1. एक करोड़ रुपये और उससे अधिक राशि के चूककर्ताओं के बारे में जानकारी जुटाना और प्रचारित करने की योजना।
दिनांक 23 अप्रैल 1994 के अपने परिपत्र डीबीओडी.सं.बीसी/सीआईएस/47/20.16.002/94 के जरिए रिज़र्व बैंक ने अनुसूचित वाणिज्य2 बैंकों और वित्ती9य संस्थाओं को सूचित किया था कि माननीय वित्ता मंत्री ने 28 फरवरी 1994 को अपने बजट भाषण में इस आशय की घोषणा की थी कि रिज़र्व बैंक की ओर से इस बात के प्रयास किये जा रहे हैं कि प्रारंभिक सीमा के ऊपर अपने ऋण की बकाया राशियों की अदायगी के मामले में ऋणदात्री संस्थााओं के साथ चूक करने वाले ऋणकर्ताओं की सूची बैंकों और वित्तीरय संस्थागओं के बीच परिचालित की जाए ताकि बैंकों और वित्तीरय संस्था ओं को सतर्क और चौकस किया जा सके। साथ ही, उन्होंसने यह भी कहा कि रिज़र्व बैंक द्वारा ऐसे चूककर्ताओं की सूची भी प्रकाशित की जायेगी जिनके विरुद्ध बैंकों और वित्तींय संस्थाीओं ने न्यायालय में मुकदमे दायर कर रखे हैं।
2. तदनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक ने एक करोड़ रुपये और उससे अधिक राशि के चूककर्ताओं के बारे में जानकारी जुटाने तथा उसे प्रचारित करने की एक योजना तैयार की है। समय-समय पर संशोधन की गयी उक्तध योजना इस समय विद्यमान मुख्यस-मुख्यए विशेषताएं निम्नाकनुसार हैं:
i) बैंकों और वित्तीदय संस्थारओं से यह अपेक्षित है कि वे प्रति वर्ष 31 मार्च और 30 सितंबर की स्थिति के अनुसार उन ऋण खातों के बारे में रिज़र्व बैंक को निर्धारित फार्मेट में जानकारी दें जिनकी बकाया राशियां (निधिकृत और गैर-निधिकृत मिलाकर) एक करोड़ रुपये और उससे अधिक हो तथा जिन्हेंक र्उन्हों ने संदिग्ध और हानिपूर्ण खातों की श्रेणी में वर्गीकृत किया हो, भले ही उनके विरुद्ध न्याधयालय में मुकदमे नहीं दायर किये गये हों।
ii) चूककर्ताओं के बारे में इस तरह प्राप्तय जानकारी समेकन के बाद, रिज़र्व बैंक द्वारा प्रति वर्ष 31 मार्च और 30 सितंबर की स्थिति के अनुसार, बैंकों और वित्ती य संस्था ओं को भेजी जाती है ताकि वे गोपनीय रूप से इसका उपयोग कर सकें। बैंकोंवित्तीसय संस्था ओं का यह दायित्व हे कि वे आरबीआई को प्रेषित जानकारी/आंकड़ों की शुद्धता/प्रामाणिकता सुनिश्चित करें। इस संबंध में किसी भी विसंगति/शुद्धि के लिए रिज़र्व बैंक का कोई दायित्वं नहीं होगा।
2. 25 लाख रुपये और उससे अधिक राशि के चूककर्ताओं के बारे में जानकारी जुटाने और उसे प्रचारित करने की योजना।
(i) केंद्रीय सतर्कता आयोग के अनुदेशों के अनुसरण में रिज़र्व बैंक ने बैंकों और अधिसूचित वित्तीय संस्था2ओं को दिनांक 20 फरवरी 1999 को परिपत्र सं.डीबीओडी.बीसी.डीएल(डब्यू्ती )12/20.16.002(1)/98-99 जारी कर दिया है। उक्त परिपत्र के अंतर्गत बैंकों और अधिसूचित वित्तीयय संस्थाओं से 25 लाख रुपये और उससे अधिक राशि के जानबूझकर चूक करनेवालों के बारे में तिमाही आधार पर जानकारी मांगी जाती है तथा तिमाही आधार पर उन्हें भी समेकित जानकारी भेजी जाती है। 30 मई 2002 को जारी परिपत्र डीबीओडी.सं.डीएल(डब्यूेकि ) बीसी.110/20.16.003/2001-02 के अनुसार पूर्व परिभाषा/व्यातख्या् को अधिक्रमित करते हुए अभिव्य क्ति, 'जानबूझकर चूक' निम्नापनुसार पुन: परिभाषित किया गया है।
