16 दिसंबर 2011
मध्य तिमाही मौद्रिक नीति समीक्षा : दिसंबर 2011
मौद्रिक उपाय
मौजूदा समष्टि रूप से आर्थिक आकलन के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि :
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आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को 6 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा जाए, और
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चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीति रिपो दर को 8.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा जाए।
इसके परिणामस्वरूप चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत रिवर्स रिपो दर 7.5 प्रतिशत पर और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर 9.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित बनी रहेगी।
प्रस्तावना
25 अक्टूबर 2011 को हुई रिज़र्व बैंक की दूसरी तिमाही समीक्षा बाद से वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण अत्यधिक बिगड़ गया है। हाल ही में आयोजित यूरोपीय यूनियन (ईयू) सम्मेलन के करार ने नकारात्मक बाज़ार विश्वास को सही नहीं किया। अत: यूरोप में निरंतर वित्तीय उतार-चढ़ाव तथा मंदी बनी रहने की संभावना है। दोनों ही कारकों ने भारत सहित उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं के सामने समस्या खड़ी कर दी है। उल्लेखनीय रूप से इन गतिविधियों के बावजूद कच्चे तेल की कीमतें निरंतर बढ़ी हैं।
घरेलू अर्थव्यवस्था की ओर विकास में स्पष्ट रूप से कमी आ रही है। यह विभिन्न कारकों के प्रभाव के कारण है: अनिश्चित वैश्विक वातावरण, पूर्व की सख्त मौद्रिक नीति और घेलू नीति अनिश्चितताएं हैं।
मुद्रास्फीति और मुद्रास्फीति अपेक्षाएं दोनों वर्तमान में रिज़र्व बैंक के सुगमता स्तर से ऊपर है। तथापि कच्चे तेल की उच्च कीमतों और रुपये के मूल्यह्रास के बावजूद आने वाले महीनों में मुद्रास्फीतिकारी दबावों के कम होने की संभावना है। विकास में कमी भी मुद्रास्फीति की गति को कम करने में योगदान दे रही है और उसे खाद्य मुद्रास्फीति की सुगमता से भी मदद मिल रही है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था
वैश्विक आर्थिक परिस्थिति यूरो क्षेत्र की राजकोषीय ऋण समस्या का कोई तुरंत विश्वसनीय समाधान न होने के कारण कमज़ोर रहना जारी रहेगा। दिसंबर 8 और 9 को हुए यूरोपीय यूनियन सम्मेलन में यूरोपीय नेताओं ने एक नए राजकोषीय करार किया जिसमें राजकोषीय अनुशासन को मज़बूत बनाने के लिए आर्थिक नीतियों का ज़ोरदार समन्वय पर सहमति हुई। जबकि यह करार यूरो क्षेत्र की मध्यम अवधि दीर्घावधि में बने रहने की आवश्यक है उसकी अल्पाविध निधियन दबावों को सुलझाने की योग्यता पर बाज़ारों ने प्रश्नचिह्न लगाया है। 0.8 प्रतिशत पर तीसरी तिमाही यूरो क्षेत्र विकास कमज़ोर था और 2012 का विकास पहले किए गए अनुमान से कमज़ोर रहने की संभावना है। इन प्रत्याशाओं को दर्शाते हुए यूरोपीय केंद्रीय बैंक ने पिछले दो महीनों में अपने नीति दरों को दो बार घटाया और कुछ गैर मानक उपायों को भी लागू किया। विपरित रूप से 2011 की तीसरी तिमाही में अमरीका का विकास दूसरी तिमाही से बेहतर था हालांकि यह अब भी प्रवृत्ति से कम है।
उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में कम विकास तथा मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए किए गए मौद्रिक सख्ति के प्रभाव के कारण उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में विकास सामान्य रहा। ब्राजि़ल, इंडोनेशिया, इज्राईल और थाइलैण्ड ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं में मंदी के कारण अपनी नीति दरों को घटाया। जबकि चीन ने अपने आरक्षित निधि आवश्यकताओं को कम किया। उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं ने भी वैश्विक जोखिम से बचने और यूरो क्षेत्र से उभरे वित्तीय तनाव के कारण भिन्न-भिन्न स्तरों पर कमी का दबाव देखा।
घरेलू अर्थव्यवस्था
विकास
सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि पिछले वर्ष की तदनुरूपी तिमाही में पहली तिमाही में 7.7 प्रतिशत और 8.8 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2011-12 की दूसरी तिमाही में 6.9 प्रतिशत पर सामान्य रही। दूसरी तिमाही में आर्थिक गतिविधियों में कमी मुख्य रूप से औद्योगिक वृद्धि में अत्यधिक सामान्य रहने के करण हुई। व्यय की ओर निवेश में उल्लेखनीय कमी आयी। सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि में 2011-12 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) के दौरान समग्र रूप से पिछले वर्ष 8.6 प्रतिशत से 7.3 प्रतिशत की कमी आयी।
औद्योगिक कार्यनिष्पादन में और अधिक गिरावट आयी जोकि औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) में अक्टूबर 2012 में वर्ष-दर-वर्ष 5.1 प्रतिशत की कमी से दर्शाया गया है। यह मुख्य रूप से विनिर्माण और खनन गतिविधियों में कमी होने के कारण हुआ। यह अत्यधिक कमी मुख्य रूप से पूंजीगत माल 25.5 प्रतिशत से वर्ष-दर-वर्ष कमी के साथ हुई जो सकल घरेलू उत्पाद संख्या से उभरी परिस्थिति के कारण निवेश में कमी को दर्शाता है।
अन्य संकेतक भी इसी प्रकार की प्रवृत्ति दर्शाते हैं। हालांकि यह आइआइपी की तरह नाट्यात्मक नहीं हैं। विनिर्माण के लिए एचएसबीसी द्वारा मैनेजर इंडेक्स खरीद (पीएमआइ) ने नवंबर 2011 में वृद्धि को और अधिक सामान्य होने का संकेत दिया। तथापि, पीएमआइ सेवा इंडेक्स ने दो महीने पूर्व नवंबर में प्रतिकूल स्तरों से सुधार दर्शाया। दूसरी तिमाही में कॉर्पोरेट मार्जिन पहली तिमाही में अपनी स्तर की तुलना में उल्लेखनीय रूप से सामान्य हुए। मार्जिन में कमी मुख्य रूप से उच्चतर इनपूट और ब्याज लागतों के कारण हुई। मूल्यों को आंकने की शक्ति में कमी दिखाई दे रही है।
खाद्य की ओर अब तक प्रमुख रबी फसल के अंतर्गत बुआई की प्रगति संतोषजनक रही है। अब तक अनाज़ और दालों के अंतर्गत जिस क्षेत्र में बुआई हुई हैं पिछले वर्ष की तुलना में अच्छी रही है।
मुद्रास्फीति
वर्ष-दर-वर्ष आधार पर थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति अक्टूबर में 9.7 प्रतिशत से घटकर 9.1 प्रतिशत हो गई। यह मुख्य रूप से प्राथमिक खाद्य वस्तु मुद्रास्फीति में कमी के कारण हुआ। ईंधन समूह मुद्रास्फीति सीमांत रूप से बढ़ी। खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुदास्फीति उल्लेखनीय रूप से उच्चतर बनी रही जो वास्तव में अक्टूबर में 7.6 प्रतिशत से नवंबर में 7.9 प्रतिशत से बढ़ी। यह बढ़ते इनपूट लागत को दर्शाता है। नया समेकित (ग्रामीण और शहरी) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (आधार: 2010 = 100) सितंबर में 113.1 से बढ़कर अक्टूबर में 114.2 हुआ। अन्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के अंतर्गत मुद्रास्फीति अक्टूबर 2011 में 9.4 से 9.7 प्रतिशत के स्तर पर थी। सुनिश्चित रूप से हेडलाईन गति संकेतक जैसेकि माह-दर-माह और सुनिश्चित रूप से हेडलाइन गति संकेतक जैसेकि मौसमी रूप से समायोजित तिमाही मुद्रास्फीति दर तैयार करने वाले माह-दर-माह और 3 माह चलनीय औसत निरंतर सामान्य होने के संकेत दे रहे हैं।
