आरबीआई/विसविवि/2019-20/70
मास्टर निदेश विसविवि.केंका.प्लान.बीसी सं.08/04.09.01/2019-20
29 जुलाई 2019
(12 मार्च 2020 तक अद्यतन)
अध्यक्ष / प्रबंध निदेशक /
मुख्य कार्यपालक अधिकारी
[सभी लघु वित्त बैंक]
महोदय / महोदया,
मास्टर निदेश – प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार –
लघु वित्त बैंक - लक्ष्य और वर्गीकरण
संलग्न मास्टर निदेश में इस विषय पर अद्यतन दिशानिर्देश/ अनुदेश/ परिपत्र समाविष्ट किए गए हैं। इस निदेश को समय-समय पर जब नए अनुदेश जारी किए जाएँगे तब इसे अद्यतन किया जाएगा। यह मास्टर निदेश रिज़र्व बैंक की वेबसाइट www.rbi.org.in पर उपलब्ध है।
2. लघु वित्त बैंकों के लिए संग्रह के रूप में दिशानिर्देशों का एक व्यापक सेट हमारी वेबसाइट पर दिनांक 6 जुलाई 2017 को प्रकाशित किया गया था। इस मास्टर निदेश में संग्रह के अध्याय II के अंतर्गत जारी दिशानिर्देशों को शामिल किया गया है। इस मास्टर निदेश में समेकित परिपत्रों की सूची परिशिष्ट में दी गई है।
भवदीय,
(गौतम प्रसाद बोरा)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक
मास्टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक – प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार –
लक्ष्य और वर्गीकरण – लघु वित्त बैंक – 2019
बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 21 और 35 ए द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, भारतीय रिज़र्व बैंक इस बात से संतुष्ट होने पर कि जनहित में ऐसा करना आवश्यक और समीचीन है, एतद्द्वारा, इसके बाद विनिर्दिष्ट किए गए निदेश जारी करता है।
अध्याय - I
प्रारंभिक
1. संक्षिप्त नाम और प्रारंभ
(क) ये निदेश भारतीय रिज़र्व बैंक (प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – लक्ष्य और वर्गीकरण) निदेश, 2019 कहलाएंगे।
(ख) ये निदेश भारतीय रिज़र्व बैंक की आधिकारिक वेबसाइट पर रखे जाने के दिन से प्रभावी होंगे।
2. प्रयोज्यता
इन निदेशों के उपबंध भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा भारत में कार्य करने के लिए लाइसेंसीकृत प्रत्येक लघु वित्त बैंक (एसएफबी) पर लागू होंगे।
3. परिभाषाएँ / स्पष्टीकरण
(क) इन निदेश में, जब तक कि अन्यथा संदर्भ की आवश्यकता नहीं हो, तब तक नीचे दिए गए शब्द उनको सौपें गए अर्थ को ही दर्शाएगा :
(i) आकस्मिक देयताएं / तुलन-पत्रेतर मदों को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य की उपलब्धि का हिस्सा नहीं माना जाएगा।
(ii) "सभी-समावेशी ब्याज" शब्द में ब्याज (प्रभावी वार्षिक ब्याज), प्रसंस्करण शुल्क और सेवा शुल्क शामिल हैं।
(ख) बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के तहत प्रदान किए गए ऋण अनुमोदित उद्देश्यों के लिए है और उसके अंतिम उपयोग की निरंतर निगरानी की जाती है। बैंकों को इस संबंध में उचित आंतरिक नियंत्रण और प्रणाली की व्यवस्था करनी चाहिए।
(ग) यहाँ परिभाषित न की गई अन्य सभी अभिव्यक्तियों के आशय, यथास्थिति वही होंगे, जो बैंककारी विनियमन अधिनियम अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, अथवा किसी अन्य सांविधिक संशोधन अथवा उनके पुन: अधिनियमन के अंतर्गत विनिर्दिष्ट किये जाएँ अथवा वाणिज्यिक शब्दावली में प्रयुक्त हैं।
अध्याय – II
प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत श्रेणियां और लक्ष्य
4. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत श्रेणियां निम्नानुसार है:
-
कृषि
-
माइक्रो (सूक्ष्म), लघु और मध्यम उद्यम
-
निर्यात ऋण
-
शिक्षा
-
आवास
-
सामाजिक बुनियादी संरचना
-
नवीकरणीय ऊर्जा
-
अन्य
उपर्युक्त श्रेणियों के अंतर्गत पात्र गतिविधियों के ब्योरे अध्याय III में निर्दिष्ट किए गए हैं।
5. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लिए लक्ष्य/ उप-लक्ष्य
i) भारत में कार्यरत सभी लघु वित्त बैंकों के लिए प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के तहत निर्धारित लक्ष्य और उप-लक्ष्य निम्नानुसार हैं:
श्रेणी |
लक्ष्य |
कुल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र |
समायोजित निवल बैंक ऋण का 75 प्रतिशत |
कृषि |
एएनबीसी का 18 प्रतिशत। कृषि के 18 प्रतिशत के लक्ष्य के अंतर्गत लघु और सीमांत किसानों के लिए एएनबीसी के 8 प्रतिशत का लक्ष्य निर्धारित है।## |
माइक्रो उद्यम |
एएनबीसी का 7.5 प्रतिशत |
कमज़ोर वर्गों को अग्रिम |
एएनबीसी का 10 प्रतिशत |
प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य/उप-लक्ष्यों की प्राप्ति की गणना पूर्ववर्ती वर्ष की तदनुरूपी तारीख को कुल एएनबीसी के आधार पर की जाएगी।