निम्नलिखित में से कुछ भी घटित होने पर उसे 'जानबूझकर चूक' माना जायेगा:
(क) यदि सामर्थ्यम होने के बावजूद किसी इकाई ने ऋणदाता को ऐसा भुगतान/पुनर्भुगतान करने में चूक की हो जिसके लिए वह प्रतिबद्ध हो -
(ख) जब इकाई ने ऋणदाता को भुगतान/पुनर्भुगतान करने में चूक की हो तथा विशिष्टध प्रयोजनों हेतु ऋणदाता से प्रज्ञपत वित्ती का उन प्रयोजनों हेतु उपयोग नहीं करते हुए उपलब्ध् निधि का अन्यक प्रयोजनों हेतु उपयोग किया हो।
(ग) जब इकाई ने ऋणदाता को भुगतान/पुनर्भुगतान करने में चूक करते हुए उपलब्ध निधियों का अन्यपत्र उपयोग कर लिया हो जिसकी वजह से न तो विशिष्टण प्रयोजन हेतु निधियां उपलब्धत हो और न ही उक्तक इकाई में किसी अन्यध परिसम्प्त्ति के रूप में। उपर्युक्तव पैरा
(ख) में प्रयुक्तत अभिव्यनक्ति 'अन्यध प्रयोजनों हेतु निधि का उपयोग' उस स्थिति में घटित मानी जाएगी जब निम्नजलिखित में से कुछ भी घटित हो
(i) अल्पावधि कार्यशील पूंजी निधि का उपयोग दीर्घावधि प्रयोजनों के लिए किया गया हो जो मंजूरी की शर्तों के अनुरूप नहीं हो।
(ii) जिस प्रयोजन के लिए ऋण स्वीजकृत हुआ हो उससे इतर प्रयोजनों/गतिविधियों अथवा परिसम्पोत्तियों के लिए निधियों का उपयोग।
(iii) सहायक कंपनियों/समूह की कंपनियों अथवा कार्पोरेट इकाइयों को किसी भी तरह से निधियों का अंतरण।
(iv) ऋणदाता की अनुमति के बगैर निधियों को किसी अन्य बैंक अथवा सहायता संघ के सदस्यों से अतिरिक्तु किसी बैंक के माध्य।म से परिचालित करना।
(v) ऋणदाताओं की अनुमति बगैर अन्य। कंपनियों में शेयर/ऋण-लिखत अर्जित करने के लिए निवेश।
(vi) संवितरित/आहरित राशि के मुकाबले अनुमत प्रयोजनों के लिए क्रय राशि का वास्त्विक उपयोग एवं बाकी राशि का लेखाकरण नहीं किया जाना – उपयुक्त पैरा
(ग) में प्रयुक्तत अभिव्ययक्ति 'निधियों का अन्यतत्र उपयोग' उस स्थिति में घटित मानी जाएगी जब बैंकों/वित्तीसय संस्थाओं से उधार ली गई निधियों का प्रयोग ऐसे प्रयोजनों के लिए हो जो ऋणकर्ता के परिचालनों के दायरे में नहीं आते हों, संबंधित इकाई अथवा ऋणदाता के वित्तीय स्वालस्य्कर विरुद्ध हों। किसी घटना विशेष में 'निधियों का अन्यमत्र उपयोग' हुआ है अथवा नहीं इसका निर्णय ऋणदाताओं द्वारा किया जायेगा जो वस्तुानिष्ठप तथ्यों और परिस्थितियों पर आधारित रहेगा। उपर्युक्तय परिपत्र में जानबूझकर चूक करने वालों के विरुद्ध कतिपय दंडात्म्क उपायों का भी प्रावधान है।
(ii) वर्तमान में योजना की, समय समय पर यथा संशोधित, मुख्यध मुख्य बातें इस प्रकार हैं:-
