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प्रेस प्रकाशनी

मौद्रिक नीति 2010-11 की तीसरी तिमाही समीक्षा डॉ. डी.सुब्‍बाराव द्वारा प्रेस वक्‍तव्‍य

25 जनवरी 2011

मौद्रिक नीति 2010-11 की तीसरी तिमाही समीक्षा
डॉ. डी.सुब्‍बाराव द्वारा प्रेस वक्‍तव्‍य

''आज सुबह रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक नीति 2010-11 की तीसरी तिमाही समीक्षा जारी की है। मौजूदा समष्टि आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर हमने निर्णय किया :

  • रेपो और रिवर्स रेपो दोनों ही दरों को 25 आधार अंक बढ़ाया जाए। तदनुसार रेपो दर 6.5 प्रतिशत और रिवर्स रेपो दर 5.5 प्रतिशत की जाती है।

  • नकदी आरक्षित निधि अनुपात (सीआरआर) को निवल मॉंग और मियादी देयताओं के 6 प्रतिशत पर रखा जाए।

2.  आज घोषित बढ़ोतरी सहित मार्च 2010 के मध्‍य से अब तक रिज़र्व बैंक ने रीपो दर में 175 आधार अंकों और रिवर्स रेपो दर में 225 आधार अंकों की समग्र बढ़ोतरी की है। इसके अलावा सीआरआर को 100 आधार अंक बढ़ाया गया। अपनी-अपनी डिपॉजि़ट और उधार देने की दरों में बढ़ोतरी करते हुए बैंकों ने इस कैलिब्रेटेड सख्‍ती का अनुसारण किया जो कि सुदृढ़ मौद्रिक नीति पारेषण को प्रकट करता है।

3.  नीतिगत दरों में परिवर्तनों के अलावा हमने वर्तमान चलनिधि स्थिति का प्रबंध करने के लिए कुछ निर्णय किए है। हमने वर्तमान में परिचालित दो विशेष उपायों का विस्‍तार करने का निर्णय किया है, अर्थात् : 8 अप्रैल 2011 तक -

  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को अतिरिक्‍त चलनिधि सहायता को उनके एनडीटीएल के एक प्रतिशत तक बढ़ाया जाता है; और

  • दैनिक द्वितीय एलएएफ।

नीतिगत उपाय के लिए विवेचना

4.  अब मैं उन विवेचनाओं को स्‍पष्‍ट करना चाहूँगा कि जिनके आधार पर वर्ष 2010-11 की शेष अवधि के लिए मौद्रिक नीति का रूख तैयार किया गया:

(i)  मुद्रास्‍फीति स्‍पष्‍टतया सर्वप्रमुख चिंता है। स्‍फीति की दर अस्‍वीकार्य रूप से ऊँची है, और स्‍फीति की दिशा में बढ़ना चिंताजनतक है। प्राथमिक खाद्य वस्‍तुओं की स्‍फीति पुन: तेजी से बढ़ी है। गैर-खाद्य वस्‍तुओं की स्‍फीति और ईंधन की स्‍फीति पहले ही से काफी ऊँचे स्‍तरों है। गैर-खाद्य विनिर्माण वस्‍तुओं की स्‍फीति में स्थिरता है। ऐसे संकेत हैं कि खाद्य और ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी सामान्‍य स्‍फीति को प्रभावित करेगी।

(ii)   दूसरे यह कि वैश्विक पण्‍य कीमतों में तेज़ बढ़ोतरी हुई है जिससे स्‍वदेशी मुद्रास्‍फीति के बढ़ने का जोखिम है।

(iii)   तीसरे, यह कि अनिश्चित वैश्विक रिकवरी को देखें तो संवृद्धि की दर संकट पूर्व के प्रक्षेप-पथ के समीप आ गई है।

