भा.रि.बैंक/2024-25/05
विसविवि.केंका.एफआईडी.बीसी.सं.1/12.01.033/2024-25
01 अप्रैल 2024
अध्यक्ष/ प्रबंध निदेशक/
मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक
महोदया/महोदय,
स्वयं सहायता समूह – बैंक सहलग्नता कार्यक्रम पर मास्टर परिपत्र
भारतीय रिज़र्व बैंक ने समय-समय पर बैंकों को स्वयं सहायता समूह-बैंक सहलग्नता कार्यक्रम के संबंध में अनेकों दिशा-निर्देश/ अनुदेश जारी किए हैं। बैंकों को सभी अनुदेश एक स्थान पर उपलब्ध कराने के प्रयोजन से इस विषय पर विद्यमान दिशा-निर्देशों/ अनुदेशों को समेकित करते हुए इस मास्टर परिपत्र को अद्यतन किया गया है, जो इस अग्रेषण पत्र के साथ संलग्न है। इस मास्टर परिपत्र में, परिशिष्ट में दिए गए अनुसार, रिज़र्व बैंक द्वारा 31 मार्च 2024 तक उक्त विषय पर जारी सभी परिपत्र समेकित किए गए हैं।
भवदीया
(निशा नम्बियार)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक
अनुलग्नक: यथोक्त
स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) - बैंक सहलग्नता कार्यक्रम पर मास्टर परिपत्र
स्वयं सहायता समूहों में औपचारिक बैंकिंग ढांचे और ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों को आपसी लाभ के लिए एक साथ लाने की संभाव्यता है। नाबार्ड द्वारा कुछ राज्यों में परियोजना सहलग्नता के प्रभाव के मूल्यांकन के संबंध में किए गए अध्ययन से प्रोत्साहनपूर्ण तथा सकारात्मक विशेषताएं सामने आई हैं, जो इस प्रकार हैं:- स्वयं सहायता समूहों के ऋण की मात्रा में वृद्धि, सदस्यों के ऋण ढांचे में आय न कमाने वाली गतिविधियों से उत्पादक गतिविधियों में निश्चित परिवर्तन, लगभग 100 प्रतिशत वसूली का निष्पादन, बैंकों और उधारकर्ताओं दोनों के लिए लेन-देन की लागत में भारी कटौती, आदि के साथ-साथ स्वयं सहायता समूह सदस्यों के आय स्तर में क्रमिक वृद्धि। सहलग्नता परियोजना की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि बैंकों से सहलग्न लगभग 85 प्रतिशत समूह केवल महिलाओं द्वारा गठित किए गए थे।
2. स्वयं सहायता समूह बैंक सहलग्नता के महत्व को ध्यान में रखते हुए, बैंकों को सूचित किया गया है कि वे वर्ष 2008-09 के लिए माननीय वित्त मंत्री महोदय द्वारा घोषित केंद्रीय बजट के पैरा 93, जिसमें निम्नानुसार कहा गया था : "बैंकों को समग्र वित्तीय समावेशन की अवधारणा को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। सरकार सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों से कुछेक सरकारी क्षेत्र के बैंकों के नक्शे कदम पर चलने और एसएचजी के सदस्यों की सभी ऋण संबंधी आवश्यकताएं अर्थात् (क) आम्दनी का उपार्जन करने वाले क्रियाकलाप, (ख) सामाजिक आवश्यकताएं जैसे - आवास, शिक्षा, विवाह, आदि और (ग) ऋण की अदला-बदली (स्वैप) की आवश्यकताओं को पूरा करने का अनुरोध करेगी”, में की गई परिकल्पना के अनुसार एसएचजी के सदस्यों की संपूर्ण ऋण आवश्यकताओं को पूरा करें। अतः भारतीय रिज़र्व बैंक के मौद्रिक नीति वक्तव्य और केंद्रीय बजट घोषणाओं में समय-समय पर बैंकों के साथ एसएचजी को जोड़ने पर बल दिया गया है और इस संबंध में बैंकों को विभिन्न दिशानिर्देश जारी किए गए हैं।
