भारिबैं/2014-15/512
विसविवि.सं.एफएसडी.बीसी. 52/05.10.001/2014-15
मार्च 25, 2015
अध्यक्ष / प्रबंध निदेशक / मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी अनुसूचित वाणिज्यबैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)
महोदया / महोदय,
प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में बैंकों
द्वारा किये जाने वाले राहत उपायों के लिए दिशानिर्देश
कृपया आप उपर्युक्त विषय पर दिनांक 01 जुलाई 2014 का हमारा मास्टर परिपत्र ग्राआऋवि. सं.एफएसडी.बीसी. 07/ 05.04.02/2014-15 देखें। उपर्युक्त परिपत्र में दिए गए अनुदेशों पर अन्यों के साथ राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन व्यवस्था, राष्ट्रीय फसल बीमा कार्यक्रम और राज्य सरकारों द्वारा प्राकृतिक आपदा की घोषणा करने के संबंध में अपनायी जा रही विभिन्न प्रक्रियाओं को ध्यान में रखते हुए पुनर्विचार किया गया है। नाबार्ड तथा आइबीए के सुझाव भी प्राप्त किए गए हैं।
उपर्युक्त प्राप्त सुझावों के आधार पर बैंकों द्वारा प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में राहत उपायों संबंधी दिशानिर्देशों में संशोधन किया गया है और ये बैंकों द्वारा कार्यान्वित किए जाने हेतु इसके साथ संलग्न हैं।
कृपया पावती दें।
भवदीया
(माधवी शर्मा)
मुख्य महाप्रबंधक
प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में
बैंकों द्वारा राहत उपायों हेतु दिशानिर्देश
हमारे देश में किसी न किसी क्षेत्र में कुछ अन्तरालों पर लेकिन बार-बार होने वाली प्राकृतिक आपदाओं से भारी मात्रा में जान-माल का नुकसान होता है तथा इससे जनमानस को आर्थिक रूप से भारी हानि होती है । इन प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली हानि की पूर्ति के लिए सभी एजेंसियों द्वारा बड़े पैमाने पर पुनर्वास का प्रयास करना जरूरी होता है। प्रभावित लोगों के आर्थिक पुनर्वसन के लिए केंद्रीय, राज्य और स्थानीय प्राधिकरण कार्यक्रम तैयार करते हैं। वाणिज्य बैंकों और सहकारी बैंकों को सौंपी गई विकासात्मक भूमिका को देखते हुए उनके सक्रिय समर्थन की आवश्यकता है ताकि आर्थिक क्रियाकलापों को फिर से शुरू किया जा सके।
2. आपदा प्रभावित क्षेत्रों में राहत उपलब्ध कराने हेतु दो राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन फ्रेमवर्क के अनुसार निधियां गठित की गई हैं अर्थात् राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया निधि और राज्य आपदा प्रतिक्रिया निधि। इस फ्रेमवर्क द्वारा वर्तमान में 12 प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं को मान्यता प्रदान की गई है, यथा चक्रवात, सूखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओला-वृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, कीट-आक्रमण और शीत लहर/ तुषारापात या पाला पड़ना (अगस्त 2012 में जोड़ा गया)। इन 12 आपदाओं में से 4 आपदाओं अर्थात् कीट-आक्रमण, ओला-वृष्टि, सूखा, शीत लहर/तुषारापात या पाला पड़ना के संबंध में कृषि मंत्रालय नोडल मंत्रालय है तथा शेष 8 आपदाओं के लिए गृह मंत्रालय से अपेक्षित है कि वे यथोचित व्यवस्थाएं करें। सार्वभौमिक सरकार (केंद्र/ राज्य सरकार) राहत संबंधी कई सारे उपाय करती है ताकि प्रभावित व्यक्तियों को राहत उपलब्ध हो सके, जिनमें अन्य बातों के साथ साथ इनपुट सब्सिडी के लिए प्रावधान और सीमांत, लघु और अन्य कृषकों को वित्तीय सहायता शामिल है।
