आरबीआई/2011-12/601
डीपीएसएस.सीओ.पीडी.सं. 2256/02.14.006/ 2011-12
14 जून 2012
प्रति,
सभी प्रणाली प्रदाताओं, सिस्टम सहभागी और
अन्य सभी भावी प्रीपेड भुगतान लिखत जारीकर्ता
महोदय,
भारत में प्रीपेड भुगतान लिखतों को जारी करने और उनके परिचालन हेतु नीतिगत दिशानिर्देश – संशोधन
कृपया इस विषय पर हमारे दिनांक 27 अप्रैल 2009 के परिपत्र आरबीआई/2008-09 / 458 डीपीएसएस. सीओ. पीडी. सं. 1873/ 02.14.06/2008-09, दिनांक 04 नवंबर, 2010 के आरबीआई / 2010-11 / 261 डीपीएसएस.सीओ.सं. 1041 / 02.14.006 / 2010-2011 और दिनांक 04 अगस्त 2011 के आरबीआई /2011-12 / 144 डीपीएसएस.सीओ.पीडी.सं 225/02.14.006/2011-12 को देखें।
2. प्रीपेड भुगतान लिखतों को जारी करने और बाज़ार स्वीकृति के विकास की समीक्षा करने पर रिज़र्व बैंक ने निम्नलिखित संशोधनों की आवश्यकता महसूस की है:
" 2000 रुपये तक के सेमी-क्लोज्ड सिस्टम भुगतान लिखतों को ग्राहक द्वारा पहचान हेतु प्रस्तुत किए गए किसी भी दस्तावेज़ के आधार पर जारी किया जा सकता है बशर्ते वार्षिक टर्नोवर/संदिग्ध लेनदेनों की रिपोर्टिंग की गई हो। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में एक ही जारीकर्ता द्वारा एक ही धारक को एक से अधिक सक्रिय लिखत जारी न किए जाएँ।"
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पैरा 6.4 (iii) के अंतर्गत यूटिलिटी बिलों/आवश्यक सेवाओं/हवाई और ट्रेन की यात्रा संबंधी भुगतान के लिए जारीकर्ता के द्वारा अलग से अपने ग्राहक को जानें (केवाईसी) संबंधी कार्रवाई किए बिना 10000 रुपये तक के सेमी-क्लोज्ड प्रीपेड भुगतान लिखतों को जारी करने की अनुमति इस आधार पर दी गई थी कि ग्राहक की पूरी केवाईसी, ऐसी सेवा प्रदान करने वाले सेवा प्रदाता द्वारा पहले ही की जा चुकी है। नियंत्रण का प्रयोग जारीकर्ता द्वारा स्वीकृति पक्ष (acceptance side) के प्रति करना है, जैसे कि विशिष्ट व्यापारी के पास विशिष्ट प्रयोजन हेतु कार्ड की उपयोगिता। इस तर्क के आधार पर, यह निर्णय लिया गया है कि पैरा 6.4 (iii) के अंतर्गत व्यापारियों की श्रेणियों को दोबारा परिभाषित किया जाए। तदनुसार 27 अप्रैल 2009 के दिशानिर्देशॉ के पैरा 6.4 (iii) (दिनांक 04 नवंबर 2010 के परिपत्र द्वारा यथा संशोधित) को निम्नलिखित रूप में पढ़ा जाए:
“सेमी-क्लोज्ड सिस्टम भुगतान लिखत जो केवल यूटिलिटी बिलों/आवश्यक सेवाओं/हवाई और ट्रेन की यात्रा संबंधी टिकटों, स्कूल कालेजों में बार-बार भरे जाने वाले शुल्क, सरकारी शुल्क के 10000 रुपये तक के भुगतान की ही अनुमति देते हैं, जारीकर्ता द्वारा अलग से केवाईसी किए बिना जारी किए जा सकते हैं। ऐसे लिखतों को जारी करने वाले व्यक्ति को इस बात को सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि ये लिखत केवल उन्हीं संस्थाओं में स्वीकार किए जाएँ जो अपने ग्राहकों की पूरी पहचान रखती हैं। यूटिलिटी बिलों/आवश्यक सेवाओं में केवल बिजली का बिल, पानी का बिल, टेलेफोन/मोबाइल फोन का बिल, बीमा प्रीमियम, रसोई गैस भुगतान, इन्टरनेट/ब्राडबैंड कनैक्शन, केबल/डीटीएच सब्स्क्रिप्शनों और सरकार अथवा सरकारी निकायों द्वारा प्रदान की जाने वाली नागरिक सेवायें शामिल होंगे ।”
3. यह निर्देश भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम 2007 (2007 का अधिनियम 51) की धारा 18 के अंतर्गत जारी किया गया है।
4. कृपया इस परिपत्र की प्राप्ति की सूचना दें।
भवदीय
(विजय चुग)
मुख्य महाप्रबंधक
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