3. बैंकों को सरल और आसान प्रक्रिया अपनाते हुए अपनी शाखाओं को स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को वित्तपोषित करने और उनके साथ सहलग्नता स्थापित करने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन देना चाहिए। एसएचजी की कार्यप्रणाली की सामूहिक प्रगति उन पर ही छोड़ दी जाए और न उन्हें विनियमित किया जाए और न ही उन पर औपचारिक ढांचा थोपा जाए। एसएचजी के वित्तपोषण के प्रति दृष्टिकोण बिल्कुल बाधारहित होना चाहिए तथा उनमें उपभोग व्यय भी सम्मिलित किया जाना चाहिए। तदनुसार, बैंकिंग क्षेत्र के साथ एसएचजी की प्रभावी सहलग्नता को सक्षम करने के लिए निम्नलिखित दिशानिर्देशों का पालन किया जाना चाहिए।
4. बचत बैंक खाता खोलना
पंजीकृत और अपंजीकृत एसएचजी, जो अपने सदस्यों की बचत आदतों को बढ़ाने के कार्य में संलग्न हैं, बैंकों के साथ बचत खाते खोलने हेतु पात्र हैं। यह आवश्यक नहीं है कि इन एसएचजी ने बचत बैंक खाते खोलने से पहले बैंकों की ऋण सुविधा का उपयोग किया हो। एसएचजी पर लागू ग्राहकों के संबंध में समुचित सावधानी (सीडीडी) पर मास्टर निदेश - ‘अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी) निदेश, 2016’ के अध्याय-VI में दिए गए निर्देश (जैसा कि समय-समय पर अद्यतन किया गया है) का पालन किया जाए।
5. एसएचजी को उधार देना
क) एसएचजी को बैंकों द्वारा दिए गए उधारों को प्रत्येक बैंक की शाखा ऋण योजना, ब्लॉक ऋण योजना, जिला ऋण योजना और राज्य ऋण योजना में सम्मिलित किया जाना चाहिए। इन योजनाओं को तैयार करने में इस क्षेत्र को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसे बैंक की कारपोरेट ऋण योजना का एक महत्वपूर्ण भाग भी बनाया जाना चाहिए।
ख) नाबार्ड के परिचालनगत दिशानिर्देशों के अनुसार, बैंकों द्वारा एसएचजी को बचत सहलग्न ऋण स्वीकृत किया जा सकता है (यह बचत और ऋण अनुपात 1:1 से 1:4 तक भिन्न-भिन्न हो सकता है)। यद्यपि, परिपक्व एसएचजी के मामलों में, बैंक के विवेकानुसार बचत के चार गुणा तक की ऋण सीमा से ऊपर भी ऋण प्रदान किया जा सकता है।
ग) एक ऐसी आसान प्रणाली, जिसमें न्यूनतम क्रियाविधि और दस्तावेजीकरण अपेक्षित हो, एसएचजी को ऋण के प्रवाह में वृद्धि करने की प्रारम्भिक शर्त है। बैंकों को अपने शाखा प्रबंधकों को पर्याप्त मंजूरी अधिकार प्रदान करके त्वरित गति से ऋण स्वीकृत करने और उसे संवितरित करने की व्यवस्था करनी चाहिए तथा परिचालनगत सभी व्यवधानों को दूर किया जाना चाहिए। ऋण आवेदन फार्मों, प्रक्रिया और दस्तावेजों को आसान बनाना चाहिए। इससे शीघ्र और सुविधाजनक रूप से ऋण उपलब्ध कराने में सहायता मिलेगी।
6. ब्याज दर
बैंकों द्वारा स्वयं सहायता समूहों/ सदस्य लाभार्थियों को दिए गए ऋणों पर लागू होने वाली ब्याज दरों को उनके विवेकाधिकार पर छोड़ा गया है, जोकि मास्टर निदेश-भारतीय रिज़र्व बैंक (अग्रिम राशियों पर ब्याज दर) निदेश, 2016, जिसे दिनांक 3 मार्च 2016 को डीबीआर.डीआईआर.सं.85/13.03.00/2015-16 के माध्यम से जारी किया गया है, और उसे समय-समय पर अद्यतन किया गया है, में निहित अग्रिमों पर ब्याज दर संबंधी विनियामक दिशानिर्देशों के अधीन हैं।
7. सेवा/ प्रक्रिया प्रभार
रु.25,000/- तक के प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋण पर ऋण संबंधी कोई और तदर्थ सेवा प्रभार/ निरीक्षण प्रभार नहीं लगाया जाना चाहिए। एसएचजी/ जेएलजी को दिए जाने वाले पात्र प्राथमिकता-प्राप्त ऋणों के मामले में, यह सीमा समग्र समूह के बजाय समूह के प्रति-सदस्य आधार पर लागू होगी।
8. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अन्तर्गत एक पृथक खंड