3. राहत उपलब्ध कराने में ऋणकर्ताओं की आवश्यकताओं के आविर्भाव के अनुसार बैंक वर्तमान ऋणों का पुनर्निर्धारण करते हुए और नये ऋण मंजूर करते हुए योगदान देते हैं। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए बैंकों में कुछ संस्थागत व्यवस्था का होना आवश्यक है और वे अपने दंडात्मक प्रभार कम करने/छोड़ देने, आदि जैसे कुछ अन्य उपायों से सुविधा प्रदान कर सकते हैं। वाणिज्य बैंकों द्वारा ऋण सहायता के प्रावधान संबंधी सुस्पष्ट ब्यौरे स्थिति के अनुसार आवश्यकताओं, उनकी अपनी परिचालनगत क्षमताओं तथा उधारकर्ताओं की वास्तविक जरूरतों पर निर्भर करेंगे।
4. तथापि, बैंकों को एकसमान तथा सम्मिलित कार्रवाई तेजी से करने में सक्षम बनाने के लिए तेजी से ऊपर उल्लिखित चार पहलू अर्थात संस्थागत व्यवस्था (पैरा 5), वर्तमान ऋणों की पुनर्संरचना (पैरा 6), नए ऋण उपलब्ध कराना (पैरा 7) और अन्य अनुषंगी राहत उपाय (पैरा 8) शामिल करते हुए ये दिशानिर्देश जारी किए जा रहे हैं।
5. संस्थागत व्यवस्था
प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए नीति/क्रियाविधि का निरुपण
5.1 चूंकि प्राकृतिक आपदाओं का समय और स्थान तथा गंभीरता अप्रत्याशित होती है, अतः यह अत्यावश्यक है कि बैंकों के पास ऐसी घटनाओं के बाद की जानेवाली कार्रवाई के संबंध में निदेशक बोर्डों द्वारा विधिवत अनुमोदित योजनाएँ (ब्लू प्रिंट) होनी चाहिए ताकि अपेक्षित राहत और सहायता बहुत ही तेज़ी से एवं अविलंब उपलब्ध कराई जा सके। इसकी पूर्वापेक्षा है कि वाणिज्य बैंकों की सभी शाखाओं और उनके क्षेत्रीय तथा आंचलिक कार्यालयों में स्थायी दिशानिर्देश हों ताकि आपदा प्रभावित इलाकों में जिला/राज्य प्राधिकारियों द्वारा अपेक्षित घोषणा होने के तत्काल बाद कार्रवाई प्रारम्भ की जा सके। यह आवश्यक है कि ये अनुदेश राज्य सरकारी प्राधिकारियों तथा सभी जिलाधिकारीयों के पास भी उपलब्ध हों ताकि सभी संबंधितों को पता हो कि प्रभावित क्षेत्रों में बैंक की शाखाओं द्वारा क्या कार्रवाई की जाएगी।
बैंकों के मंडल / आंचलिक प्रबंधकों को विवेकाधिकार
5.2 वाणिज्य बैंकों के मंडल प्रबंधकों / अंचल प्रबंधकों को कतिपय विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान की जानी चाहिए ताकि जिला /राज्य स्तरीय बैंकर समितियों द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार कार्रवाई करने के लिए उन्हें अपने केंद्रीय कार्यालयों से नए अनुमोदन लेने की आवश्यकता न हो। उदाहरण के लिए, वित्त के स्तरों, ऋण अवधि विस्तार, उधारकर्ता की कुल देयता (पुराने ऋणों जहाँ वित्तपोषित आस्तियाँ प्राकृतिक आपदा के कारण क्षतिग्रस्त/नष्ट हो गई हो, साथ ही ऐसी आस्तियों के सृजन/की मरम्मत के लिए नए ऋणों के कारण) के मद्देनजर नए ऋणों की स्वीकृति मार्जिन, जमानत इत्यादि के लिए ऐसी विवेकाधीन शक्तियों की जरूरत होगी।
राज्य स्तरीय बैंकर समिति/जिला परामर्शदात्री समिति की बैठकें
5.3 संपूर्ण राज्य / राज्य का बड़ा भाग आपदा की चपेट में आने पर राज्य स्तरीय बैंकर समिति के संयोजक को प्राकृतिक आपदा के तुरन्त बाद राहत उपाय के कार्यान्वयन के लिए राज्य सरकार के प्राधिकारियों के सहयोग से समन्वित कार्रवाई योजना तैयार करने के लिए एक बैठक आयोजित करनी होगी। तथापि, यदि आपदा से राज्य का केवल थोड़ा सा भाग/ कुछ ही जिले प्रभावित हुए हों तो प्रभावित जिलों की जिला परामर्शदात्री समितियों के संयोजकों को तुरन्त एक बैठक आयोजित करनी चाहिए। राज्य स्तरीय बैंकर समिति/ जिला परामर्शदात्री समितियों की ऐसी विशेष बैठकों में प्रभावित क्षेत्रों का मूल्यांकन किया जाए ताकि बैंकों द्वारा अविलम्ब राहत उपाय की रूपरेखा तैयार की जा सके और उसका उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सके।
