भा.रि.बैंक/विमुवि/2024-2025/121
विमुवि मास्टर निदेश सं.15/2024-25
24 जुलाई 2024
सेवा में
सभी श्रेणी-I प्राधिकृत व्यापारी बैंक
महोदया/ महोदय
मास्टर निदेश - पारदेशीय निवेश
भारत में निवासी व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले पारदेशीय निवेश भारत सरकार द्वारा जारी दिनांक 22 अगस्त 2022 की अधिसूचना सं.जीएसआर.646 (ई) द्वारा अधिसूचित विदेशी मुद्रा प्रबंध (पारदेशीय निवेश) नियमावली, 2022 (ओआई नियमावली) एवं दिनांक 22 अगस्त 2022 की अधिसूचना सं. फेमा 400/2022-आरबी द्वारा अधिसूचित विदेशी मुद्रा प्रबंध (पारदेशीय निवेश) विनियमावली, 2022 (ओआई विनियमावली) के प्रावधानों द्वारा अभिशासित होते हैं।
2. ओआई नियमावली के नियम 3 के अनुसार, रिज़र्व बैंक के पास इन नियमों को अभिशासित करने और इस नियमावली के तहत किए गए प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए विनियमावली एवं निदेश/ परिपत्र जारी करने, जैसा भी वह आवश्यक समझे, की शक्ति है। अतः रिज़र्व बैंक विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (फेमा), 1999 की धारा 11 के अंतर्गत प्राधिकृत व्यक्तियों को निदेश जारी करता है। इन निदेशों में वे तौर-तरीके निर्धारित किए गए हैं कि जिनके अनुसार प्राधिकृत व्यक्तियों द्वारा अपने ग्राहकों/ घटकों के साथ विदेशी मुद्रा कारोबार किया जाएगा ताकि ओआई नियमावली और ओआई विनियमावली को कार्यान्वित किया जा सके।
3. भारत में निवासी व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले पारदेशीय निवेश पर जारी अनुदेशों को इस मास्टर निदेश में संकलित किया गया है। इस मास्टर निदेश के मूल में निहित परिपत्रों की सूची अनुबंध 1 पर दी गयी है। पारदेशीय निवेश की रिपोर्टिंग से संबंधित अनुदेश 01 जनवरी 2016 के 'विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के अंतर्गत रिपोर्टिंग' पर मास्टर निदेश सं.18 के भाग VIII में दिए गए हैं। प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-1 बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित घटकों/ ग्राहकों को अवगत कराएं।
4. यह मास्टर निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (फेमा), 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और 11(1) के अंतर्गत जारी किया गया है और यह किसी अन्य विधि के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/ अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता है।
भवदीय
(एन. सेंथिल कुमार)
महाप्रबंधक
मास्टर निदेश - पारदेशीय निवेश
ये निदेश मास्टर निदेश- पारदेशीय निवेश कहे जाएंगे जिन्हें विदेशी मुद्रा प्रबंध (पारदेशीय निवेश) नियमावली, 2022 (जिसे इसके बाद "ओआई नियमावली" कहा जाएगा) और विदेशी मुद्रा प्रबंध (पारदेशीय निवेश) विनियमावली, 2022 (जिसे इसके बाद ओआई विनियमावली कहा जाएगा), में निहित प्रावधानों के साथ पढ़ा जाएगा।
भाग-I परिभाषाएँ और संबंधित ब्योरा
1. इन निदेशों में प्रयुक्त विभिन्न शब्दों/ संकल्पनाओं की परिभाषाओं के लिए ओआई नियमावली और ओआई विनियमावली का संदर्भ लिया जाए। तथापि, प्रमुख शब्दों को नीचे पुनः उद्धृत करते हुए विस्तारपूर्वक समझाया गया है:
(i) "विदेशी संस्था" संयुक्त उद्यम (जेवी) और पूर्ण स्वामित्ववाली सहायक कंपनी (डब्ल्यूओएस) की संकल्पना को नई व्यवस्था में 'विदेशी संस्था' नामक नई संकल्पना द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है, जिसका अर्थ भारत के बाहर, जिसमें अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र भी शामिल है, गठित या पंजीकृत अथवा निगमित कोई संस्था है, जिसकी देयता सीमित हो। 'सीमित देयता' का तात्पर्य सीमित देयता कंपनी, सीमित देयता साझेदारी, आदि जैसी संरचना से है जिसमें भारत में निवासी व्यक्ति की देयता स्पष्ट और सीमित हो। कोई विदेशी संस्था यदि निवेश निधि या व्हीकल है जो मेजबान क्षेत्राधिकार के वित्तीय क्षेत्र विनियामक द्वारा विधिवत रूप से विनियमित है और उसे भारत के बाहर ट्रस्ट के रूप में स्थापित किया गया है, तो उन मामलों में, भारत में निवासी व्यक्ति की देयता सीमित और स्पष्ट होते हुए निधि में किसी भी रूप में अंशदान से अधिक नहीं होगी। इसके अलावा, ऐसी निधि का ट्रस्टी भारत के बाहर निवासी व्यक्ति होगा।
(ii) "रणनीतिक क्षेत्र" में ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधन क्षेत्र जैसे तेल, गैस, कोयला, खनिज अयस्क, पनडुब्बी केबल प्रणाली और स्टार्टअप तथा कोई भी अन्य क्षेत्र या उप-क्षेत्र जिसे कि केंद्र सरकार द्वारा उचित समझा जाए, शामिल होंगे। सीमित देयता संरचना संबंधी उक्त प्रतिबंध ऐसी विदेशी संस्था के लिए अनिवार्य नहीं होगा जिसका मुख्य क्रियाकलाप किसी रणनीतिक क्षेत्र से संबंधित है। तदनुसार, इन क्षेत्रों में अनिगमित संस्थाओं में भी पारदेशीय प्रत्यक्ष निवेश (ओडीआई) किया जा सकता है। भारतीय संस्था को साझा स्वामित्व के आधार पर पनडुब्बी केबल सिस्टम के निर्माण और रखरखाव के लिए अन्य अंतरराष्ट्रीय ऑपरेटरों के साथ किसी संघ में भाग लेने की भी अनुमति है। एडी बैंक यह सुनिश्चित कर लेने पर कि ऐसी भारतीय संस्थाओं ने जहां भी आवश्यक हो, सक्षम प्राधिकारी से आवश्यक अनुमति ले ली है, रणनीतिक क्षेत्रों में ओडीआई के लिए विप्रेषणों को अनुमति दे सकते हैं।
(iii) "नियंत्रण" का अर्थ है अधिकांश निदेशकों को नियुक्त करने का अधिकार या प्रबंधन अथवा नीतिगत निर्णयों को नियंत्रित करने का अधिकार जो किसी व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा जो व्यक्तिगत रूप से या सामूहिक रूप से, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, कार्य कर रहे हों, जिसमें वे भी शामिल हैं जो अपनी शेयरधारिता अथवा प्रबंधन अधिकारों अथवा शेयरधारकों के करारों या मतदान करारों के बल पर उक्त विदेशी संस्था में दस प्रतिशत या अधिक का मतदान अधिकार अथवा किसी अन्य प्रकार का अधिकार रखते हैं।
(iv) "भारतीय संस्था" भारतीय पक्ष (आईपी) की संकल्पना जिसमें विदेशी संस्था में भारत के सभी निवेशकों को सम्मिलित रूप से आईपी माना जाता था, को नई व्यवस्था में 'भारतीय संस्था' से प्रतिस्थापित किया गया है, जिसमें प्रत्येक निवेशक संस्था को अलग-अलग रूप से भारतीय संस्था माना जाएगा। भारतीय संस्था का अर्थ होगा कोई कंपनी जो कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत परिभाषित है अथवा तत्समय लागू किसी कानून के तहत निगमित निकाय या सीमित देयता भागीदारी अधिनियम, 2008 के तहत विधिवत रूप से स्थापित कोई सीमित देयता भागीदारी अथवा भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 के तहत पंजीकृत कोई साझेदारी फर्म।
(v) "अनुषंगी"/"उप अनुषंगी (एसडीएस)" विदेशी संस्था की 'अनुषंगी'/ 'उप अनुषंगी' का आशय किसी ऐसी संस्था से है जिसमें उस विदेशी संस्था का नियंत्रण हो और उस विदेशी संस्था की ऐसी अनुषंगी या उप-अनुषंगी की संरचना को विदेशी संस्था के लिए विहित संरचनात्मक अपेक्षाओं का पालन करती हो, यथा: ऐसी अनुषंगी/उप-अनुषंगी की संरचना में देयता सीमित होगी जहां विदेशी संस्था का मुख्य क्रियाकलाप रणनीतिक क्षेत्र से संबंधित नहीं है। विदेशी संस्था की निवेशग्राही संस्थाएं जहां ऐसी विदेशी संस्था का नियंत्रण नहीं है (जैसा कि ऊपर परिभाषित किया गया है) उन्हें उप-अनुषंगी के रूप में नहीं माना जाएगा और इसलिए अब से उनकी रिपोर्टिंग की आवश्यकता नहीं होगी।
(vi) "पारदेशीय प्रत्यक्ष निवेश (ओडीआई)" का अर्थ है (i) किसी विदेशी संस्था की असूचीबद्ध इक्विटी पूंजी का अधिग्रहण, या उसके बहिर्नियमों के एक भाग के रूप में अंशदान, या (ii) किसी सूचीबद्ध विदेशी संस्था की चुकता इक्विटी पूँजी के 10% या उससे अधिक में निवेश, या (iii) नियंत्रण के साथ निवेश, जहाँ किसी सूचीबद्ध विदेशी संस्था की चुकता इक्विटी पूंजी के 10% से कम राशि का निवेश हो;
स्पष्टीकरण: जब किसी विदेशी संस्था की इक्विटी पूंजी में निवेश को ओडीआई के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, ऐसे निवेश को ओडीआई के रूप में माना जाना जारी रहेगा, भले ही यह निवेश चुकता इक्विटी पूंजी के 10% से नीचे के स्तर पर आ जाए या वह व्यक्ति उस विदेशी संस्था पर अपना नियंत्रण खो दे.