(iv) चौथे यह कि वैश्विक रिकवरी के संबंध में अनिश्चितता कम हुई है।

विश्वव्यापी परिदृश्‍य

5. अब मैं विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था का संक्षिप्त विवरण देना चाहूंगा यद्यपि यूरो क्षेत्र में अनिश्चितता  माहौल बना हुआ है परंतु सार्वभौमिक वृद्धि संभावनाओं में समग्र रूप से सुधार परिलक्षित हुआ है। तथापि, बड़े पैमाने पर मंदी रहने के बावजूद प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रा स्फीति में मामुली बढ़ोत्तरी नजर आयी। यह मुख्यतः खाद्य एवं ऊर्जा  कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से हुआ है। विकसित देशों में मुद्रास्फीति के लक्षण जबकि प्रारंभिक दौर में रहे तथापि उभरते बाज़ार अर्थव्यवस्था वाले देश अत्यधिक मुद्रास्फीति दबाव झेलते रहे जिसकी वजह से अंतर्राष्ट्रीय पण्‍य कीमतों तथा घरेलू मांग के दबाव में तेजी नजर आयी। चूंकि विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश अपनी अंतर्राष्ट्रीय रिकवरी को समेकित कर रहे हैं  तथा आपूर्ति की कमी एवं विश्वव्यापी मांग के चलते खाद्य, ऊर्जा तथा पण्यों की कीमतो में वर्ष 2011 के दौरान उल्‍लेखनीय रूप से तेजी आएगी। इससे संकेत मिलता है कि वर्ष 2011 में मुद्रास्फीति विश्वव्‍यापी चिंता हो सकती है।

भारतीय अर्थव्यवस्था

वृद्धि

6.    घरेलू समष्टि आर्थिक स्थिति को देखे तो वर्ष 2010-11 की प्रथम छमाही में सकल घरेलू उत्पाद में 8.9 प्रतिशत की वृद्धि से संकेत मिलता है कि अर्थव्यवस्था का झुकाव वृद्धि दर की ओर है जो कि मुख्यतः घरेलू कारणो से प्रभावित है। खरीफ की फसल अच्छी रही है तथा रबी की फसल बेहतर होने की संभावना है। अच्छी कृषि उपज से ग्रामीण  क्षेत्रों की मांग में बढ़ोत्तरी आई है। हाल ही के महीनों में निर्यात निष्पादन उत्साहवर्धक  रहा है।

7.     2010-11 में वृद्धि के संबंध में जोखिमों के ज्यादा होने के चलते, वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि का आधार लक्ष्य ऊर्ध्‍वगामी झुकाव के साथ 8.5 पर बरकरार रहा।

मुद्रास्फीति

8.   मुद्रास्फीति स्थिति के संबंध में बात करें, तो अगस्त और नवंबर 2010 के दौरान शीर्ष मुद्रास्फीति में आई कमी रिज़र्व बैंक द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार ही थी। तथापि, यह प्रवृत्ति एकदम विपरीत हो गई जब डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति (वर्ष-दर-वर्ष) नवंबर 2010 के 7.9 प्रतिशत से बढ़कर दिसंबर 2010 में 8.4 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो प्रमुख रूप से सब्जियों, खनिज तेलों और खनिजों के मूल्य में आई तीव्र वृद्धि के कारण है।

9.    जबकि, खाद्य वस्तुओं की कीमतों में आई वर्तमान वृद्धि अस्थायी है, तथापि संरचनागत मॉंग-आपूर्ति बेमेलपन के कारण कई गैर  अनाज खाद्य सामग्रियां जैसे दालें, तिलहन, अंडे, मछली,  मांस और दूध की कीमतों में स्‍फीति आपूर्ति ठीक होने तक बनी रहेगी। खाद्येतर  विनिर्माण मुद्रास्फीति  भी 4 प्रतिशत की अपनी मध्यावधिक प्रवृत्ति पर बनी रही।

10.  आगे की बात करें तो, मुद्रास्फीति परिदृश्य तीन कारकों से मिलकर बनेगाः (i)  घरेलू और वैश्विक दोनों ही खाद्य मूल्य स्थितियां कैसा रूप लेती है;  (ii) वैश्विक पण्य मूल्य कैसा वर्ताव करते हैं; और (iii) किस सीमा तक मांग में आए दबाव परिलक्षित होते हैं।

