26 जुलाई 2011
मौद्रिक नीति 2011-12 की पहली तिमाही समीक्षा : डॉ. डी. सुब्बाराव, गवर्नर का प्रेस वक्तव्य
''सबसे पहले मैं भारतीय रिज़र्व बैंक की ओर से वर्ष 2011-12 के लिए मौद्रिक नीति की इस पहली तिमाही समीक्षा में आप सभी का स्वागत करता हूँ।
2. कुछ क्षण पहले हमने इस समीक्षा में शामिल मौद्रिक नीति उपायों को प्रकाशित किया है। वर्तमान समष्टि आर्थिक स्थिति के एक आकलन के आधार पर उसका पुन: उल्लेख करते हुए हमने निर्णय लिया है कि :
3. इसके परिणामस्वरूप चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत रिपो दर से कम 100 आधार अंकों के अंतर के साथ निर्धारित प्रत्यावर्तनीय रिपो दर स्वत: 7.0 प्रतिशत पर समायोजित हो जाती है। उसी प्रकार रिपो दर से अधिक 100 आधार अंकों के अंतर के साथ निर्धारित सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर 9.0 प्रतिशत पर समायोजित होती है।
4. ये परिवर्तन इस घोषणा के बाद तत्काल प्रभाव से लागू होंगे।
इस नीति प्रयास के पीछे की अवधारणा
5. यह नीति निर्णय दो व्यापक अवधारणाओं द्वारा संसूचित किया गया है।
6. पहला, मॉंग दबाव मज़बूत बने हुए हैं। जैसाकि हमने 3 मई के नीति वक्तव्य में उल्लेख किया है, मुद्रास्फीति को वर्ष 2011-12 की पहली छमाही में उच्चतर रहने की आशा की गई थी। अब तक वास्तविक मुद्रास्फीति आशा से अधिक रही है। खासकर गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति उल्लेखनीय रूप से पिछले छह वर्षों के दौरान 4 प्रतिशत की औसत दर से अधिक रही है। कच्चे तेल की कीमतें अस्थिर बनी रहीं और वे एक प्रमुख जोखिम कारक हैं। लागू घरेलू ईंधन कीमतों में हाल की वृद्धि तथा कतिपय खाद्य मदों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य भी मुद्रास्फीति को दबाव में डाले रखेंगे।
7. दूसरी अवधारणा जिसने नीति निर्णय को आकार दिया है वह यह कि ऐसे संकेत हैं कि वृद्धि में खासकर कुछ ब्याज दर संवेदी क्षेत्रों के संबंध में सुधार शुरू हो गया है। तथापि, अभी तक किसी तीव्र अथवा आधार वाली मंदी का कोई प्रमाण नहीं है। कई संकेतक जैसे कि निर्यात और आयात, अप्रत्यक्ष कर संग्रह, कंपनी विक्रय और आय तथा बैंक ऋण के लिए मॉंग यह प्रस्तावित करते हैं कि मॉंग सुधर रही है लेकिन सुधार धीरे-धीरे हो रहा है।
8. यद्यपि, विगत की मौद्रिक कार्रवाईयों के प्रभाव अभी अंतरित हो रहे हैं, समग्र वृद्धि-मुद्रास्फीति परिदृश्य पर विचार करते हुए हमने निर्णय लिया है कि यह आवश्यक है कि मुद्रास्फीति-विरोधी रूझान को बनाए रखा जाए।
मौद्रिक नीति रूझान
9. अब मैं हमारी मौद्रिक नीति रूझान के तीन व्यापक रूपरेखाओं को बताना चाहूँगा। वे निम्नानुसार हैं :
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ब्याज दर का एक वातावरण बनाए रखना जो मुद्रास्फीति में नरमी लाए और मुदस्फीति अपेक्षाओं को नियंत्रित रख सके;
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विकास की प्रवृति अत्यधिक नीचे गिरने के जोखिम का प्रबंध करना;
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और अंतत: यह सुनिश्चित करने के लिए चलनिधि का प्रबंध करना कि वित्तीय प्रणाली पर अत्यधिक दबाव डाले बिना मौद्रिक अंतरण प्रभावी बना रहे।
अपेक्षित परिणाम
10. आज की नीतिगत कार्रवाईयों से निम्नलिखित परिणाम अपेक्षित हैं :
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पहला, मॉंग पर पूर्व में की गई कार्रवाईयों का संचयी प्रभाव प्रबल होगा;
