2 मई 2011
वर्ष 2010-11 की समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज वर्ष 2010-11 की समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियाँ जारी किया। यह दस्तावेज़ 3 मई 2011 को वर्ष 2011-12 के लिए घोषित किए जानेवाले मौद्रिक नीति वक्तव्य की पृष्ठभूमि को दर्शाता है।
समग्र दृष्टिकोण
उच्चतर वैश्विक कच्चे तेल और अन्य पण्य वस्तुओं की कीमतें वृद्धि और मुद्रास्फीति के लिए एक खतरा हैं
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वर्ष 2011-12 में वृद्धि को प्रवृत्ति के अधिक निकट बने रहने की आशा की जाती है। वृद्धि जोखिमें उच्चतर तेल की कीमतों और निवेश में कुछ नरमी से उत्पन्न होती हैं। कारोबारी प्रत्याशा सर्वेक्षण नरमी दर्शाते हैं। व्यवसायिक अनुमानकर्ताओं का सर्वेक्षण भी कमज़ोर वृद्धि और मज़बूत मुद्रास्फीति की संभावना व्यक्त करता है।
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मौद्रिक रूझान में वर्तमान प्रतिरोधी मुद्रास्फीति आधारों के बावजूद मुद्रास्फीति कुछ समय के लिए बढ़ती रहेगी। मुद्रास्फीति के प्रति वृद्धिशील जोखिम उच्चतर तेल और अन्य पण्य वस्तु कीमतों, अधूरे पासथ्रू और राजकोषीय घाटे पर इसके संभावित प्रभाव, बढ़ी हुई मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं और कीमतों के दबाव से उत्पन्न होते हैं।
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आगे जाकर नीति शुरूआत उत्पन्न हो सकते हैं क्योंकि वृद्धि के प्रति अवनतशील जोखिम और मुद्रास्फीति के प्रति वृद्धिशील जोखिम बढ़ गए हैं। मुद्रास्फीति की निरंतरता से वृद्धि को जारी रखने के लिए प्रतिरोधी मुद्रास्फीतिकारी मौद्रिक नीति रूझान को बनाए रखने की ज़रूरत है। अनुभव यह प्रस्तावित करते हैं कि उच्चतर वृद्धि के चरण निम्नतर मुद्रास्फीति के साथ बने हुए है।
वैश्विक आर्थिक स्थितियाँ
प्रत्याशाओं से बाहर आता सुधार लेकिन तेल, यूरो क्षेत्र जोखिम बने हुए हैं
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यद्यपि, सुधार बहु आयामी बना हुआ है, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं और उभरती हुई/विकासशील अर्थव्यवस्थाओं दोनों में वृद्धि प्रारंभिक प्रत्याशाओं से बाहर आ गई है। इससे निरंतर यद्यपि कुछ कम गति से वैश्विक सुधार वर्ष 2011 के दौरान बने रहने की आशा जगती है।
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वैश्विक सुधार उन्नत है लेकिन वैश्विक वृद्धि के प्रति अवनतीशील जोखिम तेल की कीमतों और उल्लेखनीय अनुभवजन्य बैंकिंग क्षेत्र चूक जोखिमों में उत्पन्न होते हैं।
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वैश्विक मुद्रास्फीति जोखिम पिछली तिमाही में उल्लेखनीय रूप से केवल उभरते हुए बाज़ारों में नहीं बल्कि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में भी बने हुए हैं। दर चक्र के लिए दबाव में परिवर्तन की भी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में भी लंबी अवधि तक उपेक्षा नहीं की जा सकती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था
उत्पादन
अर्थव्यवस्था अपनी प्रवृत्ति के अनुसार ही बढ़ी, प्रवृत्ति के निकट ही बने रहने की संभावना है
वर्ष 2010-11 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि कृषि वृद्धि में पुनरावर्तन के सहयोग से अपने हाल की प्रवृत्ति की ओर लौट गई तथापि गैर-कृषि वृद्धि प्रवृत्ति से कुछ नीचे रही।
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औद्योगिक वृद्धि में उच्चतर आधार प्रभाव और विवेश माँग में नरमी के कारण दूसरी छमाही में गिरावट हुई। विनिर्माण गतिविधि अधिक सहजता से फैली तथा अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति में हाल के गिरावट कुछ उद्योगों के उचार-चढ़ाव के द्वारा प्रभावित हुई।
