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मौद्रिक नीति 2012-13 की तीसरी तिमाही समीक्षा

डॉ . डी . सुब्बाराव
गवर्नर

भूमिका

अक्टूबर 2012 में जारी मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा के समय से वैश्विक अर्थव्यवस्था की प्रगति रोकने वाली हवाओं का ज़ोर क्रमश: कुछ कम पड़ने लगा है, हालांकि सुस्ती अभी भी छायी हुई है। अमेरिका में 2012 की तीसरी तिमाही में गतिविधि में कुछ तेजी आई, पर चौथी तिमाही में इसके कायम रहने की संभावना कम प्रतीत हो रही है। यद्यपि राजकोषीय आपात् स्थिति (फ़िस्कल क्लिफ़) से बचने पर हुई राजनैतिक सहमति  ने वित्तीय बाज़ारों  को शान्त किया है, परंतु बाज़ार का मिज़ाज आगे कैसा रहता है यह इस बात पर प्रमुखता से निर्भर करेगा कि ऋण की अधिकतम सीमा को कैसे संभाला जाता है।  यूरोपीयन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) की चलनिधि की दीवार और यूनियन को बचाने के लिए मिलकर कार्य करने की प्रतिबद्धता के बावजूद लगातार सिकुड़ने से यूरो क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर ख़तरा बना हुआ है। वैसे, समग्र तौर पर कहें तो, वैश्विक वित्तीय प्रणाली में उलट-फेर करने वाले सरकारी ऋण संकट का जोखिम कुछ कम हुआ है। जापान फिर एक बार मंदी की गिरफ्त में है। उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) में चीन में विकास की गति में तेजी की संभावना है। बाहरी माँग में कमी और संरचनागत बाधाओं के कारण अधिकांश दूसरी ईडीईज़ में विकास धीमा पड़ा है।  इसके साथ ही, उनमें से कुछ में मुद्रास्फ़ीतीय दबाव बने हुए हैं। कुल मिलाकर, दूसरी तिमाही समीक्षा के समय से वैश्विक आर्थिक संभावनाओं में थोड़ा सा सुधार हुआ है हालांकि अहम जोखिम कायम हैं।

2. देश में, सुस्ती के अनिश्चित संकेतों के क्रमश: कम होने के बावजूद, विकास धीमा पड़ा हुआ है विनिर्माण (मैन्यूफैक्चरिंग) में कमी, बिजली उत्पादन में ह्रास और खनन कार्यों के घटने से औद्योगिक गतिविधि कमज़ोर पड़ी। यद्यपि सरकार द्वारा घोषित कई नीतिगत उपायों से बाज़ार का उत्साह बढ़ा है, निवेश का परिदृश्य अभी भी फ़ीका है, विशेषत: नए प्रोजेक्ट्स की डिमांड के मामले में। खपत की माँग भी धीमी पड़ रही है। जहाँ तक कृषि की संभावनाओं का प्रश्न है, रबी के उत्पादन से ख़रीफ़  में कमी की भरपाई हो पाएगी या नहीं, स्पष्ट नहीं है। सेवा क्षेत्र गतिविधि के अग्रणी संकेतक आगामी महीनों में विस्तार के संकेत दे रहे हैं, अलबत्ता वैश्विक माँग की स्थितियों में गिरावट का असर अभी भी बना हुआ है। 

3. वर्ष की पहली छमाही में हेडलाइन थोक मूल्य सूचकांक कम होने का नाम नहीं ले रहा था परंतु तीसरी तिमाही में खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति (नॉन-फूड मैन्यूफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स इंफ्लेशन) के फलस्वरूप इसके  नरम पड़ने से कुछ राहत मिली।  दूसरी ओर, खाद्य मुद्रास्फ़ीति (फूड इंफ्लेशन) के ऊपर की ओर जाने से उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फ़ीति बढ़ गई है। अग्रणी संकेतक जैसे कॉरपोरेट्स की मूल्य निर्धारण क्षमता (प्राइसिंग पॉवर) में कमी, कुछ क्षेत्रों में अतिरिक्त क्षमता, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अनुमान के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय पण्य कीमतों में स्थिरता आने की संभावना तथा अर्थव्यवस्था में और गति लाने के लिए किए गए प्रयासों से पता लगता है कि मुद्रास्फीतीय दबाव काफी बढ़ गए हैं। तथापि, 2013-14 में घरेलू मुद्रास्फ़ीति में इसके आगे उतनी तेजी से कमी होने की संभावना नहीं है क्योंकि नियंत्रित वस्तुओं की कम कीमतों में संशोधन अभी भी पूरा नहीं हुआ है और खाद्य मुद्रास्फ़ीति ऊँचाई पर बनी हुई है। इस प्रकार, मौद्रिक नीति के निर्धारण में विरोधी दबावों व इनसे जुड़े हुए ख़तरों के प्रति सजग रहना है। 

4. इस प्रकार यह नीति समीक्षा शनै:-शनै: सुधरते वैश्विक परिवेश तथा घरेलू मोर्चे पर विकास व मुद्रास्फ़ीति के बीच जोखिमों के संतुलन में निर्णायक बिंदु के परिप्रेक्ष्य में तैयार की गई है। इसे रिज़र्व बैंक द्वारा कल जारी की गयी समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों में  दी गयी विस्तृत समीक्षा के साथ पढ़ा और समझा जाए । 