(vii) "इक्विटी पूंजी" का अर्थ है इक्विटी शेयर या स्थायी पूंजी या लिखत जो अप्रतिदेय हो अथवा किसी विदेशी संस्था की ऋण से भिन्न पूंजी में अंशदान जो पूरी तरह से और अनिवार्य रूप से परिवर्तनीय लिखतों के रूप में हो। तदनुसार, कोई लिखत जो प्रतिदेय हो अथवा अपरिवर्तनीय हो अथवा वैकल्पिक रूप से परिवर्तनीय हो तो उसे ओआई नियमावली/ विनियमावली / निदेशों के प्रयोजन से कर्ज़ माना जाएगा।
(viii) "वित्तीय प्रतिबद्धता" का अर्थ है भारत में निवासी व्यक्ति द्वारा ओडीआई, पारदेशीय पोर्टफोलियो निवेश से भिन्न ऋण और इसके द्वारा सभी विदेशी संस्थाओं को दी गयी गैर-निधि-आधारित सुविधाओं के माध्यम से सभी विदेशी संस्थाओं में किए गये निवेश की समग्र राशि। भारतीय संस्था निम्नलिखित शर्तों के अधीन विदेशी संस्था को उधार दे सकती है अथवा विदेशी संस्था द्वारा जारी की गई ऋण लिखतों में निवेश कर सकती है अथवा विदेशी संस्था, जिसमें ऐसी भारतीय संस्था की पारदेशीय एसडीएस शामिल हैं, को या उसकी ओर से, गैर-निधि-आधारित प्रतिबद्धता कर सकती है; यथा :-
(ए) भारतीय संस्था ओडीआई करने के लिए पात्र है;
(बी) भारतीय संस्था ने विदेशी संस्था में ओडीआई किया है;
(सी) भारतीय संस्था ने ऐसी वित्तीय प्रतिबद्धता के समय या उससे पूर्व उस विदेशी संस्था में नियंत्रणाधिकार प्राप्त कर लिया है।
(ix) "पारदेशीय पोर्टफोलियो निवेश (ओपीआई)" का अर्थ है विदेशी प्रतिभूतियों में ओडीआई से भिन्न निवेश। इस संबंध में निम्नलिखित प्रावधान भी किया जाता है :
ए) निम्नलिखित में ओपीआई नहीं किया जाएगा :
i) असूचीबद्ध ऋण लिखतो; अथवा
ii) भारत में निवासी ऐसे व्यक्ति, जो आईएफएससी में स्थित नहीं है, द्वारा जारी कोई प्रतिभूति; अथवा
iii) कोई डेरिवेटिव जब तक कि रिज़र्व बैंक द्वारा अन्यथा अनुमति न दी गई हो; अथवा
iv) बुलियन डिपॉजिटरी रसीद (बीडीआर) सहित कोई भी कमोडिटी।
(बी) भारत में निवासी व्यक्ति द्वारा सूचीबद्ध संस्था की सूचीबद्ध इक्विटी पूँजी में किया गया ओपीआई उक्त संस्था के असूचीबद्ध हो जाने के बाद भी ओपीआई तब तक माना जाता रहेगा जब तक उसमें कोई और निवेश न किया जाए, अर्थात उस विदेशी संस्था के असूचीबद्ध होने के बाद यदि आगे उसकी इक्विटी पूंजी में निवेश किया गया तो वह ओडीआई के रूप में किया जाएगा।
(सी) सूचीबद्ध भारतीय कंपनी ओआई नियमावली की अनुसूची-II के अनुसार ओपीआई, जिसमें पुनर्निवेश का माध्यम भी शामिल है, कर सकती है। 'पुनर्निवेश' से तात्पर्य है कि ओपीआई प्रतिफल राशि को संप्रत्यावर्तन संबंधी प्रावधानों से तब तक छूट प्राप्त होगी जब तक कि अधिसूचना सं. फेमा. 9(आर)/2015-आरबी, यथा, विदेशी मुद्रा प्रबंध (विदेशी मुद्रा की वसूली, संप्रत्यावर्तन और सुपुर्दगी) विनियमावली, 2015 में निर्दिष्ट वसूली या संप्रत्यावर्तन की निर्धारित समयावधि के भीतर उसका पुनर्निवेश किया गया हो।
(डी) असूचीबद्ध भारतीय संस्था ओआई नियमावली की अनुसूची-II के प्रावधानों के अनुसार ओपीआई कर सकती है।
(ई) 1मेजबान क्षेत्राधिकार के वित्तीय क्षेत्र विनियामक द्वारा विधिवत विनियमित किसी भी पारदेशीय निवेश निधि की यूनिटों या किसी भी अन्य लिखत (चाहे उसे कोई भी नाम दिया गया हो) में निवेश (प्रायोजक अंशदान सहित) विदेशी पोर्टफोलियो निवेश माना जाएगा। तदनुसार, आईएफएससी से भिन्न क्षेत्राधिकारों में, सूचीबद्ध भारतीय कंपनियां और निवासी व्यष्टि इस तरह का निवेश कर सकेंगे। यद्यपि, आईएफएससी में, कोई असूचीबद्ध भारतीय इकाई भी ओआई नियमावली की अनुसूची V के अंतर्गत किसी निवेश निधि या व्हीकल द्वारा जारी की गयी यूनिटों या किसी भी अन्य लिखत (चाहे उसे कोई भी नाम दिया गया हो) में ऐसा ओपीआई यथालागू सीमा तक कर सकती है।
स्पष्टीकरण: इस पैराग्राफ के प्रयोजन के लिए 'विधिवत विनियमित पारदेशीय निवेश निधि' के अंतर्गत ऐसी निधियाँ भी शामिल होंगी जिनकी गतिविधियाँ मेजबान क्षेत्राधिकार के वित्तीय क्षेत्र विनियामक द्वारा किसी निधि प्रबंधक के माध्यम से विनियमित की जाएँगी।"
(एफ़) निवासी व्यष्टि ओआई नियमावली की अनुसूची-III के अनुसार उदारीकृत विप्रेषण योजना (एलआरएस) में निर्धारित समग्र सीमा के भीतर ओपीआई कर सकते हैं। निवासी व्यष्टि द्वारा किसी विदेशी संस्था के स्वेद इक्विटी शेयर या न्यूनतम अर्हता शेयर के माध्यम से अथवा कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजना (ईएसओपी)/ कर्मचारी लाभ योजना के तहत नियंत्रण के बिना चुकता पूंजी/ स्टॉक के 10% तक अधिगृहीत किए गए शेयर अथवा हित, चाहे वे सूचीबद्ध हो या असूचीबद्ध, को ओपीआई के रूप में माना जाएगा।
(जी) सेबी में पंजीकृत म्यूचुअल फंडों (एमएफ), जोखिम पूंजी निधियों (वीसीएफ) और वैकल्पिक निवेश निधियों (एआईएफ) द्वारा ओआई नियमावली की अनुसूची-IV के अनुसार और सेबी द्वारा निर्धारित मानकों के तहत प्रतिभूतियों में किए गए किसी भी प्रकार के पारदेशीय निवेश को ओपीआई माना जाएगा।
(x) "सूचीबद्ध इक्विटी पूंजी अथवा लिखत" जहां कहीं भी इन निदेशों या ओआई नियमावली अथवा ओआई विनियमावली में पारदेशीय सूचीबद्ध इक्विटी पूंजी या सूचीबद्ध लिखतों का संदर्भ आएगा, उसका आशय यही होगा कि ऐसी इक्विटी पूंजी या लिखत, जैसा भी मामला हो, भारत के बाहर किसी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हों।
भाग II - सामान्य प्रावधान
2. ओआई नियमावली/ विनियमावली/ निदेशों की प्रयोज्यता से छूट
ओआई नियमावली के नियम-4 के अनुसार भारत के बाहर किए गए किसी भी निवेश पर ओआई नियमावली/ विनियमावली/ निदेश में निहित प्रावधान लागू नहीं होंगे तथा इस प्रकार के निवेश के अधिग्रहण या अंतरण के लिए सामान्य अनुमति होगी।
3. पारदेशीय निवेश करने की अनुमति
(1) भारत में निवासी व्यक्ति ओआई नियमावली/ विनियमावली और इन निदेशों में निहित प्रावधानों के अधीन भारत के बाहर सामान्य अनुमति/ स्वचालित मार्ग के तहत निवेश या वित्तीय प्रतिबद्धता का अधिग्रहण अथवा अंतरण कर सकता है। तदनुसार, किसी विदेशी संस्था, जो वास्तविक व्यावसायिक क्रियाकलापों में संलग्न हो, में सीधे या एसडीएस/ विशेष प्रयोजन व्हीकल (एसपीवी) के जरिये पारदेशीय निवेश किया जा सकता है।
(2) वित्तीय प्रतिबद्धता करने की इच्छा रखने वाला व्यक्ति निवेश/ विप्रेषण हेतु "मास्टर निदेश- विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के तहत रिपोर्टिंग" में दिये गए फॉर्म एफसी को विधिवत रूप से भरकर व उसके साथ सभी अपेक्षित दस्तावेजों को संलग्न करके अपने नामित एडी बैंक को आवेदन करेगा।
(3) अनुमोदन मार्ग के तहत निवेश करने संबंधी किसी भी मामले में, आवेदक अपने नामित एडी बैंक से संपर्क करेगा और संबंधित एडी बैंक उक्त मामले की उचित जांच करके अपनी सिफ़ारिशों के साथ वह प्रस्ताव रिज़र्व बैंक को अग्रेषित करेगा। अनुमोदन मार्ग के तहत पारदेशीय निवेश हेतु आवेदन ऑनलाइन रिपोर्टिंग के अलावा, भौतिक रूप में/ ईमेल के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक रूप में रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करना पहले की तरह जारी रहेगा। नामित एडी बैंक इस प्रकार का प्रस्ताव भेजने से पूर्व फॉर्म एफसी के संबंधित खंडों को ऑनलाइन ओआईडी एप्लिकेशन में प्रस्तुत करेगा और अपने प्रस्ताव में ओआईडी एप्लिकेशन से उत्पन्न ट्रैंज़ैक्शन नंबर का ब्योरा देगा। प्रस्ताव के साथ निम्नलिखित दस्तावेज प्रस्तुत किए जाएंगे:
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लेनदेन की पृष्ठभूमि सहित उसका संक्षिप्त ब्योरा
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मौजूदा फेमा प्रावधानों का उल्लेख करते हुए अनुमोदन प्राप्त करने का/के कारण।
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निम्नलिखित के संबंध में नामित एडी बैंक की टिप्पणियां:
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विदेशी संस्था की प्रथम दृष्टया व्यवहार्यता;
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इस तरह के निवेश से भारत को होने वाले संभाव्य लाभ का ब्योरा;
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भारतीय संस्था और विदेशी संस्था की वित्तीय स्थिति और कारोबार का ट्रैक रिकॉर्ड;
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कोई अन्य महत्वपूर्ण अवलोकन।
