डॉ. डी. सुब्बाराव
गवर्नर
प्रस्तावना
समष्टि आर्थिक दृष्टिकोण से पिछली तिमाही के दौरान वैश्विक एवं घरेलू दोनों स्तरों पर उल्लेखनीय गतिविधियां देखने को मिलीं। अमेरिका सहित यूरो क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं का विकास धीमा पड़ गया है। यूरो क्षेत्र में, समष्टि आर्थिक संभावनाएं सरकारी ऋण और वित्तीय क्षेत्र की समस्याओं से विश्वसनीय रुप से निपटने की क्षमता पर काफ़ी निर्भर करती हैं। इससे जुड़ा हुआ पहलू यह है कि व्यापार व वित्त की कड़ियों ने यूरो क्षेत्र की अस्थिरता को उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमईज़) में संचरित होने के ख़तरे बढ़ा दिए हैं जो कि पहले ही अपने वित्तीय बज़ारों में, विशेषत: करेंसी बज़ारों में बड़ी अस्थिरता से गुजर चुकी हैं। उल्लेखनीय है कि इस तिमाही के दौरान जहां कई पण्यों की कीमतों में गिरावट हुई वहीं कच्चे तेल की कीमतों में तुलनात्मक रूप से मज़बूती बनी रही। करेंसी के मूल्यह्रास ने पण्यों का आयात करनेवाली उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं को और भी प्रभावित किया है।
2. इस उथल-पुथल एवं बढ़ी हुई अनिश्चितता वाले माहौल में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि स्पष्टत: धीमी पड़ती देखी जा सकती है। इस धीमेपन का आंशिक कारण है मौद्रिक नीति का मुद्रास्फीति-रोधक रुख़, जो मुद्रास्फीति को कम करने की एक आवश्यक शर्त है। लेकिन विकास की धीमी गति, विशेषकर निवेश गतिविधियों में उल्लेखनीय कमी के लिए और भी कारक जिम्मेदार हैं, जैसे कि नीतिगत एवं विनियामक मामले। विकास की तेजी को बनाए रखने पर इन मुद्दों का स्पष्ट रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
3. चिंता की बड़ी बात तो यह है कि विकास में स्पष्ट रूप से देखे जा रहे धीमेपन के बावजूद मुद्रास्फीति बनी हुई है। राहत की बात यह है कि मुद्रास्फीति में गति के संकेतक (मुमेन्टम इंडिकेटर्स) नीचे की ओर जा रहे हैं जिससे रिज़र्व बैंक का यह अनुमान सही होता प्रतीत हो रहा है कि मुद्रास्फीति दर में दिसंबर तक उल्लेखनीय गिरावट आएगी और वह 2012-13 में उसी रास्ते पर बनी रहेगी ।
4. इस समीक्षा में नीतिगत रुझान एवं मार्गदर्शन लगातार बनी हुई मुद्रास्फीति एवं विकास की धीमी गति की चिंताओं के बीच तालमेल स्थापित करने की जरूरत को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं। हाल की नीतिगत कार्रवाइयां इस बात पर आधारित हैं कि लंबे समय तक विकास कम एवं स्थिर मुद्रास्फीति के साथ ही संभव है। लगातार उच्च मुद्रास्फीति से प्रत्याशाओं पर अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और उनके माध्यम से उपभोक्ता एवं निवेश के निर्णय भी प्रभावित होते हैं। नीतिगत रुख़ में ऐसे समय में बदलाव जब मुद्रास्फीति अभी भी सह्य सीमा से काफी ऊपर बनी हुई है, कम एवं स्थिर मुद्रास्फीति बनाए रखने की रिज़र्व बैंक की प्रतिबद्धता की विश्वनीयता के लिए जोखिम भरा है। तथापि, मौजूदा परिदृश्य में विकास संबंधी जोखिम नि:संदेह रूप से उल्लेखनीय हैं एवं इन पर उचित ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
5. यह नीतिगत समीक्षा ऊपर उल्लिखित वैश्विक एवं घरेलू चिंताओं के परिप्रेक्ष्य में तैयार की गई है। इसे रिज़र्व बैंक द्वारा कल जारी की गई व्यापक आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां में दी गई विस्तृत समीक्षा के साथ पढ़ा एवं समझा जाना चाहिए।
6. यह वक्तव्य दो भागों में तैयार किया गया है। भाग ए मौद्रिक नीति पर केंद्रित है और इसे चार खंडों में बांटा गया है: खंड I में वैश्विक एवं घरेलू समष्टि आर्थिक गतिविधियां दी गई हैं; खंड II में विकास, मुद्रास्फीति और मौद्रिक समुच्चयों संबंधी परिदृश्य एवं पूर्वानुमान दिए गए हैं; खंड III मौद्रिक नीति के रुख़ को स्पष्ट करता है तथा खंड IV में मौद्रिक उपायों का उल्लेख है। भाग बी में विकासात्मक एवं विनियामक नीतियां दी गई हैं और इसे छह खंडों में बांटा गया है: ब्याज दर नीति (खंड I), वित्तीय बाजार (खंड II), वित्तीय स्थिरता (खंड III ), ऋण वितरण और वित्तीय समावेशन (खंड IV), वाणिज्य बैंकों के लिए विनियामक एवं पर्यवेक्षी उपाय (खंड V ) तथा संस्थागत गतिविधियां (खंड VI) ।
भाग ए. मौद्रिक नीति
I. अर्थव्यवस्था की स्थिति
वैश्विक अर्थव्यवस्था
7. वर्ष 2011 की तीसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के दौरान उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की आर्थिक गतिविधियां और भी कमजोर पड़ गईं। यूरो क्षेत्र के मध्यावधि सरकारी ऋण के प्रति बढ़ती चिन्ताओं और विशेष रूप से इन कर्जों के धारक बैंकों को होने वाली बड़ी संभावित हानियों ने वैश्विक वित्तीय बाजारों को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया है। मंद वृद्धि, कमजोर सरकारी तुलन-पत्रों, सरकारी ऋण में बैंकों के विशाल एक्सपोजर और विश्वसनीय समाधान के आड़े आती राजनैतिक बाध्यताओं से जुड़े हुए प्रतिकूल फीडबैक के चक्र ने विश्वास का संकट खड़ा कर दिया है जो क्षेत्रीय एवं वैश्विक वित्तीय स्थिरता के लिए बडा़ खतरा है।
8. उपभोक्ता विश्वास एवं निजी उपभोग पर कच्चे तेल और अन्य पण्यों की उच्च कीमतों, लगातार बनी हुई उच्च बेरोजगारी और कमजोर आवासीय बाजारों का प्रभाव जारी रहा। मध्यावधि सरकारी ऋण से जुड़ी चिन्ताओं से उपजी राजकोषीय कड़ाई ने भी विकास में आई कमी में योगदान दिया। इसे वैश्विक विनिर्माता क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) में आई गिरावट में भी देखा जा सकता है जो सितंबर में 49.9 तक पहुँच गया जो जून 2009 के बाद से इसका निम्नतम स्तर है।
9. उपर्युक्त कारकों ने प्रमुख उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं पर भी असर डाला है। आईएमएफ के अनुसार वैश्विक वृद्धि वर्ष-दर-वर्ष आधार पर वर्ष 2011 की पहली तिमाही के 4.3 प्रतिशत से घटकर दूसरी तिमाही में 3.7 प्रतिशत हो गई तथा तीसरी तिमाही में यह आकलित 3.6 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई और इसी अवधि के दौरान उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि 2.2 प्रतिशत से गिरकर 1.5 प्रतिशत और फिर 1.3 प्रतिशत हो गई।
10. उल्लेखनीय है कि दूसरी तिमाही के बाद से कमजोर वैश्विक वृद्धि की वजह से अंतरराष्ट्रीय पण्यों की कीमतों, विशेषकर कच्चे तेल की कीमतों में थोड़ा सुधार हुआ। ब्रेंट और दुबई फतेह की कीमतों (जो भारतीय समूह का घटक हैं) में मामूली कमी हुई है। विश्व बैंक की एनर्जी कीमतों के सितंबर 2011 के सूचकांक में 32 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) एवं गैर-एनर्जी कीमतों में 17 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने में आई।
11. उपर्युक्त प्रवृत्ति के अनुरूप उन्नत एवं उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं, दोनों में शीर्ष (हेडलाइन) मुद्रास्फीति माप संतोषजनक स्थिति/लक्ष्य से अधिक बने रहे। उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के मामले में मज़बूत घरेलू मांग के दबावों ने मुद्रास्फीतिपरक दबावों को और भी बढ़ा दिया। सितंबर 2011 में प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शीर्ष (हेडलाइन) उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति (वर्ष-दर-वर्ष) अमेरिका में 3.9 प्रतिशत, यूरो क्षेत्रमें 3.0 प्रतिशत, यूके में 5.2 प्रतिशत, चीन में 6.1 प्रतिशत, ब्राजील में 7.3 प्रतिशत और तुर्की में 6.2 प्रतिशत थी। उथलपुथल भरी वैश्विक स्थितियों और घरेलू चिन्ताओं के प्रति प्रमुख उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंकों ने अपनी – अपनी विशिष्ट समष्टि आर्थिक स्थितियों के अनुसार अलग-अलग तरह की रेस्पॉन्स दिखलाया ।
घरेलू अर्थव्यवस्था
12. जीडीपी वृद्धि जो एक वर्ष पहले 8.8 प्रतिशत और वर्ष 2010-11 की चौथी तिमाही में 7.8 प्रतिशत थी वह 2011-12 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में गिरकर 7.7 प्रतिशत हो गई। आपूर्ति पक्ष को देखा जाए तो पहली तिमाही में वृद्धि में गिरावट का मुख्य कारण खनन, विनिर्माण, भवन निर्माण और 'सामुदायिक, सामाजिक एवं निजी सेवाओं' की धीमी वृद्धि था।
13. दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान बरसात सामान्य से एक प्रतिशत अधिक रही। रिज़र्व बैंक की उत्पादन भारित बरसात भी सामान्य से एक प्रतिशत अधिक रही। वर्ष 2011-12 के खरीफ मौसम के पहले अग्रिम अनुमान चावल, तिलहन और कपास के रिकार्ड उत्पादन की ओर इशारा कर रहे हैं। तथापि, रकबे में आई कमी की वजह से दालों के उत्पादन में गिरावट आ सकती है।
14. औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक के आधार पर मापी जानेवाली औद्योगिक वृद्धि गिरकर अप्रैल-अगस्त 2011 में 5.6 प्रतिशत रह गई जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान 8.7 प्रतिशत थी। इसकी मुख्य वजह पूंजीगत वस्तुओं, कलपुर्जों और टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं की मंदी थी। आठ मूलभूत बुनियादी सुविधा उद्योगों की वृद्धि गिरकर अप्रैल-अगस्त 2011 के दौरान 5.3 प्रतिशत पर पहुंच गई जो कि पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान 6.1 प्रतिशत थी।
15. रिज़र्व बैंक की ऑर्डर बुक, इंवेंटरी एंड कॅपेसिटी युटिलाइजेशन सर्वे (ओबीआइसीयूएस) के अनुसार पिछली तिमाही की तुलना में वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही के दौरान कॅपेसिटी युटिलाइजेशन धीमा पड़ गया। जैसा कि रिज़र्व बैंक के इंडस्ट्रियल आउटलुक सर्वे के व्यापार प्रत्याशा सूचकांक में देखने को मिला, वर्ष 2011-12 की दूसरी तिमाही में कारोबारी मिज़ाज में गिरावट देखने में आई जो कि अगली तिमाही में और नीचे गया। सितंबर 2011 के दौरान विनिर्माण एवं सेवाओं दोनों के पीएमआई सूचकांक में गिरावट दर्ज हुई।
16. 2,426 गैर वित्तीय कंपनियों के एक नमूना विश्लेषण के आधार पर 2011-12 की पहली तिमाही में कंपनियों के मार्जिन के वर्ष 2010-11 की चौथी तिमाही की तुलना में सभी क्षेत्रों में उनके स्तरों की तुलना में नरम हुए। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) के उपयोग आधारित खण्ड में कंपनियों के एक वर्गीकरण से यह संकेत मिला कि माध्यमिक माल के खण्ड ने मार्जिनों में अधिकतम गिरावट दर्ज़ की जिसका पण्य की कीमतों पर प्रभाव पड़ा। अन्य खण्डों में निम्न मार्जिन दबाव आये जिस में यह पता चलता है कि मूल्य निर्धारण शक्ति, अलबत्ता धीरे-धीरे कम हो रही है। वर्ष 2011-12 की दूसरी तिमाही के लिए शीघ्र परिणाम (20 अक्तूबर, 2011 तक विश्लेषण की गयी 161 कंपनियों के) यह बताते हैं कि बिक्री वृद्धि और मार्जिन दोनों में धीरे-धीरे नरमी आयी है।
17. वर्ष-दर-वर्ष प्रमुख थोक मूल्य सूचकांक वित्तीय वर्ष के दौरान अब तक अटल रूप से उच्चतर रहा जो औसत रूप से 9.6 प्रतिशत रहा। मुद्रास्फीति तीन मुख्य समूहों अर्थात प्राथमिक वस्तुएं, ईंधन और शक्ति और विनिर्मित उत्पाद के कारण बनी। जैसा कि पहली तिमाही की समीक्षा में निर्दिष्ट किया गया था, मुद्रास्फीति का स्तर और उसका बने रहना, दोनों चिंता का कारण रहे। तथापि, गैर मौसमीय क्रमिक तिमाही थोक मूल्य सूचकांक आंकड़ों से कुछ राहत यह मिली जो यह बता रही थी कि मुद्रास्फीति की गति कम हुई है।