## इसके अलावा, सभी लघु वित्त बैंकों को यह सुनिश्चित करने हेतु निर्देश दिया जाता है कि गैर-कॉर्पोरेट किसानों को दिया गया समग्र उधार पिछले तीन वर्ष की उपलब्धि के प्रणालीगत औसत से कम न हो। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के तहत उपलब्धियों की गणना हेतु लागू प्रणालीगत औसत प्रति वर्ष अधिसूचित की जाएगी। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए, लागू प्रणालीगत औसत का आंकड़ा 12.11 प्रतिशत है।
(ii) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के प्रयोजन के लिए एएनबीसी से आशय है भारत में बकाया बैंक ऋण [भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 (2) के अंतर्गत फार्म ‘ए’ की मद सं.VI में यथा निर्धारित़] में से घटाए गए रिज़र्व बैंक और अन्य अनुमोदित वित्तीय संस्थाओं के पास पुन: भुनाए गए बिल तथा परिपक्वता के लिए धारित (एचटीएम) श्रेणी के अंतर्गत अनुमत गैर एसएलआर बांडों/डिबेंचरों तथा ऐसे अन्य श्रेणियों में किए गए निवेश जो प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के भाग के रूप में माने जाने के पात्र हों (अर्थात प्रतिभूतिकृत आस्तियों में निवेश) को जोड़ा जाए। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के लक्ष्य/उप-लक्ष्यों को प्राप्त न करने के बदले में आरआईडीएफ और नाबार्ड, एनएचबी और सिडबी और मुद्रा लि. के पास रखी अन्य निधियों के अंतर्गत बकाया जमाराशियां एएनबीसी का भाग बनेंगी। रिजर्व बैंक के 31 जनवरी 2014 के परिपत्र डीबीओडी.सं.आरईटी.बीसी.93/12.01.001/2013-14 के साथ पठित 14 अगस्त 2013 के परिपत्र डीबीओडी.सं.आरईटी.बीसी.36/12.01.001/2013-14 और 6 फरवरी 2014 को जारी डीबीओडी मेलबाक्स स्पष्टीकरण के अनुसार सीआरआर/ एसएलआर अपेक्षाओं से छूट प्राप्त वृद्धिशील एफसीएनआर (बी)/ एनआरई जमाराशियां जिनके आधार पर भारत में अग्रिम दिए गए हैं, को उनकी चुकौती किए जाने तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के लक्ष्यों की गणना के लिए एएनबीसी से बाहर रखा जाएगा। रिज़र्व बैंक के 15 जुलाई 2014 के परिपत्र डीबीओडी.बीपी.बीसी.सं.25/08.12.014/2014-15 के अनुसार बुनियादी संरचना और किफायती आवास के लिए दीर्घावधि बाण्ड जारी करने के कारण छूट के लिए पात्र राशि को भी प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के लक्ष्यों की गणना के लिए एएनबीसी से बाहर रखा जाएगा।
(iii) समायोजित निवल बैंक ऋण (एएनबीसी) की गणना :
भारत में बैंक ऋण (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42(2) के अंतर्गत फार्म 'ए' की मद सं.VI में यथा निर्धारित) |
I |
रिज़र्व बैंक तथा अन्य अनुमोदित वित्तीय संस्थाओं के पास पुनः भुनाए गए बिल |
II |
निवल बैंक ऋण (एनबीसी)* |
III (I-II) |
एचटीएम श्रेणी के अंतर्गत गैर एसएलआर श्रेणी मे बांड/डिबेंचर + प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के माने जाने के पात्र अन्य निवेश + प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र में कमी के कारण आरआईडीफ और नाबार्ड, एनएचबी और सिडबी और मुद्रा लि. के पास रखी अन्य पात्र निधियों के अंतर्गत बकाया जमाराशियां + बकाया पीएसएलसी |
IV |
15 जुलाई 2014 के परिपत्र डीबीओडी.बीपी.बीसी.सं.25/08.12.014/2014-15 के अनुसार बुनियादी संरचना और किफायती आवास के लिए दीर्घावधि बाण्ड जारी करने के कारण छूट के लिए पात्र राशि |
V |
ऐसी वृद्धिशील एफसीएनआर (बी)/एनआरई जमाराशियों के आधार पर भारत में प्रदत्त पात्र अग्रिम जो सीआरआर/ एसएलआर अपेक्षाओं से छूट के योग्य हैं |
VI |
एएनबीसी |
III+IV-(V-VI) |
* केवल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की गणना के लिए। बैंकों को चाहिए कि वे एनबीसी से प्रावधान, उपचित ब्याज, आदि जैसी किसी राशि को न घटाए/ न निवल करें।
बैंक, एएनबीसी की गणना हेतु मार्गदर्शन के लिए बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा लघु वित्त बैंकों के लिए जारी परिचालनात्मक दिशानिर्देश (भा.रि.बैं./2016-17/81 बैंविवि.एनबीडी.सं.26/16.13.218/2016-17, दिनांक 6 अक्तूबर, 2016) का पैरा 6.5 (ii से vii) देखें।
यदि बैंक उपर्युक्त प्रकार से बैंक ऋण की रिपोर्टिंग में कारपोरेट/ प्रधान कार्यालय स्तर पर विवेकसम्मत बट्टे खाते डाली गई राशि को घटाते हैं तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र और अन्य सभी उप क्षेत्रों को बैंक ऋण जो इस प्रकार बट्टे खाते डाला गया हो, को भी प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र और उप-लक्ष्य की प्राप्ति में से श्रेणी-वार घटाया जाना चाहिए।
सभी प्रकार के ऋण, निवेश अथवा ऐसी अन्य मदें जिन्हें प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्य / उप-लक्ष्य के अंतर्गत प्राप्ति के लिए पात्र माना गया हो, समायोजित निवल बैंक ऋण का भी एक भाग होना चाहिए।
अध्याय – III
प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत पात्र श्रेणियों का विवरण
6. कृषि
क) कृषि क्षेत्र को उधार को परिभाषित किया गया है ताकि उसमें (i) कृषि ऋण (जिसमें किसानों को अल्पावधि फसल ऋण और मध्यावधि/ दीर्घावधि ऋण शामिल होगा) (ii) कृषि बुनियादी संरचना और (iii) संबद्ध गतिविधियां, को समाहित हो सके। तीन उप श्रेणियों के अंतर्गत पात्र क्रियाकलापों की सूची नीचे दी गई है:
6.1 कृषि ऋण
क. कृषि तथा उससे संबद्ध कार्यकलापों जैसे डेरी उद्योग, मत्स्यपालन, पशुपालन, मुर्गीपालन, मधु-मक्खीपालन और रेशम उद्योग से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े किसानों के स्वामित्व वाले फर्मों तथा अलग-अलग किसानों [(स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) या संयुक्त देयता समूहों (जेएलजी) अर्थात अलग-अलग किसानों के समूहों सहित, बशर्ते बैंक ऐसे ऋणों का अलग से ब्योरा रखते हों)] को ऋण। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं :
(i) किसानों को फसल ऋण जिसमें पारंपरिक/ गैर-पारंपरिक बागान, फलोद्यान तथा संबद्ध गतिविधियों के लिए ऋण शामिल होंगे।