- नामित प्राधिकृत व्यापारी बैंक अपनी सिफारिशें भेजते समय इस बात की पुष्टि करें कि प्रस्तावित लेनदेन हेतु आवेदक के निदेशक बोर्ड का संकल्प या उसके समकक्ष किसी अन्य बॉडी द्वारा पारित संकल्प, जो भी लागू हो, प्रदान किया गया है।
- संबंधित भारतीय संस्था के संगठनात्मक ढांचे को क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर रूप से प्रस्तुत करने वाली आरेखीय आकृति जिसमें उस भारतीय संस्था की सभी अनुषंगियों को उनकी हिस्सेदारी (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष) और स्थिति (चाहे परिचालनरत कंपनी हो या एसपीवी) सहित दर्शाया गया हो।
- विदेशी संस्था के लिए मूल्यांकन प्रमाणपत्र (यदि लागू हो)।
- अन्य प्रासंगिक दस्तावेज जिन्हें ठीक से क्रमांकित, अनुक्रमित और फ्लैग किया गया हो।
प्रस्ताव निम्नलिखित पते पर प्रेषित किया जाए:
मुख्य महाप्रबंधक
भारतीय रिज़र्व बैंक
विदेशी मुद्रा विभाग
पारदेशीय निवेश प्रभाग
अमर भवन, 5 वीं मंजिल
सर पी. एम. रोड, फोर्ट
मुंबई 400001
4. केंद्र सरकार से अनुमोदन
पाकिस्तान/ अन्य क्षेत्राधिकारों, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर सूचित किया जाये, में अथवा रणनीतिक क्षेत्रों/ विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों में ओआई नियमावली के नियम 9 के अनुसार पारदेशीय निवेश/ वित्तीय प्रतिबद्धता हेतु अपने घटकों से प्राप्त आवेदनों को एडी बैंक रिज़र्व बैंक को भेजेगा ताकि उन्हें केंद्र सरकार के अनुमोदन हेतु आगे अग्रेषित किया जा सके।
5. रिज़र्व बैंक से अनुमोदन
भारतीय संस्था द्वारा एक वित्तीय वर्ष में 1 (एक) बिलियन अमेरिकी डॉलर (या उसके समतुल्य राशि) से अधिक मूल्य की वित्तीय प्रतिबद्धता करने पर रिज़र्व बैंक का पूर्वानुमोदन लेना आवश्यक है भले ही उस भारतीय संस्था की स्वचालित मार्ग के तहत की जाने वाली समग्र वित्तीय प्रतिबद्धता पात्र सीमा के भीतर हो।
6. ऋणदाता बैंक/विनियामक निकाय/जांच एजेंसी से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी)
(1) भारत में निवासी कोई भी व्यक्ति जिसका खाता अनर्जक आस्तियों (एनपीए) के रूप में श्रेणीबद्ध किया गया हो, या उसे आदतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकृत किया गया हो या वित्तीय क्षेत्र के विनियामक/ जांच एजेंसी द्वारा उसकी जांच की जा रही हो, तो ओआई नियमावली के नियम 10 के अनुसार उसे वित्तीय प्रतिबद्धता करने अथवा विनिवेश करने से पूर्व संबंधित ऋणदाता बैंक/ विनियामक निकाय/ जांच एजेंसी से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) प्राप्त करना होगा।
(2) यदि किसी भारतीय निवेशक ने खाता एनपीए श्रेणीबद्ध किए जाने या आदतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकृत किए जाने या जांच शुरू होने से पूर्व, फेमा प्रावधानों के अनुसार कोई गारंटी जारी कर दी है और बाद में इस तरह की संविदात्मक बाध्यता का पालन करना उसके लिए अनिवार्य हो, तो इन्वोकेशन के कारण होने वाले विप्रेषण को नई वित्तीय प्रतिबद्धता नहीं माना जाएगा और ऐसे मामलो में एनओसी की आवश्यकता नहीं होगी।
7. राइट्स इश्यू तथा बोनस शेयर
(1) भारत में निवासी व्यक्ति जिसने ओआई नियमावली/विनियमावली के प्रावधानों के अनुसार किसी विदेशी संस्था की इक्विटी पूंजी हासिल की है और अभी भी उसे धारित कर रहा है वह ओआई नियमावली के नियम 7 के अनुसरण में राइट्स इश्यू अथवा बोनस शेयर के जरिये इक्विटी पूंजी अर्जित कर सकता है।
(2) राइट्स के ज़रिये इस प्रकार किए गए इक्विटी पूंजी के अधिग्रहण को फॉर्म एफ़सी में रिपोर्ट करना होगा। जहां ऐसा व्यक्ति अपने राइट्स का प्रयोग नहीं करता है किंतु वह भारत में निवासी अथवा भारत के बाहर निवासी किसी अन्य व्यक्ति के पक्ष में ऐसे राइट्स का त्याग करता है, तो इस प्रकार किए गए राइट्स के त्याग के लिए रिपोर्टिंग आवश्यक नहीं होगी। इसके अलावा, बोनस शेयरों के अर्जन को नई वित्तीय प्रतिबद्धता के रूप में नहीं माना जाएगा और इसके लिए रिपोर्टिंग की आवश्यकता नहीं होगी।
8. बोली अथवा निविदा प्रक्रिया के माध्यम से किसी विदेशी संस्था का अधिग्रहण
(1) भारत में निवासी किसी पात्र व्यक्ति के अनुरोध पर एडी बैंक उसे किसी विदेशी संस्था के अधिग्रहण के लिए लगाई जाने वाली बोली या निविदा प्रक्रिया में भाग लेने के लिए बयाना राशि (ईएमडी) जमा करने हेतु विधिवत रूप से भरा गया फॉर्म ए 2 प्राप्त करने के बाद विप्रेषण की अनुमति दे सकते हैं अथवा ओआई विनियमावली के विनियम 9(5) के अनुसरण में बिड बॉण्ड गारंटी जारी कर सकते हैं। बोली जीतने पर, एडी बैंक विधिवत भरे गए फॉर्म एफसी को प्राप्त करने और ऐसी वित्तीय प्रतिबद्धता को रिपोर्ट करने के पश्चात अधिगृहीत की गई उस विदेशी संस्था हेतु आगे प्रेषण की सुविधा प्रदान कर सकते हैं।
(2) ईएमडी के लिए विप्रेषण की अनुमति देते समय एडी बैंक संबंधित भारतीय संस्था/निवेशक को यह सूचित करें कि यदि वे बोली प्रक्रिया में सफल नहीं होते हैं, तो उन्हें विप्रेषित की गई राशि का फेमा 9 (आर)/2015-आरबी के अनुसार संप्रत्यावर्तन करना होगा।
(3) बोली/ निविदा प्रक्रिया में सफल होने के बावजूद यदि भारत में निवासी व्यक्ति अपने निवेश के साथ आगे न बढ़ने का निर्णय लेता है, तो ऐसे मामलों में एडी बैंक बिड-बॉण्ड गारंटी के इन्वोकेशन या ईएमडी की ज़ब्ती की अनुमति देते समय लेनदेन की सदाशयता को सुनिश्चित करेंगे।
9. स्टार्टअप में पारदेशीय प्रत्यक्ष निवेश
ओआई नियमावली के नियम 19 (2) के अनुसार स्टार्टअप में कोई भी पारदेशीय प्रत्यक्ष निवेश दूसरों से उधार ली गई धनराशि से नहीं किया जाएगा। एडी बैंक इस प्रकार के लेनदेन की सुविधा प्रदान करने से पूर्व भारतीय संस्था/ निवेशक के सांविधिक लेखापरीक्षक/ सनदी लेखाकार से इस संबंध में आवश्यक प्रमाणपत्र प्राप्त करेंगे।
10. आस्थगित भुगतान के माध्यम से अधिग्रहण या अंतरण
(1) प्रतिफल राशि के भुगतान के आस्थगन के मामले में एडी बैंक ओआई विनियमावली के विनियमन 7 के अनुसार आस्थगन संबंधी समझौते/ दस्तावेजों से लेनदेन की सदाशयता का सत्यापन कर लें। आस्थगन की अवधि को पहले ही परिभाषित करना होगा। यदि इक्विटी पूंजी अर्जित करने हेतु संस्था के बहिर्नियम में अभिदान के बाद विप्रेषण किया जाना हो, तो जिस अवधि के भीतर इस तरह का विप्रेषण किया जाना है, उसे संबंधित समझौते/ दस्तावेजों/ यथालागू कानूनों में परिभाषित किया जाए अन्यथा विप्रेषण विदेशी संस्था के अधिग्रहण/ स्थापना पर या उससे पहले किया जाए।
(2) भारत में निवासी व्यक्ति द्वारा आस्थगित की गई प्रतिफल राशि के भुगतान के भाग को ऐसे व्यक्ति द्वारा की गई गैर-निधि आधारित वित्तीय प्रतिबद्धता माना जाएगा और उसे तदनुसार रिपोर्ट किया जाएगा। आस्थगित प्रतिफल राशि के लिए किए गये बाद के भुगतानों को गैर-निधि आधारित वित्तीय प्रतिबद्धता का इक्विटी में रूपांतरण मानते हुए उन्हें फॉर्म एफसी में रिपोर्ट किया जाएगा। मूल्यांकन, जहां भी लागू हो, मूल्य निर्धारण दिशानिर्देशों के अनुसार अग्रिम रूप से किया जाएगा।
11. भुगतान का तरीका
भारत में निवासी व्यक्ति द्वारा पारदेशीय निवेश हेतु किए जाने वाले भुगतान का तरीका ओआई विनियमावली के विनियमन 8 के अनुसार होगा। इस संबंध में निम्नलिखित शर्तें भी पूरी की जाती हों:
(i) नकद रूप में पारदेशीय निवेश की अनुमति नहीं है।
(ii) अधिसूचना सं. फेमा 10(आर)/2015-आरबी अर्थात्, विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत में निवासियों के विदेशी मुद्रा खाते) विनियमावली, 2015 के विनियम 5(बी) के अनुसार भारतीय संस्था भारत के बाहर स्थित अपनी शाखा/ कार्यालय को उसकी सामान्य कारोबारी गतिविधियों के संचालन हेतु धनराशि का विप्रेषण कर सकती है। तद्नुसार, कोई भी भारतीय संस्था भारत के बाहर स्थित अपने कार्यालयों/शाखाओं को पारदेशीय निवेश के लिए विप्रेषण नहीं करेगी।
(iii) भारत में निवासी व्यक्ति ओआई नियमावली/ विनियमावली के तहत अनुमत वित्तीय प्रतिबद्धता के अलावा किसी विदेशी संस्था की ओर से कोई भुगतान नहीं करेगा।
