भा.रि.बैंक/विमुवि/2017-18/14
एफ़ईडी मास्टर निदेश सं.19/2015-16
1 जनवरी 2016
(12 नवंबर 2018 के अनुसार अद्यतन)
(10 सितंबर 2018 के अनुसार अद्यतन)
(28 जुलाई 2017 के अनुसार अद्यतन)
(16 जून 2017 के अनुसार अद्यतन)
सेवा में
सभी प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक और प्राधिकृत बैंक
महोदया / महोदय,
मास्टर निदेश – विविध
भारतीय रिज़र्व बैंक ने संबंधित विनियमों के दायरे में आने वाले अब तक जारी किए गए संबंधित ए.पी. (डीआईआर सीरीज) परिपत्रों को समेकित करते हुए मास्टर निदेश जारी किए हैं, जिनमें आज की तारीख तक हुए संशोधनों को शामिल किया गया है। ये परिपत्र/अनुदेश लेनदेन की जिन श्रेणियों से संबंधित हैं, उनके आधार पर इन्हें इस मास्टर निदेश में विभिन्न समूहों में रखा गया है। जिन अनुदेशों को अन्य किसी भी मास्टर निदेश में समाविष्ट नहीं किया गया है, उन्हें इस मास्टर निदेश में शामिल कर लिया गया है। इन परिपत्रों की सूची परिशिष्ट में दी गयी है।
2. भारतीय रिज़र्व बैंक इन विनियमों की रूपरेखा के भीतर विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 की धारा-11 के अंतर्गत प्राधिकृत व्यक्तियों को निदेश भी जारी करता है। इन निदेशों में प्राधिकृत व्यक्तियों द्वारा अपने ग्राहकों तथा अपने घटकों के साथ विदेशी मुद्रा कारोबार संचालित करने के तौर-तरीकों का भी उल्लेख है ताकि इस संबंध में बने विनियमों का क्रियान्वयन कराया जा सके।
3. यह नोट किया जाए कि जब भी आवश्यक होगा, इन विनियमों में अथवा प्राधिकृत व्यक्तियों द्वारा उनके ग्राहकों/ घटकों के साथ किए जाने वाले इनसे संबंधित लेन-देन में यदि कोई परिवर्तन होता है, तब रिज़र्व बैंक ए. पी. (डीआईआर सीरीज) परिपत्रों के जरिए प्राधिकृत व्यक्तियों को निदेश जारी करेगा। इसके साथ जारी मास्टर निदेश में यथोचित संशोधन भी साथ-साथ किया जाएगा।
भवदीय,
(अजय कुमार मिश्र)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक
मास्टर निदेश – विविध
1) अनिवासियों को विप्रेषण – स्रोत पर करों की कटौती
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा अनिवासियों को विप्रेषण हेतु अनुमति देते समय पालन किए जाने वाले मौजूदा अनुदेशों में संशोधन किए जाने पर, भारतीय रिज़र्व बैंक ने यह स्पष्ट किया है कि बैंक द्वारा कर मुद्दों के संबंध में स्पष्टीकरण देने के लिए विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के अंतर्गत अनुदेश जारी नहीं किए जाएंगे। प्राधिकृत व्यापारियों के लिए यह अनिवार्य होगा कि वे यथा लागू कर क़ानूनों की अपेक्षाओं का पालन करें।
2) अनिवासी भारतीयों, जो भारत में स्थायी रूप से रहने हेतु वापस लौटे हैं, द्वारा विदेश में अर्जित आय तथा परिसंपत्तियों की बिक्रीगत आगम राशि का प्रत्यावर्तन और उदारीकृत विप्रेषण योजना के तहत विप्रेषणों के जरिए विदेश में अर्जित आय तथा परिसंपत्तियों की बिक्रीगत आगम राशि का प्रत्यावर्तन – स्पष्टीकरण
(ए) विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (फेमा), 1999 की धारा 6 की उप-धारा 4 के अनुसार भारत में निवासी कोई व्यक्ति विदेशी मुद्रा, विदेशी प्रतिभूति अथवा भारत से बाहर स्थित किसी अचल संपत्ति को धारित (होल्ड), स्वाधिकृत, अंतरित अथवा निवेश (invest) कर सकता है, यदि ऐसी (विदेशी) मुद्रा, प्रतिभूति अथवा संपत्ति ऐसे व्यक्ति द्वारा भारत से बाहर निवासी होने के दौरान अर्जित, धारित अथवा स्वाधिकृत की गयी हो अथवा भारत से बाहर के निवासी किसी व्यक्ति से उसे विरासत में मिली हो।