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दूसरा, मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने की मौद्रिक नीति की प्रतिबद्धता की विश्वसनीयता बनी रहेगी और इसके कारण मध्य-अवधि अपेक्षाएं नियंत्रित रहेंगी;
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और तीसरा, नीति कार्रवाईयॉं इस मुद्दे को प्रबल करेंगी कि मॉंग और आपूर्ति दोनों की ओर से संपूरक नीति प्रतिक्रियाओं के अभाव में मज़बूत मौद्रिक नीतिगत कार्रवाईयों की आवश्यकता है।
मार्गदर्शन
11. भविष्य में मार्गदर्शन के संबंध में, आगे चलकर मौद्रिक नीति का रूझान मुद्रास्फीति के आगामी प्रक्षेप पर निर्भर होगा जो बाद में घरेलू वृद्धि और वैश्विक पण्य मूल्यों की प्रवृत्तियों से निर्धारित होगा। रूझान में परिवर्तन, मुद्रास्फीति में सहनीय गिरावट के संकेतों से प्रेरित होगा।
वैश्विक और घरेलू गतिविधियॉं
12. नीति समीक्षा के एक भाग के रूप में हमने वैश्विक और घरेलू समष्टि आर्थिक परिस्थिति का सावधानीपूर्वक आकलन किया है। मैं कुछ समय बाद इसका सार प्रस्तुत करूँगा।
13. आपको यह ज्ञात होगा कि 3 मई के रिज़र्व बैंक के वार्षिक नीति वक्तव्य में विकास-मुद्रास्फीति संभावना के कई जोखिम कारकों को उज़ागर किया गया था। इनमें से कई जोखिम अब प्रकट हो गए हैं।
वैश्विक अर्थव्यवस्था
14. विश्वव्यापी स्तर पर देखें तो यूरो क्षेत्र में सरकारी देनदारी की समस्या विगत वर्ष के दौरान शुरू हुई थी, अब उस क्षेत्र की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी खतरा बन गया है। इस बारे में अत्यधिक चिंता है कि क्या यूरो क्षेत्र इस सरकारी देनदारी की समस्या को सुलझाने के लिए आर्थिक रूप से अर्थक्षम, राजकोषीय रूप से वहनीय और राजनीतिक रूप से संभाव्य समाधान के लिए सहमत होगा। इस संबंध में 21 जुलाई को आयोजित यूरो क्षेत्र के नेताओं की बैठक में किया गया समझौता सकारात्मक गतिविधि है। तथापि इसका प्रभावी कार्यान्वयन अभी दिखाई देना बाकी है। अमरीका में सरकारों द्वारा देनदारी की चूक की चिंता वैश्विक पूँजी प्रवाहों के लिए संभाव्य बाधाकारी परिणामों के साथ वित्तीय बाज़ारों पर मंडरा रही है।
15. मंद आर्थिक क्रियाकलापों के बावजूद उच्च पण्य मूल्यों के प्रभाव के अंतर्गत विकसित अर्थव्यवस्थाओं में भी मुद्रास्फीतिकारी दबाव उभरा है।
16. विकसित अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाएं (इएमइ) सामान्य रूप से बढ़े हुए पण्य मूल्यों और मज़बूत घरेलू मॉंग दोनों के कारण बढ़ रही मुद्रास्फीति से जूझ रही हैं। जबकि कुछ समय से दुतरफा सुधार की बात हो रही है उसका विकसित अर्थव्यवस्थाओं और उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं पर बिलकुल अलग प्रभाव अब स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।
17. भारत की समष्टि आर्थिक अनिवार्यता में एक महत्वपूर्ण विचार यह भी है कि वैश्विक स्थितियों का पण्यों की कीमतों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। 3 मई को घोषित नीतिगत वक्तव्य के बाद कच्चे तेल सहित बहुत सी जिंसों की कीमतों में नरमी के संकेत दिखाई दिए जो विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मॉंग कमज़ोर पड़ने को प्रकट करता है। यदि यह प्रवृत्ति कुछ और मज़बूत हो जाती तो स्फीतिकारी दबावों से कुछ राहत मिल जाती। तथापि, एक तिमाही बीतने के बाद भी गिरावट की यह प्रवृत्ति बहुत मज़बूत नहीं सिद्ध हुई है। विगत वर्ष की तुलना में कीमतें सामान्यतया अभी भी ज्यादा हैं। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक सख्ती की कोई तत्कालिक प्रत्याशा नहीं है, जिससे मॉंग के कमज़ोर पड़ने का प्रभाव चलनिधि की बहुतायत से उपलब्धता के कारण सम स्थिति में आ जाएगा।
