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मास्टर निदेशों

मास्‍टर निदेश – सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र को उधार (11 जून 2024 को अद्यतन)

आरबीआई/विसविवि/2017-18/56
मास्‍टर निदेश विसविवि.एमएसएमई एण्ड एनएफएस.12/06.02.31/2017-18

24 जुलाई 2017
(11 जून 2024 को अद्यतन)
(28 दिसंबर 2023 को अद्यतन)
(29 जुलाई 2022 को अद्यतन)
(25 अप्रैल 2018 को अद्यतन)

अध्यक्ष/प्रबंध निदेशक/मुख्‍य कार्यपालक अधिकारी
सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदया / महोदय,

मास्‍टर निदेश – सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र को उधार

भारतीय रिज़र्व बैंक ने समय-समय पर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र को उधार देने के संबंध में बैंकों को कई अनुदेश/दिशानिर्देश जारी किए हैं। संलग्न मास्टर निदेश में इस विषय पर अद्यतन अनुदेश/दिशानिर्देश समाविष्ट किए गए हैं। इस मास्टर निदेश में समेकित परिपत्रों की सूची परिशिष्ट में दी गई है।

भवदीया

(आर. गिरिधरन)
मुख्य महाप्रबंधक


मास्‍टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक [सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र को उधार] – निदेश, 2017

बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 21 और 35 ए द्वारा प्रदत्‍त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, भारतीय रिज़र्व बैंक इस बात से संतुष्ट होने पर कि जनहित में ऐसा करना आवश्‍यक और समीचीन है, एतद्द्वारा, इसके बाद विनिर्दिष्‍ट किए गए निदेश जारी करता है।

अध्‍याय - I
प्रारंभिक

1.1 संक्षिप्‍त नाम और प्रारंभ

क) ये निदेश भारतीय रिज़र्व बैंक [सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र को उधार] – निदेश, 2017 कहलाएंगे।

ख) ये निदेश भारतीय रिज़र्व बैंक की आधिकारिक वेबसाइट पर रखे जाने के दिन से प्रभावी होंगे।

1.2 प्रयोज्‍यता

इन निदेशों के उपबंध सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों {क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) को छोड़कर} पर लागू होंगे।

1.3 परिभाषाएं / स्‍पष्‍टीकरण

इन निदेशों में, जब तक कि प्रसंग से अन्‍यथा अपेक्षित न हो, दिए गए शब्‍दों (टर्म्स) के अर्थ वही होंगे जो नीचे विनिर्दिष्ट हैं:

क) एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 का अर्थ हैं ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (एमएसएमईडी) अधिनियम, 2006’ जैसा कि भारत सरकार द्वारा दिनांक 16 जून 2006 को अधिसूचित किया गया है तथा भारत सरकार द्वारा उसमें समय-समय पर किया गया संशोधन, यदि कोई हो।

ख) ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम’ का तात्पर्य एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 में परिभाषित उद्यमों से है तथा भारत सरकार द्वारा उसमें समय-समय पर किया गया संशोधन, यदि कोई हो।

ग) 'प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र' का अर्थ है वे क्षेत्र जो दिनांक 4 सितंबर 2020 के मास्टर निदेश – प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार (पीएसएल) – लक्ष्य और वर्गीकरण, समय-समय पर अद्यतन, में निर्दिष्ट किए गए है।

घ) 'समायोजि‍त नि‍वल बैंक ऋण (एएनबीसी)' का वही अर्थ होगा जो दिनांक 4 सितंबर 2020 के मास्टर निदेश – प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार (पीएसएल) – लक्ष्य और वर्गीकरण, समय-समय पर अद्यतन, में दिया गया है।

अध्‍याय – II

2 सूक्षम, लघु और मध्यम उद्यम विकास (एमएसएमईडी) अधिनियम, 2006

2.1 दिनांक 26 जून 2020 की राजपत्र अधिसूचना एस.ओ. 2119 (ई) के अनुसार, एक उद्यम को निम्नलिखित मानदंडों के आधार पर सूक्ष्म, लघु या मध्यम उद्यम के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा

  1. ऐसा सूक्ष्म उद्यम, जहां संयंत्र और मशीनरी या उपस्कर मे विनिधान 1 करोड़ रुपए से अधिक नहीं है और आवर्तन 5 करोड़ रुपए से अधिक नहीं है;

  2. ऐसा लघु उद्यम, जहां संयंत्र और मशीनरी या उपस्कर मे विनिधान 10 करोड़ रुपए से अधिक नहीं है और आवर्तन 50 करोड़ रुपए से अधिक नहीं है; तथा

  3. ऐसा मध्यम उद्यम, जहां संयंत्र और मशीनरी या उपस्कर मे विनिधान 50 करोड़ रुपए से अधिक नहीं है और आवर्तन 250 करोड़ रुपए से अधिक नहीं है।

2.2 उपरोक्त सभी उद्यमों को उद्यम पंजीकरण पोर्टल पर ऑनलाइन पंजीकरण करना और 'उद्यम पंजीकरण प्रमाणपत्र' प्राप्त करना आवश्यक है। प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार (पीएसएल) के प्रयोजन से बैंक उद्यम पंजीकरण प्रमाणपत्र (यूआरसी) में दर्ज वर्गीकरण से निर्देशित होंगे।

2.3 खुदरा और थोक व्यापार को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार देने के सीमित उद्देश्य के लिए एमएसएमई के रूप में शामिल किया गया है और उन्हें उद्यम पंजीकरण पोर्टल पर पंजीकृत होने की अनुमति है।

2.4 अनौपचारिक सूक्ष्म उद्यमों (आईएमई) को उद्यम असिस्ट पोर्टल (यूएपी) पर जारी प्रमाणपत्र को प्राथमिकता क्षेत्र ऋण लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से उद्यम पंजीकरण प्रमाणपत्र के समतुल्य माना जाएगा। उद्यम असिस्ट सर्टिफिकेट वाले अनौपचारिक सूक्ष्म उद्यम (आईएमई) को पीएसएल वर्गीकरण के प्रयोजन के लिए सूक्ष्म उद्यमों के रूप में माना जाएगा।