(क) बैंकों तथा वित्तीय संस्थापओं के लिए अपेक्षित है कि वे उन उधार-खातों जिन्हें उपर्युक्त मानदंडों के अनुसार कुल मिलाकर 25 लाख रूपये या उससे ऊपर के लिए जानबूझकर चूककर्ताओं की श्रेणी में रखा गया है और उनके विरुद्ध मुकदमा दायर नहीं है, के ब्यौउरे भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रति वर्ष निर्धारित प्रारूप में 31 दिसंबर को प्रस्तुनत करें।
(ख) जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, बैंकों तथा वित्तीपय संस्था ओं से इस प्रकार प्राप्तर चूककर्ता संबंधी आंकड़े बैंकों द्वारा गोपनीय कार्रवाई करने हेतु प्रति वर्ष निर्धारित प्रारूप में 31 मार्च, 30 जून, 30 सितंबर और 31 दिसंबर को बैंकों एवं वित्तीनय संस्थाओं के बीच परिचालित किए जाते हैं। अत: यह बैंकों तथा वित्ती3य संस्थाथओं का दायित्वऔ है कि वे भारतीय रिज़र्व बैंक को सही सही आंकड़े प्रस्तुरत करें और भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकों तथा वित्ती0य संस्थासओं द्वारा उपलब्धय करवाएं गए आंकड़ों के गलत होने/विसंगति के लिए उत्त रदायी नहीं है।
3. जानबूझकर चूककर्ताओं की शिकायतों का निवारण
यद्यपि, जानबूझकर चूककर्ताओं के रूप में वर्गीकृत अधारकर्ताओं की शिकायतों के निवारण के लिए बैंकों तथा वित्तीउय संस्थायओं के पास कोई कार्य प्रणाली नहीं है फिर भी, 29 जुलाई 2003 के परिपत्र डीबीओडी.सं.बीसी.डीएल.7/20.16.003/2003-04 द्वारा उन्हेंब सूचित किया गया था कि वे कार्यपालक निदेशक की अध्य.क्षता वाली एक उच्च.-स्तीरीय समिति गठित करें जो कि जानबूझाकर चूककर्ता उधार-खातों का वर्गीकरण करे और इसके साथ ही अध्य क्ष एवं प्रबंध निदेशक की अध्यीक्षता वाली एक समिति गठित की जाए जो कि उन उधार कर्ताओं की बात सुने जो यह कहना चाहते हैं कि उन्हें गलत तरीके से इस श्रेणी में डाल दिया गया है। इसके अतिरिक्तर, 17 जून 2004 के परिपत्र डीबीओडी;सं.बीसी.94/20.16.003/2003-04 द्वारा, उन्हें यह भी सूचित किया गया था कि वे संबंधित उधारकर्ता को समुचित रूप से सूचित करें कि उसे जानबूझकर चूककर्ता श्रेणी में क्योंय डाला गया है और इसके साथ ही उसके कारण बताये जाएं और यदि वह इन कारणों के विरुद्ध कोई प्रतिवेदन देने का इच्छु्क हो तो उसे उपयुक्तर समय (जैसे कि 15 दिन) दिया जाए।
4. क्रेडिट इन्फॉजर्मेशन ब्यू रो (प्रा.लि.) सीआईबीआईएल द्वारा चूककर्ताओं से संबंधित जानकारी एकत्र करना और उसका प्रसार करना
उपर्युक्त योजनाओं के अंतर्गत, वर्ष 2002 तक भारतीय रिज़र्व बैंक भी आवधिक स्तंर पर ऐसे चूककर्ताओं के खातों से संबंधित जानकारी एकत्र करना और उसके प्रचार-प्रसार का कार्य करती रही है जिनके विरुद्ध मुकदमें दायर थे। तथापि, बैंकों तथा वित्नक य संस्थारओं को 4 जून 2002 के परिपत्र डीबीओडी.सं.बीसी.