भारिबैं/2014-2015/50
गैबैंपवि.(नीति प्रभा.) कंपरि.40 /SCRC /26.03.001/2014-15
1 जुलाई 2014
30 जून 2014 तक अद्यतित अधिसूचना प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा
उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन में परिवर्तन या के अधिग्रहण संबंधी (रिजर्व बैंक) मार्गदर्शी सिध्दांत, 2010
जैसा कि आप विदित है कि उल्लिखित विषय पर सभी मौजूदा अनुदेश एक स्थान पर उपलब्ध कराने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक मास्टर परिपत्र जारी करता है। इस संबंध में 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि./नीति प्रभा.(SC/RC) सं. 7/ मुमप्र(एएसआर)/ 2010 में अंतर्विष्ट सभी अनुदेशों का 30 जून 2014 तक का अद्यतन करने के बाद नीचे पुनरुत्पादित किया गया है। अद्यतित अधिसूचना बैंक की वेबसाइट (http://www.rbi.org.in) पर भी उपलब्ध है।
भवदीय
(के के वोहरा)
प्रधान मुख्य महाप्रबंधक
विषय वस्तु
भारतीय रिज़र्व बैंक
गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग
केन्द्रीय कार्यालय
सेंटर ।, विश्व व्यापार केन्द्र
कफ परेड, कोलाबा मुंबई 400 005
प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा उधारकर्ता के कारोबार के
प्रबंधन में परिवर्तन या के अधिग्रहण संबंधी (रिजर्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत, 2010 पर अधिसूचना
मौद्रिक नीति संबंधी वक्तब्य में की गई घोषणा के मद्देनज़र, भारतीय रिज़र्व बैंक वित्तीय परिसंपत्तियों के प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण और प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम (सरफायसी अधिनियम), 2002 की धारा 9 (क) के अंतर्गत निर्मित इन मार्गदर्शी सिध्दांतों को एतत्द्वारा उधारकर्ता के कारोबार के उचित प्रबंधन हेतु अधिसूचित करता है ताकि प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी उधारकर्ता से अपनी प्राप्य राशियों की वसूली हेतु उधारकर्ता के कारोबार एवं संबंधित मामलों के लिए उसके प्रबंधन में परिर्वतन ला सके या अधिग्रहण कर सके ।
1. संक्षिप्त नाम और प्रारंभ:
(ए) ये मार्गदर्शी सिध्दांत "प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन में परिवर्तन या अधिग्रहण संबंधी (रिजर्व बैंक) मार्गदर्शी सिध्दांत, 2010 के नाम से जाने जाएंगे ।
(बी) ये मार्गदर्शी सिध्दांत 21 अप्रैल 2010 से लागू होंगे।
स्पष्टीकरण
इन मार्गदर्शी सिध्दांतों के प्रयोजन के लिए-
(i) "प्रबंधन में परिवर्तन" का अर्थ प्रतिभूतिकरण कंपनी/पुनर्निर्माण कंपनी की पहल पर उधारकर्ता द्वारा उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन के लिए संपूर्ण या काफी हद तक संपूर्ण जिम्मेदार व्यक्ति और / या अन्य संबंधित कार्मिक को परिवर्तित करने से है।"
(ii) "प्रबंधन के अधिग्रहण" शब्दों का अर्थ प्रतिभूतिकरण कंपनी / पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन कार्मिक को परिवर्तित करके या बिना परिवर्तित किए उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन को अधिग्रहीत करने से है।"
2. मार्गदर्शी सिध्दांतों का उद्देश्य /लक्ष्य:
इन मार्गदर्शी सिध्दांतों का उद्देश्य प्रतिभूतिकरण कंपनियों या पुनर्निर्माण कंपनियों की कार्रवाई में निष्पक्षता, पारदर्शिता, अविभेदीकरण एवं मनमानेपन पर रोक को सुनिश्चित करना और सरफायसी अधिनियम की धारा 9(क) के अंतर्गत प्रतिभूतिकरण/पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन में परिवर्तन करने या के अधिगहण को प्रभावी करने के बारे में सम्यक नियंत्रण तथा संतुलन प्रणाली को सुस्थापित करना है। प्रतिभूतिकरण कंपनियाँ/पुनर्निर्माण कंपनियां सरफायसी अधिनियम, 2002 की धारा 9(क) के अंतर्गत उन्हें प्रदत्त शक्तों का प्रयोग करते समय इन मार्गदर्शी सिध्दांतों का पालन करेंगी।