एसएचजी को दिए जाने वाले ऋणों को संबंधित क्षेत्रों अर्थात् कृषि, एमएसएमई, सामाजिक संरचना और अन्य श्रेणियों के तहत प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र से संबंधित ऋण (पीएसएल) के तहत वर्गीकृत करने की अनुमति है, जोकि दिनांक 4 सितम्बर 2020 को मास्टर निदेश विसविवि.केंका.योजना.बीसी.5/04.09.01/2020-21 के माध्यम से जारी, और समय-समय पर यथा संशोधित, ‘मास्टर निदेश - प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र से संबंधित ऋण (पीएसएल) – लक्ष्य एवं वर्गीकरण’ के दिशानिर्देशों के अधीन है।
9. एसएचजी में चूककर्ताओं की उपस्थिति
एसएचजी के कुछ सदस्यों और/ अथवा उनके पारिवारिक सदस्यों द्वारा बैंक वित्त के प्रति चूक को सामान्यतया एसएचजी के वित्तपोषण के मामले में रुकावट का कारण नहीं बनाया जाना चाहिए, बशर्ते कि समूचे एसएचजी ने कोई चूक न की हो। तथापि, एसएचजी द्वारा बैंक ऋण का उपयोग बैंक के चूककर्ता सदस्य को वित्त देने के लिए न किया जाए।
10. क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षण
क) बैंक एसएचजी सहलग्नता परियोजना के आन्तरिककरण के लिए यथोचित कदम उठा सकते हैं तथा फील्ड स्तर के पदाधिकारियों के लिए विशिष्ट रूप से अल्पावधि कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, उनके मध्यम स्तर के नियंत्रक अधिकारियों तथा वरिष्ठ अधिकारियों के लिए उचित जागरूकता/ सुगमता कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं।
ख) बैंक एसएचजी को लक्ष्य करके आवश्यकता आधारित कार्यक्रमों के संचालन हेतु, एफएलसी और ग्रामीण शाखाओं द्वारा वित्तीय साक्षरता-नीति की समीक्षा पर दिनांक 02 मार्च 2017 के परिपत्र विसविवि.एफएलसी.बीसी.सं.22/12.01.018/2016-17 में उल्लेखित अनुदेशों का संदर्भ ग्रहण करें।
11. एसएचजी उधार की निगरानी और समीक्षा
एसएचजी की संभाव्यता के मद्देनज़र, बैंकों को विभिन्न स्तरों पर नियमित रूप से प्रगति की निगरानी करनी चाहिए। असंगठित क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने के लिए चल रहे एसएचजी बैंक सहलग्नता कार्यक्रम को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य स्तरीय बैंकर समिति (एसएलबीसी) और जिला परामर्शदात्री समिति (डीसीसी) की बैठकों में एसएचजी बैंक सहलग्नता कार्यक्रम की निगरानी पर चर्चा के लिए उसे कार्यसूची की एक मद के रूप में नियमित रूप से रखा जाना चाहिए। इसकी समीक्षा तिमाही आधार पर उच्चत्तम कारपोरेट स्तर पर की जानी चाहिए। साथ ही, बैंकों द्वारा नियमित अन्तराल पर इस कार्यक्रम की प्रगति की समीक्षा की जाए। एसएचजी-बीएलपी के अंतर्गत प्रगति, जैसा कि आरबीआई द्वारा दिनांक 26 अप्रैल 2018 के पत्र विसविवि.केंका.एफआईडी.सं.3387/12.01.033/2017-18 में निर्धारित किया गया है, को तिमाही आधार पर नाबार्ड (सूक्ष्म ऋण नवप्रवर्तन विभाग), मुंबई को रिपोर्ट किया जाए और नियत तारीख से 15 दिनों के भीतर उक्त विवरणी निर्धारित प्रारूप में प्रस्तुत की जाए।
12. सीआईसी को रिपोर्टिंग
वित्तीय समावेशन के लिए एसएचजी सदस्यों के संबंध में क्रेडिट सूचना रिपोर्टिंग के महत्व को ध्यान में रखते हुए, बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे दिनांक 16 जून 2016 को स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के सदस्यों के संबंध में ऋण सूचना रिपोर्टिंग तथा दिनांक 14 जनवरी 2016 को स्वयं सहायता समूह (एसएसजी) के सदस्यों के संबंध में ऋण सूचना रिपोर्टिंग पर जारी दिशानिर्देशों का पालन करें।
परिशिष्ट
मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
क्रम सं. |
परिपत्र सं. |
तारीख |
विषय |
1. |
ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.13/पीएल-09.22/91/92 |