(ii) किसानों को कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों के लिए मध्यावधि और दीर्घावधि ऋण (अर्थात कृषि उपकरणों और मशीनरी की खरीद, खेत में सिंचाई तथा किए जाने वाले अन्य विकासात्मक कार्यकलाप एवं संबद्ध कार्यकलापों के लिए विकास ऋण) ।
(iii) किसानों को फसल काटने से पूर्व और फसल काटने के बाद के कार्यकलापों जैसे छिड़काव, निराई (वीडिंग), फसल कटाई, छंटाई, श्रेणीकरण (ग्रेडिंग), तथा अपने स्वयं के फार्म की उपज के परिवहन के लिए ऋण।
(iv) किसानों को 12 माह से अनधिक अवधि के लिए कृषि उपज (गोदाम रसीदों सहित) को गिरवी/ दृष्टिबंधक रखकर ₹50 लाख तक के ऋण।
(v) गैर संस्थागत उधारदाताओं के प्रति ऋणग्रस्त आपदाग्रस्त किसानों को ऋण।
(vi) किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत किसानों को ऋण।
(vii) कृषि प्रयोजन हेतु जमीन खरीदने के लिए छोटे और सीमांत किसानों को ऋण।
ख. कारपोरेट किसानों, किसानों के कृषक उत्पादक संगठन/ अलग-अलग किसानों की कंपनियों, साझेदारी फर्मों तथा कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों जैसे डेरी उद्योग, मत्स्यपालन, पशुपालन, मुर्गीपालन, मधु-मक्खीपालन, रेशम उद्योग से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी सहकारी संस्थाओं को प्रति उधारकर्ता ₹2 करोड़ की कुल ऋण सीमा में दिए गए ऋण। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
(i) किसानों को फसल ऋण जिसमें पारंपरिक/ गैर-पारंपरिक बागान, फलोद्यान तथा संबद्ध गतिविधियां शामिल होंगी।
(ii) कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों के लिए मध्यावधि और दीर्घावधि ऋण (अर्थात कृषि उपकरणों और मशीनरी की खरीद, खेत में सिंचाई तथा किए जाने वाले अन्य विकासात्मक कार्यकलाप एवं संबद्ध कार्यकलापों के लिए विकास ऋण)।
(iii) किसानों को फसल काटने से पूर्व और फसल काटने के बाद के कार्यकलापों जैसे छिड़काव, निराई (वीडिंग), फसल कटाई, छंटाई, श्रेणीकरण (ग्रेडिंग), तथा अपने स्वयं के फार्म की उपज के परिवहन के लिए ऋण।
(iv) किसानों को 12 माह से अनधिक की अवधि के लिए कृषि उपज (गोदाम रसीदों सहित) को गिरवी/ दृष्टिबंधक रखकर ₹50 लाख तक के ऋण।
6.2 कृषि बुनियादी संरचना
i) भंडारण सुविधाओं (भंडारघर, बाज़ार प्रांगण, गोदाम और साइलो) जिनमें कृषि उत्पाद/ उत्पादनों के भंडारण के लिए बनाए गए कोल्ड स्टोरेज यूनिट / कोल्ड स्टोरेज चेन शामिल हैं, चाहे वे कहीं भी स्थित हों, के निर्माण के लिए ऋण।
ii) भू-संरक्षण और जल विभाजन (वॉटरशेड) विकास।
iii) ऊतक (टिश्यू) संवर्धन और कृषि जैव प्रौद्योगिकी (बायो-टैक्नोलॉजी), बीज़ उत्पादन, जैविक (बायो) कीटनाशकों का उत्पादन, जैविक उर्वरक, और कृमि कंपोस्टिंग।
उपर्युक्त ऋणों के लिए बैंकिंग प्रणाली से प्रति उधारकर्ता ₹100 करोड़ की समग्र स्वीकृत सीमा लागू होगी।
6.3 संबद्ध कार्यकलाप
(i) सदस्यों के उत्पाद का निपटान करने के लिए किसानों की सहकारी समितियों को ₹5 करोड़ तक के ऋण।
(ii) एग्री क्लिनिक और एग्री बिजनेस केंद्रों की स्थापना के लिए ऋण।
(iii) खाद्यान्न तथा एग्रो प्रसंस्करण के लिए बैंकिंग प्रणाली से प्रति उधारकर्ता ₹100 करोड़ की समग्र स्वीकृत सीमा तक के ऋण।
(iv) व्यक्तियों, संस्थाओं अथवा संगठनों द्वारा प्रबंधित ऐसे कस्टम सेवा यूनिटों को ऋण जो ट्रैक्टर, बुलडोज़र, कुआं खोदने के उपकरण, थ्रेशर, कंबाइन्स, आदि का बेड़ा रखते हैं और किसानों के लिए संविदा आधार पर कृषि कार्य करते हैं।
(v) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र में कमी के कारण नाबार्ड के पास रखी आरआईडीएफ और अन्य पात्र निधियों के अंतर्गत बकाया जमाराशियां।
उप-लक्ष्य की उपलब्धि की गणना के उद्देश्य हेतु लघु और सीमांत किसानों में निम्नलिखित शामिल होंगे :-
• एक हेक्टेयर तक के भूधारक किसान सीमांत किसान माने जाते हैं। एक हेक्टेयर से अधिक परंतु 2 हेक्टेयर तक के भूधारक किसान लघु किसान के रूप में माने जाते हैं।
• भूमिहीन कृषि श्रमिक, काश्तकार, मौखिक पट्टेदार तथा बंटाईदार जिनकी भू-धारिता का अंश लघु और सीमांत किसानों के लिए निर्धारित सीमाओं के भीतर है।
• स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) या संयुक्त देयता समूहों (जेएलजी) अर्थात कृषि तथा उससे संबद्ध कार्यकलापों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े अलग-अलग लघु और सीमांत किसानों के समूहों को ऋण, बशर्ते बैंक ऐसे ऋणों का अलग से ब्योरा रखते हों।
• अलग-अलग किसानों की कृषक उत्पादक कंपनियों तथा कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी किसानों की सहकारी संस्थाओं को ऋण, जहां लघु और सीमांत किसानों की सदस्यता संख्या की दृष्टि से 75 प्रतिशत से कम न हो और जिनकी भू-धारिता का शेयर कुल भू-धारिता के 75 प्रतिशत से कम न हो।
7. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई)
7.1. संयंत्र और मशीनरी/ उपकरणों में निवेश की सीमाएं : सूक्ष्म (माइक्रो), लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा 9 सितम्बर 2006 को एस.ओ.1642(ई) द्वारा अधिसूचित किए गए अनुसार विनिर्माण/ सेवा उद्यम के लिए संयंत्र और मशीनरी/ उपकरणों में निवेश की सीमाएं निम्नानुसार हैं :-
विनिर्माण क्षेत्र |
उद्यम |
संयंत्र और मशीनरी में निवेश |
माइक्रो उद्यम |
पच्चीस लाख रुपए से अधिक न हो |
लघु उद्यम |
