ़ 1934 (शक)
i) सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्थानीय क्षेत्र बैंकों को छोड़कर) तथा
ii) अखिल भारतीय अधिसूचित वित्तीय संस्थाएँ
महोदय
इरादतन चूककर्ताओं से संबंधित मास्टर परिपत्र
जैसा कि आप जानते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को समय समय पर ऐसे अनेक परिपत्र जारी किए हैं जिनमें इरादतन चूककर्ताओं से संबंधित विषयों पर अनुदेश निहित हैं । बैंकों/वित्तीय संस्थाओं को इस विषय पर सभी मौजूदा अनुदेश एक स्थान पर उपलब्ध कराने के लिए यह मास्टर परिपत्र तैयार किया गया है । इरादतन चूककर्ताओं के मामलों पर जारी किए गए अब तक लागू सभी अनुदेशों/दिशानिर्देशों को इस परिपत्र में शामिल किया गया है । यह मास्टर परिपत्र रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (http://www.rbi.org.in) पर भी उपलब्ध कराया गया है ।
भवदीय
(राजेश वर्मा)
मुख्य महाप्रबंधक
इरादतन चूककर्ताओं से संबंधित मास्टर परिपत्र
उद्देश्य
बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को सतर्क करने के लिए इरादतन चूककर्ताओं से संबंधित ऋण संबंधी सूचना प्रसारित करने की एक प्रणाली स्थापित करना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उन्हें और बैंक वित्त उपलब्ध नहीं कराया जाता है।
प्रयोज्यता:
यह सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा स्थानीय क्षेत्र बैंक को छोड़कर) तथा अखिल भारतीय अधिसूचित वित्तीय संस्थाओं पर लागू होगा।
संरचना :
1. प्रस्तावना
25 लाख रुपये और उससे अधिक राशि के इरादतन चूककर्ताओं के संबंध में रिज़र्व बैंक द्वारा जानकारी एकत्रित करने तथा सूचना देनेवाले बैंकों और वित्तीय संस्थाओं में इसका प्रसार करने के संबंध में केंद्रीय सतर्कता आयोग के अनुदेशों का अनुसरण करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 1 अप्रैल 1999 से प्रभावी एक योजना तैयार की गई जिसके अंतर्गत बैंकों और अधिसूचित अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाओं से यह अपेक्षा की गयी कि वे इरादतन चूककर्ताओं का विवरण भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करें । मोटे तौर पर, इरादतन चूक में निम्नलिखित को शामिल किया गया :
(क) पर्याप्त नकदी प्रवाह और अच्छी निवल मालियत के बावजूद इरादतन भुगतान नहीं करना;
(ख) निधियों का गलत ढंग से दूसरी जगह अंतरण जो चूककर्ता इकाई के लिए अहितकर है;
(ग) वित्तपोषित की गई परिसंपत्तियाँ या तो खरीदी नहीं गर्इं या बेच दी गर्इं तथा आगमों का दुरुपयोग किया गया ;
(घ) अभिलेखों का गलत ढंग से प्रस्तुतीकरण / मिथ्याकरण;
(ङ) बैंक को सूचित किये बिना प्रतिभूतियों का निपटान करना / उन्हें हटा देना;
(च) उधारकर्ता द्वारा धोखाधड़ी से भरे लेनदेन ।
तदनुसार बैंकों और वित्तीय संस्थाओं ने 31 मार्च 1999 के बाद हुए या पाये गये इरादतन चूक किये जाने के सभी मामलों को, तिमाही आधार पर सूचित करना प्रारंभ कर दिया। इसमें कुल 25 लाख रुपये और उससे अधिक बकाया राशि वाले सभी अनर्जक उधार खाते (निधीयन सुविधाएँ और ऐसी गैर-निधीयन सुविधाएँ जो कि निधीयन सुविधाओं में परिवर्तित कर दी गई हैं) शामिल हैं जिनकी पहचान कार्यपालक निदेशक की अध्यक्षता में दो महाप्रबंधकों/उप महाप्रबंधकों सहित उच्च अधिकारियों की एक समिति द्वारा इरादतन चूककर्ताओं के रूप में की गई थी। बैंकों/ वित्तीय संस्थाओं को सूचित किया गया था कि वे वाद दाखिल करने के लिए 1.00 करोड़ रुपये और उससे अधिक के इरादतन चूक करनेवाले सभी मामलों की जाँच करें तथा जहाँ भी चूक करनेवाले उधारकर्ताओं द्वारा ठगी/धोखाधड़ी की घटनाएँ पाएँ, वहाँ दंडात्मक कार्यवाही करने पर विचार करें । सहायता संघ/बहुविध उधार की स्थिति में बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को सूचित किया गया कि इरादतन चूक की सूचना अन्य सहभागी/वित्तपोषक बैंकों को भी दी जाए । विदेश स्थित शाखाओं में इरादतन चूक करने के मामले सूचित करना अपेक्षित है यदि मेजबान देश के कानून के अंतर्गत प्रकटीकरण की अनुमति प्राप्त हो ।
2. इरादतन चूककर्ताओं के संबंध में जारी किए गए दिशानिर्देश
इसके बाद, वित्तीय संस्थाओं के संबंध में वित्त पर संसदीय स्थायी समिति की 8वीं रिपोर्ट में वित्तीय प्रणाली में इरादतन चूक के बने रहने पर व्यक्त की गई चिंता को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार के साथ परामर्श से रिज़र्व बैंक ने उक्त समिति की कुछ सिफारिशों की जाँच करने के लिए भारतीय बैंक संघ के तत्कालीन अध्यक्ष श्री एस. एस. कोहली की अध्यक्षता में मई 2001 में `इरादतन चूककर्ताओं पर एक कार्यदल' (डब्ल्यूजीडब्ल्यूडी) गठित किया । इस कार्यदल ने नवंबर 2001 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की । इसके बाद, रिज़र्व बैक द्वारा गठित एक आंतरिक कार्यदल द्वारा कार्यदल की सिफारिशों की आगे और जाँच की गई । तदनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक ने 30 मई 2002 को योजना में और संशोधन किया ।
