28 जनवरी 2014
मौद्रिक नीति 2013-14 की तीसरी तिमाही समीक्षा-
डॉ. रघुराम जी. राजन, गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक का वक्तव्य
"नमस्कार, रिज़र्व बैंक में आपका स्वागत है।
वर्तमान और उभरती हुई समष्टि आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर आज हमने यह निर्णय लिया है कि चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीति रिपो दर में 25 आधार अंकों की बढ़ोतरी करते हुए इसे 8.0 प्रतिशत किया जाए।
सबसे पहले मैं उभरती हुई समष्टि आर्थिक संभावनाओं में सामना किए जाने वाले जोखिमों के संतुलन की बात करूंगा। अर्थव्यवस्था में मंदी लगातार चिंताजनक बनती जा रही है। हमारा वर्तमान आकलन है कि मुख्य रूप से विनिर्माण के कारण औद्योगिक गतिविधि में कमी के स्वरूप के साथ वर्ष 2013-14 की तीसरी तिमाही में वृद्धि की गति में कमी आने की संभावना है। सेवाओं के अग्रणी संकेतक भी यह बताते है कि परिवहन और संचार गतिविधियों में कुछ तेजी को छोड़कर एक धीमी संभावना बनी रहेगी। दूसरी ओर कृषि उत्पादन अब तक मजबूत रहा है तथा रबी की बुआई में मजबूत तेजी यह उल्लेख करती है कि यह तेजी जारी रहेगी।
दूसरी सुखद बात अनुकूल निर्यात वृद्धि की सहायता से व्यापार घाटे में उल्लेखनीय कमी है। वर्ष 2013-14 के लिए चालू खाता घाटे में कमी वर्ष 2012-13 के 4.8 प्रतिशत की तुलना में अब सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 प्रतिशत से कम रहने की उम्मीद है। पूंजी अंतर्वाहों में हाल की शुरूआत से चालू खाता घाटे को वित्तीय सहायता देने में आसानी होगी। सितंबर से प्रारक्षित निधियों का पुनर्निर्माण हुआ है और यह आशा की जाती है कि इसमें और बढ़ोतरी होगी क्योंकि वे तेल विपणन कंपनियां जो बाजार में विदेशी मुद्रा की खरीद कर चुकी हैं वे रिज़र्व बैंक को तब चुकौती करेंगी जब उनका स्वैप बकाया होगा। इसके अतिरिक्त अनिश्चित बाहरी वातावरण को देखते हुए सरकार और रिज़र्व बैंक राजकोषीय और मौद्रिक स्थिरता सुनिश्चित करने के अपने प्रयासों पर विराम नहीं लगा सकते।
रुपए के मूल्य को सबसे गंभीर जोखिम उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति से है जो सब्जियों और फलों की कीमतों में प्रत्याशित गिरावट के बावजूद अभी तक दुहरे अंकों तक बढ़ी हुई है। इसके अलावा खाद्य और ईंधन को छोड़कर मुद्रास्फीति भी विशेषकर सेवाओं के संबंध में उच्चतर रही है जो पारिश्रमिक दबावों और दूसरे दौर के अन्य प्रभावों का संकेत देती है। मुद्रास्फीति का बढ़ा हुआ स्तर पारिवारिक बजट को अव्यवस्थित कर रहा है तथा उपभोक्ताओं की क्रयशक्ति को अवरूद्ध कर रहा है। बदले में यह निवेश को हतोत्साहित करता है और वृद्धि को कमजोर बनाता है। उच्चतर मुद्रास्फीति रुपए को कमजोर करती है। मुद्रास्फीति एक कर भी है जिससे पूरी तरह छुटकारा नहीं पाया जा सकता और अत्यंत गरीब लोगों पर यह बहुत भारी पड़ती है। मुद्रास्फीति को केवल एक न्यूनतर और स्थिर स्तर पर लाने से ही मौद्रिक नीति एक धारणीय तरीके से उपभोग और निवेश को सक्रिय करने में योगदान कर सकती है। मुद्रास्फीति और वृद्धि के बीच यह तथाकथित शुरूआत दीर्घावधि में एक झूठी शुरूआत है।