डीएल.111/20.16.003/2001-01 द्वारा सूचित किया गया था कि वे एक करोड़ रुपये और उससे ऊपर के उधारकर्ताओं (जिन पर मुकदमे दायर हैं) तथा 25 लाख रुपये तथा उससे ऊपर के जानबूझकर चूककर्ताओं (जिन पर मुकदमे दायर हैं) की सूची सहित 31 मार्च 2003 की स्थिति के अनुसार जानकारी भारतीय रिज़र्व बैंक को उपलब्धप करवायें और उसके बाद से केवल सीआईबीआईएल को जानकारी दी जाये, भारतीय रिज़र्व बैंक को नहीं क्योंलकि सीआईबीआईएल इसके प्रचार-प्रसार का कार्य देख रही है और भारतीय रिज़र्व बैंक, इसके बाद से, एक करोड़ रुपये और उससे ऊपर के उधारकर्ताओं (जिन पर मुकदमें दायर नही हैं) तथा 25 लाख रुपये तथा उससे ऊपर के जानबूझकर चूककर्ताओं की सूची के उधार-कर्ताओं से संबंधित आंकड़ों, जो कि केवल बैंकों को गोपनीय कार्रवाई करने हेतु उन्हेंच उपलब्धी करवाये जाते हैं, पर कार्य करता रहेगा। चूंकि 31 मार्च 2003 से उप चूककर्ताओं की सूची, जिनके पर मुकदमे दायर हैं, के पप्रचार-प्रसार का कार्य सीआईबीआईएल द्वारा देखा जा रहा है, 31 मार्च 2003 के पहले की चूककर्ताओं की सूची भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट से निकाल दी गयी है। सीआईबीआईएल द्वारा जारी चूककर्ताओं की सूची से संबंधित कोई भी प्रत्राचार केवल सीबीआईएल/ संबंधित बैंकों तथा वित्चूकय संस्थांओं के साथ ही किया जाए। इस संबंध में 20 मई 2004 को एक प्रेस विज्ञप्ति भी जारी कर दी गई है।
सार्वजनिक सूचना
हमारे ध्याकन में यह बात लायी गयी है कि मेसर्स कम्पॅतक्टा डिस्कि इंडिया लिमिटेड, चंडीगढ़ ने ' loandefaulters.com' नामक वेबसाइट शुरू की है जिसमें ऐसे चूककर्ता ऋणनितियों के संबंध में सूचना प्रकाशित की गयी है जिन्होंकने बैंकों/वित्तीकय संस्थाटओं से ऋण/वित्ती य प्राप्तं की है। उक्तक वेबसाइट में दिए गए 'दावा अस्वीतकरण खंड' में अन्यr बातों के साथ-साथ यह कहा गया है कि दी गयी सूचना भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा यूचित किये गये अनुसार है और किसी वैध कारण से कोई व्य क्ति त्रस्त महसूस करता है कि चूककर्ता कंपनी की सूची में निदेशक के रूप में उसका नाम स्थाकन नहीं पा सका तो वह मामले को आवश्य्क कार्रवाई के लिए सीधे बैंक या उधार देनेवाले संस्था या रिज़र्व बैंक से उठा सकता है। इसके द्वारा यह स्पकष्ट किया जाता है कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने ' loandefaulters.com' के निर्माताओं को या अन्यद किसी व्यंक्ति को रिज़र्व बैंक की पुस्तककें/वेबसाइट में उपलब्धै किसी ब्यौचरे को उसी रूप में या संशाधित रूप में प्रकाशित या पुन:प्रकाशित करने का प्राधिकार नहीं दिया है तथा रिज़र्व बैंक ऐसी पार्टिश्यों की किसी कार्रवाई के लिए किसी व्यरक्ति के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा। तथापि, रिज़र्व बैंक ने क्रेडिट इंर्फोमेशन ब्यू रो को 31 मार्च 2003 और उसके बाद की स्थितियों के अनुसार 1 करोड़ रुपये और उससे अधिक की चूककर्ता सूची (मुकदमा दायर किये गये खाते) तथा 25 लाख रुपये और अधिक के जानबुझकर चुक करनेवालों की सूची (मुकदमा दायर किये गये खाते) प्रकाशित करने के लिए अधिकृत किया है।
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