24 जुलाई 1991 |
ग्रामीण गरीबों की बैंकिंग तक पहुँच में सुधार - मध्यस्थ एजेंसियों की भूमिका - स्वयं सहायता समूह |
2. |
ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.120/04.09.22/95-96 |
2 अप्रैल 1996 |
बैंकों से स्वयं सहायता समूहों को सहलग्न करना - गैर सरकारी संगठनों और स्वयं सहायता समूहों पर कार्यदल - सिफारिशें - अनुवर्ती कार्रवाई |
3. |
ग्राआऋवि.पीएल.बीसी.12/04.09.22/98-99 |
24 जुलाई 1998 |
बैंकों के साथ स्वयं सहायता समूहों की सहलग्नता |
4. |
ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.94/04.09.01/98-99 |
24 अप्रैल 1999 |
माइक्रो ऋण संगठनों को ऋण - ब्याज दरें |
5. |
ग्राआऋवि.पीएल.बीसी.28/04.09.22/99-2000 |
30 सितंबर 1999 |
माइक्रो ऋण संगठनों/स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से ऋण सुपुर्दगी |
6. |
ग्राआऋवि.सं.पीएल.बीसी.62/04.09.01/99-2000 |
18 फरवरी 2000 |
माइक्रो ऋण |
7. |
ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.42/04.09.22/2003-04 |
3 नवंबर 2003 |
माइक्रो वित्त |
8. |
ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.61/04.09.22/2003-04 |
9 जनवरी 2004 |
असंगठित क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराना |
9. |
भारिबैं/385/2004-05 ग्राआऋवि.सं.प्लान.बीसी.84/04.09.22/2004-05 |
3 मार्च 2005 |
माइक्रो ऋण के अन्तर्गत प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करना |
10. |
भारिबैं/2006-07/441 ग्राआऋवि.केंका.एमएफएफआइ.बीसी.सं.103/12.01.01/2006-07 |
20 जून 2007 |
माइक्रो वित्त - प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करना |
11. |
ग्राआऋवि.एमएफएफआइ.बीसी.सं.56/12.01.001/2007-08 |
15 अप्रैल 2008 |
समग्र वित्तीय समावेशन तथा एसएचजी की ऋण आवश्यकताएं |
12. |
विसविवि.एफआईडी.बीसी.सं.56/12.01.033/2014-15 |
21 मई 2015 |
स्वयं सहायता समूह – बैंक सहलग्नता कार्यक्रम – प्रगति रिपोर्टों का संशोधन |
13. |
भारिबैं/2015-16/291 बैंविवि.सीआईडी.बीसी.सं.73/20.16.56/2015-16 |
14 जनवरी 2016 |
स्वयं सहायता समूह (एसएसजी) के सदस्यों के संबंध में ऋण सूचना रिपोर्टिंग |
14. |
मास्टर निदेश डीबीआर.एएमएल.बीसी.सं.81/14.01.001/2015-16 |
25 फरवरी 2016 (04 जनवरी 2024 तक अद्यतन) |
मास्टर निदेश - अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी) निदेश, 2016 |
15. |
मास्टर निदेश डीबीआर.डीआईआर.सं.84/13.03.00/2015-16 |
03 मार्च 2016 (26 अक्टूबर 2023 तक अद्यतन) |
मास्टर निदेश - भारतीय रिज़र्व बैंक (जमाराशियों पर ब्याज दर) निदेश, 2016 |
16. |
मास्टर निदेश डीबीआर.डीआईआर.सं.85/13.03.00/2015-16 |
03 मार्च 2016 (12 सितम्बर 2023 तक अद्यतन) |
मास्टर निदेश - भारतीय रिज़र्व बैंक (अग्रिमराशियों पर ब्याज दर) निदेश, 2016 |
17. |
आरबीआई/2015-16/424 बैंविवि.सीआईडी.बीसी.सं.104/20.16.56/2015-16 |
16 जून 2016 |
स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के सदस्यों के संबंध में ऋण सूचना रिपोर्टिंग |
18. |
विसविवि.एफएलसी.बीसी.सं.22/12.01.01.018/2016-17 |
2 मार्च 2017 |
ग्रामीण शाखाओं एवं एफएलसी द्वारा वित्तीय साक्षरता – नीति समीक्षा |
19. |
मास्टर निदेश विसविवि.केंका.योजना.बीसी.5/04.09.01/2020-21 |
4 सितम्बर 2020 (27 जुलाई 2023 तक अद्यतन) |
मास्टर निदेश- प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र से संबंधित ऋण (पीएसएल) – लक्ष्य एवं वर्गीकरण |
|