(बी) फेमा, 1999 की धारा 6 की उप-धारा 4 में निम्नलिखित लेनदेन शामिल हैं:
(i) ऐसे व्यक्ति द्वारा खोले और रखे गए विदेशी मुद्रा खाते, जब वह भारत से बाहर का निवासी था;
(ii) भारत से बाहर किए गए अथवा शुरू किए गए रोजगार अथवा कारोबार अथवा व्यवसाय (वोकेशन), जब वह व्यक्ति भारत से बाहर का निवासी था अथवा ऐसे व्यक्ति के भारत से बाहर निवासी रहने के दौरान किए गए निवेश अथवा ऐसे व्यक्ति के भारत से बाहर निवासी रहने पर प्राप्त उपहार अथवा विरासत से अर्जित आय;
(iii) भारत से बाहर के निवासी किसी व्यक्ति से विरासत स्वरूप अर्जित विदेशी मुद्रा, उससे हुई आय और उसके परिवर्तन अथवा प्रतिस्थापन अथवा उपचित राशि सहित भारत में निवासी किसी व्यक्ति द्वारा भारत से बाहर धारित विदेशी मुद्रा राशि।
(iv) भारत में निवासी कोई व्यक्ति विदेश स्थित अपनी सभी पात्र परिसंपत्तियों के साथ-साथ ऐसी परिसंपत्तियों से हुई आय अथवा बिक्रीगत आमदनी, जो भारत लौटने पर हुई हो, को रिज़र्व बैंक की पूर्वानुमति के बगैर विदेश में भुगतान करने अथवा नए निवेश करने के लिए उपयोग में ला सकता है, बशर्ते ऐसे निवेशों की लागत और/अथवा तत्संबंध में प्राप्त उत्तरवर्ती भुगतान उसके द्वारा धारित पात्र परिसंपत्तियों के भाग के रूप में शामिल निधियों में से ही किया जाए और ऐसे लेनदेन फेमा-1999 के मौजूदा उपबंधों का उल्लंघन न करते हों।
(सी) कोई निवेशक उदारीकृत विप्रेषण योजना के तहत किए गए निवेशों पर उपचित आय रख सकता है तथा उसे पुनर्निवेशित कर सकता है।
3) भारत में निवासियों द्वारा रखा गया निवासी बैंक खाता – संयुक्त धारक – उदारीकरण
भारत में निवासी व्यक्तियों को निम्नलिखित शर्तों के तहत अनिवासी भारतीय नजदीकी रिश्तेदार (रिशतेदारों) को (समय-समय पर यथा संधोधित 11 अप्रैल 2016 की अधिसूचना सं.फेमा.5(आर)/2016-आरबी के विनियम 2(vi) में यथा परिभाषित अनिवासी भारतीय और 2कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा-2(77) में यथा परिभाषित रिश्तेदार, 3सभी प्रकार के निवासी बचत बैंक खातों में संयुक्त खाताधारक (खाताधारकों) के तौर पर ‘उनमें से कोई अथवा उत्तरजीवी’ के आधार पर शामिल करने की अनुमति दी गई है:
ए) ऐसे खाते को सभी प्रयोजनों के लिए निवासी बैंक खाता समझा जाएगा और निवासी खाते पर लागू सभी विनियम उस पर लागू होंगे।
बी) अनिवासी भारतीय के नज़दीकी रिश्तेदार से संबंधित चेक, लिखत, विप्रेषण, नकदी, कार्ड अथवा अन्य आय की राशि इस खाते में जमा होने के लिए पात्र नहीं होगी।
सी) अनिवासी भारतीय नज़दीकी रिश्तेदार निवासी खाताधारक के लिए और उसकी ओर से घरेलू भुगतानों के लिए उक्त खाते का परिचालन करेगा और स्वयं के लिए कोई लाभ अर्जित करने हेतु उसका उपयोग नहीं करेगा।
डी) जहाँ अनिवासी भारतीय नज़दीकी रिश्तेदार ऐसे खाते का संयुक्त धारक बनता है जिसमें एक से अधिक निवासी खाताधारक हैं, वहाँ ऐसा अनिवासी भारतीय नज़दीकी रिश्तेदार ऐसे सभी निवासी खाताधारकों का नज़दीकी रिश्तेदार होना चाहिए।
