18 जुलाई 2024
आरबीआई बुलेटिन – जुलाई 2024
आज, भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन का जुलाई 2024 अंक जारी किया। बुलेटिन में छह भाषण, पाँच आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।
पांच आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. महामारी के बाद के साक्ष्य के साथ भारत के लिए ब्याज की आधार दर के अनुमान को अद्यतन करना; III. भारतीय परिवारों की वित्तीय संपत्ति का अनुमान लगाना; IV. भारत में योजित सकल मूल्य में श्रम संरचना के योगदान को मापना - मानव पूंजी दृष्टिकोण; और V. हिमालयी राज्यों/ संघ शासित प्रदेशों का राजकोषीय कार्य-निष्पादन।
I. अर्थव्यवस्था की स्थिति
उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) और उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में वैश्विक आर्थिक गतिविधि मजबूत होती दिख रही है तथा वस्तुओं और सेवाओं में वैश्विक व्यापार गति पकड़ रहा है। मौद्रिक नीति विचलन, वैश्विक आर्थिक विकास के लिए दिशा तय कर रहा है। भारत में, 2024-25 की दूसरी तिमाही अर्थव्यवस्था में तेजी के संकेतों के साथ शुरू हुई है। कृषि के लिए संभावना में सुधार और ग्रामीण व्यय में बहाली, मांग की स्थितियों के विकास में महत्वपूर्ण साबित हुए हैं। उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति में लगातार तीन महीनों की नरमी के बाद जून 2024 में बढ़ोतरी हुई क्योंकि सब्जियों की कीमतों में व्यापक उछाल ने चल रही समग्र अवस्फीति को रोक दिया।
II. महामारी के बाद के साक्ष्य के साथ भारत के लिए ब्याज की आधार दर के अनुमान को अद्यतन करना
हरेन्द्र कुमार बेहरा द्वारा
विभिन्न क्षेत्रों में मौद्रिक नीति के विचलन ने ब्याज की आधार दर के स्तर के बारे में चर्चा को फिर से हवा दे दी है। यह आलेख भारत के लिए ब्याज की आधार दर का अद्यतन अनुमान प्रदान करता है।
मुख्य बातें:
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2023-24 की चौथी तिमाही के लिए आधार दर का मूल अनुमान 1.4-1.9 प्रतिशत है, जबकि महामारी के दूसरे वर्ष में 2021-22 की तीसरी तिमाही के लिए पहले का अनुमान 0.8-1.0 प्रतिशत था।
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ये अनुमान अनिश्चितता के व्यापक दायरे में हैं, जिससे मौद्रिक नीति रुख के किसी भी आकलन में सावधानीपूर्वक व्याख्या की आवश्यकता है।
III. भारतीय परिवारों की वित्तीय संपत्ति का अनुमान लगाना
अनुपम प्रकाश, सूरज एस, इशु ठाकुर और मौसमी प्रियदर्शिनी द्वारा
यह आलेख जून 2011 से मार्च 2023 की अवधि के लिए भारतीय परिवारों की वित्तीय संपत्ति के त्रैमासिक अनुमानों को संकलित करने का प्रयास प्रस्तुत करता है, साथ ही आस्ति मूल्य वृद्धि के लिए सूचीबद्ध इक्विटी में घरेलू निवेश को भी शामिल करता है। आलेख की मुख्य बातें इस प्रकार हैं:
मुख्य बातें:
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मार्च 2023 के अंत तक, परिवारों की वित्तीय आस्तियां जीडीपी की 135.0 प्रतिशत थी, जबकि उनकी वित्तीय देयताएँ जीडीपी की 37.8 प्रतिशत थीं; तदनुसार, उनकी निवल वित्तीय संपत्ति जीडीपी की 97.2 प्रतिशत पर रखी गईं थी।
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कोविड-19 महामारी के दौरान वित्तीय आस्तियों में वृद्धि के कारण मार्च 2020 के अंत और मार्च 2023 के अंत के बीच निवल वित्तीय संपत्ति में 12.6 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई।
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दिसंबर 2021 के अंत तक परिवारों की सूचीबद्ध इक्विटी संपत्ति जीडीपी के 19.4 प्रतिशत के शीर्ष स्तर पर पहुंच गई, जो बाद में मार्च 2023 के अंत में जीडीपी के 14.9 प्रतिशत तक कम हो गई। गैर-सूचीबद्ध इक्विटी निवेशों पर अनुमानों के अभाव में संकलन सूचीबद्ध इक्विटी धारिताओं तक ही सीमित है।
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जबकि परिवारों ने लीवरेज बढ़ाया है, उनका वित्तीय आस्तियों से ऋण का अनुपात स्थिर बना हुआ है।
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यह भी ध्यान देने योग्य है कि भारत में संपत्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा गैर-वित्तीय आस्तियों यथा आवास के रूप में रखा जाता है, जिसे इस आलेख में शामिल नहीं किया गया है।