18. वर्ष-दर-वर्ष प्राथमिक खाद्य मुद्रास्फीति अगस्त के 9.6 प्रतिशत की तुलना में सितंबर 2011 में 9.2 प्रतिशत रही। प्राथमिक खाद्य मुद्रास्फीति का उन्नत स्तर सब्जियों, दूध और दालों की कीमतों में वृद्धि के कारण बना।
19. वर्ष-दर-वर्ष ईंधन समूह मुद्रास्फीति मुख्यत: पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि और बिजली की कीमतों में ऊर्ध्वमुखी संशोधन के कारण अगस्त 2011 के 12.8 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर में 14.1 प्रतिशत हो गई।
20. वर्ष-दर-वर्ष विनिर्मित खाद्येतर उत्पाद मुद्रास्फीति जो अगस्त में 7.7 प्रतिशत और अप्रैल में 7.0 प्रतिशत थी, की तुलना में सितंबर में 7.6 प्रतिशत रही। इसमे पिछले छह वर्षों के दौरान 4.0 प्रतिशत से थोड़ा अधिक औसत गैर-खाद्य विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति की तुलना में देखा जाना चाहिए। वर्तमान का उच्च स्तर, जैसा कि वर्ष 2011-12 की दूसरी तिमाही में कंपनियों के पहलेवाले परिणामों से द्रष्टव्य है, उच्च पण्य मूल्यों और स्थायी मूल्य निर्धारण शक्ति के संयोग को दर्शाता है।
21. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक द्वारा औद्योगिक कामगारों के लिए नापी गयी वर्ष-दर-वर्ष मुद्रास्फीति जो अप्रैल-जुलाई 2011 के दौरान नरम हो गई थी वह अगस्त में खाद्यान्नों के मूल्य में वृद्धि होने के कारण 9.0 प्रतिशत हो गयी। नया संयुक्त (ग्रामीण और शहरी) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (आधार:2010=100) अगस्त के 111.7 से बढ़ कर सितंबर में 113.1 हो गया। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित अन्य मुद्रास्फीति सितंबर के दौरान 9.3 से 9.4 प्रतिशत के बीच बनी रही।
22. वर्ष-दर-वर्ष मुद्रा आपूर्ति (एम3) वृद्धि वित्तीय वर्ष के प्रारंभ के 17.2 प्रतिशत से कम हो कर 7 अक्तूबर, 2011 में 16.2 प्रतिशत रह गयी। तथापि, यह स्तर 2011-12 के लिए 15.5 प्रतिशत के संकेतात्मक अनुमान से अब भी उच्चतर रहा, यह मीयादी जमाराशियों की दरें बढ़ने के कारण बैंक जमाराशियों में हुई वृद्धि को दर्शाता है। इसके बदले इसका परिणाम मुद्रा वृद्धि में नरमी होने में हुआ।
23. हालांकि गैर खाद्य ऋण वृद्धि वर्ष-दर-वर्ष आधार पर अप्रैल के 22.6 प्रतिशत से कम हो कर 7 अक्तूबर 2011 में 19.3 प्रतिशत रह गयी, वह मौद्रिक नीति 2011-12 की पहली तिमाही समीक्षा में निर्धारित 18 प्रतिशत के संकेतात्मक अनुमान से उच्चतर रही थी। वित्तीय वर्ष (अप्रैल-सितंबर) आधार पर असमेकित आंकड़े यह दर्शाते हैं कि उद्योग क्षेत्र को ऋण में वृद्धि पिछले वर्ष के 8.1 प्रतिशत से घटकर 7.5 प्रतिशत कम हुई जिसमें मूलभूत सुविधाओं को दिये जानेवाली ऋण तीव्र गति से गिरावट आयी। सेवाओं और व्यक्तिगत उधारियों में भी ऋण वृद्धि धीमी पड़ गई। तथापि आवास ऋणों में वृद्धि की गति बढ़ गई।
24. वर्ष 2011-12 की पहली छमाही के दौरान बैंकों, गैर-बैंकों और वाणिज्य क्षेत्रों को बाह्य स्रोतों को वित्तीय संसाधनों का कुल अनुमानित प्रवाह पिछले वर्ष की उसी अवधि के दौरान 4,80,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 5,00,000 करोड़ रुपये के आसपास रहा। बैंक ऋणों में कमी गैर बैंक और बाह्य स्रोतों, विशेष रूप से विदेशी सीधे निवेश और बाह्य वाणिज्य उधारों से उच्चतर प्रवाहों द्वारा पूरी हो गयी थी, फिर भी वित्तीय संसाधनों के लिए अधिक मांग दर्शा रही थी।
25. वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही के दौरान बैंकों की निश्चित जमाराशि दर 80 आधार बिंदुओं (बीपीएस) की वृद्धि के साथ 7.45 प्रतिशत रही। जमाराशियों की दरों में वृद्धि बैंकिंग प्रणाली में एक वर्ष तक की परिपक्व राशियों के लिए तुलनात्मक रूप से तीव्र रही। इसी अवधि में बैंकों की निश्चित आधार दर 125 आधार बिंदुओं के वृद्धि के साथ 10.75 प्रतिशत रही।
26. चलनिधि की स्थितियों वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान (21 अक्तूबर तक) घाटे की स्थिति में रही जो मौद्रिक नीति के प्रति-पुद्रास्फीतिकारी रुझान के साथ सुसंगत थी। जैसा कि चलनिधि समायोजन सुविधा रेपो के अंतर्गत दैनिक उघारों से दिखाई देता है, बैंकिंग प्रणाली में चलनिधि घाटा 21 अक्तूबर 2011 तक औसत 47,000 करोड़ रुपये तक बना रहा। इस प्रकार यह प्रणालीगत घाटा बैंक की शुद्ध मांग और मीयादी देयताओं के एक प्रतिशत के भीतर रहा। यह स्तर रिज़र्व बैंक द्वारा आकलित कन्फर्ट जोन के भीतर था।
27. केंद्र सरकार के मुख्य घाटा संकेतक अप्रैल-अगस्त 2011 के दौरान और बढ़ गए। यह कर राजस्व में कमी और व्यय में, विशेष रूप से, उर्वरकों और पेट्रोलियम सहायता में वृद्धि दोनों के कारण हुआ। अप्रैल-अगस्त 2011 के दौरान राजकोषीय घाटा बजट अनुमान 2010-11 के 58.4 प्रतिशत की तुलना में 66.3 प्रतिशत था, यद्यपि बजट अनुमान स्पेक्ट्रम प्राप्तियों से उच्चतर समायोजन किया गया था l
28. केंद्र सरकार ने अन्य वित्तीय मदों में आनेवाली कमी को पूरा करने के लिए बजट अनुमानित उधारों में 53,000 करोड़ रुपये की वृद्धि घोषित की। परिणामस्वरूप वर्ष के लिए संशोधित सकल (शुद्ध) उधार 5,23,000 करोड़ रुपये (4,06,000 करोड़ रुपये) के आसपास आते हैं। केंद्र सरकार ने सकल राशि (3,20,000 करोड़ रुपये) का 61 प्रतिशत और शुद्ध बाज़ार उधारियों (2,41,000 करोड़ रुपये) का 59 प्रतिशत 14 अक्तूबर, 2011 तक जुटाया।
29. मुद्रा बाज़ार में वर्ष 2011-12 के दौरान अब तक ओवरनाइट ब्याज दरें सामान्यत: रेपो दर के समीप रही हैं। 10 वर्षीय बेंचमार्क सरकारी प्रतिभूति प्रतिफल, जो वर्ष 2011-12 के दौरान पहली छमाही के दौरान रेंज के भीतर रहा, वह अक्तूबर 2011 के दौरान (21 अक्तूबर को 8.82 प्रतिशत तक) 38 आधार बिंदु बढ़ गया और उस कारण छमाही में सरकारी उधारियों में आंशिक रूप से वृद्धि हुई।
30. वर्ष 2011-12 में स्थिरता की एक अवधि के बाद ईक्विटी और विदेशी मुद्रा बाज़ार वर्ष 2011-12 की दूसरी तिमाही में कुछ दबाव में आ गए, जो वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में अस्थिरता के परिणामस्वरूप थी। वैश्विक जोखिम निवारण द्वारा बृहत रूप से आए, विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा उल्लेखनीय बाह्य स्रोतों के कारण हाल ही के सप्ताहों में देशी ईक्विटी कीमतों में गिरावट आई।
31. मार्च और सितंबर 2011 के दौरान 6,30 और 36 करेन्सी व्यापार भारित वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (रीअर) में क्रमश: 6.3 प्रतिशत, 2.0 प्रतिशत और 4.1 प्रतिशत की कमी आयी। इसका कारण प्रमुख रुप से यूएस डॉलर के सामने रुपये 8.7 प्रतिशत का सामान्य मूल्यह्रास था। रुपये का सितंबर की समाप्ति और 21 अक्तूबर 2011 के बीच यूएस डॉलर के सामने 2.3 प्रतिशत का और मूल्यह्रास हुआ। इस संदर्भ में यह नोट करना सुसंगत होगा कि रिज़र्व बैंक की विनिमय मुद्रा दर नीति निर्धारित और एक पूर्व-घोषित लक्ष्य और बैंक द्वारा मार्गदर्शित नहीं होती है। इस नीति का उद्देश्य अतिरिक्त अस्थिरता का और समष्टि आर्थिक स्थिरता में बाधाओं का प्रबंध करने के लिए बाज़ार में हस्तक्षेप करने के लिए लोच को बनाये रखना है।
32. धीमी और अनिश्चित वैश्विक वित्तीय स्थितियों के बावजूद वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही के दौरान निर्यात 47 प्रतिशत से बढ़ गये थे और गन्तव्यों (लक्ष्यों) में विविधता दर्शाते हैं। इसी अवधि में आयात बृहत् रूप से 33 प्रतिशत से बढ़ गये थे मुख्य रूप से तेल की कीमतों में वृद्धि दर्शाते हैं। परिणामस्वरूप व्यापार घाटा पिछले वर्ष के समनुरूपी अवधि में 32.3 बिलियन यूएस डॉलर से वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही में 35.4 बिलियन यूएस डॉलर तक बढ़ गया। यदि वर्तमान प्रवृत्ति कायम रही तो चालू खाता घाटा (सीएडी) सकल देशी उत्पाद के प्रतिशत के रूप में पिछले वर्ष की तुलना में अधिक रहेगा।
II परिदृश्य और पूर्वानुमान
वैश्विक परिदृश्य
वृद्धि
33. यूरो क्षेत्र के कुछ देशों में सरकारी ऋण के संभाले जा सकने को लेकर बढ़ती हुई चिंता का असर पिछले कुछ महीनों से उल्लेखनीय रूप से कमजोर पड़ती वैश्विक वृद्धि संभावनाओं में दिखाई दे रह है। इससे मुख्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का एक और कारण जुड़ा है जो कि तेल और अन्य पण्यों की बढ़ती हुई कीमतों, उच्च बेरोजगारी दरों, उपभोक्ताओं के डूबते आत्मविश्वास और कमजोर आवास बाज़ारों का दबाव झेल रही हैं। इसके विपरीत मौद्रिक सख्ती के कारण कुछ धीमेपन के बावजूद उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में विकास में तुलनात्मक तौर पर आतंरिक मज़बूती है। तथापि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में लंबे समय तक धीमापन उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि संभावनाओं को कमजोर बना सकता है। आइ एम एफ़ ने सितंबर 2011 के अपने वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक (डब्ल्यू ई ओ) में, 2011 और 2012 दोनों वर्षों की वैश्विक वृद्धि के बारे में क्रमश: 4.3 और 4.5 प्रतिशत के अपने पिछले (जून) 2011 आकलन को घटाकर 4.0 प्रतिशत कर दिया।
मुद्रास्फीति
34. आर्थिक गतिविधियों के उल्लेखनीय रूप से कमजोर होने के बावजूद वैश्विक पण्य मूल्य मामूली रूप से सुधरे हैं। आपूर्ति की सीमाएं पण्य कीमतों को ऊपर ले जाने वाली एक प्रमुख जोखिम बनी हुई है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (डब्ल्यूईओ सितंबर 2011) के अनुसार उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फ़ीति के उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में 2010 के 1.6 प्रतिशत से बढ़ कर 2011 में 2.6 प्रतिशत हो जाने की और उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में 6.1 से बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो जाने की संभावना है।
घरेलू परिदृश्य
वृद्धि
35. रिज़र्व बैंक ने अपने मई और जुलाई के तिमाही समीक्षा वक्तव्यों में वर्ष 2011-12 के लिए 8.0 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया था। तथापि, सितंबर की मध्य – तिमाही समीक्षा में कहा गया कि वृद्धि अनुमान के नीचे होने का खतरा मुख्यत: वैश्विक अर्थव्यवस्था के धीमे पड़ने और घरेलू माँग में कमी आने के कारण था। भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ बढ़ते अंतर-संबंधों के चलते धीमी वैश्विक वृद्धि का देशी वृद्धि पर, विशेष रूप से औद्योगिक उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। सेवा क्षेत्र में वृद्धि कायम है, हालांकि यहाँ भी अंतर्क्षेत्रीय संबंधों के कारण कुछ धीमेपन की संभावना बनी रहेगी। सामान्य दक्षिण-पश्चिम मानसून और प्रथम अग्रिम अनुमानों, जिनमें रिकार्ड स्तर के खरीफ उत्पादन की बात की गई है, के आधार पर कृषि की संभावनाएं अच्छी प्रतीत होती हैं। इससे ग्रामीण मांग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। तथापि, निवेश मांग में गिरावट आई है जो परियोजनाओं के क्लिअरेंस और कार्यान्वयन में धीमापन, मुद्रास्फीति एवं बढ़ते जा रहे ब्याज दरों के बारे में चिंता का परिचायक है। इन विचारों के आधार पर, वर्ष 2011-12 के लिए जीडीपी वृद्धि के आधार-स्तरीय अनुमान (बेसलाइन प्रोजेक्शन) को संशोधित करते हुए घटाकर 7.6 प्रतिशत किया गया है (चार्ट 1)।
