आरबीआई/2017-18/138
ए.पी. (डीआईआर सीरीज) परिपत्र संख्या 19
मार्च 12, 2018
सभी श्रेणी - I प्राधिकृत डीलर बैंक
महोदया/महोदय,
विदेशी बाजारों में कमोडिटी मूल्य जोखिम और माल ढुलाई जोखिम का हेजिंग
(रिज़र्व बैंक) निदेश
प्राधिकृत डीलर श्रेणी - I (एडी श्रेणी -1) बैंकों का ध्यान समय-समय पर यथा संशोधित एफ़ईएमए, 1999 (1999 का 42वां अधिनियम) की धारा 47 की उपधारा (2) के खंड (एच) के तहत जारी विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा व्युत्पन्न अनुबंध) विनियमन, 2000 दिनांक 3 मई 2000 (अधिसूचना सं. एफईएमए. 25/आरबी-2000 दिनांक मई 3, 2000) की विनियमन 6 और 6 ए की ओर आकृष्ट किया जाता है।
2. विदेशी बाजारों में निवासियों द्वारा कमोडिटी मूल्य जोखिम के हेजिंग के लिए दिशानिर्देशों की समीक्षा के लिए आरबीआई ने पहले एक कार्यकारी समूह गठित किया था (अध्यक्ष: श्री चंदन सिन्हा)। कार्यकारी समूह की रिपोर्ट और उसपर प्राप्त टिप्पणियों के आधार पर कमोडिटी मूल्य जोखिम और माल ढुलाई जोखिम की हेजिंग का मसौदा निदेश 12 जनवरी 2018 को टिप्पणियों के लिए जारी किया गया था। मसौदा निदेशों पर प्राप्त फीडबैक के आधार पर, विदेशी बाजारों में कमोडिटी मूल्य जोखिम और माल ढुलाई जोखिम का हेजिंग (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2018 को अंतिम रूप दिया गया है जो इसके साथ संलग्न है। ये संशोधित निदेश 1 अप्रैल, 2018 से लागू होंगे।
3. पिछले निदेशों पर आधारित अनुमोदन प्रक्रिया के तहत आरबीआई के विशेष अनुमोदन से कमोडिटी मूल्य जोखिम और माल ढुलाई जोखिम की हेजिंग कर रहे निवासियों को 30 जून 2018 या अनुमोदन में निर्दिष्ट अंतिम तिथि जो भी पहले हो, तक हेजिंग जारी रखने की अनुमति दी जाएगी।
4. उक्त विषय से संबंधित निम्नलिखित परिपत्रों में निहित निदेश 1 अप्रैल 2018 से अप्रभावी होंगे:
(क) ए.पी. (डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं. 68 दिनांक 17 जनवरी 2012 " जोखिम प्रबंध और अंतर-बैंक लेनदेन – पण्य हेजिंग" पर
(ख) ए पी (डीआईआर सीरीज) परिपत्र संख्या 32 दिनांक 28 दिसंबर 2010 की धारा ई और एफ "विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव्स पर व्यापक दिशानिर्देश और कमोडिटी मूल्य और मालभाड़ा जोखिमों की विदेशी हेजिंग" और प्रासंगिक परिशिष्ट।
(ग) ए पी (डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं. 55 दिनांक 10 नवंबर 2008 " कमोडिटी डेरिवेटिव अनुबंध से संबंधित अंतरण आपाती साख पत्र/बैंक गारंटी जारी करना"
5. प्राधिकृत डीलर श्रेणी- I बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु को अपने संबंधित घटकों और ग्राहकों के ध्यान में ला सकते हैं।
6. इस परिपत्र में निहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (1999 के 42) की धारा 10 (4) और 11 (1) के तहत जारी किए गए हैं और किसी अन्य कानून के अंतर्गत आवश्यक अनुमति / अनुमोदन, यदि कोई हो, के पूर्वाग्रह के बिना हैं।
भवदीय
(टी. रबि शंकर)
मुख्य महाप्रबंधक
भारतीय रिजर्व बैंक
वित्तीय बाजार विनियमन विभाग
पहला मंजिल, केंद्रीय कार्यालय, फोर्ट
मुंबई 400 001
विदेशी बाजारों में पण्य कीमत जोखिम और माल भाड़ा जोखिम से बचाव
(रिजर्व बैंक) दिशा-निर्देश, 2018