5.  यह वक्तव्य चार भागों में है। भाग I में वैश्विक और घरेलू समष्टि-आर्थिक घटनाचक्र पर एक नज़र डाली गई है; भाग II  में आर्थिक विकास, मुद्रास्‍फीति और कुल मौद्रिक राशियों ( मनीटरी एग्रिगेट्स) संबंधी परिदृश्य एवं पूर्वानुमान दिए गए हैं; भाग III में मौद्रिक नीति के रुख़ को समझाया गया है और भाग IV  में मौद्रिक उपायों का उल्लेख है।     

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

वैश्विक अर्थव्यवस्था 

6. तीसरी तिमाही में अमेरिका में प्रत्याशा से अधिक विकास, चीन में कार्य-कलापों की रफ्तार के बढ़ने और उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) में औद्योगिक उत्पादन में तेजी से हाल के महीनों में वैश्विक आर्थिक गतिविधि में सुस्थिरता के संकेत देखने को मिल रहे हैं। यूरो क्षेत्र में गतिवधियां अभी मंद ही हैं, तथापि वित्तीय बाज़ारों का विश्वास जरूर बढ़ा है। तीसरी तिमाही की शिथिलता के बाद जापान में फिर से राजकोषीय प्रोत्साहन दिया गया है। यूके में तीसरी तिमाही में मामूली जीडीपी वृद्धि के बाद चौथी तिमाही में गिरावट आई। चौथी तिमाही में एचएसबीसी उभरता बाज़ार सूचकांक (ईमर्जिंग मार्केट इंडेक्स) ऊपर गया। दिसंबर में वैश्विक सम्मिश्र क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई)  भी थोड़ा सा बढ़ा।

7.  आईएमएफ के अनुसार, 2012 में विकसित अर्थव्यवस्थाओं (एईज़) और ईडीईज़ दोनों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में नरमी आई है। तथापि, मुद्रास्फ़ीति के परिदृश्य को पण्य कीमतों के दबाव से जोखिम बना हुआ है। 

घरेलू अर्थव्यवस्था 

8. वर्ष-दर-वर्ष वास्तविक जीडीपी विकास 2012-13 की पहली तिमाही के 5.5 प्रतिशत से धीमा पड़कर दूसरी तिमाही में 5.3 प्रतिशत पर आ गया। रुके निवेशों और घटते निर्यातों के साथ खपत के माँग में भी कमी आने से जीडीपी विकास के दर में गिरावट का दायरा और बढ़ गया। आपूर्ति पक्ष में देखें तो, सुस्त वैश्विक विकास के प्रति सेवा क्षेत्र (सर्विसेज़) की प्रत्यास्थता (रेज़ीलिएंस) के कमज़ोर पड़ने के संकेत हैं।  

9. आगे, गति की धारा के उलटने के कुछ अनिश्चित से संकेत हैं। अप्रैल-नवंबर 2012 में औद्योगिक उत्पादन की वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि धीमी पड़कर जहाँ 1.0 प्रतिशत पर आ गई वहीं औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के मौसमी रूप से समायोजित  तीन -माह के गतिशील औसत में उठान के संकेत हैं।  ऑर्डर बुक वॉल्यूम्स में अधिकता और नये निर्यात आदेशों के कारण दिसंबर में विनिर्माण (मैन्यूफैक्चरिंग) पीएमआई बढ़ा।  सेवा क्षेत्र (सर्विसेज़) क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) भी माँग के फिर से बढ़ने की प्रत्याशा में दिसंबर में बढ़ गया। रिज़र्व बैंक का औद्योगिक परिदृश्य सर्वेक्षण (इंडस्ट्रीयल आउटलुक सर्वे) तीसरी और चौथी तिमाही में सकारात्मक कारोबारी मिज़ाज के संकेत दे रहा है।  रबी  की बुआई के तहत कवरेज उतना ही है जितना गत वर्ष की तत्संबंधी अवधि में था। 

10. हेडलाइन थोकमूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) मुद्रास्फ़ीति सितंबर 2012 के 8.1 प्रतिशत से घटकर  दिसंबर में 7.2 प्रतिशत पर आ गई।  ध्यान देने की बात है कि, खाद्येतर विनिर्मित उत्पादों (नॉन-फूड मैन्यूफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स) की मुद्रास्फ़ीति, जिसका डब्ल्यूपीआई में भार 55 प्रतिशत है, नवंबर-दिसंबर में बड़ी तेजी से नीचे आया जिसका कारण था कि धातु, गैर-धातु खनिज व रसायन समूह की मुद्रास्फ़ीति के घटने के कारण इनपुट कीमतों का दबाव कम हो गया। मौसमी रूप से समायोजित तीन माह की गतिशील औसत वार्षिकीकृत मुद्रास्फ़ीति भी हेडलाइन और खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद (नॉन-फूड मैन्यूफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स) दोनों में नरमी के संकेत दे रही है। औद्योगिक परिदृश्य सर्वेक्षण (इंडस्ट्रीयल आउटलुक सर्वे) में भी आउटपुट कीमतों की वृद्धि दर में नरमी के संकेत को देखते हुए प्रतीत होता है कि कॉरपोरेट्स की मूल्य निर्धारण क्षमता (प्राइसिंग पावर) कमज़ोर पड़ी है। दिसंबर में ईंधन समूह (फ़्यूल ग्रूप) की मुद्रास्फ़ीति भी घटी जिसका मुख्य कारण नियंत्रण मुक्त पेट्रोलियम उत्पादों की मुद्रास्फ़ीति का घटना और रुपए के एक्सचेंज रेट का एक दायरे में रहना भी था।

