आरबीआई/2015-16/37
बैविवि सं.डीआइआर.बीसी.9/13.03.00/2015-16
1 जुलाई 2015
10 आषाढ़ 1937(शक)
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)
महोदय/ महोदया
मास्टर परिपत्र - अग्रिमों पर ब्याज दरें
कृपया आप 1 जुलाई 2014 का मास्टर परिपत्र बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.13/13.03.00/2014-15 देखें जिसमें अग्रिमों पर ब्याज दरों के संबंध में बैंकों को 30 जून 2014 तक जारी किये गये अनुदेश/दिशानिर्देश समेकित किये गये थे। इस मास्टर परिपत्र में उपुर्यक्त विषय पर 30 जून 2015 तक जारी किये गये अनुदेशों को समेकित किया गया है।
भवदीया,
(लिलि वडेरा)
मुख्य महाप्रबंधक
विषय-वस्तु
अग्रिमों पर ब्याज-दरों से संबंधित मास्टर परिपत्र
क. उद्देश्य
अग्रिमों पर ब्याज दरों के संबंध में रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी किए गए निदेशों को समेकित करना।
ख. वर्गीकरण
बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किया गया सांविधिक निदेश।
ग. पूर्व अनुदेश
इस मास्टर परिपत्र में उपर्युक्त विषय पर परिशिष्ट में सूचीबद्ध किए गए परिपत्रों में निहित अनुदेशों को समेकित तथा अद्यतन किया गया है।
घ. प्रयोज्यता
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक।
1. प्रस्तावना
बैंकों को अधिक कार्यात्मक स्वायत्ता प्रदान करने के परिप्रेक्ष्य में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 18 अक्तूबर 1994 से अग्रिमों पर ब्याज दरों को क्रमिक रूप से अविनियमित किया गया।
अतएव, बैंक उनके बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति के अनुसार अग्रिमों पर ब्याज दरों का निर्धारण करने के लिए स्वतंत्र हैं, बशर्ते कि वे निम्नलिखित दिशानिर्देशों का पालन करें:
2. पीएलआर/बीपीएलआर प्रणाली
बैंकों से अपेक्षित था कि वे मूल उधार दर (पीएलआर), जो कि 2 लाख रुपये से अधिक ऋण सीमाओं के लिए उनके द्वारा लगाई जाने वाली न्यूनतम दर थी, निर्धारित करने के लिए अपने संबंधित बोर्ड का अनुमोदन प्राप्त करें। 2 लाख रुपये तक के ऋणों के मामले में यह निर्णय लिया गया कि उधार दरों का निर्धारण करके इन उधारकर्ताओं को संरक्षण देना जारी रखा जाए। यह निर्णय लिया गया कि 29 अप्रैल 1998 से 2 लाख रुपये तक और उससे कम की ऋण सीमा के लिए ब्याज पीएलआर, जो कि संबंधित बैंक के सर्वश्रेष्ठ ग्राहक को उपलब्ध है, से अधिक नहीं होगा।
बैंकों द्वारा अपने ऋणों के मूल्य-निर्धारण में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए और साथ ही, यह सुनिश्चित करने के लिए कि पीएलआर में सच में वास्तविक लागत प्रतिबिंबित हो रही है, वर्ष 2003 में दो लाख रुपये से अधिक ऋण सीमाओं के लिए न्यूनतम उधार दर को समाप्त करने का निर्णय लिया गया और बैंकों को यह स्वतंत्रता दी गई कि वे ऐसी ऋण सीमाओं के लिए बेंचमार्क न्यूनतम उधार दर (बीपीएलआर) तथा कीमत-लागत अंतर के अधीन अपनी उधार दरें तय करें। बैंकों से अपेक्षित था कि वे बीपीएलआर के लिए अपने संबंधित बोर्ड का अनुमोदन प्राप्त करें, जो कि 2 लाख रुपये से ऊपर की ऋण सीमाओं के लिए संदर्भ दर रहेगी। प्रत्येक बैंक को बेंचमार्क मूल उधार दर घोषित करनी होगी और वह सभी शाखाओं में एकसमान रूप से लागू होगी। 2 लाख रुपये तक के अग्रिमों के लिए बीपीएलआर का ब्याज की अधिकतम दर रहना जारी रहेगा।
बीपीएलआर प्रणाली के अधीन ब्याज दरें दिनांक 30 जून 2010 तक मंजूर किए गए सभी ऋणों पर लागू थीं। 30 जून 2010 तक मंजूर किए गए विद्यमान ऋणों पर बीपीएलआर तथा कीमत-लागत अंतर तथा उसके निर्धारण संबंधी दिशानिर्देश अनुबंध 2 तथा अनुबंध 3 में दिए गए हैं।
3. आधार दर प्रणाली
आधार दर प्रणाली की शुरुआत बैंकों की उधार दरों में पारदर्शिता बढ़ाने तथा मौद्रिक नीति के प्रसारण का बेहतर मूल्यांकन संभव बनाने के उद्देश्य से की गई थी।
3.1 1 जुलाई 2010 से घरेलू रुपये ऋण की सभी श्रेणियों का ब्याज दर निर्धारण केवल आधार दर का संदर्भ लेते हुए किया जाना चाहिए। तदनुसार, आधार दर प्रणाली सभी नये ऋणों पर और पुराने ऋणों के नवीकरण पर लागू होगी। बीपीएलआर प्रणाली पर आधारित वर्तमान ऋण परिपक्वता तक जारी रह सकते हैं। यदि वर्तमान उधारकर्ता वर्तमान संविदा की समाप्ति के पहले नई प्रणाली अपनाना चाहें तो परस्पर सहमत शर्तों पर उन्हें यह विकल्प प्रदान किया जा सकता है। तथापि, बैंकों को इस बदलाव के लिए कोई शुल्क नहीं लगाना चाहिए।
3.2 आधार दर की गणना
आधार दर में उधार दरों के वे सब तत्व होंगे जो उधारकर्ताओं के सभी संवर्गों में सर्वसामान्य हैं। प्रत्येक बैंक के लिए केवल एक ही आधार दर हो सकती है। बैंक आधार दर निर्धारित करने के लिए कोई भी बेंचमार्क तय कर सकते हैं, जिसे पारदर्शी तरीके से प्रकट किया जाना चाहिए। आधार दर की गणना का एक उदाहरण अनुबंध1 में दिया गया है। बैंक कोई और उपयुक्त विधि अपनाने के लिए स्वतंत्र हैं, बशर्ते वह सुसंगत हो और आवश्यकता पड़ने पर पर्यवेक्षीय समीक्षा/जांच के लिए उपलब्ध हो।
