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अधिसूचनाएं

बंधक गारंटी कंपनी (एमजीसी) पर दिशानिदेश में संशोधन

भारिबैं/2014-15/170
गैबैंपवि (नीप्र) कंपरि.सं.20/एमजीसी/03.011.001/2014-15

08 अगस्त 2014

सभी पंजीकृत बंधक गारंटी कंपनी (एमजीएसी)

महोदय,

बंधक गारंटी कंपनी (एमजीसी) पर दिशानिदेश में संशोधन

कृपया भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45एल (1) (बी) के तहत 15 फरवरी 2008 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि (नीप्र) एमजीसी सं.3, 4 और 5 / सीजीएम (पीके)-2008 द्वारा जारी बंधक गारंटी कंपनी का पंजीकरण और परिचालन पर दिशानिदेश (इसके बाद इसे दिशानिदेश कहा जाएगा) का अवलोकन करें।

2. उद्योग क्षेत्र से प्राप्त अभ्यावेदन तथा लम्बे समय तक उसपर निगरानी रखने के बाद – बंधक गारंटी उद्योग जगत में आवधिक लाभकारी प्रभाव लाने के मद्देनज़र यह निर्णय लिया गया कि मौजूदा दिशानिदेश में निम्नवत कुछ संशोधन किया जाए :

ए) पूंजी पर्याप्तता

एमजीसी की पूंजी पर्याप्तता की गणना करते समय, एमजीसी द्वारा प्रदत्त बंधक गारंटी को आकस्मिक देयताएं माना जा सकता है तथा इन आकस्मिक देयताओं के लिए वर्तमान में लागू सौ प्रतिशत ऋण संपरिवर्तन कारक के बदले पचास प्रतिशत ऋण संपरिवर्तन कारक लागू होगा।

बी) आकस्मिक आरक्षित निधि

i. वित्तीय वर्ष के दौरान यदि प्रीमियम अथवा अर्जित शुल्क के प्रति 35% से अधिक की हानि के लिए प्रावधान किया गया है तब मौजूदा दिशानिदेश के अनुसार आकस्मिक आरक्षित निधि के लिए निम्न (लोअर) विनियोजन प्रदान किया जाएगा। इसमें सृजन की जाने वाली आकस्मिक आरक्षित निधि के वास्तविक स्तर का विशिष्ट उल्लेख नहीं किया गया है। अब यह स्पष्ट किया जाता है कि ऐसे मामले में आकस्मिक आरक्षित निधि कम से कम प्रीमियम अथवा अर्जित शुल्क का 24% तक जा सकती है, अर्थात हानि के लिए किया गया समग्र प्रावधान तथा आकस्मिक आरक्षित निधि वित्तीय वर्ष के दौरान प्रीमियम और अर्जित शुल्क का न्यूनतम 60% है।

ii. मौजूदा निदेश के अनुसार, एमजीसी केवल भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्वानिमति के बाद ही आकस्मिक आरक्षित निधि का उपयोग कर सकती है। अब निदेशों को कुछ सीमा तक संशोधित किया गया है कि बंधक गारंटी धारक द्वारा वहन की गई हानि से निकलने तथा स्थिति को बेहतर बनाने के उद्देश्य के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमति के बगैर आकस्मिक आरक्षित निधि का उपयोग किया जा सकता है। हानि से बाहर निकलने हेतु अन्य सभी प्रयासो और विकल्पो का प्रयोग करने के बाद ही यह उपाय किया जाए।