अध्‍याय – III

3 एमएसएमई क्षेत्र को ऋण देने हेतु लक्ष्य/उप-लक्ष्य

3.1 एमएसएमई क्षेत्र हेतु प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र संबंधी दिशानिर्देश

अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक एमएसएमई क्षेत्र को उधार देने के लिए लक्ष्यों/उप-लक्ष्यों का पालन करेंगे और संबंधित पहलुओं जैसा कि दिनांक 4 सितंबर 2020 के मास्टर निदेश – प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार (पीएसएल) – लक्ष्य और वर्गीकरण, समय-समय पर अद्यतन, में निर्धारित किया गया है।

3.2 एमएसएमई पर प्रधान मंत्री टास्क फोर्स की सिफारिशों के अनुसार बैंकों को निम्‍नलिखित को प्राप्त करने हेतु सूचित किया जाता है:

  1. सूक्ष्म और लघु उद्यमों को ऋण में 20 प्रतिशत वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि,

  2. सूक्ष्म उद्यम खातों की संख्या में 10 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि और

  3. पिछले वर्ष के तदनुरूपी तिमाही के अनुरूप सूक्ष्म उद्यमों को एमएसई क्षेत्र के कुल उधार का 60 प्रतिशत

अध्‍याय – IV

4. एमएसएमई क्षेत्र को उधार देने के लिए सामान्य दिशा-निर्देश/अनुदेश

4.1 संपार्श्विक

बैंकों को आदेश दिया गया है कि एमएसई क्षेत्र में इकाइयों को 10 लाख तक दिए गए ऋणों के मामलों में संपार्श्विक जमानत स्वीकार न करें। बैंकों को यह भी सूचित किया जाता है कि केवीआईसी द्वारा संचालित प्रधान मंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) के अंतर्गत वित्तपोषित सभी इकाइयों को 10 लाख तक संपार्श्विक-रहित ऋण प्रदान किया जाए। एमएसई इकाइयों का अच्छा ट्रैक रिकार्ड तथा वित्तीय स्थिति के आधार पर बैंक (उचित प्राधिकारी के अनुमोदन से) 25 लाख तक के ऋण हेतु संपार्श्विक अपेक्षाओं में छूट की सीमा को बढ़ा सकते हैं। बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे अपने शाखा स्तरीय पदाधिकारियों को ऋण गारंटी योजना कवर का उपभोग कराने हेतु प्रभावशाली ढंग से प्रोत्साहित करें तथा इस सबंध में कार्य-निष्पादन को उनके फील्ड स्टाफ के मूल्यांकन में मापदंड के रूप में शामिल करें।

4.2 सम्मिश्र ऋण

बैंकों द्वारा ₹1 करोड़ तक की सम्मिश्र ऋण सीमा स्वीकृत की जा सकती है ताकि एमएसई उद्यमी एक ही स्थान पर अपनी कार्यशील पूंजी और मीयादी ऋण अपेक्षा प्राप्त कर सके।

4.3 संशोधित सामान्य क्रेडिट कार्ड (जीसीसी) सुविधा

जो बैंक 21 अप्रैल 2022 ‘मास्टर निदेश- क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड-निर्गम और आचार संबंधी निदेश, (समय-समय पर अद्यतन) के तहत क्रेडिट कार्ड जारी करने के पात्र हैं, वे स्वीकृत कार्यशील पूंजी के लिए व्यक्तियों/ संस्थाओं को गैर-कृषि उद्यमशीलता गतिविधियों के लिए, जो प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र संबंधी दिशानिर्देशों के तहत पीएसएल वर्गीकरण के लिए पात्र हैं, के लिए सामान्य क्रेडिट कार्ड जारी कर सकते हैं। जीसीसी के रूप में दी जाने वाली ऋण सुविधाओं के नियम और शर्तें रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित समग्र ढांचे के भीतर, बैंकों के बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीतियों के अनुसार होंगे। इस संबंध में सूक्ष्म और लघु इकाइयों के लिए संपार्श्विक मुक्त ऋण पर समय-समय पर जारी दिशानिर्देश लागू होंगे। जीसीसी डेटा की रिपोर्टिंग पर आरबीआई द्वारा समय-समय पर जारी किए गए निर्देशों का बैंक अनुपालन करेंगे।

4.4 सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों (एमएसई) को उनके ‘जीवन चक्र’ के दौरान समय पर और पर्याप्त ऋण प्रवाह की सुविधा प्रदान करने के लिए ऋण प्रवाह का सरलीकरण

अपने ‘जीवन चक्र’ के दौरान वित्तीय कठिनाइयों का सामना कर रहे सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को समय पर वित्तीय सहायता प्रदान कराने के उद्देश्य से दिनांक 27 अगस्त 2015 के परिपत्र FIDD.MSME & NFS.BC.No.60/06.02.31/2015-16 के माध्यम से उपर्युक्त विषय पर बैंकों को विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। इन दिशा-निर्देशों के अनुसार, बैंक एमएसई क्षेत्र के लिए अपनी ऋण-नीतियों की समीक्षा करेंगे और उसमें निम्नलिखित प्रावधानों को शामिल करके उन्हें समायोजित करेंगे ताकि जरूरत पड़ने पर, विशेषतः किसी अप्रत्याशित परिस्थिति में निधियों की आवश्यकता के दौरान अर्थक्षम सूक्ष्म व लघु उद्यम (एमएसई) उधारकर्ताओं को समय पर और पर्याप्त ऋण उपलब्ध कराया जा सके:

  1. सावधि ऋणों के मामले में अतिरिक्त ऋण सुविधा प्रदान करना।

  2. एमएसई इकाइयों की आकस्मिक जरूरतों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त कार्यशील पूंजी प्रदान करना।