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सेवा क्षेत्र ने वर्ष 2010-11 में निरंतर गति दर्शाई यद्यपि अधिकांश सेवाओं में वर्ष की तीसरी तिमाही में कुछ गिरावट आयी।
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वृद्धि की गति अनुमानित सामान्य सानसून, माँग स्थितियों और वृद्धि के प्रति सेवा जोखिमों के सकारात्मक अग्रणी संकेतकों की सहायता से वर्ष 2011-12 में प्रवृत्ति के निकट बने रहने की संभावना है, तथापि यह इनपुट लागत दबावों से उत्पन्न होती है।
सकल माँग
सकल माँग मज़बूत बनी रही, राजकोषीय समेकन पर सरकारी व्यय में कमी हुई
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माँग स्थितियाँ वर्ष 2010-11 में वृद्धि के लिए सहायक बनी रही। निजी उपभोग और निवेश मुख्य संचालक थे यद्यपि सकल निवेश में तीसरी तिमाही में नरमी आयी। कंपनियों के निवेश अभिप्राय भी पिछली तिमाही से नरमी की शुरूआत करने के बाद तीसरी तिमाही में और नरम रहे।
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सरकारी उपभोग व्यय में राजकोषीय समेकन में पुनरारंभ को दर्शाते हुए वर्ष 2010-11 में गिरावट हुई। यह पुनर्संतुलन बनाया रखा जाए।
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केंद्र सरकार के मुख्य राजकोषीय संकेतकों ने वर्ष 2010-11 (आरई) में सुधार दर्शाया। तथापि मुख्य घाटा संकेतकों को तेरहवें वित्त आयोग द्वारा की गई अनुशंसा के अनुसार उनसे उनसे ऊपर बने रहने की संभावना है।
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आर्थिक सहायता पर व्यय उन्नतशील जोखिमों के अधीन है। उर्वरक और तेल संबंधी सहायता को बज़टीय प्रावधानों के अधिक होने तथा राजकोषीय स्थिति पर दबाव उत्पन्न करने की संभावना है, यदि अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि के प्रति घरेलू कीमतों के समायोजन में कोई देरी होती है।
बाह्य अर्थव्यवस्था
चालू खाता घाटा पर चिंताओं में कमी लेकिन रूकी नहीं
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वर्ष 2010-11 चालू खाता घाटा (सीएडी) को निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ वर्ष 2010-11 की तीसरी तिमाही में नरम रहते हुए सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 2.5 प्रतिशत तक रहने की संभावना है।
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जबकि चालू खाता घाटा पर चिंताओं में कमी हुई है, तेल की कीमतों में तेजी से वर्ष 2011-12 में चालू खाता घाटा के बढ़ने के जोखिम है।
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प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गिरावट, पोर्टफोलियो प्रवाह में अस्थिरता तथा बढ़ते हुए ऋण प्रवाह आवश्यक रूप से चालू घाटा के प्रति जोखिम उत्पन्न करते हैं, यद्यपि चालू खाला घाटा को वित्तीय सहायता पर दबाव ढीले पड़ गए हैं।
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मध्य पूर्व उत्तरी अफ्रीका (एमइएनए) में हलचल के प्रभाव उल्लेखनीय हो सकते हैं जबकि जापान की प्राकृतिक आपदा सीमांत होगी। प्रभावित अर्थव्यवस्थाओं का भारत का व्यापार में हिस्सा बड़ा नहीं है। तथापि, भारत के कुल आयात का लगभग एक तिहाई तेल संघटक हैं। इसके अतिरिक्त जापान से निवेश प्रवाह और निधि सहायता प्रतिबद्धताओं पर कुछ अंतरण प्रभाव हो सकते हैं।
मौद्रिक और चलनिधि स्थितियाँ
मौद्रिक और चलनिधि स्थितियाँ प्रतिरोधी-मुद्रास्फीति आधारों के अनुकूल बनी रही
