भारिबैंक/2011-12/404
ए.पी.(डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं. 82
21 फरवरी 2012
विदेशी मुद्रा का कारोबार करने वाले सभी प्राधिकृत व्यापारी
महोदया/महोदय,
आयात के लिए विदेशी मुद्रा जारी करना – और उदारीकरण
विदेशी मुद्रा का कारोबार करने वाले सभी प्राधिकृत व्यापारियों का ध्यान 19 जून 2003 के ए.पी. (डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं. 106 की ओर आकृष्ट किया जाता है, जिसके अनुसार भारत में आयात के लिए व्यक्तियों, फर्मों तथा कंपनियों द्वारा 500 अमरीकी डॉलर से अधिक अथवा उसकी समतुल्य राशि के भुगतान करने के लिए फॉर्म ए-1 में आवेदन किये जाने थे ।
2. विभिन्न स्टेक होल्डरों से प्राप्त सुझावों के आधार पर उक्त सीमा की पुनरीक्षा की गयी है और उदारीकरण के उपाय के रूप में यह निर्णय लिया गया है कि आयातों के संबंध में किन्हीं प्रलेखन औपचारिकताओं के बगैर, विदेशी मुद्रा विप्रेषण के लिए उपर्युक्त सीमा, तत्काल प्रभाव से 500 अमरीकी डॉलर अथवा उसकी समतुल्य राशि से बढ़ा कर 5000 अमरीकी डॉलर अथवा उसकी समतुल्य राशि की जाए ।
3. यह स्पष्ट किया जाता है कि जब विदेशी मुद्रा की खरीद, समय समय पर यथा संशोधित, 3 मई 2000 की अधिसूचना सं. जी.एस.आर.381 (ई) के जरिये भारत सरकार द्वारा बनायी गयी विदेशी मुद्रा प्रबंध (चालू खाता लेनदेन) नियमावली, 2000 की अनुसूची । और ॥ में शामिल न किए गए, चालू खाता लेनदेन के लिए की जा रही हो, जिसकी राशि 5000 अमरीकी डॉलर अथवा उसकी समतुल्य राशि से अधिक न हो और भुगतान आवेदक के बैंक खाते पर आहरित चेक द्वारा अथवा माँग ड्राफ्ट द्वारा किया जा रहा हो, तो प्राधिकृत व्यापारी ऐसे आवेदक से फॉर्म ए-1 सहित कोई भी अतिरिक्त दस्तावेज न लें बल्कि एक साधारण आवेदन पत्र लें जिसमें मूल जानकारी अर्थात् आवेदक का नाम और पता, लाभार्थी का नाम और पता, विप्रेषित की जाने वाली राशि और विप्रेषण का प्रयोजन निहित हो ।
4. प्राधिकृत व्यापारी इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित घटकों और ग्राहकों को अवगत करायें ।
5. इस परिपत्र में निहित निर्देश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10 (4) और 11 (1) के अंतर्गत और किसी अन्य विधि के अंतर्गत अपेक्षित किसी अनुमति/अनुमोदन पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जारी किये गये हैं ।
भवदीया,
(रश्मि फौज़दार)
मुख्य महाप्रबंधक |