पच्चीस लाख रुपए से अधिक परंतु पांच करोड़ रुपए से अधिक न हो |
मध्यम उद्यम |
पांच करोड़ रुपए से अधिक परंतु दस करोड़ रुपए से अधिक न हो |
सेवा क्षेत्र |
उद्यम |
उपकरणों में निवेश |
माइक्रो उद्यम |
दस लाख रुपए से अधिक न हो |
लघु उद्यम |
दस लाख रुपए से अधिक परंतु दो करोड़ रुपए से अधिक न हो |
मध्यम उद्यम |
दो करोड़ रुपए से अधिक परंतु पांच करोड़ रुपए से अधिक न हो |
विनिर्माण और सेवा दोनों क्षेत्रों के माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यमों को दिए जानेवाले बैंक ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत निम्नानुसार वर्गीकृत किए जाने के पात्र होंगे:-
7.2. विनिर्माण उद्यम
उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 की प्रथम अनुसूची में निर्दिष्ट और सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित प्रकार से किसी उद्योग के लिए विनिर्माण या वस्तुओं के उत्पादन में लगी माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम संस्थाएं। विनिर्माण उद्यमों को संयंत्र और मशीनरी में निवेश के अनुसार परिभाषित किया गया है।
7.3. सेवा उद्यम
एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 के अंतर्गत उपकरणों में निवेश के अनुसार परिभाषित और सेवाएं उपलब्ध कराने या प्रदान करने में लगे माइक्रो और लघु उद्यमों को दिए गए सभी बैंक ऋण बिना किसी ऊपरी सीमा के प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत विचार करने हेतु पात्र होंगे।
7.4. फैक्टरिंग लेनदेन
(i) बैंकों, जिनसे फैक्टरिंग कारोबार विभागीय रूप से होता है, द्वारा ‘दायित्व सहित’ आधार पर किए जाने वाले फैक्टरिंग लेनदेन, जहां फैक्टरिंग लेनदेन में ‘समनुदेशक’ (असाईनर) संयंत्र और मशीनरी/ उपकरण में निवेश के लिए तदनुरूपी सीमाओं तथा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के वर्गीकरण के लिए लागू अन्य दिशानिर्देशों के अधीन माइक्रो, लघु अथवा मध्यम उद्यम हो। बैंकों द्वारा रिपोर्टिंग तारीख को ऐसे बकाया फैक्टरिंग पोर्टफोलियो को एमएसएमई श्रेणी के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है।
(ii) बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा ‘बैंकों द्वारा फैक्टरिंग सेवाओं का प्रावधान – समीक्षा’ पर जारी दिनांक 30 जुलाई 2015 के परिपत्र बैंविवि.सं.एफएसडी.बीसी.32/24.01.007/2015-2016 के पैरा 9 के अनुसार उधारकर्ता का बैंक अन्य बातों के साथ-साथ दोहरे वित्तपोषण/ गणना से बचने के लिए, उधारकर्ता से आवधिक आधार पर “फैक्टर” प्राप्य राशियों के संबंध में प्रमाणपत्र प्राप्त करेगा। साथ ही, “फैक्टर” को चाहिए कि वह दोहरे वित्तपोषण से बचने का दायित्व लेते हुए संबंधित बैंकों को उधारकर्ता को स्वीकृत सीमाओं तथा “फैक्टर ऋण” के ब्योरों के बारे में अवश्य सूचित करें।
(iii) ट्रेड रिसिवेबल्स डिस्काउंटिंग सिस्टम (TReDS) मंच के शुरू होने के उपरांत इस मंच के माध्यम से किए जाने वाले फैक्टरिंग लेनदेन भी प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकरण के लिए पात्र होंगे।
7.5. खादी और ग्राम उद्योग क्षेत्र (केवीआई)
खादी और ग्राम उद्योग (केवीआई) क्षेत्र की इकाइयों को दिए गए सभी ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत माइक्रो उद्योगों हेतु निर्धारित 7.5 प्रतिशत के उप-लक्ष्य के अधीन वर्गीकरण के लिए पात्र होंगे।
7.6. एमएसएमई को अन्य वित्त
(i) काश्तकारों, ग्राम और कुटीर उद्योगों को निविष्टियों की आपूर्ति और उनके उत्पादन के विपणन के विकेंद्रीकृत सेक्टर को सहायता प्रदान करने में निहित संस्थाओं को ऋण।
(ii) विकेंद्रित सेक्टर अर्थात काश्तकार, ग्राम और कुटीर उद्योग के उत्पादकों की सहकारी समितियों को ऋण।
(iii) सामान्य क्रेडिट कार्ड (वर्तमान में प्रचलित और व्यक्तियों की कृषि से इतर उद्यमीय क्रेडिट आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले काश्तकार क्रेडिट कार्ड, लघु उद्यमी कार्ड, स्वरोजगार क्रेडिट कार्ड, तथा बुनकर कार्ड आदि सहित) के अंतर्गत बकाया ऋण।
(iv) वित्तीय सेवाएं विभाग, वित्त मंत्रालय, द्वारा दिनांक 24 सितंबर 2018 को जारी संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार, प्रधान मंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) खाता धारकों के लिए ओवरड्राफ्ट की सीमा को बढ़ाकर ₹10,000/- कर दिया गया है एवं 18 से 60 वर्ष की आयु सीमा को बढ़ाकर 18 से 65 वर्ष कर दिया गया है बशर्ते उधारकर्ता की पारिवारिक वार्षिक आय ग्रामीण क्षेत्रों में ₹100,000/- और गैर ग्रामीण क्षेत्रों में ₹1,60,000/- से अधिक न हो तथा ₹2,000/- तक के ओवरड्राफ्ट हेतु कोई भी शर्त नहीं होगा। ये ओवरड्राफ्ट माइक्रो उद्यमों को दिए जाने वाले उधार हेतु निर्धारित लक्ष्य के संबंध में प्राप्ति के पात्र होंगे।
(v) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र में कमी के कारण सिडबी और मुद्रा लि. के पास बकाया जमाराशियां।
7.7. यह सुनिश्चित करने के लिए कि एमएसएमई केवल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की स्थिति के लिए पात्र बने रहने हेतु लघु और मध्यम उद्यम इकाई नहीं रहे, एमएसएमई यूनिट को संबंधित एमएसएमई श्रेणी से अधिक विकसित होने के बाद तीन वर्षों तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार का लाभ मिलना जारी रहेगा।