3. प्रतिभूतिकरण कंपनियों/पुनर्निर्माण कंपनियों की शक्तियाँ तथा मार्गदर्शी सिध्दांतों की व्यापकता
प्रतिभूतिकरण कंपनी /पुनर्निर्माण कंपनी उधारकर्ता से अपनी प्राप्य राशियों की वसूली के प्रयोजन हेतु उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन में परिवर्तन या का अधिग्रहण इन मार्गदर्शी सिध्दांतों के उपबंधों के अंतर्गत ही कर सकती है। प्रतिभूतिकरण कंपनी /पुनर्निर्माण कंपनी उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन में परिवर्तन /के अधिग्रहण के विकल्प का प्रयोग सरफायसी अधिनियम की धारा 15 के उपबंधों के अनुसार प्रबंधन के अधिग्रहण के लिए दिए गए तरीके का अनुपालन करने के बाद कर सकती है। अपनी प्राप्य राशियों की वसूली हो जाने पर प्रतिभूतिकरण कंपनी /पुनर्निर्माण कंपनी सरफायसी अधिनियम की धारा 15(4) के उपबंधों के अनुसार उधारकर्ता को उसके कारोबार का प्रबंधन उसे लौटा देगी ।
4. प्रबंधन में परिवर्तन /के अधिग्रहण हेतु शक्तियों का प्रयोग करने की पूर्वापेक्षाएं
आगे पैराग्राफ 5 में दी गई परिस्थियों में -
(ए) प्रतिभूतिकरण कंपनी /पुनर्निर्माण कंपनी उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन में परिवर्तन या का अधिग्रहण तभी कर सकती है जब उधारकर्ता से उसे प्राप्य राशियाँ उधारकर्ता के स्वामित्व की कुल परिसंपत्तियों के 25% से कम न हों; और
(बी) 1जहाँ उधारकर्ता को (एससी /आरसी सहित) एक से अधिक सिक्योर्ड उधारकर्ताओं ने वित्तीय सहायता दी हो, वहाँ (एससी/आरसी सहित) सिक्योर्ड उधारदाता बकाया प्रतिभूति रसीदों के कम से कम 60% के धारक हों तथा ऐसी कार्रवाई के लिए सहमत हों ।
स्पष्टीकरण: "कुल परिसंपत्तियों" का अर्थ कार्रवाई की तारीख से ठीक पूर्व के अद्यतन लेखापरीक्षित तुलनपत्र में प्रकट की गई कुल परिसंपत्तियों से है।
5. प्रबंधन में परिवर्तन या के अधिग्रहण के लिए आधार
पैराग्राफ 4 में वर्णित पूर्वापेक्षाओं की शर्त के तहत एससी/आरसी निम्नलिखित में से किसी एक आधार के उपलब्ध होने पर उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन में परिवर्तन या के अधिग्रहण करने की हकदार होगी :-
(ए) संबंधित ऋण करार /करारों के तहत उधारकर्ता जानबूझकर देय राशियों की अदायगी करने में चूक करता है;
(बी) यदि एससी /आरसी इस बात से संतुष्ट है कि उधारकर्ता के प्रबंधन की कार्यशैली से लेनदारों (एससी /आरसी सहित) के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा या उधारकर्ता लेनदारों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने में विफल हो रहा है;
(सी) यदि एससी/आर सी इस बात से संतुष्ट है कि उधारकर्ता के कारोबार का प्रबंधन कारोबार को चलाने में सक्षम नहीं है जिससे कारोबार में हानि हो सकती है /एससी/आरसी द्वारा प्राप्य राशियों की चुकौती नहीं हो सकती है या उधारकर्ता के कारोबार में पेशेवर प्रबंधन का अभाव है या उधारकर्ता के कारोबार के मुख्य प्रबंधकीय कार्मिक के पद पर, रिक्ति को एक वर्ष से अधिक का समय हो जाने पर, भी नियुक्ति नहीं हुई है जिससे उधारकर्ता के कारोबार के वित्तीय स्वास्थ्य या एससी /आरसी जो सिक्योर्ड लेनदार है, के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है;