उपर्युक्त योजना अप्रैल 1994 में रिज़र्व बैंक के दिनांक 23 अप्रैल 1994 के परिपत्र बैंपविवि. सं. बीसी. सीआईएस/ 47/20.16.002/94 द्वारा लागू की गई बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के चूककर्ता उधारकर्ताओं संबंधी सूचना के प्रकटीकरण की योजना के अतिरिक्त है ।
2.1 इरादतन चूक की परिभाषा
"इरादतन चूक" शब्द को पूर्व में दी गई परिभाषा का अधिक्रमण करते हुए निम्नानुसार पुन: परिभाषित किया गया है :
निम्नलिखित में से किसी भी घटना के पाये जाने पर "इरादतन चूक" घटित मानी जाएगी :-
(क) इकाई ने उधारदाता के प्रति भुगतान /चुकौती दायित्व पूरा करने में चूक की है जबकि वह उपर्युक्त दायित्व पूरा करने की क्षमता रखती है ।
(ख) इकाई ने उधारदाता के प्रति भुगतान /चुकौती दायित्व पूरा करने में चूक की है तथा उधारदाता से प्राप्त वित्त को उन विशिष्ट प्रयोजनों के लिए उपयोग में नहीं लाया है जिनके लिए वित्त प्राप्त किया गया था, बल्कि निधि का विपथन अन्य प्रयोजनों के लिए किया है ।
(ग) इकाई ने उधारदाता के प्रति भुगतान /चुकौती दायित्व पूरा करने में चूक की है तथा निधि को गलत ढंग से अन्यत्र अंतरित (साइफनिंग) कर दिया है और उस विशिष्ट प्रयोजन के लिए उपयोग में नहीं लाया है जिसके लिए निधि प्राप्त की गई थी और न ही इकाई के पास अन्य आस्तियों के रूप में उक्त निधि उपलब्ध है ।
(घ) इकाई ने उधारदाता के प्रति भुगतान /चुकौती दायित्व पूरा करने में चूक की है तथा मीयादी ऋण की जमानत के प्रयोजन से उसने जो चल स्थायी आस्ति या अचल संपत्ति दी थी उसे भी बैंक/ उधारदाता को सूचित किये बिना हटाया है या बेच दिया है।
2.2 निधि का विपथन और गलत ढंग से अन्यत्र उपयोग (साइफनिंग) करना
"निधि का विपथन" और " निधि की साइफनिंग" शब्दों के निम्नलिखित अर्थ माने जाएँ :-
2.2.1 निधि का विपथन जो उपर्युक्त पैरा 2.1 (ख) में उल्लिखित है, तब माना जाएगा यदि निम्नलिखित में से कोई भी एक घटित होता हो :
(क) अल्पकालिक कार्यशील पूँजीगत निधियों का उपयोग दीर्घकालिक प्रयोजनों के लिए करना जो मंजूरी की शर्तों के अनुरूप न हो;
(ख) उधार ली गई निधियों का विनियोजन जिन प्रयोजनों / गतिविधियों के लिए ऋण मंजूर किया गया है उन्हें छोड़कर अन्य प्रयोजनों /गतिविधियों के लिए करना अथवा परिसंपत्तियों का निर्माण करना;
(ग) किसी भी तौर-तरीके से निधियों का अंतरण सहयोगी संस्थाओँ /समूह कंपनियों अथवा अन्य कंपनियों में करना;
(घ) उधारदाता की पूर्व अनुमति प्राप्त किये बिना निधियों को उधारदाता बैंक अथवा सहायता संघ के सदस्यों को छोड़कर किसी अन्य बैंक के माध्यम से प्रेषित करना;
(ङ) उधारदाताओं के अनुमोदन के बिना ईक्विटी/ऋण लिखत अर्जित करते हुए अन्य कंपनियों में निवेश करना;
(च) संवितरित / आहरित राशि की तुलना में निधियों के विनियोजन में कमी तथा अंतर का कोई हिसाब न देना ।
2.2.2 निधि की साइफनिंग जो उपर्युक्त पैरा 2.1(ग) में उल्लिखित है, को तब घटित माना जाए जब बैंकों/ वित्तीय संस्थाओं से उधार ली गई किसी भी निधि का उपयोग उधारकर्ता के परिचालनों से असंबद्ध किसी अन्य प्रयोजन के लिए किया जाए जो उस संस्था अथवा उधारदाता की वित्तीय स्थिति के लिए अहितकर हो। किसी विशिष्ट घटना का अर्थ निधि की साइफनिंग है अथवा नहीं, इसका निर्णय वस्तुपरक तथ्यों और मामले की परिस्थितियों के आधार पर उधारदाताओं के विनिश्चय पर निर्भर होगा।
इरादतन चूक की पहचान उधारकर्ताओं के पिछले रिकार्ड को ध्यान में रखते हुए की जानी चाहिए और इसका निर्णय इक्के-दुक्के लेनदेन / घटनाओं के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए । इरादतन चूक के रूप में वर्गीकृत की जानेवाली चूक आवश्यक रूप से साभिप्राय, बुद्धिपूर्वक और सोच-समझकर की गई चूक होनी चाहिए ।
2.3 उच्चतम सीमाएँ
यद्यपि नीचे पैरा 2.5 में निर्दिष्ट किये गये दंडात्मक उपाय सामान्यत: इरादतन चूककर्ताओं के रूप में पहचान किये गये सभी उधारकर्ताओं अथवा निधियों के विपथन / साइफनिंग में लिप्त प्रवर्तकों पर लागू होते हैं, बैंकों / वित्तीय संस्थाओं द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक को इरादतन चूक के मामलों की सूचना देने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा निर्धारित 25 लाख रुपये की वर्तमान सीमा को ध्यान में रखते हुए 25 लाख रुपये अथवा उससे अधिक की बकाया शेष राशि के किसी भी इरादतन चूककर्ता पर नीचे पैरा 2.5 में निर्धारित दंडात्मक उपाय लागू होंगे। 25 लाख रुपये की यह सीमा निधियों के `साइफनिंग' / `विपथन' की घटनाओं की पहचान करने के प्रयोजन के लिए भी लागू होगी ।
2.4 निधियों का उद्दिष्ट उपयोग
परियोजना वित्तपोषण के मामलों में बैंक /वित्तीय संस्थाएँ निधियों के उद्दिष्ट उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए अन्यबातोंकेसाथ-साथ इस प्रयोजन के लिए सनदी लेखाकारों से प्रमाणीकरण की भी माँग करें। अल्पकालीन कंपनी /बेजमानती ऋणों के मामले में, इस दृष्टिकोण के पूरक के रूप में उधारदाताओं द्वारा स्वयं `उचित सावधानी' बरती जानी चाहिए, तथा इस प्रकार के ऋण यथासंभव ऐसे उधारकर्ताओं तक ही सीमित होने चाहिए जिनकी ईमानदारी और विश्वसनीयता उपयुक्त स्तर तक हो । अत: बैंक और वित्तीय संस्थाएँ पूर्णत: सनदी लेखाकारों द्वारा जारी प्रमाणपत्रों पर ही निर्भर न रहें, बल्कि वे अपने ऋण संविभाग की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए अपने आंतरिक नियंत्रण तथा ऋण जोखिम प्रबंध प्रणाली को मजबूत बनाएं।