सी) निवेशों का वर्गीकरण

मौजूदा निदेशों के अनुसार एमजीसी सरकारी प्रतिभूतियों, सरकार द्वारा गारंटी दिया गया सार्वजनिक क्षेत्र / कॉर्पोरेट निकायों की प्रतिभूतियों, सावधि जमा / सीडी / एससीबी बॉंड / पीएफआई, सूचीबद्ध तथा रेटिंग किया गया ऋण पत्र / बांडों, पूर्ण रूप से ऋण उन्मुख म्युचुअल फ़ंड यूनिट तथा गैर उद्धृत सरकारी प्रतिभूति और सरकारी गारंटीकृत बॉंडों में निवेश कर सकती है। अब यह निर्णय लिया गया है कि सरकारी प्रतिभूतियां उद्धृत अथवा अन्य, सरकारी गारंटीड प्रतिभूतियों तथा बॉंडों में किया गया निवेश, एमजीसी की पूंजी से अधिक नहीं होगी तथा इसे मूल्यांकन के उद्देश्य से तथा तद्नुसार लेखांकन हेतु परिपक्वता तक धारित (एचटीएम) माना जाएगा। एचटीएम के अंतर्गत वर्गीकृत निवेश को बाजर भाव पर दर्शाया जाने की आवश्यकता नहीं है तथा इसे अधिग्रहण लागत से लिया जाएगा, जब तक प्रीमियम परिपक्वता के लिए शेष अवधि में ऋण चुकता किया जाए, जो अंकित मूल्य से अधिक हो। तथापि इस एचटीएम श्रेणी के बाहर किसी प्रतिभूति का परिपक्वता के पूर्व कारोबार किया जाता है तो पूरे लाट को कारोबार के लिए प्रतिभूति माना जाएगा और बाजार भाव पर दर्शाया जाएगा।

डी) इस्तेमाल की गई गारंटी पर हानि के लिए प्रावधान

मौजूदा निदेश के अनुसार, जिसमें यह कहा गया है कि अधिक को वापस नहीं किया जाएगा इसके विपरित ऐसे मामले में जहां इस्तेमाल की गई गारंटी के लिए पहले से ही प्रावधान किया गया है और यह राशि करार वार कुल लागू राशि से अधिक है (प्रत्येक गृह ऋण के संबंध में कंपनी द्वारा धारित परिसंपत्ति का मूल्य वसूल कर समायोजित करने के बाद) उस आधिक्य को वापस किया जाए। तथापि यह वापसी केवल पूर्णवसूली/इस्तेमाल की गई गारंटी राशि की समाप्ति अथवा खाते का मानक बनने के बाद ही किया जाए।

भवदीय,

(के के वोहरा)
प्रधान मुख्य महाप्रबंधक


अधिसूचना गैबैंपवि (नीप्र) एमजीसीसं. 7 / पीसीजीएम (केकेवी)- 2014

08 अगस्त 2014

भारतीय रिजर्व बैंक, जनता के हित में यह आवश्यक समझकर और इस बात से संतुष्ट होकर कि देश के हित में ऋण प्रणाली को विनियमित करने के लिए, बैंक को समर्थ बनाने के प्रयोजन से बंधक (मार्गेज) गारंटी कंपनी (रिजर्व बैंक) निदेश 2008 (15 फरवरी 2008 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि (एमजीसी)3 / सीजीएम (पीके) - 2008) (इसके बाद इसे निदेश कहा जाएगा) को संशोधित करना आवश्यक है। भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 45 ञक तथा 45 (ठ) द्वारा प्रदत्त शक्तियों और इस संबंध में प्राप्त समस्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए उक्त निदेश को तत्काल प्रभाव से निम्नवत संशोधित करने का निदेश देता है यथा-

2. पैराग्राफ 18 में संशोधन – पैराग्राफ 18 में,

(i) खंड (सी) को निम्नलिखित के द्वारा प्रतिस्थापित किया जाए यथा, -

“(सी) किसी लेखांकन वर्ष के दौरान प्रीमियम अथवा अर्जित शुल्क का निम्न लोअर प्रतिशत का विनियोजन किया जाए बशर्ते कि बंधक गारंटी दावा उस लेखांकन वर्ष के दौरान प्रीमियम अथवा अर्जित शुल्क के पैतीस प्रतिशत (35 %) से अधिक हो ऐसी स्थिति में प्रत्येक वर्ष हानि खाते का निपटान हेतु किया गया प्रावधान प्रीमियम अथवा अर्जित शुल्क का कम से कम 24 % होना चाहिए। “