(iv) नेपाल और भूटान में कोई भी निवेश/ वित्तीय प्रतिबद्धता अधिसूचना सं फेमा 14 (आर)/2016-आरबी अर्थात् विदेशी मुद्रा प्रबंध (प्राप्ति और भुगतान का तरीका) विनियमावली, 2016 के प्रावधानों के अनुसार किया जाएगा/की जाएगी। मुक्त रूप से परिवर्तनीय मुद्राओं में किए गए निवेश (या वित्तीय प्रतिबद्धता) पर प्राप्य सभी बकाया राशियों के साथ-साथ उनकी बिक्री/ समापन से प्राप्त होने वाली आगम राशि को भी केवल मुक्त रूप से परिवर्तनीय मुद्राओं में ही भारत में संप्रत्यावर्तित करना आवश्यक है।
12. मूल्य निर्धारण दिशानिर्देश
(1) पारदेशीय निवेश संबंधी लेनदेन की सुविधा प्रदान करने से पूर्व एडी बैंक ओआई नियमावली के नियम-16 के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करें। एडी बैंक द्वारा प्राप्त किए जाने वाले दस्तावेजों के संबंध में, वे अपने बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति से मार्गदर्शित होंगे, जो अन्य बातों के साथ-साथ, मूल्यांकन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत किसी मूल्य निर्धारण पद्धति के अनुसार मूल्यांकन करने का प्रावधान करती हो। एडी बैंक इन निदेशों2 के प्रकाशन की तारीख से दो महीने के भीतर इस संबंध में अपने बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति तैयार कर लें।
(2) ऐसी नीति में उन स्थितियों के लिए भी प्रावधान किए जाए जहां मूल्य निर्धारण पर जोर नहीं दिया जा सकता है, जैसे (i) विलय, समामेलन या विलगाव या परिसमापन के कारण किया गया अंतरण, जहां मूल्य भारत में लागू कानूनों और/अथवा मेजबान क्षेत्राधिकार के क़ानूनों के अनुसार किसी सक्षम न्यायालय/न्यायाधिकरण द्वारा अनुमोदित किया गया है अथवा (ii) मूल्य किसी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर आसानी से उपलब्ध है, आदि। उक्त नीति में अतिरिक्त दस्तावेजों, जैसे कि विदेशी संस्था के लेखापरीक्षित वित्तीय विवरण, आदि के लिए भी स्पष्ट रूप से प्रावधान किया जाए, जिन्हें एडी बैंकों द्वारा निवेश के बट्टे खाते डालने संबंधी मामलों में प्रामाणिकता का पता लगाने के लिए लिया जा सकता है।
13. अंतरण या परिसमापन
ओआई नियमावली के प्रावधानों के तहत इक्विटी पूंजी रखने वाला भारत में निवासी व्यक्ति ओआई नियमावली के नियम 17 के अनुसार उन निवेशों को अंतरित कर सकता है। यह स्पष्ट किया जाता है कि जहां अंतरणकर्ता को विनिवेश से पूर्व अपनी पूरी बकाया राशि को संप्रत्यावर्तित करना आवश्यक है, वहाँ इस प्रकार की अपेक्षा उन बकाया राशियों पर लागू नहीं होगी, जो इक्विटी या ऋण में निवेश के कारण उत्पन्न नहीं होती हैं, जैसे निर्यात से प्राप्य राशि, आदि।
14. पुनर्रचना
(1) भारत में निवासी व्यक्ति जिसने विदेशी संस्था में पारदेशीय प्रत्यक्ष निवेश किया है, वह ओआई नियमावली के नियम 18 के अनुसार ऐसी विदेशी संस्था द्वारा तुलनपत्र की पुनर्रचना की अनुमति दे सकता है। संचित हानियों की आनुपातिक राशि की गणना करने के लिए विदेशी संस्था की इक्विटी और ऋण दोनों में किए गए कुल निवेश को ध्यान में रखा जाएगा। हालांकि, यदि पुनर्गठन में केवल इक्विटी शामिल है, तो आनुपातिक हानियों की गणना के लिए केवल विदेशी संस्था की इक्विटी में निवेश को ध्यान में रखा जा सकता है।
(2) ओआई नियमावली के नियम-18 के अनुसार प्रस्तुत किए जाने वाले अपेक्षित प्रमाणपत्र में उस विदेशी संस्था के लेखापरीक्षित तुलनपत्र के अनुसार संचित हानियों की राशि, भारतीय संस्था/निवेशक की हिस्सेदारी के आधार पर आनुपातिक संचित हानियों की राशि, पुनर्गठन के बाद भारतीय संस्था/निवेशक के प्रति बकाया देय राशि के मूल्य में हुए ह्रास और यह कि, ऐसा ह्रास आनुपातिक संचित हानियों की राशि से अधिक नहीं है, का उल्लेख किया जाएगा।
(3) इन प्रावधानों का उपयोग वहां नहीं किया जाएगा जहां केवल भारतीय संस्था की लेखाबहियों में परिसंपत्तियों को पुनर्मूल्यांकित किया गया हो और संबंधित विदेशी संस्था के तुलनपत्र की पुनर्रचना न की गई हो।
15. किसी भारतीय संस्था द्वारा विदेश में विदेशी मुद्रा खाता खोलना
भारतीय संस्था, पारदेशीय प्रत्यक्ष निवेश के उद्देश्य से, अधिसूचना सं. फेमा 10(आर)/2015-आरबी अर्थात्, विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत में निवासियों के विदेशी मुद्रा खाते) विनियमावली, 2015 के विनियम 5(डी) के अनुसार विदेश में विदेशी मुद्रा खाता (एफ़सीए) खोल सकती है, धारित कर सकती है और उसे बनाए रख सकती है।
16. भारत में निवासी व्यक्ति के दायित्व
(1) पारदेशीय निवेश करने वाला भारत में निवासी व्यक्ति ओआई विनियमावली के विनियम 9 में वर्णित दायित्वों का पालन करेगा।
(2) भारत में निवासी व्यक्ति यदि विदेशी संस्था में इक्विटी पूंजी अर्जित करता है, जिसे ओडीआई माना गया हो, तो वह ओआई विनियमावली के विनियम 9 (1) के अनुसार अपने एडी बैंक को छह महीने के भीतर निवेश के साक्ष्य प्रस्तुत करेगा अथवा ऐसा न कर पाने की स्थिति में विदेश में विप्रेषित की गई निधियों को ऊपर उल्लिखित छह महीनों की अवधि के भीतर संप्रत्यावर्तित करेगा। नामित एडी बैंक ऐसे साक्ष्य अपने पास बनाए रखेंगे, वे आवश्यक दस्तावेजों की प्राप्ति की निगरानी करेंगे और प्राप्त दस्तावेजों की प्रामाणिकता से स्वयं संतुष्ट होंगे।
(3) आरंभिक ओडीआई करने से पूर्व "यूआईएन" संख्या प्राप्त करने हेतु नामित एडी बैंक को सभी आवश्यक दस्तावेजों सहित फॉर्म एफ़सी प्रस्तुत किया जाए। एडी बैंक यूआईएन आवंटन के लिए उचित सत्यापन के बाद ओआईडी एप्लिकेशन में उक्त ब्योरे प्रस्तुत करेगा। किसी विदेशी संस्था के लिए यूआईएन प्राप्त करने के बाद ही एडी बैंक ऐसी संस्था को प्रेषण की सुविधा प्रदान करेगा। यूआईएन के आवंटन को विदेशी संस्था में किए गए/किए जाने वाले निवेश के लिए रिज़र्व बैंक का अनुमोदन नहीं माना जाएगा। जारी किया गया यूआईएन केवल निवेश को रिकॉर्ड में लेते हुए संबंधित डेटाबेस को बनाए रखने का प्रतीक है। इसके अलावा, 01 जून 2012 से विदेशी संस्था को आवंटित यूआईएन के ब्यौरे देने वाला एक ऑटो जनरेटेड ई-मेल यूआईएन के आवंटन की पुष्टि के रूप में एडी बैंक/भारतीय निवेशक को अग्रेषित किया जाता है और रिज़र्व बैंक द्वारा इस विषय पर अब अलग से कोई पत्र जारी नहीं किया जाता है।
17. रिपोर्टिंग
(1) भारत में निवासी व्यक्ति द्वारा किए गए पारदेशीय निवेश संबंधी सभी प्रकार की रिपोर्टिंग ओआई विनियमावली के विनियम 10 के प्रावधानों के अनुसार और "मास्टर निदेश- विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के तहत रिपोर्टिंग" में दिये गए फॉर्मों और अनुदेशों के तहत, उसके नामित एडी बैंक के माध्यम से की जायेगी। रिपोर्टिंग फॉर्म रिज़र्व बैंक की वेबसाइट www.rbi.org.in से डाउनलोड किए जा सकते हैं। किसी भी अपूर्ण फाइलिंग को 'प्रस्तुतीकरण नहीं किया गया' माना जाएगा।
(2) भारतीय निक्षेपागार रसीदों (आईडीआर) के रूपांतरण के माध्यम से विदेशी प्रतिभूतियों के किसी भी प्रकार के अर्जन को ओडीआई या ओपीआई, जैसा भी लागू हो, के रूप में रिपोर्ट किया जाए।
(3) जहां सांविधिक लेखापरीक्षा लागू नहीं है, जिसमें निवासी व्यष्टि के मामले भी शामिल हैं, वहाँ वार्षिक निष्पादन रिपोर्ट (एपीआर) को किसी सनदी लेखाकार द्वारा प्रमाणित कराया जाए। यह भी स्पष्ट किया जाता है कि जहां एपीआर संयुक्त रूप से प्रस्तुत की जानी हो, वहाँ या तो अन्य निवेशकों द्वारा किसी एक निवेशक को एपीआर प्रस्तुत करने के लिए प्राधिकृत किया जा सकता है, या ऐसे व्यक्ति संयुक्त रूप से एपीआर प्रस्तुत कर सकते हैं।
(4) पारदेशीय निवेश करने वाले निवासी व्यष्टि ओआई विनियमावली में दी गई रिपोर्टिंग अपेक्षाओं का पालन करेंगे और जहां इस प्रकार के निवेश की गणना उदारीकृत विप्रेषण योजना (एलआरएस) की सीमा के तहत की जा रही हो, वहाँ वे एलआरएस के प्रावधानों के अनुसार भी रिपोर्टिंग करेंगे। ओआई नियमावली की अनुसूची-III के पैरा 2 के अनुसार जहां विदेशी प्रतिभूतियों का अर्जन विरासत में या उपहार के रूप में किया गया है, वहाँ इस प्रकार के अर्जन को एलआरएस की सीमा के तहत नहीं गिना जाएगा, अतः उसके लिए एलआरएस के अनुसार रिपोर्टिंग की आवश्यकता नहीं होगी।
18. रिपोर्टिंग में विलंब
(1) भारत में निवासी व्यक्ति ने यदि अपेक्षित फॉर्म/विवरणी/दस्तावेज प्रस्तुत/जमा करने में विलंब किया है, तो ऐसा व्यक्ति उक्त फॉर्म/विवरणी/दस्तावेज आदि प्रस्तुत/जमा कर सकता है और ओआई विनियमावली के विनियम 11 के अनुसार, नामित एडी बैंक के माध्यम से 'विलंब प्रस्तुतीकरण शुल्क (एलएसएफ)' का भुगतान कर सकता है।
