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प्रेस प्रकाशनी

समष्टिआर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : तीसरी तिमाही समीक्षा 2012:13

28 जनवरी 2013

समष्टिआर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : तीसरी तिमाही समीक्षा 2012:13

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज समष्टिआर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : तीसरी तिमाही समीक्षा 2012:13 जारी किया। यह दस्‍तावेज़ 29 जनवरी 2013 को घोषित किए जानेवाले मौद्रिक नीति वक्‍तव्‍य की तीसरी तिमाही समीक्षा की पृष्‍ठभूमि को दर्शाता है।

मुख्‍य-मुख्‍य बातें:

समग्र संभावना

समष्टि आर्थिक जोखिमों का संतुलन यह प्रस्‍तावित करता है कि मौद्रिक नीति को वृद्धि जोखिमों के समाधान में समायोजित करने की ज़रूरत है क्‍योंकि मुद्रास्‍फीति कड़ी हो गई है

  • वर्ष 2012-13 में वृद्धि को 5.8 प्रतिशत के रिज़र्व बैंक के बेसलाइन अनुमान से नीचे रहने की संभावना है। तथापि, उत्‍पादन अंतराल वर्ष 2013-24 में बंद होने शुरू हो जाएंगे यद्यपि वे निवेश और उपभोग मांग में कुछ तेज़ी की सहायता से धीमी गति से होंगे।

  • मुद्रास्‍फीति को सुधरकर 7.5 प्रतिशत के रिज़र्व बैंक के बेसलाईन अनुमान से नीचे रहने की संभावना है। तथापि, दबी हुई मुद्रास्‍फीति वर्ष 2013-14 में मुद्रास्‍फीति के लिए एक उल्‍लेखनीय जोखिम बनी रहेगी। चूंकि कुछ जोखिमों का समाधान हो रहा है, मुद्रास्‍फीति का मार्ग कठिन हो सकता है।

  • विभिन्‍न सर्वेक्षण दर्शाते हैं कि कारोबारी विश्‍वास में कमी बनी हुई है। सर्वेक्षण दर्शाते हैं कि रिज़र्व बैंक के बाहर के अनुमानकर्ता यह आशा करते हैं कि वर्ष 2012-13 में 5.5 प्रतिशत की वृद्धि सुधरकर वर्ष 2013-24 में 6.5 प्रतिशत हो जाएगी। औसत थोक मूल्‍य सूचकांक मुद्रास्‍फीति को वर्ष 2012-13 में 7.5 प्रतिशत से सुधरकार वर्ष 2013-14 में 7.0 प्रतिशत होने की आशा की जाती है।

वैश्विक आर्थिक स्थितियां

गैर-पारंपरिक मौद्रिक नीतियां तनाव कम करती हैं लेकिन जोखिम आगे बना रहता है

  • राजको‍षीय जोखिम जो वर्ष 2013 में शांत हैं, उनमें वैश्विक सुधार को बनाए रखने की संभावना है।  जबकि अमरीका में राजकोषीय कड़ाई तत्‍कालिक जोखिम दूर हो गए हैं, यूरो क्षेत्र से उत्‍पन्‍न वैश्विक वृद्धि के प्रति जोखिम उल्‍लेखनीय रह सकती है। उभरते हुए बाज़ार और विकासशील अर्थव्‍यवस्‍थाओं (ईएमडीई) में शुरूआत में वृद्धि के कुछ संकेत हैं।

  • वैश्विक मुद्रास्‍फीति परिदृश्‍य अपने वास्‍तविक रूप में बना रह सकता है क्‍योंकि उन्‍नत अर्थव्‍यवस्‍थाओं (एई) में मांग कमज़ोर रह सकती है। तेल और खाद्यान्‍न जैसी वस्‍तुओं में सुधरी हुई आपूर्ति संभावनाएं पण्‍य वस्‍तु की कीमतों के दबाव को रोक सकती हैं तथापि बाज़ार और विकासशील अर्थव्‍यवस्‍थाओं (ईएमडीई) और उन्‍नत अर्थव्‍यवस्‍थाओं (एई) में संभावित सुधार के साथ वृद्धिशील जोखिम बनी हुई है।

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था

उत्‍पादन

वृद्धि में मंदी जारी हैं, सुधार में कुछ और समय लग सकता है

  • भारत में वृद्धि में मंदी पांचवीं क्रमिक तिमाही में आवश्‍यक संभावना से कम वृद्धि  के साथ बनी हुई है। सरकार के नीति प्रयास आंकड़ों में पुर्णत: अथवा निश्चित रूप से अभी भी दिखाई नहीं दिए हैं। इनकी वापसी में कुछ और समय लग सकता है।

  • कम वर्षा के बावजूद रबी की फसल सामान्‍य रहने की आशा की जाती है लेकिन वह खरीफ की कमी को पूरी तरह पूरा नहीं कर सकती है। रबी की फसल के अंतर्गत बुआई व्‍यापक रूप से पिछले वर्ष के स्‍तर के अनुरूप है।