(ii) खंड (एफ) को निम्नलिखित से प्रतिस्थापित किया जाए, यथा, -

“(एफ) बंधक गारंटी द्वारा वहन की गई हानि से निकलने तथा स्थिति को बेहतर बनाने के उद्देश्य के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमति के बगैर आकस्मिक आरक्षित निधि का इस्तेमाल किया जा सकता है, हानि से बाहर निकलने हेतु अन्य सभी प्रयासो और विकल्प का प्रयोग करने के बाद ही यह उपाय किया जाए, इस्तेमाल करने के अन्य सभी मामलो में भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्व अनुमति ली जाए।“

3. पैराग्राफ 20 में संशोधन – पैराग्राफ 20 में लिखा गया है शब्द “ऐसे मामले में जहां प्रावधान की गई राशि पहले से ही परिकलित राशि से अधिक है, वहां अधिक को वापस नहीं किया जाएगा” को शब्द “ऐसे मामले में जहां प्रावधान की गई राशि पहले से ही परिकलित राशि से अधिक है, वहां पूर्णवसूली अथवा इस्तेमाल की गई गारंटी अथवा खाते का मानक बनने के बाद उस आधिक्य को वापस किया जा सकता है” शब्द से प्रतिस्थापित किया जाए।

(के के वोहरा)
प्रधान मुख्य महाप्रबंधक


अधिसूचना गैबैंपवि (नीप्र) एमजीसी सं. 8 / पीसीजीएम (केकेवी) - 2014

08 अगस्त 2014

भारतीय रिजर्व बैंक, जनता के हित में यह आवश्यक समझकर और इस बात से संतुष्ट होकर कि देश के हित में ऋण प्रणाली को विनियमित करने के लिए, बैंक को समर्थ बनाने के प्रयोजन से बंधक (मार्गेज गारंटी कंपनी (रिजर्व बैंक) निदेश 2008 (15 फरवरी 2008 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि.एमजीसी (4/सीजीएम (पीके) 2008 (इसके बाद इसे निदेश कहा जाएगा) को संशोधित करना आवश्यक है। भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 45 ञक तथा 45 (ठ) द्वारा प्रदत्त शक्तियों और इस संबंध में प्राप्त समस्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए उक्त निदेश को तत्काल प्रभाव से निम्नवत संशोधित करने का निदेश देता है यथा –

2. पैराग्राफ 6 में संशोधन – पैराग्राफ 6 के उप पैराग्राफ (1) में शब्द “ऐसे मामले में जहां प्रावधान की गई राशि पहले से ही परिकलित राशि से अधिक है, वहां अधिक को वापस नहीं किया जाएगा” को शब्द “ऐसे मामले में जहां प्रावधान की गई राशि पहले से ही परिकलित राशि से अधिक है, वहां पूर्णवसूली अथवा इस्तेमाल की गई गारंटी अथवा खाते का मानक बनने के बाद उस आधिक्य को वापस किया जा सकता है” शब्द से प्रतिस्थापित किया जाए।

3. पैराग्राफ 12 में संशोधन - पैराग्राफ 12 में, खंड (2) के तहत स्पष्टीकरण में शीर्षक “मदों की प्रकृति में मद i) “वित्तीय और अन्य गारंटी“ शब्द और प्रतीक को “बंधक गारंटी” शब्द से प्रतिस्थापित किया जाए तथा अन्य मदों में ऋण संपरिवर्तन कारक की रेटिंग अंक “100” को अंक “50” से प्रतिस्थापित कर संशोदित किया जाए।