(2) पारदेशीय निवेश संबंधी लेनदेन की रिपोर्टिंग में हुए विलंब के लिए एलएसएफ की गणना निम्नलिखित मैट्रिक्स के अनुसार की जाएगी:
क्र. सं. |
रिपोर्टिंग संबंधी विलंब का प्रकार |
एलएसएफ़ की राशि
(भारतीय रुपये में) |
1 |
फॉर्म ओडीआई भाग-II/ एपीआर, एफ़एलए विवरणी, फॉर्म ओपीआई, निवेश का साक्ष्य या कोई अन्य विवरणी जो विप्रेषण निधि प्रवाह को शामिल नहीं करती या कोई अन्य आवधिक रिपोर्टिंग |
7500 |
2 |
फॉर्म ओडीआई-भाग-I, फॉर्म ओडीआई-भाग-III, फॉर्म एफसी, या कोई अन्य विवरणी जो विप्रेषण निधि प्रवाह को शामिल करती है अथवा ऐसी विवरणियाँ जो गैर-निधि-आधारित लेनदेन की रिपोर्टिंग को शामिल करती हैं या लेनदेन आधारित कोई अन्य रिपोर्टिंग |
[7500 + (0.025% × A × n)] |
टिप्पणियाँ:
(ए) "n" रिपोर्ट की प्रस्तुति में हुए विलंब के वर्षों की संख्या दर्शाता है, जिसे ऊपरी दिशा में निकटतम माह में पूर्णांकित किया गया है और जो 2 दशमलव बिंदुओं तक दर्शायी गई है।
(बी) "A" विलंब से की गई रिपोर्टिंग में शामिल राशि है।
(सी) एलएसएफ प्रति विवरणी देय राशि है।
(डी) एलएसएफ की अधिकतम राशि "A" के 100 प्रतिशत तक सीमित होगी और वह निकटतम सौ तक ऊपरी दिशा में पूर्णांकित की जाएगी।
(ई) जहां एलएसएफ के भुगतान संबंधी सूचना जारी की गई हो और ऐसे एलएसएफ का भुगतान एलएसएफ़ सूचना जारी करने की तारीख से 30 दिनों के भीतर नहीं किया जाता है, तो उस सूचना को अकृत और शून्य माना जाएगा और इस अवधि के बाद प्राप्त किसी भी एलएसएफ राशि को स्वीकार नहीं किया जाएगा। यदि आवेदक बाद में उसी विलंबित रिपोर्टिंग के लिए एलएसएफ के भुगतान हेतु पुनः संपर्क करता है, तो ऐसे आवेदन की प्राप्ति की तारीख को एलएसएफ की गणना के लिए संदर्भ तिथि माना जाएगा।
(एफ़) एलएसएफ़ का विकल्प ओआई विनियमावली के तहत रिपोर्टिंग/ प्रस्तुतीकरण की निर्धारित तिथि से तीन वर्ष तक उपलब्ध होगा। एलएसएफ़ का विकल्प अधिसूचना सं फेमा 120/2004-आरबी अथवा उससे पूर्व लागू संबंधित विनियमों के तहत हुए रिपोर्टिंग/ प्रस्तुतीकरण संबंधी विलंब के लिए भी ओआई विनियमावली लागू होने की तारीख से तीन वर्ष तक उपलब्ध होगा।
(जी) भारत में निवासी व्यक्ति यदि ओआई विनियमावली अथवा उससे पूर्व लागू संबंधित विनियमों के तहत पारदेशीय निवेश के साक्ष्य प्रस्तुत करने या कोई फ़ॉर्म/विवरणी/रिपोर्ट, आदि प्रस्तुत करने के लिए उत्तरदायी है और वह विनिर्दिष्ट समयावधि में न तो ऐसी फ़ाइलिंग/प्रस्तुतीकरण करता है और न ही ओआई विनियमावली के विनियम 11 के अनुसार एलएसएफ़ के साथ ऐसी फाइलिंग/प्रस्तुतीकरण करता है तो ऐसा व्यक्ति फेमा, 1999 के तहत दंडात्मक कार्रवाई का भागी होगा।
(3) एलएसएफ़ का भुगतान "भारतीय रिज़र्व बैंक" के पक्ष में आहरित और संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय (नीचे तालिका में दी गई यूआईएन मैपिंग के अनुसार) पर देय डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से किया जाए।
क्र.सं. |
उपसर्ग सहित यूआईएन संख्या |
क्षेत्रीय कार्यालय का नाम जिसके साथ यूआईएन को मैप किया गया है। |
1. |
एएच |
क्षेत्रीय कार्यालय, अहमदाबाद |
2. |
बीजी |
क्षेत्रीय कार्यालय, बेंगलुरु |
3. |
बीएल या बीवाई या पीजे |
क्षेत्रीय कार्यालय, मुंबई |
4. |
बीएन या सीए या जीए या जीएच |
क्षेत्रीय कार्यालय, कोलकाता |
5. |
सीजी या जेएम या जेआर या केए या एनडी या पीटी या डब्ल्यूआर |
क्षेत्रीय कार्यालय, नई दिल्ली |
6. |
एचवाई |
क्षेत्रीय कार्यालय, हैदराबाद |
7. |
केओ या एमए |
क्षेत्रीय कार्यालय, चेन्नई |
19. अतिरिक्त वित्तीय प्रतिबद्धता अथवा अंतरण पर प्रतिबंध
एडी बैंक भारत में निवासी किसी व्यक्ति को विदेशी संस्था में आगे कोई जावक विप्रेषण/वित्तीय प्रतिबद्धता करने की सुविधा तब तक प्रदान नहीं करेगा जब तक कि रिपोर्टिंग में हुए किसी विलंब को नियमित नहीं कर लिया जाता। इस संबंध में ओआई विनियमावली के विनियम 12 का संदर्भ लिया जाए।
20. प्रतिबंध एवं निषेध
(1) एडी बैंक ऐसी विदेशी संस्था के संबंध में लेनदेन हेतु सुविधा प्रदान नहीं करेंगे जो ओआई नियमावली के नियम 19 (1) में वर्णित क्रियाकलापों में संलग्न है, अथवा नियम 9(2) के तहत केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित देशों/क्षेत्राधिकारों में स्थित हैं। यह स्पष्ट किया जाता है कि भारतीय रुपये से जुड़े वित्तीय उत्पादों में विदेशी मुद्रा-आईएनआर विनिमय दरों, भारतीय बाजार से जुड़े शेयर सूचकांकों आदि से जुड़े गैर-वितरण योग्य व्यापार शामिल होंगे।
(2) भारत में निवासी व्यक्ति यदि ऐसी विदेशी संस्था में वित्तीय प्रतिबद्धता करता है, जिसने ऐसी वित्तीय प्रतिबद्धता करते समय या उसके बाद किसी भी समय, चाहे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, भारत में निवेश किया है या निवेश करती है, जिसके परिणामस्वरूप अनुषंगियों के दो से अधिक स्तरों की संरचना तैयार होती है, तो ओआई नियमावली के नियम 19(3) के अनुसार ऐसे मामलों में लेनदेन की अनुमति नहीं होगी। यह प्रावधान किया जाता है कि ओआई नियमावली/ विनियमावली अधिसूचित हो जाने के पश्चात अनुषंगियों के दो या दो से अधिक स्तरों वाली मौजूदा किसी भी संरचना में आगे कोई अनुषंगी अथवा अनुषंगियों का कोई और स्तर जोड़ा नहीं जाएगा।
टिप्पणी: यह ध्यान दिया जाए कि अनुषंगी का अर्थ ओआई नियमावली में दिये गए अर्थ के अनुरूप होगा; यानी वह संस्था जिसमें किसी विदेशी संस्था का नियंत्रण (जिसमें ओआई नियमावली के अनुसार किसी संस्था में 10% या उससे अधिक की हिस्सेदारी शामिल है) है।
भाग III – विशिष्ट प्रावधान
21. भारतीय संस्था द्वारा वित्तीय प्रतिबद्धता
भारतीय संस्था, ओआई नियमावली की अनुसूची-I में दी गयी समग्र सीमा के भीतर और ओआई विनियमावली के विनियम 3 के अधीन, ओआई नियमावली की अनुसूची- I के अनुसार ओडीआई के माध्यम से वित्तीय प्रतिबद्धता, ओआई विनियमावली के विनियम 4 के अनुसार ऋण के माध्यम से वित्तीय प्रतिबद्धता और ओआई विनियमावली के विनियम 5, 6 और 7 के अनुसार गैर-निधि आधारित वित्तीय प्रतिबद्धता कर सकती है। इसके अलावा निम्नलिखित शर्तें भी पूरी की जाती हों:
(1) प्रतिभूतियों की अदला-बदली के मामले में लेनदेन के दोनों चरणों में फेमा के प्रावधानों, यथालागू, का अनुपालन किया गया हो।
(2) किसी पंजीकृत भागीदारी फर्म द्वारा विदेशी संस्था में निवेश के मामले में, अलग-अलग भागीदार फर्म के लिए और उसकी ओर से विदेशी संस्था में शेयर धारित कर सकते हैं यदि मेज़बान देश के विनियम और परिचालनगत अपेक्षाएँ इस बात की माँग करती हों।
(3) ऋण के माध्यम से वित्तीय प्रतिबद्धता [ओआई विनियमावली का विनियम 4] - ऋण के माध्यम से वित्तीय प्रतिबद्धता के लिए जावक विप्रेषण एडी बैंक द्वारा तभी किया जाएगा जब वह आवश्यक करार/दस्तावेजों के माध्यम से ऐसे लेनदेन की सदाशयता सुनिश्चित कर ले। भारतीय संस्था अपनी पारदेशीय एसडीएस को सीधे ऋण नहीं दे सकती है। साथ ही, निवासी व्यष्टि ऋण के माध्यम से वित्तीय प्रतिबद्धता नहीं कर सकता है।
(4) गारंटी के माध्यम से वित्तीय प्रतिबद्धता [ओआई विनियमावली का विनियम-5] के संबंध में प्रावधान किया जाता है कि-
(ए) निष्पादन गारंटी के मामले में, संविदा को पूर्ण किए जाने हेतु विनिर्दिष्ट समय को इसकी वैधता अवधि माना जाएगा।
(बी) ओआई नियमावली/विनियमावली के अनुसार दी गयी निष्पादन गारंटी के इन्वोकेशन के संबंध में भारत से धन-प्रेषण करने हेतु रिज़र्व बैंक से पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी।
(सी) कोई भी गारंटी, इनवोकेशन की सीमा तक गैर-निधि आधारित वित्तीय प्रतिबद्धता का हिस्सा नहीं मानी जाएगी, परंतु इस राशि को ऋण के माध्यम से वित्तीय प्रतिबद्धता माना जाएगा। ऐसे इन्वोकेशन की रिपोर्टिंग फॉर्म एफसी में करनी होगी।
(डी) गारंटी के विस्तारण को नयी वित्तीय प्रतिबद्धता नहीं माना जाएगा। हालांकि, ऐसे विस्तारण की रिपोर्टिंग फॉर्म एफसी में करनी होगी।