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मुद्रास्फीति 36. आगे, मुद्रास्फीति मांग और आपूर्ति दोनों ही घटकों से तय होगी। पहले, यह सकल मांग में कमी की मात्रा पर निर्भर होगी। मांग में कमी के कुछ संकेत तो स्पष्ट हैं, हालांकि निवेश पक्ष में असर अधिक महसूस किया जा रहा है।
37. दूसरे, कच्चे तेल की कीमतें निकट भविष्य में देशी मुद्रास्फीति को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगी। वैश्विक अर्थव्यवस्था की धीमी वृद्धि संभावनाओं के बावजूद कच्चे तेल के मूल्यों में मामूली कमी देखी गई। साथ ही, हाल की अवधि में अब तक वैश्विक कच्चे तेल मूल्य में आई गिरावट से होने वाले लाभ पर रुपए के मूल्यह्रास से हुई हानि भारी पड़ गई। इस प्रकार, विनिमय दर का भी देशी पेट्रोलियम मूल्यों की प्रवृत्ति पर कुछ प्रभाव रहेगा।
38. तीसरे, मुद्रास्फीति की संभावनाएं ऐसे पण्यों की आपूर्ति की स्थिति पर भी निर्भर रहेंगी जहाँ संरचनागत असंतुलन हैं, विशेष रूप से प्रोटीन वाली चीजों के संबंध में। अत:, निकट भविष्य में खाद्य मुद्रास्फीति की प्रवृत्तियां तय करने में दूध, अंडे, मछली, मांस, दालों, तिलहनों, फल और सब्जियों जैसी चीजों के संबंध में पर्याप्त आपूर्ति व्यवस्था व कार्रवाई के लिए नीतिगत स्तर पर सभी पक्षों के सम्मिलित प्रयास की प्रमुख भूमिका होगी।
39. चौथे, दबी हुई मुद्रास्फ़ीति का एक तत्त्व अभी भी है क्योंकि देश मे नियंत्रित पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वैश्विक पण्य कीमतों का पूरा प्रभाव नहीं दिखाई पड़ता। चूंकि कच्चे तेल मूल्य में आई गिरावट से होने वाले लाभ पर रुपए के मूल्यह्रास से हुई हानि भारी पड़ी है, नियंत्रित पेट्रोलियम उत्पादों से होने वाली उगाही कम (अंडर रिकवरी) बनी हुई है। इसके अलावा, पहले से ही बड़ी मात्रा में कम-उगाहियां (अंडर रिकवरियां) संचित हैं। इसलिए, नियंत्रित पेट्रोलियम मूल्यों में वृद्धि को खारिज नहीं किया जा सकता तब भी जब कच्चे तेल की वैश्विक कीमतें स्थिर या घट रही हों। इसके अतिरिक्त, कोयला जैसी अन्य चीजें भी हैं, जिनकी वर्तमान कीमतें तत्संबंधी बाज़ार की स्थितियों के अनुसार नहीं हैं। चूंकि कोयला बिजली बनाने के लिए इस्तेमाल होता है, अत: जब भी कोयले का मूल्य बढ़ता है, बिजली दरें प्रभावित होंगी ही।
40. देशी मांग-आपूर्ति संतुलन, पण्य मूल्यों की वैश्विक प्रवृत्तियों और संभावित मांग परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए मार्च 2012 के लिए डब्ल्यूपीआइ मुद्रास्फीति का आधार-स्तरीय (बेसलाइन) अनुमान 7 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया है (चार्ट 2)। बढ़े हुए मुद्रास्फीतिकारी दबावों में दिसंबर 2011 से कमी आने की प्रत्याशा है, हालांकि अकस्मात होनेवाली प्रतिकूल गतिविधियों की अनिश्चितता बनी हुई है।
41. हालांकि पिछले दो वर्षों में मुद्रास्फीति निरंतर ऊँची बनी हुई है, फिर भी, यह नोट करना महत्त्वपूर्ण है कि 2000 के दशक के दौरान वह डब्ल्यूपीआई तथा सीपीआई दोनों ही रूप में औसतन 5.5 प्रतिशत रही जो उसके पहले की 7.5 प्रतिशत प्रवृत्ति दर (ट्रेंड रेट) से कम है। इस रिकार्ड की पृष्ठभूमि में मौद्रिक नीति का संचालन, मुद्रास्फ़ीति की अवधारणा को 4.0 – 4.5 प्रतिशत के दायरे में बनाए और सीमित रखने पर बल देता रहेगा। वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ भारत के अधिकाधिक एकीकरण के अनुरूप यह 3.0 प्रतिशत मुद्रा स्फीति के मध्यावधि लक्ष्य के अनुकूल रहेगा।
कुल मौद्रिक राशियां
42. मुद्रा आपूर्ति (एम3) और ऋण वृद्धि की चालू प्रवृत्तियां रिज़र्व बैंक के सांकेतिक अनुमान पथ से अधिक स्तर पर बनी हुई हैं। पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष जमाराशियों में वृद्धि काफी अधिक रही क्योंकि ब्याज दरों, विशेष रूप से मीयादी जमाराशियों पर ब्याज दरों में बढ़ोतरी हुई है। कुछ समय के लिए ऋण वृद्धि कुछ कम हुई थी, परंतु उसके बाद वह फिर से बढ़ गई। आशा है कि कुल मौद्रिक राशियां मौद्रिक नीति की प्रथम तिमाही समीक्षा में उल्लिखित सांकेतिक अनुमान पथ के समान बनी रहेंगी। तदनुसार, वर्ष 2011-12 के एम3 वृद्धि अनुमान 15.5 प्रतिशत और खाद्येतर ऋण वृद्धि 18 प्रतिशत पर बनाए रखे गए हैं। हमेशा की तरह, ये आंकड़े सांकेतिक अनुमान हैं न कि लक्ष्य।
जोख़िम के कारक
43. वर्ष 2011-12 के वृद्धि और मुद्रास्फीति संबंधी सांकेतिक अनुमान कई जोखिमों पर निर्भर हैं जो यहाँ बताए जा रहे हैं:
i) वृद्धि के लिए गिरावट का एक बड़ा जोखिम वैश्विक समष्टि आर्थिक परिवेश से उभरा है। जहां उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि पहले ही कमजोर होने लगी है, वहीं यदि यूरो क्षेत्र की ऋण और वित्तीय समस्याओं के लिए एक विश्वसनीय हल खोजा नहीं जाता है तो तीव्र गिरावट का खतरा बना हुआ है जो देशी वृद्धि को ट्रेड, वित्त और विश्वास माध्यमों के जरिए प्रभावित करेगा।
ii) हाल में आए धीमेपन के बावजूद, वैश्विक पण्य कीमतें ऊँची बनी हुई हैं। तथापि, वैश्विक रिकवरी के कमजोर होने से कच्चे तेल के मूल्य में उल्लेखनीय नरमी आने की संभावना है जिसका वृद्धि तथा मुद्रास्फीति दोनों के लिए अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।
iii) सरकार ने अधिक मात्रा में बाजार उधार लेने की घोषणा की है जिससे निजी क्षेत्र के निवेश के हटने की संभावना है जो कि अधिक उत्पादक हैं। सरकार ने कहा है कि इससे बजट में बजटित राजकोषीय घाटा प्रभावित नहीं होगा। तथापि, यदि राजकोषीय घाटा बजटित स्तर से घट जाता है तो उसका देशी मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ेगा। भारी राजकोषीय घाटा मांग के दबाव का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है। स्पष्टत:, मौद्रिक नीति को सख्त बनाए जाने का प्रभाव विस्तारकारी राजकोषीय स्थिति के कारण कम हो गया है जो आदर्श परिणाम नहीं है।
iv) अंडा, मछली और मांस जैसी प्रोटीन प्रधअन वस्तुओं में संरचनागत असंतुलन बना रहेगा। विशेष रूप से, इस वर्ष दालों का उत्पादन पिछले वर्ष के मुकाबले कम रहने की प्रत्याशा है। इसके फलस्वरूप, खाद्यान्न मुद्रास्फीति पर दबाव बने रहने की संभावना है।
III नीतिगत रुख़
44. अक्तूबर 2009 से रिज़र्व बैंक ने वित्तीय संकट के कारण अपनाई गई विस्तारकारी नीति से बाहर आना प्रारंभ किया है। तब से, रिज़र्व बैंक ने प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) संचयी रूप में 100 आधार अंक बढ़ाया और नीतिगत दर 12 बार बढ़ाकर उसमें 350 आधार अंकों की वृद्धि की। चूंकि सिस्टम में चलनिधि स्तर सरप्लस से कमी की ओर चला गया, अत: प्रभावी कसाव कुल 500 आधार अंकों तक का रहा। इस मौद्रिक नीति (रिस्पांस) प्रतिक्रिया को बनी हुई वैश्विक अनिश्चितता के व्यापक परिप्रेक्ष्य में भारत की निजी वृद्धि-मुद्रास्फीति की स्थिति के आधार पर अशांकित किया गया है।
45. लगभग दो वर्षों के लिए मुद्रास्फीति रिज़र्व बैंक के स्वीकार्य स्तर से काफी ऊपर बनी रहने की बात को ध्यान में रखते हुए रिज़र्व बैंक ने चालू वर्ष के दौरान अपना मुद्रास्फीतिरोधी रुख बनाए रखा है।
46. अब तक किए गए मौद्रिक नीति कसाव से मुद्रास्फीति को सीमित रखने और मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं को नियंत्रित रखने सहायता मिली है, हालांकि ये दोनों उच्च स्तर की बनी रही थीं। जहाँ, मौद्रिक कार्रवाइयों के बाद के प्रभाव अभी सामने नहीं आए हैं वहीं मुद्रास्फीतिरोधी रुख को जारी रखना आवश्यक है। इस पृष्ठभूमि में, इस समीक्षा में नीतिगत रुख को निम्नलिखित दो प्रमुख बातों के अनुसरण पर तैयार किया गया है:
47. पहली बात तो मुद्रास्फीति और मुद्रास्फीति की अपेक्षाएं दोनों उँची बनी रहीं। मुद्रास्फीति व्यापक आधार की है और वह रिज़र्व बैंक के लिए सुखकर स्तर से ऊपर है। इसके अलावा, ये स्तर अगले दो महीनों के लिए बने रहने की उम्मीद है। नीति के रुख में परिपक्वता से पूर्व बदलाव की स्थिति में अपेक्षाओं का नियंत्रण से बाहर हो सकना नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। हालांकि, आश्वस्त करनेवाली बात यह है कि गति संकेतक, विशेषत: डी-सीज़नलाईज्ड तिमाही- दर- तिमाही प्रमुख शीर्ष और मूलभूत मुद्रास्फीति संकेत देते हैं कि नरमी बनी रहेगी जो हमारे इस अनुमान के अनुरूप है कि मुद्रास्फीति दिसंबर 2011 में कम होनी शुरू हो जाएगी।
48. दूसरी ओर वृद्धि स्पष्ट रूप से पिछली मौद्रिक नीति कार्यों तथा कुछ अन्य कारकों के संचयी प्रभाव के कारण अच्छी तरह से नरम हो रही है। मुद्रास्फीति के कम होने पर नीति रूख को इस बात का अवसर मिलता है कि मुद्रास्फीति के कम व स्थिर परिवेश को बनाए रखने के समग्र लक्ष्य के साथ व़ृद्धि से जुड़े हुए खतरों पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए ।
49. इस पृष्ठभूमि में, मौद्रिक नीति के रुख के इरादे हैं:
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मुद्रास्फीति और मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं को नियंत्रित करने के लिए उचित ब्याज़ दर वातावरण बनाए रखा जाए।
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विकास की प्रवृत्ति को बढ़ाने के लिए निवेश गतिविधियों को गति देने का समर्थन किया जाए।
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यह सुनिश्चित करने के लिए नकदी का प्रबंध करना कि वह प्रभावी मौद्रिक प्रवाह के अनुरूप अल्प कमी की स्थिति में बनी रहे।
IV. मौद्रिक उपाय
50. वर्तमान मूल्यांकन के आधार पर और भाग III में बताए गए नीतिगत रुख के अनुरूप रिज़र्व बैंक निम्नलिखित नीतिगत उपायों की घोषणा करता है:
रेपो रेट
51. यह निर्णय लिया गया है कि:
रिवर्स रेपो दर
52. एलएएफ़ के तहत रिवर्स रेपो रेट जिसका निर्धारण रेपो रेट से 100 आधार अंकों से नीचे होता है, अपने आप तत्काल प्रभाव से 7.5 प्रतिशत पर समायोजित हो गया है।
मार्जिनल स्थायी सुविधा (एमएसएफ़) दर
53. रेपो दर से 100 आधार अंक अधिक पर निर्धारित की जानेवाली मार्जिनल स्थायी सुविधा (एमएसएफ़) दर तत्काल प्रभाव से 9.5 प्रतिशत पर निर्धारित कर दी गई है।
बैंक दर
54. बैंक दर को 6.0 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है।
प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात
55. अनुसूचित बैकों के प्रारक्षित नकदी अनुपात (सीआरआर) को उनके निवल मांग और देयताओं (एनडीटीएल) के 6.0 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है।
मार्गदर्शन
56. अनुमानित मुद्रास्फीति का पथ यह इंगित करता है कि मुद्रास्फीति 2011 दिसंबर में घटनी (जनवरी 2012 प्रकाशन) शुरू हो जाएगी और फिर स्थिर रूप से घटती हुई मार्च 2012 तक 7 प्रतिशत पहुंच जाएगी । 2012-13 की पहली छमाही में आते-आते इसके आगे और कम होने की उम्मीद है। यह वस्तु मूल्य चलन और मौद्रिक कसाव के संचयी प्रभाव के संयोजन को दर्शाती है। इसके अलावा मुद्रास्फीति दरों में गिरावट की उम्मीदों से अपेक्षाओं पर अनुकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है। इन अपेक्षित परिणामों से यह गुंजाइश बनती है कि अल्पावधि में मौद्रिक नीति कुछ वद्धि जोखिमों का सामना कर सकेगी। इसे ध्यान में रखते हुए यह कह सकते हैं कि मुद्रास्फीति की मौजूदा दर नवंबर तक (दिसंबर प्रकाशन) बने रहने की बात होते हुए भी, दिसंबर के मध्य- तिमाही समीक्षा में दर कार्रवाई की संभावना अपेक्षाकृत कम बनी रहेगी। इसके अतिरिक्त, अगर मुद्रास्फीति अयन अनुमानों के अनुरूप बनी रहती है तो आगे की दरों में वृद्धि की ज़रूरत नहीं होगी। फिर भी, कार्रवाई हमेशा की तरह व्यापक आर्थिक स्थितियों पर निर्भर करेगी।
