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गैर-बैंकिंग वित्‍तीय कंपनियां

यद्यपि यह भूमिका हमारी गतिविधियों का एक ऐसा पहलू है, जिसके संबंध में स्‍पष्‍ट रूप से कहीं उल्‍लेख तो नहीं है, किंतु अति महत्‍वपूर्ण गतिविधियों की श्रेणी में इसकी गिनती की जाती है। इसके अंतर्गत अर्थव्‍यवस्‍था के उत्‍पादक क्षेत्रों को ऋण उपलब्‍धता सुनिश्चित करना, देश की वित्‍तीय मूलभूत संरचना के निर्माण हेतु संस्‍थाओं की स्‍थापना करना, किफायती वित्‍तीय सेवाओं की सुलभता बढ़ाना तथा वित्‍तीय शिक्षण एवं साक्षरता को बढ़ावा देना आदि शामिल हैं।

अधिसूचनाएं


मास्टर निदेश - भारतीय रिज़र्व बैंक (पर्यवेक्षी विवरणियों की प्रस्तुति) निदेश – 2024

आरबीआई/प.वि.डी.एस.जी/2023-24/110
प.वि.डीएसजी.सं.10/33.01.001/2023-24

27 फरवरी, 2024

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर सभी वाणिज्यिक बैंक
सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
चुनिंदा भारतीय वित्तीय संस्थानों (एक्ज़िम बैंक, नाबार्ड, एनएचबी, सिडबी और एनएबीएफआईडी)
सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (आवास वित्त कंपनियों को छोड़कर) और सभी आस्ति पुनर्निर्माण कंपनियां

महोदया/महोदय,

मास्टर निदेश - भारतीय रिज़र्व बैंक (पर्यवेक्षी विवरणियों की प्रस्तुति) निदेश – 2024

कृपया दिनांक 10 अगस्त, 2023 के विकासात्मक और विनियामक नीतियों से संबंधित विवरण के पैराग्राफ 4 का संदर्भ लें। सभी पर्यवेक्षित संस्थाओं (एसई) से बैंक द्वारा समय-समय पर जारी किए गए विभिन्न निदेशों / परिपत्रों / अधिसूचनाओं के अनुसार रिज़र्व बैंक को कुछ पर्यवेक्षी विवरणियां प्रस्तुत करना अपेक्षित है।

2. सभी पर्यवेक्षी विवरणियों के लिए एक एकल संदर्भ बनाने और विवरणी प्रस्तुत करने की समय-सीमा को सुसंगत बनाने के लिए, सभी प्रासंगिक अनुदेशों को तर्कसंगत बनाया गया है और एक एकल मास्टर निदेश में समेकित किया गया है। समय-समय पर संशोधित बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 27 की उपधारा (2) और धारा 35ए; बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 56 और बैंककारी विनियमन (सहकारी समितियां) नियम, 1966 के मौजूदा प्रावधानों; भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अध्याय IIIA और IIIB के मौजूदा प्रावधानों; और वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्रचना एवं प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम, 2002 की धारा 12 ए के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, भारतीय रिज़र्व बैंक आश्वस्त होकर कि सार्वजनिक हित में ऐसा करना आवश्यक और समीचीन है, एतद्पश्चात निर्दिष्ट मास्टर निदेश जारी करता है।

3. इस निदेश में मौजूदा अनुदेशों में किए गए परिवर्तनों का सारांश अनुबंध I में दिया गया है। अंतर्निहित अधिसूचनाओं / परिपत्रों की सूची जो इस मास्टर निदेश का आधार बनती है और एतद्द्वारा जिसे निरस्त किया जा रहा है (पूर्णरूपेण से या आंशिक तौर पर) उसे अनुबंध ।। में प्रस्तुत किया गया है। पर्यवेक्षित संस्थाओं द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली लागू विवरणियों के सेट और विवरणियों के सामान्य ब्योरों को अनुबंध III में संकलित और प्रस्तुत किया गया है, जिसमें विवरणी प्रस्तुत करने के लिए वैकल्पिक समय-सीमाएं अनुबंध IV में सूचीबद्ध है। इन विवरणियों की प्रस्तुति संबंधित दिशानिर्देश बैंक की वेबसाइट पर 'विनियामक रिपोर्टिंग' टैब के अंतर्गत उपलब्ध है। पर्यवेक्षित संस्थाओं द्वारा प्रस्तुत करने के लिए लागू विवरणियां ऑनलाइन पोर्टल के विवरण अनुबंध V में दिए गए हैं। इस मास्टर निदेश में उपयोग किए गए संक्षिप्ताक्षरों की सूची अनुबंध VI में प्रदान की गई है।

