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प्रेस प्रकाशनी

तीसरा द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2015-16 डॉ. रघुराम जी. राजन, गवर्नर

4 अगस्त 2015

तीसरा द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2015-16
डॉ. रघुराम जी. राजन, गवर्नर

मौद्रिक और चलनिधिगत उपाय

वर्तमान और उभरती समष्टि आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि:

  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीतिगत रिपो दर में कोई परिवर्तन न किया जाए जिसे 7.25 प्रतिशत पर बरकरार रखा जाए;

  • अनुसूचित बैंकों के आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 4.0 प्रतिशत पर बरकरार रखा जाए;

  • नीलामियों के माध्‍यम से एलएएफ रिपो दर पर बैंक-वार एनडीटीएल के 0.25 प्रतिशत पर ओवरनाइट रिपो तथा बैंकिंग प्रणाली के एनडीटीएल के 0.75 प्रतिशत तक 14-दिवसीय मीयादी रिपो के अंतर्गत चलनिधि उपलब्‍ध कराना जारी रखा जाए; तथा

  • चलनिधि की निर्बाध उपलब्‍धता के लिए दैनिक परिवर्तनीय दर रिपो और प्रतिवर्ती रिपो को जारी रखा जाए।

परिणामस्‍वरूप, एलएएफ के अंतर्गत प्रतिवर्ती रिपो दर 6.25 प्रतिशत पर बरकरार रहेगी तथा सीमांत स्‍थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 8.25 प्रतिशत रहेंगी।

मूल्‍यांकन

2. हमारे पिछले वक्‍तव्‍य के बाद कैलंडर 2015 की दूसरी तिमाही में वैश्‍विक आर्थिक कार्यकलापों में मामूली सुधार हुआ। खपत की मात्रा काफी बढ़ने और श्रम बाज़ार की स्थिति में लगातार सुधार आने के कारण अमेरिकी अर्थव्‍यवस्‍था में सुधार हुआ, भले ही वेतन संबंधी हाल के आंकड़े में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है। उपभोक्‍ता द्वारा किए गए व्‍यय की मात्रा के बढ़ने, वित्‍तीय स्थिति बेहतर होने और बेरोज़गारी के मौजूदा उच्‍च स्‍तर में मामूली गिरावट आने के कारण 2015 की पहली छमाही में यूरो क्षेत्र में धीमी गति से वृद्धि हुई। जापान में पहली तिमाही में अप्रत्‍याशित रूप से वृद्धि दर बढ़ने के बाद दूसरी तिमाही में वृद्धि दर की गति धीमी हुई। देशी स्‍तर पर खपत की मात्रा कम रहा, तथापि, जुलाई में विनिर्माण कार्यकलापों में तेजी आने के कारण तथा निर्यात की मात्रा और कॉर्पोरेट लाभप्रदता के बढ़ने से दूसरी छमाही में पूंजीगत व्‍यय में बढ़ोतरी हो सकती है। उभरती बाज़ार अर्थव्‍यवस्‍थाओं (ईएमई) में विदेशी मांग में कमी, प्रतिकूल विदेशी वित्‍तीय परिस्थिति, संरचनागत अवरोधों के बढ़ने तथा वित्‍तीय बाज़ारों में अनिश्चितता बरकरार रहने के कारण पहली छमाही में कार्यकलापों में नरमी आई। आक्रामक नीतिगत प्रोत्‍साहन उपाय किए जाने के बावजूद शेयर बाज़ार में भारी गिरावट, संपत्ति बाज़ार में नरमी और कई विनिर्माणकारी उद्योगों में अत्‍यधिक क्षमता के कारण चीनी अर्थव्‍यवस्‍था में समष्टि-आर्थिक पुनर्संतुलन की गति धीमी हुई। जुलाई में विनिर्माण कार्यकलापों में और गिरावट दर्ज हुई, जिससे निकट भविष्‍य की प्रत्‍याशाएं संतोषप्रद प्रतीत नहीं हो रही हैं। रूस और ब्राज़ील में मंदी की स्थिति बरकरार है, जहां पण्‍यवस्‍तुओं के मूल्‍यों से डाउनसाइड जोखिम हैं और भू-राजनीतिक गतिविधियों के चलते भविष्‍य की संभावनाएं प्रभावित हो रही हैं और न्‍य उभरती बाज़ार अर्थव्‍यवस्‍थाओं में भी यही स्थिति है।