  3. नियमित कार्यशील पूंजी सीमाओं की मध्यावधि समीक्षा, जहाँ बैंकों को यह विश्वास हो कि एमएसई उधारकर्ताओं की मांग के पैटर्न में परिवर्तन के कारण एमएसई की मौजूदा ऋण सीमा को पिछले वर्ष की वास्तविक बिक्री के आधार पर हर साल बढ़ाने की आवश्यकता है।

  4. एमएसई उधारकर्ताओं में इकाइयों को 25 लाख रुपये तक के ऋण के लिए ऋण निर्णयों की समयसीमा 14 कार्य दिवसों से अधिक नहीं होगी। उपर्युक्त सीमा से ऊपर के ऋणों के लिए, समयसीमा बोर्ड द्वारा अनुमोदित स्वीकृति समय-सीमा के मानदंडों के अनुसार होगी। एमएसएमई से संबंधित सभी ऋण संबंधी जानकारी जिसमें ऋण निर्णयों के लिए समयसीमा, सांकेतिक दस्तावेज़ चेकलिस्ट, आदि शामिल हैं, बैंकों की वेबसाइट पर एक अलग टैब के तहत प्रमुखता से प्रदर्शित की जाए।

4.5 एमएसएमई हेतु ऋण पुनर्संरचना तंत्र

i) बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे एमएसएमई से संबंधित ऋण पुनर्संरचना पर दिशानिर्देशों/अनुदेशों का पालन करें, जो ‘मास्टर परिपत्र - अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड’, समय-समय पर अद्यतन, में निहित हैं।

ii) साथ ही, सभी वाणिज्यिक बैंकों को दिनांक 4 मई 2009 के हमारे परिपत्र ग्राआऋवि.एसएमई. एंड एनएफएस.बीसी.सं.102/06.04.01/2008-09 द्वारा सूचित किया जाता है कि वे निम्न कार्य करें:

  1. निदेशक मंडल के अनुमोदन से ऋण सुविधाएं प्रदान करने की नियंत्रक ऋण नीति, संभाव्य रूप से अर्थक्षम रुग्ण इकाइयों/ उद्यमों के पुनरुज्जीवन के लिए पुनर्संरचना/ पुनर्वास नीति (अब इसे दिनांक 17 मार्च 2016 को ‘सूक्ष्‍म (माइक्रो), लघु और मध्यम उद्यमों के पुनरुज्‍जीवन और पुनर्वास के लिए ढांचा’ पर जारी दिशा-निर्देशों के साथ पढ़ा जाए) तथा एमएसई क्षेत्र के लिए अनर्जक ऋण की वसूली के लिए नॉन-डिसक्रीशनरी एकबारगी निपटान योजना लागू करें तथा

  2. बैंक उनके द्वारा कार्यान्वित एकबारगी निपटान योजना बैंक की वेबसाइट पर डालकर तथा अन्य संभावित प्रचार विधि के माध्यम से उसका प्रचार करें। वे उधारकर्ताओं को आवेदन प्रस्तुत करने तथा देय राशि की चुकौती करने के लिए भी पर्याप्त समय दें ताकि पात्र उधारकर्ताओं को योजना के लाभ प्रदान किए जा सकें।

  3. एमएसई क्षेत्र को समय पर तथा पर्याप्त ऋण उपलब्ध कराने के संबंध में सिफारिशों को कार्यान्वित करें।

4.6 एमएसएमई के पुनरुज्‍जीवन और पुनर्वास के लिए ढांचा

सूक्ष्‍म (माइक्रो), लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय, भारत सरकार ने दिनांक 29 मई 2015 की राजपत्र अधिसूचना द्वारा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के खातों में दबाव दूर करने के लिए सरल और त्‍वरित प्रणाली उपलब्‍ध कराने तथा एमएसएमई के संवर्धन और विकास को सुसाध्‍य बनाने के लिए ‘सूक्ष्‍म (माइक्रो), लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के पुनरुज्‍जीवन और पुनर्वास के लिए ढांचा’ अधिसूचित किया था। इसे रिज़र्व बैंक द्वारा ‘अग्रिमों से संबंधित आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण’ पर बैंकों को जारी वर्तमान विनियामक दिशा-निर्देशों के अनुरूप करने के लिए उपर्युक्त ढांचे में भारत सरकार, एमएसएमई मंत्रालय के साथ परार्मश करते हुए कतिपय परिवर्तन करने के बाद दिनांक 17 मार्च 2016 को उक्त ढांचे पर परिचालनात्मक अनुदेशों के साथ बैंकों को दिशा-निर्देश जारी किए गए। इस ढांचे के अंतर्गत ₹25 करोड़ तक की ऋण सीमा वाली एमएसएमई इकाइयों के पुनरुज्‍जीवन और पुनर्वास पर कार्य किया जाएगा। इस संशोधित ढांचे से रुग्‍ण सूक्ष्म और लघु उद्यमों के पुनर्वास पर दिनांक 1 नवंबर 2012 को जारी हमारे परिपत्र ग्राआऋवि.केंका.एमएसएमई एण्ड एनएफएस.बीसी.40/06.02.31/2012-13 में निहित पूर्ववर्ती दिशा-निर्देश, उक्‍त परिपत्र में संभाव्‍य रूप से अर्थक्षम इकाइयों के पुनर्वास और एकबारगी निपटान के लिए राहत और रियायतों से संबंधित दिशा-निर्देशों को छोड़कर, अधिक्रमित हुए हैं।

ढांचे की मुख्य विशेषताएं निम्नानुसार हैं:

  1. एमएसएमई के ऋण खाता अनर्जक आस्ति (एनपीए) में परिवर्तित होने से पूर्व, बैंकों या ऋणदाताओं को चाहिए कि वे विशेष उल्लिखित खाते (एसएमए) के अधीन तीन उप-श्रेणियाँ, जैसा कि ढांचा में दिया गया है, सृजित कर खाते में आरंभिक दबाव की पहचान करें।