11.    हमने मार्च 2011 के लिए आधार अनुमान को 5.5. प्रतिशत से बढ़ाकर 7.0 प्रतिशत कर दिया है। यह ऊर्ध्‍वगामी संशोधन कई बातों को ध्यान में रखते हुए किया गया था। पहला, दिसंबर 2010 की मध्य तिमाही समीक्षा में दिए गए अनुसार मुद्रास्फीति के संबंध में  ऊर्ध्‍वगामी जोखिम, प्रकट हो गए हैं जो कि धातुओं और नियंत्रणमुक्‍त ईंधन के मूल्यों की वृद्धि में परिलक्षित होता है।  दूसरा, आपूर्ति संबंधी कुछ अस्थायी आघात जिन्होंने सब्जियों की कीमतों में उछाल ला दिया। तीसरा, जनवरी की शुरुआत में पेट्रोलियम और  एविएशन  टर्बाइन ईंधन मूल्यो में वृद्धि हुई जो डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति में 9 बीपीएस की वृद्धि करेंगे। जबकि, अस्थायी करकों का प्रभाव संभवतः खत्म हो जाएगा, कुछ पण्यों के  संबंध में मांग-आपूर्ति असंतुलनों के कारण मांग पर पड़ने वाले दबाव कम रहेंगे।

मौद्रिक और चलनिधि स्थितियां

12.  जबकि दिसंबर 2010 में 16.5 प्रतिशत पर वर्ष-दर-वर्ष मुद्रा आपूर्ति (एम3) वृद्धि 17.0 प्रतिशत के अनुमानित लक्ष्य के नज़दीक थी, 24.4 प्रतिशत पर खाद्येतर क्रेडिट वृद्धि 20.0 प्रतिशत के अनुमानित  लक्ष्य से बहुत अधिक थी। हाल ही में क्रेडिट विस्तार काफी तीव्र रहा है, जिसने जमा राशियों के विस्तार को काफी पीछे छोड़ दिया है। जमा राशियों में समान वृद्धि के बिना तीव्र क्रेडिट वृद्धि चिरस्थायी नहीं होती है।

13. 2010-11 की तीसरी तिमाही के दौरान संकुचित चलनिधि स्थितियां जारी रहीं। जबकि, प्रणाली में कुल चलनिधि नीतिगत रुख के अनुरूप कम बनी रही, संकुचन का यह स्तर रिज़र्व बैंक द्वारा अपेक्षित  स्तर से अधिक है अर्थात, बैंकों के एनडीटीएल का  (+)/(-)  एक प्रतिशत।  सरकार की सामान्य से अधिक नकदी शेष राशियों ने चलनिधि घाटे के संविभाजकीय घटक में योगदान दिया। तथापि, उच्च मुद्रा वृद्धि के साथ क्रेडिट और जमा वृद्धि दरों में बढ़ते अंतर ने संरचनात्मक चलनिधि घाटे को बढ़ा दिया।

14.  रिज़र्व बैंक ने चलनिधि घाटे में  कमी लाने के लिए कई उपाय किए हैं जैसे कि  (i) अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की सांविधिक चलनिधि अनुपात में एक प्रतिशत अंक की कटौती  (ii) खुले बाजार का परिचालन 67,000 करोड से अधिक राशि की सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद (iii) चलनिधि समायोजन सुविधा  के अंतर्गत राज्‍य सहकारी बैंकों को अतिरिक्त चलनिधि सहायता  (iv) दैनिक आधार पर द्वितीय चलनिधि समायोजन सुविधा की शुरुआत।

15.  जबकि रिज़र्व बैंक विकासशील अर्थव्यवस्था की उत्पादक ऋण अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए चलनिधि उपलब्‍ध कराते रहने का प्रयास करता रहेगा।  तथापि, यह महत्वपूर्ण रहेगा कि ऋण वृद्धि मुख्यतः परिचायक प्रक्षेपण के अनुरूप नियंत्रित बनी रहे।  इससे माँग की तरफ से और अधिक दबाव निर्माण से बचाव रहेगा। तदनुसार वर्ष 2010-11 के दौरान  M3  की वृद्धि दर झुकाव 17 प्रतिशत पर बनी रही और खाद्येतर ऋण वृद्धि दर 20 प्रतिशत पर बनी रही। रिज़र्व बैंक निरंतर ऋण वृद्धि पर निगरानी रखेगा और यदि आवश्यक हुआ तो असाधारण ऋण वृद्धि-जमा अनु`पात दर दर्शाने वाले बैंकों पर रोक लगाएगा।