आधार दर की गणना करते समय बैंकों को यह स्वतंत्रता होगी कि वे निधियों की औसत लागत अथवा निधियों की सीमांत लागत अथवा अन्य किसी प्रचलित विधि के द्वारा अपनी निधियों की लागत की गणना करें, जो कि उचित और पारदर्शी होगी, बशर्ते वह सुसंगत हो और आवश्यकता पड़ने पर पर्यवेक्षीय समीक्षा/जांच के लिए उपलब्ध हो। यह स्पष्ट किया जाता है कि जहां एक या अधिक अवधि की जमाराशियों के लिए कार्ड- दर का आधार लिया जाता है, वहां बैंक की जमाराशियों के आधार में चयनित अवधि/यों की जमाराशियों का बड़ा भाग होना चाहिए।
3.3 आधार दर की समीक्षा
बैंकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे तिमाही में कम-से-कम एक बार बैंक की प्रथा के अनुसार, बोर्ड या आस्ति देयता प्रबंध समिति के अनुमोदन से आधार दर की समीक्षा करें। चूंकि उधार उत्पादों के ब्याज निर्धारण की पारदर्शिता एक प्रमुख लक्ष्य है, बैंकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी आधार दर के संबंध में सूचना अपनी सभी शाखाओं तथा वेबसाइट पर प्रदर्शित करें। आधार दर में परिवर्तन की सूचना भी समय-समय पर समुचित माध्यमों से सामान्य जनता को दी जानी चाहिए। बैंकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे पहले की तरह ही तिमाही आधार पर रिज़र्व बैंक को वास्तविक न्यूनतम और उच्चतम उधार दरों की सूचना देते रहें।
3.4 आधार दर कार्य-प्रणाली की समीक्षा
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जिन बैंकों ने 2 सितंबर 2013 के बाद भारत में अपना बैंकिंग व्यवसाय शुरू किया है, उन्हें भारत में अपना बैंकिंग व्यवसाय शुरू करने की तिथि से 1 वर्ष के भीतर अपनी आधार दर पद्धति को संशोधित करने की अनुमति दी जाएगी।
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बैंकों को अधिक परिचालनगत लचीलापन प्रदान करने की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया है कि बैंकों को उक्त को अंतिम रूप दिए जाने के तीन वर्ष के बाद उसकी समीक्षा करने की अनुमति दी जाए। तदनुसार, बैंक निर्धारित अवधि पूर्ण होने के बाद अपने बोर्ड /आस्ति देयता प्रबंध समिति के अनुमोदन से आधार दर पद्धति में परिवर्तन कर सकते हैं।
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तथापि, समीक्षा चक्र के दौरान बैंकों को अपनी पद्धति में परिवर्तन करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
3.5 कीमत-लागत अंतर
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बैंकों के पास किसी ग्राहक को लगाए गए स्प्रैड प्रभार के घटकों का निरूपण करते हुए एक बोर्ड अनुमोदित नीति होनी चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई भी कीमत विभेदन बैंक की ऋण मूल्यन नीति के अनुरूप होना चाहिए।
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बैंक की आंतरिक मूल्यन नीति में उधारकर्ता की किसी भी श्रेणी के लिए स्प्रैड का औचित्य और फैलाव तथा ऋण के मूल्यन संबंधी शक्तियों का प्रत्यायोजन स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए। नीति का औचित्य पर्यवेक्षीय समीक्षा के लिए उपलब्ध होना चाहिए।
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ग्राहक की ऋण प्रोफाइल में गिरावट अथवा अवधि प्रीमियम में परिवर्तन के कारणों को छोड़ कर किसी विद्यमान उधारकर्ता को लगाए गए स्प्रैड प्रभार में वृद्धि नहीं की जानी चाहिए। ऋण प्रोफाइल में परिवर्तन के कारण स्प्रैड में परिवर्तन संबंधी कोई भी निर्णय ग्राहक की संपूर्ण जोखिम प्रोफाइल के द्वारा समर्थित होना चाहिए। अवधि प्रीमियम में परिवर्तन उधारकर्ता विशेष अथवा ऋण- श्रेणी विशेष के लिए नहीं होना चाहिए। दूसरे शब्दों में, अवधि प्रीमियम में परिवर्तन किसी अवशिष्ट अवधि के लिए सभी प्रकार के ऋणों के लिए एकसमान होना चाहिए।
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तथापि, ऊपर उप-पैरा (iii) में निहित दिशानिर्देश सहायता संघ/ विभिन्न बैंकिंग व्यवस्थाओं के अंतर्गत ऋणों पर लागू नहीं होंगे।
3.6 उधार दरों का निर्धारण
बैंक ऋणों और अग्रिमों के संबंध में अपनी वास्तविक उधार दरों का निर्धारण आधार दर को संदर्भ मानते हुए तथा यथोपयुक्त अन्य ग्राहक - विशेष प्रभारों को शामिल करते हुए कर सकते हैं। वास्तविक उधार दरें पारदर्शी और सुसंगत होनी चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर पर्यवेक्षीय समीक्षा/जांच के लिए उपलब्ध होनी चाहिए। चूंकि आधार दर सभी ऋणों के लिए न्यूनतम दर होगी, बैंकों को आधार दर से कम में उधार देने की अनुमति नहीं है। इसके अलावा, आधार दर में परिवर्तन बिना किसी भेदभाव के पारदर्शी तरीके से आधार दर से जुड़े सभी वर्तमान ऋणों पर लागू होगा।
आधार दर प्रणाली के आरंभ के बाद भी बैंकों के पास ऋण की सभी श्रेणियों को नियत अथवा अस्थायी दर पर प्रस्तावित करने की स्वतंत्रता होगी, बशर्ते वे एएलएम दिशानिर्देशों के अनुरूप हों। जहां ऋण नियत दर के आधार पर दिए जाते हैं वहां आधार दर की तिमाही समीक्षा के बावजूद नियत दर ऋणों पर लगाई जाने वाली ब्याज की दर इस शर्त के अधीन वही बनी रहेगी कि ऐसी नियत दर ऋण मंजूरी के समय आधार दर से कम नहीं होगी। तथापि, यदि उसके बाद आधार दर में वृद्धि की जाती है और इस क्रम में नियत दर नई आधार दर से कम हो जाए तो इसे आधार दर संबंधी दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