(डी) सिक्योर्ड लेनदारों (एससी /आरसी सहित) की पूर्वानुमति के बिना उधारकर्ता ने एससी /आरसी के पास जमानत के रूप में रखी परिसंपत्तियों को बेच दिया है, को समाप्त कर दिया है, पर प्रभार निर्मित कर दिया है, भारग्रस्त कर दिया है या विलग कर दिया है जो एससी/आरसी की सिक्योर्ड संपत्तियों का कुल मिलाकर 10% या अधिक है;
(ई) यदि इस बात का विश्वास करने का उचित आधार हो कि उधारकर्ता द्वारा स्वीकार की गई अदायगी की शर्तों के अनुसार वह ऋण की अदायगी करने में असमर्थ होगा ;
(एफ) यदि उधारकर्ता ने एससी /आरसी की सहमति के बिना लेनदारों से कोई करार या समझौता कर लिया है जिससे एससी /आरसी के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है या उधारकर्ता ने दीवालियेपन का कोई कार्य किया हो;
(जी) यदि उधारकर्ता अपने पण्यावर्त (टर्नओवर) के 10% या अधिक अंश वाले कारोबर को बंद कर देता है या बंद करने की धमकी देता है;
(एच) यदि उधारकर्ता की संपूर्ण परिसंपत्तियाँ या उनका महत्त्वपूर्ण भाग जो उसके कारोबार या परिचालनों के लिए अपेक्षित या आवश्यक था जिसे उधारकर्ता ने अपने कायैं से नुकसान पहुँचाया हो ;
(आई) यदि उधारकर्ता के कारोबार का सामान्य स्वरूप या व्यापकता /दायरे , परिचालन, प्रबंधन, नियंत्रण या स्वामित्व उस सीमा तक बदल गए हैं, जो एससी /आरसी के विचार में उधारकर्ता की अदायगी क्षमता को काफी हद तक प्रतिकूल रूप में प्रभावित कर सकते हैं;
(जे) यदि एससी /आरसी इस बात से संतुष्ट है कि उधारकर्ता के कारोबार के प्रवर्तकों या निदेशकों या भागीदारों में गंभीर विवाद पैदा हो गए हैं जो उधारकर्ता द्वारा ऋण/ऋणों की अदायगी की क्षमता पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं ;
(के) उधारकर्ता द्वारा ऋण से अर्जित की जानेवाली परिसंपत्ति के अर्जन में विफल होने, निर्दिष्ट प्रयोजन से भिन्न के लिए उधार राशि का उपयोग करने या वित्तपोषित परिसंपत्ति का निपटान करने (बेच लेने) और आगम/प्राप्त राशि (प्रोसीड्स) का दुरुपयोग या दुर्विनियोजन हुआ हो;
(एल ) लेनदार /लेनदारों के पास रखी जमानती परिसंपत्तियों के संबंध में उधारकर्ता द्वारा कपट पूर्ण लेनदेन किए जाएं।
स्पष्टीकरण: 'ए': इस पैराग्राफ के लिए देय राशियों की अदायगी करने में "जानबूझकर चूक करने में"
निम्नलिखित शामिल हैं:-
(ए) पर्याप्त नकदी प्रवाह एवं अन्य स्रेतों की उपलब्धता के बावजूद देय राशियों की अदायगी न करना; या
(बी) देय राशियों की अदायगी से बचने के लिए उधारदाता के अतिरिक्त/सहायता संघ (कंसोर्सियम) की सदस्यता न रखने वाले बैंक /बैंकों के माध्यम से लेनदेन करना; या
(सी) चूककर्ता यूनिट के हितों के विरुद्ध निधियों को अन्य कार्यों के लिए निकाल (खर्च कर) लेना, या एससी /आरसी से लेनदेन से संबंधित रिकार्डों का दुष्प्रनिधित्व करना/ को झूठे तरीके से दिखाना।
स्पष्टीकरण:'बी':उधारकर्ता जानबूझकर चूक कर रहा है या नहीं, इसका निर्णय एससी /आरसी उधारकर्ता के ट्रैक रेकार्ड को दृष्टिगत रखते हुए करेगी, न कि किसी एकल लेनदेन /घटना के आधार पर जो महत्वपूर्ण नहीं है। जानबूझर चूक करने की श्रेणी में दर्ज करने के लिए चूक को इरादतन , जानबूझकर तथा सोच समझकर किया गया होना चाहिए।
6. प्रबंधन में परिवर्तन या के अधिग्रहण से संबंधित नीति
(ए) प्रत्येक एससी /आरसी अपने निदेशक बोर्ड के अनुमोदन से "प्रबंधन में परिवर्तन या के अधिग्रहण से संबंधित नीतिगत मार्गदर्शी सिध्दांत बनाएगी और ऐसी नीति की जानकरी उधारकर्ताओं को देगी।