(ई) भारतीय संस्था की समूह कंपनी ओआई विनियमावली के अनुसार गारंटी दे सकती है यदि ऐसी समूह कंपनी ओआई नियमावली के तहत ओडीआई करने की पात्रता रखती है और इस प्रकार की गारंटी को उस समूह कंपनी की वित्तीय प्रतिबद्धता सीमा के उपयोग के उद्देश्य से गणना में लिया जाएगा और इसकी रिपोर्टिंग संबंधित समूह कंपनी द्वारा की जाएगी। निवासी व्यष्टि प्रमोटर के मामले में, इसकी गणना उस भारतीय संस्था की वित्तीय प्रतिबद्धता सीमा के उद्देश्य से की जाएगी और तदनुसार इसकी रिपोर्टिंग भारतीय संस्था द्वारा की जाएगी। भारतीय संस्था द्वारा अनुषंगी/होल्डिंग कंपनी की निवल मालियत के उपयोग की संकल्पना को अब खत्म कर दिया गया है। इसके अलावा, समूह कंपनी की वित्तीय प्रतिबद्धता सीमा की संगणना के लिए, ऐसी समूह कंपनी की भारतीय संस्था में निधि-आधारित एक्स्पोज़र या भारतीय संस्था का ऐसी समूह कंपनी में निधि-आधारित एक्सपोज़र, जैसा भी मामला हो, को ऐसी समूह कंपनी की निवल मालियत से घटाया जाएगा।
(5) गिरवी/ऋण-भार के माध्यम से वित्तीय प्रतिबद्धता [ओआई विनियमावली का विनियम 6] से संबंधित प्रावधानों को संक्षेप में नीचे प्रस्तुत किया गया है:
भारतीय संस्था द्वारा प्रतिभूति |
किसके पक्ष में |
ली गयी सुविधा |
वित्तीय प्रतिबद्धता के तहत गणना की गयी राशि |
ए) विदेशी संस्था/ भारत से बाहर उसकी एसडीएस की इक्विटी पूँजी को गिरवी रखना |
एडी बैंक अथवा भारत में स्थित सार्वजनिक वित्तीय संस्था या कोई पारदेशीय ऋणदाता |
भारतीय संस्था के लिए निधि/गैर-निधि आधारित सुविधाएँ |
शून्य |
किसी विदेशी संस्था/भारत से बाहर उसकी एसडीएस के लिए निधि/गैर-निधि आधारित सुविधाएँ |
गिरवी का मूल्य या सुविधा की राशि, जो भी कम हो |
भारत में सेबी के साथ पंजीकृत डिबेंचर ट्रस्टी |
भारतीय संस्था के लिए निधि आधारित सुविधाएँ |
शून्य |
बी) भारत में स्थित इसकी परिसम्पत्तियों (ऊपर ए में उल्लिखित के अलावा) पर ऋण-भार सृजित करना
[इसमें इसकी समूह कंपनी अथवा सहयोगी कंपनी, प्रमोटर और/अथवा निदेशक की परिसम्पत्तियाँ शामिल हैं] |
भारत में स्थित एडी बैंक अथवा सार्वजनिक वित्तीय संस्था या कोई पारदेशीय ऋणदाता |
किसी विदेशी संस्था/भारत से बाहर उसकी एसडीएस के लिए निधि/गैर-निधि आधारित सुविधाएँ |
ऋण-भार का मूल्य या सुविधा की राशि, जो भी कम हो |
पारदेशीय या भारतीय ऋणदाता |
भारतीय संस्था के लिए निधि/गैर-निधि आधारित सुविधाएँ |
Nil. |
सी) विदेशी संस्था/भारत से बाहर उसकी एसडीएस की परिसम्पत्तियों पर ऋणभार सृजित करना |
भारत में स्थित एडी बैंक अथवा भारत में स्थित सार्वजनिक वित्तीय संस्था |
किसी विदेशी संस्था/भारत से बाहर उसकी एसडीएस के लिए निधि/गैर-निधि आधारित सुविधाएँ |
ऋण-भार का मूल्य या सुविधा की राशि, जो भी कम हो |
भारतीय संस्था के लिए निधि/गैर-निधि आधारित सुविधाएँ |
शून्य |
भारत में सेबी के साथ पंजीकृत डिबेंचर ट्रस्टी |
भारतीय संस्था के लिए निधि आधारित सुविधाएँ |
शून्य |
(6) गिरवी/ ऋणभार के रूप में वित्तीय प्रतिबद्धता निम्नलिखित शर्तों के अधीन होगी:
(ए) गिरवी/ऋण-भार का मूल्य या सुविधा की राशि, जो भी कम हो, की गणना वित्तीय प्रतिबद्धता सीमा के तहत की जाएगी बशर्ते, इस सुविधा की गणना निर्धारित सीमा के तहत पहले ही न कर ली गयी हो;
(बी) पारदेशीय ऋणदाता जिसके पक्ष में ऐसी गिरवी/ऋणभार सृजित किया गया है, वह किसी ऐसे देश या क्षेत्राधिकार का नहीं होना चाहिए जिसमें ओआई नियमावली के तहत वित्तीय प्रतिबद्धता करने की अनुमति न हो;
(सी) ऐसी गिरवी/ऋणभार का सृजन/प्रवर्तन, अधिनियम या उसके तहत जारी नियमों या विनियमों, या निदेशों में किए गए संगत प्रावधानों के अनुरूप हो;
(डी) जिन परिसम्पत्तियों पर ऋणभार सृजित किया जा रहा हो, वे प्रतिभूतीकृत नहीं हैं;
(ई) यदि ऋणभार की अवधि पहले से विनिर्दिष्ट नहीं की गयी है तो वह ऐसी सुविधा (जैसे ऋण या अन्य सुविधा), जिसके लिए ऋणभार सृजित किया गया था, की अवधि की अनुरूप होगी;
(एफ) जब ऋणभार घरेलू परिसम्पत्तियों पर सृजित किया गया हो, तो बिक्री के माध्यम से ऐसी घरेलू परिसम्पत्तियों काहस्तांतरण केवल भारत में निवासी व्यक्ति को ही किया जाएगा;
(जी) जब ऋणभार सृजन के अंतर्गत किसी पारदेशीय ऋणदाता के पक्ष में भारतीय कंपनी के शेयरों को गिरवी रखा जा रहा हो, तब ऐसी गिरवी पर विदेशी मुद्रा प्रबंध (गैर-ऋण लिखत) नियमावली, 2019 के वर्तमान प्रावधान भी लागू होंगे;
(7) वित्तीय सेवा क्रियाकलाप में ओडीआई [ओआई नियमावली की अनुसूची I का पैरा 2 और अनुसूची V का पैरा 2] से संबंधित प्रावधान संक्षेप में नीचे प्रस्तुत हैं:
भारतीय संस्था |
विदेशी संस्था में ओडीआई |
ओआई नियमावली/ विनियमावली के तहत वित्तीय प्रतिबद्धता की सीमा, रिपोर्टिंग और प्रलेखीकरण के अधीन, और अन्य लागू प्रावधानों, जैसा कि नीचे दिया गया है, के अनुसार |
(ए) वित्तीय सेवा क्रियाकलाप में संलग्न |
वित्तीय सेवा क्रियाकलाप में संलग्न |
ओआई नियमावली की अनुसूची-I के पैराग्राफ 2(1) में निहित प्रावधानों के अधीन। जहाँ इस प्रकार का निवेश आईएफएससी में किया गया हो, वहाँ संबंधित वित्तीय सेवा विनियामक द्वारा अपेक्षित अनुमोदन पर निर्णय सभी दृष्टियों से पूर्ण आवेदन प्राप्त होने के 45 दिनों के भीतर लिया जाएगा और ऐसा न कर पाने की स्थिति में इसे अनुमोदित मान लिया जाएगा |
वित्तीय सेवा क्रियाकलाप में संलग्न नहीं |
संबंधित विनियामक द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अधीन |
(बी) वित्तीय सेवा क्रियाकलाप में संलग्न नहीं |
बैंकिंग या बीमा को छोड़कर वित्तीय सेवा क्रियाकलाप में संलग्न |
भारतीय संस्था पिछले तीन वर्षों में निवल लाभ अर्जित करती रही है। हालांकि, ऐसी भारतीय संस्था जो तीन-वर्षों की लाभप्रदता वाली शर्त को पूरा नहीं करती, वह इस प्रकार का ओडीआई भारत में स्थित आईएफएससी में किसी विदेशी संस्था में कर सकती है। |
सामान्य और स्वास्थ्य बीमा में संलग्न |
तीन-वर्षों की लाभप्रदता वाले मानदण्ड के अलावा, ऐसा बीमा कारोबार ऐसी भारतीय संस्था द्वारा विदेश में किए जा रहे प्रमुख क्रियाकलाप में सहायक हो। उदाहरण के लिए, चिकित्सा/अस्पताल के कारोबार में सहायक स्वास्थ्य बीमा, मोटर वाहनों के विनिर्माण/निर्यात में सहायक वाहन बीमा, आदि |
(सी) रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित बैंकों तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं द्वारा किसी भी क्षेत्र में किया जाने वाला पारदेशीय निवेश इस संबंध में रिज़र्व बैंक के संबंधित विनियामक विभाग द्वारा तय की जाने वाली अन्य शर्तों के अधीन होगा। |
(डी) विदेशी संस्था वित्तीय सेवा क्रियाकलाप में संलग्न मानी जाएगी यदि वह ऐसा क्रियाकलाप करती है, जिसे यदि भारत में किसी संस्था द्वारा किया जाता है तो उसके लिए यह अपेक्षित होता है कि वह भारत में वित्तीय क्षेत्र के विनियामक के साथ पंजीकृत या विनियमित हो। |
(8) वित्तीय प्रतिबद्धता की सीमा ओआई नियमावली की अनुसूची-I के पैराग्राफ 3 द्वारा अभिशासित होगी। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित शर्तें भी पूरी की जाती हों:
(ए) वित्तीय प्रतिबद्धता करने के लिए उपयोग की गई ईईएफसी खाते में शेषराशि, अमेरिकी डिपॉज़िटरी रसीदें (एडीआर)/ग्लोबल डिपॉज़िटरी रसीदें (जीडीआर) जारी करके और एडीआर/ जीडीआर स्टॉक स्वैप के माध्यम से जुटायी गयी राशि की गणना वित्तीय प्रतिबद्धता सीमा के लिए की जाएगी। तथापि, ओआई नियमावली/विनियमावली की अधिसूचना की तारीख से पहले ऐसे संसाधनों के माध्यम से की गयी वित्तीय प्रतिबद्धता की गणना इस सीमा के लिए नहीं की जाएगी।
(बी) जहाँ बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) से प्राप्त प्रतिफल का उपयोग वित्तीय प्रतिबद्धता करने के लिए किया जाता है, वहाँ उसकी गणना वित्तीय प्रतिबद्धता सीमा के लिए की जाएगी। तथापि, ईसीबी के केवल उतने हिस्से की गणना वित्तीय प्रतिबद्धता के लिए की जाएगी जो उससे संबंधित परिसम्पत्तियों के गिरवी या ऋणभार की राशि, जिसकी गणना वित्तीय प्रतिबद्धता सीमा के लिए पहले ही की जा चुकी हो, के अतिरिक्त होगा।
22. निवासी व्यष्टियों द्वारा पारदेशीय निवेश
निवासी व्यष्टियों (अकेले या अन्य निवासी व्यष्टि या किसी भारतीय संस्था के साथ मिलकर) को ओडीआई करने की अनुमति दिनांक 05 अगस्त 2013 से प्रभावी थी। निवासी व्यष्टि ओआई नियमावली की अनुसूची III के अनुसार पारदेशीय निवेश कर सकता है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित शर्तें भी पूरी की जाती हों:
(1) जब निवासी व्यष्टि ने किसी विदेशी संस्था में नियंत्रण के बिना ओडीआई किया हो जो बाद में किसी अनुषंगी/एसडीएस को अधिगृहीत या स्थापित करती है, तो ऐसा निवासी व्यष्टि उस विदेशी संस्था में नियंत्रण हासिल नहीं करेगा।
(2) पूँजीकरण, प्रतिभूतियों की अदला-बदली, राइट्स/बोनस, उपहार और उत्तराधिकार के माध्यम से किए जाने वाले पारदेशीय निवेश को निवेश की प्रकृति के आधार पर ओडीआई या ओपीआई माना जाएगा। तथापि, स्वेद इक्विटी शेयरों, न्यूनतम अर्हता शेयर और कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजना (ईएसओपी)/कर्मचारी लाभ योजना के तहत शेयर/ हित, चाहे सूचीबद्ध हों या न हों, के माध्यम से निवेश यदि विदेशी संस्था की चुकता-पूँजी/स्टॉक के 10 प्रतिशत से अधिक न हो और इससे नियंत्रण न मिलता हो, तो ऐसे निवेश को ओपीआई माना जाएगा।
(3) प्रतिभूतियों की अदला-बदली के मामले में लेन-देन के दोनों चरणों में फेमा प्रावधानों का यथालागू अनुपालन किया जाएगा। तथापि, जहां प्रतिभूतियों की अदला-बदली के परिणामस्वरूप किसी ऐसी इक्विटी पूंजी का अधिग्रहण होता है जो ओआई नियमों/विनियमों के अनुरूप नहीं है, उदाहरण के लिए, वित्तीय सेवा क्रियाकलाप में संलग्न विदेशी संस्था में ओडीआई, विदेशी संस्था जिसकी अनुषंगी/एसडीएस हो, आदि, ऐसी इक्विटी पूंजी का विनिवेश ऐसे अधिग्रहण की तारीख से छह महीने की अवधि के भीतर अवश्य करना होगा।
(4) निवासी व्यष्टियों को भारत के बाहर निवासी किसी व्यक्ति को उपहार के माध्यम से किसी भी पारदेशीय निवेश को अंतरित करने की अनुमति नहीं है।
(5) ईएसओपी/कर्मचारी लाभ योजना के तहत शेयर/हित - एडी बैंक, जारीकर्ता संस्था द्वारा प्रत्यक्ष रूप से या किसी विशेष प्रयोजन व्हीकल (एसपीवी)/एसडीएस के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से पेश की गई योजना के तहत किसी पारदेशीय संस्था में शेयरों/हित के अधिग्रहण के लिए विप्रेषणों की अनुमति दे सकते हैं। जहां निवेश ओपीआई की श्रेणी में आता हो, आवश्यक रिपोर्टिंग संबंधित नियोक्ता द्वारा फॉर्म ओपीआई में ओआई विनियमावली के विनियम 10(3) के अनुसार की जाएगी। जहां ऐसा निवेश ओडीआई की श्रेणी में आता हो, वहाँ संबंधित निवासी व्यक्ति फॉर्म एफसी में लेनदेन की रिपोर्टिंग करेगा।
(6) विदेशी संस्थाओं को किसी भी ईएसओपी योजना के तहत भारत में निवासियों को जारी किए गए शेयरों को पुनर्खरीद करने की अनुमति है बशर्ते (i) शेयर फेमा, 1999 के तहत बनाए गए नियमों /विनियमों के अनुसार जारी किए गए थे, (ii) शेयरों की पुनर्खरीद प्रारंभिक प्रस्ताव दस्तावेज के संदर्भ में की जा रही है, और (iii) एडी बैंक के माध्यम से आवश्यक रिपोर्टिंग की जाती है।
(7) यद्यपि ईएसओपी/कर्मचारी लाभ योजना के अंतर्गत शेयरों/हित के अधिग्रहण या स्वेट इक्विटी शेयरों के अधिग्रहण के लिए किए गए विप्रेषण की राशि की कोई सीमा निर्धारित नहीं है, तथापि ऐसे विप्रेषणों की गणना संबंधित व्यक्ति की एलआरएस सीमा के लिए की जाएगी।
23. भारतीय संस्था या निवासी व्यष्टि से भिन्न, भारत में निवासी व्यक्ति द्वारा पारदेशीय निवेश
भारतीय संस्था या निवासी व्यष्टि से भिन्न, भारत में निवासी व्यक्ति ओआई नियमावली की अनुसूची IV के अनुसार पारदेशीय निवेश कर सकता है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित शर्तें भी पूरी की जाती हों:
(1) सेबी के साथ पंजीकृत म्यूचुअल फंड (एमएफ) और वेंचर कैपिटल फंड (वीसीएफ)/वैकल्पिक निवेश निधियाँ (एआईएफ) ओआई नियमावली की अनुसूची IV के पैरा 2 के अनुसार, सेबी द्वारा निर्धारित प्रतिभूतियों में क्रमशः 7 बिलियन अमेरिकी डालर और 1.5 बिलियन अमेरिकी डालर की समग्र सीमा के भीतर पारदेशीय निवेश कर सकते हैं। इसके अलावा, सीमित संख्या में पात्र एमएफ पारदेशीय एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों में संचयी रूप से 1 बिलियन अमेरिकी डालर तक का निवेश कर सकते हैं, जैसा कि सेबी द्वारा अनुमत हो। इस तरह के निवेश को ओपीआई के रूप में माना जाएगा, भले ही प्रतिभूतियां सूचीबद्ध हों या नहीं।
(2) इस सुविधा का लाभ उठाने के इच्छुक एमएफ/वीसीएफ/एआईएफ आवश्यक अनुमति के लिए सेबी से संपर्क कर सकते हैं। पात्रता मानदंड, व्यक्तिगत सीमाएँ, मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों की पहचान, निवेश योग्य क्षेत्र, समग्र सीमा की निगरानी, आदि से संबंधित परिचालनगत तौर-तरीके सेबी द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार होंगे। इस प्रकार अधिगृहीत प्रतिभूतियों की बिक्री के लिए ऐसे निवेशकों को सामान्य रूप से अनुमति प्राप्त है।
(3) एडी बैंक, जिसमें उसकी पारदेशीय शाखा भी शामिल है, मेजबान देश के यथालागू विनियमों/ कानूनों के अनुसार अपने सामान्य बैंकिंग व्यवसाय के तहत विदेशी प्रतिभूतियों का अधिग्रहण या अंतरण कर सकता है। एडी बैंक द्वारा विदेशी प्रतिभूतियों के ऐसे अधिग्रहण या अंतरण पर ओआई नियमावली/ विनियमावली में दिए गए प्रावधान लागू नहीं होंगे।
(4) भारत में कोई बैंक, जिसे बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 के प्रावधानों के तहत रिज़र्व बैंक द्वारा लाइसेंस दिया गया है, सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (स्विफ्ट) के उप-नियमों के अनुसार स्विफ्ट के शेयरों का अधिग्रहण कर सकता है, बशर्ते, उस बैंक को रिज़र्व बैंक द्वारा 'भारत में स्विफ्ट प्रयोक्ता समूह' में सदस्य के रूप में शामिल होने की अनुमति दी गई हो।
(5) एकल स्वामित्व या अपंजीकृत भागीदारी फर्मों द्वारा कोई भी पारदेशीय निवेश, प्रोपाइटरों या संबंधित व्यक्तिगत भागीदारों द्वारा ओआई नियमावली की अनुसूची III के अनुसार एलआरएस के तहत उनके लिए उपलब्ध सीमा के भीतर किया जा सकता है। यदि प्रस्तावित निवेश रणनीतिक क्षेत्र में है, तो एलआरएस सीमा से अधिक पारदेशीय निवेश करने के लिए कोई भी आवेदन सरकारी अनुमोदन मार्ग के तहत किया जा सकता है।
(6) पंजीकृत न्यास/सोसायटी द्वारा पारदेशीय निवेश ओआई नियमावली की अनुसूची IV के पैरा 1 के अनुसार अनुमोदन मार्ग के अंतर्गत किया जा सकता है।
24. भारत में निवासी व्यक्ति द्वारा भारत में स्थित आईएफएससी में पारदेशीय निवेश
भारत में निवासी व्यक्ति ओआई नियमावली की अनुसूची V के अनुसार भारत में स्थित आईएफएससी में पारदेशीय निवेश कर सकता है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित शर्तें भी पूरी की जाती हों:
(1) 3भारत में निवासी व्यक्ति, भारतीय संस्था या निवासी व्यष्टि होने के नाते, आईएफएससी में स्थापित किसी निवेश निधि या व्हीकल द्वारा यूनिटों या किसी अन्य लिखत (चाहे उसे कोई भी नाम दिया गया हो) में ओपीआई के रूप में निवेश (प्रायोजक अंशदान सहित) कर सकता है। तदनुसार, सूचीबद्ध भारतीय कंपनियों और निवासी व्यष्टियों के अलावा, असूचीबद्ध भारतीय संस्थाएं भी आईएफएससी में इस तरह का निवेश कर सकती हैं।
(2) निवासी व्यष्टियों द्वारा केवल किसी परिचालनरत विदेशी संस्था में ओडीआई करने या वित्तीय सेवा क्रियाकलाप में संलग्न विदेशी संस्था में ओडीआई न करने का प्रतिबंध आईएफएससी में किए जाने वाले निवेश पर लागू नहीं होगा। हालांकि, इस तरह का निवेश बैंकिंग या बीमा में संलग्न किसी विदेशी संस्था में नहीं किया जा सकेगा। आईएफएससी में स्थित ऐसी विदेशी संस्था की एसडीएस आईएफएससी में हो सकती है। आईएफएससी के बाहर भी इसकी एसडीएस हो सकती है जहां निवासी व्यष्टि का विदेशी संस्था में नियंत्रण नहीं है। निवासी व्यष्टि जिसने नियंत्रण के बिना ओडीआई किया है, वह किसी ऐसी विदेशी संस्था में नियंत्रण प्राप्त नहीं करेगा जो बाद में भारत के बाहर कोई अनुषंगी/ एसडीएस अधिगृहीत या स्थापित करती है।
25. भारत के बाहर स्थावर संपत्ति का अधिग्रहण या अंतरण
भारत के बाहर स्थावर संपत्ति का कोई भी अधिग्रहण या अंतरण ओआई नियमावली के नियम 21 में निहित प्रावधानों द्वारा अभिशासित होगा। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित शर्तें भी पूरी की जाती हों:
(1) एडी बैंक ऐसी भारतीय संस्था, जिसका कोई पारदेशीय कार्यालय हो, को कारोबार करने तथा अपने कर्मचारियों के आवासीय उद्देश्यों के लिए भारत के बाहर स्थावर संपत्ति के अधिग्रहण की अनुमति दे सकता है, बशर्ते, कुल प्रेषण क्रमशः प्रारंभिक और आवर्ती खर्चों के लिए निर्धारित निम्नलिखित सीमाओं से अधिक न हो:
ए) पिछले दो वित्तीय वर्षों के दौरान भारतीय संस्था की औसत वार्षिक बिक्री/आय या कुल कारोबार का 15 प्रतिशत या निवल मालियत का 25 प्रतिशत तक, जो भी अधिक हो;
बी) पिछले दो वित्तीय वर्षों के दौरान औसत वार्षिक बिक्री/आय या कुल कारोबार का 10 प्रतिशत।
भाग IV - एडी बैंकों के लिए परिचालनगत अन्य अनुदेश
26. नामित बैंक
(1) किसी विदेशी संस्था में पारदेशीय प्रत्यक्ष निवेश (या वित्तीय प्रतिबद्धता) करने वाले भारत में निवासी पात्र व्यक्ति से यह अपेक्षित है कि वह इस तरह के निवेश (या वित्तीय प्रतिबद्धता) से संबंधित अपने सभी लेनदेन उसके द्वारा नामित एडी बैंक के माध्यम से ही करे। यदि कोई विदेशी संस्था दो या दो से अधिक भारत में निवासी व्यक्तियों द्वारा स्थापित की जा रही है, तो ऐसे सभी व्यक्तिउस विदेशी संस्था से संबंधित सभी लेनदेन एक ही नामित एडी बैंक के माध्यम से करेंगे। हालांकि, अलग-अलग विदेशी संस्थाओं के लिए भिन्न-भिन्न एडी बैंकों को नामित किया जा सकता है, यदि ऐसा अपेक्षित हो।
(2) यदि भारत में निवासी व्यक्ति अपने एडी बैंक को बदलना चाहता है तो, वह मौजूदा एडी बैंक से एनओसी प्राप्त करने के बाद नए एडी से संपर्क कर सकता है।
(3) भारत में निवासी व्यक्ति द्वारा रिज़र्व बैंक को किया जाने वाला समस्त पत्राचार नामित एडी बैंक की नोडल शाखा के माध्यम से ही किया जाना चाहिए। एडी बैंक प्रत्येक विदेशी संस्था के संबंध में निवेशक-वार अभिलेख बनाए रखेगा ताकि अनुवर्ती कार्रवाई समुचित रूप से की जा सके।
27. ओआई नियमावली/विनियमावली के अंतर्गत पारदेशीय निवेश
(1) एडी बैंक, पारदेशीय निवेश करने वाले व्यक्ति से विधिवत भरे गए फॉर्म एफसी के साथ फॉर्म ए-2 में आवेदन प्राप्त होने पर अनुमेय सीमा तक ऐसे निवेश के लिए विप्रेषण की अनुमति दे सकते हैं बशर्ते वे ओआई नियमावली/विनियमावली में निर्धारित शर्तों का अनुपालन करते हों। एडी बैंक यदि यथाअपेक्षित विधिवत भरे गए फॉर्म एफसी प्राप्त किए बिना वित्तीय प्रतिबद्धता के संबंध में विप्रेषण की सुविधा प्रदान करते हैं, तो वे फेमा, 1999 की धारा 11 और 13 के तहत दंडात्मक कार्रवाई के भागी बनेंगे।
स्पष्टीकरण: एडी बैंक ध्यान दें कि उनके घटकों द्वारा किए जा रहे निवेशों/ वित्तीय प्रतिबद्धता की आरबीआई को ओआईडी एप्लीकेशन में रिपोर्टिंग करने के लिए 15 दिनों की अतिरिक्त समय-सीमा (प्रथम विप्रेषण के अलावा, जिसे लेनदेन निष्पादित करने से पहले ओडीआई एप्लीकेशन में रिपोर्ट करने की आवश्यकता होती है, ताकि यूआईएन जेनरेट किया जा सके) उनके लिए उपलब्ध कराई गयी है और इसका इस्तेमाल भारतीय संस्थाओं/निवासी व्यष्टियों द्वारा एडी बैंक को फॉर्म और दस्तावेज जमा करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
(2) एडी बैंकों को विदेशी संस्था को ऋण देने के संबंध में विप्रेषण की अनुमति और / या विदेशी संस्था को या उसकी ओर से बैंक गारंटी तभी जारी करनी चाहिए जब वे यह सुनिश्चित कर लें कि भारतीय संस्था ने ओडीआई किया है और विदेशी संस्था में उसका नियंत्रण है।
(3) रिज़र्व बैंक, आमतौर पर, उन दस्तावेजों को निर्दिष्ट नहीं करेगा जिन्हें लेनदेन की सदाशयता सुनिश्चित करने के लिए एडी बैंकों द्वारा सत्यापित किया जाना चाहिए। इस संबंध में प्राधिकृत व्यक्तियों का ध्यान फेमा, 1999 की धारा 10 की उप-धारा (5) की ओर आकृष्ट किया जाता है, जिसमें यह प्रावधान किया गया है कि प्राधिकृत व्यक्ति, किसी व्यक्ति की ओर से विदेशी मुद्रा का कोई संव्यवहार करने के पूर्व उस व्यक्ति से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह ऐसी घोषणा करे और ऐसी जानकारी दे जिससे उसका उचित रूप से समाधान हो जाए कि उस संव्यवहार से अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम, विनियम, जारी की गयी अधिसूचना, दिए गए निदेश या आदेश के उपबंधों का कोई उल्लंघन या अपवंचन नहीं होता है और न ही वह किसी उल्लंघन या अपवंचन के प्रयोजन से प्रकल्पित है। एडी बैंक फेमा, 1999 के उक्त प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए अपनी शाखाओं द्वारा पूर्ण किए जाने वाली आवश्यकताओं या दस्तावेजों/ सूचनाओं को निर्धारित करते हुए एक मानक नीति तैयार करेंगे।
(4) एडी बैंकों को लेनदेन की सदाशयता, फेमा प्रावधानों का अनुपालन, अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी) दिशानिर्देशों का अनुपालन और धन-शोधन निरोधक दिशानिर्देशों/कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करना होगा। किसी भी संदिग्ध मामले/संदेहजनक लेन-देन को आगे की जांच और आवश्यक कार्रवाई के लिए प्रवर्तन निदेशालय (डीओई) को संदर्भित करना होगा।
(5) निर्यात आगम या अन्य हकदारियों के पूंजीकरण के माध्यम से किए जाने वाले ओडीआई के मामले में, भारतीय संस्था/निवासी व्यष्टि अपने नामित एडी बैंक को फॉर्म एफसी में आवेदन करेगा। एडी बैंक ऐसे लेनदेन की सुविधा प्रदान करने के लिए फॉर्म एफसी में आवश्यक रिपोर्टिंग, ओआई नियमावली/विनियमावली का अनुपालन और ईडीपीएमएस में आवश्यक रिपोर्टिंग, जहां भी लागू हो, सुनिश्चित करेगा। ऐसे मामले में जहां ऐसी आगम वसूली/संप्रत्यावर्तन के लिए निर्दिष्ट अवधि से अधिक समय से देय है, इस तरह के पूंजीकरण की अनुमति देने से पहले एडी बैंक भली-भांति समुचित सावधानी बरतने के उपरांत उसे आवश्यक विस्तार प्रदान करेगा।
(6) निगमन-पूर्व व्यय- एडी बैंक निगमन-पूर्व व्यय हेतु विप्रेषण की अनुमति उसके औचित्य से संतुष्ट होने पर प्रति विदेशी संस्था अधिकतम 100,000 अमरीकी डालर तक की सीमा में दे सकता है। निवासी व्यष्टि द्वारा किए गए ऐसे विप्रेषणों को उनकी एलआरएस सीमा के लिए गणना में लिया जाएगा। भारतीय निवेशक निगमन-पूर्व व्यय का पूँजीकरण (अर्थात्, ओडीआई के माध्यम से वित्तीय प्रतिबद्धता) कर सकता है या ऐसे खर्चों को प्राप्यराशियों (अर्थात्, ऋण के माध्यम से वित्तीय प्रतिबद्धता) के रूप में दर्शा सकता है या उसे अपनी बहियों में व्यय के रूप में दर्शा सकता है। यह स्पष्ट किया जाता है कि ऐसे व्यय पर ओआई नियमावली/ विनियमावली के प्रावधान लागू नहीं होंगे यदि उसे वित्तीय प्रतिबद्धता के रूप में नहीं दर्शाया जाता है।
28. ऑनलाइन रिपोर्टिंग के लिए प्रक्रियात्मक सामान्य अनुदेश
(1) एडी बैंकों द्वारा पारदेशीय निवेश से जुड़े लेनदेन की ऑनलाइन रिपोर्टिंग के लिए ओआईडी एप्लिकेशन में मेकर, चेकर और ऑथराइज़र का प्रावधान किया गया है। एडी मेकर लेनदेन की शुरुआत करेगा और उसे एडी चेकर को प्रस्तुत करेगा जिसके द्वारा लेनदेन की प्रस्तुति रिज़र्व बैंक को करने से पहले उसका सत्यापन किया जाएगा। जहां किसी कारणवश रिपोर्टिंग में देरी हुई है, ऐसे मामलों में रिज़र्व बैंक को लेनदेन की रिपोर्टिंग तभी की जा सकेगी जब किसी मध्यम प्रबंधन स्तर के अधिकारी, जिसे ऑथराइज़र के रूप में नामित किया गया है, द्वारा विलंब के पीछे निहित कारणों को रिकॉर्ड करने के बाद ऐसे लेनदेनों की पुष्टि की गई हो।
(2) एडी बैंक द्वारा चिह्नित किए गए एडी मेकर, एडी चेकर और एडी ऑथराइज़र परिशिष्ट ए में निर्धारित फार्मेट में आवेदन प्रस्तुत करके ऑनलाइन ओआईडी एप्लीकेशन को एक्सेस करने के लिए यूज़र आईडी, यदि पहले ही न ली गई हो, प्राप्त कर सकते हैं।
(3) ऑनलाइन रिपोर्टिंग एडी बैंकों की केंद्रीकृत यूनिट/ नोडल कार्यालय द्वारा की जाएगी। ओआईडी एप्लीकेशन को रिज़र्व बैंक की वेबसाइट https://fed.rbi.org.in पर होस्ट किया गया है। ऑनलाइन रिपोर्टिंग में दी जाने वाली जानकारी की वैधता के लिए एडी बैंक उत्तरदायी होगा।
(4) रिज़र्व बैंक के पास यह अधिकार सुरक्षित है कि वह फॉर्मों के माध्यम से प्राप्त सूचना को सार्वजनिक डोमेन में रख सके।
(5) एडी बैंकों को समुचित प्रक्रियाओं और प्रणालियों को लागू करना चाहिए और इन निदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए बैंक/ शाखा स्तर पर कार्यरत सभी अधिकारियों को आवश्यक अनुदेश जारी करना चाहिए।
अनुबंध I
इस मास्टर निदेश में समेकित किए गए परिपत्रों की सूची
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