5.4 जब आपदा काफी गंभीर हो तब आरंभ किए गए राहत उपायों की आवधिक समीक्षा विशेष रूप से गठित कार्य-दलों अथवा राज्य स्तरीय बैंकर समिति की उप समितियों की साप्ताहिक/पाक्षिक बैठकों में तब तक की जाती रहे जब तक कि हालात सामान्य न हो जाएँ।
राष्ट्रीय आपदा की घोषणा
5.5.यह मानी हुई बात है कि प्राकृतिक आपदाओं की घोषणा करना सार्वभौमिक सरकार (केन्द्र /राज्य सरकारों) के डोमेन में आता है। राज्य सरकारों से प्राप्त इनपुट से पता चलता है कि राष्ट्रीय आपदा घोषित करने और घोषणाएं/ प्रमाणपत्र जारी करने के संबंध में कोई एकसमान क्रियाविधि प्रचलन में नहीं है। इन घोषणाओं/ प्रमाणपत्रों के नाम भिन्न-भिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न हैं अर्थात अन्नेवारी, पैसेवारी, गिर्दावारी, आदि। इसके बावजूद राहत उपाय देने के संबंध में एक सामान्य सूत्र यह बना है कि मूल्यांकित फसल हानि 50 प्रतिशत या अधिक होनी चाहिए। इस हानि का मूल्यांकन करने के लिए जहां कुछ राज्य फसल उपज में हानि निर्धारित करने के लिए फसल कटाई प्रयोग संचालित करते हैं वहीं अन्य राज्य आंखों देखें अनुमान/देखी गई स्थिति का सहारा लेते हैं।
सूखेकी स्थिति और अन्य आपदाओं में अंतर
5.6 जहां तक सूखे की स्थिति का प्रश्न है, कुछेक राज्य कृषि मंत्रालय द्वारा जारी ‘सूखे की स्थिति के प्रबंधन संबंधी मैनुअल’ में सुझाए गए अन्य मानंदंडों के साथ-साथ वर्षावृष्टि, फसल बुवाई क्षेत्र, वेजीटेशन इंडेक्स, नमी पर्याप्तता के डाटापर आधारित उन्नत पद्धति को अपनाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में यह उचित समभ्मा है कि (i) सूखे की स्थिति जो कि सामान्यव या धीरे-धीरे आने वाली आपदा है, और सम्पूर्ण अवधि के दौरान वर्षा की स्थिति के अनुसार गंभीर रूप ले सकती है या ठीक भी हो सकती है, और (ii) अन्य आपदाओं, जो कि भौतिक दृष्टि से सूखे से अलग है और अचानक आती हैं – इन दोनों में अंतर किया जाए।
चूंकि सूखे के हालात का आकलन करने के लिए ऊपर बताई गई वैज्ञानिक प्रौद्योगिक और विभिन्न पैरामीटरों/इन्डेक्सों को राज्य सरकारों द्वारा अपनाए जाने के बारे में `सूखा प्रबंधन मैनुअल’ में कुछ दिशानिर्देश दिए गए हैं (यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि ये दिशानिर्देश आनिवार्य नहीं है); राज्य सरकारे चाहें तो:-
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सूखे की स्थिति प्रबंधन संबंधी मैनुअल में निर्दिष्ट क्रियाविधियों को अपनाऍं और उसमें निर्दिष्ट विभिन्न मानदंडों / सूचकांकों के आधार पर सूखे की स्थिति घोषित करने का निर्णय करें। इस प्रकार की घोषणा में स्पष्टत: ऐसे डाटा/ क्रियाविधि का उल्लेख होना चाहिए जिन पर राज्य सरकार निर्भर रही हो/ जिनका अनुसरण किया हो और फसल को हुई हानि की आकलित सीमा का भी उल्लेख हो।
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राष्ट्रीय कृषि बीमा कार्यक्रम में निर्धारित प्रकार से फसल कटाई प्रयोग, जो फसल को बीमा के लिए पात्र घोषित करने की पूर्व-शर्तों में से एक है, को करें और जारी किए जानेवाले प्रमाणपत्र में फसल वार प्रतिशत का उल्लेख करते हुए अन्नेवारी (जो भी नाम दिया गया हो) घोषित करें। वैसे भी, राज्य सरकारों को यदि वे राहत कार्य के लिए कोई निधि चाहते हों तो उन्हें फसल हानि संबंधी तालुका/ ब्लाक/ जिला वार डाटा केंद्र सरकार को प्रस्तुत करने पडते है।