कहने की आवश्यकता नहीं कि बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा निधियों के उद्दिष्ट प्रयोग को सुनिश्चित करना उनके ऋण नीति प्रलेख का अंग होना चाहिए जिसके लिए उचित उपाय किये जाने चाहिए । निधियों का उद्दिष्ट उपयोग सुनिश्चित करने तथा इसकी निगरानी के लिए उधारकर्ताओं द्वारा किये जाने हेतु नीचे उदाहरण स्वरूप कुछ उपाय दिये जा रहे हैं :
(क) उधारकर्ताओं की तिमाही प्रगति रिपोर्टों /परिचालन विवरणों /तुलन-पत्रों की सार्थक जाँच;
(ख) उधारदाताओं को जमानत के रूप में प्रभारित की गई उधारकर्ताओं की परिसंपत्तियों का नियमित रूप से निरीक्षण;
(ग) उधारकर्ताओं की खाता बहियों और अन्य बैंकों के पास रखे गए ग्रहणाधिकार रहित (नो-लियन) खातों की आवधिक संवीक्षा;
(घ) सहायताप्राप्त यूनिटों के आवधिक दौरे;
(ङ) कार्यशील पूँजी वित्त के मामले में स्टॉक की आवधिक लेखा-परीक्षा की प्रणाली;
(च) उधारदाताओ के `ऋण' कार्य की आवधिक तौर पर व्यापक प्रबंध लेखा-परीक्षा, जिससे ऋण-व्यवस्था में विद्यमान प्रणालीगत कमजोरियों की पहचान की जा सके ।
(कृपया यह ध्यान रखें कि उपायों की यह सूची केवल उदाहरण स्वरूप है और किसी भी प्रकार से संपूर्ण नहीं है ।)
2.5 दंडात्मक उपाय
पूँजी बाजार में इरादतन चूककर्ताओं की पहुँच को रोकने के लिए इरादतन चूककर्ताओं (वाद दाखिल न किये गये खाते) की सूची और इरादतन चूककर्ताओं (वाद दाखिल खाते) की सूची की एक-एक प्रति सेबी को क्रमश:भारतीय रिज़र्व बैंक और क्रेडिट इन्फर्मेशन ब्यूरो(इंडिया) लि. (सिबिल) द्वारा भेजी जाती है ।
बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा उपर्युक्त पैरा 2.1 पर निर्दिष्ट परिभाषा के अनुसार अभिनिर्धारित इरादतन चूककर्ताओं के विरुद्ध निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए :
क) किसी भी बैंक /वित्तीय संस्था द्वारा सूचीबद्ध इरादतन चूककर्ताओं को कोई अतिरिक्त सुविधा मंजूर नहीं की जानी चाहिए । इसके अतिरिक्त, जहाँ बैंकों / वित्तीय संस्थाओं ने उद्यमियों / कंपनियों के प्रवर्तकों द्वारा निधियों का विपथन, उनका गलत ढंग से दूसरी जगह अंतरण, गलत जानकारी देना, लेखों का मिथ्याकरण और धोखाधड़ी वाले लेनदेनों का पता लगाया हो, वहाँ उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इरादतन चूककर्ताओं की सूची में, इरादतन चूककर्ताओं के नाम प्रकाशित होने की तारीख से 5 वर्ष के लिए नये उद्यम शुरू करने के लिए अनुसूचित वाणिज्य बैंकों / विकास वित्तीय संस्थाओं, सरकार के स्वामित्ववाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, निवेश संस्थाओं आदि की ओर से संस्थागत वित्त से विवर्जित करना चाहिए ।
(ख) जहाँ आवश्यक हो, वहाँ उधारकर्ताओं / गारंट़ीकर्ताओं के खिलाफ विधिक कार्यवाही तथा प्राप्य राशियों की वसूली के लिए मोचन-निषेध लगाने की कार्यवाही त्वरित रूप से करनी चाहिए । जहाँ भी आवश्यक हो, वहाँ उधारदाता इरादतन चूककर्ताओं के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही प्रारंभ कर सकते हैं ।
(ग) जहां भी संभव हो, वहां बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को इरादतन चूक करनेवाली उधारकर्ता इकाई के प्रबंध तंत्र के परिवर्तन के लिए व्यवहार्य दृष्टिकोण अपनाना चाहिए ।
(घ) उन कंपनियों के साथ, जिनमें बैंकों /अधिसूचित वित्तीय संस्थाओं का उल्लेखनीय जोखिम निहित हो, किए जानेवाले ऋण करारों में बैंकों /वित्तीय संस्थाओं द्वारा इस आशय का एक प्रतिज्ञापत्र शामिल किया जाए कि उधारकर्ता कंपनी ऐसे किसी व्यक्ति को प्रवेश न दे जो उपर्युक्त पैरा 2.1 में दी गई परिभाषा के अनुसार इरादतन चूक करनेवाली कंपनी के रूप में अभिनिर्धारित किसी कंपनी का प्रवर्तक या उसके बोर्ड पर निदेशक हो तथा यदि यह पाया जाता है कि ऐसा व्यक्ति उधारकर्ता कंपनी के बोर्ड पर है, तो वह अपने बोर्ड से उस व्यक्ति को हटाने के लिए शीघ्र और प्रभावी कदम उठाएगी।
बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के लिए यह अनिवार्य होगा कि वे समूची प्रक्रिया के लिए एक पारदर्शी तंत्र कायम करें ताकि दंडात्मक प्रावधानों का दुरुपयोग न हो तथा ऐसे विवेकाधिकारों की व्याप्ति को बिलकुल न्यूनतम रखा जा सके । यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी एकमात्र अथवा इक्के-दुक्के उदाहरण को दंडात्मक कार्यवाही करने के लिए आधार न बनाया जाए ।
2.6 समूह कंपनियों द्वारा दी गई गारंटियाँ
किसी समूह में एक उधारकर्ता कंपनी द्वारा इरादतन की गई चूक के संबंध में कार्यवाही करते समय बैंकों / वित्तीय संस्थाओं को चाहिए कि वे एकल कंपनी द्वारा अपने उधारदाताओं को ऋण की चुकौती संबंधी व्यवहार के संदर्भ में उसके पिछले रिकार्ड को भी ध्यान में रखें। तथापि, उन मामलों में जहाँ इरादतन चूककर्ता इकाइयों की ओर से समूह के भीतर कंपनियों द्वारा दिये गये आश्वासन पत्र (लेटर ऑफ कम्फर्ट) और /या दी गई गारंटियों को बैंकों /वित्तीय संस्थाओं द्वारा अपेक्षा करने पर भुगतान नहीं किया गया हो, ऐसी समूह कंपनियों को भी इरादतन चूककर्ता कंपनियों के रूप में गिना जाना चाहिए ।