  2. इस ढांचे के तहत कोई भी एमएसएमई उधारकर्ता स्वेच्छा से कार्यवाही प्रारंभ कर सकता है।

  3. सुधारात्मक कार्य योजना के निर्णय हेतु समिति दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।

  4. ढांचे के अंतर्गत विभिन्न निर्णय लेने हेतु समय सीमा का निर्धारण किया गया है।

4.7 एमएसई क्षेत्र को दिये जाने वाले ऋणों की वृद्धि की निगरानी हेतु संरचित प्रणाली

बैंक एमएसई क्षेत्र को दिये जाने वाले ऋणों से जुड़े मुद्दों के संपूर्ण दायरे की निगरानी हेतु एक संरचित तंत्र स्थापित करेंगे। तदनुसार, बैंक निम्नलिखित बातों को लागू करेंगे:

  1. ऋण प्रस्ताव ट्रैकिंग प्रणाली (सीपीटीएस): बैंक केंद्रीय पंजीकरण और सभी एमएसएमई ऋण आवेदनों की ई-ट्रैकिंग की प्रणाली की सुविधा के लिए सीपीटीएस/ समतुल्य ट्रैकिंग प्रणाली स्थापित करेंगे। यह प्रणाली स्वचालित रूप से ऋण संबंधी आवेदन की पावती उत्पन्न करेगी, जिसमें भौतिक और ऑनलाइन दोनों तरह के आवेदनों के लिए एक विशिष्ट आवेदन क्रमांक होगा। इसके अलावा, यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि आवेदन की पावती और स्थिति उक्त प्रणाली द्वारा स्वचालित रूप से आवेदकों को भेजी जाए।

  2. दस्तावेजों की सांकेतिक जांच सूची: बैंक एमएसएमई उधारकर्ताओं को ऋण के लिए आवेदन करते समय ऋण आवेदन की प्रक्रिया के लिए आवश्यक दस्तावेजों की एक सांकेतिक जांच सूची प्रदान करेंगे।

  3. ऋण आवेदन निपटान प्रक्रिया की निगरानी: बैंक ऋण आवेदन निपटान प्रक्रिया और मंजूरी समय संबंधी मानदंडों से अधिक समय के लिए लंबित मामलों की उचित स्तरों पर तिमाही आधार पर निगरानी करेंगे। बैंक इस संबंध में स्थिति की रिपोर्ट प्रत्येक तिमाही की समाप्ति से एक महीने के भीतर अनुलग्नक-ए में निर्दिष्ट प्रारूप में अपनी वेबसाइटों पर प्रकाशित करेंगे।

  4. ऋण आवेदनों की अस्वीकृति के कारण: बैंक एमएसएमई उधारकर्ताओं को अपने बोर्ड द्वारा अनुमोदित स्वीकृति समय मानदंडों के भीतर उनके ऋणों के संबंध में लिखित रूप में प्रमुख कारण/ अन्य कारण बताएंगे, जो बैंक की राय में, उचित विचार-विमर्श के बाद ऋण आवेदनों को अस्वीकार करने का आधार माने गए हैं।

  5. व्यापक प्रदर्शन एमआईएस: बैंक अपनी शाखाओं और पर्यवेक्षी (स्तरों) कार्यालयों (क्षेत्र, अंचल, प्रधान कार्यालय) पर एक प्रणाली-आधारित व्यापक प्रदर्शन प्रबंधन सूचना तंत्र (एमआईएस) लागू करेंगे। इसके जरिये एमएसएमई के प्रदर्शन का नियमित आधार पर समीक्षात्मक मूल्यांकन किया जाना चाहिए। बैंकों के बोर्ड द्वारा समय-समय पर इस क्षेत्र में ऋण प्रवाह की भी समीक्षा की जाए।

इस संबंध में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को हमारे परिपत्र आरपीसीडी. एमएसएमई और एनएफएस.बीसी.सं. 74/06.02.31/2012-13 दिनांक 9 मई 2013 के माध्यम से विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए गए थे।

अध्‍याय – V

5 संस्थागत व्यवस्थाएँ

5.1 एमएसएमई की विशेषीकृत शाखाएं

सरकारी क्षेत्र के बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे प्रत्येक जिले में कम से कम एक विशेषीकृत शाखा खोलें। साथ ही, बैंकों को अनुमति दी गई है कि वे एमएसएमई क्षेत्र को 60 प्रतिशत या उससे अधिक अग्रिम देने वाली अपनी सामान्य बैंकिंग शाखाओं को विशेषीकृत एमएसएमई शाखाओं के रूप में वर्गीकृत कर सकते हैं ताकि वे समग्र रूप से इस क्षेत्र को बेहतर सेवा उपलब्ध कराने हेतु और अधिक विशेषीकृत एमएसएमई शाखाएं खोल सकें। एमएसएमई क्षेत्र के लिए ऋण में वृद्धि हेतु भारत सरकार द्वारा घोषित पॉलिसी पैकेज के अनुसार सरकारी क्षेत्र के बैंक लघु उद्यमों की अधिकता वाले पहचाने गये समूहों/ केन्द्रों में विशेषीकृत एमएसएमई शाखाएं सुनिश्चित करेंगे ताकि उद्यमी आसानी से बैंक ऋण ले सकें तथा बैंक कार्मिक आवश्यक विशेषज्ञता विकसित कर सकें। हालांकि उनकी महत्वपूर्ण क्षमता का उपयोग एमएसएमई क्षेत्र को वित्त और अन्य सेवाएं प्रदान करने हेतु किया जाएगा, पर उनके पास अन्य क्षेत्रों/ उधारकर्ताओं को वित्त/ अन्य सेवाएं प्रदान करने का परिचालनात्मक लचीलापन भी रहेगा। बैंक, ऐसी शाखाओं में तैनात अधिकारियों के लिए उचित प्रशिक्षण का ध्यान रखें।