57. इस विषय पर ज़ोर दिया जाना चाहिए कि कृषि क्षेत्र में संरचनात्मक असंतुलन, बुनियादी ढांचों की क्षमता का अवरोध, कई महत्वपूर्ण वस्तुओं की विकृत प्रशासित कीमतें, राजकोषीय समेकन की गति आदि कई कारक मिलकर अर्थव्यवस्था में मध्यम अवधि मुद्रास्फीति जोखिम को ऊँचा रखते हैं। इन जोखिमों को केवल कई मोर्चों पर ठोस नीतिगत कार्रवाइयों के द्वारा ही कम किया जा सकता है। मध्यम अवधि के दौरान इन मुद्दों पर प्रगति के अभाव में, मौद्रिक नीति के रुख को वृद्धि में मामूली बढ़त की स्थिती में भी बढ़ती मुद्रास्फीति के जोखिम पर ध्यान देना होगा।
प्रत्याशित परिणाम
58. इन कार्रवाईयों तथा मार्गदर्शनों से ये अपेक्षित है कि:
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कम और स्थिर मुद्रास्फीति के प्रति एक विश्वसनीय प्रतिबद्धता के आधार पर मध्यम अवधि की मुद्रास्फीति अपेक्षाओं को नियंत्रित रखा जा सके ।
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मुद्रास्फीति के पथ को सुदृढ करें, जो दिसंबर 2011 तक घटने की संभावना है।
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निवेश गतिविधि को बनाये रखने में योगदान करें।
मौद्रिक नीति 2011-12 की मध्य तिमाही समीक्षा
59. वर्ष 2011-12 की मौद्रिक नीति की अगली मध्य तिमाही समीक्षा की घोषणा 16 दिसंबर 2011 को प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से की जाएगी।
मौद्रिक नीति 2011-12 की तीसरी तिमाही समीक्षा
60. मौद्रिक नीति 2011-12 की तीसरी तिमाही समीक्षा मंगलवार, 24 जनवरी 2012 को की जाएगी।
भाग ख. विकासात्मक और विनियामक नीतियां
61. वक्तव्य का यह भाग हाल ही के नीतिगत वक्तव्यों और किए गए नये उपायों में रिज़र्व बैंक द्वारा घोषित विभिन्न विकासात्मक और विनियामक नीतिगत उपायों के प्रगति की समीक्षा करता है।
62. बढ़ती हुई भूमंडलीकृत दुनिया और लगभग एकीकृत वित्तीय बाजारों में बाकी विश्व के किसी एक भाग में होनेवाले आघात अब काफी तेजी से बाकी दुनिया तक पहुंच जाते हैं। वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान यह बात अच्छी तरह से देखी जा सकती थी और अब वैश्विक वित्तीय संकटों के एक बार फिर उभरने से यह बात और स्पष्ट हो गयी है। इस आपसी जुड़ाव के समष्टिगत स्थिति के लिए वित्तीय स्थिरता के महत्व पर एक बार फिर से जोर दिया है। वित्तीय स्थिरता रिज़र्व बैंक की नीति का मुख्य उद्देश्य रहा है। हालांकि भारत में वित्तीय प्रणाली वैश्विक वित्तीय संकट से अछूती रही है, फिर भी वैश्विक वित्तीय संकट से सबक लेते हुए वित्तीय क्षेत्र को और अधिक मजबूत बनाने की जरूरत है।
63. बैंकिंग क्षेत्र में, हाल ही में रिज़र्व बैंक की विनियामक नीतियों का ध्यान पूंजी और चलनिधि संबंधी मानदंडों को मजबूत करने तथा बृहत विवेकपूर्ण ढांचे को मजबूत करना रहा है, ताकि उसमें लचीलापन बना रहे। वित्तीय बाजारों में विभिन्न विनियामक उपायों के रुझान को अधिक गहरा और तरल बनाने पर जोर दिया जाता है। रिज़र्व बैंक ने प्रणालीबद्ध रूप से महत्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का विनियमन भी मजबूत करना जारी रखा।
64. रिज़र्व बैंक विकासात्मक भूमिका भी अदा करता रहा है, हालांकि विकासात्मक गतिविधि का केंद्र-बिंदु समय-समय पर बदलता रहा है। हाल ही की अवधि में, वित्तीय समावेशन को बढ़ाने के लिए पूरा ध्यान दिया जाता रहा है। इसके अलावा, सुरक्षित और कुशल प्रौद्योगिकी आधारित सेवाओं को बढ़ाना रिज़र्व बैंक की प्राथमिक कार्यसूची पर बना हुआ है।
I. ब्याज दर नीति
बचत बैंक जमा ब्याज दर को नियंत्रण मुक्त करना
65. नवंबर 2010 की दूसरी तिमाही समीक्षा में दिए गए संकेत के अनुसार रिज़र्व बैंक ने 'बचत बैंक जमा ब्याज दर में ढील' पर एक डिस्कशन पेपर तैयार किया था, जिसे सार्वजनिक टिप्पिणियों/ सुझावों के लिए अप्रैल 2011 को बैंक की वेबसाइट पर रखा गया था । इस पेपर में बचत बैंक जमा ब्याज दरों में ढील दिये जाने के सभी फायदों और नुकसानों को अच्छी तरह से बताया गया था। इस पेपर के बारे में हितधारकों से व्यापक प्रतिक्रियाएं आयीं। ये सुझाव आये कि बचत बैंक जमा ब्याज दर पर से किसी भी तरह से नियंत्रण नहीं हटाना चाहिए, और यह भी सुझाव आया कि इसे पूरी तरह नियंत्रण मुक्त किया जाना चाहिए। रिज़र्व बैंक ने प्राप्त सुझावों की जांच की और बचत बैंक जमा ब्याज दर को मुक्त करके लाभ-हानि की समीक्षा की। हर तरह से विचार करने के बाद यह महसूस किया गया है कि आगे बढ़कर कार्यवाही करने और रुपया ब्याज दरों के विनियमन की प्रक्रिया पूरी करने के लिए यह उचित समय है। तदनुसार, यह निर्णय लिया गया कि :
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पहला, इस सीमा के भीतर खाते में चाहे कितनी भी राशि हो, प्रत्येक बैंक 1 लाख रुपए तक की बचत बैंक जमाराशियों पर एक समान ब्याज दर देंगे।
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दूसरा, बैंक 1 लाख रुपए से ऊपर की बचत बैंक जमाराशियों पर ब्याज की विभेदक दरें प्रदान कर सकता है, यदि वह ऐसा करना चाहता है। अलबत्ता, जमाराशि की एक जैसी राशि पर ब्याज दरों में अलग-अलग ग्राहकों के लिए कोई भेद नहीं होना चाहिए।
66. इस संबंध में परिचालनगत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।
II वित्तीय बाजार
वित्तीय बाजार उत्पाद
ब्याज दर फ्यूचर्स
67. नवंबर 2010 की दूसरी तिमाही की समीक्षा में की गयी घोषणा के अनुसरण में, भारतीय रुपयों में नकदी निपटान के साथ 91 दिवसीय खजाना बिलों पर मार्च 2011 से एक्सचेंज ट्रेडेड ब्याज दर फ्यूचर्स(आईआरएफ) की अनुमति दी गयी है। मई 2011 की मौद्रिक नीतिगत वक्तव्य में यह संकेत दिया गया था कि 5 वर्ष और 2 वर्ष आइआरएफ के लिए दिशा-निर्देशों को भारतीय प्रतिभूति विनियम बोर्ड (सेबी) के साथ विचार-विमर्श करके अंतिम रूप दिया जा रहा था। तदनुसार यह प्रस्ताव है कि :
क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप की शुरुआत
68. मई 2011 के मौद्रिक नीतिगत वक्तव्य में की गयी घोषणा के अनुसार कार्पोरेट बांडों के संबंध में क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप(सीडीएस) मई 2011 इस संकेत के साथ जारी किये गये थे कि उसे एक बार अपेक्षित बाजार का मूलभूत ढांचा तैयार हो जाने के बाद आरंभ किया जाएगा। तदनुसार, यह प्रस्तावित है कि :
- सीडीएस पर दिशा-निर्देश बनाये जाएं जो नवंबर 2011 के अंत तक प्रभावी हो जायेंगे।
सरकारी प्रतिभूतियों में शॉर्ट सेल की समीक्षा
69. मई 2011 के मौद्रिक नीतिगत वक्तव्य में यह सूचित किया गया था कि आइआरएफ बाजार और मीयादी रिपो बाजार को प्रोत्साहन देने की दृष्टि से शार्ट सेल का समय पांच दिन की पूर्व की अवधि से बढ़ाकर अधिकतम तीन महीने किया जाएगा। शॉर्ट सेल के वर्तमान रिपोर्टिंग तंत्र को संशोधित किया जा रहा है। यह प्रस्तावित है कि :
- दिसंबर 2011 के अंत तक सरकारी प्रतिभूतियों में शार्ट सेल पर दिशा-निर्देश जारी किए जाएं।
गिल्ट खाता धारकों के लिए डीवीपी III सुविधा को बढ़ाना।
70. मई 2011 के मौद्रिक नीतिगत वक्तव्य में यह घोषित किया गया था कि गिल्ट खाता धारकों (एक ही संरक्षक के गिल्ट खाता धारकों के बीच लेन-देन को छोड़कर) द्वारा लेनदेनों के लिए सुपुर्दगी बनाम भुगतान (डीवीपी) III सुविधा को बढ़ाया जाए ताकि गिल्ट खाता धारक को निधियों तथा प्रतिभूतियों का कुशल उपयोग का लाभ मिल सके। इस संबंध में जुलाई 2011 को अंतिम दिशा-निर्देश जारी किए गए थे।
वित्तीय बाजार ढांचा
सरकारी प्रतिभूति और ब्याज दर पर कार्यदल
डेरिवेटिव बाजार
71. 1990 के दशक के प्रारंभ से शुरू किए गए विभिन्न सुधार उपायों के परिणामस्वरूप एक मज़बूत सरकारी प्रतिभूति बाजार का विकास हुआ जो कुशल और पारदर्शी तरीके से केन्द्र और राज्य सरकारों के निधियन की आवश्यकता को पूरा करने में सक्षम है। हालांकि, सरकारी प्रतिभूतियों और डेरिवेटिव से संबद्ध बाजार को और अधिक व्यापक और मजबूत बनाये जाने की ज़रूरत है। तदनुसार, यह प्रस्ताव है कि :
72. कार्यदल संबंधी जानकारी को अलग से घोषित किया जाएगा।
व्यक्तियों- निवासियों/ अनिवासियों और भारतीय मूल के व्यक्तियों (पीआईओ) को दी जाने वाली सुविधाओं से संबंधित प्रक्रियाविधि की समीक्षा के लिए समिति
73. मई 2011 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में यह संकेत दिया गया था कि रिज़र्व बैंक द्वारा प्राधिकृत व्यक्तियों की कार्यप्रणाली की दक्षता के स्तर का आकलन करने जिसमें उनके द्वारा तैयार की गयी बुनियादी सुविधाएं भी शामिल हैं और परिचालन बाधाओं को दूर करने के लिए प्रक्रियाविधि को युक्तिसंगत और सरल बनाने के लिए क्षेत्रों की पहचान के लिए एक समिति (अध्यक्ष: श्रीमती के.जे. उदेशी) गठित की गई थी। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट अगस्त 2011 को प्रस्तुत की। रिज़र्व बैंक ने समिति की सिफारिशों की जांच की। समिति की कुछ सिफारिशें जो रिज़र्व बैंक ने पहले ही लागू कर दी हैं, इस प्रकार हैं (i) निवासी बैंक खातों में अनिवासी भारतीयों (एनआरआई) को संयुक्त धारक के रूप में शामिल होने की अनुमति, (ii) अनिवासी (बाह्य) रुपया खाते (एनआरई) योजना/ विदेशी मुद्रा (अनिवासी) (एफसीएनआर) खाता(बैंकों) योजना में निवासियों को संयुक्त धारक के रूप में शामिल होने की अनुमति ; (iii) निवासियों द्वारा अनिवासियों को 50,000 अमरीकी डालर तक शेयरों / डिबेंचरों को उपहार में देने की अनुमति, (iv) विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) की बिक्री आय को एनआरई / एफसीएनआर (बी) खातों में क्रेडिट करने अनुमति दी; और (v) अनिवासी भारतीयों के करीबी रिश्तेदारों को दिए गए ऋण को चुकाने के साथ-साथ अनिवासी भारतीयों के चिकित्सा खर्च वहन के लिए निवासियों को अनुमति। समिति की अन्य सिफारिशें जांच के अधीन हैं।
III. वित्तीय स्थिरता
वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद और उसकी उप समिति