3. हाल के महीनों में यूनानी संकट, चीनी शेयर बाज़ार में गिरावट और फेडरल रिज़र्व द्वारा दरों के बढ़ाए जाने को लेकर रहने वाली अनिश्चितता की वजह से वित्‍तीय बाज़ारों में काफी उथल-पुथल हुई। जर्मनी में बॉण्‍ड बाज़ारों में भारी बिकवाली के चलते उभरती बाज़ार अर्थव्‍यवस्‍थाओं सहित पूरे विश्‍व में बॉण्‍ड के प्रतिफलों में बढ़ोतरी हुई और इससे वित्‍तीय स्थिति खराब हुई। अच्‍छे प्रतिफल की तलाश में इक्विटी बाज़ारों में उछाल आई जिससे जून के अंत में आस्ति का मूल्‍यांकन बढ़ा, किंतु चीन में शेयर बाज़ार में गिरावट आने की वजह से पूरे विश्‍व में शेयर की कीमतों में कमी आई। मुद्रा बाज़ारों में बढ़ते अमेरिकी डॉलर का दबदबा रहा, जिसके कारण विदेशी मुद्रा उधार एक्‍सपोज़र प्रभावित हुए, विनिमय दर में अस्थिरता बढ़ी और उभरती बाज़ार अर्थव्‍यवस्‍थाओं से भारी मात्रा में पूंजी बहिर्वाह हुआ। निवेशकों ने आस्ति के एक समूह के रूप में उभरती बाज़ार अर्थव्‍यवस्‍थाओं के एक्‍सपोज़र की मात्रा कम रखी, तथापि, अब तक सुरक्षा के लिहाज से पूंजी पलायन जैसी कोई स्थिति पैदा नहीं हुई है। निवेशकों ने बुलियन सहित चीनी मंदी के कारण पण्‍यवस्‍तुओं को भी तरजीही नहीं दी।

4. जहां तक भारत का प्रश्‍न है आर्थिक सुधार की प्रक्रिया चालू है। जून में भारी वर्षा होने के बाद जुलाई में सामान्‍य से कम स्‍तर पर वर्षा हुई, कुल मिलाकर मॉनसून का स्‍तर लगभग सामान्‍य रहा। जलाशयों के उच्‍चतर स्‍तर से भी, खास तौर पर सिंचाई-प्रधान क्षेत्रों में खरीफ उत्‍पादन अच्‍छा रहने की संभावना है। परिणामस्‍वरूप, पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष खरीफ, विशेष रूप से तिलहनों, दलहनों, चावल और दानेदार अनाजों की बुआई की मात्रा बढ़ी है। इन गतिविधियों के साथ ही साथ आशंकित जिलों के लिए आकस्मिक योजनाएं बनाए जाने के कारण मौसम के प्रतिकूल परिणामों से निपटने के लिए समर्थन मिल रहा है। यदि अच्‍छी मात्रा में फसल उत्‍पादन की संभावनाएं बढ़ती हों तो मौजूदा ग्रामीण क्षेत्र की कम मांग में सुधार आने से कार्यकलापों को काफी बढ़ावा मिलेगा। कुछ उद्योगों, जिसके लिए कमज़ोर वैश्विक मांग और वैश्विक स्‍तर में उन उद्योगों में क्षमता की अपेक्षित स्‍तर से अधिक उपलब्‍धता कुछ हद तक जि़म्‍मेदार है और रुपया की तुलना में कुछ प्रमुख व्‍यापारी भागीदारों की मुद्राओं में बड़ी मात्रा में आई गिरावट जि़म्‍मेदार है, में निर्यातों की मात्रा में कमी आने से भी कुल मांग में कमी आई है। रिज़र्व बैंक के सर्वेक्षण-आधारित संकेतकों से यह पता चला है कि क्षमता के उपयोग और नए ऑर्डरों के स्‍तर में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, साथ ही कॉर्पोरेट बिक्री दर में कमी आई है, तथापि, निम्‍न स्‍तरीय मुद्रास्‍फीति से यह पता चलता है कि टॉप लाइनों पर कुछ हद तक दबाव बना हुआ है। हालांकि समग्र कारोबार के प्रति समग्र विश्‍वास सकारात्‍मक है, फिर भी पिछली तिमाही की तुलना में अप्रैल-जून में आशा के स्‍तर में कुछ हद तक गिरावट आई है। प्रमुख रूप से क्षमता के उपयोग का स्‍तर अब भी कम रहने के कारण निवेश, जिसका परिकलन नई परियोजनाओं को हिसाब में रखते हुए किया जाता है, की मात्रा भी वर्तमान में कम है। जहां तक अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण बिजली क्षेत्र का प्रश्‍न है, जहां अंतिम मांग काफी अधिक रहती है, कोयले की आपूर्ति में रहने वाली अड़चनों को काफी हद तक दूर किए जाने से बिजली के जेनरेशन की मात्रा में हुई बढ़ोतरी ट्रांसमिशन ग्रिडों के अवरोधों संबंधी संरचनागत समस्‍याओं और बिजली वितरण कंपनियों (डीआईएससीओएम) की खराब वित्‍तीय स्थिति से कुछ सीमा तक बाधित हो जा रही है।