(बी) ऐसी नीति में सामान्यत: निम्नलिखित का प्रावधान होगा -
(i) उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन में परिवर्तन /का अधिग्रहण की कार्रवाई एससी/आरसी द्वारा नियुक्त स्वतंत्र परामर्शदात्री समिति द्वारा प्रस्ताव की जांच करने के बाद की जाएगी। इस समिति में तकनीकी / वित्तीय/विधिक पृष्ठभूमि वाले पेशेवर व्यक्ति शामिल किए जाएंगे जो उधारकर्ता की वित्तीय स्थिति का मूल्यांकन करने, उधारकर्ता से ऋण की वसूली के लिए उपलब्ध समय-सीमा, उधारकर्ता के भावी कारोबार की संभावनाओं तथा अन्य संबंधित पहलुओं पर विचार करने के बाद अपनी सिफारिश एससी /आरसी को देंगे कि वह उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन में परिवर्तन/के अधिग्रहण की कार्रवाई कर सकती है तथा यह कि ऐसी कार्रवाई प्राप्य राशियों की प्राप्ति तक कारोबार को प्रभावी रूप में चलाने के लिए आवश्यक है;
(ii) न्यूनतम दो स्वतंत्र निदेशकों सहित एससी/आरसी का निदेशक बोर्ड स्वतंत्र परामर्शदात्री समिति की सिफारिशों पर विचार-विमर्श करेगा और मौजूदा परिरिथतियों में उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन में परिवर्तन या अधिग्रहण की कार्रवाई का निर्णय लेने से पूर्व प्राप्य राशियों की वसूली के विभिन्न विकल्पों पर विचार करेगा और इस प्रकार लिए गए निर्णय को कार्यविवरण में विशेष रूप से शामिल किया जाएगा ।
(iii) एससी /आरसी इस संबंध में समुचित सावधानी की प्रक्रिया (एक्सरसाइज़) अपनाएगी और प्रक्रिया का ब्योरा दर्ज करेगी जिसमें उन परिस्थितियों का वर्णन होगा जिनके कारण उधारकर्ता ने देय राशियों की अदायगी करने में चूक की और उसके कारोबार के प्रबंधन में परिवर्तन /के अधिग्रहण की नौबत क्यों आयी /आवश्यकता क्यों हुई।
(iv) एससी /आरसी उचित कार्मिक /एजेंसी की पहचान करेगी जो उधारकर्ता के कारोबार को प्रभावी ढंग से परिचालित एवं प्रबंधित करने के लिए योजना तैयार करके उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन का अधिग्रहण कर सकेगी ताकि समय-सीमा में एससी/आरसी की प्राप्य राशियां उधारकर्ता से प्राप्त /वसूल की जा सकें ।
(v) ऐसी योजना में उल्लिखित पैराग्राफ 3 के अनुसार उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन को पुनर्स्थापित करते समय एससी/आरसी द्वारा अपनायी जाने वाली प्रक्रिया शामिल होगी जिसमें एससी/आरसी द्वारा प्रबंधन में परिवर्तन करने /के अधिग्रहण के समय उधारकर्ता के अधिकार तथा दायित्व एवं उधारकर्ता को कारोबार का प्रबंधन लौटाते समय एससी/आरसी की ओर से नए प्रबंधन के अधिकार एवं दायित्व शामिल होंगे। एससी/आरसी द्वारा नए प्रबंधन को स्पष्ट रूप से बता दिया जाएगा कि उसकी /उनकी भूमिका उधारकर्ता के कारोबार को विवेकपूर्ण ढंग से चलाकर एससी/आरसी की प्राप्य राशियों की वसूली तक सीमित होगी ।
स्पष्टीकरण :-
स्वतंत्र परामर्शदात्री समिति के सदस्यों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए ऐसे सदस्यों का एससी/आरसी के किसी भी कार्य से किसी भी प्रकार का संबंध नहीं होना चाहिए और स्वतंत्र परामर्शदात्री समिति के सदस्य के तौर पर सेवाओं से भिन्न किसी भी प्रकार का आर्थिक लाभ एससी/आरसी से नहीं मिलना चाहिए ।
7. प्रबंधन में परिवर्तन या के अधिग्रहण की प्रक्रिया
(ए) एससी/आरसी उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंधन में परिवर्तन करने/के अधिग्रहण के अपने इरादे से उधारकर्ता को 60 दिन का नोटिस देकर अवगत कराएगी और आपत्तियां, यदि कोई हों, प्राप्त करेगी ।