3.7 आधार दर दिशानिर्देशों से छूट
3.7.1 निम्नलिखित ऋण की श्रेणियों का ब्याज दर निर्धारण आधार दर का संदर्भ लिए बिना किया जा सकता है :
(क) डीआरआई अग्रिम
(ख) सेवानिवृत्त कर्मचारियों सहित बैंक के अपने कर्मचारियों को ऋण
(ग) बैंक के जमाकर्ताओं को उनकी अपनी जमाराशियों की जमानत पर ऋण
3.7.2 उन मामलों में जहां उधारकर्ताओं को ब्याज दर सहायता उपलब्ध हैं, वहां निम्नानुसार स्पष्टीकरण दिया जाता है :
(i) फसल ऋणों पर ब्याज दर सहायता
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तीन लाख रुपये तक के फसल ऋणों के मामले में जिनके लिए ब्याज दर सहायता उपलब्ध है, बैंकों द्वारा किसानों पर सरकार द्वारा निर्धारित ब्याज दर लगाया जाना चाहिए। यदि बैंक को मिलने वाला प्रतिफल (ब्याज दर सहायता को शामिल करने के बाद) आधार दर से कम है तो इस तरह के उधार को आधार दर दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
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तुरंत चुकौती के लिए प्रदान की गई छूट के संबंध में, चूंकि उससे ऐसे ऋणों पर बैंकों को मिलने वाले प्रतिफल (उपर्युक्त ‘क’ में उल्लिखित) में कोई परिवर्तन नहीं होता है, अत: आधार दर दिशानिर्देशों के अनुपालन के निर्धारण में उसे एक घटक नहीं माना जाएगा।
ii) निर्यात ऋण पर ब्याज दर सहायता
रुपया निर्यात ऋण की सभी अवधियों पर लागू होने वाली ब्याज की दरें आधार दर के बराबर या उससे अधिक होंगी। उन मामलों में जहां ब्याज दर सहायता उपलब्ध है, वहां बैंकों को आधार दर प्रणाली के अनुसार निर्यातकों को प्रभार्य ब्याज दर को ब्याज दर सहायता की उपलब्ध राशि से घटाना होगा। यदि, ऐसा करने के परिणामस्वरूप निर्यातकों को प्रभारित ब्याज दर आधार दर से कम हो जाती है तो ऐसे उधार को आधार दर दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं समझा जाएगा। (भारत सरकार की पिछली रुपया निर्यात ऋण पर ब्याज दर सहायता योजना 31 मार्च 2014 तक वैध थी)।
3.7.3 पुनर्रचित ऋण
पुनर्रचित ऋणों के मामले में यदि अर्थक्षमता के प्रयोजन के लिए कुछ कार्यशील पूंजी मीयादी ऋण (डबल्यूसीटीएल), निधिक ब्याज मीयादी ऋण (एफआईटीएल), आदि को आधार दर से कम दर पर मंजूरी दी जाती है और उनमें क्षतिपूर्ति आदि की शर्तें शामिल हैं तो ऐसे उधारों को आधार दर दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
3.7.4 निम्नलिखित मामलों में, जहां बैंकों को पुनर्वित्त उपलब्ध है, वहाँ बैंकों को पुनर्वित्त की उपलब्धता की सीमा तक योजनाओं के अंतर्गत निर्धारित ब्याज दर प्रभारित करने की अनुमति दी गई है। इस प्रकार से दिए गए उधार को, आधार दर से कम दर पर होने के बावजूद, हमारे आधार दर दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। तथापि, पुनर्वित्त के अंतर्गत नहीं आने वाले अंश पर प्रभारित ब्याज दर आधार दर से कम नहीं होनी चाहिए।
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भारत सरकार, नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) की ऑफ-ग्रिड एंड डिसेंट्रलाइज्ड सोलर (फोटोवोल्टेइक एंड थर्मल) एप्लिकेशनों के वित्तपोषण के लिए योजना के अंतर्गत उद्यमियों को आर्थिक सहायता प्राप्त ऋण प्रदान करना।
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राष्ट्रीय अनुसूचित जनजातीय वित्त तथा विकास निगम (एनएसटीएफडीसी) की लघु ऋण योजना तथा नैशनल हैन्डीकॅप्ड फाइनेंस एंड डेवलप्मेंट कार्पोरेशन (एनएचडीएफसी) की विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत वित्तीय सहायता प्रदान करना।
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राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त तथा विकास निगम (एनएसकेएफ़डीसी) की योजनाओं के अंतर्गत वित्तीय सहायता प्रदान करना।
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प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) को उधार देना अल्पावधि मौसमी कृषि कार्यों के लिए नाबार्ड से पुनर्वित्त उपलब्ध है।
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राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त और विकास निगम (एनएफएसडीसी) के हिताधिकारियों के लिए बैंक का वित्तपोषण उपलब्ध कराया गया है।
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राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा निधि (एनसीईएफ) द्वारा समर्थित भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (आईआरईडीए) की योजनाओं के हिताधिकारियों के लिए बैंक का वित्तपोषण उपलब्ध कराया गया है।
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राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम (एनबीसीएफडीसी) की योजनाओं के हिताधिकारियों के लिए बैंक का वित्तपोषण उपलब्ध कराया गया है।