8. निर्यात ऋण
परिचालन के प्रथम वित्तीय वर्ष के दौरान प्रति उधारकर्ता ₹40 करोड़ तक की सीमा का निर्यात ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत होगा। तथापि, बाद के वित्तीय वर्षों के लिए, जो कि पूर्ववर्ती वर्ष की तदनुरूपी तारीख की स्थिति के एएनबीसी के 2 प्रतिशत से अधिक न हो, केवल वृद्धिशील निर्यात ऋण को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के रूप में माना जाएगा।
निर्यात ऋण में हमारे बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा रुपया/ विदेशी मुद्रा निर्यात ऋण और निर्यातकों को ग्राहक सेवा पर जारी मास्टर परिपत्र में परिभाषित किए गए अनुसार पोतलदान-पूर्व और पोतलदानोत्तर निर्यात ऋण (तुलन पत्र से इतर मदों को छोड़कर) शामिल है।
9. शिक्षण
व्यावसायिक पाठ्यक्रमों सहित शिक्षा के प्रयोजनों के लिए व्यक्तियों को ₹10 लाख तक का ऋण चाहे स्वीकृत राशि कुछ भी हो, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लिए पात्र माना जाएगा।
10. आवास
10.1 प्रति परिवार, निवासी यूनिट की खरीद / निर्माण के लिए प्रत्येक व्यक्ति को महानगरीय केंद्रों (10 लाख और उससे अधिक की आबादी वाले) में ₹35 लाख तक के ऋण और अन्य केंद्रों में ₹25 लाख तक के ऋण बशर्ते की निवासी यूनिट की समग्र लागत सीमा महानगरीय केंद्रों और अन्य केंद्रों में क्रमश: ₹45 लाख और ₹30 लाख से अधिक न हो। बैंक द्वारा अपने कर्मचारियों को दिए जाने वाले आवास ऋण को इसमें समाहित नहीं किया गया है। चूंकि ऐसे आवास ऋण जो दीर्घावधि बांड से समर्थित होते हैं को एएनबीसी से छूट प्राप्त हैं, अतः बैंकों को या तो व्यक्तियों को महानगरीय केंद्रों में ₹35 लाख तक के आवास ऋण और अन्य केंद्रों में ₹25 लाख तक के आवास ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत शामिल करने चाहिए अथवा एएनबीसी से छूट का लाभ लेना चाहिए परंतु दोनों की अनुमति नहीं होगी।
10.2 परिवारों के क्षतिग्रस्त निवासी यूनिटों की मरम्मत के लिए महानगरीय केंद्रों में ₹5 लाख तक और अन्य केंद्रों में ₹2 लाख तक का ऋण।
10.3 किसी सरकारी एजेंसी को निवासी यूनिटों के निर्माण अथवा गंदी बस्ती हटाने और गंदी बस्ती में रहनेवालों के पुनर्वास के लिए अधिकतम सीमा ₹10 लाख प्रति निवास यूनिट की शर्त पर बैंक ऋण।
10.4 केवल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्लूएस) और निम्न आय समूह (एलआईजी) के लोगों के लिए मकान बनवाने के प्रयोजन हेतु ऐसी आवास परियोजनाओं जिनकी कुल लागत प्रति निवासी यूनिट ₹10 लाख से अधिक नहीं है, को बैंकों द्वारा स्वीकृत ऋण। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और निम्न आय समूह के लोगों की पहचान के प्रयोजन के लिए पारिवारिक आय सीमा को प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत निर्दिष्ट आय मानदंडों के साथ संरेखित करते हुए ईडब्लूएस के लिए ₹3 लाख प्रति वर्ष और एलआईजी के लिए ₹6 लाख प्रति वर्ष के रूप में संशोधित किया गया है।
10.5 प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र में कमी के कारण एनएचबी के पास रखी बकाया जमाराशियां।
11. सामाजिक बुनियादी संरचना
टियर II से टियर VI के केंद्रों में सामाजिक बुनियादी संरचना के निर्माण हेतु यथा स्कूल, स्वास्थ्य रक्षा सुविधा, पेयजल सुविधा और स्वच्छता सुविधाओं एवं घरेलू स्वच्छता-गृहों के निर्माण/ नवीकरण और घरेलू स्तर पर जल आपूर्ति में सुधार सहित, के लिए प्रति उधारकर्ता ₹5 करोड़ की सीमा तक के बैंक ऋण।
12. नवीकरणीय ऊर्जा
सौर आधारित बिजली जनित्र, बायो मास आधारित बिजली जनित्र, पवन मिल, माइक्रो-हैडल संयंत्र और रास्ते पर बत्ती लगाने की प्रणाली और सुदूर गांव में विद्युतिकरण जैसे गैर पारंपरिक ऊर्जा आधारित सार्वजनिक उपयोग के प्रयोजन के लिए उधारकर्ताओं को ₹15 करोड़ की सीमा तक के बैंक ऋण। अलग-अलग परिवारों को प्रति उधारकर्ता के लिए ₹10 लाख की ऋण सीमा होगी।
13. अन्य
13.1. बैंकों द्वारा व्यक्तियों और उनके एसएचजी/ जेएलजी को सीधे दिए जानेवाले प्रति उधारकर्ता ₹50,000/- से अनधिक के ऋण, बशर्ते उधारकर्ता की घरेलू वार्षिक आय ग्रामीण क्षेत्रों में ₹1 लाख से अनधिक हो और गैर-ग्रामीण क्षेत्रों में यह ₹1.6 लाख से अधिक न हो।
13.2. आपदाग्रस्त व्यक्तियों [पैराग्राफ 6(6.1)(क)(v) के अंतर्गत शामिल किसानों को छोड़कर] को उनके गैर संस्थागत ऋणदाताओं के कर्जं की पूर्व अदायगी के लिए प्रति उधारकर्ता ₹1 लाख से अनधिक के ऋण।
13.3. अनुसूचित जातियों/ अनुसूचित जनजातियों के लिए राज्य प्रायोजित संगठनों को इन संगठनों के लाभार्थियों को निविष्टियों की खरीद और आपूर्ति और/या उनके उत्पादनों के विपणन के विशिष्ट प्रयोजन के लिए स्वीकृत ऋण।
14. कमज़ोर वर्ग
निम्नलिखित उधारकर्ताओं को दिए जाने वाले प्राथमिताकता-प्राप्त क्षेत्र ऋण कमज़ोर वर्गो की श्रेणी के अंतर्गत शामिल है :
-
छोटे और सीमान्त किसान
-
काश्तकार, ऐसे ग्रामीण और कुटीर उद्योग जिनकी व्यक्तिगत ऋण सीमा ₹1 लाख से अधिक न हो
-
सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं जैसे राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम), राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (एनयूएलएम) और स्वच्छकारों की पुनर्वास के लिए स्व-रोजगार योजना (एसआरएमएस) के अंतर्गत लाभार्थी
-