2.7 लेखा-परीक्षकों की भूमिका
यदि बैंकों /वित्तीय संस्थाओं द्वारा उधारकर्ताओं की ओर से जाली हिसाब की प्रस्तुति पायी जाती है तथा यह देखा जाता है कि लेखा-परीक्षा करने में लेखा-परीक्षक लापरवाह अथवा अक्षम हैं, तो उन्हें चाहिए कि वे भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान (आईसीएआई) के पास उधारकर्ताओं के लेखा-परीक्षकों के विरुद्ध औपचारिक शिकायत दर्ज करें जिससे आईसीएआई जाँच-पड़ताल कर उक्त लेखा-परीक्षकों की जवाबदेही तय कर सके ।
निधियों के उद्दिष्ट उपयोग की निगरानी के उद्देश्य से यदि उधारदाता यह चाहते हैं कि उधारकर्ता द्वारा निधियों के विपथन / गलत ढंग से दूसरी जगह उनके अंतरण के संबंध में उधारकर्ता के लेखा-परीक्षकों से विशिष्ट प्रमाणीकरण प्राप्त करें, तो उधारदाता को चाहिए कि वे इस प्रयोजन के लिए लेखा-परीक्षकों को अलग अधिदेश (मैंडेट) दें । लेखा-परीक्षकों द्वारा इस प्रकार के प्रमाणीकरण को सुसाध्य बनाने के लिए बैंकों / वित्तीय संस्थाओं के लिए यह सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता होगी कि ऋण करारों में उपयुक्त प्रतिज्ञापत्र शामिल किए जाएँ जिससे उधारदाताओं द्वारा उधारकर्ताओं / लेखा-परीक्षकों को इस प्रकार का अधिदेश दिया जा सके ।
2.8 आंतरिक लेखा-परीक्षा / निरीक्षण की भूमिका
उधारकर्ताओं द्वारा निधियों के विपथन के पहलू पर उनके कार्यालयों / शाखाओं की आंतरिक लेखा-परीक्षा / निरीक्षण करते समय पर्याप्त रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए तथा इरादतन चूककर्ताओं के मामलों पर आवधिक समीक्षा बैंक की लेखा-परीक्षा समिति को प्रस्तुत की जानी चाहिए ।
2.9 भारतीय रिज़र्व बैंक / ऋण सूचना कंपनियों को सूचना देना
बैंकों / वित्तीय संस्थाओं को चाहिए कि वे 25 लाख रुपये और उससे अधिक राशि के इरादतन चूककर्ताओं के वाद दाखिल खातों की सूची प्रति वर्ष मार्च, जून, सितंबर और दिसंबर की समाप्ति पर उस ऋण सूचना कंपनी को प्रस्तुत करें, जिसने ऋण सूचना कंपनी (विनियम) अधिनियम, 2005 की धारा 5 के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीयन प्रमाणपत्र प्राप्त किया है और जिस ऋण सूचना कंपनी का संबंधित बैंक/वित्तीय संस्था सदस्य है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने उक्त अधिनियम और उसके अंतर्गत बने नियमों और विनियमावली द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए (i) एक्सपीरियन क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनी ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (ii) इक्विफैक्स क्रेडिट इन्फॉर्मेशन सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड (iii) हाई मार्क क्रेडिट इन्फॉर्मेशन सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड और (iv) क्रेडिट इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (इंडिया) लिमिटेड (सिबिल) को ऋण सूचना का कारोबार आरंभ करने/जारी रखने के लिए पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदान किया है | तथापि, बैंक /वित्तीय संस्थाएँ, जहाँ वाद दाखिल नहीं किये गए हैं, वहाँ इरादतन चूककर्ताओं की तिमाही सूची अनुबंध 1 में दिए गए फार्मेट में केवल भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करें । ऋण सूचना कंपनियों को यह भी सूचित किया गया है कि वे अपनी वेबसाइटों पर इरादतन चूककर्ताओं के वाद दाखिल खातों की सूचना प्रसारित करें।
स्पष्टीकरण
इस संबंध में यह स्पष्ट किया जाता है कि निम्नलिखित मामलों की सूचना देना बैंकों के लिए आवश्यक नहीं है :
(i) जब बकाया राशि 25 लाख रुपये से कम हो जाए और
(ii) ऐसे मामले जिनमें बैंक समझौता निपटान के लिए सहमत हुए हैं और उधारकर्ता ने समझौता राशि का पूरा भुगतान कर दिया है।
3. शिकायत निवारण प्रणाली
बैंक / वित्तीय संस्थाएँ इरादतन चूक के दृष्टांतों की पहचान करने और सूचना देने के संबंध में निम्नलिखित उपाय करें : कार्यवाही
(i) इरादतन चूक करने के मामलों की पहचान करने में अधिक वस्तुपरकता लाने की दृष्टि से इरादतन ूककर्ता के रूप में उधारकर्ता का वर्गीकरण करने के लिए निर्णय करने का कार्य उच्चतर अधिकारियों की एक समिति को सौंपा जाना चाहिए जिसकी अध्यक्षता कार्यपालक निदेशक करें तथा जिसमें संबंधित बैंक/वित्तीय संस्था के बोर्ड के निर्णयानुसार दो महाप्रबंधक/उप महाप्रबंधक हों ।
(ii) इरादतन चूककर्ताओं के वर्गीकरण पर लिये गये निर्णय के संबंध में भली भाँति प्रलेखीकरण होना चाहिए तथा वह आवश्यक साक्ष्य के साथ समर्थित होना चाहिए। निर्णय में वे कारण स्पष्ट रूप से दिए जाने चाहिए जिनके आधार पर उधारकर्ता को भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों के संदर्भ में इरादतन चूककर्ता के रूप में घोषित किया गया है ।