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जम्मू एवं कश्मीर के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) द्वारा तैयार की गई विशेष पुनर्वित्त योजना के लाभार्थियों के लिए बैंक का वित्तपोषण उपलब्ध कराया गया है।
4. मासिक अंतराल पर ब्याज लगाना
(i) बैंकों को 1 अप्रैल 2002 से मासिक अंतरालों पर ब्याज प्रभारित करने के लिए सूचित किया गया था। प्रभारित ब्याज को निकटतम रुपये में पूर्णांकित नहीं किया जाना चाहिए।
(ii) मासिक अंतराल पर ब्याज लगाने से संबंधित अनुदेश कृषि अग्रिमों पर लागू नहीं होंगे और बैंक फसल-मौसमों से संबद्ध कृषि अग्रिमों पर ब्याज लगाने /चक्रवृद्धि ब्याज लगाने की वर्तमान प्रथा जारी रखेंगे। 29 जून 1998 के परिपत्र आरपीसीडी.सं.पीएलएफएस.बीसी. 129/05.02.27/97-98 में दिये गये अनुदेशों के अनुसार बैंकों को लंबे समय की फसलों के लिए कृषि अग्रिमों पर वार्षिक अंतराल पर ब्याज लगाना चाहिए। अल्प समय की फसलों और संबद्ध कृषि कार्यकलापों जैसे डेरी, मछली पालन, सुअर पालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन आदि के संबंध में यदि ऋण/ किस्त का भुगतान अतिदेय हो जाये तो बैंक ब्याज लगाते समय और चक्रवृद्धि ब्याज लगाते समय ऋण लेने वालों के साथ लचीलेपन और फसल काटने /बेचने के मौसम के आधार पर तय की गयी तारीखों को ध्यान में रखें। साथ ही, बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छोटे और सीमांत किसानों को दिए जाने वाले अल्पावधि अग्रिमों के संबंध में, किसी खाते पर नामे कुल ब्याज मूलधन की राशि से अधिक नहीं होना चाहिए।
5. माइक्रो और लघु उद्यमों (एमएसई) के लिए विभेदक ब्याज दर
एमएसई उधारकर्ताओं को दिए जाने वाले ऋणों की कीमत निर्धारित करते समय बैंकों को चाहिए कि वे एमएसई के लिए ऋण गारंटी निधि न्यास (सीजीटीएमएसई) की क्रेडिट गारंटी कवर तथा ऋण के सीजीटीएमएसई द्वारा गारंटीकृत अंश के लिए पूंजी पर्याप्तता के उद्देश्य के लिए शून्य जोखिम भार के रूप में उपलब्ध प्रोत्साहन को ध्यान में रखें तथा ऐसे एमएसई उधारकर्ताओं को अन्य उधारकर्ताओं की तुलना में विभेदक ब्याज दर प्रदान करें। तथापि, बैंक यह नोट करें कि ऐसी विभेदक ब्याज दर बैंक की आधार दर से कम नहीं होनी चाहिए।
6. संघीय व्यवस्था के अंतर्गत ऋण
बैंकों को संघीय व्यवस्था के अंतर्गत भी एकसमान दर पर ब्याज लगाना आवश्यक नहीं है। प्रत्येक सदस्य-बैंक को ऋणकर्ताओं को दी गयी ऋण-सीमा के भाग पर अपनी आधारभूत मूल उधार दर के अधीन ब्याज लगाना चाहिए।
7. समाशोधित न हुए चेक आदि पर आहरण
ग्राहक-सेवा के एक उपाय के रूप में उगाही के लिए भेजे गये चेकों के संबंध में तत्काल राशि जमा करने संबंधी जमाकर्ताओं को दी गयी सुविधा पर कोई ब्याज लागू नहीं होगा।
8. दंडात्मक ब्याज दर लगाना
बैंकों को अपने निदेशक-मंडल के अनुमोदन से दंडात्मक ब्याज लगाने के लिए पारदर्शी नीति बनाने की अनुमति दी गई है। परंतु प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के उधारकर्ताओं को दिये गये ऋणों के संबंध में रुपए 25,000/- तक के ऋणों के लिए कोई दंडात्मक ब्याज नहीं लगाया जाना चाहिए। चुकौती में चूक, वित्तीय विवरण प्रस्तुत न करने आदि कारणों के लिए दंडात्मक ब्याज लगाया जा सकता है। परन्तु दंडात्मक ब्याज संबंधी नीति पारदर्शिता, निष्पक्षता, ऋण की चुकौती के लिए प्रोत्साहन और ग्राहकों की वास्तविक कठिनाइयों को ध्यान में रखने के सम्यक्-स्वीकृत सिद्धांतों को आधार बनाकर तैयार की जानी चाहिए।
9. उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के लिए शून्य प्रतिशत ब्याज-दर वाली ऋण योजनाएं
बैंकों को निर्माताओं / डीलरों से प्राप्त डिस्काउंट के समायोजन के माध्यम से ऋणकर्ताओं को उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के लिए कम / शून्य प्रतिशत ब्याज-दर पर अग्रिम देने से बचना चाहिए क्योंकि ऐसी ऋण- योजनाओं में परिचालनगत पारदर्शिता की कमी होती है और इनके चलते ऋण उत्पादों की मूल्यन-व्यवस्था विकृत हो जाती है। ये उत्पाद लगाये गए ब्याज की दरों के संबंध में ग्राहकों को स्पष्ट जानकारी भी नहीं देते। बैंकों को विभिन्न समाचार-पत्रों और प्रचार माध्यमों में विज्ञापन देकर ऐसी योजनाओं को बढ़ावा भी नहीं देना चाहिए कि वे ऐसी योजनाओं के अंतर्गत उपभोक्ताओं को सुविधा /वित्त प्रदान कर रहे हैं। बैंकों को किसी भी ऐसे प्रोत्साहन-आधारित विज्ञापन के साथ किसी भी रूप में/प्रकार से अपना नाम जोड़ने से बचना चाहिए जहां ब्याज दर के संबंध में स्पष्टता न हो।
10. बैंकों द्वारा प्रभारित अत्यधिक ब्याज