74. 2010 में स्थापित वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (एफएसडीसी) को रिज़र्व बैंक के गवर्नर की अध्यक्षता वाली एक उप-समिति सहायता प्रदान करती है और इसके सदस्यों में वित्तीय प्रणालियों के विनियामक, वित्त सचिव और वित्त मंत्रायल के अन्य प्रमुख पदाधिकारी शामिल हैं। वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद और इसकी उप-समिति के कामकाज के व्यापक क्षेत्रों पर पर्याप्त ध्यान देने के लिए इस उप-समिति ने दो तकनीकी समूह का गठन किया है – पहला, वित्तीय समावेशन और वित्तीय साक्षरता पर तकनीकी समूह और दूसरा, अंतर-विनियामक तकनीकी समूह। रिज़र्व बैंक में वित्तीय स्थिरता के प्रभारी उप गवर्नर की अध्यक्षता में गठित वित्तीय समावेशन और वित्तीय साक्षरता पर तकनीकी समूह में विनियामकों सहित केन्द्र और राज्य सरकारों के मंत्रालयों और संबंधित विभागों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। रिज़र्व बैंक में वित्तीय स्थिरता के प्रभारी कार्यपालक निदेशक की अध्यक्षता में गठित अंतर- विनियामक तकनीकी समूह में वित्तीय क्षेत्र के चार विनियामकों अर्थात, रिज़र्व बैंक, सेबी, बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) और पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) के प्रतिनिधि शामिल होंगे और वे प्रणालीगत वित्तीय स्थिरता जोखिम और अंतर- विनियामक समन्वय से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करेंगे। दोनों तकनीकी समूह उप-समिति को महत्वपूर्ण आधारभूत जानकारी उपलब्ध कराएंगे। उप- समिति का सचिवालय (रिज़र्व बैंक में वित्तीय स्थिरता इकाई) ही इन दोनों समूहों के लिए भी सचिवालय का कार्य करेगा।
वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट
75. रिज़र्व बैंक द्वारा पहली वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) मार्च 2010 में प्रकाशित की गई थी। बाद में, यह निर्णय लिया गया कि रिज़र्व बैंक द्वारा वर्ष में दो बार अर्थात, जून और दिसंबर में वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट प्रकाशित की जाएगी। जून 2011 की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट, जिसमें सेबी और इरडा ने भी सहयोग किया था, में वित्तीय स्थिरता के मूल्यांकन के लिए अंतर-विनियामक सहयोगात्मक प्रक्रिया का मजबूत होना परिलक्षित हुआ है और इसमें प्रणाली में मौजूदा जोखिमों और दबावों की विस्तृत स्थिति प्रस्तुत की गई है। वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के कवरेज को और अधिक बढ़ाने की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया है कि अगली वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट की शुरुआत से ही एफएसडीसी की उप-समिति की बैठक में मसौदा रिपोर्ट पर चर्चा की जाएगी जिससे कि यह पूरी अर्थव्यवस्था में व्याप्त संभावित प्रणालीगत जोखिमों को पर्याप्त रूप से सामने ला सके। अंतिम तौर पर रिपोर्ट को जारी करने के पहले सदस्यों की टिप्पणियों/ सुझावों को इसमें उपयुक्त रूप से शामिल किया जाएगा। छमाही वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अलावा, अंतरिम अवधि में वित्तीय प्रणाली के समक्ष आ रहे प्रणालीगत जोखिमों की आंतरिक समीक्षा की जा रही है। विभिन्न बाजारों के आंतरिक निगरानी के लिए मासिक आधार पर वित्तीय बाजार जोखिम मॉनिटर्स भी तैयार किए जा रहे हैं। वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता का आकलन करने के लिए प्रयोग किए जा रहे साधनों और तकनीकों में समय के साथ सुधार किया जा रहा है।
वित्तीय स्थिरता का मूल्यांकन
76. जून 2011 के वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में यह पाया गया कि व्यापक वैश्विक वित्तीय माहौल में उतार-चढ़ाव के बावजूद भी भारतीय वित्तीय व्यवस्था स्थिर बनी रही। राजकोषीय क्षेत्र में मौजूदा मुद्रास्फितिकारक दबावों और चिंताओं के बावजूद भारत की व्यापक आर्थिक बुनियादी पक्ष मज़बूत बने रहे। बैंकिंग क्षेत्र भी मजबूत बना रहा यद्यपि स्ट्रेस टेस्ट में बैकों की लाभप्रदता और आस्ति गुणवत्ता पर थोड़ा दबाव देखा गया। अत्यधिक कड़े स्ट्रेस टेस्ट में बैंकों के सामने चलनिधि की समस्या आ सकती है।
IV. ऋण वितरण और वित्तीय समावेशन
शाखा प्राधिकरण नीति - छूट
77. ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों में बैंकिंग की पहुंच की आवश्यकता को देखते हुए घरेलू अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) को दिसम्बर 2009 में टियर 3 से टियर 6 केंद्रों (2001 की जनगणना के अनुसार 49,999 की जनसंख्या वाले क्षेत्रों) में तथा रिपोर्टिंग के अधीन पूर्वोत्तर राज्यों और सिक्किम के ग्रामीण, अर्धशहरी और शहरी केंद्रों में सामान्य अनुमति से शाखाएं खोलने की अनुमति दी गयी। जुलाई 2011 में उन्हें यह आदेश दिया गया कि वे वर्ष के दौरान खोले जानेवाली प्रस्तावित शाखाओं का कम से कम 25 प्रतिशत गैर-बैंकिंग केंद्रों (टियर 5 और टियर 6 अर्थात 2001 के जनगणना के अनुसार 9,999 तक जनसंख्या वाले क्षेत्र) को आबंटित करें जिससे कि मार्च 2012 तक 2000 से अधिक जनसंख्या वाले गांवों में बैंकिंग सेवा उपलब्ध कराने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके, और इसके बाद आने वाले समय में सभी गांवों तक इस सेवा को पहुंचाया जा सके। हालांकि, पूर्वोत्तर राज्यों और सिक्किम को छोड़कर जहां शाखा खोलने की सामान्य अनुमति दी गयी है, टियर 1 और टियर 2 केंद्रों में शाखा खोलने के लिए रिज़र्व बैंक से पूर्व प्राधिकार प्राप्त करना आवश्यक है।
78. इन उपायों से टियर 3 से टियर 6 केंद्रों में नई शाखाएं खोलने की संख्या में तेजी आयी। हालांकि टियर 2 केंद्रों में आशानुरूप शाखा विस्तार करने की गति नहीं आयी। टियर 2 केंद्रों में बैंकिंग सेवाओं को बढ़ाने के लिए प्रस्ताव है कि:
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रिपोर्ट करने के पश्चात रिज़र्व बैंक की अनुमति लिए बिना प्रत्येक मामले में घरेलू वाणिज्यिक बैंकों (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) बैंकों को टियर 2 केंद्रों (2001 की जनगणना के अनुसार 50,000 से 99,999 की जनसंख्या वाले क्षेत्र ) में शाखाएं खोलने की अनुमति दी जाए।
79. घरेलू वाणिज्यिक बैंकों (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) के लिए टियर 1 केंद्रों में (2001 की जनगणना के अनुसार 1,00,000 और इससे ऊपर की जनसंख्या वाले क्षेत्र) शाखाएं खोलने की रिज़र्व बैंक की पूर्व अनुमति की आवश्यकता को जारी रखा गया है। ऐसे प्राधिकरण को जारी करते वक्त अन्य बातों के अलावा रिज़र्व बैक यह भी ध्यान में रखेगा कि वर्ष के दौरान खोली जानेवाली शाखाओं में से कम से कम 25 प्रतिशत शाखाएं गैर-बैंकिंग क्षेत्रों में प्रस्तावित है या नहीं।
80. इस संबंध में दिशानिर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।
प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र की पुनर्परिभाषा
81. मालेगाम समिति की संस्तुतियों और मई 2011 के वार्षिक नीति वक्तव्य में दिए गए प्रस्ताव के आधार पर रिज़र्व बैंक ने प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को दिए जाने वाले ऋण के वर्गीकरण और इससे संबंधित मुद्दों के संबंध में वर्तमान वर्गीकरण और संशोधित दिशा-निर्देशों के बारे में सुझाव देने के लिए एक समिति (अध्यक्ष: श्री एम.वी.नायर) का गठन किया है। समिति को प्राथमिकता क्षेत्र को दिए जाने वाले बैंक ऋण के वर्गीकरण की वर्तमान पात्रता मानदंड पर पुनर्विचार; प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के वित्तपोषण की परिभाषा की समीक्षा; वित्तीय मध्यस्थों के माध्यम से दिए जा रहे बैंक ऋण का प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण के रूप में वर्गीकरण; और प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के लिए पात्र श्रेणियों के अंतर्गत दिए जाने वाले ऋण पर ब्याज दर की उच्चतम सीमा पर विचार करना है। समिति की पहली बैठक 29 सितंबर, 2011 को हुई और समिति उस तारीख से चार महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र के लिए ऋण प्रवाह
82. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) पर उच्च स्तरीय कार्यदल की सिफारिशों के आधार पर जून 2010 में रिज़र्व बैंक ने दिशा-निर्देश जारी किए, जिसमें अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को सलाह दी गई कि सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए तय 60 प्रतिशत के ऋण लक्ष्य को विभिन्न चरणों में पूरा किया जाना है, अर्थात, वर्ष 2010-11 में 50 प्रतिशत, वर्ष 2011-12 में 55 प्रतिशत और वर्ष 2012-13 में 60 प्रतिशत। बैंकों को यह भी सूचित किया गया कि वे सूक्ष्म उद्यम खातों की संख्या में 10 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि और एमएसई क्षेत्र को दिए जाने वाले ऋण में वर्ष दर वर्ष 20 प्रतिशत की वृद्धि प्राप्त करें। रिज़र्व बैंक बैंकों द्वारा प्राप्त लक्ष्यों पर छमाही आधार पर कड़ी निगरानी रख रहा है। मार्च 2011 को लक्ष्यों को प्राप्त करने के संबंध में पिछली समीक्षा की गई। इसमें यह पाया गया है कि 27 बैंकों (सार्वजनिक क्षेत्र के 10 बैंक, निजी क्षेत्र के 7 बैंक और 10 विदेशी बैंक) ने सूक्ष्म उद्यमों को दिए जाने वाले 50 प्रतिशत के अग्रिम का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है, और दूसरे 27 बैंकों (सार्वजनिक क्षेत्र के 9 बैंक, निजी क्षेत्र 12 के बैंक और 6 विदेशी बैंक) ने सूक्ष्म उद्यमों की संख्या में 10 प्रतिशत की वृद्धि का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। इसी तरह, 38 बैंकों (सार्वजनिक क्षेत्र के 22 बैंक, निजी क्षेत्र के 11बैंक और 5 विदेशी बैंक) ने एसएमई क्षेत्र को दिए जाने वाले ऋण में 20 प्रतिशत की वृद्धि के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल सभी बैंकों के साथ लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्रवाई की एक योजना पर सहमति के लिए एक बैठक का आयोजन किया गया। जून 2011 को समाप्त तिमाही से निगरानी की बारंबरता को छमाही आधार से बदलकर तिमाही आधार पर कर दिया गया है।
ग्रामीण ऋण संस्थाएं
सहकारिता का लाइसेंसीकरण
83 . वित्तीय क्षेत्र आकलन (अध्यक्ष : डॉ. राकेश मोहन और सह अध्यक्ष:श्री अशोक चावला) पर समिति की सिफारिशों और अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में दिए गए प्रस्ताव के संदर्भ में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के परामर्श को शामिल करते हुए अबाधित तरीके से गैर-लाइसेंसीकृत राज्य और केंद्रीय सहकारी बैंकों को लाइसेंस देने का कार्य शुरू किया गया। जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों को लाइसेंस दिए जाने संबंधी संशोधित दिशा-निर्देश जारी करने के बाद 10 राज्य सहकारी बैंकों और 169 जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों को लाइसेंस दिए गए जिससे 31 अगस्त 2011 तक गैर-लाइसेंसीकृत राज्य सहकारी बैंकों की संख्या 17 से घटकर 7 और गैर-लाइसेंसीकृत जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों की संख्या 296 से घटकर 127 रह गई।
ग्रामीण सहकारी ऋण संरचना का पुनर्जीवन
84. ग्रामीण सहकारी ऋण संस्थाओं के पुनर्जीवन के लिए गठित कार्यदल (अध्यक्ष: प्रो. ए. वैद्यनाथन) की सिफारिशों के आधार पर और राज्य सरकारों के परामर्श से भारत सरकार ने अल्पावधि ग्रामीण सहकारी ऋण ढांचे को पुनर्जीवित करने के लिए एक पैकेज का अनुमोदन किया। उक्त पैकेज में की गयी परिकल्पना के अनुसार, 25 राज्यों ने भारत सरकार और नाबार्ड के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं तथा 21 राज्यों ने अपने संबंधित राज्य सहकारी समिति अधिनियमों में संशोधन किया है। 31 जुलाई 2011 की स्थिति के अनुसार नाबार्ड द्वारा 16 राज्यों में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के पुन:पूंजीकरण के लिए पुनर्जीवन पैकेज के तहत भारत सरकार के हिस्से के रूप में तथा वैद्यनाथन समिति की सिफारिशों के परिचालन के अंग के रूप में 9,000 करोड़ रुपए की कुल राशि जारी की गयी।