(iii) उसके बाद उधारकर्ता को इरादतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकृत करने संबंधी प्रस्ताव के बारे में कारण सहित उचित रूप से सूचित किया जाना चाहिए। यदि संबंधित उधारकर्ता चाहे तो उसे अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक की अध्यक्षता में गठित शिकायत निपटान समिति (जिसमें दो अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी होंगे) के पास ऐसे निर्णय के विरुद्ध अभ्यावेदन करने के लिए उचित समय (जैसे 15 दिन) दिया जाना चाहिए ।
(iv) इसके अलावा उपर्युक्त शिकायत निपटान समिति को उधारकर्ता को सुनवाई का मौका भी देना चाहिए यदि उधारकर्ता यह अभ्यावेदन देता है कि उसका इरादतन चूककर्ता के रूप में गलत वर्गीकरण किया गया है।
(v) उक्त अभ्यावेदन पर समिति द्वारा निर्णय किये जाने के बाद `इरादतन चूककर्ता' के रूप में अंतिम घोषणा की जानी चाहिए तथा उधारकर्ता को उचित रूप में सूचित किया जाना चाहिए ।
4. इरादतन चूककर्ताओं के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही
4.1 संयुक्त संसदीय समिति की सिफारिशें
रिज़र्व बैंक ने संयुक्त संसदीय समिति की निम्नलिखित सिफारिशों के संदर्भ में तथा विशेष रूप से संबंधित उधारकर्ताओं के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही करने की आवश्यकता को देखते हुए वित्तीय विनियमन संबंधी स्थायी तकनीकी सलाहकार समिति के साथ परामर्श करने के उपरांत इरादतन चूककर्ताओं को नियंत्रित करने से संबंधित मुद्दों की जाँच की, अर्थात्
क. यह आवश्यक है कि विश्वासभंग अथवा धोखाधड़ी के अपराधों को, जिनके संबंध में यह समझा गया हो कि वे ऋणों के मामले में किये गये हैं, बैंकों को नियंत्रित करनेवाली मौजूदा संविधियों के अंतर्गत स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए तथा जहाँ उधारकर्ता निधियों को असद्भावी इरादों से अन्यत्र अंतरित करते हैं वहाँ सभी मामलों में दंडात्मक कार्यवाही की व्यवस्था की जानी चाहिए ।
ख. यह आवश्यक है कि बैंक निधियों के उद्दिष्ट उपयोग की गहन निगरानी करें तथा उधारकर्ताओं से यह प्रमाणपत्र प्राप्त करें कि बैंक निधियों का उपयोग उसी उद्देश्य के लिए किया गया है जिसके लिए उन्हें दिया गया था ।
ग. गलत प्रमाणीकरण करने पर उधारकर्ता के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही की जानी चाहिए ।
4.2 उद्दिष्ट उपयोग की निगरानी
बैंक/वित्तीय कंपनियां बैंक निधियों के उद्दिष्ट उपयोग की गहन निगरानी करें और उधारकर्ताओं से यह प्रमाण पत्र प्राप्त करें कि बैंक निधियों का उपयोग उसी उद्देश्य के लिए किया गया है जिसके लिए उन्हें दिया गया था । उधारकर्ताओं द्वारा गलत प्रमाणीकरण के मामले में आवश्यकता पड़ने पर उधारकर्ताओं के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही करने पर भी विचार करना चाहिए ।
4.3 बैंकों /वित्तीय संस्थाओं द्वारा दंडात्मक कार्यवाही
यह जानना आवश्यक है कि इरादतन चूककर्ताओं के विरुद्ध मौजूदा विधान के अंतर्गत भी भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (आइपीसी) 1860 की धारा 403 और 415 के प्रावधानों के अंतर्गत मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर दंडात्मक कार्यवाही करने के लिए गुंजाइश है। अत: बैंकों /वित्तीय संस्थाओं को सूचित किया जाता है कि वे हमारे अनुदेशों और संयुक्त संसदीय समिति की सिफारिशों का पालन करने के लिए भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (आइपीसी) के उपर्युक्त प्रावधानों के अंतर्गत प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर, जहाँ भी आवश्यक समझा जाए, इरादतन चूककर्ताओं अथवा उधारकर्ताओं द्वारा गलत प्रमाणीकरण के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही करने पर गंभीरतापूर्वक और तत्परता से विचार करें ।
यह भी सुनिश्चित किया जाए कि उक्त दंडात्मक प्रावधानों का प्रयोग प्रभावात्मक रूप से और निश्चयात्मक तौर पर, परंतु सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद और उचित सजगता के साथ किया जाए । इस प्रयोजन के लिए बैंकों / वित्तीय संस्थाओं को सूचित किया जाता है कि वे अलग अलग मामले के तथ्यों के आधार पर दंडात्मक कार्यवाही करने के लिए अपने बोर्ड के अनुमोदन से एक पारदर्शी तंत्र स्थापित करें ।
5. निदेशकों के नाम सूचित करना
5.1 सटीकता सुनिश्चित करने की आवश्यकता
भारतीय रिज़र्व बैंक और ऋण सूचना कंपनियां क्रमश: वाद दाखिल न किए गए और वाद दाखिल किए गए खातों से संबंधित सूचना का प्रसार करती हैं जैसा कि उन्हें बैंकों / वित्तीय संस्थाओं द्वारा सूचित किया जाता है तथा सही जानकारी सूचित करने एवं तथ्यों और आंकड़ों के सहीपन की जिम्मेदारी संबंधित बैंकों और वित्तीय संस्थाओं की होती है। अत: बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को चाहिए कि वे अपने अभिलेखों को अद्यतन करने के लिए तत्काल कदम उठाएँ और यह सुनिश्चित करें कि वर्तमान निदेशकों के नाम सूचित किये जाते हैं। वर्तमान निदेशकों के नाम सूचित करने के अलावा उन निदेशकों के बारे में सूचना देना भी आवश्यक है जो खाते को चूककर्ता के रूप में वर्गीक़ृत करने के समय कंपनी से संबद्ध थे जिससे अन्य बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को सचेत किया जा सके । बैंक और वित्तीय संस्थाएँ जहाँ भी संभव हो, कंपनियों के रजिस्ट्रार के साथ भी प्रति-जाँच करके निदेशकों के बारे में तथ्यों को सुनिश्चित करें ।