हालांकि ब्याज दरों का अविनियमन किया गया है, फिर भी, एक विशिष्ट स्तर से अधिक ब्याज लगाने को सूदखोरी माना जाता है और उसे न तो निरंतर बनाए रखा जा सकता है और वह न ही सामान्य बैंकिंग प्रथाओं के अनुसार हो सकता है। अत: बैंकों के बोर्डों को सूचित किया गया है कि वे ऐसे उचित आंतरिक सिद्धांत तथा क्रियाविधियां निर्धारित करें कि जिससे वे ऋण तथा अग्रिमों पर अत्यधिक (सूदखोर) ब्याज, जिसमें प्रसंस्करण तथा अन्य प्रभार शामिल हैं, नहीं लगाएंगे। कम मूल्य के ऋणों, विशेषत: व्यक्तिगत ऋणों तथा उसी प्रकार के कुछ अन्य ऋणों के संबंध में ऐसे सिद्धांतों तथा क्रियाविधियों को निर्धारित करते समय बैंकों को अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित विस्तृत दिशानिर्देशों को ध्यान में लेना होगा :
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ऐसे ऋणों को स्वीकृत करने के लिए एक उचित पूर्वानुमोदन प्रक्रिया निर्धारित करनी होगी। इस प्रक्रिया में अन्य बातों सहित भावी उधारकर्ता के नकद प्रवाहों को ध्यान में लिया जाना चाहिए।
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बैंकों द्वारा प्रभारित ब्याज दरों में अन्य बातों के साथ-साथ उधारकर्ता के आंतरिक रेटिंग को ध्यान में लेते हुए उचित तथा योग्य समझे गये जोखिम प्रीमियम को शामिल किया जाना चाहिए। इसके अलावा, जोखिम पर विचार करते समय, जमानत का होना या न होना तथा उससे मूल्य को ध्यान में लिया जाना चाहिए।
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उधारकर्ता के लिए ऋण की कुल लागत, जिसमें ऋण पर लगाए जाने वाला ब्याज और अन्य सभी प्रभार शामिल हैं, उचित होनी चाहिए और जिस ऋण को चुकाया जाना है, उसे प्रदान करने में बैंक द्वारा लगाई गई कुल लागत तथा उक्त लेन-देन से अपेक्षित उचित लाभ की मात्रा के अनुकूल होनी चहिए।
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ऐसे ऋणों पर लगाए जाने वाले प्रसंस्करण तथा अन्य प्रभारों सहित ब्याज की एक उचित उच्चतम सीमा निर्धारित की जानी चाहिए और उसे समुचित रूप से प्रकाशित किया जाना चाहिए।
अनुबंध -2
30 जून 2010 तक स्वीकृत किए गए ऋणों पर लागू होने वाले बेंचमार्क मूल उधार दर (बीपीएलआर) संबंधी दिशानिर्देश [कृपया पैराग्राफ 2 देखें]
18 अक्तूबर 1994 से भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2 लाख रुपयों से अधिक राशि के अग्रिमों पर ब्याज दरों का अविनियमन किया है और ऐसे अग्रिमों पर ब्याज की दरें बीपीएलआर और स्प्रेड संबंधी दिशानिर्देशों के अधीन बैंकों को अपने आप निर्धारित करनी है। 2 लाख रुपयों तक की ऋण सीमाओं के लिए बैंकों को उतना ही ब्याज प्रभारित करना चाहिए जो कि उनके बीपीएलआर से अधिक नहीं है। अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं को ध्यान में रखते हुए और वाणिज्य बैंकों को अपनी उधार दरों को निश्चित करने में परिचालनगत लचीलापन प्रदान करने के लिए, बैंक अपने संबंधित बोर्डों द्वारा अनुमोदित पारदर्शी तथा वस्तुपरक नीति के आधार पर निर्यातकों अथवा अन्य ऋण देने के लिए पात्र उधारकर्ताओं को बीपीएलआर से कम दर पर ऋण दे सकते हैं, जिनमें सार्वजनिक उपक्रम शामिल हैं। बैंक बीपीएलआर से ऊपर ब्याज दरों के अधिकतम स्प्रेड को घोषित करना जारी रखेंगे।
भारत में प्रचलित ऋण बाज़ार की स्थिति तथा छोटे उधारकर्ताओं को रियायत देना जारी रखने की आवश्यकता के परिप्रेक्ष्य में बीपीएलआर को 2 लाख रुपयों तक के ऋणों के लिए उच्चतम सीमा मानने की प्रथा जारी रहेगी।
टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं को खरीदने के लिए दिए गए ऋणों, शेयर तथा डिबेंचर्स/बांडों की जमानत पर व्यक्तियों के दिए गए ऋणों, अन्य गैर-प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र व्यक्तिगत ऋणों आदि के संबंध में नीचे दिए गए ब्यौरों के अनुसार बैंक बीपीएलआर से संदर्भ किए बिना तथा ऋण की मात्रा पर ध्यान दिए बिना ब्याज दरों का निर्धारण करने के लिए स्वतंत्र हैं।
न्यूनतम मूल उधार दर संबंधित बैंक की सभी शाखाओं में एकसमान रूप से लागू की जाएगी ।
बेंचमार्क मूल उधार दर का निर्धारण
बैंकों के ऋण उत्पादों के मूल्य निर्धारण में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए तथा यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कि मूल उधार दर वास्तविक लागत दर्शाये, बैंक अपनी बेंचमार्क मूल उधार दर का निर्धारण करते समय नीचे दिये गये सुझावों पर विचार करें :
बैंकों को बेंचमार्क मूल उधार दर निर्धारित करते समय अपनी (i) निधियों की वास्तविक लागत; (ii) परिचालन व्यय तथा (iii) प्रावधानीकरण / पूंजी प्रभार तथा लाभ मार्जिन संबंधी विनियामक अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए न्यूनतम मार्जिन को ध्यान में रखना चाहिए । बैंकों को अपने निदेशक-मंडल के अनुमोदनसे बेंचमार्क मूल उधार दर घोषित करनी चाहिए ।
बेंचमार्क मूल उधार दर 2 लाख रुपये तक की ऋण-सीमा के लिए अधिकतम दर होगी ।
उपर्युक्त के अनुसार मीयादी प्रीमियम तथा /अथवा जोखिम प्रीमियम को विचार में लेते हुए निर्धारित की गई बेंचमार्क मूल उधार दर के संदर्भ में सभी अन्य उधार दरें निर्धारित की जा सकती हैं।
बेंचमार्क मूल उधार-दर के परिचालनगत पहलुओं से संबंधित विस्तृत दिशानिर्देश भारतीय बैंक संघ ने 25 नवंबर 2003 को जारी किए हैं।