2000 से अधिक आबादी वाले गांवों में बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने के लिए रोडमैप
85. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति संबंधी वक्तव्य में की गयी घोषणा के अनुसरण में, 2000 से अधिक आबादी वाले प्रत्येक गांव में बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने के रोडमैप को राज्य स्तरीय बैंकर समिति (एसएलबीसी) द्वारा अंतिम रूप दिया गया। कुल मिलाकर, 2001 की जनगणना के अनुसार 74,386 गांवों की पहचान की गयी। मार्च 2012 तक बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए इन गांवों को विभिन्न बैंकों को आबंटित कर दिया गया है। देश के विभिन्न राज्यों में 32,144 गांवों में बैंकिंग आउटलेट खोले गये हैं। इनमें से, 809 गांवों को शाखाओं के जरिए कवर किया गया है, 30,882 गांवों को शाखारहित बैंकिंग अर्थात् व्यवसाय प्रतिनिधियों (बीसी) के माध्यम से कवर किया गया है तथा 453 को स्वचालित टेलर मशीन (एटीएम), मोबाइल वैन, आदि के माध्यम से कवर किया गया है, जो लक्ष्य का 43 प्रतिशत है। खोले गये कुल 32,144 बैंकिंग आउटलेटों में से सरकारी क्षेत्र के बैंकों के पास 85 प्रतिशत हिस्सा है, जिसके बाद 12 प्रतिशत हिस्से के साथ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का और 3 प्रतिशत हिस्से के साथ निजी क्षेत्र के बैंकों का स्थान है।
बैंकों के लिए वित्तीय समावेशन योजना
86. मई 2011 के मौद्रिक नीति संबंधी वक्तव्य में यह सूचित किया गया था कि सरकारी और निजी क्षेत्र के सभी बैंकों ने मार्च 2011, 2012 और 2013 के लिए लक्ष्य निर्धारित करते हुए बोर्ड के द्वारा अनुमोदित तीन वर्षीय वित्तीय समावेशन योजनाएं (एफआईपी) तैयार कर रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत कर दी थी। एफआईपी के कार्यान्वयन में बैंकों की प्रगति की समीक्षा करने के लिए तथा भविष्य में त्वरित प्रगति का मार्ग प्रशस्त करने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकों के साथ वार्षिक एफआईपी समीक्षा बैठकों का आयोजन किया जा रहा है। बैंकों के साथ की गई चर्चा के आधार पर कुछ कार्रवाई मदों के बारे में उन्हें सूचित किया गया है।
87. बैंकों को सूचित किया गया कि वे बीसी के बारे में कड़ी और निरंतर निगरानी सुनिश्चित करें। उन्हें यह भी सूचित किया गया कि वे भविष्य में मूल शाखा एवं बीसी की अवस्थितियों के बीच कम लागत वाले किसी प्रारूप की भौतिक शाखाएं खोलने पर ध्यान केंद्रित करें। साथ ही, बैंकों से यह भी अपेक्षा की गयी कि वे नो-फ्रिल खातों में लेनदेनों की संख्या बढ़ाने के लिए प्रयास करें। वित्तीय समावेशन संबंधी सर्वर को उनकी आंतरिक कोर बैंकिंग समाधान (सीबीएस) प्रणालियों के साथ अविच्छिन्न रूप में समन्वित किया जाना चाहिए तथा एंड-टू-एंड समाधान के मामले में प्रौद्योगिकी सम्बद्ध कार्यकलापों तथा उनके सेवा-प्रदाताओं के बीसी सम्बद्ध कार्यकलापों के बीच स्पष्ट सीमांकन किया जाना चाहिए। बैंकों को भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के साथ पंजीकरण की कार्रवाई शुरू करनी चाहिए तथा उन्हें ''आधार'' संबंधी जानकारी के आधार पर खाता खोलना शुरू कर देना चाहिए। सरकारी क्षेत्र के बैंकों को उनके द्वारा प्रायोजित सभी आरआरबी के लिए एफआईपी तैयार करना चाहिए तथा एक कारगर निगरानी प्रक्रिया तैयार करनी चाहिए ताकि आरआरबी को सौंपे गये लक्ष्यों की प्राप्ति भी सतर्कतापूर्वक की जा सके।
88. एफआईपी के अंतर्गत बैंकों द्वारा की गई प्रगति पर निगरानी रखने के लिए तैयार किये गये सूचना संबंधी फार्मेट को गुणात्मक एवं परिमाणात्मक मानकों के अंतर्गत विभाजित किया गया है। बैंकों को यह अधिदेश दिया गया है कि वे भविष्य में परिमाणात्मक रिपोर्टें मासिक आधार पर तथा गुणात्मक रिपोर्टें तिमाही आधार पर प्रस्तुत किया करें।
शहरी सहकारी बैंक
आवास ऋण की सीमा और चुकौती अवधि में वृद्धि
89. शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) तथा उनके संघों से प्राप्त अभ्यावेदनों के आधार पर, यह महसूस किया जा रहा है कि शहरी सहकारी बैंकों द्वारा स्वीकृत किये जा सकनेवाले व्यक्तिगत आवास ऋणों की अधिकतम अनुमत सीमा तथा, साथ ही, ऐसे ऋणों के लिए अधिकतम चुकौती अवधि में वृद्धि करने की जरूरत है। अत: यह प्रस्ताव है कि :
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व्यक्तिगत आवास ऋण सीमा टियर I यूसीबी के लिए 25 लाख रुपए से बढ़ाकर 30 लाख रुपए तथा टियर II यूसीबी के लिए 50 लाख रुपए से बढ़ाकर 70 लाख रुपए की जाए, जो वर्तमान विवेकपूर्ण एक्सपोजर सीमाओं के अधीन होगी; तथा
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आवास ऋणों की अधिकतम चुकौती अवधि वर्तमान 15 वर्ष से बढ़ाकर 20 वर्ष की जाए।
90. इस संबंध में, ब्योरेवार दिशानिर्देश अलग से जारी किये जाएंगे।
नये शहरी सहकारी बैंकों की स्थापना के लिए लाइसेंस
91. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति संबंधी वक्तव्य में की गयी घोषणा के अनुसार, नये यूसीबी की स्थापना के लिए लाइसेंस देने की उपयुक्तता का अध्ययन करने के लिए अक्तूबर 2010 में एक विशेषज्ञ समिति (अध्यक्ष: श्री वाई. एच. मालेगाम ) का गठन किया गया, जिसमें सभी हितधारकों का प्रतिनिधित्व था। इस समिति को शहरी सहकारी बैंक क्षेत्र के लिए एक छत्र संगठन की साध्यता संबंधी मामले पर विचार करने के लिए भी अधिदिष्ट किया गया। समिति ने अपनी रिपोर्ट अगस्त 2011 में प्रस्तुत की तथा उनकी प्रमुख सिफारिशों में निम्नलिखित बातें शामिल हैं: (i) प्रवेश स्तर पर न्यूनतम पूंजीगत मानदंड का दायरा 50 लाख रुपए और 500 लाख रुपए के बीच होगा जो परिचालन की अवस्थिति एवं क्षेत्र पर निर्भर होगा; (ii) लाइसेंस देने के लिए अच्छे पिछले रिकॉर्ड वाली वर्तमान सहकारी ऋण समितियों को तरजीह दी जाए; (iii) प्रत्येक नये यूसीबी में प्रबंधन बोर्ड (बीओएम) होगा जिसकी नियुक्ति निदेशक मंडल द्वारा की जाएगी तथा बीओएम द्वारा मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) की नियुक्ति की जाएगी; और (iv) दो अलग-अलग छत्र संगठनों की स्थापना की जाएगी, नामत: (क) एक राष्ट्र स्तरीय संगठन, जिसके द्वारा भुगतान एवं निपटान संबंधी सेवाएं और ऐसी अन्य सेवाएं, जो सामान्यत: केंद्रीय बैंकों द्वारा प्रदान की जाती हैं, प्रदान की जाएंगी तथा उसके द्वारा सदस्य शहरी सहकारी बैंकों को चलनिधि संबंधी समर्थन भी प्रदान किया जाएगा; और (ख) एक या उससे अधिक राज्य स्तरीय संगठन अथवा बाहरी एजेंसियां, जिनके द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी), प्रशिक्षण और अन्य सेवाएं प्रदान की जाएंगी। समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक डोमेन में रखी गयी और उसके बारे में 31 अक्तूबर 2011 तक अभिमत मंगाए गए हैं। जनता से प्रतिसाद मिलने के बाद सिफारिशों की जांच की जाएगी एवं दिशानिर्देश जारी किये जाएंगे।
ग्राहक सेवा
92. बैंकों में ग्राहक सेवा संबंधी मुद्दे पर पुनर्विचार की आवश्यकता स्वीकार करते हुए, रिज़र्व बैंक ने मई 2010 में एक समिति (अध्यक्ष: श्री एम. दामोदरन) का गठन किया। इस समिति ने खुदरा एवं छोटे ग्राहकों तथा पेंशनभोगियों को दी जा रही बैंकिंग सेवाओं, वर्तमान शिकायत निवारण प्रक्रिया संबंधी ढांचे एवं उसकी प्रभावशीलता, बैंकिंग लोकपाल योजना की कार्यप्रणाली तथा बेहतर ग्राहक सेवा के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की संभावना पर विचार किया और सुधार के लिए कुछ उपायों की सिफारिश की। यह रिपोर्ट जुलाई 2011 में प्रकाशित की गई और इसे सार्वजनिक डोमेन में डालकर सभी हितधारकों से उनके अभिमत/ सुझाव मंगाए गये।
93. बड़ी संख्या में अभिमत और सुझाव प्राप्त हुए तथा सिफारिशों को निष्पादनयोग्य नीतियों में रूपांतरित करने की दृष्टि से उनकी जांच की गयी। तथापि, इसमें शामिल व्यापक मुद्दों तथा कतिपय सिफारिशों के दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखते हुए, क्रियान्वित करने योग्य सिफारिशों की समग्र सूची को अंतिम रूप देने में कुछ समय लगेगा। इस बीच, आरंभ में कार्यान्वयन के लिए ऐसी 88 सिफारिशें ली जाएंगी, जिनके बारे में व्यापक सहमति बनी है। साथ ही, हाल में समाप्त बैंकिंग लोकपाल सम्मेलन में, जिसमें भारतीय बैंकिंग संहिता और मानक बोर्ड (बीसीएसबीआई) सहित भारतीय बैंक संघ (आईबीए) ने भाग लिया था, 10 ऐसी कार्रवाई मदों की पहचान की गई, जो ग्राहकों के अधिकारों के संरक्षण के लिए आवश्यक हैं। तदनुसार, यह प्रस्ताव है कि:
94. दामोदरन समिति की शेष सिफारिशों के संबंध में हितधारकों के साथ संबंधित मामलों पर विचार किया जाएगा।
V. वाणिज्यिक बैंकों के लिए विनियामक और पर्यवेक्षी उपाय
बैंकिंग क्षेत्र की आंतरिक शक्ति को मजबूत बनाना
95. मई 2011 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में यह घोषणा की गई थी कि रिज़र्व बैंक बासल III ढाँचे के कार्यान्वयन की उस चरणबद्ध अवधि (जो 01 जनवरी 2013 से प्रारंभ हो रही है) का पालन करेगा जिस पर अंतर्राष्ट्रीय सहमति बनी है। रिज़र्व बैंक भारत में कार्य कर रहे अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए बासल III ढाँचे के कार्यान्वयन संबंधी दिशा-निर्देशों के ड्राफ्ट को अंतिम रूप दे रहा है। प्रस्ताव है कि :
96. यद्यपि वर्तमान में, भारत में प्रणाली स्तर पर बैंकों के पास पर्याप्त पूँजी है और उम्मीद है कि बासल III अपनाना सुगम रहेगा, परंतु पूँजी में काफ़ी ऊँची इक्विटी अपेक्षाओं को देखते हुए पूँजी संबंधी योजना में सावधानी बरतने की आवश्यकता होगी। ये दिशा-निर्देश बासल III के कार्यान्वयन हेतु पूँजीगत अपेक्षाओं के प्रारंभिक आकलन के लिए आधार का काम करेंगे।
बासल II ढाँचे में अग्रिम विधियों (एडवान्स्ड एप्रोचेज़) का कार्यान्वयन
97. परिचालन जोखिम (ऑपरेशनल रिस्क) के लिए मानक विधि (स्टैंडर्डाइज़्ड अप्रोच) (टीएसए)/ वैकल्पिक (अल्टरनेट) मानक विधि के अंतर्गत पूँजीगत अपेक्षाओं की गणना संबंधी दिशा-निर्देशों को मार्च 2010 में और बाज़ार जोखिम (मार्केट रिस्क) के लिए आंतरिक प्रारूप विधि (इंटरनल मॉडेल्स अप्रोच) संबंधी दिशा-निर्देशों को अप्रैल 2010 में जारी किया गया। ऑपरेशनल रिस्क के लिए अग्रिम माप विधि (एडवान्स्ड मेज़रमेंट अप्रोच) (एमए) पर फाइनल दिशा-निर्देश अप्रैल 2011 में जारी किए गए। ऋण जोखिम (क्रेडिट रिस्क) के लिए आंतरिक रेटिंग आधारित (आईआरबी) विधि पर ड्राफ्ट दिशा-निर्देश अगस्त 2011 में जारी किए गए। विभिन्न हितधारकों से प्राप्त टिप्पणियों/सुझावों को जाँचा-परखा जा रहा है। प्रस्ताव है कि :
गत्यात्मक प्रावधानीकरण (डायनामिक प्रोविज़निंग)