5.2 स्वतंत्र और नामित निदेशकों के संबंध में स्थिति
व्यावसायिक निदेशक जो अपनी विशेषज्ञता के कारण कंपनियों के साथ संबद्ध होते हैं, स्वतंत्र निदेशकों के रूप में कार्य करते हैं । ऐसे स्वतंत्र निदेशक, निदेशक के रूप में पारिश्रमिक प्राप्त करने के अलावा कंपनी, उसके प्रवर्तकों, उसके प्रबंधन या उसकी सहायक संस्थाओं के साथ कोई महत्वपूर्ण आर्थिक संबंध अथवा लेनदेन नहीं रखते, जो बोर्ड की राय में उनके स्वतंत्र निर्णय को प्रभावित कर सकते हैं । प्रकटीकरण के मार्गदर्शी सिद्धांत के रूप में किसी भी चूककर्ता कंपनी के नाम प्रकट करते समय कोई भी महत्वपर्ण तथ्य छिपाया नहीं जाना चाहिए तथा सभी निदेशकों के नाम प्रकाशित किये जाने चाहिए । फिर भी, ऐसा करते समय यह स्पष्ट करते हुए एक उपयुक्त विशिष्ट टिप्पणी दी जानी चाहिए कि संबंधित व्यक्ति एक स्वतंत्र निदेशक है । इसी प्रकार उन निदेशकों के नाम भी, जो सरकार या वित्तीय संस्थाओं द्वारा नामित व्यक्ति हैं, सूचित किये जाने चाहिए, परंतु एक उपयुक्त टिप्पणी `नामित निदेशक' शामिल की जानी चाहिए ।
अत: स्वतंत्र निदेशकों और नामित निदेशकों के नामों के सामने वे कोष्ठक में क्रमश: संक्षेपाक्षर "स्व" और "ना" निर्दिष्ट किया जाना चाहिए ताकि उन्हें अन्य निदेशकों से अलग पहचाना जा सके ।
5.3 सरकारी उपक्रम
सरकारी उपक्रमों के मामले में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि निदेशकों के नाम सूचित नहीं किये जाते हैं । इसके बजाय, "..........सरकार का उपक्रम" शब्द जोड़ा जाना चाहिए ।
5.4 निदेशक पहचान संख्या (डीआईएन) शामिल करना
यह सुनिश्चित करने के लिए कि निदेशकों की सही-सही पहचान की जाती है और इरादतन चूककर्ताओं की सूची में शामिल निदेशकों के नामों से मिलते-जुलते नामों वाले व्यक्तियों को त्रुटिवश ऋण सुविधा से इस आधार पर इन्कार नहीं किया जाता है कि उनके नाम उक्त सूची में हैं, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को सूचित किया गया है कि वे भारतीय रिजर्व बैंक / साख सूचना कंपनियों को भेजे जाने वाले आंकड़ों में निदेशक पहचान संख्या (डीआईएन)की भी सूचना दें।
अनुबंध 1
भारतीय रिज़र्व बैंक को तिमाही आधार पर 25 लाख रुपये और उससे
अधिक राशि के संबंध में इरादतन की गई चूक (वाद दाखिल न किये गये खाते)
के मामलों पर सूचना/आंकड़े प्रस्तुत करने का फार्मेट:
बैंकों/वित्तीय संस्थाओं से यह अपेक्षित है कि वे तिमाही आधार पर भारतीय रिज़र्व बैंक को इरादतन चूककर्ताओं (वाद दाखिल न किये गये खाते) के संबंध में सूचना/आंकड़े कॉम्पैक्ट डिस्क (सीडी) में प्रस्तुत करते समय निम्नलिखित संरचना (उसी फील्ड नाम के साथ)का प्रयोग करें :
फील्ड |
फील्डकानाम |
प्रकार |
चौड़ाई |
विवरण |
टिप्पणी |
1 |
एससीटीजी |
संख्या |
1 |
बैंक/वित्तीय संस्था की श्रेणी |
संख्या 1/2/4/6/8 भरी जाए
1 भा.स्टे.बैंक और उसके सहयोगी बैंक
2 राष्ट्रीयकृत बैंक
4 विदेशी बैंक
6 निजी क्षेत्र के बैंक
8 वित्तीय संस्थाएँ |
2 |
बीकेएनएम |
अक्षर |
40 |
बैंक/वि.सं. का नाम |
बैंक / वि. सं. का नाम |
3 |
बीकेबीआर |
अक्षर |
30 |
शाखा का नाम |
शाखा का नाम |
4 |
राज्य |
अक्षर |
15 |
राज्य का नाम |
उस राज्य का नाम जिसमें शाखा स्थित है |
5 |
एसआरएनओ |
संख्या |
4 |
क्रम संख्या |
क्रम संख्या |
6 |
पीआरटीवाई |
अक्षर |
45 |
पार्टी का नाम |
वैध नाम |
7 |
आरईजीए
डीडीआर |
अक्षर |
96 |
पंजीकृत पता |
पंजीकृत कार्यालय का पता |
8 |
ओएसएएमटी |
संख्या |
6 |
बकाया राशि लाख रुपये में (पूर्णांकित) |
|
9 |
वाद |
अक्षर |
4 |
वाद दाखिल या नहीं |
यदि वाद दाखिल है तो `वाद' टाइप
करें। अन्य मामलों में इसे खाली
रखें । |
10 |
अन्य बैंक |
अक्षर |
40 |
अन्य बैंकों/ वित्तीय संस्थाओं का नाम |
अन्य बैंकों/वित्तीय संस्थाओं के नाम निर्दिष्ट करें जिनसे पार्टी ने ऋण सुविधा प्राप्त की है । नाम संक्षिप्त रूप में लिखें उदा0 बैंक ऑफ बड़ौदा के लिए बीओबी, भारतीय स्टेट बैंक के लिए एसबीआई आदि। |
11 |
डीआइआर1 |
अक्षर |
40 |
निदेशक का नाम |
(क) निदेशक का पूरा नाम निर्दिष्ट करें
(ख) सरकारी कंपनी के मामले में केवल ".. .. .. सरकार का उपक्रम" लिखा जाए ।
(ग) बैंकों/वित्तीय संस्थाओँ/केंद्र सरकार/राज्य सरकार के नामित निदेशकों के नामों के सामने संक्षेप में `नामित' कोष्ठक में निर्दिष्ट करें ।
(घ) स्वतंत्र निदेशकों के मामले में संक्षेपाक्षर `स्वतंत्र' कोष्ठक में निर्दिष्ट करें ।
(ङ) उन निदेशकों के मामले में जो उधारकर्ता कंपनी को चूककर्ता के रूप में वर्गीकृत करते समय पद पर थे, परंतु बाद में उसके बोर्ड पर नहीं हैं, उनके नाम के सामने चिह्न @ कोष्ठक में निर्दिष्ट किया जाए । |
12 |
DIN_DIR1 |
संख्या |
8 |
डीआईआर1 की निदेशक पहचान संख्या |
डीआईआर1 पर निदेशक की 8 अंकों वाली निदेशक पहचान संख्या |
13 |
डीआईआर2 |
अक्षर |
40 |
निदेशक का नाम |
-वही- |
14 |
DIN_DIR2 |
संख्या |