5. तथापि, खपत की मांग, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में बढ़ने के कुछ लक्षण दिखाई दे रहे है। जुलाई माह में कारों की बिक्री की मात्रा अधिक रही। पिछले वर्षों की तुलना में नॉमिनल बैंक क्रेडिट वृद्धि दर कम रही, तथापि, निम्‍नतर मुद्रास्‍फीति और तेल विपणन कंपनियों द्वारा कम मात्रा में लिए गए उधार तथा वाणिज्यिक पेपर बाज़ारों द्वारा अधिक मात्रा में लिए गए उधार की दृष्टि से यह प्रतीत होता है कि अधिकांश क्षेत्रों के लिए पर्याप्‍त मात्रा में ऋण उपलब्‍ध कराई गई।

6. सेवा क्षेत्र में मिश्रित संकेत मिलते रहे हैं। पहली तिमाही में भारी कमर्शियल वाहनों की बिक्री में तेजी और पत्‍तन व देशी हवाई भाड़े की मात्रा में बढ़ोतरी से यह पता चलता है कि परिवहन कार्यकलापों की गति तेज है (जहां तक भारतीय आंकड़े का प्रश्‍न है तिमाही से अभिप्रेत है वित्‍तीय वर्ष की तिमाहियां)। प्रमुख रूप से नए और मौजूदा कारोबार का स्‍तर निम्‍नतर रहने के कारण जून में पर्चेसिंग मैनेजर्स सूचकांक में गिरावट दर्ज हुई। टर्नओवर और लाभ मार्जिन में बढ़ोतरी की प्रत्‍याशाओं के कारण दूसरी तिमाही में सेवा क्षेत्र की संभावनाओं से संबंधित सर्वेक्षण-आधारित प्रत्‍याशाओं में सकारात्‍मक प्रवृत्ति दिखाई दे रही है।

7. जून में हेडलाइन उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्‍फीति लगातार महीने से बढ़ी, जो व्‍यापक आधारित अपसाइड दबावों के कारण नौ माह के उच्‍चतम स्‍तर पर पहुंच गई है और जो सर्वमानित प्रत्‍याशाओं के विपरीत है। खाद्य और खाद्येतर वस्‍तुओं में माह-दर-माह के आधार पर अत्‍यधिक बढ़ोतरी होने की वजह से इस माह ‘आधारभूत प्रभाव’ काफी बढ़ गया। सब्जियों, प्रोटीन पदार्थों – खास तौर पर दलहनों, माँस और दूध – और मसाले पदार्थों की कीमतें बढ़ने के कारण पिछले माह के स्‍तर की तुलना में खाद्य मुद्रास्‍फीति में 60 आधार अंकों की बढ़ोतरी दर्ज हुई।