4. यह स्पष्ट किया जाता है कि अन्य विनियामकीय/सांविधिक विवरणियों की प्रस्तुति इन निदेशों से प्रभावित नहीं होगी।

भवदीय,

(डॉ विजय सिंह शेखावत)
मुख्य महाप्रबंधक


मास्टर निदेश - भारतीय रिज़र्व बैंक (पर्यवेक्षी विवरणियां प्रस्तुत करना) निदेश – 2024

  विवरण
अध्याय I प्रस्तावना
अध्याय II सामान्य दिशानिर्देश
अध्याय III निरस्त करने के प्रावधान
अनुबंध I मौजूदा परिपत्रों/निदेशों में परिवर्तनों का सारांश
अनुबंध II इन निदेशों के जारी होने के साथ निरस्त किए गए परिपत्रों/अधिसूचनाओं की सूची
अनुबंध III पर्यवेक्षित संस्थाओं द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली लागू विवरणियों की सूची
अनुबंध IV चुनिंदा विवरणियों को प्रस्तुत करने के लिए वैकल्पिक समय-सीमाएं
अनुबंध V पर्यवेक्षित संस्थाओं द्वारा विवरणियां प्रस्तुत करने के लिए ऑनलाइन पोर्टल के विवरण
अनुबंध VI संक्षिप्ताक्षर

अध्याय - I
प्रस्तावना

1. संक्षिप्त शीर्षक और प्रारंभ

1.1. इन निदेशों को मास्टर निदेश - भारतीय रिज़र्व बैंक (पर्यवेक्षी विवरणियों की प्रस्तुति) निदेश - 2024 कहा जाए।

1.2. ये निदेश तत्काल प्रभाव से लागू होंगे।

2. जिन पर लागू

2.1. ये निदेश निम्नलिखित संस्थाओं पर लागू होंगे:

  1. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के अलावा सभी वाणिज्यिक बैंक। वाणिज्यिक बैंकों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (पीएसबी), निजी क्षेत्र के बैंक (पीवीबी), लघु वित्त बैंक (एसएफबी), भुगतान बैंक (पीबी), स्थानीय क्षेत्र बैंक (एलएबी) और विदेशी बैंक (एफबी) शामिल हैं।

  2. सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक।

  3. चुनिंदा अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान (एक्ज़िम बैंक, नाबार्ड, एनएचबी, सिडबी और एनएबीएफआईडी)।

  4. सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां [हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (एचएफसी) के अलावा] और सभी आस्ति पुनर्निर्माण कंपनियां (एआरसी)।

2.2. उपर्युक्त पैराग्राफ 2.1 में उल्लिखित संस्थाओं को इसके बाद इन निदेशों के प्रयोजन के लिए 'पर्यवेक्षित संस्थाएं (एसई)' के रूप में संदर्भित किया जाएगा।

2.3. वाणिज्यिक बैंकों और एनबीएफसी को जहां भी लागू हो, आईएफएससी बैंकिंग इकाइयों (आईबीयू) और विदेशी बैंकिंग इकाइयों (ओबीयू) के संचालन सहित अपने घरेलू और विदेशी परिचालन पर डेटा रिपोर्ट करना आवश्यक होगा।

2.4. यह निदेश, अनुदेशों/निदेशों के वैसे खंडों को छोड़कर जिन्हें इसमें निरस्त कर दिया गया है, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी अनुदेशों/निदेशों को अल्पीकृत करने के बजाय उनके अतिरिक्त हैं।

3. परिभाषाएँ

3.1. इन निदेशों में, जब तक संदर्भ में अन्यथा अपेक्षित न हो, यहां दिए गए पदों का वही अर्थ होगा जो यहाँ नीचे दिया गया है:

ए. पर्यवेक्षी विवरणियाँ समय-समय पर निर्धारित प्रारूपों में, प्रौद्योगिकी मंच, आवधिकता और प्रस्तुत करने के तरीके चाहे कुछ भी हों आरबीआई को प्रस्तुत किए गए सभी आवधिक / तदर्थ डेटा को संदर्भित करता है। आवधिक विवरणियों की सूची बैंक की वेबसाइट से प्राप्त की जा सकती है।

बी. सीआरआईएलसी का तात्पर्य एक डेटाबेस है, यानी, बड़े ऋणों के संबंध में सूचना का केंद्रीय भंडार (सीआरआईएलसी) जैसा कि दिनांक 30 जनवरी 2024 के 'वित्तीय संकट की प्रारंभिक पहचान, समाधान के लिए त्वरित कदम और ऋणदाताओं के लिए उचित वसूली: अर्थव्यवस्था में दबावग्रस्त आस्तियों को पुनर्जीवित करने के लिए रूपरेखा' और इस संबंध में उसके बाद के परिपत्रों/दिशानिर्देशों में निर्दिष्ट है।

सी. सीआईएमएस का तात्पर्य एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म है, यानी, विवरणी जमा करने, डेटा प्रसार और अन्य संबंधित उद्देश्यों के लिए आरबीआई की केंद्रीकृत सूचना प्रबंधन प्रणाली।

डी. यहां 'वाणिज्यिक बैंक' का तात्पर्य बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5 की उपधाराएं (सी), (डीए), (जेए) और (एनसी) के तहत परिभाषित सभी बैंकिंग कंपनियों (भारत में काम करने के लिए लाइसेंस प्राप्त भारत के बाहर निगमित बैंकों ('विदेशी बैंक'), स्थानीय क्षेत्र बैंक (एलएबी), लघु वित्त बैंक (एसएफबी), भुगतान बैंक (पीबी)) समतुल्य नए बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ('आरआरबी') और भारतीय स्टेट बैंक से है।

ई. अनुसूचित बैंक का तात्पर्य उन बैंकों से हैं जो भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की दूसरी अनुसूची में शामिल हैं।

एफ. चुनिंदा अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों का तात्पर्य है भारतीय निर्यात-आयात बैंक अधिनियम, 1981; राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम, 1981; राष्ट्रीय आवास बैंक अधिनियम, 1987; भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक अधिनियम, 1989 और राष्ट्रीय अवसंरचना वित्तपोषण एवं विकास बैंक अधिनियम, 2021 द्वारा क्रमशः स्थापित एक्जिम बैंक, राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक ('नाबार्ड'), राष्ट्रीय आवास बैंक ('एनएचबी'), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक ('सिडबी') और राष्ट्रीय अवसंरचना वित्तपोषण एवं विकास बैंक ('एनएबीएफ़आईडी')।

जी. शहरी सहकारी बैंक (यूसीबी) का तात्पर्य है बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 56 की उपधारा 1 के खंड (सीसीवी) के तहत परिभाषित सभी प्राथमिक सहकारी बैंक।

एच. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) का तात्पर्य है आरबीआई अधिनियम, 1934 की धारा 45 I के खंड (एफ) में निहित वित्तीय संस्थान का कारोबार कर रही कार्यरत कंपनी। 'प्रिंसिपल बिजनेस' मानदंड से आशय है आरबीआई की 8 अप्रैल, 1999 की प्रेस विज्ञप्ति संख्या 1998-99/1269 में यथा दिया गया।

आई. बेस, मिडिल, अपर और टॉप लेयर एनबीएफसी का वही आशय होगा जो आरबीआई की अधिसूचना DoR. FIN. REC. No. 45/03.10.119/2023-24 दिनांक 19 अक्टूबर 2023 (मास्टर निदेश - भारतीय रिज़र्व बैंक (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी - स्केल आधारित विनियमन) निदेश, 2023) और उसके बाद के स्पष्टीकरणों में दिया गया है।