8 |
डीआईआर2 की निदेशक पहचान संख्या |
डीआईआर 2 पर निदेशक की 8 अंकों वाली निदेशक पहचान संख्या |
15 |
डीआईआर3 |
अक्षर |
40 |
निदेशक का नाम |
-वही: |
16 |
DIN_DIR3 |
संख्या |
8 |
डीआईआर3 की निदेशक पहचान संख्या |
डीआईआर 3 पर निदेशक की 8 अंकों वाली निदेशक पहचान संख्या |
17 |
डीआइआर4 |
अक्षर |
40 |
निदेशक का नाम |
-वही- |
18 |
DIN_DIR4 |
संख्या |
8 |
डीआईआर4 की निदेशक पहचान संख्या |
डीआईआर 4 पर निदेशक की 8 अंकों वाली निदेशक पहचान संख्या |
19 |
डीआईआर5 |
अक्षर |
40 |
निदेशक का नाम |
-वही- |
20 |
DIN_DIR5 |
संख्या |
8 |
डीआईआर5 की निदेशक पहचान संख्या |
डीआईआर 5 पर निदेशक की 8 अंकों वाली निदेशक पहचान संख्या |
21 |
डीआईआर6 |
अक्षर |
40 |
निदेशक का नाम |
-वही |
22 |
DIN_DIR6 |
संख्या |
8 |
डीआईआर6 की निदेशक पहचान संख्या |
डीआईआर6 पर निदेशक की 8 अंकों वाली निदेशक पहचान संख्या |
23 |
डीआईआर7 |
अक्षर |
40 |
निदेशक का नाम |
-वही- |
24 |
DIN_DIR7 |
संख्या |
8 |
डीआईआर7 की निदेशक पहचान संख्या |
डीआईआर 7 पर निदेशक की 8 अंकों वाली निदेशक पहचान संख्या |
25 |
डीआईआर8 |
अक्षर |
40 |
निदेशक का नाम |
-वही- |
26 |
DIN_DIR8 |
संख्या |
8 |
डीआईआर8 की निदेशक पहचान संख्या |
डीआईआर8 पर निदेशक की 8 अंकों वाली निदेशक पहचान संख्या |
27 |
डीआईआर9 |
अक्षर |
40 |
निदेशक का नाम |
-वही- |
28 |
DIN_DIR9 |
संख्या |
8 |
डीआईआर9 की निदेशक पहचान संख्या |
डीआईआर 9 पर निदेशक की 8 अंकों वाली निदेशक पहचान संख्या |
29 |
डीआईआर10 |
अक्षर |
40 |
निदेशक का नाम |
-वही- |
30 |
DIN_DIR10 |
संख्या |
8 |
डीआईआर10 की निदेशक पहचान संख्या |
डीआईआर10 पर निदेशक की 8 अंकों वाली निदेशक पहचान संख्या |
31 |
डीआईआर11 |
अक्षर |
40 |
निदेशक का नाम |
-वही- |
32 |
DIN_DIR11 |
संख्या |
8 |
डीआईआर11 की निदेशक पहचान संख्या |
डीआईआर 11 पर निदेशक की 8 अंकों वाली निदेशक पहचान संख्या |
33 |
डीआईआर12 |
अक्षर |
40 |
निदेशक का नाम |
-वही- |
34 |
DIN_DIR12 |
संख्या |
8 |
डीआईआर12 की निदेशक पहचान संख्या |
डीआईआर 12 पर निदेशक की 8 अंकों वाली निदेशक पहचान संख्या |
35 |
डीआईआर13 |
अक्षर |
40 |
निदेशक का नाम |
-वही- |
36 |
DIN_DIR13 |
संख्या |
8 |
डीआईआर13 की निदेशक पहचान संख्या |
डीआईआर 13 पर निदेशक की 8 अंकों वाली निदेशक पहचान संख्या |
37 |
डीआईआर14 |
अक्षर |
40 |
निदेशक का नाम |
-वही- |
38 |
DIN_DIR14 |
संख्या |
8 |
डीआईआर 14 की निदेशक पहचान संख्या |
डीआईआर 14 पर निदेशक की 8 अंकों वाली निदेशक पहचान संख्या |
|
कुल बाइट |
953 |
|
|
(1) यदि निदेशकों की कुल संख्या 14 से अधिक हो, तो अतिरिक्त निदेशकों के नाम उन रिक्त स्थानों में भरें जो अन्य निदेशकों के स्तंभों में उपलब्ध हैं ।
(2) आंकड़े / सूचना केवल उपर्युक्त फार्मेट में कॉम्पैक्ट डिस्क में, .डीबीएफ फाइल के रूप में ही प्रस्तुत करनी चाहिए । सीडी प्रस्तुत करते समय बैंक / वित्तीय संस्थाएँ यह सुनिश्चित करें कि :
-
सीडी पठनीय है और करप्ट / वाइरस से प्रभावित नहीं है।
-
सीडी उचित रूप में लेबल से युक्त है जिस पर बैंक का नाम, सूची का नाम और वह अवधि निर्दिष्ट है जिससे सूची संबंधित है, तथा लेबल पर और पत्र में निर्दिष्ट सूची का नाम एक ही है ।
-
प्रत्येक क्षेत्र का नाम और चौड़ाई तथा क्षेत्रों का क्रम पूर्णतया उपर्युक्त फार्मेट के अनुसार है ।
-
ऐसे अभिलेख शामिल नहीं हैं जिनकी बकाया राशि 25 लाख रुपये से कम है ।
-
कोई भी वाद दाखिल खाता शामिल नहीं है ।
-
निम्नलिखित प्रकार के शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है (क्योंकि क्षेत्रों को समुचित रूप से सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता): `मेसर्स', `मिस्टर' `श्री' आदि ।
-
`श्रीमती', `डॉ.' आदि शब्द यदि लागू हैं तो उन्हें व्यक्ति के नाम के अंत में भरा गया है ।
-
क्षेत्र "वाद" और डीआईआर 1 से डीआईआर 14 तक के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर अन्य क्षेत्रों के लिए यथाप्रयोज्य रूप में सूचना पूर्णत: भरी गई है तथा स्तंभों को रिक्त नहीं रखा गया है ।
(3) `शून्य' (निल) सूचना/आंकड़ों की स्थिति में कोई भी सीडी भेजने की आवश्यकता नहीं है तथा स्थिति को पत्र / फैक्स द्वारा सूचित किया जा सकता है ।
(4) पर्याप्त रूप से वरिष्ठ अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित एक प्रमाणपत्र जिसमें यह कहा गया हो कि `चूककर्ताओं की सूची उसके विवरण को विधिवत् सत्यापित करने के बाद सही रूप में संकलित की गई है तथा इस संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुदेशों का पूर्णत: पालन किया गया है", सीडी के साथ भेजा जाना चाहिए ।
अनुबंध 2
मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
सं. |
परिपत्र संख्या |
दिनांक |
विषय |
पैरा सं. |
1. |
बैंपविवि. सं. डीएल (डब्ल्यू). बीसी. 12 /20.16.002(1) / 98-99 |
20.02.1999 |
25 लाख रुपये और उससे अधिक राशि के संबंध में इरादतन चूक के मामलों पर जानकारी एकत्रित करना और प्रसार करना |
1 |
2. |
बैंपविवि. सं. डीएल.बीसी.