11. दूसरी ओर खाद्य मुद्रास्फ़ीति ने विपरीत प्रवृत्ति दिखलाई और दिसंबर में दुहरे अंकों में चली गई। अनाजों की ओर से कीमतों का दबाव महत्त्वपूर्ण रूप से आया। दालों व अन्य प्रोटीन-प्रधान खाद्य पदार्थों की कीमतें ऊँचाई पर रहीं। पुनश्च, खाद्य तेलों और अनाज मिल उत्पादों की कीमतों में वृद्धि से खाद्य मुद्रास्फ़ीति में समग्र तौर पर गति मज़बूत बनी रही।

12. नया मिश्रित (ग्रामीण व शहरी) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) (आधार: 2010=100), मुख्यत: खाद्य मुद्रास्फ़ीति में वृद्धि के कारण, दिसंबर में बढ़कर 10.6 प्रतिशत पर चला गया। खाद्य व ईंधन समूहों को छोड़कर सीपीआई मुद्रास्फ़ीति तीसरी तिमाही में 8.4 प्रतिशत पर अपरिवर्तित बनी रही।

13. रिज़र्व बैंक के ताज़ा शहरी हाउसहोल्डस सर्वे के अनुसार चौथी तिमाही में मुद्रास्फ़ीति प्रत्याशाएं मामूली रूप से बढ़ीं। हाल में आई कुछ कमी के बावजूद ग्रामीण इलाकों में मजदूरी जन्य मुद्रास्फ़ीति अधिक बनी रही; और चूँकि मजदूरी में वृद्धि के साथ उत्पादकता में वृद्धि नहीं हुई है, इससे मुद्रास्फ़ीतीय दबाव बढ़े हैं। रिज़र्व बैंक के तिमाही आवास मूल्य सूचकांक द्वारा मापी गई आवास मूल्य मुद्रास्फ़ीति वर्ष-दर-वर्ष आधार पर अधिक बनी रही।

14. तीसरी तिमाही में कंपनियों के प्रदर्शन के प्रारंभिक परिणामों का विश्लेषण बताता है कि विक्रय व व्यय वृद्धि दोनों में कमी आई जबकि लाभ-मार्जिन में मोटे तौर पर कोई बदलाव नहीं आया। 

15. वर्ष-दर-वर्ष मुद्रा आपूर्ति (एम3) की वृद्धि मध्य-जनवरी में गिर कर 14.0 प्रतिशत के सांकेतिक मार्ग के नीचे 12.9 प्रतिशत पर रह गई । यह मूलत: समग्र जमाराशियों की वृद्धि में ह्रास और आर्थिक कार्य-कलापों में नरमी को दर्शाता है।  

16. मध्य-जनवरी तक 16.2 प्रतिशत पर वर्ष-दर-वर्ष ऋण-वृद्धि सांकेतिक मार्ग के आस-पास रही। तथापि, उद्योग को जाने वाले बैंक ऋण में काफ़ी ह्रास दिखाई दिया जबकि कृषि को जाने वाले ऋण ने वृद्धि दर्ज की।

17. वर्तमान वित्तीय वर्ष में मध्य जनवरी तक वाणिज्य क्षेत्र को वित्तीय संसाधनों का अनुमानित कुल प्रवाह    `9.6 ट्रिलियन था जो कि गत वर्ष की तत्संबंधी अवधि के `8.1 ट्रिलियन से अधिक है। इसका मुख्य कारण बैंक-ऋण में वृद्धि और बैंक से इतर इकाइयों द्वारा वाणिज्यिक पत्र (कमर्शियल पेपर) की ख़रीद रही।

18. जहाँ तक 2012-13 की तीसरी तिमाही में मौद्रिक नीति के संचरण का प्रश्न है, अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की औसत सावधि जमा दरों में हल्की सी कमी आई। यद्यपि नए बैंकों ने इस तिमाही के दौरान अपने बेस रेटों में थोड़ी सी कमी की, परंतु भारित औसत उधार दर और मोडल बेस रेट इस तिमाही में मोटे तौर पर अपरिवर्तित ही रहे।

19. केंद्र सरकार के कैश-बैलेंस में बढ़ोतरी, त्यौहारों के चलते करेंसी की मांग में थोक वृद्धि और जमाराशि वृद्धि एवं ऋण वृद्धि में बढ़ते फासले के चलते पड़ने वाले संरचनात्मक दबाव के कारण नवंबर के दूसरे सप्ताह से चलनिधि स्थितियां तंग रहीं। चलनिधि दबावों का अनुमान करते हुए रिज़र्व बैंक ने एक के बाद एक सितंबर की मध्य तिमाही समीक्षा (एमक्यूआर) और अक्टूबर की दूसरी तिमाही समीक्षा में आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में कमी की । इसके अतिरिक्त रिज़र्व बैंक ने दिसंबर 2012 से जनवरी 2013 के बीच पाँच बार खुले बाज़ार के परिचालन (ओएमओ) किए और बैंकिंग सिस्टम में `470 बिलियन की चलनिधि डाली। इन उपायों के बावजूद, जनवरी में (27 जनवरी तक) `910 बिलियन की औसत निवल एलएएफ उधारियां रिज़र्व बैंक के सुकून के दायरे से ऊपर रहीं।