अन्य आपदाएं: फसल कटाई प्रयोग के माध्यम से हानि का निर्धारण किया जाना चाहिए एवं स्पष्टत: इस बात का उल्लेख हो कि इन विशिष्ट क्षेत्र/तालुका/मंडल/ब्लॉक (यथास्थिति) में फसल हानि 50 प्रतिशत या अधिक है ताकि बैंकों से लिए गए ऋणों को पुनर्निधारित किया जा सके। घोर आपदा की स्थिति, जैसे व्यापक स्तर पर बाढ आदि, जहां अधिकांशत: यह स्पष्ट हो कि अधिकतर खड़ी फसल नष्ट गई है और/या भूमि एवं अन्य संपदा को व्यापक क्षति पहुंची है, ऐसे मामलों पर एसएलबीसी/डीसीसी की आयोजित विशेष बैंठकों में राज्य सरकार/जिलाप्राधिकारियों द्वारा चर्चा की जानी चाहिए जिन में संबंधित सरकारी पदाधिकारी/जिलाधिकारी फसल कटाई प्रयोग के माध्यम से ‘अन्नेवारी’ (फसल हानि का प्रतिशत, चाहे नाम कुछ भी दिया जाए) का अनुमान न लगाने के कारण स्पष्ट करेंगे और प्रभावित जनता को राहत उपलब्ध कराने का निर्णय आंखों देखें अनुमान/देखी गई स्थिति के आधार पर करने की आवश्यकता का प्रस्ताव देंगे।
तथापि, दोनों ही मामलों में डीसीसी/एसएलबीसी को इन घोषणाओं पर सक्रिय कार्रवाई करने से पूर्व स्वयं को इस बात से आश्वस्त कर लेना चाहिए कि फसल हानि 50 प्रतिशत या अधिक हुई है।
6 वर्तमान ऋणों का पुनर्निर्धारण
6.1 चूंकि आर्थिक व्यवसाय की क्षति और आर्थिक आस्तियों की हानि के कारण प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों की चुकौती क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो जाती है, अतः प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में यह आवश्यक हो जाता है कि ऋणों की चुकौती में राहत दी जाए और इस कारण वर्तमान ऋणों का पुनर्निर्धारण करना जरूरी होगा।
कृषि ऋण
अल्पावधि उत्पादन ऋण (फसल ऋण)
6.2 प्राकृतिक आपदा होने के समय जो ऋण अतिदेय थे, उनको छोड़कर सभी अल्पावधि ऋण पुनर्निर्धारण के पात्र होंगे। प्राकृतिक आपदाकी घटना वाले वर्ष में अल्पावधि ऋण का देय मूल धन और ब्याज की किस्तों को भी सावधि ऋण में परिवर्तित किया जा सकता है।
6.3 आपदा की गंभीरता और उसकी पुनरावृत्ति, आर्थिक आस्तियों की हानि और विपत्ति की गंभीरता के आधार पर पुनर्निर्धारण ऋणों की चुकौती अवधि अलग-अलग हो सकती है। सामान्यतया, चुकौती के लिए पुनर्निर्धारण अवधि 3 से 5 वर्षों की हो सकती है। तथापि, आपदा से अत्यधिक गंभीर स्वरूप की क्षति के मामलों में बैंक अपने विवेक के आधार पर चुकौती की अवधि को 7 वर्षों तक बढ़ा सकते हैं और घोर आपदा की स्थिति में टास्क फोर्स/ एसएलबीसी के परामर्श से चुकौती की अवधि को अधिकतम 10 वर्ष तक आगे ले जा सकते हैं।
6.4 पुनर्निर्धारण के सभी मामलों में अधिस्थगन अवधि कम से कम एक वर्ष होनी चाहिए। साथ ही, बैंकों को ऐसे पुनर्निर्धारित ऋणों पर अतिरिक्त संपार्श्विक जमानत की मांग नहीं करनी चाहिए।
कृषि ऋण-दीर्घावधि (निवेश) ऋण
6.5 वर्तमान सावधि ऋण की किस्तों को उधारकर्ताओं की चुकौती क्षमता और प्राकृतिक आपदा के निम्नलिखित स्वरूप को ध्यान में रखकर पुनर्निर्धारण करना होगा अर्थात्
क) ऐसी प्राकृतिक आपदाएं जिनके कारण केवल उस वर्ष की फसल को ही क्षति पहुंची हो और उत्पादक आस्तियों को क्षति नहीं पहुंची हो।
ख) ऐसी प्राकृतिक आपदाएं जिनसे उत्पादक आस्तियों को आंशिक रूप से अथवा पूर्णतया क्षति पहुंची हो और उधारकर्ताओं को नये ऋण की जरूरत हो।
6.6 उपर्युक्त श्रेणी (क) में बताई गई प्राकृतिक आपदा के संबंध में बैंक प्राकृतिक आपदा के वर्ष के दौरान किस्त के भुगतान का पुनर्निर्धारण कर सकते है और ऋण अवधि को एक वर्ष बढ़ा सकते है। इस व्यवस्था के अंतर्गत पूर्ववर्ती वर्षों में जानबूझकर नहीं चुकाई गई किस्तें पुनर्निर्धारण की पात्र नहीं होंगी। उधारकर्ताओं द्वारा ब्याज भुगतान को भी बैंक आस्थगित कर सकते हैं।