भारतीय अर्थव्यवस्था
18. स्वदेशी अर्थव्यवस्था की ओर देखें तो वर्ष 2010-11 के दौरान आउटपुट में 8.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। संशोधित और पुन: आधारित औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) से ज्ञात होता है कि विगत वर्ष की दूसरी छमाही में संवृद्धि की गति धीमे होने के शुरूआती संकेतों को कुछ बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया था। वस्तुत: विगत वर्ष के दौरान पूरे समय संवृद्धि की गति में मज़बूती रही। हालांकि इस राजकोषीय वर्ष के प्रथम दो माह अर्थात् अप्रैल-मई 2011 के ऑंकड़ों से यह ज्ञात होता है कि इसमें कुछ नरमी की संभावना है।
19. 3 मई के नीतिगत वक्तव्य में 2011-12 के लिए वास्तविक जीडीपी की संवृद्धि दर के आधार को 8 प्रतिशत के आसपास रखा गया था। यह इस प्रत्याशा पर आधारित था कि मानसून सामान्य रहेगा और कच्चे तेल की कीमतें औसतन 110 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल रहेंगी। परावर्ती ऑंकड़ों से लगता है कि यह प्रत्याशा वैध है। इसलिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि के वर्तमान वर्ष के लिए बेसलाइन प्रोजेक्शन को 8.0 प्रतिशत पर रखा गया है।
20. यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि आपूर्ति संबंधी बाधाओं, खासकर खाद्य और आधार संरचना, पर ध्यान देते समय यह प्रश्न सबसे आगे आता है कि मुद्रास्फीति के स्पष्ट दबावों के बिना वर्तमान संवृद्धि को बरकरार रखने में अर्थव्यवस्था की क्षमता क्या है। मुद्रास्फीति को बढ़ावा दिए बिना किसी भी समय-सीमा तक तेज़ी से विकास करते रहने के लिए अर्थव्यवस्था की क्षमता नीतियों के कार्यान्वयन पर निर्भर है; जिसके साथ संसाधनों का सही आबंटन हो, और जो मॉंग के अनुसार विभिन्न उत्पादों और सेवाओं की आपूर्ति को बनाए रखें।
मुद्रास्फीति
21. मुद्रास्फीति अभी भी प्रमुख समष्टि आर्थिक चिंता बनी हुई है। इस राजकोषीय वर्ष की पहली तिमाही के दौरान डब्ल्यूपीआइ हेडलाइन मुद्रास्फीति दर दो अंकों के आसपास बनी रही और मुद्रास्फीतिकारी दबावों का आधार बहुत व्यापक बना रहा। डब्ल्यूपीआइ मुद्रास्फीति का स्तर और निरंतरता दोनों ही चिंता का विषय हैं। प्रथम तिमाही में खाद्येतर विनिर्मित उत्पादों की मुद्रास्फीति 7 प्रतिशत से ऊपर रही जोकि यह स्पष्ट करती है कि क्षमता उपयोग के उच्च स्तरों पर संचालन करने वाले उत्पादक इनपुट पण्यों की बढ़ती कीमतों और मज़दूरी लागतों को उपभोक्ताओं पर डालने की स्थिति में हैं।
22. मुद्रास्फीति के दबाव आर्थिक क्रियाकलाप में नरमी के संकेत के बावजूद स्पष्ट तौर पर बहुत मज़बूत हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि विगत तीन माह के दौरान पण्यों की कीमतों में नरमी रही, लेकिन न तो हेडलाइन डब्ल्यूपीआइ मुद्रास्फीति दर में कमी आई और न ही गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पादों की मुद्रास्फीति में कमी हुई। यदि इस नरमी में बदलाव आता है तो पण्यों की कीमतें से कुछ समय तक मुद्रास्फीतिकारी दबाव रहेंगे, मॉंग में कुछ नरमी लाना जरूरी है ताकि मुद्रास्फीति नीचे रहे।