20. जनवरी में यील्ड्स में वृद्धि हुई और सरकारी प्रतिभूति (जी-सेक) बाज़ार का टर्नओवर बढ़ गया। कारोबारी मिज़ाज के सुधरने और विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआईज़) की ओर से आने वालों प्रवाहों में बढ़ोतरी के कारण 2012-13 की तीसरी तिमाही में इक्विटी मार्केट और ऊपर गया।

21. दिसंबर में लगातार आठवें महीने निर्यात घटा जो बाहरी माँग की दबी हुई स्थितियों और संरचनागत बाधाओं को दर्शाता है।  दूसरी ओर तेल व स्वर्ण आयात में अधिकता के कारण आयात बढ़ गए जिसका परिणाम हुआ कि तीसरी तिमाही में पण्य वस्तु व्यापार घाटा एक वर्ष पहले के अपने स्तर की तुलना में ज्यादा हो गया। इस बड़े व्यापार घाटे के अतिरिक्त, सेवाओं (सर्विसेज़) के निवल निर्यात में सुस्ती और निवेश आय भुगतान के चलते बाहर जाने वाले प्रवाह के फलस्वरूप ऐसी संभावना है कि तीसरी तिमाही में चालू खाता घाटा और बढ़कर 2012-13 की दूसरी तिमाही में दर्ज जीडीपी के 5.4 प्रतिशत के स्तर से भी अधिक हो जाए। 

22. अब तक, पूँजी का निवल प्रवाह चालू खाता घाटे (सीएडी) के वित्तपोषण (फाइनैंसिंग) के लिए पर्याप्त होता था। संविभाग निवेश (पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट) से आने वाला निवल प्रवाह और अनिवासी जमाराशियों में हुई वृद्धि ने बाह्य वाणिज्यिक उधारियों और भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) में कमी की भरपाई कर दी। यद्यपि पूँजी का निवल प्रवाह अच्छा रहा है, पर चालू खाता घाटे (सीएडी) के विशाल होने के चलते बाहरी वित्तपोषण की बड़ी आवश्यकता के दबाव से रुपया नीचे गया और मार्च 2012 के स्तर की तुलना में जनवरी 2013 में सांकेतिक व वास्तविक मानदंडों (नॉमिनल एंड रीयल टर्म्स) में रुपए का मूल्यह्रास हुआ।

23. रिटेल, विमानन (एवीएशन), प्रसारण (ब्रॉडकास्टिंग) व इंश्योरेंस में एफडीआई, सामान्य परि‍वर्जन-रोधी नि‍यम (गार) का स्थगन, घरेलू कंपनियों द्वारा बाहरी स्त्रोतों से उधारों पर विथहोल्डिंग टैक्स में कमी, निवेश पर कैबिनट कमिटी का गठन जैसे विभिन्न कदम जो सरकार ने मध्य-सितंबर से उठाए हैं, उनसे बाज़ार का उत्साह बढ़ा है और इससे निवश बढ़ना चाहिए।  सामानांतर रूप से ईंधन की नियंत्रित कीमतों के उत्तरोत्तर अविनियमन के साथ राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने व समेकन (कॉन्सोलिडेशन) की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के दृढ़ प्रयास से दुहरे घाटों पर लगाम कसने की संभावना बनती दिखती है। इन नीतिगत कार्रवाइयों से समष्टि आर्थिक स्थितियां में स्थिरता लाने और अर्थव्यवस्था को इसके उच्च विकास मार्ग पर वापस लाने में सहायता मिलेगी। मध्यावधि में संभावित विकास पथ को और आगे ले जाने के लिए यह आवश्यक है कि उत्पादकता को बढ़ाने, स्पर्धात्मकता को बेहतर करने और आपूर्ति संबंधी बाधाओं को मैनेज करने में आगे और सुधार किए जाएं और ऊर्जा की उपलब्धता में बढ़ोतरी की जाए।

II. परिदृश्य और पूर्वानुमान

वैश्विक परिदृश्य

वृद्धि

24. वैश्विक वित्तीय स्थितियों में हो रहा सुधार, 2013 में वैश्विक विकास संभावनाओं के लिए सहायक है, परंतु इससे होने वाले समुत्थान में उतनी ताकत नहीं प्रतीत हो रही है और इसमें नीचे जाने के ख़तरे अहम रूप से भरे हुए हैं। विकसित अर्थव्यवस्थाओं (एईज़) का परिदृश्य कमज़ोर बना हुआ है। 2012 की चौथी तिमाही में विनिर्माण (मैन्यूफ़ैक्चरिंग) के स्थिर होने और सेवा कार्य-कलापों के अग्रणी संकेतक ऊपर की ओर इशारा कर रहे हैं, पर 2013 में विकास की संभावनाएं उतनी पुष्ट नहीं हैं क्योंकि ऊँची बेरोजगारी, लागातार जारी डिलीवरेजिंग, वित्तीय कमज़ोरी, लगातार बने हुए सरकारी-ऋण-खतरे और राजकोषीय सख़्ती ये सभी चीजें एक दूसरे पर नकारात्मक फीडबैक के चक्र से असर डाल रही हैं और इस प्रकार विकास की राह के रोड़े दूर नहीं हो रहे हैं।  इस अधोगामी चक्र से निकलना सुदृढ़ संरचनात्क सुधारों और विश्वसनीय राजकोषीय समेकन (फिस्कल कॉन्सोलिडेशन) पर निर्भर करेगा। उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के लिए 2013 में मज़बूत विकास की राह पर फिर से आने से रोकने वाली एक प्रमुख चुनौती बाह्य माँग में कमजोरी की होगी। इन सबका जायजा लेते हुए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपने ताज़ा वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक अपडेट (जनवरी 2013) में  2013 के विश्व-आर्थिक विकास के संबंध में  अक्टूबर 2012 में किए गए 3.6 प्रतिशत के अपने पूर्वानुमान को घटाकर 3.5 प्रतिशत कर दिया।