बाह्य क्षेत्र

16.  हालांकि, बाह्य क्षेत्र के संबंध में संक्षिप्त  महत्वपूर्ण जानकारी यह है। वर्ष 2010-11 की प्रथम तिमाही में चालू खाता घाटा पिछले वर्ष की तदनुरुपी अवधि के दौरान सकल देशी उत्पाद के 2.2 प्रतिशत से बढ़कर 3.7 प्रतिशत हो गयी। बाद  के कारोबारी आकड़ो से यह संकेत मिलता है कि आयात की तुलना में निर्यात में बढोत्तरी हुई जिसकी वजह से चालू खाता घाटा में सुधार हुआ। समग्र रूप से रहे वर्ष के दौरान हमारा अनुमान है कि चालू खाता घाटा  सकल देशी उत्पाद के 3.5 प्रतिशत के निकट पर बना रहेगा।

जोखिम कारक

17.  अब मैं अपने विकास और मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं के समक्ष आ रही जोखिमों को उजागर करना चाहूँगा-

  • खाद्य मुद्रास्फीति लगभग दो वर्षों से उच्च स्तर पर ही बनी हुई है और इसका अन्य मुद्रास्फीति में तेज गति से  फैलना सत्‍य हो रहा है।

  • आयात कई पण्यों की अनुपूरक घरेलू उपलब्ध्ता के रूप में वैश्विक विकास के समेकन  और क्षमता की उपयोगिता के बढ़ते ही एक विकल्प के रूप में कम होता जाएगा। इससे माँग की ओर से दबाव बढ़ेगा।

  • वर्ष 2010-11 के लिए सकल घरेलू उत्पाद के 3.5 प्रतिशत का अनुमानित चालू खाता घाटा नियंत्रण से बाहर है।

  • चालू खाता घाटा  के स्तर के अलावा जोकि एक जोखिम है, चालू खाता घाटा का वित्तपोषण एक अतिरिक्त जोखिम है। यदि वैश्विक सुधार अपेक्षा से अधिक शीघ्र होता है तो उसका प्रभाव चालू खाता घाटे के वित्तपोषण पर भी पड़ेगा।

  • राजकोषीय परिस्थिति में हाल का सुधार मुख्य रूप से  स्पैक्ट्रम नीलामियों और विनिवेश से प्राप्त एक-बारगी राजस्व आय के कारण हुआ है। तथापि, पण्य मूल्य गतिविधियाँ आनेवाले वर्ष में राजकोषीय समेकन के लिए अत्यधिक जोखिम बन सकता है। अतिरिक्त राजकोषीय समायोजन की क्षमता पण्य मूल्यों में मज़बूत प्रवृत्ति से और किस हद तक सरकार उसे उपभोक्ताओं के माध्यम से आगे बढ़ने देती है से प्रभावित होंगी।

  • मुद्रास्फीति, चालू खाता घाटा और राजकोषीय परिस्थिति की समेकित जोखिम आर्थिक स्थिरता के बारे में अनिश्चितता को बढ़ाते है जिससे उपभोक्ताओं और निवेशकों को जूझना पड़ रहा है।

मौद्रिक नीति रुझान

18.  मौद्रिक नीति के मौजूदा रुझान का आशय है :

  • अतिरिक्त मुद्रास्फीतिकारी दबावों से बचने के लिए तैयार रहते हुए उच्च खाद्य और ईंधन मुद्रास्फीति को अन्य मुद्रास्फीति तक बढ़ने से रोकना और मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं को नियंत्रित करना।

  • मूल्य, उत्पाद और वित्तीय स्थिरता के अनुरूप ब्याज दर व्यवस्था बनाए रखना।

  • यह सुनिश्चित करने के लिए चलनिधि का प्रबंध करना कि न तो मौद्रिक अंतरण से अधिशेष में कमी आए और न तो निधि प्रवाह रुके और संतुलन व्यापक रुप से बना रहे।

अपेक्षित परिणाम

19.  आज की मौद्रिक नीति कार्रवाइयों से यह अपेक्षा है किः

  • खाद्य और ईंधन मूल्यों की वृद्धि को सामान्‍य मुद्रास्फीति में परिवर्तन होने से रोकना।

  • बढ़ती मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं को नियंत्रित करना, जो खाद्य मूल्य की वृद्धियों के ढाँचागत और बढ़ते स्वरूप के कारण बढ़ सकती है।