46 /20.16.002/98-99 |
10.05.1999 |
चूककर्ता उधारकर्ताओं के संबंध में जानकारी का प्रकटन - चूककर्ताओं/वाद दाखिल किये गये खातों की सूची और इरादतन चूक के संबंध में सूचना/आंकड़ें |
अनुबंध 1 |
3. |
बैंपविवि. सं. डीएल (डब्ल्यू). बीसी. 161 / 20.16.002/ 99-2000 |
01.04.2000 |
बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से संबद्ध चूककर्ता उधारकर्ताओं के संबंध में जानकारी एकत्रित करना और प्रसार करना |
5 और अनुबंध 1 |
4. |
बैंपविवि. सं. डीएल.बीसी.
54 /20.16.001/2001-02 |
22.12.2001 |
चूककर्ताओं के संबंध में जानकारी को एकत्रित करना और प्रसार करना |
5 |
5. |
बैंपविवि. सं. डीएल (डब्ल्यू). बीसी. 110/ 20.16.003(1)/ 2001-02 |
30.05.2002 |
इरादतन चूककर्ता और उनके विरुद्ध कार्यवाही |
2, 2.1 से 2.8 |
6. |
बैंपविवि. सं. डीएल.बीसी.
111 /20.16.001/2001-02 |
04.06.2002 |
ऋण सूचना ब्यूरो (सीआइबी) को ऋण सूचना प्रस्तुत करना |
2.9 |
7. |
बैंपविवि. सं. डीएल (डब्ल्यू). बीसी. 58 / 20.16.003/ 2002-03 |
11.01.2003 |
इरादतन चूक करनेवाले तथा निधियों का विपथन - उनके विरुद्ध कार्यवाही |
2.1
2.2 |
8. |
बैंपविवि. सं. डीएल.बीसी.
7/20.16.003/2003-04 |
29.07.2003 |
इरादतन चूक करनेवाले और उन पर कार्यवाही |
3 |
9 |
बैंपविवि. सं. डीएल.बीसी.
95/20.16.002/2003-04 |
17.06.2004 |
वर्ष 2004-05 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य -साख सूचना प्रकट करना -सिबिल की भूमिका |
2.9 |
10. |
बैंपविवि. सं. डीएल.बीसी.
94 /20.16.003/2003-04 |
17.06.2004 |
वार्षिक नीति वक्तव्य : 2004-05 - इरादतन चूक करनेवाले - प्रक्रिया के संबंध में स्पष्टीकरण |
3 |
11. |
बैंपविवि. सं. डीएल.बीसी.
16 /20.16.003/2004-05 |
23.07.2004 |
इरादतन चूक करनेवालों की जांच तथा इरादतन चूक करनेवालों के विरुद्ध उपाय |
4 |
12. |
बैंपविवि. सं. डीएल(डब्ल्यु) बीसी. 87/20.16.003/ 2007-08 |
28.05.2008 |
इरादतन चूक करनेवाले तथा उनके विरुद्ध कार्रवाई |
2.1 |
13 . |
मेल-बॉक्स स्पष्टीकरण |
17.04.2008 |
समझौता निपटान के अंतर्गत खातों की सूचना प्रस्तुत करना |
2.9 |
14. |
बैंपविवि. सं. डीएल.12738 / 20.16.001/2008-09 |
03.02.2009 |
चूककर्ताओं (वाद दाखिल न किये गये खातों ) / इरादतन चूककर्ताओं (वाद दाखिल न किये गये खातों ) की सूची के संबंध में सूचना/आंकड़ें कॉम्पैक्ट डिस्क पर प्रस्तुत करना |
अनुबंध 1 |
15. |
बैंपविवि.सं.डीएल.15214/
20.16.042/2009-10 |
04.03.2010 |
ऋण सूचना का कारोबार आरंभ करने के लिए ‘पंजीकरण प्रमाण पत्र‘ की स्वीकृति -एक्सपीरियन क्रेडिट इन्फार्मेशन कंपनी ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड |
2.9 |
16. |
बैंपविवि.सं.डीएल.बीसी.
83/20.16.042/2009-10 |
31.03.2010 |
ऋण सूचना का कारोबार आरंभ करने के लिए ‘पंजीकरण प्रमाण पत्र‘ की स्वीकृति - इक्विफैक्स क्रेडिट इन्फार्मेशन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड |
2.9 |
17. |
बैंपविवि. सं. डीएल.बीसी.
110 /20.16.046/2009-10 |
11.06.2010 |
ऋण सूचना कंपनियों को आंकड़े प्रस्तुत करना-ऋण संस्थाओं द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले आंकड़ों का फॉर्मेट |
2.9 |
18. |
बैंपविवि. सं. सीआईडी.बीसी.
40 / 20.16.046/2010-11 |
21.09.2010 |
साख सूचना कंपनियों को ऋण संबंधी आंकड़े देना – निदेशक पहचान संख्या (डीआईएन) शामिल करना |
5.4 और अनुबंध 2 |
19. |
बैंपविवि.सं.सीआईडी.बीसी.
64/20.16.042/2010-11 |
01.12.2010 |
ऋण सूचना का कारोबार आरंभ करने के लिए ‘पंजीकरण प्रमाण पत्र‘ की स्वीकृति – हाई मार्क क्रेडिट इन्फॉर्मेशन सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड |
2.9 |
20. |
बैंपविवि.सं.सीआईडी.बीसी.30/ 20.16.042/2011-12 |
05.09.2011 |
ऋण सूचना कंपनियों को ऋण सूचना प्रस्तुत करना– 1 करोड़ रुपये और उससे अधिक राशि के चूककर्ता तथा 25 लाख रुपये और उससे अधिक राशि के इरादतन चूककर्ता- वाद दाखिल खातों के संबंध में ऋण सूचना का प्रसार |
2.9 |
21. |
बैंपविवि.सं.सीआईडी.बीसी 84/
20.16.042/2011-12 |
05.03.2012 |
‘पंजीकरण प्रमाण पत्र‘ प्रदान करना- ऋण संबंधी सूचना प्रदान करने का कारोबार जारी रखने के लिए – क्रेडिट इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (इंडिया) लिमिटेड |
2.9 |
|