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियां
-
विभेदक ब्याज दर (डीआरआई) योजना के लाभार्थी
-
स्व-सहायता समूह
-
गैर संस्थागत उधारदाताओं के प्रति ऋणग्रस्त आपदाग्रस्त किसान
-
गैर संस्थागत उधारदाताओं के प्रति ऋणग्रस्त किसानों को छोड़कर आपदाग्रस्त व्यक्तियों को अपने ऋण की पूर्व अदायगी हेतु ₹1 लाख से अनधिक के ऋण।
-
अलग-अलग महिला लाभार्थियों को प्रति उधारकर्ता ₹1 लाख तक के ऋण
-
दिव्यांग व्यक्ति
-
18 से 65 वर्ष की आयु सीमा के साथ प्रधान मंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) खाता धारकों को ₹10,000/- तक के ओवरड्राफ्ट।
-
भारत सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदाय।
ऐसे राज्य जहां अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदाय वास्तव में बहुसंख्यक है, मद (12) में केवल अन्य अधिसूचित अल्पसंख्यकों का समावेश होगा। ये राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश हैं जम्मू और कश्मीर, पंजाब, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड और लक्षद्वीप।
अध्याय IV
विविध
15. बैंकों द्वारा प्रतिभूतिकृत आस्तियों में निवेश
15.1 बैंकों द्वारा प्रतिभूतिकृत आस्तियों में निवेश, जो ‘अन्य’ श्रेणी को छोड़कर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की विभिन्न श्रेणियों को ऋण का द्योतक हैं तथा बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा लघु वित्त बैंकों के लिए जारी परिचालनात्मक दिशानिर्देश पर जारी दिनांक 6 अक्तूबर 2016 के परिपत्र बैंविवि.एनबीडी.सं.26/16.13.218/2016-17 के पैरा 1.9 में विनिर्दिष्ट निबंधनों एवं शर्तों के अधीन अंतर्निहित आस्तियों के आधार पर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों में वर्गीकरण के लिए पात्र हैं, बशर्ते :
(क) बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा सृजित आस्तियां प्रतिभूतिकरण के पहले तथा प्रतिभूतिकरण के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों को पूरा करने के साथ प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र अग्रिमों के रूप में वर्गीकृत किए जाने की पात्र है।
(ख) मूल संस्था द्वारा अंतिम उधारकर्ता से लिया जानेवाला सर्वसमावेशक ब्याज निवेशक बैंक की एमसीएलआर और वार्षिक 8 प्रतिशत से अधिक न हो।
15.2 एमएफआई द्वारा मूलत: निर्मित प्रतिभूतिकृत आस्तियों में किए गए निवेश जो निम्न दिशा-निर्देशों का पालन करते हैं, इस उच्चतम ब्याज से छूट प्राप्त हैं क्योंकि मार्जिन और ब्याज दर पर अलग से उच्चतम सीमाएं हैं:
i. मार्जिन की अधिकतम सीमा : ₹100 करोड़ से अधिक के ऋण संविभाग वाले एमएफआई के लिए मार्जिन कैप 10 प्रतिशत और अन्यों के लिए 12 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। ब्याज लागत की गणना बकाया उधार राशियों के औसत पाक्षिक शेष के आधार पर तथा ब्याज आय की गणना अर्हक आस्तियों के बकाया ऋण संविभाग के औसत पाक्षिक शेष के आधार पर की जाएगी।
माइक्रो फाइनांस संस्था द्वारा वितरित वह ऋण "अर्हक आस्ति" होगा, जो निम्नलिखित मानदण्डों को पूरा करता हो :
-
ऋण किसी ऐसे उधारकर्ता को दिया गया हो, जिसकी ग्रामीण क्षेत्र में पारिवारिक वार्षिक आय ₹1.25 लाख से अधिक न हो जबकि गैर ग्रामीण क्षेत्र में वह ₹2 लाख से अधिक नहीं होनी चाहिए।
-
पहले दौर में ऋण ₹75,000 से अधिक न हो और बाद के दौर में ₹1.25 लाख से अधिक न हो।
-
उधारकर्ता की कुल ऋणग्रस्तता ₹1.25 लाख से अधिक न हो। उधारकर्ता के कुल ऋणग्रस्तता की गणना करने के दौरान शिक्षा और चिकित्सा व्यय को उससे बाहर रखा जाएगा।
-
यदि ऋण राशि ₹30,000/- से अधिक हो तो उधार लेने वाले को बिना दण्ड के पूर्व-भुगतान करने के अधिकार के साथ, ऋण की अवधि 24 महीने से कम न हो।
-
ऋण बिना कोलेटरल (संपार्श्विक जमानत) का हो।
-
उधारकर्ता की इच्छानुसार ऋण साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक किस्तों में चुकौतीयोग्य हो।
ii. व्यक्तिगत ऋणों पर ब्याज की अधिकतम सीमा : व्यक्तिगत ऋणों पर ब्याज दर 1 अप्रैल 2014 से आस्तियों के अनुसार पांच सबसे बड़े वाणिज्य बैंकों की औसत आधार दर को वार्षिक 2.75 से गुणा का फल अथवा निधियों की लागत और मार्जिन की उच्चतम सीमा का जोड़, इनमें से जो भी कम हो, होगी। आधार दर का औसत भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सूचित किया जाएगा।
iii. ऋणों के मूल्य निर्धारण में केवल तीन घटक शामिल किए जाने हैं यथा (क) प्रोसेसिंग शुल्क जो सकल ऋण राशि के 1 प्रतिशत से अधिक न हो, (ख) ब्याज प्रभार और (ग) बीमा प्रीमियम।
iv. प्रोसेसिंग शुल्क को मार्जिन कैप या ब्याज की अधिकतम सीमा में शामिल नहीं करना है।
v. केवल बीमा की वास्तविक लागत अर्थात उधारकर्ता तथा पति/ पत्नी के लिए जीवन, स्वास्थ्य और पशुधन के समूह बीमा की वास्तविक लागत ही वसूली जाए; प्रशासनिक प्रभार आईआरडीए के दिशा-निर्देशों के अनुसार वसूल किए जाए।
vi. विलंबित भुगतान हेतु कोई दंड न हो।
vii. किसी प्रकार की जमानत जमाराशि/ मार्जिन न ली जाए।
15.3 एनबीएफसी द्वारा मूलत: निर्मित प्रतिभूतिकृत आस्तियों में बैंकों द्वारा किए गए निवेश जिनमें निहित आस्तियां स्वर्ण आभूषण की जमानत पर होती हैं, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र स्थिति के लिए पात्र नहीं हैं।