ई) जहाँ किसी प्रसंगवश, ऐसा अनिवासी खाताधारक उत्तरजीवी खाताधारक बन जाता है, वहाँ इसे वर्तमान विनियमों के अनुसार अनिवासी सामान्य रुपया खाते (NRO) के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।
एफ) अनिवासी खाताधारक का यह दायित्व होगा कि वह प्राधिकृत व्यापारी बैंक को ऐसे खाते को अनिवासी सामान्य रुपया खाते में वर्गीकृत करने के लिए सूचित करे और इस बाबत अनिवासी सामान्य रुपया खाते के लिए लागू विनियम ऐसे खाते पर लागू होंगे।
जी) उल्लिखित संयुक्त खाताधारक बनाने की सुविधा बचत बैंक खाते सहित अन्य सभी निवासी खातों के लिए दी जा सकती है।
यह सुविधा देते समय प्राधिकृत व्यापारी बैंक ऐसी सुविधा देने की आवश्यकता के प्रति स्वयं संतुष्ट हो लें और अनिवासी खाताधारक से विधिवत हस्ताक्षरित निम्नलिखित वचन पत्र प्राप्त करें :-
“मैं बचत बैंक/ सावधि जमा / आवर्ती जमा/चालू खाता सं.......का संयुक्त खाताधारक हूँ, जो श्री/ श्रीमती/ सुश्री......................................के नाम में है जो मेरे...................(कृ. रिश्तेदारी का स्वरूप बताएं) हैं। मैं वचन देता/ देती हूँ कि मैं उक्त खाते में जमाराशि का उपयोग विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999, उसके अंतर्गत निर्गमित नियमों/विनियमों के उपबंधों और समय-समय पर रिजर्व बैंक द्वारा जारी परिपत्रों/ अनुदेशों का उल्लंघन करते हुए किसी लेनदेन हेतु नहीं करूंगा/नहीं करूंगी। मैं यह भी वचन देता/देती हूँ कि यदि उक्त खाते से कोई लेनदेन फेमा, 1999 अथवा उसके तहत निर्मित नियमों/विनियमों का उल्लंघन करते हुए किया जाता है, तो उसके लिए मुझे उत्तरदायी माना जाएगा। मैं अपनी अनिवासी/निवासी की स्थिति में कोई परिवर्तन होने पर अपने बैंक को सूचित करूंगा/ करूंगी।”
4) निवासी व्यक्तियों द्वारा अनिवासी भारतीय नज़दीकी रिश्तेदारों की चिकित्सा पर हुए खर्च का वहन
जब अनिवासी भारतीय भारत में दौरे/यात्रा पर होता है और जहां अनिवासी भारतीय नज़दीकी रिश्तेदार (समय-समय पर यथा संधोधित 41 अप्रैल 2016 की अधिसूचना सं॰ फेमा.5(आर)/2016-आरबी के विनियम 2(vi) में यथा परिभाषित अनिवासी भारतीय और 5कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा-2(77) में यथा परिभाषित रिश्तेदार) के संबंध में चिकित्सा व्ययों का भुगतान निवासी व्यक्ति द्वारा किया जाता है, ऐसे भुगतान, यद्यपि निवासी से निवासी को लेनदेन के स्वरूप के होने पर भी पूर्वोक्त 3 मई 2000 की अधिसूचना सं॰ फेमा. 16/2000-आरबी के विनियम 2(i) के तहत “उससे संबंधित सेवाएँ” शर्त के अंतर्गत कवर किए जाएंगे।
5) विदेश में जुटाई गई निधियों का भारत में प्रेषण
(ए) भारतीय कंपनियों अथवा उनके प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी–I बैंकों को उनकी समुद्रपारीय होल्डिंग/ सहयोगी/ सहायक/समूह कंपनियों द्वारा ऐसे उधारों के लिए, संबंधित विनियमों में स्पष्ट रूप से अनुमत प्रयोजनों को छोड़कर, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष गारंटी जारी करने अथवा आकस्मिक देयता सृजित करने अथवा किसी भी रूप में कोई प्रतिभूति देने के लिए अनुमति नहीं दी गई है।