8. इसके अलावा, खाद्य और ईंधन को छोड़कर अन्‍य सभी उप वर्गों, जिनमें आवास क्षेत्र शामिल नहीं है, के मामले में मुद्रास्‍फीति में बढ़ोतरी हुई। अन्‍य क्षेत्रों की तुलना में शिक्षा क्षेत्र में कीमतें काफी तेजी से बढ़ी हैं। पर्सनल केयर और वस्‍तुओं तथा घरेलू मालों एवं सेवाओं जैसे उप-समूहों का मुद्रास्‍फीतिकारी दबाव बढ़ा। खाद्य वस्‍तुओं, ईंधन, पेट्रोल और डीज़ल को छोड़कर अन्‍य वस्‍तुओं के मामले में सीपीआई मुद्रास्‍फीति में अप्रैल से काफी बढ़ोतरी दर्ज हो रही है और इसका स्‍तर पहली तिमाही से हेडलाइन मुद्रास्‍फीति से अधिक है। दो तिमाहियों के बाद घरेलू क्षेत्र से संबंधित अल्‍पावधिक मुद्रास्‍फीति प्रत्‍याशाएं दो अंकों पर पहुंच गईं, तथापि, व्‍यावसायिक पूर्वानुमानकर्ताओं की प्रत्‍याशाएं स्थिर रहीं। ग्रामीण मज़दूरी की वृद्धि दर में मामूली बढ़ोतरी हुई, किंतु कॉर्पोरेट स्‍टाफ लागतों से दबाव पैदा होने के संकेत मिल रहे हैं।

9. जून और जुलाई में चलनिधि की स्थिति अच्‍छी रही। मुद्रा की मांग में मौसमी कमी और सरकार के व्‍यय में बढ़ोतरी के साथ ही कुछ संरचनागत कारकों, जैसे जुटाई गई जमाराशि की तुलना में ऋण नियोजन की राशि कम रहना, ने मुद्रा बाज़ारों में बेशी चलनिधि की स्थिति पैदा कर दी। इसके कारण जून में एलएएफ के अंतर्गत स्थिर दर रिपो के अंतर्गत उपलब्‍ध कराई गई निवल चलनिधि और परिवर्तनीय दर मीयादी रिपो/प्रतिवर्ती रिपो तथा एमएसएफ का औसत दैनिक राशि निम्‍नतर स्‍तर पर पहुंचकर 477 मिलियन हो गई, वहीं मई में यह 1031 थी। जुलाई में इन सुविधाओं के माध्‍यम से निवल रूप से 120 बिलियन की राशि निकाली गई। जून में नीतिगत रिपो दर में कटौती किए जाने के प्रतिक्रियास्‍वरूप भारित औसत मांग दर मई के 7.47 प्रतिशत से कम होकर जून में 7.11 प्रतिशत पर पहुंच गई। दीर्घकालिक प्रतिवर्ती रिपो की मांग में आई कमी को देखते हुए रिज़र्व बैंक ने जुलाई के दूसरे सप्‍ताह में 83 बिलियन की राशि के लिए खुला बाज़ार बिक्री का भी आयोजन किया। जुलाई में मांग मुद्रा दर रिपो दर से कम रहा, जो कि चलनिधि की सुखद स्थिति का संकेत है।

10. वैश्विक मांग की कमजोर स्थिति से व्यापारिक वस्तुओं का निर्यात अवरूद्ध हुआ। वर्ष 2015-16 की पहली तिमाही में मात्रा और मूल्य दोनों में निर्यात संकुचन वर्ष 2009-10 की दूसरी तिमाही से लेकर अब तक सबसे अधिक रहा। अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक मूल्य विशेषकर कच्चे तेल की कीमतों में तेज गिरावट से आयात भुगतान कम हुआ जिससे व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिली। घरेलू उत्पादन में गिरावट और कम अंतरराष्ट्रीय कीमतें इलेक्ट्रॉनिक सामान, दलहन, लौह-अयस्क तथा उर्वरकों के उच्चतर आयात में स्पष्ट दिखाई दी। सेवा व्यापार के कारण निवल अधिशेष पहली तिमाही में कायम रहा और कम व्यापार घाटे के साथ इससे चालू खाता घाटा (सीएडी) कम करने में मदद मिली। धीमे होते पोर्टफोलियो प्रवाहों के बावजूद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और अनिवासी जमाराशियों जैसे विदेशी पूंजीगत प्रवाह संधारणीय रहे। कम होती बाह्य वित्तपोषण आवश्यकता के साथ जून के अंत में आरक्षित निधियां अब तक के उच्च स्तर पर रहीं जो प्रतिकूल वैश्विक आघातों के विरूद्ध बफर उपलब्ध कराती हैं।