16. सीधे एसाइनमेंट/ आउटराइट खरीद के माध्यम से आस्तियों का अंतरण
(i) बैंकों द्वारा एसाइनमेंट/ आस्तियों के समूह की आउटराइट खरीद जो ‘अन्य’ श्रेणी को छोड़कर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की विभिन्न श्रेणियों को ऋण का द्योतक है तथा बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा लघु वित्त बैंकों के लिए जारी परिचालनात्मक दिशानिर्देश पर जारी दिनांक 6 अक्तूबर 2016 के परिपत्र बैंविवि.एनबीडी.सं.26/16.13.218/ 2016-17 के पैरा 1.9 में विनिर्दिष्ट निबंधनों एवं शर्तों के अधीन अंतर्निहित आस्तियों के आधार पर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों में वर्गीकरण के लिए पात्र हैं, बशर्ते :
(क) बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा सृजित आस्तियां प्रतिभूतिकरण के पहले तथा प्रतिभूतिकरण के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों को पूरा करने के साथ प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र अग्रिमों के रूप में वर्गीकृत किए जाने की पात्र है।
(ख) इस प्रकार खरीदी जाने वाली पात्र ऋण आस्तियों का निपटान चुकौती को छोड़कर किसी अन्य रूप से नहीं किया जाना चाहिए।
(ग) मूल संस्था द्वारा अंतिम उधारकर्ता से लिया जानेवाला सर्वसमावेशक ब्याज खरीदने वाले बैंक की एमसीएलआर और वार्षिक 8 प्रतिशत से अधिक न हो।
एमएफआई से पात्र प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के एसाइनमेंट/ आउटराइट खरीद, इस परिपत्र के पैरा 15 (ख) (i से vii) में उल्लेखित किए गए अनुसार, इस उच्चतम ब्याज सीमा से छूट प्राप्त हैं क्योंकि मार्जिन और ब्याज दर पर अलग से उच्चतम सीमाएं हैं।
(ii) बैंकों/ वित्तीय संस्थाओं से प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत करने के लिए ऋण आस्तियों की आउटराइट खरीद करने पर बैंक को अंतिम प्राथमिकता-प्राप्त उधारकर्ता को वास्तविक रूप में वितरित सांकेतिक राशि की सूचना देनी चाहिए और न कि विक्रेता को अदा की गई प्रीमियम राशि की।
(iii) बैंकों द्वारा एनबीएफसी के साथ किए जाने वाले क्रय/ एसाइनमेंट/ निवेश लेनदेन जिसमें निहित आस्तियां स्वर्ण आभूषणों की जमानत पर लिए गए ऋण हैं, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र स्थिति के लिए पात्र नहीं हैं।
17. अंतर बैंक सहभागिता प्रमाणपत्र
बैंकों द्वारा जोखिम शेयरिंग आधार पर खरीदे गए अंतर बैंक सहभागिता प्रमाणपत्र (आईबीपीसी), प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकरण के लिए पात्र हैं बशर्तें, अंतर्निहित आस्तियां प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने की पात्र हों और बैंक आईबीपीसी पर भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों तथा ऋण जोखिम अंतरण और पोर्टफोलियो खरीद/ बिक्री पर बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा लघु वित्त बैंकों के लिए दिनांक 6 अक्तूबर 2016 को परिपत्र बैंविवि.एनबीडी.सं.26/16.13.218/2016-17 के माध्यम से जारी परिचालनात्मक दिशानिर्देश के पैरा 1.9 में विनिर्दिष्ट निबंधनों एवं शर्तों को पूरा करते हों।
आईबीपीसी लेनदेनों की निहित आस्तियां पैरा 8 के अनुसार, ‘निर्यात ऋण’ के अंतर्गत वर्गीकरण के लिए पात्र होने के संबंध में, बैंकों द्वारा, जोखिम शेयरिंग आधार पर, खरीदे गए आईबीपीसी को खरीदने वाले बैंक की दृष्टि से प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र वर्गीकरण के लिए वर्गीकृत किया जाए। तथापि, ऐसी स्थिति में इस संबंध में दिशानिर्देशों के अनुसार जारी करने वाले और खरीदने वाले बैंक द्वारा आवश्यक समुचित सावधानी लिए जाने के अलावा जारी करने वाला बैंक प्रमाणित करेगा कि निहित आस्ति ‘निर्यात ऋण’ है।
18. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्र
बैंकों द्वारा खरीदे गए बकाया प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्र, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकरण के लिए पात्र हैं बशर्तें, आस्तियां बैंकों द्वारा मूलत: बनाई गई हों, और प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र अग्रिमों के रूप में वर्गीकृत किए जाने की पात्र हों और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा दिनांक 7 अप्रैल 2016 के परिपत्र विसविवि.केंका.प्लान.बीसी.23/04.09.01/2015-16 द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्र पर जारी दिशानिर्देशों तथा ऋण जोखिम अंतरण और पोर्टफोलियो खरीद/ बिक्री पर बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा दिनांक 6 अक्तूबर 2016 को जारी परिपत्र बैंविवि.एनबीडी.सं.26/16.13.218/2016-17 के पैरा 1.9, में विनिर्दिष्ट निबंधनों एवं शर्तों को पूरा करते हों।
19. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार से संबंधित लक्ष्य की निगरानी:
प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को निरंतर ऋण प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए बैंकों द्वारा किए जाने वाले अनुपालन पर ‘तिमाही’ आधार पर निगरानी रखी जाएगी। संलग्न रिपोर्टिंग फार्मेट के अनुसार बैंकों को तिमाही और वार्षिक अंतराल के आधार पर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र अग्रिमों पर आंकड़े प्रस्तुत करने होंगे।
20. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य को न प्राप्त करना