बी) इसके अलावा, भारतीय कंपनियों की समुद्रपारीय होल्डिंग/ सहयोगी/सहायक/समूह कंपनियों द्वारा उपर्युक्त (i) में यथा उल्लिखित भारतीय कंपनियों अथवा उनके प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी–I बैंकों के समर्थन से विदेश में जुटाई गई निधियों का उपयोग भारत में तब तक नहीं किया जा सकता जब तक वह संबंधित विनियमों के तहत प्रदान की गई सामान्य अथवा विशिष्ट अनुमति के अनुरूप हो।
सी) भारतीय कंपनियाँ अथवा उनके प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी–I बैंक इस प्रकार के स्ट्रक्चर का उपयोग करते हैं, अथवा ऐसा स्ट्रक्चर स्थापित करते हैं, जिसे उपर्युक्त का उल्लंघन हो, फेमा, 1999 के तहत स्वयं यथा विनिर्दिष्ट दंडात्मक कार्रवाई के लिए दायी होंगे।
6) विशेष जांच दल का गठन – सूचना का आदान-प्रदान
माननीय उच्चतम न्यायालय के 4 जुलाई 2011 के निर्णय के अनुसरण में भारत सरकार ने माननीय न्यायमूर्ति एम॰बी॰ शाह की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल का गठन किया है। इस संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित निदेश दिए हैं कि:
"राज्य की सभी एजेंसियों के अंग, विभाग और एजेंट, चाहे वे भारत संघ के स्तर पर हों, अथवा राज्य सरकार के, सांविधिक रूप से गठित एकल निकायों सहित किन्तु उन तक सीमित नहीं, और अन्य सांविधिक निकाय विशेष जांच दल के कार्यों में सभी आवश्यक सहयोग दें।
भारत संघ और जहां आवश्यक हो राज्य सरकार विशेष जांच दल द्वारा, उसकी पूर्ण क्षमता में, जांच कार्यों में सभी आवश्यक वित्तीय, सामग्री संबंधी, विधिक, राजनयिक और आसूचनागत संसाधनों से जुड़ी सहायता देंगे, चाहे ऐसी जांच अथवा उसका कोई भाग देश में की जाए अथवा विदेश में ।" सभी प्राधिकृत व्यक्तियों को सूचित किया जाता है कि वे विशेष जांच दल द्वारा अपेक्षित सूचना/दस्तावेज़, जब भी अपेक्षा हो, उपलब्ध कराएं।
7) निष्क्रिय विदेशी मुद्रा जमाराशियों का क्रिस्टलीकरण - रिज़र्व बैंक (जमाकर्ता शिक्षा और जागरूकता निधि) योजना, 2014
रिज़र्व बैंक (जमाकर्ता शिक्षण और जागरूकता निधि) योजना, 2014 के साथ विदेशी मुद्रा खातों के संबंध में जारी अनुदेशों के संरेखीकरण (alignment) के उद्देश्य से, प्राधिकृत व्यापारी बैंकों से अपेक्षित है कि वे विदेशी मुद्रा में मूल्यवर्गित किसी खाते में निष्क्रिय जमाराशि को क्रिस्टलीकृत करेंगे अर्थात जमाशेष को निम्नानुसार भारतीय रुपए में परिवर्तित करेंगे :
(ए) यदि विदेशी मुद्रा में मूल्यवर्गीकृत निश्चित परिपक्वता अवधि वाली कोई जमाराशि उसकी परिपक्वता की तारीख से 3 वर्षों के लिए निष्क्रिय बनी रहती है, तो तीसरे वर्ष के अंत में, प्राधिकृत बैंक विदेशी मुद्रा में मूल्यवर्गीकृत जमा खातेगत शेष को तद्दिनांक को प्रचलित विनिमय दर पर भारतीय रुपये में परिवर्तित करेगा। उसके पश्चात, जमाकर्ता या तो भारतीय रुपये में परिवर्तित उक्त जमा गत आगम राशि और उस पर उपचित ब्याज, यदि कोई हो, अथवा मूल जमा जो भारतीय रुपये में परिवर्तित की गई हो और भारतीय रुपये में परिवर्तित जमा गत आगम राशि पर प्राप्य ब्याज, यदि कोई हो, के समतुल्य विदेशी मुद्रा (भुगतान की तारीख को प्रचलित विनिमय दर पर आकलित) का दावा करने का हकदार होगा।