भारतीय रिजर्व बैंक, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999 (1999 का 42) की धारा 10 (4) और 11 (1) के तहत प्रदत शक्तियों का प्रयोग करते हुए विदेशी बाजारों में पण्य कीमत जोखिम और माल भाड़ा जोखिम से बचाव के लिए (रिजर्व बैंक) दिशा-निर्देश, 2018, दिनांक 12 मार्च, 2018 (दिशा-निर्देश) को जारी करता है।
1. शीर्षक और शुरूआत
1.1 इन दिशा-निर्देश को विदेशी बाजारों (रिजर्व बैंक) में पण्य कीमत जोखिम और माल भाड़ा जोखिम से बचाव संबंधी दिशा-निर्देश, 2018 के रूप में जाना जाएगा और वे 1 अप्रैल, 2018 को लागू होंगे।
2. परिभाषाएं:
i. बचाव (हेजिंग) - एक पहचान योग्य और मापनीय जोखिम को कम करने के लिए व्युत्पन्न लेनदेन करने की गतिविधि। इन दिशा-निर्देशों को जारी करने का प्रासंगिक जोखिम उद्देश्य पण्य कीमत जोखिम और माल भाड़ा जोखिम हैं।
ii. पात्र संस्थाएं- पात्र संस्थाएं से तात्पर्य व्यक्तियों से न होकर अनिवासियों से है।
iii. पण्य कीमत जोखिम के लिए प्रत्यक्ष एक्सपोजर – प्रत्यक्ष एक्सपोजर के रूप में पण्य कीमत जोखिम से जुड़े संस्था को पात्र संस्था माना जाएगा यदि
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वह पण्य खरीदता / बेचता (भारत या विदेश में) है, जिसका मूल्य अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क के संदर्भ में तय किया जाता हो; या
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वह किसी उत्पाद को खरीदता / बेचता (भारत या विदेश में) हो जिसमें एक पण्य भी शामिल हो और उत्पाद की कीमत पण्य के अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क से जुड़ी हो।
iv. पण्य कीमत जोखिम के लिए अप्रत्यक्ष एक्सपोजर - अप्रत्यक्ष एक्सपोजर के रूप में पण्य कीमत जोखिम से जुड़े संस्था को पात्र संस्था माना जाएगा यदि वह किसी उत्पाद को खरीदता / बेचता (भारत या विदेश में) हो जिसमें एक पण्य भी शामिल हो और उत्पाद की कीमत पण्य के अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क से नहीं जुड़ी हो।
v. माल भाड़ा जोखिम के लिए एक्सपोजर – यदि कोई संस्था तेल रिफाइनिंग या शिपिंग के कारोबार में लगी हुई है तो उक्त संस्था को इसके तहत पात्र संस्था माना जाएगा।
vi. बैंक (ओं) - बैंक (ओं) फेमा, 1999 की धारा 10 के तहत अधिकृत डीलर - श्रेणी I के रूप में लाइसेंस प्राप्त बैंकों को संदर्भित करता है।
3. पात्र पण्य - जिन पण्य वस्तुओं का मूल्य जोखिम से बचाव किया जा सकता है वे हैं:
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पण्य मूल्य जोखिम के प्रत्यक्ष एक्सपोजर के मामले में: सभी वस्तुएं (सोने, रत्न और कीमती पत्थरों को छोड़कर)
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पण्य मूल्य जोखिम पर अप्रत्यक्ष एक्सपोजर के मामले में: एल्यूमिनियम, कॉपर, लीड, जिंक, निकेल और टिन। इन पात्र वस्तुओं की सूची की समीक्षा वार्षिक आधार पर की जाएगी।
4. अनुमत उत्पाद - अनुमत उत्पाद से तात्पर्य निम्नलिखित उत्पाद से है:
a. जेनेरिक उत्पाद
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फ्यूचर्स और वायदा (फोरवार्ड्स)
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वेनिला विकल्प (क्रय विकल्प और विक्रय विकल्प)
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स्वैप
b. संरचित उत्पाद