IV. भारत में योजित सकल मूल्य में श्रम संरचना के योगदान को मापना – मानव पूंजी दृष्टिकोण
श्रीरूपा सेनगुप्ता और विनीत कुमार श्रीवास्तव द्वारा
श्रम उत्पादकता सतत उच्च आर्थिक संवृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस लेख में श्रम की गुणवत्ता सहित श्रम की संरचना और 1980-81 से 2021-22 के दौरान भारत में योजित सकल मूल्य (जीवीए) संवृद्धि में उनके योगदान की जांच की गई है।
मुख्य बातें:
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विनिर्माण क्षेत्र में कार्यबल के नियमितीकरण में वृद्धि के साथ रोजगार में, कृषि से निर्माण और सेवाओं की ओर बदलाव आया है।
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शिक्षा श्रेणियों में कार्यबल वितरण, विशेष रूप से भारत के पूंजी-गहन विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में, सभी श्रमिकों के लिए शिक्षा के स्तर में वृद्धि दर्शाता है।
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श्रम गुणवत्ता संवृद्धि, सबसे अधिक पूंजी-प्रधान विनिर्माण जैसे रसायन, मशीनरी, परिवहन उपकरण, तथा सेवा क्षेत्र में स्वास्थ्य एवं सामाजिक कार्य में हुई है।
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संवृद्धि लेखांकन विघटन से पता चलता है कि औसतन, श्रम निविष्टि ने उत्पादन संवृद्धि में तीस प्रतिशत का योगदान दिया, जिसमें से रोजगार ने पच्चीस प्रतिशत का योगदान दिया और श्रम गुणवत्ता ने उत्पादन संवृद्धि में अतिरिक्त पांच प्रतिशत का योगदान दिया।
V. हिमालयी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों का राजकोषीय कार्य-निष्पादन
पी.एस. रावत, एट्टेम अभिग्नु यादव, अत्रि मुखर्जी द्वारा
विश्व भर की सरकारें ऋण और घाटे के उच्च स्तर से जूझ रही हैं, इस अध्ययन में हाल की अवधि में 11 हिमालयी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) के राजकोषीय कार्य-निष्पादन
का गहन विश्लेषण किया गया है। इन राज्यों/यूटी के राजकोषीय कार्य-निष्पादन का विश्लेषण उनके प्रमुख घाटा संकेतकों, राजस्व जुटाने के प्रयासों, व्यय की गुणवत्ता और ऋण स्थिति के संदर्भ में किया गया है। पिछले दशक में इनके कार्य-निष्पादन का आकलन करने के लिए प्रत्येक राज्य/यूटी के लिए एक राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक तैयार किया गया है।
मुख्य बातें:
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राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक से पता चलता है कि हाल के वर्षों में हिमालयी राज्यों/यूटी की समग्र राजकोषीय स्थिति दबाव में रही है, जो राजकोषीय घाटे में तेजी से वृद्धि और ऋण स्थिरता संकेतकों के बिगड़ने से प्रेरित है।
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चूंकि इन राज्यों/यूटी की स्वयं के राजस्व संसाधन जुटाने की क्षमता सीमित है, इसलिए 2015 में विशेष श्रेणी का दर्जा समाप्त होने के बाद भी उन्हें केंद्र से बड़ी मात्रा में धन अंतरण प्राप्त होता रहा है। इन राज्यों/यूटी को राजस्व के नए स्रोतों की पहचान करने, मौजूदा स्रोतों का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग करने तथा अधिक संसाधन जुटाने के लिए अपने कर प्रशासन में सुधार करने की आवश्यकता है।
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हिमालयी राज्यों/यूटी के व्यय की गुणवत्ता में पिछले कुछ वर्षों में कुछ सुधार देखा गया है, जैसा कि उनके राजस्व व्यय से पूंजीगत परिव्यय अनुपात (आरईसीओ) में तीव्र गिरावट के साथ-साथ विशेष रूप से कोविड के बाद की अवधि में,विकासात्मक व्यय में वृद्धि से परिलक्षित होता है।
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उच्च राजकोषीय घाटा, कम आर्थिक संवृद्धि और उधार की उच्च लागत जैसे कारकों के कारण हिमालयी राज्यों/यूटी का ऋण स्तर, भारत के अन्य राज्यों की तुलना में लगातार अधिक बना हुआ है।
बुलेटिन के आलेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
(पुनीत पंचोली)
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/722 |