बाह्य क्षेत्र
पण्य निर्यात वृद्धि में 2011-12 की पहली छमाही में 40.6 प्रतिशत की औसत की तुलना में अक्टूबर-नवंबर में वर्ष-दर-वर्ष 13.6 प्रतिशत की औसत से तेज़ कमी आयी। तथापि आयात निर्यातों से कम रहे और व्यापार घाटा बढ़ा जिसके कारण चालू खाता पर दबाव पड़ा। यह विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा वैश्विक संविभागों का पुर्नसंतुलन करने और निर्यातकों द्वारा अपने निर्यात आय के प्रत्यावर्तन को स्थगित करने की प्रवृत्ति दोनों के कारण रुपए पर अत्यधिक दबाव पड़ा।
5 अगस्त 2011 को जिस दिन अमरीकी ऋण का डाउन ग्रेड हुआ उस दिन से 15 दिसंबर 2011 तक रुपये का लगभग 17 प्रतिशत से मूल्यह्रास हुआ है। इसके मद्देनज़र अंतर्वाह को आकर्षित करने के कई उपाय किए गए। विदेशी निवेशकों ने सरकारी और कॉर्पोरेट ऋण लिखतों में निवेश की सीमाएं बढ़ा दी। अनिवासी जमाराशियों पर देय ब्याज दरों की सीमाएं बढ़ाई गई। बाह्य वाणिज्यिक उधारों के लिए समग्र लागत सीमाएं बढ़ाई गई। साथ ही, जमाखोरी को रोकने वाले कई प्रशासनिक उपाय किए गए। रिज़र्व बैंक बाह्य क्षेत्र की गतिविधियों पर निरंतर निगरानी रखें हुए है और उचित रूप से उभरती परिस्थितियों के अनुरूप कार्रवाई करेगी।
राजकोषीय परिस्थिति
केंद्र सरकार का मुख्य घाटा संकेतक 2011-12 (अप्रैल-अक्टूबर) के दौरान बिगड़ा। यह मुख्य रूप से राजस्व रसीदों में कमी और व्यय (मुख्य रूप से आर्थिक सहायता के कारण) में बढ़ोतरी हुई। राजकोषीय घाटा 2011-12 के प्रथम सात महीनों में अनुमानित बज़ट के 74.4 प्रतिशत की तुलना में पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि में 42.6 प्रतिशत से उल्लेखनीय रूप से उच्चतर था। (यदि पिछले वर्ष अनुमानित प्राप्त बज़ट किए गए स्पेक्ट्रम आय का समायोजन किया जाता है तो लगभग 61.2 प्रतिशत)। इस वर्ष राजकोषीय घाटा में संभाव्य कमी मुद्रास्फीतिकारी प्रभावों के कारण है।
मुद्रा, ऋण और चलनिधि परिस्थितियॉं
वर्ष-दर-वर्ष मुद्रा आपूर्ति (एम3) वृद्धि 2 दिसंबर 2011 को 16.3 प्रतिशत से वित्तीय वर्ष की शुरूआत में 17.2 प्रतिशत से सामान्य रही। हालांकि यह वर्ष के लिए 15.5 प्रतिशत के अनुमानित सीमा से अभी भी उच्चतर है। वर्ष-दर-वर्ष खाद्येतर ऋण वृद्धि 17.5 प्रतिशत पर रही तथापि यह 18 प्रतिशत के संकेतक अनुमान से नीचे है।
मौद्रिक नीति के रुझान के अनुरूप चलनिधि परिस्थितियॉं इस राजकोषीय वर्ष के दौरान घाटे में बनी रही। हालांकि घाटा नवंबर 2011 के दूसरे सप्ताह की शुरुआत में उल्लेखनीय रूप से बढ़ा। दैनिक चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत औसत उधार अप्रैल-अक्टूबर 2011 के दौरान लगभग `49,000 करोड़ से नवंबर-दिसंबर (15 दिसंबर 2011 तक) के दौरान लगभग `89,000 करोड़ से बढ़ा। रिज़र्व बैंक ने चलनिधि परिस्थितियों को सुगम बनाने के लिए लगभग `24,000 करोड़ की एक समग्र राशि के लिए नवंबर-दिसंबर 2011 में तीन अवसरों पर खुले बाज़ार परिचालन (ओएमओ) आयोजित किए।