23. हमारे 3 मई के नीतिगत वक्तव्य में हमने मुद्रस्फीति संभावना के प्रति वृद्धिशील जोखिम का उल्लेख किया था। कुछ वृद्धिशील जोखिमों पर कार्रवाई की गई है। इनमें शामिल हैं :
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प्रेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में ऊर्ध्वमुखी संशोधन;
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कुछ कृषिगत वस्तुओं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में उल्लेखनीय बढ़ोतरी; और
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अंतर्निहित मॉंग दबावों को दर्शाते हुए बढ़े हुए स्तरों पर गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति का बने रहना।
24. आगे जाकर कौन से कारक मुद्रास्फीति संभावना को आकार देंगे ? मैं उनमें से कुछ महत्वपूर्ण कारकों का उल्लेख करूँगा।
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पहला कारक दक्षिण-पश्चिमी मानसून का समग्र कार्यनिष्पादन होगा; स्थानिक और सामयिक दोनों वितरण महत्वपूर्ण होंगे।
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दूसरा कारक कच्चे तेल की कीमतें होंगी जिसकी निकट भविष्य में संभावना अनिश्चित है। हाल की प्रवृत्ति को देखते हुए तेल की कीमत वैश्विक सुधार की गति, चलनिधि स्थितियों और महत्वपूर्ण रूप से समग्र तेल आपूर्ति स्थिति के कारण अस्थिर बनी रह सकती है; और
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अंत में प्रेट्रोलियम उत्पादों और अन्य लागू मदों की कीमतों में वृद्धि के संबंध में नीति निर्णय का मुद्रास्फीति पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ेगा।
25. हमारे 3 मई के नीतिगत वक्तव्य में जैसा बताया गया था कि मार्च 2012 के लिए डब्ल्यूपीआइ मुद्रास्फीति की वेसलाइन प्रत्याशा 6.0 प्रतिशत है, जिसमें ऊपर जाने की गुँजाइश है। हमने इस प्रत्याशा की समीक्षा की है। स्वदेशी मॉंग-आपूर्ति संतुलन, पण्यों की कीमतों की विश्वव्यापी प्रवृत्तियों और संभावित मॉंग संभावना को ध्यान में रखते हुए हमने मार्च 2012 के लिए डब्ल्यूपीआइ बेसलाइन मुद्रास्फीति की प्रत्याशा को बढ़ाकर 7.00 प्रतिशत कर दिया है। मैं पहले कही हुई बात को यहॉं दोहराना चाहूँगा कि कुछ और माह तक मुद्रास्फीति ऊपर ही रहने की संभावना है और फिर वर्ष के बाद में समय में इसमें नरमी आएगी।
26. मुद्रास्फीति के वर्तमान परिदृश्य के बावजूद यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि विगत दशक के दौरान उब्ल्यूपीआइ और सीपीआइ दोनों ही प्रकार से आकलित औसत मुद्रास्फीति दर लगभग 5.5 प्रतिशत के आसपास रही। इसलिए मौद्रिक नीति में मुद्रास्फीति को 4.0-4.5 के दायरे में रखने का प्रयास रहेगा। यह स्थिति 3.0 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर के मध्यम आवधि के उद्देश्य के अनुरू होगा, जोकि भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था के व्यापक एकीकरण से संगत होगा।
मौद्रिक अंतरण
27. अब मौद्रिक अंतरण के बारे में एक महत्वपूर्ण लेकिन संक्षिप्त टिप्पणी। भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति कार्रवाई से संकेत लेते हुए अनुसूचित वाणिज्य बैंक अपनी डिपॉजिट और ऋण देने की दरें बढ़ाते रहे हैं। मार्च 2010 के बाद से इन बैंकों द्वारा अपनी मॉडल सावधि जमा दर में 225 आधार अंकों की बढ़ोतरी की जा चुकी है।