(बी) ऐसे मामले में जहां विदेशी मुद्रा में मूल्यवर्गीकृत कोई जमाराशि जिसकी परिपक्वता अवधि अनिश्चित हो, यदि ऐसी जमाराशि 3 वर्षों के लिए निष्क्रिय बनी रहती है {बैंक प्रभारों के लिए किए गए नामे (डेबिट) को परिचालन न माना जाए}, तो प्राधिकृत बैंक अपने पास जमाकर्ता के उपलब्ध अंतिम ज्ञात पते पर जमाकर्ता को तीन महीने का नोटिस देकर, विदेशी मुद्रा में मूल्यवर्गीकृत ऐसी जमाराशि को, नोटिस अवधि की समाप्ति पर प्रचलित विनियम दर पर भारतीय रुपये में परिवर्तित करेगा। उसके पश्चात, जमाकर्ता या तो भारतीय रुपये में परिवर्तित उक्त जमा गत आगम राशि और उस पर उपचित ब्याज, यदि कोई हो, अथवा मूल जमा जो भारतीय रुपये में परिवर्तित की गई हो और भारतीय रुपये में परिवर्तित जमा गत आगम राशि पर प्राप्य ब्याज, यदि कोई हो, के समतुल्य विदेशी मुद्रा (भुगतान की तारीख को प्रचलित विनिमय दर पर आकलित) का दावा करने का हकदार होगा।
8) अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) के संबंध में परिचालनात्मक दिशानिर्देश
विदेशी मुद्रा प्रबंध (अंतर-राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र) विनियमावली के अनुसार, अंतर-राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र में स्थापित किसी वित्तीय संस्था अथवा वित्तीय संस्था की शाखा जिसे सरकार अथवा विनियामक प्राधिकारी द्वारा उक्त रूप में माना गया हो, उसे भारत से बाहर का निवासी व्यक्ति माना जाएगा। इसलिए उसके द्वारा भारत में निवासी किसी व्यक्ति के साथ किए गए लेनदेन निवासी से अनिवासी के बीच किए गए लेनदेन माने जाएंगे और वे विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 तथा उसके अंतर्गत निर्मित नियमावलियों/ विनियमावलियों/ निदेशों के उपबंधों के तहत हुए लेनदेन माने जाएंगे।
इस सबंध में हुए वित्तीय लेनदेन का तात्पर्य भुगतान करने अथवा भुगतान प्राप्त करने, आहरण करने, विनिमय बिल अथवा प्रामिज़री नोट जारी करने अथवा परक्रामण करने, किसी प्रतिभूति का अंतरण करने अथवा किसी कर्ज़ को स्वीकारने से है। इसी प्रकार वित्तीय सेवाओं का तात्पर्य उन कार्यकलापों/गतिविधियों से है जो संसद अथवा सरकार अथवा संबन्धित वित्तीय संस्था को विनियमित करने की शक्तियाँ किसी विनियामक प्राधिकारी में निहित करने वाले संबन्धित अधिनियम के तहत वित्तीय संस्था द्वारा किए जाने के लिए अनुमत हों।
9) भारत में निवासी किसी व्यक्ति द्वारा विदेश में धारित परिसंपत्तियों का विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के तहत नियमितीकरण
भारत में निवासी व्यक्तियों द्वारा विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 का उल्लंघन करते हुए विदेश में धारित ऐसी परिसंपत्तियाँ जिनके संबंध में घोषणा की जा चुकी है और काला धन (अप्रकटित विदेशी आय और आस्ति) और कर अधिरोपण अधिनियम, 2015 का अधिरोपण के उपबंधों के अंतर्गत जिन पर करों एवं दण्ड का भुगतान किया जा चुका हो, उनके प्रभावी रूप में निपटान हेतु यह स्पष्ट किया जाता है कि:
ए) विदेश में धारित परिसंपत्ति की घोषणा करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध उस परिसम्पत्ति के संबंध में विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के तहत कोई कार्यवाही लंबित नहीं रहेगी यदि उसने काला धन अधिनियम के उपबंधों के अंतर्गत उस परिसम्पत्ति पर करों एवं दण्ड का भुगतान कर दिया है।