  • कमज़ोर औद्योगिक कार्यनिष्‍पादन बना रहना संभावित है। कम बाहरी मांग तथा कोयले में कमी के बीच विश्‍वसनीय ऊर्जा आपूर्ति के अभाव क्षमता उपयोग को बाधित कर रहे हैं। सेवा क्षेत्र के अग्रणी संकेतक तथा रिज़र्व बैंक के सेवा क्षेत्र के मिले-जुले संकेतक सुधार का संकेत देते हैं।

  • रिज़र्व बैंक की आदेश पुस्तिकाओं, वस्‍तु-सूची और क्षमता उपयोग सर्वेक्षण यह दर्शाते हैं कि क्षमता उपयोग में वर्ष 2012-13 की दूसरी तिमाही में न्‍यूनतम वृद्धि हुई है। क्रमिक आधार पर नए आदेशों में वर्ष 2012-13 की दूसरी तिमाही में सुधार हुआ है।

सकल मांग

निवेश वातावरण में निदेश आर्थिक सुधार की पूर्वापेक्षा है

  • निजी उपभोग में गिरावट और निवेश में सुधार के अभाव के साथ मांग स्थितियां उस्त्‍साहहीन बनी हुई है।

  • नई परियोजनाओं में निवेश अभिप्रायों में वर्ष 2012-13 की दूसरी तिमाही में न्‍यूनतम सुधार हुआ है, लेकिन परियोजनाओं में देरी के द्वारा निवेश बाधित है। ऊर्जा क्षेत्रों का सामना कर रहे कोयला आपूर्ति के मुद्दों का अभी भी पूरी तरह समाधान किया जाना है। सड़क निवेश पर्यावरण स्‍वीकृति, भूमि अधिग्रहण और वित्तीय बंदी से संबंधित मुद्दों के कारण रूके हुए हैं।

  • बिकी में वृद्धि वर्ष 2012-13 की दूसरी तिमाही में  और नरम होकर तीन वर्षों के अपने न्‍यूनतम स्‍तर पर आ गई है लेकिन निवल लाभ वृद्धि में उल्‍लेखनीय सुधार हुआ है। वर्ष 2012-13 की तीसरी तिमाही के शुरूआती परिणाम मंद बिक्री की प्रवृत्ति के बने रहने का संकेत देते हैं।

  • राजकोषीय समायोजन की गुणवत्‍ता एक चिंता के रूप में बनी हंई है यद्यपि ववर्ष 2012-13 में राजकोषीय जोखिम कम हुए हैं। सरकार वर्ष की पिछली तिमाही के दौरान योजना और गैर-योजना व्‍यय दोनों में प्रतिबंध के द्वारा सकल घरेलू उत्‍पाद के 5.3 प्रतिशत का संशोधित राजकोषीय घाटा लक्ष्‍य प्राप्‍त करने के लिए कार्य कर रही है। यद्यपि, कर राजस्‍व में उल्‍लेखनीय कमी संभावित है।

  • संरचनात्‍मक बाधाओं जो निजी निवेश को धीमा कर रहे हैं को दूर करने के साथ निजी निवेश में सार्वजनिक निवेश लाने में बढ़ोतरी आवश्‍यक है ताकि अर्थव्‍यवस्‍था को वर्तमान मंदी से बाहर लाया जा सके।

बाह्य क्षेत्र

चालू खाता घाटा में बढ़ोतरी तथा इसकी वित्तीय सहायता एक मुख्‍य चुनौती बनी हुई है

  • चालू खाता घाटे (सीएडी) में बढ़ोतरी मौद्रिक नीति को आसान बनाने में प्रमुख बाधा के रूप में उभरी है। इस संभावना के साथ कि सीएडी / जीडीपी अनुपात वर्ष 2012-13 में दूसरे क्रमिक वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्‍पाद का 4 प्रतिशत बढ़ सकता है, सकल मांग को प्रोत्‍साहित करते समय विवेकशीलता आवश्‍यक है।

  • सीएडी / जीएडी अनुपात वर्ष 2012-13 की दूसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत से सकल घरेलू उत्‍पाद अब तक के अपने अधिकतम स्‍तर पर पहुंचा है। शुरूआती संकेत यह हैं कि यह वर्ष 2012-13 की तीसरी तिमाही में और बढ़ सकता है। चालू खाता घाटा मुख्‍य रूप से खराब व्‍यापार घाटे के कारण बढ़ा है।

  • संरचनात्‍मक अवरोधों के साथ-साथ कमज़ोर बाह्य मांग से भारत तथा अन्‍य उभरती हुई बाज़ार विकासशील अर्थव्‍यवस्‍थाओं के निर्यात में कमी हुई है। इसके अतिरिक्‍त तेल और स्‍वर्ण के जारी भारी आयात से भारत के व्‍यापार संतुलन में गिरावट हुई है।

  • मजबूत पूंजी प्रवाहों ने चालू खाता घाटे को वित्‍तीय सहायता दी है जिससे प्रारक्षित निधियों में न्‍यूनतम आहरण हुए हैं। जबकि बढ़ी हुई विदेशी संस्‍थागत निवेशक ऋण निवेश सीमाएं अंतर्वाहों को बढ़ा सकती हैं, वे निरंतर आधार पर चालू खाता घाटे को वित्‍तीय सहायता के लिए कोई समाधान उपलब्‍ध नहीं कराती हैं।