मुद्रास्फ़ीति

25. अधिकांश विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फ़ीति दरें नरम पड़ी हुई हैं जो उत्पादन (आउटपुट) में बड़े अंतरालों और मजदूरी पर अधोगामी दबाव को दर्शाता है। हालांकि 2012 में प्रमुख ईडीईज़ में मुद्रास्फ़ीति कुछ पीछे खिसकी, पर दक्षिण एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरिबीयन में ऊँचाई पर अड़ी रही। तेल की बढ़ी हुई कीमतों और देश-विशेष की आपूर्ति-पक्ष की बाधाओं से ईडीईज़ में 2014 में मुद्रास्फ़ीति के ऊपर जाने का दबाव बना रह सकता है। वैश्विक माँग में कमी को देखते हुए, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ)  का अनुमान है कि 2013 में तेल कीमतों में कुछ नरमी आ सकती है। तथापि भू-राजनैतिक कारणों और आपूर्ति में अड़चनों से इसके बढ़ने के जोखिम भी हैं। 

घरेलू परिदृश्य

विकास

26. जुलाई 2012 की पहली तिमाही समीक्षा में 2012-13 में जीडीपी विकास के संबंध में रिज़र्व बैंक का अनुमान 6.5 प्रतिशत का था। अक्टूबर की दूसरी तिमाही समीक्षा में इसे घटाकर 5.8 प्रतिशत किया गया जो बढ़ते वैश्विक जोखिम और साथ ही रुकी हुई निवेश माँग, खपत व्यय में कमी और निर्यात में गिरावट के चलते बढ़े हुए घरेलू जोखिमों का परिचायक था। तब से औद्योगिक गतिविधि में ढंडापन है। बाह्य माँग में मंदी से सेवा (सर्विसेज़) में सुधार बाधित हो रहा है। रबी की बुआई का कवरेज बढ़ा है, पर कुछ हिस्सों में कड़ाके की ठंड ने फसल की संभावनाओं को ख़तरे में डाल दिया है।  नई निवेश माँग, जिसे समुत्थान का प्रमुख कारक होना चाहिए, में कमजोरी बनी हुई है।  सरकार के कई नीतिगत प्रयासों ने बाज़ार का उत्साह बढ़ाया है, परंतु निवेश में आई मंदी को उलटने और विकास में जोश भरने में कुछ समय लगेगा।  तदनुसार, इन विचारों के आधार पर, वर्ष 2012-13 के लिए जीडीपी वृद्धि के आधार-स्तरीय पूर्वानुमान (बेसलाइन प्रोजेक्शन) को दूसरी तिमाही समीक्षा के 5.8 से घटाकर 5.5 प्रतिशत किया गया है (चार्ट 1)।

मुद्रास्फ़ीति

27. मंथर विकास और कुछ क्षेत्रों में अतिरिक्त क्षमता के माहौल में खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति (नॉन-फूड मैन्यूफ़ैक्चर्ड प्रॉडक्ट्स इन्फ्लेशन) का तीसरी तिमाही के दौरान काफी कम होना बताता है कि मुद्रास्फ़ीति अपनी चोटी से उतर चुकी है। तथापि, लगातार बनी हुई खाद्य मुद्रास्फ़ीति, आगामी कई महीनों में डीजल कीमतों में समायोजन (एडजस्टमेंट) और अन्य नियंत्रित कीमतों में समायोजन की संभावना के कारण मुद्रास्फ़ीति के अपने वर्तमान स्तर के आस-पास बने रहने की संभावना है। यदि कच्चा तेल व अन्य अंतर्राष्ट्रीय पण्य कीमतें और नीचे जाती हैं तो डीज़ल कीमतों में क्रमिक वृद्धि के असर को कुछ कम करेंगी, बशर्ते मुद्रा (करेंसी) का उतार-चढ़ाव इसे बेकार न कर दे। वैसे, मुद्रास्फ़ीतीय दबाव में गिरावट का बने रहना आपूर्ति बाधाओं के हटने और राजकोषीय समेकन (फिस्कल कॉन्सोलिडेशन) में प्रगति पर निर्भर है। इससे मजदूरी वृद्धि के कारण होने वाले लागत दबावों को कम करने में सहायता मिलेगी। खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति में प्रत्याशित कमी, घरेलू आपूर्ति-माँग संतुलनों और पण्य वस्तुओं में वैश्विक रुझान को देखते हुए मार्च 2013 के लिए आधार-स्तरीय थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति (बेसलाइन डब्ल्यूपीआई इन्फ्लेशन) पूर्वानुमान को संशोधित करते हुए दूसरी तिमाही समीक्षा के 7.5 से घटाकर 6.8 प्रतिशत किया गया है (चार्ट 2)।