  • मुद्रास्‍फीति सामान्य बनी रहे ताकि विकास न रुके।

  • बैंकों को अपनी चलनिधि प्रबंधन परिचालनों के लिए सहायता देना जारी रखा जाए।

दिशानिर्देश

20. अब मैं कुछ आगामी दिशानिर्देश देना चाहूँगा। वर्तमान संवृद्धि और मुद्रास्‍फीति की प्रवृत्ति स्‍पष्‍ट रूप से अपेक्षा करती हैं कि हम मुद्रास्‍फीति विरोधी मौद्रिक रूख पर दृढ़ रहें। वर्ष 2010-11 से आगे देखें तो रिज़र्व बैंक को आशा है कि स्‍वदेशी संवृद्धि की गति में सुस्थिरता रहेगी। वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही से मुद्रास्‍फीति में नरमी की संभावना है,  लेकिन इसमें बढ़ोतरी के जोखिम पहले ही दिखाई दे रहे हैं। मौद्रिक रुख इसी पर निर्धारित होगा कि समग्र मुद्रास्‍फीति के परिदृश्‍य पर इन घटकों का कैसा प्रभाव रहता है।

बैंकों के साथ विचार-विमर्श

21.  बैंकों के मुख्‍य कार्यपालक अधिकारियों के साथ आज की बैठक में नीति जारी की गई थी और बैंकों ने रिज़र्व बैंक के नीतिगत रुख का स्‍वागत किया। मुद्रास्‍फीति के बारे में रिज़र्व बैंक की चिंता में वे भी शामिल हुए और सहमति दी कि आज रिज़र्व बैंक द्वारा अपने रुख के बारे में घोषित मौद्रिक उपाय और दिशानिर्देश वर्तमान स्‍वदेशी संवृद्धि-मुद्रास्‍फीति के परिदृश्‍य में समुचित हैं। मौद्रिक उपायों के अलावा बैंकों ने निम्‍नलिखित पर भी विचार-विमर्श किया - (i) मुद्रास्‍फीति की गति, (ii) ऋण संवृद्धि और आस्ति-देयता प्रबंध, और (iii)   चलनिधि प्रबंध और बाज़ार से उधार लेने की स्थिति। बैंकों ने अनुभव किया कि कृषि संबंधी आधारभूत संरचना में निवेश बढ़ाने की जरूरत है और आपूर्ति श्रृंखला के बेहतर प्रबंधन पर फोकस करने की जरूरत है। इस संदर्भ में भारतीय बैंक संघ (आइबीए) द्वारा विचार-विमर्श-आलेख तैयार किया जाएगा ताकि यह जॉंच की जा सके कि कृषि क्षेत्र में उत्‍पादकता को बढ़ाने और विविधता लाने हेतु वित्तपोषण के लिए बैंक क्‍या कर सकते हैं। दिनांक 8 अप्रैल 2011 तक अतिरिक्‍त चलनिधि सहायता सुविधा के विस्‍तार और द्वित्तीय एलएएफ का स्‍वागत करते हुए बैंकों ने माना कि चलनिधि की स्थिति तंगहाल है और रिज़र्व बैंक द्वारा प्राथमिक चलनिधि प्रविष्‍ट कराने की ज़रूरत है। बैंकों ने संकेत दिया कि उनका प्रयास रहेगा कि डिपॉजि़ट में बढ़ोतरी की  दर और ऋण संवृद्धि दर दोनों को संरेखित रखें। आस्ति-देयता बेमेलपन को दूर करने की दृष्टि से बैंकों ने अनुभव किया कि आधारभूत संरचना क्षेत्र का वित्तपोषण करने के लिए नवीन प्रकार के समाधान देखने होंगे - जोकि आस्ति-देयता बेमेलपन का प्रमुख स्रोत है।  विशेष तौर पर उन्‍होंने सुझाव दिया कि समुचित राजकोषीय उपायों के माध्‍यम से बैंकों द्वारा दीर्घावधिक संसाधन जुटाने को प्रेत्‍साहित करने की जरूरत है। बैठक में सूक्ष्‍म-वित्त क्षेत्र से संबंधित मालेगाम उप समिति की सिफारिशों पर भी विचार किया गया।''

आर. आर. सिन्‍हा
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/1065


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