मौद्रिक और चलनिधि स्थितियां

मुद्रास्‍फीति में नरमी के साथ रिज़र्व बैंक चलनिधि डालने का उपाय करता है

  • वर्ष 2012 की शुरुआत से रिज़र्व बैंक ने मुद्रास्‍फीति में सुधार को बिना कोई क्षति पहुंचाए समायोजित तरीके से मौद्रिक और चलनिधि स्थितियों को आसान बनाने के प्रति कार्य करता रहा है। मुद्रास्‍फीति में परिणामी सुधार के साथ रिज़र्व बैंक ने कड़ी चलनिधि स्थितियों से लड़ने के उपाय किए हैं।

  • चलनिधि स्थतियों सरकारी नकदी शेषों और मज़बूत करेंसी मांग के निर्माण के कारण वर्ष 2012-13 की तीसरी तिमाही में मज़बूत हुई हैं। रिज़र्व बैंक ने अब तक वर्ष 2012-13 में सीधा खुले बाज़ार परिचालन (आएमओ) को पुन: प्ररंभ किया है। इसने सीधे खुले बाज़ार परिचालनों के माध्‍यम से `1.3 ट्रिलियन की चलनिधि डाली है।

  • व्‍यापक मुद्रा वृद्धि सांकेतिक सीमा से नीचे बनी हुई है। जमा वृद्धि में गिरावट हुई है जबकि ऋण विस्‍तार सीमा के अनुरूप रहा है। यद्यपि आस्ति गुणवत्‍ता चिंताओं ने ऋण वृद्धि को प्रभावित किया है, जमा और ऋण वृद्धि के बीच बढ़ा हुआ अंतर चिंता का विषय है।

वित्तीय बाज़ार

सुधार और अंतर्वाह बाज़ार भावनाओं में सुधार लाते हैं तथा आईपीओ बाज़ार में तेज़ी लाते हैं

  • सुधरी हुई वैश्विक चलनिधि तथा हाल के नीति सुधारों ने विदेशी संस्‍थागत निवेश अंतर्वाहों को सहायता प्रदान की है जिससे ईक्विटी बाज़ारों में कायापलट हुआ है तथा प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्‍ताव (आईपीओ) बाज़ार में तेज़ी आई है।

  • वर्ष 2012-13 की तीसरी तिमाही में व्‍यापक रूप से रुपया सीमाबद्ध रहा है। मुद्रा बाज़ार चलनिधि घाटे के बावजूद स्थिर रहे हैं। सरकारी प्रतिभूति प्रतिलाभों में कोई अतिरिक्‍त सरकारी उधार और नीति दर कटौती नहीं होने की आशा तथा खुले बाज़ार परिचालन पुन: प्रारंभ किए जाने तथा नीलामी के आस्‍थगन के कारण भी दिसंबर 2012 से उल्‍लेखनीय रूप से नरम हुए हैं।

  • रिज़र्व बैंक के घरेलू मूल्‍य सूचकांक (एचपीआई) में लेनदेन की मात्रा में वृद्धि के साथ-साथ वर्ष 2012 की दूसरी तिमाही में 3 प्रतिशत की तीमाही-दर-तीमाही वृद्धि हुई है।

मूल्‍य स्थिति

हेडलाईन और मुख्‍य मुद्रास्‍फीति सुधरी है लेकिन दबी हुई मुद्रास्‍फीति जोखिम पैदा कर सकती है

  • हेडलाईन मुद्रास्‍फीति मुख्‍य मुद्रास्‍फीति में उल्‍लेखनीय सुधार के साथ वर्ष 2012-13 की तीसरी तिमाही में सुधरी है लेकिन उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक मुद्रास्‍फीति दुहरे अंकों तक बढ़ी है। मुख्‍य मुद्रास्‍फीति दबाव को मांग पक्ष अवधारणाओं पर तेज़ी से उभरने की संभावना है। आने वाली मुद्रास्‍फीति संभावना संकेत देती है कि वर्ष 2012-13 की चौथी तिमाही में सुधार जारी रह सकता है।

  • पारिश्रमिक मुद्रास्‍फीति चिंता का स्रोत बनी हुई है। ग्रामीण पारिश्रमिक मुद्रास्‍फीति में न्‍यूनतम गिरावट हुई है लेकिन यह 18 प्रतिशत के उच्‍चतर स्‍तर पर बनी हुई है। संगठित विनिर्माण में, स्‍टाफ लागत में वृद्धि दुहरे अंकों में बनी हुई है।

  • आगे जाकर दबी हुई मुद्रास्‍फीति में जारी जोखिम, खाद्य कीमतों पर दबाव और उच्‍चतर मुद्रास्‍फीति प्रत्‍याशाएं पारिश्रमिक मूल्‍य को तेज़ी से बढ़ाने में सहायता करेंगे। वर्ष 2013-14 के लिए मुद्रास्‍फीति का पथ गिरावट की दृढ़ता का सामना कर सकता है।

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/1263


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