1

28. यद्यपि विगत दो वर्षों में मुद्रास्फ़ीति लगातार ऊँची रही है, यह नोट करना महत्त्वपूर्ण है कि 2000 के दशक में डब्ल्यूपीआई और सीपीआई दोनों के अनुसार यह औसतन 5.5 प्रतिशत के आस-पास रही जो कि इसके पहले के औसत 7.5 से कम है। इस रिकॉर्ड की पृष्ठभूमि में मौद्रिक नीति का संचालन मुद्रास्फ़ीति की अवधारणा को 4.0-4.5 प्रतिशत के दायरे में बनाए रखने व नियंत्रित करने का होगा। यह विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ भारत के व्यापक एकीकरण के अनुरूप 3.0 प्रतिशत मुद्रास्फ़ीति के मध्यावधि लक्ष्य के अनुसार है।

कुल मौद्रि‍क राशि‍यां ( मॉनिटरी एग्रिगेट्स )  

29.  मुद्रा आपूर्ति (एम3) अब तक 2012-13 के सांकेतिक अनुमानों से पीछे है पर खाद्येतर ऋण वृद्धि (नॉन-फूड क्रेडिट ग्रोथ) पूर्वानुमान के आस-पास रही है। पिछली तिमाही के मौसमी ढर्रे को देखते हुए, 2012-13 के लिए एम3 वृद्धि का पूर्वानुमान 14.0 प्रतिशत से घटाकर 13.0 प्रतिशत किया गया है जबकि खाद्येतर ऋण वृद्धि (नॉन-फूड क्रेडिट ग्रोथ) का पूर्वानुमान 16.0 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है। हमेशा की तरह ये संख्याएं सांकेतिक पूर्वानुमान हैं न कि लक्ष्य ।

जोखिम के कारक

30.  आगामी समष्टि-आर्थिक प्रबंधन कई तरह के जोखि‍मों पर नि‍र्भर हैं जि‍न्हें नीचे बताया जा रहा है:  

I) घरेलू मोर्चे पर, विशाल राजकोषीय घाटे और धीमे पड़ते विकास के परिप्रेक्ष्य में चालू खाता घाटा (सीएडी) अंतराल के ऐतिहासिक ऊँचाई पर पहुँचने से अर्थव्यवस्था को दुहरे घाटों (ट्विन डेफिसिट्स) का जोखिम है। उत्तरोत्तर जोखिम वाले और अस्थिर प्रवाहों से चालू खाता घाटे (सीएडी) के वित्तपोषण के कारण अर्थव्यवस्था में जोखिम रुझान व चलनिधि को मिलने वाली तरजीह में यकायक बदलावों से अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने की संभावना बढ़ जाती है जो समष्टि-आर्थिक एवं विनिमय दर (एक्सचेंज रेट) की स्थिरता के लिए ख़तरा बन सकता है। बड़े राजकोषीय घाटों से चालू खाता घाटा (सीएडी) का जोखिम बढ़ेगा, निजी निवेश और भी घट जाएगा तथा विकास के आवेग कुंद पड़ जाएंगे। 

ii) वैश्विक जोखिम ऊँचाई पर बने हुए हैं तथा व्यापार, वित्त एवं विश्वास के रास्तों से इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। अमेरिका में, ऋण की सीमा के संभालने में राजनैतिक निष्क्रियता या राजकोषीय मितव्ययिता की अचानक शुरुआत के जोखिम से भी वित्तीय बाज़ारों में हलचल हो सकती है जिसका परिणाम आर्थिक कार्य-कलापों में मंदी के रूप में आ सकता है। विश्वसनीय व व्यापक नीतिगत कार्रवाई की निरंतर अनुपस्थिति के कारण यूरो क्षेत्र सरकारी ऋण संकट के बढ़ने से वैश्विक जोखिम की एक संभावना बराबर बनी हुई है; और इसके अलावा भू-राजनैतिक तनाव भी हैं जो महत्त्वपूर्ण वस्तुओं, विशेषत: कच्चे तेल, की आपूर्तियों/कीमतों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। जोखिम से कतराने की विश्वव्यापी प्रवृत्ति को इन ताकतों से बढ़ावा मिलने की संभावना है और इसका असर सीएडी की फ़ाइनैंसिंग पर पड़ सकता है।

iii) विगत तीन वर्षों की मुद्रास्फ़ीति में माँग के दबावों और आपूर्ति की बाधाओं दोनों का हाथ रहा है। अब जबकि माँग के दबाव ढलान पर हैं, आपूर्ति पक्ष की बाधाओं पर तुरंत ध्यान दिया जाना जरूरी है। इसके लिए जिन वस्तुओं व अर्थव्यवस्था के जिन क्षेत्रों में संरचनागत असंतुलन है वहाँ एक पर्याप्त, विश्वसनीय और लचीली आपूर्ति कार्रवाई विकसित करनी होगी।  आपूर्ति पक्ष से प्रभावी रेस्पॉन्स न होने पर मुद्रास्फ़ीतीय दबाव वापस आ सकते हैं और बने रह सकते हैं जिससे समष्टि-आर्थिक स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