यह संभव है कि अल्पकालिक वृद्धि के आवश्यक त्याग के बिना मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाया जा सकता है बशर्ते हम वह करें जो जरूरी हो और धैर्य बनाए रखें। 18 दिसंबर 2013 को तिमाही मध्य की समीक्षा में नीति निर्णय यह था कि कुछ और आंकड़ों की प्रतीक्षा की जाए और हमने यह मार्गदर्शन दिया था कि आंकड़ों पर हम क्या आकस्मिक कार्रवाई कर सकते हैं। यद्यपि हेडलाइन मुद्रास्फीति सब्जियों की कीमतों में अनिवार्य गिरावट के साथ उल्लेखनीय कमी आई है, खाद्यान्न और ईंधन को छोड़कर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति एक समान बनी हुई है तथा खाद्यान्न और ईंधन को छोड़कर थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति बढ़ी हुई है। इन आंकड़ों को देखते हुए नीति दर में आज की गई बढ़ोतरी तिमाही मध्य की समीक्षा में मार्गदर्शन के अनुरूप है। इसके अतिरिक्त डॉ. ऊर्जित पटेल समिति ने अवस्फीति के लिए एक “अवरोही पथ” का उल्लेख किया है जो जनवरी 2015 तक 8 प्रतिशत से कम उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति और जनवरी 2016 तक छह प्रतिशत से कम उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति का लक्ष्य निर्धारित करता है। वर्ष 2013-14 की तीसरी तिमाही के लिए समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की साथ-साथ जारी समीक्षा में निर्धारित रिज़र्व बैंक के बेसलाइन अनुमान यह उल्लेख करते हैं कि आगे आने वाले बारह महीनों की समयावधि के दौरान तथा एक अपरिवर्तित नीति रूझान के साथ 8 प्रतिशत के केन्द्रीय अनुमान के लिए वृद्धिशील जोखिम हैं। तदनुसार, 25 आधार अंकों तक नीति दर में बढ़ोतरी अनुशंसित अवस्फीतिकारी मार्ग पर सुरक्षित रूप से अर्थव्यवस्था को व्यवस्थित करने के लिए जरूरी है।
यदि इस बेसलाइन अनुमान के अनुसार अवस्फीतिकारी प्रक्रिया विकसित होती है तो आने वाली अवधि में नीति में और कड़ाई की आशा इस समय नहीं की जा सकती है। वास्तव में यदि मुद्रास्फीति उस गति से कम होती है जो उस गति से तेज है जिसकी आशा हम वर्तमान में कर रहे हैं और उस कमी के जारी रहने की आशा की जा सकती है तो रिज़र्व बैंक को अवसर मिलेगा कि वह और अधिक सहायता कर सके।
हालांकि रिज़र्व बैंक तीव्र सुधारों के माध्यम से वृद्धि पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है। उदाहरण के लिए पिछले सप्ताह नकदी निर्धारित ब्याज दर फ्यूचर्स ने विभिन्न शेयर बाजारों में कारोबार शुरू किया। चिंताजनक आस्तियों के समाधान के लिए परिवर्धित ढ़ाचा एक अप्रैल तक परिचालन में आ जाएगा। वित्तीय समावेशन पर डॉ. नचिकेत मोर समिति की सिफारिशों की उसी सावधानी से जांच की जा रही है जिस प्रकार मौद्रिक नीति ढ़ांचे पर डॉ. ऊर्जित पटेल समिति की सिफारिशों की जांच की जा रही है।
रिज़र्व बैंक की ओर से मैं आपको नववर्ष की शुभकामनाएं देता हूं।"
अल्पना किल्लावाला
प्रधान मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/1510 |