नीतिगत रुख और औचित्य

11. अप्रैल और जून के द्विमासिक मौद्रिक नीतिगत वक्तव्यों में संकेत दिया गया था कि मौद्रिक नीति का उदार रुख आगे बनाया रखा जाएगा किंतु मौद्रिक नीति संबंधी कार्रवाइयां निम्नलिखित शर्तों पर निर्भर करेंगी जैसे (क) बैंकों द्वारा रिज़र्व बैंक की फ्रंट-लोडेड दर कटौतियों का अपनी उधार दरों में पूर्ण लाभ देना, (ख) मौसमी और आधार प्रभावों को देखते हुए खाद्य कीमतों और उनके प्रबंध विशेषकर मानसून के प्रभाव में प्रगति, (ग) आपूर्ति पक्ष को चालू रखने के लिए नीतिगत प्रयासों की निरंतरता और उनकी गति जिससे कि विद्युत और भूमि जैसे मुख्य इनपुट उपलब्ध कराए जा सकें और सार्वजनिक निवेश के लिए खराब लक्षित सब्सिडी से सार्वजनिक खर्च का पुनर्नियोजन करना और अवरूद्ध निवेश की पाइपलाइन को कम करना, तथा (घ) अमेरीकी मौद्रिक नीति के सामान्यीकरण के संकेत।

12. जनवरी में पहली दर कटौती से बैंकों की माध्य आधार उधार दरों में लगभग 30 आधार अंकों की गिरावट आई है जो अब तक की 75 आधार अंकों की दर कटौती का एक अंश मात्र है। चूंकि वर्ष 2015-16 की तीसरी तिमाही में ऋण मांग में बढ़ोतरी हुई है, दरों में कटौती से बैंकों को अधिक लाभ नजर आएगा जिससे वे नए उधार को सुरक्षित कर सकेंगे और इससे वे अपनी दरों में पूरा लाभ दे सकेंगे। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पूंजी डालने की सरकार की घोषणा से ऋण वृद्धि और इस प्रकार संचरण तथा मौजूदा सहज चलनिधि स्थिति में मदद मिलेगी।

13. वर्ष 2015-16 में अब तक मुद्रास्फीति स्थिति अप्रैल और जून के द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्यों में अनुमानित पथ के इर्द-गिर्द है, हालांकि जून में मुद्रास्फीति में वृद्धि होने से मुद्रास्फीति की स्थिति ने कुछ हैरान किया। दीर्घ आधार प्रभाव जिन पर रिज़र्व बैंक नजर रखेगा, से जुलाई और अगस्त में हेडलाइन मुद्रास्फीति के कम होने की संभावना है। सितंबर से अनुकूल आधार प्रभावों में गिरावट आएगी।