ग्राहक संरक्षण के हित में और उधारकर्ताओं को प्रभारित की गई वास्तविक ब्याज दरों के संबंध में अधिक पारदर्शिता हो, इसके लिए बैंकों को चाहिए कि वे बेंचमार्क मूल उधार दर के साथ प्रभारित की जाने वाली अधिकतम तथा न्यूनतम ब्याज दरों संबंधी जानकारी देना जारी रखें।
उधार दरें निश्चित करने की स्वतंत्रता
निम्नलिखित ऋणों के संबंध में बैंकों को बीपीएलआर से संदर्भ किए बिना तथा ऋण की मात्रा पर ध्यान दिए बिना ब्याज दर निर्धारित करने की स्वतंत्रता है :
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टिकाऊ- उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने के लिए ऋण;
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शेयर तथा डिबेंचर्स /बांडों की जमानत पर व्यक्तियों को दिए गए ऋण;
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क्रेडिट कार्ड देयताओं सहित अन्य गैर-प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र व्यक्तिगत ऋण;
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बैंक के पास घरेलू / अनिवासी बाह्य खाता / विदेशी मुद्रा अनिवासी (बैंक) जमाराशियों की जमानत पर अग्रिम / ओवरड्राफ्ट, बशर्ते कि जमाराशि / जमाराशियां या तो ऋणकर्ता / ऋणकर्ताओं के स्वयं के नाम में हों या किसी अन्य व्यक्ति के साथ संयुक्त रूप में ऋण लेनेवाले के नाम में हों;
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अंतिम हिताधिकारियों को आगे उधार देने के लिए आवास वित्त मध्यवर्ती एजेंसियों (नीचे दी गयी सूची) सहित मध्यवर्ती एजेंसियों तथा निविष्टि समर्थन देने वाली एजेंसियों को प्रदान किया गया वित्त;
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बिलों की भुनाई;
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चयनात्मक ऋण नियंत्रण के अधीन पण्यों /वस्तुओं की जमानत पर दिए गए ऋण/ अग्रिम/ नकद ऋण /ओवरड्राफ्ट;
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किसी सहकारी बैंक को या किसी अन्य बैंकिंग संस्थान को;
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अपने ही कर्मचारियों को ;
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मीयादी ऋणदात्री संस्थाओं की पुनर्वित्त योजनाओं द्वारा कवर किए गए ऋण।
मध्यवर्ती एजेन्सियों की उदाहरणस्वरूप सूची
1. कमज़ोर वर्गों को आगे ऋण देने के लिए राज्य द्वारा प्रायोजित संगठन। कमज़ोर वर्गों में निम्नलिखित शामिल हैं -
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5 एकड़ और उससे कम भूधारितावाले लघु और सीमांत किसान, भूमिहीन श्रमिक, काश्तकार और बंटाईदार;
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शिल्पी, ग्रामीण और कुटीर उद्योग जिनमें अलग-अलग ऋण संबंधी अपेक्षाएं 50 हजार रुपये से अधिक न हों;
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स्वर्ण जयंती रोजगार योजना के लाभार्थी;
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अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति।
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विभेदक ब्याज दर योजना के लाभार्थी;
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स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना के अंतर्गत लाभार्थी;
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सफाईवालों की मुक्ति और पुनर्वास योजना के अंतर्गत आनेवाले लाभार्थी।
-
स्वयं सहायता समूहों को स्वीकृत अग्रिम।
-
विपत्तिग्रस्त गरीबों को अनौपचारिक क्षेत्र से लिए गए उनके ऋण को चुकाने के लिए उचित संपार्श्विक अथवा सामूहिक जमानत पर ऋण।
समय-समय पर भारत सरकार द्वारा अधिसूचित किए गए अनुसार अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्तियों को उपर्युक्त (i) से (viii) के अंतर्गत प्रदान किये गये ऋण है।
उन राज्यों में जहां अधिसूचित किए गए अल्पसंख्यक समुदाय में से एक वास्तव में अधिसंख्यक समुदाय है वहां मद (ix) के अंतर्गत केवल अन्य अधिसूचित अल्पसंख्यक कवर किए जाएंगे। वे राज्य/संघ शासित प्रदेश हैं, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, सिक्किम, मिज़ोरम, नागालैण्ड और लक्षद्वीप।
2. कृषि निविष्टियों /उपकरणों के वितरक।
3 राज्य वित्त निगम /राज्य औद्योगिक विकास निगम, उस सीमा तक जिस सीमा तक वे कमज़ोर वर्गों को ऋण प्रदान करते हैं।
4. राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम।
5. खादी और ग्रामोद्योग आयोग।
6. विकेंद्रीकृत क्षेत्र को मदद करनेवाली एजेंसियां।
7. कमज़ोर वर्गों को आगे ऋण प्रदान करने के लिए राज्य प्रायोजित संगठन।
8. आवास और शहरी विकास निगम लि. (हुडको)।
9. राष्ट्रीय आवास बैंक द्वारा पुनर्वित्त के लिए अनुमोदित आवास वित्त कंपनियां।
10. अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिए राज्य प्रायोजित संगठन (इन संगठनों के लाभार्थियों को निविष्टियों की खरीद और आपूर्ति के लिए और /अथवा उनके उत्पादन के विपणन के लिए)।