मुद्रा बाज़ार में वर्तमान में कोई तनाव का उल्लेखनीय संकेत नहीं है। ओवरनाईट कॉल मनी दर लगभग नीति रिपो दर के आस-पास स्थिर है और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) जैसी चलनिधि सुविधाओं का प्रयोग नहीं किया गया है। तथापि, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि चलनिधि समायोजन सुविधा से उधार रिज़र्व बैंक की सुगमता स्तर से निरंतर अधिक है, आगे भी जब भी आवश्यकता हो खुले बाज़ार परिचालन आयोजित किए जाएंगे।
दृष्टिकोण
2011 और 2012 के लिए वैश्विक वृद्धि पहले अनुमानित किए गए से कम होने की संभावना है। यूरो क्षेत्र के राजकोषीय ऋण पर बढ़ती चिंताओं, मौद्रिक और राजकोषीय नीति में बदलाव लाने की सीमाएं, उच्च बेरोज़गारी दर, कमज़ोर आवास बाज़ार और उच्च तेल मूल्य ये सभी कारकों के कारण इन सभी की पृष्ठभूमि में वित्तीय बाज़ारों में खिचाव बढ़ा है। इन कारकों ने भी उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि को सामान्य रखने में योगदान दिया है। सभी ओर से वृद्धि की गति कम होने के कारण उन्नत देशों और उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं दोनों ही में मुद्रास्फीति भी कम होने लगी है।
घरेलू की ओर अनुमानित अत्यधिक खरीफ उत्पादन की पृष्ठभूमि में और रबी की बुआई में संतोषजनक प्रगति के कारण कृषि अवधारणाएं अच्छी लग रही है। तथापि, निवेश में कमी के कारण औद्योगिक गतिविधि में कमी एक चिंता का विषय है। समग्र रूप से अर्थव्यवस्था में विकास की गति में स्पष्ट रूप से कमी आ रही है। साथ ही, वैश्विक और घरेलू समष्टि रूप से आर्थिक परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए दूसरी तिमाही समीक्षा में दर्शाए गए रिज़र्व बैंक के विकास अनुमान जोखिम में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
पहली तिमाही समीक्षा और दूसरी तिमाही समीक्षा के बीच गैर तेल पण्य मूल्य में उल्लेखनीय कमी हुई है और रुपये में भी तेज़ मूल्यह्रास हुआ है। इसके परिणामस्वरूप, पहली तिमाही समीक्षा में मार्च 2012 के लिए दर्शाई गई 7 प्रतिशत की हेडलाईन मुद्रास्फीति को दूसरी तिमाही समीक्षा में बनाए रखा गया था। नवंबर 2011 में खाद्य मुद्रास्फीति में कमी और समग्र मांग में कमी की संभावना तथा जिसके कारण खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति को मार्च 2012 के लिए मुद्रास्फीति अनुमान 7 प्रतिशत पर बनाया रखा गया है।
रिज़र्व बैंक जनवरी 2012 की तीसरी तिमाही समीक्षा में 2011-12 के लिए अपनी विकास और मुद्रास्फीति का औपचारिक सांख्यिक आकलन करेगी।
मार्गदर्शन
जबकि मुद्रास्फीति अपने अनुमानित सीमा के भीतर बनी हुई है, विकास में कमी का स्पष्ट रूप से जोखिम बढ़ गया है। दूसरी तिमाही समीक्षा में दिया गया मार्गदर्शन यह था कि अनुमानित मुद्रास्फीति के आधार पर नीति दरों में और अधिक बढ़ोतरी की आवश्यकता नहीं होगी। वृद्धि की गति में कमी और वृद्धि में कमी की उच्च जोखिम को ध्यान में रखते हुए इस मार्गदर्शन को पुन: दोहराया जा रहा है। इसके बाद से मौद्रिक नीति कार्रवाईयां विकास के समक्ष जोखिम की प्रतिक्रिया में चक्र को विपरित दिशा में बदल देगी।
तथापि, इस बात पर ज़ोर दिया जाना चाहिए कि मुद्रास्फीति जोखिम उच्च बनी हुई है और आपूर्ति और मांग दोनों के कारण मुद्रास्फीति पुन: तेज़ हो सकती है। साथ ही, रुपये पर भी तनाव बना हुआ है। आगे की जाने वाली कार्रवाईयों का समय और उसकी मात्रा आने वाले महीनों में इन कारकों का क्या रूप होता है इसका निरंतर आकलन करने पर निर्भर रहेगी।
अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/948 |