बी) ऐसी परिसंपत्ति के निपटान और उससे प्राप्त राशि बैंकिंग माध्यम से यदि घोषणा की तारीख से 180 दिनों के भीतर भारत लायी जाती है, तो उसके लिए विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम के अंतर्गत अनुमति लेना अपेक्षित नहीं होगा।
सी) अगर घोषणाकर्ता इस प्रकार घोषित परिसंपत्ति को धारण किए रखना चाहती/चाहता है, तो उसे घोषणा करने की तारीख से 180 दिनों के भीतर भारतीय रिज़र्व बैंक को आवेदन करना होगा, यदि आवेदनपत्र की तारीख को इस प्रकार की अनुमति लेना आवश्यक हो। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ऐसे आवदेनपत्र/त्रों पर मौजूदा विनियमों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी। यदि ऐसी अनुमति नहीं दी जा सकती है, तो रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमति देने से मना करने की सूचना मिलने की तारीख से 180 दिनों के भीतर अथवा रिज़र्व बैंक द्वारा विस्तारित अवधि के भीतर संदर्भित परिसंपत्ति का निपटान करना होगा और उससे प्राप्त राशि को बैंकिंग माध्यम से तत्काल भारत वापस लाया जाएगा।
10) भारत में प्राधिकृत व्यापारी (श्रेणी I) बैंकों के माध्यम से बैंकों से इतर संस्थाओं द्वारा जावक विप्रेषण सेवाएं प्रदान करने के लिए परिचालनगत ढांचा
बैंकों से इतर संस्थाओं को जावक विप्रेषण करने के लिए प्राधिकृत व्यापारी (श्रेणी-I) बैंकों के माध्यम से जावक विप्रेषण सुविधाएं प्रदान करने हेतु की जाने वाली प्रत्येक गठबंधन व्यवस्था के लिए रिज़र्व बैंक से विशिष्ट अनुमोदन प्राप्त करनी होगी।
इस व्यवस्था पर निम्नलिखित शर्तें लागू होंगी:-
1. जिस प्राधिकृत व्यापारी (श्रेणी-I) बैंक के माध्यम से यह सेवा प्रस्तावित की जा रही है, उस बैंक का यह उत्तरदायित्व होगा कि वह यह सुनिश्चित करे कि प्रत्येक जावक विप्रेषण लेनदेन भारत में लागू विनियमों के अंतर्गत मौजूदा प्रावधानों का अनुपालन करते हैं।
2. उक्त प्राधिकृत व्यापारी (श्रेणी-I) बैंक रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए केवाईसी/ एएमएल मानकों/ सीएफ़टी का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी होगा ।
3. इस मॉडल के अंतर्गत किए जाने वाले विप्रेषणों में 6विदेश में शिक्षा के लिए किए गए लेनदेन को छोड़कर जहाँ यह सीमा 10000 अमेरिकी डॉलर प्रति लेनदेन होगी, कम मूल्य वाले लेनदेन शामिल होंगे जो 5000 अमेरिकी डॉलर प्रति लेनदेन से अधिक नहीं होंगे। निवासी व्यक्तियों द्वारा किए गए विप्रेषण उदारीकृत विप्रेषण योजना (एलआरएस) के अंतर्गत निर्धारित सीमा के अधीन होंगे।
4. इस मॉडेल के अंतर्गत केवल व्यक्तिगत स्वरूप के चालू खाता लेनदेन करने की अनुमति होगी। अनुमति प्राप्त लेनदेन निम्नानुसार हैं:
क) निजी यात्रा,
ख) टूर आपरेटरों द्वारा / विदेशी एजेंटों / प्रमुख पार्टियों / होटलों को ट्रैवेल एजेंटो द्वारा भेजे जाने वाले विप्रेषण,
ग) कारोबारी यात्रा,
घ) वैश्विक सम्मेलनों तथा विशिष्ट प्रशिक्षण में सहभागिता शुल्क,
ङ) अंतरराष्ट्रीय आयोजनों/ प्रतिस्पर्धाओं (प्रशिक्षण, प्रायोजक तथा पुरस्कार राशि) में भाग लेने के लिए विप्रेषण,
च) फिल्म की शूटिंग,
छ) विदेश में चिकित्सा,
ज) कर्मीदल (क्रू) को मजदूरी का संवितरण,
झ) विदेश में शिक्षा,
ञ) विदेश में विश्वविद्यालयों के साथ शैक्षिक संबद्धता व्यवस्था के अधीन विप्रेषण,