5.2 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) के लिए अधिकार-प्राप्त समिति

भारतीय रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालयों में यूनियन वित्त मंत्री द्वारा की गई घोषणा के अनुसार क्षेत्रीय निदेशकों की अध्यक्षता में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों पर अधिकार-प्राप्त समितियां गठित की गई हैं। इन समितियों में राज्य स्तरीय बैंकर समिति संयोजक के प्रतिनिधि, दो बैंकों, जिनका राज्य में माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम को वित्तपोषण में सर्वाधिक हिस्सा हो, के वरिष्ठ स्तर के अधिकारी, सिडबी क्षेत्रीय कार्यालय के प्रतिनिधि, राज्य सरकार के एमएसएमई या उद्योग के निदेशक, राज्य में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम संघ के एक या दो वरिष्ठ स्तर के प्रतिनिधि तथा एसएफसी/ एसआईडीसी से एक वरिष्ठ अधिकारी सदस्य के रूप में होते हैं। इस समिति की बैठक आवधिक रूप से होगी तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम के वित्तपोषण में हुई प्रगति और तनावग्रस्त माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम इकाइयों के पुनर्वास और पुनरुज्‍जीवन की भी समीक्षा करेगी। यह क्षेत्र को सहज ऋण उपलब्धता सुनिश्चित करने में आने वाली बाधाओं, यदि कोई हों, के निवारण हेतु अन्य बैंकों/ वित्तीय संस्थानों और राज्य सरकार के साथ समन्वय करेगी। ये समितियां समूह/ जिला स्तर पर ऐसी ही समितियां गठित करने की आवश्यकता का निर्णय ले सकती है।

5.3 भारतीय बैंकिंग संहिता और मानक बोर्ड (बीसीएसबीआई)

बीसीएसबीआई ने भारतीय बैंक संघ (आईबीए), भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) और सदस्य बैंकों के सहयोग से 'सूक्ष्म और लघु उद्यमों के प्रति बैंक के प्रतिबद्धता कोड' विकसित किये है - जो सदस्य बैंकों के अनुपालन हेतु, जब वे सूक्ष्म और लघु उद्यमों के साथ व्यवसाय कर रहे हों, के लिए बैंकिंग प्रथाओं के न्यूनतम मानकों को निर्धारित करती है। कोड (संहिता) का उद्देश्य बेहतर बैंकिंग प्रथाओं को बढ़ावा देना, सदस्यों के लिए न्यूनतम मानक स्थापित करना, पारदर्शिता बढ़ाना, उच्च परिचालन मानकों को प्राप्त करना और सबसे महत्वपूर्ण, एक सौहार्दपूर्ण बैंकर-ग्राहक संबंध को बढ़ावा देना है जो बैंकिंग प्रणाली में विश्वास को मजबूत करेगा। कोड (संहिता) किसी उत्पाद या सेवा को बेचने से पहले पारदर्शिता और ग्राहक को पूरी जानकारी प्रदान करने पर बहुत बल देता है। सबसे महत्वपूर्ण, बीसीएसबीआई के सदस्य बैंकों ने स्वेच्छा से कार्यान्वयन के लिए कोड (संहिता) को अपनाया है। चूंकि, बीसीएसबीआई ने उसके विघटन की प्रक्रिया शुरू कर दी है, फिर भी बैंक सूक्ष्म और लघु उद्यमों के प्रति बैंक के प्रतिबद्धता कोड के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन करना जारी रख सकते हैं।

5.4 माइक्रो और लघु उद्यम क्षेत्र – वित्तीय साक्षरता और परामर्शी सहायता की अनिवार्यता

एमएसएमई क्षेत्र में वित्तीय वंचन (एक्‍सक्‍लूजन) के काफी अधिक परिमाण को देखते हुए बैंकों के लिए यह अनिवार्य है कि उक्त वंचित यूनिटों को औपचारिक बैंकिंग क्षेत्र के भीतर लाया जाए। लेखाकरण तथा वित्त, कारोबारी आयोजना आदि सहित वित्तीय साक्षरता, परिचालनगत कौशल का अभाव एमएसई के उधारकर्ताओं के लिए कठिन चुनौती बनी है, जिसके कारण इन जटिल वित्तीय क्षेत्रों में बैंकों द्वारा सुविधा प्रदान किए जाने की जरूरत अधोरेखित हो जाती है। साथ ही साथ, एमएसई उद्यम माप (स्केल) एवं आकार के अभाव के कारण इस संबंध में और असहाय बन जाते हैं। इन कमियों को कारगर ढ़ंग से तथा निर्णायक रूप से दूर करने के लिए अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को दिनांक 1 अगस्त 2012 के हमारे परिपत्र ग्राआऋवि.सं.एमएसएमई एण्ड एनएफएस. बीसी.20/06.02.31/2012-13 द्वारा सूचित किया गया कि बैंक या तो अपनी शाखाओं में अपनी तुलनात्मक सुविधानुसार अलग से विशेष कक्ष स्थापित करें अथवा उनके द्वारा स्थापित वित्तीय साक्षरता केंद्रों में इसके लिए अलग कार्य मद (वर्टिकल) बनाएं। इस क्षेत्र की विशिष्ट जरुरतों को पूरा करने के लिए बैंक के स्टाफ को भी अनुकूलित प्रशिक्षण के माध्यम से प्रशिक्षित कराया जाए। साथ ही, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा संचालित वित्‍तीय साक्षरता केंद्रों को दिनांक 02 मार्च 2017 के हमारे परिपत्र विसविवि.एफएलसी.बीसी.सं.22/12.01.018/2016-17 द्वारा सूचित किया गया है कि वे, ऐसे स्थान पर जहां लघु उद्यमी एक लक्ष्य समूह है, लक्ष्य विशेष वित्तीय साक्षरता कैम्प का आयोजन करें।

