भारिबैंक/2015-16/384
ए.पी.(डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं.64/2015-16 [(1)/13(आर)]
28 अप्रैल 2016
सभी श्रेणी–I प्राधिकृत व्यापारी और प्राधिकृत बैंक
महोदया/महोदय,
विदेशी मुद्रा प्रबंध (परिसंपत्तियों का विप्रेषण) विनियमावली, 2016
प्राधिकृत व्यापारियों का ध्यान 16 मई 2000 के (ए) ए.डी (एम.ए सीरीज़) परिपत्र सं 11 की ओर आकृष्ट किया जाता है, जिसके अनुसार प्राधिकृत व्यापारियों को विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (जिसे इसके बाद अधिनियम कहा गया है) के अंतर्गत जारी विभिन्न नियमों, विनियमों, अधिसूचनाओं/ निदेशों तथा (बी) परिसंपत्तियों के विप्रेषण संबंधी मास्टर निदेश सं 13 के पैरा 2.3 और 3.2 के बारे में जानकारी दी गयी थी। समीक्षा करने पर यह आवश्यक समझा जा रहा है कि समय-समय पर यथा संशोधित विदेशी मुद्रा प्रबंध (परिसंपत्तियों का विप्रेषण) विनियमावली, 2000 के अंतर्गत जारी विनियमों को संशोधित किया जाए। तदनुसार, भारत सरकार के परामर्श से ऊपर उल्लिखित विनियमावली को विदेशी मुद्रा प्रबंध (परिसंपत्तियों का विप्रेषण) विनियमावली, 2016 (1 अप्रैल 2016 की अधिसूचना सं.फेमा.13(आर) 2016-आरबी) जिसे इसके पश्चात परिसंपत्तियों का विप्रेषण विनियमावली कहा गया है द्वारा निरसन और अधिक्रमित किया जाए।
2. विनियमों की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नानुसार हैं:-
ए) ‘अनिवासी भारतीय (NRI)’ अर्थात वह व्यक्ति, जो भारत के बाहर निवास करता है तथा भारतीय नागरिक है।
बी) “भारतीय मूल का व्यक्ति (PIO)” अर्थात वह व्यक्ति, जो भारत के बाहर निवास करता है तथा बांगलादेश या पाकिस्तान अथवा केन्द्र सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट किसी देश को छोड़कर किसी अन्य देश का नागरिक है और वह निम्नलिखित शर्तों को पूरा करता है :
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जो भारत के संविधान या नागरिकता अधिनियम, 1955 (1955 का 57) के अनुसार भारत का नागरिक है; अथवा
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जो उस प्रांत अथवा क्षेत्र से ताल्लुक रखता हो, जो 15 अगस्त 1947 के बाद भारत का हिस्सा बना हो; अथवा
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जो भारतीय नागरिक अथवा खंड (ए) या (बी) में उल्लिखित व्यक्ति की संतान अथवा पोता/ पोती अथवा पड़पोता/ पड़पोती हो; अथवा
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जो भारतीय नागरिक का विदेशी मूल का पति/ की पत्नी है, या खंड (ए) अथवा (बी) अथवा (सी) में उल्लिखित व्यक्ति का विदेशी मूल का पति/ की पत्नी हो;
स्पष्टीकरण: भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO) में नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 7 (ए) के अर्थ में ‘भारत की समुद्रपारीय नागरिकता (OCI) संबंधी कार्डधारक शामिल है।
सी) ‘परिसंपत्तियों का विप्रेषण’ अर्थात भारत से बाहर ऐसी निधियों का विप्रेषण, जो किसी बैंक अथवा किसी फर्म अथवा किसी कंपनी में जमा धनराशि, भविष्य निधि शेष अथवा अधिवर्षिता लाभ, दावे अथवा बीमा पॉलिसी की परिपक्वता राशि, शेयरों, प्रतिभूतियों, अचल सम्पत्ति की बिक्रीगत राशि अथवा अधिनियम के उपबंधों अथवा उसके अंतर्गत निर्मित नियमों अथवा विनियमों के अनुसार भारत में धारित अन्य परिसंपत्तियों को दर्शाता हो;
डी) ‘प्रवासी स्टाफ’ अर्थात ऐसा व्यक्ति, जिसकी भविष्य निधि/ अधिवर्षिता/ पेंशन निधि संबंधी राशि भारत से बाहर के उसके मूल नियोक्ता द्वारा भारत से बाहर रखी (maintain की) जाती है।
(ई) ’स्थायी रूप से भारत में निवास न करने वाले” अर्थात भारत में किसी विशिष्ट अवधि अथवा विशिष्ट जॉब / असाइनमेंट, जिसकी अवधि तीन वर्ष से अधिक न हो, में नियोजन के लिए भारत में निवासी व्यक्ति ।
3. परिसंपत्तियों का विप्रेषण विनियमावली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नानुसार हैं:
ए) किसी भी व्यक्ति, भले ही वह व्यक्ति भारत का अथवा भारत से बाहर का निवासी हो, द्वारा धारित पूंजीगत परिसंपत्ति के विप्रेषण के लिए अधिनियम के दायरे तक अथवा अधिनियम के अंतर्गत निर्मित नियमों, या विनियमों के दायरे को छोड़कर रिजर्व बैंक का अनुमोदन प्राप्त करना आवश्यक है।
बी) परिसंपत्तियों का विप्रेषण विनियमावली के विनियम 4(1) के अनुसार, प्राधिकृत व्यापारी किसी विदेशी नागरिक (वह भारतीय मूल का व्यक्ति (PIO) अथवा नेपाल या भूटान का नागरिक न हो) द्वारा दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत करने पर प्रति वित्तीय वर्ष एक मिलियन अमरीकी डॉलर तक की परिसंपत्तियों पर विप्रेषण की अनुमति दे सकते हैं, यदि:
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वह व्यक्ति भारत में किसी नौकरी से सेवा-निवृत्त हुआ हो;
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उस व्यक्ति ने अधिनियम की धारा 6(5) में उल्लिखित किसी व्यक्ति से परिसंपत्तियों को उत्तराधिकार में पाया हो;
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वह भारत से बाहर की/ का निवासी कोई विधवा/ विधुर है और जिसने अपने मृतक पति/ पत्नी, जो भारत का/ की निवासी भारतीय नागरिक था/थी, की परिसंपत्तियां उत्तराधिकार में पायी हों।
यदि विप्रेषण एक से अधिक किश्तों में किया जाता है तो सभी किश्तों का विप्रेषण एक ही अधिकृत व्यापारी के माध्यम से किया जाना चाहिए।
(सी) उक्त के विनियम 4(1) के अनुसार प्राधिकृत व्यापारी किसी विदेशी विद्यार्थी द्वारा भारत में किसी बैंक खाते में धारित शेष राशि के विप्रेषण के लिए उनके द्वारा भारत में शिक्षण/ प्रशिक्षण की समाप्ति के बाद अनुमति दे सकता है।
(डी) उक्त के विनियम 4(2) के अनुसार, प्राधिकृत व्यापारी एनआरआई तथा पीआईओ को दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत करने पर प्रति वित्तीय वर्ष एक मिलियन अमरीकी डॉलर तक विप्रेषण की अनुमति दे सकता है;
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उसके अनिवासी (साधारण) खाते (NRO Account) में जमाशेष से / परिसंपत्तियों की बिक्रीगत आगम राशि/ भारत में उत्तराधिकार/ विरासत में अधिग्रहित परिसंपत्तियों से;
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उसके माता-पिता अथवा कंपनी अधिनियम, 2013 में यथा परिभाषित किसी रिश्तेदार द्वारा निष्पादित निपटान विलेख के अंतर्गत अधिग्रहित परिसंपत्ति से। विलेखकर्ता (सेटलर) की मृत्यु के बाद निपटान होने पर।
जब कभी एक से अधिक किश्तों में राशि विप्रेषित की जाए तो सभी किश्तों के विप्रेशण एक ही प्राधिकृत व्यापारी के जरिए किए जाने चाहिए। इसके अलावा, जब कभी विप्रेषण अनिवासी (साधारण) खाते (NRO Account) में धारित जमाशेष से किया जाना हो, तब प्राधिकृत व्यापारी द्वारा खाताधारक से एक घोषणा ली जाए जिसमें यह घोषित किया हो कि “यह विप्रेषण विप्रेषक द्वारा भारत में उनके विधि-संगत प्राप्य राशियों संबंधी खातों में धारित शेष राशि में से किया गया हो, न कि किसी अन्य व्यक्ति से उधार ले कर अथवा किसी अन्य NRO खाते से अंतरण करके किया हो। यदि ऐसा पाया जाता है तो खाताधारक फेमा के अंतर्गत दंडात्मक कार्रवाई के लिए ज़िम्मेवार होगा/ होगी”।
ई) उक्त के विनियम 4(3) के अनुसार, भारत में किसी न्यायालय द्वारा जारी निदेशों के आधार पर प्राधिकृत व्यापारियों द्वारा समापनाधीन भारतीय कंपनियों द्वारा विप्रेषण किए जाने हेतु उन्हें अनुमति प्रदान की जा सकती है।
एफ़) उक्त के विनियम 5 के अनुसार प्राधिकृत व्यापारी भारतीय संस्थाओं (एंटिटीज़) को उनके प्रवासी स्टाफ, जो भारत के निवासी हैं परंतु भारत में “स्थायी रूप से निवास” नहीं करते, की भविष्य निधि/ अधिवर्षिता/ पेंशन निधि में अंशदान की राशि का विप्रेषण करने की अनुमति दे सकते हैं।
जी) उक्त के विनियम 6 के अनुसार प्राधिकृत व्यापारी इस संबंध में समय-समय पर रिज़र्व बैंक द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार शाखा कार्यालय/ संपर्क कार्यालय (परियोजना कार्यालय को छोड़कर) के बंद हो जाने पर उनकी परिसंपत्तियों का विप्रेषण अथवा बंद होने की प्रक्रिया से मिली प्राप्तियों के विप्रेषण की अनुमति दे सकते हैं।
एच) उक्त के विनियम 7 के अनुसार, कठिनाई के आधार पर परिसंपत्तियों का विप्रेषण तथा NRI और PIO द्वारा एक मिलियन अमरीकी डॉलर प्रति वित्तीय वर्ष से अधिक की राशि के विप्रेषण के लिए रिजर्व बैंक की पूर्व अनुमति आवश्यक है।
आई) इन विनियमों के अंतर्गत हुआ कोई भी लेन-देन जिसमें परिसंपत्तियों का विप्रेषण हुआ हो, वह भारत में लागू टैक्स कानूनों के अधीन होगा।
4. नए विनियम दिनांक 01 अप्रैल 2016 के जीएसआर सं. 388 (ई) के जरिए 01 अप्रैल 2016 की अधिसूचना सं. फेमा. 13 (आर)/2016-आरबी द्वारा अधिसूचित किए गए हैं और वे 01 अप्रैल 2016 से लागू होंगे। नए परिवर्तनों को शामिल करते हुए मास्टर निदेश सं.13 को भी तदनुसार संशोधित किया गया है।
5. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित घटकों को अवगत कराएं।
6. इस परिपत्र में निहित निर्देश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (फेमा), 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत और किसी अन्य कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/ अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जारी किये गये हैं।
भवदीय
(ए. के. पाण्डेय)
मुख्य महाप्रबंधक |