iv) निवेश में सुदृढ़ और निरंतर समुत्थान विकास को बढ़ावा देने की कुंजी है। तथापि कई कारकों के होने पर ही यह हासिल किया जा सकता है जैसे, ढाँचागत खाई को पाटना-विशेषत: बिजली व परिवहन में, अनुमोदनों में तेजी, प्रक्रियागत अड़चनों को हटाना और शासन व्यवस्था में सुधार।   

v) एसेट क्वालिटी की चिंता को लेकर बैकिंग सिस्टम में जोखिम से कतराने की प्रवृत्ति के चलते ऋण का प्रवाह बाधित हो रहा है। एसेट क्वालिटी में सुधार का महत्त्व अपनी जगह अवश्य है, पर ऋण संबंधी अपने निर्णय में बैंकों को समझदारी से काम लेना होगा और अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को ऋण का पर्याप्त प्रवाह सुनिश्चित करना होगा।    

III. नीतिगत रुख़

31.  अक्टूबर 2011 से मौद्रिक नीति का रुख अर्थव्यवस्था के मंद होने में दिख रहे विकास संबंधी जोखिमों की ओर गया। तथापि मौद्रिक नीति की ओर से कार्रवाई में अड़चन यह थी कि मुद्रास्फ़ीति व्यापक हो गई थी और विकास की निरंतरता के लिए सहायक समझे जाने वाले स्तर से काफी अधिक ऊँचाई पर बनी हुई थी। नीतिगत रुख़ में कोई भी बदलाव समय से पहले कर देने में प्रत्याशाओं के जड़ जमा लेने का जोखिम अहम था। बाधाओं के बावजूद जनवरी-मार्च 2012 के बीच सीआरआर में कुल 125 आधार अंकों की कटौती गई ताकि अप्रैल में पॉलिसी रिपो रेट में एकबारगी 50 आधार अंकों की बड़ी कटौती के लायक चलनिधि स्थितियां तैयार हों। परंतु रिज़र्व बैंक को अपने नीतिगत दर की कटौती में रुकना पड़ा क्योंकि इसके पूरक के रूप में राजकोषीय समायोजन और निवेश परिवेश को बेहतर करने के लिए जिन नीतिगत कार्रवाइयों की उम्मीद थी, वे नहीं हुईं और साथ ही, मुद्रस्फ़ीति संबंधी जोखिम भी अपनी जगह वैसे ही कायम थे। फिर भी रिज़र्व बैंक ऋण व चलनिधी स्थितियां सुलभ करने के अपने प्रयास जारी रखे और जुलाई में सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) में 100 आधार अंकों की कटौती और सितंबर-अक्तूबर के दौरान सीआरआर में कुल 50 आधार अंकों की कटौती की।  

32.  वैश्विक व घरेलू समष्टि आर्थिक परिस्थितियों, संभावनाओं और जोख़िमों की ऐसी पृष्ठभूमि में की गई इस समीक्षा में नीतिगत रुख़ दो प्रमुख विचारों पर आधारित है। 

33. पहला, खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति के नरम पड़ने के कारण हेडलाइन थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) मुद्रास्फ़ीति और इसकी गति में कमी आई, अलबत्ता, खाद्य मुद्रास्फ़ीति बढ़ी है और इससे हाउसहोल्ड्स की मुद्रास्फ़ीतीय प्रत्याशाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इस महीने की शुरुआत में घोषित डीजल की कीमतों में क्रमिक वृद्धि, समग्र लागत और मुद्रास्फ़ीति में घुल जाएगी; तथापि कीमतों के ये दबाव समय के साथ बिखर जाएंगे और राजकोषीय घाटे में इसके फलस्वरूप होने वाली कमी से मुद्रास्फ़ीति और मुद्रास्फ़ीतीय प्रत्याशाओं पर दीर्घावधि कमी आएगी। साथ ही, इनपुट लागत और मजदूरी के अधिक होने से अभी भी  कीमतों के ऊपर जाने का दबाव बना हुआ है। इस प्रकार यह अत्यंत जरूरी है कि मौद्रिक नीति का रुख़ जब विकास संबंधी जोख़िमों को कम करने की ओर जा रहा है, तो मुद्रास्फ़ीति को कम करने और मुद्रास्फीतीय प्रत्याशाओं को सुस्थिर करने के उद्देश्य पर ज़ोर कम न हो जाए। 