(के के वोहरा)
प्रधान मुख्य महाप्रबंधक


अधिसूचना (गैबैंपवि) नीप्र (एमजीसी सं.9/पीसीजीएम  (केकेवी) - 2014

08 अगस्त 2014

भारतीय रिजर्व बैंक, जनता के हित में यह आवश्यक समझकर और इस बात से संतुष्ट होकर कि देश के हित में ऋण प्रणाली को विनियमित करने के लिए, बैंक को समर्थ बनाने के प्रयोजन से बंधक (मार्गेज) गारंटी कंपनी (रिजर्व बैंक) निदेश 2008 (15 फरवरी 2008 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि (एमजीसी) 5/सीजीएम(पीके)-2008) (इसके बाद इसे निदेश कहा जाएगा) को संशोधित करना आवश्यक है। भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 45 ञक तथा 45 (ठ) द्वारा प्रदत्त शक्तियों और इस संबंध में प्राप्त समस्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए उक्त निदेश को तत्काल प्रभाव से निम्नवत संशोधित करने का निदेश देता है यथा-

2. पैराग्राफ 6 में संशोधन – पैराग्राफ 6 के उप पैराग्राफ (1) को निम्नलिखित से प्रतिस्थापित किया जाए यथा, -

“(1) (i) मूल्यांकन के उद्देश्य से निवेश को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाए जैसे:-

(ए) सरकारी प्रतिभूति सहित राजकोषीय बिल,

(बी) सरकारी गारंटी वाली बॉंड/प्रतिभूति;

(सी) बैंकों/पीएफआई के बॉंड;

(डी) कॉर्पोरेट्स के ऋण पत्र /बॉंड्स ; तथा

(ई) म्युचुअल फंड के यूनिट्स.

(ii) सरकारी प्रतिभूति सहित राजकोषीय बिल, सरकारी गारंटी बॉंड अथवा प्रतिभूति को छोड़कर उद्धृत निवेश के लिए प्रत्येक श्रेणी को लागत मूल्य अथवा बाजार मूल्य जो भी कम होगा उसपर मूल्यांकन किया जाएगा। इस उद्देश्य के लिए सरकारी प्रतिभूतियां उद्धृत अथवा अन्य, सरकारी गारंटीड प्रतिभूतियों तथा बॉंडो में किया गया निवेश पूंजी से अधिक नहीं होगी तथा इसे मूल्यांकन के उद्देश्य से और तदनुसार लेखांकन हेतु परिपक्वता तक धारित (एचटीएम) माना जाएगा। एचटीएम के तहत वर्गीकृत निवेश को बाजार भाव पर दर्शाया जाने की आव्श्यकता नहीं है तथा इसे अधिग्रहण लागत से लिया जाएगा, जब तक प्रीमियम परिपक्वता के लिए शेष अवधि में ऋण चुकता किया जाए, जो अंकित मूल्य से अधिक हो। तथापि इस श्रेणी के बाहर किसी प्रतिभूति का परिपपक्वता के पूर्व कारोबार किया जाता है तो पूरे लाट को कारोबार के लिए प्रतिभूति माना जाएगा और बाजार भाव पर दर्शाया जाएगा विवरण खंड (iii) में निम्नानुसार दिया जा रहा है।

(iii) प्रत्येक श्रेणी में की गई निवेश को शेयर वार माना जाएगा तथा सभी निवेश के लिए कुल लागत और बाजार मूल्य पर विचार किया जाएगा। यदि श्रेणी के लिए बाजार मूल्य, श्रेणी की कुल लागत से कम होती है तो निवल मूल्य ह्रास उपलब्ध कराया जाएगा अथवा लाभ हानि खाता में इसे प्रभारित किया जाएगा। यदि श्रेणी के लिए बाजार मूल्य, श्रेणी की कुल लागत से अधिक होती है तो निवल मूल्य वृद्धि को नज़रांदाज़ किया जाएगा। निवेश की एक श्रेणी के मूल्यह्रास को अन्य श्रेणी के मूल्य वृद्धि से समाप्त नहीं किया जाएगा।

(iv) अन्य सभी निवेशों को इन निदेशों के अनुसार बाजार भाव पर दर्शाया जाएगा।

(के.के.वोहरा)
प्रधान मुख्य महाप्रबंधक


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