6.7 श्रेणी (ख) अर्थात जहां उधारकर्ताओं की आस्तियों को अंशत:/पूर्णत: क्षति पहुंची हो वहां ऋण अवधि बढ़ाते हुए पुनर्निर्धारण करने का निर्णय उधारकर्ता की समग्र चुकौती क्षमता की तुलना में उसकी कुल देयता (पुराने सावधि ऋण, यदि कोई हो, पुनर्निर्धारित फसल ऋण और दिया जा रहा नया ऋण/सावधि ऋण) में से सरकारी एजेंसियों से प्राप्त सब्सिडी, बीमा योजनाओं आदि के अंतर्गत उपलब्ध क्षतिपूर्ति को घटाते हुए किया जा सकता है। जहां पुनर्निर्धारण नये ऋण की कुल चुकौती अवधि मामला-दर-मामला आधार पर अलग-अलग होगी, लेकिन सामान्यतया यह 10 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।
अन्य ऋण
6.8 एसएलबीसी/डीसीसी द्वारा आपदा की गंभीरता के आधार पर अन्य सभी ऋणों (अर्थात ऊपर उल्लिखित कृषि ऋणोंके अलावा) जैसे कृषि से सम्बद्ध कार्यकलापों के लिए दिए जाने वाले और ग्रामीण कारीगरों, व्यापारियों, माइक्रो/लघु औद्योगिक यूनिटों अथवा अत्यधिक गंभीर स्थितियों में मध्यम उद्यमों को दिए जानेवाले ऋण के मामलों में सामान्य पुनर्निर्धारण जरूरी है अथवा नहीं इसके बारे में निर्णय किए जाने की आवश्यकता है। यदि ऐसा निर्णय किया जाता है तो जहां सभी ऋणों की वसूली विनिर्दिष्ट अवधि के लिए स्थगित की जानी चाहिए वहीं बैंकों को ऐसे प्रत्येक मामले में अलग-अलग उधारकर्ता की आवश्यकता का निर्धारण करना होगा और उसके खाते के स्वरूप, चुकौती क्षमता और नये ऋणों की आवश्यकता के आधार पर संबंधित बैंक द्वारा यथोचित निर्णय लिया जाना चाहिए।
6.9 किसी यूनिट के पुनर्वास हेतु ऋण देते समय बैंकों के समक्ष मुख्य रूप से विचारणीय बात यह होगी कि पुनर्वास कार्यक्रम को कार्यान्वित करने के बाद उद्यम की ऋण चुकाने की सक्षमता कितनी रहेगी।
आस्ति वर्गीकरण
6.10 इन ऋणों की आस्ति वर्गीकरण स्थिति निम्नानुसार होगी:
क) अल्पावधि ऋणों तथा दीर्घावधि ऋणों के पुनर्निर्धारित अंश को चालू देय राशियां माना जाए तथा उन्हें अनर्जक आस्तियों के रूप में वर्गीकृत करने की आवश्यकता नहीं है। उसके बाद इन नए सावधि ऋणों के आस्ति वर्गीकरण संशोधित शर्तों से नियंत्रित होंगे। इस पर भी,बैंकों से अपेक्षित है कि वे ऐसे पुनर्निर्धारित मानक अग्रिमों के लिए बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा समय-समय पर निर्धारित रूप में उच्चतर प्रावधान कर लें।
ख) पुनर्निर्धारित शेष देय राशि के आस्ति वर्गीकरण पर मूल शर्तें यथावत लागू रहेंगी। इसके फलस्वरूप, उधारदाता बैंक द्वारा उधारकर्ता से प्राप्त राशि को विभिन्न आस्ति वर्गीकरण श्रेणियों जैसे “मानक, अवमानक, संदिग्ध, हानि” के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाएगा।
ग) यदि कोई अतिरिक्त वित्त हो तो उन्हें "मानक आस्तियां" के रूप में माना जाएगा और भविष्य में उनके आस्ति वर्गीकरण पर वही शर्तें और नियम लागू होंगे, जो स्वीकृति के समय निर्धारित की गई थीं।
6.11 यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कि प्रभावित व्यक्तियों को राहत प्रदान करने में बैंक समुचित रूप से सक्रिय हैं, प्राकृतिक आपदा के दिन को पुनर्निर्धारित खातों के आस्ति वर्गीकरण का लाभ केवल तभी उपलब्ध हो सकेगा यदि प्राकृतिक आपदा की तारीख से तीन महीनों की अवधि के भीतर पुनर्निर्धारित का कार्य पूरा किया गया हो। घोर प्राकृतिक आपदा की स्थिति में जब एसएलबीसी/डीसीसी के विचार में बैंकिंग क्षेत्र के लिए सभी ऋणों को पुनर्निर्धारित करने के लिए उक्त अवधि पर्याप्त प्रतीत न होती हो तब उन्हें इस अवधि को बढ़ाये जाने के कारण बताते हुए रिज़र्व बैंक (संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय) से तत्काल संपर्क करना चाहिए, इस पर प्रत्येक मामले के गुणदोषों के आधार पर विचार किया जाएगा।