11. स्वयं सहायता समूहों को आगे ऋण देने के लिए व्यष्टि वित्त संस्थाएं/गैर सरकारी संगठन।
परिशिष्ट
‘अग्रिमों पर ब्याज दरें’ संबंधी मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
क्र.सं |
परिपत्र सं. |
तारीख |
विषय |
1. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.36/सी.347-90 |
22.10.1990 |
लेनदेन को निकटतम रुपये में पूर्णांकित करना |
2. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.115/13.07.01/94 |
17.10.1994 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें |
3. |
आइईसीडी.सं.28/08.12.01/94-95 |
22.11.1994 |
उधार देने संबंधी अनुशासन का अनुपालन - क) सहायता संघीय व्यवस्था के अंतर्गत उधार के लिए ब्याज की समान दरें प्रभारित करना तथा ख) अनुशासन का अनुपालन न करने पर दंडात्मक ब्याज |
4. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.141/13.07.01-94 |
07.12.1994 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें |
5. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.89/13.07.01/95 |
21.08.1995 |
उधार दरों का अविनियमन - ब्याज कर लगाना |
6. |
बैंपविवि.सं.बीसी.99/13.07.01/95 |
12.09.1995 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें |
7. |
आरपीसीडी.सं.पीएल.बीसी.120/04.09.22/95-96 |
02.04.1996 |
बैंकों के साथ स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को सहलग्न करना-एनजीओ तथा एसएचजी पर कार्यकारी दल - सिफारिशों - अनुवर्ती कार्रवाई |
8. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.139/13.07.01/96 |
19.10.1996 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें - प्राथमिक उधार दर |
9. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.10/13.07.0197 |
12.02.1997 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें - प्राथमिक उधार दर |
10. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.124/13.07.01/97-98 |
21.10.1997 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें |
11. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.33/13.03.00/98 |
29.04.1998 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें |
12. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.36/13.03.00/98 |
29.04.1998 |
मौद्रिक तथा ऋण नीति - उपाय |
13. |
बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.35/21.01.002/99 |
24.04.1999 |
मौद्रिक तथा ऋण नीति - उपाय |
14. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.100/13.07.01/99 |
11.10.1999 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें - नियत दर ऋण |
15. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.106/13.03.00/99 |
29.10.1999 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें |
16. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.114/13.07.00/99 |
29.10.1999 |
मौद्रित था ऋण नीति की मध्यावधि समीक्षा - 1999-2000 |
17. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.168/13.03.00/2000 |
27.04.2000 |
वर्ष 2000-2001 के लिए मौद्रिक तथा ऋण नीति - ब्याज दर नीति |
18. |
बैंपविवि.सं.बीसी.178/13.07.01/2000 |
25.05.2000 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें |
19. |
बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.31/21.04.048/00-01 |
10.10.2000 |
मौद्रिक तथा ऋण नीति उपाय - वर्ष 2000-2001 की मध्यावधि समीक्षा |
20. |
आइईसीडी.सं.9/04.02.01/2000-01 |
05.01.2001 |
निर्यात ऋण पर ब्याज दरें |
21. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.106/13.03.00/2000-01 |
19.04.2001 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें |
22. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.107/13.03.00/2000-01 |
19.04.2001 |
वर्ष 2001-2002 के लिए मौद्रिक तथा ऋण नीति - ब्याज दर नीति |
23. |
आइईसीडी.सं.13/04.02.01/2000 - 01 |
19.04.2001 |
रुपया निर्यात ऋण ब्याज दरें |
24. |
ग्राआऋवि.सं.पीएलएनएफएस.बीसी.83/06.12.05/2000-01 |
28.04.2001 |
शैक्षिक ऋण योजना |
25. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.117/13.07.01/2000-01 |
04.05.2001 |
दंडात्मक ब्याज प्रभारित करना |
26. |
ग्राआऋवि.आयो.बीसी.15/04.09.01/2001-02 |
17.08.2001 |
प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधारों पर बैंकों द्वारा दंडात्मक ब्याज प्रभारित करना |
27. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.75/13.07.01/2002 |
15-03-2002 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें |
28. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.8/13.07.00/2002-03 |
26-07-2002 |
मासिक अंतरालों पर ब्याज प्रभारित करना- समेकित अनुदेश |
29. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.19/13.07.01/2002-03 |