आस्ति पुनर्निर्माण कंपनी (एआरसी) का तात्पर्य है आस्ति पुनर्निर्माण या प्रतिभूतिकरण, या दोनों का कारोबार करने के लिए SARFAESI अधिनियम, 2002 की धारा 3 के तहत रिज़र्व बैंक के साथ पंजीकृत कंपनी।

जब तक यहां परिभाषित नहीं किया जाता है तब तक अन्य सभी अभिव्यक्तियों का, वही अर्थ होगा जो उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934, या बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949, या वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्रचना एवं प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम, 2002 या रिज़र्व बैंक द्वारा प्रकाशित शब्दावली या वाणिज्यिक बोलचाल, जो प्रासंगिक हों, में है।

अध्याय – II
सामान्य दिशा-निर्देश

4. ठोस प्रावधान

4.1. बोर्ड और वरिष्ठ प्रबंधन के उत्तरदायित्व:

4.1.1. जोखिम डेटा एकत्रीकरण क्षमताओं और जोखिम रिपोर्टिंग प्रथाओं को पूरी तरह से प्रलेखित किया जाना चाहिए और यह सत्यापन के उच्च मानकों के अधीन होना चाहिए जो कि बैंक की अन्य स्वतंत्र जोखिम प्रबंधन समीक्षाओं के साथ संरेखित हों। जोखिम डेटा एकत्रीकरण और जोखिम रिपोर्टिंग प्रथाओं का सत्यापन विशिष्ट आईटी, डेटा और रिपोर्टिंग विशेषज्ञता वाले कर्मचारियों का सहयोग लेकर किया जाए। बोर्ड और वरिष्ठ प्रबंधन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस उद्देश्य के लिए पर्याप्त संसाधन अभिनियोजित किए गए हैं।

4.1.2. बोर्ड और वरिष्ठ प्रबंधन अपने समग्र जोखिम प्रबंधन ढांचे के भाग के रूप में डेटा गुणवत्ता जोखिमों की पहचान, मूल्यांकन एवं प्रबंधन करेंगे। ढांचे में आउटसोर्स और इन-हाउस जोखिम डेटा-संबंधित प्रक्रियाओं, डेटा गोपनीयता, संपूर्णता व उपलब्धता पर नीतियों के साथ-साथ जोखिम प्रबंधन नीतियों के लिए मानक शामिल होने चाहिए।

4.1.3. किसी भी अधिग्रहण/नि‍र्नि‍हि‍तीकरण (विनिवेश), नए उत्पाद विकास, आईटी परिवर्तन पहल आदि पर विचार करते समय, समुचित सावधानी प्रक्रिया के अंतर्गत डेटा एकत्रीकरण और रिपोर्टिंग पर ऐसी गतिविधियों द्वारा पड़ने वाले प्रभाव पर विचार होना चाहिए। ऐसे मामलों में, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि डेटा एकत्रीकरण और रिपोर्टिंग सुविधाएं एक तय समय में मौजूदा रिपोर्टिंग ढांचे के अंतर्गत आ जाएँ।

4.1.4. बोर्ड और वरिष्ठ प्रबंधन यह सुनिश्चित करेंगे कि समेकित स्तर पर या संगठन के भीतर किसी भी प्रासंगिक स्तर पर डेटा एकत्र करने और रिपोर्ट करने की पर्यवेक्षित संस्थाओं की क्षमता उनके समूह ढांचे (उदाहरण के लिए उप-समेकित स्तर, संचालन स्तर का अधिकार क्षेत्र) से बाधित न हो। विशेष रूप से डेटा एकत्रीकरण और रिपोर्टिंग, सांविधिक सीमाओं, यदि कोई हों, के अधीन, अपने विधिक संगठन और भौगोलिक उपस्थिति के संबंध में पर्यवेक्षित संस्थाओं द्वारा चयनित विकल्पों से मुक्त होनी चाहिए।

4.2. डेटा संरचना और आईटी अवसंरचना

4.2.1. एक पर्यवेक्षित संस्था न केवल सामान्य समय में बल्कि दबाव या संकट के समय में भी सटीक, पूर्ण और समयबद्ध डेटा एकत्रीकरण एवं रिपोर्टिंग के लिए डेटा संरचना व समर्थित आईटी अवसंरचना का डिजाइन, निर्माण और रखरखाव करेगी।