5.5 समूह (क्लस्टर) दृष्टिकोण

क्लस्टर का तात्पर्य सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय, भारत सरकार या संबंधित राज्य/ संघ राज्य क्षेत्र की सरकारों द्वारा चिन्हित किए गए क्लस्टर से होगा। एसएलबीसी/ यूटीएलबीसी के संयोजक बैंक इन क्लस्टरों की सूची अपने वेब पोर्टल पर प्रदर्शित करेंगे और उन्हें छमाही आधार पर मार्च और सितंबर माह के अंत में उसे अद्यतन करेंगे। एमएसएमई मंत्रालय द्वारा चिन्हित किए गए क्लस्टरों की अद्यतन सूची मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट से प्राप्त की जा सकती है, जबकि राज्य सरकारों/ केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा मान्यता प्राप्त क्लस्टरों की जानकारी सीधे संबंधित अधिकारियों से प्राप्त की जा सकेगी।

i) अग्रणी जिला बैंक संबंधित जिले के सभी क्लस्टरों में ‘क्रेडिट-लिंकेज’ को बढ़ावा देने का कार्य करेंगे। क्रेडिट-लिंकेज को बढ़ावा देने के तहत किए जाने वाले क्रियाकलापों में निम्नलिखित गतिविधियां शामिल होंगी, परंतु यह उपाय केवल इन्हीं गतिविधियों तक सीमित नहीं होंगे:

  • क्लस्टरों में एमएसई इकाइयों की ऋण आवश्यकताओं का आकलन करना और उनकी ऋण आवश्यकताओं का सीधे निराकरण करना या ऋण प्रस्तावों के लिए उस क्षेत्र में कार्यरत अन्य बैंकों के साथ उनके लिंकेज को सुगम बनाना।

  • वित्तीय साक्षरता शिविरों सहित विभिन्न मंचों के माध्यम से क्लस्टरों में एमएसई इकाइयों के बीच औपचारिक ऋण लिंकेज के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाना।

  • जिले में विभिन्न कौशल विकास गतिविधियों के तहत कवरेज को सक्षम बनाना।

  • बैंकिंग सुविधाओं से वंचित क्लस्टरों में वित्तीय सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए ध्यान केंद्रित करना और इस संबंध में सक्रिय उपाय करना।

ii) बैंक यह सुनिश्चित करेंगे कि शाखा/ ब्लॉक स्तर की योजनाओं की तैयारी के दौरान क्लस्टरों की ऋण आवश्यकताओं को उचित रूप से शामिल किया जाए, ताकि अग्रणी जिला बैंकों द्वारा जिला ऋण योजना (डीसीपी) बनाने के लिए और तत्पश्चात एसएलबीसी/ यूटीएलबीसी के संयोजक बैंकों द्वारा वार्षिक ऋण योजना (एसीपी) तैयार करने के लिए इन्हें एकत्रित किया जा सके।

iii) एसएलबीसी/ यूटीएलबीसी के संयोजक बैंक निर्धारित प्रारूप (अनुबंध-I) में प्रत्येक तिमाही में अपने पोर्टल पर राज्य/ संघ राज्य क्षेत्र में क्लस्टरों को दिए गए ऋण का ब्योरा प्रकाशित करेंगे।

5.6 विलंबित भुगतान

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम (एमएसएमईडी), 2006 में लघु एवं अनुषंगी औद्योगिक उपक्रमों के लिए विलंबित भुगतान पर ब्याज अधिनियम, 1998 के प्रावधानों को मजबूत किया गया है जो निम्नानुसार हैं:

(i) क्रेता को उसके और आपूर्तिकर्ता के बीच लिखित रूप में सहमत तारीख को या उससे पूर्व आपूर्तिकर्ता को भुगतान करना होगा और यदि कोई करार नहीं हुआ हो तो नियत दिन से पूर्व भुगतान करना होगा। आपूर्तिकर्ता और क्रेता के बीच की सहमत अवधि स्वीकरण की तारीख अथवा माने गए स्वीकरण की तारीख से 45 (पैंतालीस) दिनों से अधिक नहीं होगी।

(ii) यदि क्रेता आपूर्तिकर्ता को राशि का भुगतान नहीं कर पाया तो वह राशि पर नियत दिन या निर्धारित तारीख से रिज़र्व बैंक द्वारा अधिसूचित बैंक दर का तीन गुना चक्रवृद्धी ब्याज, मासिक आधार पर भुगतान करने हेतु बाध्य होगा।

(iii) आपूर्तिकर्ता द्वारा माल की आपूर्ति या दी गई सेवा के लिए क्रेता उक्त (ii) में सूचित ब्याज के भुगतान हेतु बाध्य होगा।

(iv) देय राशि में विवाद होने पर संबंधित राज्य सरकार द्वारा गठित सूक्ष्म और लघु उद्यम सुविधा सेवा परिषद से संपर्क किया जाएगा।

साथ ही, बैंकों को सूचित किया गया है कि वे विशेषतः एमएसएमई से खरीद से संबंधित भुगतान बाध्यता की पूर्ति हेतु बड़े उधारकर्ताओं के लिए समग्र कार्यकारी पूंजी सीमाओं के भीतर उप-सीमाएं निर्धारित करें।

अध्‍याय – VI

6. माइक्रो और लघु उद्यम (एमएसई) क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने के लिए समितियां

अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक एमएसई को उधार प्रदान करते समय निम्नलिखित परिपत्रों में दी गई विषय वस्तु द्वारा मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं:

6.1 लघु उद्योग (अब एमएसई) को ऋण पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट (कपूर समिति)

सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को दिनांक 28 अगस्त 1998 के परिपत्र ग्राआऋवि.सं. पीएलएनएफएस. बीसी.सं.22/06.02.31/98-99 द्वारा कपूर समिति की सिफारिशों को लागू करने हेतु सूचित किया गया है।