28. ऋण देने के पक्ष को देखें तो जुलाई 2010 के बाद से बैंकों की मॉडल बेस रेट में 225 आधार अंकों की बढ़ोतरी हुई है, जोकि नीतिगत दरों के सुदृढ़ अंतरण को प्रकट करता है।
चलनिधि और मौद्रिक स्थितियॉं
29. चलनिधि और मौद्रिक स्थितियों की ओर हमारी मुद्रास्फीतिकारी-विरोधी नीति रूझान के अनुरूप चलनिधि स्थितियॉं सामान्य रूप से वर्ष 2011-12 में अब तक घाटे के स्वरूप में रही हैं। 22 जुलाई के ऑंकड़ों के अनुसार इस वर्ष के दौरान चलनिधि समायोजन सुविधा विंडो के माध्यम से दैनिक रूप में निवल चलनिधि लगभग `48,000 करोड़ डाली गई थी जो निवल मॉंग ओर मीयादी देयताओं (एनडीटीएम) के एक प्रतिशत के भीतर थी।
30. मुद्रा आपूर्ति (एम3) की वर्तमान प्रवृत्ति तथा ऋण वृद्धि रिज़र्व बैंक की सांकेतिक सीमा से ऊपर बनी रही। उभरती हुई वृद्धि-मुद्रास्फीति गतिशीलता को देखते हुए वर्ष 2011-12 के लिए एम3 वृद्धि को नीचे की ओर संशोधित करते हुए इसे 3 मई के नीति वक्तव्य में निर्धारित 16.0 प्रतिशत से कम करते हुए 15.5 प्रतिशत रखा गया है। खाद्येतर बैंक ऋण वृद्धि अनुमान को भी 19.0 प्रतिशत से संशोधित करते हुए 18.0 प्रतिशत किया गया है।
जोखिम कारक
31. अब मैं वर्ष 2011-12 के लिए वृद्धि और मुद्रास्फीति के सांकेतिक अनुमानों के लिए कुछ जोखिमों का जिक्र करना चाहूँगा:
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पहला, विश्वव्यापी पण्य मूल्यों, विशेषकर तेल के मूल्यों के बारे में अनिश्चितता;
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दूसरा, चालू खाता घाटे को वित्त प्रदान करने के परिप्रेक्ष्य में पूँजी प्रवाह के बारे में अनिश्चितता;
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तीसरा, मानसून के प्रभाव से उत्पन्न खाद्य मुद्रास्फीति के प्रति जोखिम, उच्चतर न्यूनतम समर्थन मूल्य और प्रोटीन-समृद्ध मदों से संबंधित अपर्याप्त आपूर्ति कार्रवाई; और
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चौथा, वर्ष 2011-12 के लिए अनुमानित राजकोषीय घाटे के प्रति उल्लेखनीय वृद्धिशील जोखिम क्योंकि राजकोषीय घाटा मॉंग दबावों का एक मुख्य स्रोत रहा है।
32. इसके पहले कि मैं अपनी बात समाप्त करूँ, मैं यह कहना चाहूँगा कि रिज़र्व बैंक का यह मज़बूत विचार कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना मध्यावधि के दौरान वृद्धि को बनाए रखने तथा संभावित वृद्धि दर बढ़ाने दोनों के लिए आवश्यक है। यह एक अनुकूल निवेश वातावरण का एक महत्वपूर्ण योगदान है जिस पर अर्थव्यवस्था की संभावित वृद्धि निर्भर करती है। राजकोषीय समेकन सरकारी उपभोग से अलग मॉंग और निवेश के प्रति पुनर्संतुलन के द्वारा जारी वृद्धि पथ में योगदान कर सकता है। न्यूनतर और स्थायी मुद्रास्फीति प्राप्त करने के रिज़र्व बैंक के प्रयास भी समेकित नीति कार्रवाईयों तथा खासकर खाद्य और मूलभूत सुविधा के संबंध में घरेलू आपूर्ति अवरोधों का समाधान करने के लिए संसाधन के आबंटनों से सहायता मिल सकती है।
33. सरकार और रिज़र्व बैंक के लिए चुनौती है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि मुद्रास्फीति को नीचे लाने में अल्पावधि में मॉंग को सीमित किया जाए लेकिन आपूर्ति कार्रवाई को प्रोत्साहित किया जाए ताकि मध्यावधि में अर्थव्यवस्था के संभावित उत्पादन का विस्तार किया जा सके।''
अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/133
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