20.1 प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार में कमी वाले लघु वित्त बैंकों को रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्णीत प्रकार से नाबार्ड के पास स्थापित ग्रामीण बुनियादी विकास निधि (आरआईडीएफ) और नाबार्ड/ एनएचबी/ सिडबी/ मुद्रा लि. के पास स्थापित अन्य निधियों में अंशदान करने के लिए राशियां आवंटित की जाएंगी। उपलब्धि की गणना वित्तीय वर्ष के अंत में प्रत्येक तिमाही के अंत में औसत प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य/ उप-लक्ष्यों की प्राप्ति पर आधारित होगी।
20.2 प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य की उपलब्धि की गणना करते समय हर तिमाही के लिए कमी/ अधिक उधार पर अलग से निगरानी रखी जाएगी। वर्ष के अंत में सभी तिमाहियों का सामान्य औसत निकाला जाएगा और समग्र कमी/अधिकता की गणना के लिए उसे ध्यान में रखा जाएगा। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के उप-लक्ष्यों की उपलब्धि की गणना करते समय इसी पद्धति का पालन किया जाएगा। (अनुबंध में उदाहरण दिया गया है)
20.3 आरआईडीएफ अथवा किसी अन्य निधियों में बैंक के अंशदान पर ब्याज दरें, जमाराशियों की अवधि, आदि समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित की जाएगी।
20.4 भारतीय रिज़र्व बैंक के बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग द्वारा सूचित गलत वर्गीकरण को, बाद के वर्षों में विभिन्न निधियों के लिए आवंटन हेतु, उस वर्ष की उपलब्धि से उस राशि तक समायोजित/ घटाया जाएगा जहां तक अवर्गीकरण/ गलत वर्गीकरण हुआ हो।
20.5 प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य, उप-लक्ष्य पूरे न करने को विभिन्न प्रयोजनों के लिए विनियामक क्लियरेंस/ अनुमोदन देते समय विचार में लिया जाएगा ।
21. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को ऋण हेतु सामान्य दिशानिर्देश
लघु वित्त बैंकों से अपेक्षित है कि वे प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत अग्रिमों की सभी श्रेणियों के संबंध में निम्नलिखित सामान्य दिशानिर्देशों का पालन करें।
i. ब्याज की दर
बैंक ऋणों पर ब्याज दरें हमारे बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा समय-समय पर जारी निदेशों के अनुसार रहेगी।
ii. सेवा प्रभार
₹25,000/- तक के प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों पर ऋण संबंधी और तदर्थ सेवा प्रभार/ निरीक्षण प्रभार नहीं लगाया जाना चाहिए। एसएचजी / जेएलजी के पात्र प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के मामले में, यह सीमा समग्र समूह की अपेक्षा हर सदस्य पर लागू होगी।
iii. प्राप्ति, स्वीकृति/ नामंजूर/ संवितरण रजिस्टर
बैंक द्वारा एक रजिस्टर/ इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड बनाया जाए जिसमें प्राप्ति की तारीख, मंजूरी/ नामंजूरी/ संवितरण आदि का कारणों सहित उल्लेख किया जाए। सभी निरीक्षणकर्ता एजेन्सियों को उक्त रजिस्टर/ इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड उपलब्ध करवाया जाए।
iv. ऋण आवेदनों की पावती जारी करना
बैंकों द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के अंतर्गत प्राप्त ऋण आवेदनों की पावती दी जाए। बैंक बोर्ड एक ऐसी समय सीमा निर्धारित करें जिसके अंतर्गत बैंक आवेदकों को अपना निर्णय लिखित रूप में सूचित करेंगे।
परिशिष्ट
समेकित परिपत्रों की सूची
अनुबंध
प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य की उपलब्धि – कमी/ अधिकता की गणना
उदाहरण :
संशोधित पीएसएल दिशानिर्देशों के अंतर्गत वित्तीय वर्ष के अंत में प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य की उपलब्धि – कमी/ अधिकता की गणना के लिए अपनाई जानेवाली पद्धति का उदाहरण टेबल संख्या 1 और 2 में प्रस्तुत है।
(टेबल 1) |
राशि करोड़ ₹ में |
समाप्त तिमाही |
पीएसएल लक्ष्य |
प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र - बकाया राशि |
कमी/अधिकता |
जून |
329615 |
316938 |
-12677 |
सितंबर |
308826 |
311945 |
3119 |
दिसंबर |
317694 |
319291 |
1596 |
मार्च |
324560 |
321347 |
-3213 |
कुल |
1280698 |
1269522 |
-11175 |
औसत |
320174 |
317380 |
-2793 |
(टेबल 2) |
राशि करोड़ ₹ में |
समाप्त तिमाही |
पीएसएल लक्ष्य |
प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र बकाया राशि |
कमी/अधिकता |
जून |
329615 |
327967 |
-1648 |
सितंबर |
308826 |
312378 |
3551 |
दिसंबर |
317694 |
327225 |
9530 |
मार्च |
324560 |
321315 |
-3245 |
कुल |
1280698 |
1288886 |
8188 |
औसत |
320174 |
322221 |
2047 |
टेबल – 1 में दिए गए उदाहरण में, वित्तीय वर्ष के अंत में बैंक में समग्र कमी ₹2793 करोड़ है। टेबल – 2 में, वित्तीय वर्ष के अंत में बैंक में समग्र अधिकता 2047 करोड़ है।
प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के उप-लक्ष्यों की तिमाही और वार्षिक उपलब्धि की गणना के लिए इसी पद्धति का पालन किया जाएगा।
नोट : प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य/ उप-लक्ष्य की प्राप्ति की गणना पूर्ववर्ती वर्ष की तदनुरूपी तारीख के एएनबीसी या तुलनपत्र वाह्य एक्सपोज़र के समतुल्य ऋण राशि, जो भी अधिक हो, के आधार पर की जाएगी। |