6.2 लघु उद्योग क्षेत्र (अब एमएसई) को संस्थागत ऋण की पर्याप्तता और संबंधित पहलुओं की जाँच हेतु समिति की रिपोर्ट (नायक समिति)

सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को दिनांक 2 मार्च 2001 के परिपत्र ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस/बीसी.सं.61/06.02.62/2000-01 द्वारा नायक समिति की सिफारिशों को लागू करने हेतु सूचित किया गया है।

6.3 लघु उद्योग (अब एमएसई) क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने पर कार्यकारी दल की रिपोर्ट (गांगुली समिति)

बैंकों को, समिति की सिफारिशों को कार्यान्वित करने हेतु दिनांक 4 सितंबर 2004 के परिपत्र ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस.बीसी.28/06.02.31(डब्ल्यूजी)/2004-05 द्वारा सूचित किया गया है।

6.4 रुग्ण एसएमई के पुनर्वास पर कार्यकारी दल (अध्यक्ष: डॉ. के.सी.चक्रवर्ती)

बैंकों को 4 मई 2009 के परिपत्र ग्राआऋवि.एसएमई एंड एनएफएस.बीसी.सं.102/06.04.01/2008-09 द्वारा सूचित किया गया था कि वे अन्य बातों के साथ-साथ ₹2 करोड़ तक के सभी अग्रिमों के मामले में स्कोरिंग मॉडल के आधार पर उधार देने संबंधी सिफारिशों को लागू करने पर विचार करें।

6.5 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम पर प्रधान मंत्री का कार्य-दल (टास्क फोर्स)

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) द्वारा उठाए विभिन्न मामलों पर विचार करने हेतु भारत सरकार द्वारा जनवरी 2010 में एक उच्च स्तरीय टास्क फोर्स (अध्यक्ष: श्री टी.के.ए.नायर) गठित किया गया था। टास्क फोर्स ने एमएसएमई के कार्य अर्थात् ऋण, विपणन, श्रम, निकास नीति, मूलभूत सुविधाएं/ प्रौद्योगिकी/ कौशल उन्नयन तथा कर-निर्धारण से संबंधित विभिन्न उपायों की सिफारिश की। व्यापक सिफारिशों में वे उपाय जिन पर तुरंत कार्रवाई आवश्यक है तथा विधि और विनियामक ढांचे सहित मध्यावधि संस्थागत उपाय भी तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों और जम्मू और कश्मीर के लिए सिफारिशें शामिल हैं।

बैंकों को टास्क फोर्स द्वारा की गई सिफारिशों को ध्यान में रखकर एमएसई क्षेत्र, विशेषतः सूक्ष्म उद्यमों को ऋण उपलब्धता बढ़ाने हेतु प्रभावी कदम उठाने के लिए आग्रह किया जाता है। एमएसएमई पर प्रधान मंत्री टास्क फोर्स की सिफारिशों के कार्यान्वयन की सूचना देते हुए सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को दिनांक 29 जून 2010 का परिपत्र ग्राआऋवि. एसएमई एंड एनएफएस.बीसी.सं.90/06.02.31/2009-10 जारी किया गया था।

6.6 सूक्ष्म और लघु उद्यम (एमएसई) के लिए ऋण गारंटी योजना की समीक्षा करने हेतु कार्यकारी दल

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सीजीटीएमएसई की ऋण गारंटी योजना (सीजीएस) के कार्य की समीक्षा करने, उसके प्रयोग को बढ़ाने के उपाय सुझाने तथा एमएसई को संपार्श्विक रहित ऋण में वृद्धि को सुगम बनाने हेतु श्री वी.के.शर्मा, कार्यपालक निदेशक की अध्यक्षता में एक कार्यकारी दल गठित किया गया था। कार्यकारी दल की सिफारिशों में अन्य बातों के साथ-साथ, सूक्ष्म और लघु उद्यम (एमएसई) क्षेत्र को संपार्श्विक रहित ऋण सीमा को ₹5 लाख से ₹10 लाख तक अनिवार्यतः दुगुना करना तथा बैंकों के मुख्य कार्यपालक अधिकारियों को आदेश देना कि वे सीजीएस कवर का उपभोग करने हेतु शाखा स्तर के पदाधिकारियों को प्रभावशाली ढंग से प्रोत्साहित करें तथा इससे संबंधित कार्य-निष्पादन को अपने फील्ड स्टाफ आदि के मूल्यांकन में एक मापदंड बनाने के लिए सभी बैंकों को सूचित किया गया है। उक्त हेतु सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को दिनांक 6 मई 2010 का परिपत्र ग्राआऋवि. एसएमई एंड एनएफएस.बीसी.सं.79/06.02.31/2009-10 जारी किया गया है।


परिशिष्ट

मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची

सं. परिपत्र सं. तारीख विषय पैराग्राफ सं.
1.

विसविवि. एमएसएमई एवं एनएफएस. बीसी.सं.13/06.02.31/2023-24

28 दिसंबर 2023 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) का वर्गिकरण 2.2
2. विसविवि. एमएसएमई एवं एनएफएस.बीसी.सं.09/06.02.31/2023-24 09 मई 2023 उद्यम सहायता मंच पर अनौपचारिक सूक्ष्म उद्यमों का औपचारिकीकरण 2.4
3.