98. वित्तीय संकट के बाद विनियामक पूँजी की अंतर्निहित चक्रोन्मुखता और प्रावधानीकरण संबंधी अपेक्षाओं की ओर काफी ध्यान गया है। परिणामस्वरूप, बैंकिंग पर्यवेक्षण पर गठित बासल समिति (बीसीबीएस) ने प्रतिचक्रीय/चक्ररोधी पूँजी (कॉउन्टरसाइक्लिकल कैपिटल) और प्रवाधानीय कवच (प्रोविजनिंग बफर्स) लागू करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्य प्रारंभ किया है। दरअसल, इन विधियों (एप्रोचेज़) में यह अपेक्षा की जाती है कि अच्छे समय में पूँजी का भंडार तैयार किया जाए ताकि बुरे वक्त में बैंक वहाँ से कुछ ले सकें, घाटे को झेलने में सक्षम हों और उधार देना जारी रखें। बीसीबीएस ने प्रतिचक्रीय/चक्ररोधी (कॉउन्टरसाइक्लिकल) पूँजी कवच (बफर) के ढाँचे को जहाँ फाइनल कर लिया है, वहीं चक्ररोधी प्रावधानीकरण संबंधी मानक का ढाँचा तैयार करने का कार्य अभी भी चल रहा है। अत:, अंतरिम उपाय के तौर पर , दिसंबर 2009 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने चक्ररोधी (कॉउन्टरसाइक्लिकल) उपाय के रूप में प्रावधानीकरण कवरेज अनुपात (पीसीआर) की शुरूआत की ताकि जब सामान्यत: बैंक अच्छा लाभ कमा रहे हों तो प्रावधानीकरण के लिए बफ़र तैयार होता रहे। यह कदम 30 सितंबर 2010 की स्थिति पर 70 प्रतिशत का पीसीआर हासिल करने के लिए था। चूँकि बीसीबीएस द्वारा चक्ररोधी प्रावधानीकरण की विधि तैयार करने का काम अभी भी चल रहा है, एक और अंतरिम उपाय के रूप में, रिज़र्व बैंक ने चुनिंदा बैंकों से प्राप्त और रिज़र्व बैंक के पास पहले से उपलब्ध आँकड़ों पर आधारित एक भविष्योन्मुखी प्रावधानीकरण ढाँचा तैयार करने का काम प्रारंभ किया है जो कि भारतीय बैंकों के ऋण इतिहास (क्रेडिट हिस्ट्री) को दर्शाएगा। तदनुसार प्रस्ताव है कि:
ऋण व अग्रिम मूल्य निर्धारण कार्य दल
99. वित्तीय क्षेत्र सुधार के तहत, ऋणों व अग्रिमों पर ब्याज दर को 1997 से क्रमश: विनियमित कर दिया गया है और बैंकों को दरें तय करने की छूट दी गई है। 1 जुलाई 2010 से आधार दर (बेस रेट) सिस्टम आ गया जिसके तहत सभी प्रकार के ऋणों व अग्रिमों का मूल्य आधार दर के संदर्भ में निर्धारित होता है और बैंकों को आधार दर से कम पर उधार देने की अनुमति नहीं है। आधार दर के संदर्भ में अग्रिमों का मूल्य निर्धारित करने के लिए बैंकों को उसमें एक कीमत-लागत अंतर (स्प्रेड) जोड़ना होता है जो उस उत्पाद विशेष पर लगने वाले प्रभार के साथ-साथ टर्म प्रीमियम व रिस्क प्रीमियम पर आधारित होगा। फंड्स की लागत के अनुसार आधार दर बदल सकता है, पर आधार दर में जोड़े जाने वाले स्प्रेड में तभी बदलाव लाया जाए जब कि उस स्प्रेड के घटकों में कोई परिवर्तन हो।
100. विनियमन रहित परिवेश में, मूल्य निर्धारण का महत्त्व और बढ़ जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जोखिम (रिस्क) की कीमत पर्याप्त है और उधारकर्ताओं से उचित ब्याज लिया जा रहा है। तथापि यह देखा गया है कि फ्लोटिंग रेट वाले ऋण के मामलों में कर्ज के मूल्य निर्धारण में पारर्दर्शिता की कमी है और बैंक रिस्क की गलत कीमत लगा रहे हैं। रिज़र्व बैंक को ऐसे मामलों का भी पता चला जिसमें फ्लोटिंग रेट ऋण की अवधि के दौरान ग्राहक को चार्ज किया जाने वाला स्प्रेड कई बार बढ़ा दिया गया। इससे वैसी परिस्थिति भी पैदा हुई जिसमें पहले के ग्राहकों को उतनी ही क्रेडिट रेटिंग वाले नए ग्राहकों के मुकाबले घाटा सहना पड़ा और ग्राहकों ने भेदभाव की शिकायत की। यह सब देखते हुए प्रस्ताव है कि:
बैंकों द्वारा अग्रिमों की पुनर्संरचना के लिए विवेकसम्मत मानदंड
101. उधारकर्ताओं की वित्तीय परेशानियों के कारण यदि किसी खाते की पुनर्संरचना की जाए तो कहा जाता है कि खाता डिफॉल्ट में है और तदनुसार अंतर्राष्ट्रीय विवेकसम्मत व लेखांकन मानकों के अनुसार खातों को अनर्जक (इम्पेयर्ड) माना जाता है। तदनुसार रिज़र्व बैंक द्वारा जारी वर्तमान दिशा-निर्दशों के अनुसार जिन आस्तियों को मानक (स्टैंडर्ड) कहा जा रहा है, पुनर्संरचना होने पर उनको तत्काल अवमानक आस्तियों (सब-स्टैंडर्ड एसेट्स) के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया जाना चाहिए। तथापि, यदि पुनर्संरचना का काम रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित एक ढाँचे के अनुसार होता है तो कुछ आस्ति वर्गीकरण (एसेट क्लासिफिकेशन) लाभ मिलते हैं। ये दिशा-निर्देश समय के साथ विकसित हुए हैं। वर्तमान संरचना दिशा-निर्देश, विशेष दल (अध्यक्ष: श्रीमती.एस.गोपीनाथ) के परामर्शों पर तैयार किए गए थे जिसमें आईबीए व अन्य संस्थानों के प्रतिनिधि भी शामिल थे। इन पुनर्संरचना दिशा-निर्देशों से, जिन्हें अंतिम बार अगस्त 2008 में संशोधित किया गया था, सामान्यत: उधार लेने वालों व देने वालों, दोनों को फ़ायदा हुआ है, खास तौर पर आर्थिक मंदी के समय में। तथापि, रिज़र्व बैंक को ऐसे अनुरोध किए जा रहे हैं कि प्राप्त अनुभवों के आधार पर पुनर्संरचना दिशा-निर्देशों की समीक्षा की जाए। इन बातों के मद्देनज़र, यह प्रस्ताव है कि:
कंपनियों के अरक्षित (अनहेज़्ड) विदेशी मुद्रा एकस्पोज़र की बैंकों द्वारा निगरानी
102. अरक्षित (अनहेज़्ड) विदेशी मुद्रा एकस्पोज़र, कंपनियों के लिए जोखिम (रिस्क) के स्रोत हैं और इसे फाइनैंस करने वाले बैंकों के लिए क्रेडिट रिस्क के स्रोत हैं। यदि अनहेज़्ड पोजीशन बड़ी हुई तो घरेलू मुद्रा का मूल्यह्रास अधिक हो जाने की स्थिति में कंपनियों की शोधक्षमता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है और फाइनैंस करने वाले बैंकों के लिए बड़ी क्रेडिट क्षति हो सकती है। यह देखते हुए कि कॉरेपोरेटों की विदेशी मुद्रा प्रतिबद्धताओं का एक बड़ा हिस्सा अनहेज़्ड रह जाया करता है, अक्तूबर 2001 में बैंकों को कहा गया कि वे उन बड़े कॉरपोरेटों के विदेशी मुद्रा एक्सपोज़रों के अनहेज़्ड हिस्से की मासिक समीक्षा करें जिनका कुल विदेशी मुद्रा एक्सपोज़र अपेक्षाकृत रूप से बड़ा (जैसे 25 मिलियन अमरिकी डॉलर अथवा इससे अधिक) रहा हो। दिसंबर 2003 में, बैंकों को आगे यह भी कहा गया कि वे एक नीति बनाएं जिसमें अपने ग्राहकों के अनहेज़्ड विदेशी मुद्रा एक्सपोज़रों से होने वाले जोखिम की स्पष्ट पहचान व व्यवस्था की गई हो। बैंकों को यह भी कहा गया कि वे 10 मिलियन अमरिकी डॉलर से अधिक के विदेशी मुद्रा ऋण या कमतर सीमा, जो ऐसे एक्सपोज़रों वाले बैंकों के पोर्टफोलिओ के हिसाब से उचित समझी जाए, के ऋण तभी दे सकते हैं जब ऐसे विदेशी मुद्रा ऋणों की हेजिंग के संबंध में उनके बोर्ड द्वारा तैयार की गई सुपष्ट नीति का आधार उनके पास हो। दिसंबर 2008 में ये निर्देश फिर से दोहराए गए। पुन: दिसंबर 2008 में बैंकों को कहा गया कि वे ऐसे उधारकर्ताओं के संबंध में जानकारी का आदान-प्रदान करें जो कि एकाधिक बैंकों से ऋण सुविधा का लाभ ले रहे हैं और इसमें अन्य बातों के साथ-साथ उधारकर्ताओं के डेरिवेटिव लेन-देनों व हेज न की गई विदेशी मुद्रा एक्सपोज़रों संबंधी सूचनाओं को भी शामिल किया जाए।
103. डेरिवेटिव व्यापारों से संबंधित हाल की घटनाओं से पता चलता है कि ज्यादा रिस्क लेने से कॉरपोरेट्स परेशानी में पड़ सकते हैं और मुद्राओं में तीव्र प्रतिकूल हलचल होने पर उनके बैंकरों को बड़ी क्रेडिट हानि की संभावना बनती है। रुपए के विनिमय दर में हाल के अस्थिरता वाले प्रसंग ने, जब छह हफ़्तों के छोटे समय में रुपए में 10 प्रतिशत का अवमूल्यन हुआ, विदेशी मुद्रा जोखिम के विवेकपूर्ण प्रबंधन को बड़ी प्रबलता से रेखांकित किया है। अत: प्रस्ताव है कि:
प्राइवेट सेक्टर के नए बैंकों का लाइसेंसीकरण
104. यूनियन बजट 2010-11 में माननीय वित्त मंत्री द्वारा की गई घोषणा तथा अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में दिए गए संकेत के अनुसार, अगस्त 2010 में रिज़र्व बैंक ने अपनी वेबसाइट पर नए बैंकों के लाइसेंसीकरण पर एक चर्चा पत्र जारी किया और इस पर बैंकों, बैंकेतर वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसीज़), औद्योगिक घरानों, अन्य संस्थानों और आम जनता की राय/ टिप्पणियां जाननी चाही। विभिन्न हितधारकों के साथ विस्तृत चर्चाएं भी की गईं। इन सभी टिप्पणियों की जांच की गई थी और अगस्त 2011 में प्राईवेट सेक्टर में नए बैंकों की लाइसेंसिंग नीति पर ड्राफ्ट दिशानिदेर्श रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर डाले गए और 31 अक्तूबर, 2011 तक सभी हितधारकों की राय माँगी गई। ड्राफ्ट दिशानिर्देशों में यह संकेत दिया गया कि भारत सरकार बैंकिंग विनियमन अधिनियम (बैंकिंग रेग्यूलेशन ऐक्ट),1949 में कुछ संशोधनों पर विचार कर रही है जिनमें से कुछ प्राइवेट सेक्टर में नए बैंकों की लाइसेंसिंग नीति को अंतिम रूप देने व लागू करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। संशोधन हो जाने पर और ड्राफ्ट दिशा-निर्देशों पर प्राप्त फीडबैंकों पर विचार करने के बाद, अंतिम दिशा-निर्देश जारी कर दिए जाएंगे और प्राइवेट सेक्टर में नए बैंक स्थापित करने हेतु आवेदन आमंत्रित करने की प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी।
भारत में विदेशी बैंकों की उपस्थिति
105. अप्रैल 2010 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में की गई घोषणा के बाद, भारत में विदेशी बैंकों की उपस्थिति पर एक चर्चा पत्र रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर जनवरी 2011 में रखा गया औरबैंकों, बैंकेतर वित्तीय संस्थाओं और आम जनता सहित हितधारकों की राय/टिप्पणियां माँगी गई। विदेशी बैंकों और अन्य हितधारकों से प्राप्त राय/टिप्पणियों को समेकित किया गया है और उन पर विचार चल रहा है। चर्चा पत्र पर सभी संबंधित पक्षों की राय/टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए भारत में विदेशी बैंकों की उपस्थिति के स्वरूप पर व्यापक दिशानिर्देश तैयार किए जाएंगे।
क्षतिपूर्ति के तौर-तरीके
106. मई 2011 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में की गई घोषणा के बाद, क्षतिपूर्ति के अच्छे तौर-तरीकों पर वित्तीय पर्यवेक्षण बोर्ड (एफएसबी) के सिद्धांतों व पारिश्रमिक के जोखिम और कार्य निष्पादन अनुरूपण हेतु विधियों के प्रकार (रेंज ऑफ़ मेथडॉलॉजिस फॉर रिस्क एंड परफॉरर्मेंस एलाइनमेंट ऑफ़ रेम्यूनरेशन) पर बीसीबीएस द्वारा मई 2011में जारी दिशा निर्देशों को ध्यान में रखते हुए रिज़र्व बैंक क्षतिपूर्ति पर अंतिम दिशा-निर्देश जारी करने की प्रक्रिया में है।
भारत में बैंक होल्डिंग कंपनी/ फ़ाइनैंशियल होल्डिंग कंपनी ढाँचे की शुरुआत
107. बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थाओं के लिए अपेक्षित विधायी व विनियामक संरचना सहित एक होल्डिंग कंपनी ढाँचे की शुरुआत करने के लिए एक कार्यदल (अध्यक्ष: श्रीमती श्यामला गोपीनाथ) का गठन किया गया। कार्यदल ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी और इस पर सभी हितधारकों की टिप्पणियां/राय जानने के लिए इसे रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखा गया। प्राप्त टिप्पणियों पर विचार किया जा रहा है।
पर्यवेक्षी नीतियां, कार्यविधियां और प्रक्रियाएं: व्यापक समीक्षा
108. भारत में वाणिज्यिक बैंकों के संबंध में वर्तमान पर्यवेक्षी प्रक्रियाओं की समीक्षा करने के लिए रिज़र्व बैंक ने एक उच्च स्तरीय संचालन (स्टीअरिंग) समिति (अध्यक्ष: डॉ के.सी चक्रवर्ती) गठित की। निम्नलिखित चीजें समिति के विचारार्थ विषयों में शामिल हैं (i)पर्यवेक्षण दृष्टिकोण (अप्रोच) की समीक्षा; (ii) वर्तमान प्रत्यक्ष (ऑनसाइट) पर्यवेक्षी परीक्षण और अप्रत्यक्ष (ऑफसाइट) पर्यवेक्षी विधियों की समीक्षा; (iii) विवेकसम्मत पर्यवेक्षी दिशा-निर्देशों और पर्यवेक्षी समीक्षा प्रक्रिया की पर्याप्तता की समीक्षा; (iv) समेकित पर्यवेक्षण (कॉन्सोलिडेटेड सुपरविज़न) के वर्तमान तरीकों की समीक्षा; (v) वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षी सहयोग प्रक्रिया को सबल बनाने के उपायों पर सुझाव; (vi) पर्यवेक्षी कार्य के लिए संस्थागत ढाँचे की पर्याप्तता का आकलन और (vii) फ़ीडबैक प्रणाली हेतु संरचना पर सुझाव। संचालन (स्टीअरिंग) समिति की सहायता के लिए रिज़र्व बैंक के अधिकारियों और कुछ बैंकों के प्रतिनिधियों को लेकर एक तकनीकी समिति भी बनाई गई है। संचालन समिति जुलाई-2012 के अंत तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर देगी।