14. मुद्रास्फीति जोखिमों के संतुलन के मामले में सबसे बड़ी चिंता का विषय खाद्य और ईंधन को छोड़कर मुद्रास्फीति में संधारणीय सख्ती है। तथापि, जून से प्रभावी होने वाली सेवाकर वृद्धि के पूर्ण प्रभावों से शेष बचे हुए वर्ष की पूर्ति हो जाएगी। हाल के महीनों में कुछ खाद्य कीमतें विशेषकर प्रोटीन समृद्ध खाद्य पदार्थों, दलहन और तिलहन में तेजी से वृद्धि हुई है। इनकी सावधानपूर्वक निगरानी करनी होगी क्योंकि ये कीमतें कम नहीं हो रही हैं और ये मुद्रास्फीति और मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं में एक ऊपरी पूर्वाग्रह प्रदान कर रही हैं। परिवार मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं के फिर से बढ़ने से इनका महत्व बढ़ जाता है। तथापि, अनेक कारकों का उल्लेखनीय उपशमनकारी प्रभाव हो सकता है। इन कारकों में जून से कच्चे तेल की कीमतों में तेज गिरावट और वैश्विक आपूर्ति भरमार तथा ईरान द्वारा उत्पादन के विस्तार को देखते हुए इस नरमी के जारी रहने की संभावना, दलहन और तिलहन की बुआई में वृद्धि तथा कुछ पूर्वानुमानकर्ताओं के अनुसार अगस्त और सितंबर में वर्षा की संभावना, न्यूनतम समर्थन मूल्य वृद्धि को उदार रखने संबंधी सरकार के निर्णय के साथ खाद्य कीमतों विशेषकर सब्जियों की कीमतों के आघातों को नियंत्रित करने के लिए सरकार के वर्तमान अग्रसक्रिय आपूर्ति प्रबंध का प्रभाव आदि शामिल हैं।

15. दूसरे द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य के अनुमानों की तुलना में इस द्विमासिक वक्तव्य में मुद्रास्फीति के अनुमान जून में किए गए अवलोकन की तुलना में अधिक बढ़े हुए हैं किंतु ये अनुमान कच्चे तेल की कीमतों में नरमी और अब तक लगभग सामान्य मानसून की संभावना से कम हो गए हैं। इसका अभिप्रायः यह है कि जनवरी 2016 के लिए 6.0 प्रतिशत के लक्ष्य के आसपास व्यापक रूप से संतुलित जोखिमों के साथ जनवरी-मार्च 2016 के लिए मुद्रास्फीति अनुमान लगभग 0.2 प्रतिशत तक कम हैं। (चार्ट 1)

16. इन सभी को ध्यान में रखते हए और यह देखते हुए कि जून में नीतिगत कार्रवाई फ्रंट-लोडेड थी, यह विवेकपूर्ण होगा कि मौद्रिक नीति के उदार रुख को बनाए रखते हुए इस समय नीति दर को अपरिवर्तित रखा जाए। फिर भी लघुकालिक वास्तविक जोखिम मुक्त दरें आवास और ऑटोमोबाइल जैसे ब्याज दर सजगता वाले उपभोक्ता खंडों के ऋण के लिए सहायक हैं। उल्लेखनीय अनिश्चितता का आने वाले महीनों में समाधान किया जाएगा, इसमें हाल के मुद्रास्फीतिजनक दबाव के बने रहने की संभावना, मानसून की पूर्ण मात्रा और संभावित फेडरल रिज़र्व कार्रवाई शामिल है। चूंकि रिज़र्व बैंक अपनी विगत की फ्रंट-लोडेड कार्रवाइयों के पूरे लाभ की प्रतीक्षा कर रहा है, यह अधिक उदारता के लिए उभरती गुंजाइश की प्रगति की निगरानी करेगा।

17. वृद्धि की संभावना में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। कमजोर पण्य-वस्तु कीमतों, विशेषकर कच्चे तेल की कीमतों से अनुकूल वास्तविक आय प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं और मानसून में सुधार जारी रहने से कृषि गतिविधि में संभावित सुधार हो सकता है। दूसरी तरफ वर्ष 2015 के लिए वैश्विक वृद्धि का अनुमान सामान्य रूप से कम संशोधित किया गया है और इसलिए आने वाले समय में निर्यात संकुचन एक दीर्घकालिक बाधा बन सकता है। अवरूद्ध परियोजनाओं की स्थिति में कुछ सुधार को देखते हुए आपूर्ति प्रतिबंध अनिवार्य हैं और निजी क्षेत्र तथा केंद्रीय सरकार की तरफ से नए निवेश की मांग मंद है। उभरते जोखिम संतुलन के आकलन पर वर्ष 2015-16 के लिए अनुमानित उत्पादन वृद्धि 7.6 प्रतिशत पर रखी गई है (चार्ट 2)।

18. चौथा द्विमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य 29 सितंबर 2015 को घोषित किया जाएगा।

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2015-2016/297


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