6.12 वे खाते, जिनका प्राकृतिक आपदाओं के कारण पुनर्निर्धारण दूसरी बार या उससे अधिक बार हुआ हों, पुनर्संरचना के बाद उसी आस्ति वर्गीकरण संवर्ग में बने रहेंगे। तदनुसार, एक बार पुनर्निर्धारित मानक आस्ति को प्राकृतिक आपदा के कारण बाद में पुनर्निर्धारित किए जाने की आवश्यकता होने पर उसे दूसरा पुनर्निर्धारित का मामला नहीं माना जाएगा अर्थात मानक आस्ति वर्गीकरण को बनाए रखने की अनुमति दी जाएगी। तथापि, पुनर्निर्धारण संबंधी अन्य सभी मानदंड लागू होंगे।
बीमे से प्राप्त रकम को उपयोग में लाना
6.13 यद्यपि ऋणों के चुकौती आदि से संबंधित उपर्युक्त उपाय किसानों को राहत पहुंचाने के उद्देश्य से हैं, वहीं सिद्धांतत: बीमे की से द्वारा उनकी हानियों की क्षतिपूर्ति की जानी चाहिए। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आदेशों के अनुसार वर्ष 2013 के रबी मौसम से राष्ट्रीय फसल बीमा कार्यक्रम (एनसीआइपी) देशभर में कार्यान्वित किया जा रहा है। ऋणी किसानों को अनिवार्यत: राज्य सरकारों द्वारा अधिसूचित प्रकार से एनसीआइपी-घटक योजना के अंतर्गत कवर किया जाता है। प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों में ऋणों का पुनर्निर्धारण करते समय बैंकों को यदि बीमा कंपनी से कोई राशि प्राप्य हो तो बीमा की आय को भी हिसाब में लेना चाहिए। उन्हें इस आय को `पुनर्निर्धारित खातों’ में समायोजित कर लेना चाहिए। तथापि, ऐसा उन मामलों में किया जाना चाहिए जहां उधारकर्ताओं को नए प्रदान किए गए हो।
7. नए ऋण मंजूर करना
7.1 एक बार एसएलबीसी/डीसीसी द्वारा ऋणों के पुनर्निर्धारण करने का निर्णय ले लिए जाने पर अल्पावधि ऋणों के ऐसे परिवर्तन किए जाने तक, बैंक, प्रभावित किसानों को नया फसल ऋण दे सकते हैं जो वर्तमान दिशानिर्देशों के अनुसार उस विशिष्ट फसल हेतु वित्त के स्तर और कृषि–जोत पर आधारित होगा।
7.2 कृषि और संबद्ध गतिविधियों ( पॉल्ट्री, मत्स्यपालन, पशुपालन, आदि) के संबंध में विभिन्न प्रकार के प्रयोजनों, जैसे वर्तमान आर्थिक आस्तियों की मरम्मत अथवा नयी आस्तियों क्रय करने, के लिए दीर्घावधि ऋणों हेतु भी बैंक सहायता जरूरी होगी। इसी प्रकार, प्राकृतिक आपदा से प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीण दस्तकारों, स्वरोजगार में लगे व्यक्तियों, माइक्रो और लघु औद्योगिक यूनिटों आदि को अपनी आजीविका को बनाए रखने के लिए क्रेडिट की आवश्यकता पड़ सकती है। बैंक स्वयं ही अन्य बातों के साथ-साथ, प्रभावित उधारकर्ताओं की ऋण आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए दिए जाने वाले नए ऋण का आकलन कर ऋण की मात्रा निर्धारित कर सकते हैं और ऋण मंजूर करने के लिए यथोचित क्रियाविधि का पालन कर सकते हैं।
7.3 बैंक वर्तमान उधारकर्ताओं को बिना किसी संपार्श्विक जमानत के 10,000 रुपए तक के खपत ऋण भी मंजूर कर सकते हैं। तथापि, उक्त सीमा को बैंक के विवेक पर 10,000/-रुपए से अधिक भी किया जा सकता है।
शर्तें एवं निबंधन
गारंटी, जमानत और मार्जिन
7.4 व्यक्तिगत गारंटी न होने के कारण से ऋण देने से मना नहीं किया जाना चाहिए। यदि बाढ़ से हुई क्षति अथवा विनाश के कारण बैंक की मौजूदा जमानत कम हो गई हो तो केवल अतिरिक्त नई जमानत न होने के कारण से सहायता के लिए मना नहीं किया जाएगा। जमानत (मौजूदा तथा नए ऋण से प्राप्त की जानेवाली आस्ति) का मूल्य ऋण की राशि से कम होने पर भी नया ऋण प्रदान किया जाना चाहिए। नए ऋणों के लिए सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाया जाना चाहिए।