19.08.2002 |
उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के लिए शून्य प्रतिशत ब्याज वित्त योजनाएं |
30. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.25/13.03.00/2002-03 |
19.09.2002 |
मासिक अंतरालों पर ब्याज प्रभारित करना . कृषि अग्रिम |
31. |
आइईसीडी.सं.18/04.02.01/2002-03 |
30.04.2003 |
रुपया निर्यात ऋण ब्याज दरें |
32. |
बैंपविवि.सं.बीसी.103/13.07.01/2003 |
30.04.2003 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें |
33. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.103ए/13.03.00/2002-03 |
30.04.2003 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें - प्राथमिक उधार दर तथा स्प्रेड |
34. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.10/13.03.00/2003-04 |
14.08.2003 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें |
35. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.38/13.03.00/2003-04 |
21.10.2003 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें - प्राथमिक उधार दर तथा स्प्रेड |
36. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.39/13.03.00/2003-04 |
21.10.2003 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें - प्राथमिक उधार दर तथा स्प्रेड |
37. |
बैंपविवि.सं.81/13.07.01/2003-04 |
24.04.2004 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें |
38. |
आइईसीडी.सं.10/04.02.01/2003-04 |
24.04.2004 |
रुपया निर्यात ऋण ब्याज दरें |
39. |
आइईसीडी.सं.13/04.02.01/2003-04 |
18.05.2004 |
गोल्ड कार्ड धारी निर्यातकों के लिए निर्यात ऋण ब्याज दर |
40. |
बैंपविवि.सं. बीसी.85/13.07.01/2003-04 |
18.05.2004 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें |
41. |
बैंपविवि.सं. बीसी.84/13.07.01/2004-05 |
29.04.2005 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें |
42. |
बैंपविवि.डीआइआर(ईएक्सपी).बीसी.सं.83/04.02.01/2005-06 |
28.04.2006 |
रुपया निर्यात ऋण ब्याज दरें |
43. |
बैंपविवि.डीआइआर(ईएक्सपी).बीसी.सं.79/04.02.01/2006-07 |
17.04.2007 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें |
44. |
ग्राआऋवि.आयो.बीसी.84/04.09.01/2006-07 |
30.04.2007 |
प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को उधार संबंधी दिशानिर्देश - संशोधित |
45. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.93/13.03.00/2006-07 |
07.05.2007 |
बैंकों द्वारा प्रभारित अत्यधिक ब्याज संबंधी शिकायतें |
46. |
ग्राआऋवि.सं.आयो.बीसी.10856/04.09.01/2006-07 |
18.05.2007 |
प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को उधार संबंधी संशोधित दिशानिर्देश- कमजोर वर्ग |
47. |
बैंपविवि.डीआइआर(ईएक्सपी).बीसी.सं.77/04.02.01/2007-08 |
28.04.2008 |
रुपया निर्यात ऋण ब्याज दरें |
48. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर(ईएक्सपी).बीसी.131/04.02.01/2008-09 |
29.04.2009 |
रुपया निर्यात ऋण ब्याज दरें |
49. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.88/13.03.00/2009-10 |
09.04.2010 |
आधार दर संबंधी दिशानिर्देश |
50. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर(ईएक्सपी).बीसी.102/04.02.01/2009-10 |
06.05.2010 |
रुपया निर्यात ऋण ब्याज दरें |
51. |
मेल बॉक्स स्पष्टीकरण |
14.05.2010 |
आधार दर संबंधी दिशानिर्देश |
52. |
आईबीए को पत्र |
24.06.2010 |
आधार दर संबंधी दिशानिर्देश |
53. |
मेल बॉक्स स्पष्टीकरण |
24.09.2010 |
आधार दर संबंधी दिशानिर्देश |
54. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.73/13.03.00/2010-11 |
06.1.2011 |
आधार दर संबंधी दिशानिर्देश |
55. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.81/13.03.00/2010-11 |
21.02.2011 |
आधार दर संबंधी दिशानिर्देश |
56. |
बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.34/13.03.00/2011-12 |
09.09.2011 |
आधार दर संबंधी दिशानिर्देश |
57. |
बैंपविवि..डीआइआर.सं.12740/13.07.01/2011-12 |
24.2.2012 |
आधार दर संबंधी दिशानिर्देश |
58. |
मेल बॉक्स स्पष्टीकरण |
10.04.2012 |
आधार दर संबंधी दिशानिर्देश |
59. |
मेल बॉक्स स्पष्टीकरण |
27.04.2012 |
आधार दर संबंधी दिशानिर्देश |
60. |
मेल बॉक्स स्पष्टीकरण |
31.12.2012 |
आधार दर संबंधी दिशानिर्देश |
61. |
बैंपविवि.डीआइआर.बीसी.सं 47 /13.03.00/2013-14 |
02.09.2013 |
आधार दर – संशोधित दिशानिर्देश |
62. |
बैंपविवि. डीआइआर.बीसी.सं.106/13.03.00/2013-14 |
15.04.2014 |
माइक्रो और लघु उद्यमों (एमएसई) के लिए विभेदक ब्याज दर |
63. |
मेल बॉक्स स्पष्टीकरण |
19.08.2014 |
आधार दर संबंधी दिशानिर्देश |
64. |
मेल बॉक्स स्पष्टीकरण |
08.10.2014 |
आधार दर संबंधी दिशानिर्देश |
65 |
बैंविवि.डीआईआर.बीसी.सं.63/13.03.00/2014-15 |
19.01.2015 |
अग्रिमों पर ब्याज दरें |
|