ट) भारत में तथा विदेश में आयोजित परीक्षा के शुल्क के लिए विप्रेषण तथा जीआरई, टीओईएफएल आदि में अतिरिक्त स्कोर राशि के लिए,
ठ) नियोजन तथा विदेश में नौकरी हेतु आवेदनों पर प्रोसेसिंग, निर्धारण शुल्क,
ड) आप्रवास तथा आप्रवास परामर्श शुल्क,
ढ) इच्छुक आप्रवासियों के लिए कौशल / विश्वसनीयता आकलन शुल्क,
ण) वीज़ा शुल्क,
त) पुर्तगाली / अन्य सरकारों द्वारा यथावांछित दस्तावेजों के पंजीकरण के लिए प्रोसेसिंग शुल्क,
थ) अंतरराष्ट्रीय संगठनों में पंजीकरण / अभिदान / सदस्यता शुल्क।
5. ऑनलाइन पेमेंट गेटवे सर्विस प्रोवाइडर्स (ओपीजीएसपी) के अंतर्गत आयात के लिए निर्धारित सीमाओं तथा अन्य शर्तों के अधीन व्यापारिक लेनदेन को अनुमति दी गयी है।
6. इन विप्रेषणों को केवल एक बैंक खाते से दूसरे बैंक खाते में निधियों के अंतरण हेतु अनुमति दी गयी है।
7. विप्रेषण केवल एफ़एटीएफ़ का अनुपालन करने वाले देशों के लाभार्थियों को ही किए जाएंगे।
8. विप्रेषण सेवा प्रदाता संस्था, जहां विप्रेषण भेजा जाना है उन देशों के विनियामकों द्वारा विधिवत लाइसेंसिकृत होगी जो ऐसे देशों में लाभार्थियों को विप्रेषण सुविधा प्रदान करेगी।
9. विप्रेषणकर्ता की धनराशि सेवा प्रदाता के परिचालन खाते से अलग रखी जाए और इस धनराशि को उक्त सुविधा सेवा प्रदाता के दिवालिया हो जाने के जोखिम से सुरक्षित रखा जाए। विप्रेषणकर्ता की निधि की सुरक्षा सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी उक्त प्राधिकृत व्यापारी(श्रेणी-I) बैंक की होगी।
10. प्राधिकृत व्यापारी(श्रेणी-I) बैंक रिज़र्व बैंक को प्रति वर्ष इस आशय का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करेगा कि उक्त अनुमोदन में निर्धारित शर्तों का पालन किया जा रहा है।
परिशिष्ट
क्र.सं. |
विषय |
ए.पी. (डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं. |
तारीख |
1 |
अनिवासियों को विप्रेषण – स्रोत पर कर की कटौती |
151 |
30.06.2014 |
2 |
फेमा की धारा 6(4) पर स्पष्टीकरण; उदारीकृत विप्रेषण योजना के तहत प्राप्त विप्रेषणों के जरिए विदेश में अर्जित आय तथा परिसंपत्तियों की बिक्री पर हुई आय का प्रत्यावर्तन |
37 90 |
19.10.2011
09.01.2014 |
3 |
भारत में निवासियों द्वारा खोला गया निवासी बैंक खाता जिसमें उनके अनिवासी भारतीय नज़दीकी रिश्तेदारों को संयुक्त खाताधारक बनाया गया है |
87 |
09.01.2014 |
4 |
निवासी व्यक्तियों द्वारा अनिवासी भारतीय नज़दीकी रिश्तेदारों की चिकित्सा पर हुए खर्च को वहन करना |
20 |
16.09.2011 |
5 |
विदेश में जुटाई गई निधियों की भारत में रूटिंग |
41 |
25.09.2014 |
6 |
विशेष जांच दल का गठन – सूचना का आदान-प्रदान |
18 |
30.07.2014 |
7 |
निष्क्रिय विदेशी मुद्रा जमाराशियों का क्रिस्टलीकरण - रिज़र्व बैंक (जमाकर्ता शिक्षा और जागरूकता निधि) योजना, 2014 |
136 |
28.05.2014 |
8 |
अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) के संबंध में परिचालनात्मक दिशानिर्देश |
92 |
31.03.2015 |
9 |
भारत में निवासी किसी व्यक्ति द्वारा विदेश में धारित परिसंपत्तियों (आस्तियों) का विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के तहत नियमितीकरण |
18 |
30.09.2015 |
|