(बी) यदि उधारकर्ता द्वारा इस संबंध में कोई आपत्तियां उठायी जाती हैं तो प्रारंभ में स्वतंत्र परामर्शदात्री समिति उन पर विचार करेगी और उसके बाद उन्हें अपनी सिफारिशों के साथ एससी/आरसी के निदेशक बोर्ड को सौपेंगी। एससी/आरसी का निदेशक बोर्ड नोटिस अवधि की समाप्ति से 30 दिन के भीतर उचित/ तर्क संगत आदेश पारित करेगा जिसमें उधारकर्ता के कारोबार के प्रबंध में परिवर्तन /के अधिग्रहण के बाबत एससी/आरसी के निर्णय का उल्लेख होगा जिसके बारे में उधारकर्ता को सूचित किया जाएगा।
8. रिपोर्टिंग
एससी/आरसी उधारकर्ताओं से अपनी प्राप्य राशियों की वसूली के लिए उनके कारोबार के प्रबंध में परिवर्तन करने/ के अधिग्रहण की की गई कार्रवाई के सभी मामले 26 सितंबर 2008 के परिपत्र गैबैंपवि (नीति प्रभा.) कंपरि. सं 12/SC RC/10.30.000/2008-09 के अनुसार बैंक को रिपोर्ट करेगी ।
9. प्रतिभूतिकरण कंपनी और पुनर्निर्माण कंपनी (रिजर्व बैंक) मार्गदर्शी सिध्दांत तथा निदेश, 2003 के पैराग्राफ 7(2) में संशोधनकारी दिनांक 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि (नीति प्रभा. SC/RC)/7/मुंमप्र(एससआर)/2010 की प्रति संलग्न है।
21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि(नीति प्रभा.एससी/आरसी) 7/मुमप्र(एएसआर) 2010-11
प्रतिभूतिकरण कंपनी और पुनर्निर्माण कंपनी (रिजर्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत और निदेश, 2003
भारतीय रिजर्व बैंक, जन हित में इसे आवश्यक मानते हुए तथा इस बात से संतुष्ट होकर कि वित्तीय प्रणाली को देश के हित में विनियमित करने हेतु रिजर्व बैंक को समर्थ बनाने के प्रयोजन के लिए और किसी भी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के निवेशकों के हित के लिए हानिकारक ढंग से चलाए जा रहे कार्यकलापों को या ऐसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के हित में किसी भी प्रकार से पक्षपाती ढंग चलाए जा रहे कार्यकलापों को रोकने के लिए "वित्तीय परिसंपत्तियों(आस्तियों) के प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण और प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002" की धारा 3 की उप धारा (1) के खंड (ख) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए' प्रतिभूतिकरण कंपनी और पुनर्निर्माण कंपनी (रिजर्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश, 2003 (जिन्हें इस के बाद मार्गदर्शी सिद्धांत/दिशानिर्देश कहा गया है) को संशोधित करने का निदेश देता है अर्थात:-
1. मार्गदर्शी सिद्धांतों के पैराग्राफ 7 (2) को निम्नलिखित से प्रतिस्थापित किया जाएगा:-
" (2) (i) प्रबंधन में परिवर्तन या का अधिग्रहण
प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी उक्त अधिनियम की धारा 9(क) में विनिर्दिष्ट उपाय दिनांक 21 अप्रैल 2010 के कंपनी परिपत्र सं.गैबैंपवि /नीति प्रभा.(SC/RC)/ सं. 17/26.03.001/2009-10, समय -समय पर यथासंशोधित, में अंतर्विष्ट अनुदेशों के अनुसरण में प्रयोग में लाएगी ।
(ii) उधारकर्ता के कारोबार के एक भाग या संपूर्ण कारोबार की बिक्री या को पट्टे पर देना
कोई भी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी उक्त अधिनियम की धारा 9 (ख) में विनिर्दिष्ट उपायों का उपयोग तब तक नहीं करेगी जब तक कि बैंक इस संबंध में आवश्यक मार्गदर्शी सिद्धांत जारी नहीं कर देता है ।
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