VI. संस्थागत गतिविधियां
गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी)
गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी-माइक्रो फाइनैंस इन्स्टीट्यूशनके लिएविनियामक ढाँचा
109. जैसा कि मई 2011 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में घोषणा की गई थी, माइक्रो फाइनैंस संस्था क्षेत्र के मुद्दों व समस्याओं का अध्ययन करने के लिए गठित मालेगाम समिति द्वारा सुझाए गए विनियमनों के व्यापक ढाँचे को रिज़र्व बैंक ने स्वीकार कर लिया था। एमएफ़आई ऋणों को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के रूप में लिए जाने संबंधी दिशा-निर्देश भी बैंकों को जारी किए गए। आगे यह प्रस्ताव है कि:
110. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश नवंबर 2011 के अंत तक जारी कर दिए जाएंगे। मूल निवेश (कोर इन्वेस्टमेंट) कंपनियों द्वारा विदेशों में निवेश
111. वर्तमान विनियमनों के तहत, विदेशों में निवेश की इच्छा रखने वाली एनबीएफसी को रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमति लेनी पड़ती है। कुछ पात्रता शर्तों को पूरा करने पर रिज़र्व बैंक इन निवेशों की अनुमति देता है और वह भी केवल विनियमित वित्तीय कार्यकलापों में। मूल निवेश कंपनियों (सीआईसी) का प्राथमिक कार्य ग्रुप इकाइयों में हितधारिता (स्टेक होल्ड करने) के लिए उनके इक्विटि शेयर्स में निवेश करना होता है। ये ग्रुप कंपनियां केवल वित्तीय क्षेत्र में सीमित न होकर अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की हो सकती हैं। एक होल्डिंग कंपनी के रूप में, सीआईसी को विदेश स्थित गैर-वित्तीय इकाइयों में निवेश करना पड़ सकता है। अंत: प्रस्ताव है कि:
112. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।
एनबीएफसी के वर्तमान विनियामक ढाँचे की समीक्षा
113. एनबीएफसी के बढ़ते महत्त्व और वित्तीय प्रणाली के दूसरे वर्गों के साथ उनकी अंतर्संबद्धता को देखते हुए एनबीएफसी से जुड़े कई उभरते हुए मुद्दों, जिनका वित्तीय स्थिरता पर प्रभाव है, पर विचार करने के लिए रिज़र्व बैंक ने एक कार्यदल (अध्यक्ष:श्रीमती उषा थोरात) बनाया। समिति ने मुख्यत: निम्नलिखित मुद्दों को जाँचा-परखा: विनियामक रिक्तताओं व विनियामक अंतरपणन (आर्बिट्रैज़) की समस्या को हल करने की जरूरत को देखते हुए एनबीएफसी की परिभाषा व वर्गीकरण; इस क्षेत्र में प्रशासन व्यवस्था के स्तर में सुधार; और एनबीएफसी पर्यवेक्षण की समुचित विधि। समिति ने अपनी रिपोर्ट अगस्त 2011 में प्रस्तुत की और इसकी प्रमुख सिफारिशों इस प्रकार हैं: किसी भी नए एनबीएफसी के पंजीकरण के लिए आस्ति का न्यूनतम आकार 50 करोड़ रुपए से अधिक का; 12 प्रतिशत की टीयर I पूँजी; एनबीएफसी के लिए चलनिधि अनुपात; एनबीएफसी के रूप में वर्गीकरण के लिए इन आस्तियों से उठाए जा सकने वाले कुल वित्तीय आस्तियों व आय को 50 प्रतिशत के वर्तमान निर्धारण से बढ़ाकर क्रमश: कुल आस्तियों व आय का 75 प्रतिशत किया जाना; बैंकों के समान आस्ति वर्गीकरण व प्रावधानीकरण मानक; बड़ी एनबीएफसियों के लिए वित्तीय समूह (फाइनैंशियल कॉन्ग्लोमरेट्स) वाला एप्रोच; 1000 करोड़ रुपए और इससे अधिक की आस्तियों वाले एनबीएफसी के लिए व्यापक निरीक्षण। जनता की राय जानने के लिए रिपोर्ट को रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर 30 सितंबर, 2011 तक रखा गया। प्राप्त प्रतिक्रियाओं पर विचार चल रहा है।
भुगतान व निपटान प्रणाली
कार्ड-आधारित लेन-देनों के लिए कार्य दल
114. जैसा कि मई 2011 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में कहा गया था, वर्तमान कार्डों में विक्रय बिंदुओं (प्वाइंट्स ऑफ़ सेल) पर लेन-देनों हेतु अतिरिक्त अभिप्रमाणन (ऑथेंटिकेशन) की किफायती व्यवस्था हेतु कार्य-योजना सुझाने तथा कार्ड संबंधी आधारभूत व्यवस्था को चिप-आधारित व व्यक्तिगत पहचान नंबर (पीआईएन)- आधारित कार्डों के जारी व स्वीकार किए जाने लायक बनाने के लिए एक समय-सीमा प्रस्तावित करने के लिए सरकारी/निजी/विदेशी बैंकों, कार्ड कंपनियों, नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और रिज़र्व बैंक के प्रतिनिधियों को लेकर एक कार्य दल का गठन किया गया था। कार्य दल ने अपनी रिपोर्ट जून 2011 में सौंप दी। इसकी प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार हैं (i) 18-24 महीनों में तकनीक और भुगतान संबंधी आधारभूत व्यवस्था को मज़बूत करना, जैसे प्रत्येक टर्मिनल के लिए विशिष्ट कुंजी (यूनिक की) और टर्मिनल लाइन एनक्रिप्शन (यूकेपीटी एंड टीएलई) आदि का कार्यान्वयन; (ii) घरेलू लेन-देनों के लिए 24 महीनों में सभी डेबिट कार्ड लेन-देनों के लिए एक अतिरिक्त कारक (एडिशनल फैक्टर) की शुरुआत; (iii) आधार की शुरुआत के 18 महीनों बाद इसमें हुई प्रगति की समीक्षा ताकि एटीएम और पीओएस पर पीआईएन (पिन) के बदले जैविक अंगुली निशान (बायोमेट्रिक फिंगर प्रिंट) के प्रयोग की पड़ताल की जा सके; (iv) क्रेडिट और डेबिट कार्डों के लिए क्रमश: 5 और 7 वर्षों में यूरोपे, मास्टरकार्ड और वीसा (ईएमवी) चिप व पिन का प्रयोग; और (v) यदि कम से कम एक क्रय किसी विदेशी लोकेशन पर पाया जाए तो चुंबकीय-पट्टी वाले कार्डों के बदले ईएमवी चिप कार्ड व पिन जारी किए जाएं। दल के अधिकांश परामर्श स्वीकार कर लिए गए थे और सितंबर 2011 में सभी हितधारकों को निर्देश जारी कर दिए गए।
राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण प्रणाली (एनईएफटी सिस्टम) का प्रदर्शन
115. हितधारकों (स्टेकहोल्डर्स) ने राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण (एनईएफटी)में किए जाने वाले सभी सुधार स्वीकार कर लिए हैं और स्वीकार्यता, पहुँच और मात्रा के लिहाज से यह प्रॉडक्ट उत्तरोत्तर मज़बूत होता चला जा रहा है। सितंबर 2011 के अंत तक, 103 बैंकों की 79,500 शाखाओं ने एनईएफटी सिस्टम में हिस्सा लिया और इसके जरिये प्रोसेस किये गये लेन-देनों की संख्या बढ़कर 17.5 मिलियन तक पहुँच गई। कुछ बैंक अपने द्वारा सपॉन्सर किए जा रहे क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबीज़) को भी सफ़लता व सुगमतापूर्वक एनईएफटी के दायरे में ला चुके हैं। जल्द ही और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबीज़) के एनईएफटी से जुड़ने की आशा है।
2011-17 के लिए आईटी विज़न दस्तावेज
116. जैसा कि मई 2011 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में कहा गया था, 2011-17 के लिए एक आईटी विज़न दस्तावेज तैयार करने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति (अध्यक्ष:डॉ के.सी चक्रवर्ती) ने रिज़र्व बैंक और वाणिज्यिक बैंक, दोनों से संबंधित सुझाव दिए। आईटी विज़न दस्तावेज से संबंधित कार्रवाई बिंदु तय कर लिए गए हैं और इस दस्तावेज के कार्यान्वयन में प्रगति पर निगरानी के लिए एक स्थायी समिति (अध्यक्ष: श्री आनंद सिन्हा) बनाई गई है। आईटी विज़न दस्तावेज में दिए गए सुझावों का सुगम कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए एक संचालन समिति (स्टीअरिंग कमिटी) (अध्यक्ष:श्री जी.पद्मनाभन) गठित की गई है।
बैंकों से आँकड़ों का स्वचालित प्रवाह (ऑटोमेटेड डेटा फ्लो)
117. जैसा कि मई 2011 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में कहा गया था, बैंकों, रिज़र्व बैंक, बैंकिंग प्रौद्योगिकी विकास व अनुसंधान संस्थान (आईडीआरबीटी) और आईबीए के विशेषज्ञों को लेकर गठित एक कोर ग्रूप ने सीबीएस व वाणिज्यिक बैंकों की अन्य आईटी प्रणालियों से रिज़र्व बैंक को आँकड़ों के स्वचालित प्रवाह (ए स्ट्रेट थ्रू प्रोसेस) पर एक एप्रोच पेपर तैयार किया था। रिज़र्व बैंक के यह कहने के बाद कि एक ऐसा सिस्टम जल्द से जल्द लागू किया जाए जिसके द्वारा रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत की जाने वाली विवरणियां (रिटर्न्स) बैंकों के सीबीएस अन्य आईटी प्रणालियों से बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के रिज़र्व बैंक को सीधे प्राप्त हो जाएं, सभी बैंकों ने अपनी कार्य योजनाएं प्रस्तुत कर दी हैं। पुनश्च, वे निर्धारित प्रारूपों में तिमाही प्रगति प्रस्तुत कर रहे हैं। कुछ बैंकों ने पहले ही कुछ रिटर्न्स अपनी स्रोत प्रणालियों (सोर्स सिस्टम) से सीधे जेनरेट करनी शुरू कर दी हैं। सुगम व त्वरित कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए, कुछ बैंकों के प्रतिनिधियों को लेकर एक कार्य दल बनाया गया है। बैंकों से विवरणियों (रिटर्न्स) को स्वचालित प्रवाह (ऑटोमेटेड फ्लो) में लाने के कार्य में तेजी लाने को कहा जा रहा है और इस सबंध में प्रगति पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है।
तत्काल सकल निपटान प्रणाली (रिअल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट सिस्टम)
118. जैसा कि मई 2011 के मौद्रिक नीति वक्तव्य में कहा गया था, अगली पीढ़ी के तत्काल सकल निपटान (एनजी-आरटीजीएस) प्रणाली के कार्यान्वयन पर एक एप्रोच पेपर तैयार करने के लिए गठित कार्य दल ने जो एप्रोच पेपर प्रसतुत किया, उसके सुझावों को एनजी-आरटीजीएस सिस्टम का खाका तैयार करने का आधार बनाया गया। प्रतिष्ठित प्रौद्योगिकी संस्थानों, बैंकों व रिज़र्व बैंक के सदस्यों को लेकर गठित एक तकनीकी सलाहकार दल (टीएजी) के मार्गदर्शन में रिज़र्व बैंक एक उपयुक्त समाधान ढूंढ़ने की प्रक्रिया में है।
मुद्रा प्रबंध
119. मुद्रा वितरण प्रणाली व प्रक्रिया पर उच्च-स्तरीय दल (अध्यक्ष: श्रीमती उषा थोरात) का एक प्रमुख सुझाव यह था कि नकली नोटों के पकड़े जाने के मामलों की रिज़र्व बैंक/पुलिस को कम रिपोर्ट (अंडर-रिपोर्टिंग) करने की प्रवृत्ति से निबटने के लिए उन मामलों में एफआईआर फाइल करने की आवश्यकता समाप्त कर दी जाए जहाँ ऐसे किसी व्यक्ति के द्वारा, जो इस बात से अनभिज्ञ हो कि उसके पास नकली नोट हैं, बैंक काउंटर पर प्रस्तुत नकली नोटों की संख्या पाँच से अधिक न हो। संबंधित सभी मामलों पर विचार करने और भारत सरकार के साथ परामर्श करने के बाद रिज़र्व बैंक ने बैंकों को निर्देश दिया कि (i) एकल लेन-देन (सिंगल ट्रांजैक्शन) में चार की संख्या तक नकली नोटों के पकड़े जाने वाले मामलों में माह के अंत में एक समेकित रिपोर्ट पुलिस विभाग को दी जाए; और (ii) एक सिंगल ट्रांजैक्शन में पकड़े गए नोटों की संख्या पाँच या पाँच से अधिक हो तो अधिकार क्षेत्र के अनुसार नोडल पुलिस स्टेशन/पुलिस प्राधिकारियों के पास एफ़आईआर दर्ज कराया जाए। इससे बैंक शाखाओं/खजानों पर नकली नोट पकड़े जाने के सभी मामलों की रिज़र्व बैंक/पुलिस प्राधिकारियों को तत्काल रिपोर्टिंग सुनिश्चित होगी। मुंबई
25 अक्तूबर 2011 |