विसविवि. एमएसएमई एवं एनएफएस. बीसी.सं.06/ 06.02.31/2023-24

25 अप्रैल 2023 सामान्य क्रेडिट कार्ड (जीसीसी) सुविधा – समीक्षा 4.3
4. विसविवि.एमएसएमई एवं एनएफएस.बीसी.सं.13/06.02.31/2021-22 07 जुलाई 2021 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम की नई परिभाषा - खुदरा और थोक व्यापार का समावेश 2.3
5. मास्टर निदेश विसविवि.केंका.प्लान.बीसी.5/04.09.01/2020-21 04 सितंबर 2020 प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार (पीएसएल) – लक्ष्य और वर्गीकरण 3.1
6. विसविवि.एमएसएमई एवं एनएफएस.बीसी.सं.4/06.02.31/2020-21 21 अगस्त 2020 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम की नई परिभाषा – स्पष्टीकरण

2.1-2.2
2.4-2.7

7. विसविवि.एमएसएमई एवं एनएफएस.बीसी.सं.3/06.02.31/2020-21 2 जुलाई 2020 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र में ऋण प्रवाह
8. विसविवि.एमएसएमई एण्‍ड एनएफएस.बीसी.सं.10/06.02.31/2017-18 13/07/2017 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के रूप में वर्गीकरण के उद्देश्य के लिए संयंत्र और मशीनरी में निवेश - दस्तावेजों पर निर्भर होना 2.1
9. विसविवि.एफएलसी.बीसी.सं.22/12.01.018/2016-17 02/03/2017 एफएलसी (वित्‍तीय साक्षरता केंद्र) और ग्रामीण शाखाओं द्वारा वित्‍तीय साक्षरता - नीति समीक्षा 5.4
10. विसविवि. एमएसएमई एण्ड एनएफएस.बीसी.सं.21/06.02.31/2015-16 17/03/2016 सूक्ष्‍म (माइक्रो), लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के पुनरुज्‍जीवन और पुनर्वास के लिए ढांचा 4.6
11. विसविवि.एमएसएमई एण्ड एनएफएस.बीसी.सं.60/06.02.31/2015-16 27/08/2015 माइक्रो और लघु उद्यमों (एमएसई) को उनके ‘जीवन चक्र’ के दौरान समय पर और पर्याप्‍त ऋण सुविधा देने के लिए ऋण प्रवाह का सरलीकरण 4.4
12. ग्राआऋवि.एमएसएमई एण्ड एनएफएस.बीसी.सं.74/06.02.31/2012-13 09/05/2013 एमएसई क्षेत्र को ऋण की वृद्धि पर निगरानी के लिए संरचित तंत्र 4.7
13. ग्राआऋवि.केंका.एमएसएमई एण्ड एनएफएस.बीसी.सं. 40/06.02.31/2012-13 01/11/2012 रुग्ण माइक्रो (सूक्ष्म) और लघु उद्यमों के पुनर्वास के लिए दिशानिर्देश 4.6
14. ग्राआऋवि. एमएसएमई एण्ड एनएफएस.बीसी. सं 20/06.02.31/2012-13 01/08/2012 माइक्रो और लघु उद्यम क्षेत्र – वित्तीय साक्षरता और परामर्शी सहायता की अनिवार्यता 5.4
15. ग्राआऋवि. एमएसएमई एण्ड एनएफएस.बीसी.सं.53/06.02.31/2011-12 04/01/2012 एमएसएमई उधारकर्ताओं को ऋण आवेदन की प्राप्ति-सूचना जारी करना 4.7
16. ग्राआऋवि.एसएमई एण्ड एनएफएस सं.90/06.02.31/2009-10 29/06/2010 एमएसएमई पर प्रधानमंत्री उच्च स्तरीय टास्क फोर्स की सिफारिशें 3.2, 6.5
17. ग्राआऋवि.एसएमई एण्ड एनएफएस.बीसी.सं.79/06.02.31/2009-10 06/05/2010 माइक्रो और लघु उद्यम (एमएसई) हेतु ऋण गारंटी योजना की समीक्षा के लिए कार्य-दल - एमएसई को संपार्श्विक रहित ऋण 6.6
18. ग्राआऋवि.एसएमई एण्ड एनएफएस सं.9470/06.02.31(पी)/2009-10 11/03/2010 माइक्रो और लघु उद्यम (एमएसई) क्षेत्र को संमिश्र ऋण स्वीकृति 4.2
19. ग्राआऋवि.एसएमई एंड एनएफएस सं.13657/06.02.31(पी)/2008-09 18/06/2009 पीएमईजीपी के अंतर्गत वित्तपोषित इकाईयों को संपार्श्विक रहित ऋण 4.1
20. ग्राआऋवि.एसएमई एण्ड एनएफएस सं.102/06.04.01/2008-09 04/05/2009 माइक्रो और लघु उद्यम क्षेत्र को ऋण प्रदान कराना 6.4
21. ग्राआऋवि.एसएमई एण्ड एनएफएस सं.12372/06.02.31(पी)/2007-08 23/05/2008 ऋण सहलग्न पूंजी सब्सिडी योजना  
22. ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस. बीसी.सं.63/06.02.31/2006-07 04/04/2007 माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराना - माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम विकास (एमएसएमईडी) अधिनियम, 2006 लागू करना 5.6
23. ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस. बीसी.28/06.02.21(डब्लूजी)/2004-05 04/09/2004 लघु उद्योग क्षेत्र को ऋण उपलब्धता पर कार्यकारी दल 6.3
24. ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस. बीसी.39/06.02.80/2003-04 03/11/2003 लघु उद्योग को ऋण सुविधाएं - संपार्श्विक मुक्त ऋण 4.1
25. डीबीओडी.सं.बीएल.बीसी. 74/22.01.001/2002 11/03/2002 सामान्य बैंकिंग शाखाओं का विशेषीकृत लघु उद्योग शाखाओं में परिवर्तन 5.1
26. ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस. बीसी.61/06.02.62/2000-01 02/03/2001 नायक समिति की सिफारिशों का कार्यान्वयन – बैंकों द्वारा की गई प्रगति – विशेषीकृत एसएसआई शाखाओं का अध्ययन 6.2
27. आईसीडी.सं.5/08.12.01/2000-01 16/10/2000 लघु उद्योग क्षेत्र को ऋण उपलब्धता- मंत्रियों के समूह का निर्णय 5.6
28. ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस. बीसी.22/06.02.31(ii)–98/99 28/08/1998 लघु उद्योग पर उच्च स्तरीय समिति -कपूर समिति- सिफारिशों का कार्यान्वयन 6.1

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