7.5 यदि व्यक्तिगत जमानत/ फसल को दृष्टिबंधक रख कर फसल ऋण (जिसे सावधि ऋण में परिवर्तित किया गया है) पहले दिया गया हो, तथा उधारकर्ता परिवर्तित ऋण के लिए जमानत के रूप में भूमि का अधिकार (चार्ज)/ बंधक प्रस्तुत करने में असमर्थ हो तो केवल भूमि को जमानत के रूप में प्रस्तुत न कर पाने की उसकी असमर्थता के आधार पर उन्हें परिवर्तन सुविधा से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए। यदि उधारकर्ता भूमि के बंधक/ अधिकार (चार्ज) की जमानत पर पहले ही एक सावधि ऋण ले चुका है, तो बैंक को परिवर्तित सावधि ऋण के लिए द्वितीय चार्ज से संतुष्ट हो जाना चाहिए। परिवर्तन सुविधाएँ प्रदान करने हेतु बैंक तृतीय पक्ष की गारंटियों पर जोर न दें।
7.6 यदि भूमि जमानत के रूप में रखी गई हो, तो मूल-टाइटल रिकार्ड नहीं होने पर उन किसानों, जिनके विलेख तथा ऐसे पंजीकृत बंटाईदार जिनको जारी पंजीयन प्रमाणपत्रों के रूप में टाइटल, के सबूत गुम हो गए हों, को वित्तपोषण करने हेतु राजस्व विभाग के प्राधिकारियों द्वारा जारी प्रमाणपत्र स्वीकार किये जा सकते हैं ।
7.7 मार्जिन आवश्यकताओं में छूट दी जाए या फिर संबंधित राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त अनुदान/सब्सिडी को मार्जिन समझा जाये ।
ब्याज दर
7.8 ब्याज की दरें भारतीय रिज़र्व बैंक के निदेशों के अनुसार होंगी। तथापि, बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि उधारकर्ताओं की कठिनाइयों पर वे अपने विवेकाधीन दायरे में उदारता का रूख अपनाएं तथा आपदा से प्रभावित लोगों केसाथ सहानुभूतिपूर्वक पेश आएँ। चूकवाली वर्तमान बकाया राशि के संबंध में दण्डात्मक ब्याज नहीं लगाया जाये। बैंकों को चाहिए कि ब्याज प्रभारों के चक्रवृद्धि आकलन के समुचित रूप से स्थगित करें। बैंक कोई दण्डात्मक ब्याज न लगाएं तथा परिवर्तित/पुनर्निर्धारित ऋणों के संबंध में यदि कोई दण्डात्मक ब्याज लगाया जा चुका हो तो उसमें छूट देने पर विचार करें। प्राकृतिक आपदा के स्वरूप एवं गंभीरता के आधार पर एसएलबीसी/ डीसीसी को उधारकर्ता को दी जा सकने वाली ब्याज दर रियायत पर विचार करना चाहिए ताकि बैंकों के बीच राहत प्रदान करने के दृष्टिकोण के बारे में बैंकों के बीच में एकरूपता हो।
8. अन्य अनुषंगी राहत उपाय
बैंक वर्तमान ऋणों को पुनर्निर्धारित करने और प्रभावित व्यक्तियों को नए ऋण प्रदान करने के अलावा निम्नलिखित दिशानिर्देशों का भी पालन करें।
अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी) मानदंड - रियायत
8.1 यह मानना होगा कि बडी आपदा में विस्थापित अथवा प्रतिकूल रूप से प्रभावित अधिकांश व्यक्तियों को अपने सामान्य पहचान संबंधी तथा व्यक्तिगत रिकार्ड मिल नहीं पाते हैं। ऐसे मामलों में जहां प्रभावित व्यक्ति पहचान संबंधी विनियमों के तहत मानक दस्तावेज देने में असमर्थ रहते हैं, तथा इसके परिणाम स्वरूप बैंक शाखाओं के लिए यथा निर्धारित केवाईसी दिशानिर्देशों का पालन करना संभव नहीं हो पाता है, वहां वे गैर-प्रलेखी सत्यापन पद्धति अपना सकते हैं। वे फोटो एवं बैंक अधिकारियों के समक्ष हस्ताक्षर अथवा अंगूठे के निशान के आधार पर छोटा खाता खुलवा सकते हैं। उपर्युक्त अनुदेश उन मामलों पर लागू होंगे जहां एक वर्ष के दौरान खाते में शेष 50,000/- रुपए से अधिक न हो अथवा प्रदान की गई राहत की राशि (यदि अधिक हो) और खाते में कुल जमा 1,00,000/- रुपए अथवा एक वर्ष के दौरान प्रदत्त राहत राशि (यदि अधिक हो) से अधिक न हो ।
बैंक खातों तक पहुँच
8.2 ऐसे क्षेत्र जहां बैंक शाखाएँ प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हुई हैं तथा सामान्य रूप से कार्य नहीं कर पा रही हैं वहां बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक को सूचित करते हुए अस्थायी परिसर से परिचालन कर सकते हैं । अस्थायी परिसर में 30 दिन से अधिक समय बने रहने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय (आर. ओ.) से विशेष अनुमति प्राप्त की जाए। बैंकों को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि अनुषंगी कार्यालय, विस्तार काउंटर गठित करके या मोबाइल बैंकिंग सुविधाओं द्वारा प्रभावित क्षेत्रों को बैंकिंग सेवाएं प्रदान की जाएं तथा उसकी सूचना भारतीय रिज़र्व बैंक को भी दी जाए।