4.2.2. डेटा एकत्रीकरण और रिपोर्टिंग प्रथाओं को पर्यवेक्षित संस्था की कारोबार निरंतरता योजना प्रक्रिया का एक अनिवार्य भाग माना जाना चाहिए और यह कारोबार प्रभाव विश्लेषण के अधीन किया जाना चाहिए।

4.2.3. कारोबार मालिकों और आईटी टीम के बीच भूमिकाएं और उत्तरदायित्व निर्धारित किए जाने चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि डेटा को अद्यतित रखा गया है और डेटा परिभाषाओं व पर्यवेक्षित संस्था डेटा रिपोर्टिंग नीतियों के साथ इसे संरेखित किया गया है।

4.2.4. पर्यवेक्षित संस्था को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संसाधन और आईटी अवसंरचना ढांचा व्यापक ऑन-डिमांड, तदर्थ रिपोर्टिंग अनुरोधों पर कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त हैं, जिसमें दबाव / संकट की स्थिति के दौरान अनुरोधों पर कार्रवाई और पर्यवेक्षी प्रश्नों का समाधान करना भी शामिल है। पर्यवेक्षक यह अपेक्षा करते हैं कि पर्यवेक्षित संस्था अनुरोधित परिदृश्यों के आधार पर डेटा के उपवर्ग तैयार करने में सक्षम होंगे। उदाहरण के लिए, पर्यवेक्षित संस्था को किसी जिले में एक विशिष्ट उद्योग क्लस्टर के लिए एक विशेष अवधि में एक्सपोज़र होने पर डेटा को सटीक रूप से संकलित करने में सक्षम होना चाहिए।

4.3. रिपोर्टिंग में सटीकता और विश्वसनीयता

4.3.1. सटीकता और संपूर्णता सुनिश्चित करने के लिए सभी विवरणियों/जोखिम रिपोर्टों का पर्यवेक्षित संस्था के स्वयं के स्रोतों के साथ मिलान किया जाना चाहिए, जिसमें उपयुक्त होने पर लेखांकन डेटा भी शामिल है।

4.3.2. पर्यवेक्षित संस्था को विवरणी फाइल करने के लिए डेटा तैयार करने में उच्च स्तर के स्वचालन का प्रयास करना चाहिए।

4.3.3. पर्यवेक्षित संस्था विवरणी डेटा तैयार करने के लिए स्रोतों और एकत्रीकरण नियमों का उचित रिकॉर्ड बनाए रखेंगे।

4.3.4. पर्यवेक्षित संस्था से अपेक्षा की जाती है कि वे डेटा की सटीकता को मापें और उसकी निगरानी करें और डेटा गुणवत्ता में किसी भी गिरावट को सुधारने के लिए उचित उच्चलन चैनल और कार्य योजना विकसित करें।

4.4. विवरणी फाइल करने की समय-सीमा: जैसा कि अनुबंध III में दिया गया है, पर्यवेक्षित संस्था को लागू विवरणी सटीक और पूर्ण डेटा के साथ, निर्धारित समयसीमा के भीतर प्रस्तुत करना होगा।

4.4.1. विवरणी प्रस्तुत करने की समय-सीमा, सामान्य तौर पर, उस आवृत्ति पर निर्भर करेगी जिसमें विवरणी प्रस्तुत की जानी है। इसके लिए सिद्धांत नीचे सारणीबद्ध हैं:

आवधिकता संदर्भ तिथि विवरणी प्रस्तुत करने की समय-सीमा
साप्ताहिक सप्ताह का शुक्रवार अगले सप्ताह के बुधवार को या उससे पहले
पाक्षिक संबंधित माह का 15वाँ और अंतिम दिन (28वाँ/29वाँ/30वाँ/31वाँ) संदर्भ तिथि से 7 दिनों के भीतर
मासिक संबंधित माह का अंतिम दिन (28/29/30/31) संदर्भ तिथि से 15 दिनों के भीतर
तिमाही कैलेंडर तिमाही का अंतिम दिन (अर्थात 31 मार्च, 30 जून, 30 सितंबर और 31 दिसंबर) संदर्भ तिथि से 21 दिनों के भीतर
अर्धवार्षिक 31 मार्च और 30 सितंबर संदर्भ तिथि से 21 दिनों के भीतर
वार्षिक 31 मार्च संदर्भ तिथि से 21 दिनों के भीतर
नोट:
1) सभी लेखा-परीक्षित विवरणी, जहां भी लागू हो, कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 134 (विवरणी की प्रयोज्यता के अनुसार एकल/समूह स्तर) के अनुसार लेखा-परीक्षक की रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने की तारीख से 5 कार्य दिवसों के भीतर प्रस्तुत किए जाएंगे।
2) सभी तदर्थ विवरणी/डेटा आरबीआई द्वारा जारी पत्राचार में बताए अनुसार समय-सीमा के भीतर प्रस्तुत किए जाने चाहिए।

4.4.2. वैकल्पिक समय-सीमा

उपर्युक्त पैरा 4.4.1 में उल्लिखित विवरणी प्रस्तुत करने की समय-सीमा अनुबंध IV में उल्लिखित विवरणी के अलावा सभी के लिए लागू है।

4.5. तदर्थ/अतिरिक्त विवरणी: आरबीआई पर्यवेक्षित संस्था द्वारा प्रस्तुत करने के लिए नई विवरणी पेश कर सकता है/मौजूदा विवरणी (तदर्थ/नियमित दोनों) वापस ले सकता है और ऐसी संस्थाओं को उपयुक्त रूप से सूचित कर सकता है।

4.6. विवरणी प्रस्तुत करने का तरीका: जब तक कि अन्यथा विनिर्दिष्ट न हो, पर्यवेक्षित संस्था सभी विवरणी ऑनलाइन माध्यम से उन्हें बताए गए प्रारूप और तरीके से प्रस्तुत करेंगे (अनुलग्नक III देखें)। हैंड डिलीवरी/डाक/कूरियर के माध्यम से हार्ड कॉपी में या ई-मेल के माध्यम से सॉफ्ट कॉपी में प्रस्तुत किए गए विवरणी को तब तक स्वीकार नहीं किया जाएगा (यानी, पर्यवेक्षित संस्था द्वारा प्रस्तुत किया गया नहीं माना जाएगा), जब तक कि ऐसा निर्धारित न किया गया हो। आकस्मिक उपाय के रूप में, ऑन-लाइन पोर्टल की अनुपलब्धता की स्थिति में, पर्यवेक्षित संस्था को ई-मेल के माध्यम से विवरणी प्रस्तुत करने के लिए सूचित किया जाएगा। हालाँकि, पर्यवेक्षित संस्था इसकी उपलब्धता के तुरंत बाद ऑनलाइन मोड में विवरणी पुनः प्रस्तुत करेंगे।

5. दंड: सभी पर्यवेक्षित संस्था को निर्धारित समय सीमा के भीतर निदेशों में निर्धारित विवरणी में सही और सटीक सूचना प्रस्तुत करनी होगी। यदि कोई पर्यवेक्षित संस्था इन निदेशों का उल्लंघन करती हुई पाई जाती हैं, तो रिज़र्व बैंक बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 या भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 या वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण एवं सुरक्षा हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 के मौजूदा प्रावधानों के तहत, मामलानुसार, दंड/जुर्माना लगाने सहित आवश्यक कार्रवाई करेगा।

अध्याय – III
निरस्त करने के प्रावधान

6. निरस्त करने के प्रावधान

6.1. इन निदेशों के जारी होने के साथ, अनुलग्नक II में सूचीबद्ध अनुदेश/दिशानिर्देश/परिपत्र में प्रासंगिक खंड निरस्त किए जाते हैं।

6.2. उपर्युक्त निरसनों के बावजूद, निरस्त अधिनियमों के तहत किया गया कुछ भी, या की गई कोई कार्रवाई या किए जाने या किए जाने का प्रयोजन, या दिया गया कोई निदेश, या की गई कोई कार्यवाही या लगाया गया कोई दंड या जुर्माना, जहां तक इन निदेशों के असंगत नहीं है, इन निदेशों के सदृश प्रावधानों के तहत किया या लिया गया माना जाएगा।

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