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मौद्रिक और चलनिधि स्थितियों पर कार्रवाई हुई यद्यपि कुछ अंतराल के बाद हुई क्योंकि वर्ष के दौरान मौद्रिक नीति को लगातार कड़ा किया किया गया। वर्ष 2010-11 की चौथी तिमाही के दौरान कड़ी चलनिधि स्थितियाँ कुछ नरम हुई क्योंकि संरचनात्मक और क्रियात्मक चलनिधि संचालकों में सहजता आयी।
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यद्यपि प्रारक्षित मुद्रा निधि मज़बूत बनी रही, मुद्रा आपूर्ति वृद्धि सांकेतिक सीमा के नीचे रही। सकल जमा राशियों में न्यूनतन वृद्धि तथा उच्चतर करेंसी माँग से उत्पन्न मुद्रा गुणक में कमी से यह विविधतापूर्ण प्रवृत्ति उत्पन्न हुई।
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ऋण वृद्धि निर्दिष्ट सीमा से ऊपर रही यद्यपि वर्ष 2010-11 की बादवाली अवधि में इसमें नरमी आयी। जमा वृद्धि ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की प्रतिक्रिया में तेज़ी आयी।
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अब तक वृद्धि की गति जारी रही है यद्यपि मुद्रास्फीति बढ़े हुए स्तर पर है। उच्चतर बनी हुई मुद्रास्फीति से वृद्धि के प्रति जोखिम आनेवाली अवधि में मौद्रिक नीति के रूझान को प्रभावित कर सकता है।
वित्तीय बाज़ार
सुदृढ़ मौद्रिक अंतरण ने ब्याज दरों को प्रभावित किया
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वर्ष 2010-11 की चौथी तिमाही में संपूर्ण परिदृश्य में धीरे-धीरे ब्याज दरों के सुदृढ़ होने के साथ मौद्रिक अंतरण में मज़बूती आयी क्योंकि चलनिधि घाटे के स्वरूप में रही। जमा दरें कड़ी चलनिधि के बीच ऋण में वृद्धि की सहायता के लिए तेज़ी से बढ़ीं। बैंकों ने क्रमिक रूप से उच्चतर उधार दरों के स्वरूप में बढ़ी हुई लागतों को अंतरित किया।
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मुद्रा बाज़ार दरों में कड़ी चलनिधि स्थितियों को दर्शाते हुए मज़बूती आयी। प्रतिलाभ वक्र वर्ष 2010-11 की चौथी तिमाही में मौद्रिक कार्रवाईयों और न्यूनतर बज़ट उधारों को दर्शाते हुए व्यापक हो गया। इक्विटी बाज़ारों ने तिमाही के दौरान एक व्यवस्थित सुधार को देखा। रुपया बिना किसी हस्तक्षेप के स्थायी और व्यवस्थित बना रहा।
मूल्य स्थिति
आपूर्ति पक्ष आघातों से उत्पन्न मुद्रास्फीति लगातार सामान्य होती गई
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हेडलाइन मुद्रास्फीति ने वर्ष 2010-11 में आपूर्ति पक्ष आघातों और मूल्य दबावों के क्रमिक सामान्यीकरण के कारण मज़बूत निरंतरता दर्शायी।
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तीन विशिष्ट चरणों के दौरान मुद्रास्फीति संचालक परिवर्तित हुए हैं। हेडलाइन मुद्रास्फीति पर वर्ष 2010-11 के दौरान प्रारभिक रूप से अप्रैल-जुलाई के दौरान खाद्य मुद्रास्फीति, अगस्त-नवंबर के दौरान प्राथमिक गैर-खाद्य वस्तुओं और दिसंबर 2010 से ही गैर-खाद्य विनिर्माण वस्तुओं द्वारा अधिक सामान्यीकृत तरीके से प्रभाव हुआ।
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मुद्रास्फीति पथ कड़ा बना रहा और वृद्धि की ओर जोखिम हैं। हेडलाइन मुद्रास्फीति दूसरी छमाही में धीरे-धीरे कम होने के पहले वर्ष 2011-12 की पहली छमाही में बढ़ी रह सकती है लेकिन वह रिज़र्व बैंक के सुविधा स्तर से अधिक नहीं होगी।
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वैश्विक पण्य वस्तु कीमतों खासकर तेल का पासथ्रू अभी तक अधूरा रहा है और वह एक उल्लेखनीय मध्यावधि जोखिम संघटक है।
आर.आर.सिन्हा
उप महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/1584 |