8.3 ग्राहकों की तत्काल नकदी आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु एटीएम के कार्य को फिर से शीघ्र चालू करने या ऐसी सुविधाएं उपलब्ध करवाने हेतु अन्य व्यवस्था बनाने को उचित महत्व दिया जाए। बैंक अपने ग्राहकों को अन्य एटीएम नेटवर्क, मोबाइल एटीएम, आदि तक पहुँच की अनुमति देनेवाली व्यवस्था स्थापित करने पर विचार कर सकते हैं।
8.4 बैंकों द्वारा प्रभावित व्यक्तियों से हालात सुधारने के लिए अपने विवेकानुसार किए जाने वाले अन्य उपाय हो सकते हैं - एटीएम शुल्क की माफी देना, एटीएम आहरण सीमा बढ़ाना, ओवरड्राफ्ट शुल्क की माफी देना, सावधि जमाराशियों पर अवधिपूर्व आहरण संबंधी दंड से छूट देना, क्रेडिट कार्ड / अन्य ऋण किस्तों के भुगतान के लिए विलंब शुल्क की माफी देना और क्रेडिट कार्ड धारियों को अपनी बकाया शेष राशि को 1 अथवा 2 वर्षों में भुगतान योग्य ईएमआई में परिवर्तित करने का विकल्प देना। इसके अतिरिक्त, किसान को हुई कठिनाई को देखते हुए सामान्य ब्याज को छोड़कर किसान ऋण खाते में नामे डाले गए सभी प्रभारों की माफी दी जा सकती है।
9. दंगे और गड़बड़ी के मामलों में दिशानिर्देशों की प्रयोज्यता
9.1 भारतीय रिज़र्व बैंक जब भी बैंकों को दंगे / गड़बड़ी से प्रभावित लोगों को पुनर्वास सहायता प्रदान करने के लिए कहे तब इस प्रयोजनार्थ बैंकों द्वारा उक्त दिशानिर्देशों का व्यापक रूप से पालन किया जाए। तथापि, यह सुनिश्चित किया जाए कि केवल सही व्यक्ति, जो कि राज्य प्रशासन द्वारा यथोचित रूप से दंगे/ गड़बड़ी से प्रभावित व्यक्तियों के रूप में पहचाने गये हो, को ही दिशा-निर्देशों के अनुसार सहायता उपलब्ध करवायी जाती है ।
9.2 राज्य सरकार से अनुरोध / सूचना प्राप्त होने पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकों को सूचना जारी करने के बाद बैंकों द्वारा उनकी शाखाओं को अनुदेश जारी किए जाते हैं। इस कारण दंगों से प्रभावित लोगों को सहायता प्रदान करने में सामान्यतः विलंब हो जाता है। प्रभावित लोगों को तत्काल सहायता सुनिश्चित करने के लिए यह निर्णय लिया गया है कि दंगे / गड़बड़ी होने पर जिलाधिकारी अग्रणी बैंक अधिकारी को जिला परामर्शदात्री समिति की बैठक, यदि आवश्यक हो, बुलाने के लिए तथा दंगों /गड़बड़ी से प्रभावित क्षेत्रों में जान-माल की हानि पर एक रिपोर्ट जिला परामर्शदात्री समिति को प्रस्तुत करने हेतु कह सकता है। यदि जिला परामर्शदात्री समिति संतुष्ट है कि दंगे / गड़बड़ी के कारण जान-माल की व्यापक हानि हुई है, तो दंगे / गड़बड़ी से प्रभावित लोगों को उपर्युक्त दिशानिर्देशों के अनुसार राहत प्रदान की जाए। कुछ मामलों में, जहाँ जिला परामर्शदात्री समितियाँ नहीं है, जिलाधिकारी राज्य के राज्य स्तरीय बैंकर समिति के संयोजक को प्रभावित लोगों को राहत प्रदान करने हेतु विचार करने के लिए बैंकरों की एक बैठक बुलाने के लिए अनुरोध कर सकता है। जिलाधिकारी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट तथा उस पर जिला परामर्शदात्री/ राज्य स्तरीय बैंकर समिति द्वारा लिये गये निर्णयों को रिकार्ड किया जाए और उसे बैठक के कार्य-विवरण में शामिल किया जाए। बैठक की कार्रवाई की एक प्रति भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को प्रेषित की जाए। |