34.  दूसरा, 2011-12 में वर्ष भर और 2012-13 में अब तक, विकास ट्रेंड से नीचे रहा और समग्र तौर पर आर्थिक कार्य-कलापों में सुस्ती आई है। माँग पक्ष को देखें तो, निवेश की गतिविधि वांछित स्तर से नीचे रही है और खपत की माँग में ह्रास प्रारंभ हो गया है। वैश्विक वृद्धि में धीमेपन के कारण बाह्य माँग भी कमज़ोर पड़ा है।  आपूर्ति पक्ष में, प्रमुख कच्चे मालों और मध्यवर्ती वस्तुओं (इंटरमीडियरीज़) की उपलब्धता में बाधा बड़ी मुश्किल बनती जा रही है। इसका असर, चालू खाता घाटे (सीएडी) के बढ़ने के रूप में सामने आ रहा है जिसका बाह्य क्षेत्र पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।  मौद्रिक नीति ने मौद्रिक सुलभता की कार्रवाई सुविचारित व क्रमिक रूप से करके जहाँ  विकास-मुद्रास्फ़ीति संतुलन को बनाए रखने की कोशिश की है, वहीं अब यह बहुत जरूरी हो गया है कि बाह्य क्षेत्र की स्थिरता पर कोई आँच न आने देते हुए विकास की गति में ह्रास को रोका जाए। मुद्रास्फीतीय स्थितियों के नरम पड़ने से मौद्रिक नीति को यह अवसर  मिला है कि वह राजकोषीय व अन्य कार्रवाइयों के साथ मिलकर विकास के जोखिम को कम करने  की दिशा में काम करे।  

35.       इस पृष्ठ भूमि में, इस समीक्षा में मौद्रिक नीति का रुख़ है कि:

  • जैसे-जैसे मुद्रास्फीति के  जोखिम नरम पड़ते जाएं, विकास में सहायक ब्याज दर का माहौल बनाया जाए;

  • मुद्रास्फीति को रोका जाए और मुद्रास्फीतीय  प्रत्याशाओं को सुस्थिर किया जाए; और

  • चलनिधि का प्रबंधन इस प्रकार सुनिश्चित किया जाए कि अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को ऋण का पर्याप्त प्रवाह मिलता रहे।

IV. मौद्रिक उपाय

36. वर्तमान मूल्यांकन के आधार पर और भाग III में बताए गए नीतिगत रुख़ के अनुसार रिज़र्व बैंक निम्नलिखित नीतिगत उपायों की घोषणा करता है:

रिपो रेट

37.  यह निर्णय लिया गया है कि:

  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ़) के अंतर्गत रेपो रेट में 25 आधार अंकों की कमी कर उसे तत्काल प्रभाव से 8.0 प्रतिशत से 7.75 प्रतिशत कर दिया जाए।

रिवर्स रिपो रेट

38.  एलएएफ के अंतर्गत रि‍वर्स रिपो रेट जि‍सका नि‍र्धारण रिपो रेट से 100 आधार अंक नीचे होता है, तत्काल प्रभाव से 6.75 प्रति‍शत पर समायोजित (एडजस्ट) हो गया है।  

मार्जिनल स्थायी सुविधा दर (एमएसएफ़ रेट)

39. रेपो दर से 100 आधार अंक अधिक पर निर्धारित की जानेवाली मार्जिनल स्थायी सुविधा (एमएसएफ़) दर तत्काल प्रभाव से 8.75 प्रतिशत पर समायोजित (एडजस्ट) हो गयी है ।

 बैंक रेट

40. बैंक रेट तत्काल प्रभाव से 8.75 प्रतिशत पर समायोजित (एडजस्ट) हो गया है।

आरक्षित नकदी निधि अनुपात

41. यह निर्णय लिया गया है कि:

  • 9 फरवरी 2013 से प्रारंभ होनेवाले पखवाडे से अनुसूचित बैंकों के आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को 25 आधार अंक घटाकर इसे उनकी निवल मांग और देयताओं (एनडीटीएल) के 4.25 प्रतिशत से 4.0 प्रतिशत पर लाया जाए।

42. सीआरआर में इस कटौती से, बैंकिंग सिस्टम में लगभग `180 बिलियन की प्राथमिक चलनिधि आएगी।

मार्गदर्शन

43. हेडलाइन मुद्रास्फीति के थोड़ा बढ़ने और पिछले कुछ महीनों से खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति के लगातार घटने के कारण, इस बात की अधिकाधिक संभावना है कि 2013-14 में मुद्रास्फीति अपने वर्तमान स्तरों के आस-पास रहे। इससे मौद्रिक नीति को विकास संबंधी जोखिमों पर अधिक जोर देने का, सीमित ही सही, अवसर मिलेगा। तथापि उपरोक्त नीति मार्गदर्शन इस बात से तय होगा कि विकास-मुद्रास्फीति का ऊभरता परिदृश्य क्या है और दुहरे घाटों के जोखिमों को कैसे संभाला जाता है।

प्रत्याशित परिणाम

44. ऐसी प्रत्याशा है कि इस वक्तव्य में दी गई नीतिगत कार्रवाईयां और मार्गदर्शन:

i) निवेश को प्रोत्साहित करके विकास को सहायता पहुंचाएगीं;

ii) कम व स्थिर मुद्रास्फीति के प्रति विश्वसनीय प्रतिबद्धता के आधार पर मध्यावधि मुद्रास्फीतीय प्रत्याशाओं को सुस्थिर करती रहेंगी;

iii) चलनिधि स्थितियों को बेहतर करेंगी जिससे ऋण प्रवाह सुचारु रूप से हो।

मौद्रिक नीति 2012-13 की मध्य तिमाही समीक्षा

45.  वर्ष 2012-13 की मौद्रिक नीति की अगली मध्य-तिमाही समीक्षा की घोषणा मंगलवार, 19 मार्च 2013 को प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से की जाएगी।

मौद्रिक नीति 2013-14

46.  2013-14 की मौद्रिक नीति की घोषणा शुक्रवार 03 मई, 2013 को की जाएगी।

मुंबई
29 जनवरी 2013


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