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वे उत्पाद जो या तो नकदी लिखत हैं और एक या अधिक सामान्य उत्पादों के संयोजन हैं।
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वे उत्पाद जो दो या दो से अधिक सामान्य उत्पादों के संयोजन होते हैं।
5. पण्य कीमत जोखिम से बचाव: किसी भी पात्र वस्तु के लिए कोई पात्र संस्था जिसका एक्सपोजर पण्य कीमत जोखिम में हो वह अनुमत उत्पादों का विदेशी बाजार में पण्य कीमत जोखिम से बचाव कर सकती है।
6. माल भाड़ा जोखिम से बचाव: पात्र संस्थाएं जिनका एक्सपोजर माल भाड़ा जोखिम में है वे अपनी जोखिम को विदेशी बाजार में अनुमत उत्पादों के लिए जोखिम से बचाव कर सकती हैं।
7. अन्य परिचालन दिशानिर्देश:
i. बैंक पात्र संस्थाओं को अनुमत उत्पादों के उपयोग करके विदेश में पण्य कीमत जोखिम और माल भाड़ा जोखिम से बचाव की अनुमति दे सकते हैं और बैंक ऐसे लेनदेन के संबंध में भारत से बाहर विदेशी मुद्रा को भेज सकते हैं जब वह खुद संतुष्ट हो जाए कि:
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इकाई का एक्सपोजर पण्य कीमत जोखिम या माल भाड़ा जोखिम, अनुबंधित या अनुमानित रूप में हो।
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जोखिम से बचाव के लिए प्रस्तावित मात्रा और जोखिम की अवधि एक्सपोजर के अनुरूप होनी चाहिए।
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ओटीसी डेरिवेटिव के मामले में ओटीसी हेज लिए जाने संबंधी अपेक्षा को न्यायसंगत किया जाता है।
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हेजिंग के ऐसे मामलों में, जहां एक्सपोस की गई पण्यवस्तु को छोड़कर अन्य किसी बेंचमार्क कीमत का प्रयोग किया जाता है तो ऐसे हेज लिए जाने की अपेक्षा को न्यायसंगत किया जाता है।
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ऐसी हेजिंग कंपनी के निदेशक मंडल या अन्य समतुल्य मंच द्वारा अनुमोदित नीति के अंतर्गत संस्था के प्रबंधन द्वारा की जाती है।
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संस्था के पास जोखिम प्रबंधन संबंधी आवश्यक नीतियां हों।
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संस्था को हेजिंग के संबंध में प्रयोग में लाए जाने वाले प्रस्तावित उत्पादों की उपयोगिता और संभावित जोखिमों की समुचित जानकारी हो।
ii. जहां तक ओटीसी संविदाओं का प्रश्न है उन्हें ऐसे बैंकों या गैर-बैंक संस्थाओं द्वारा बुक किया जाना है जिन्हें ऐसे डेरिवेटिव उपलब्ध कराने हेतु संबंधित विनियामकों की अनुमति प्राप्त है। इस प्रयोजन हेतु स्वीकार्य अधिकार-क्षेत्रों की सूची फेडाई द्वारा विनिर्दिष्ट कराई जाएगी।
iii. संरचित उत्पादों के लिए अनुमति पात्र ऐसी संस्थाओं को दी जाए जो (क) मान्यता-प्राप्त देशी शेयर बाज़ारों पर सूचीबद्ध हों या (ख) ऐसी संस्थाओं की पूर्णत: स्वाधिकृत सहायक कंपनियां या (ग) असूचीबद्ध ऐसी कंपनियां, जिनकी निवल मालियत 200 करोड़ रुपये से अधिक हो, बशर्ते ऐसे उत्पाद का उपयोग इन निर्देशों के अंतर्गत यथापरिभाषित हेजिंग के प्रयोजन से किया जाए।
iv. पण्यवस्तु मूल्य जोखिम और भाड़े संबंधी जोखिम के प्रति एक्सपोज़र की हेजिंग से संबंधित सभी भुगतान/ प्राप्तियां इस प्रयोजन से बैंक में रखे जाने वाले विशेष खाते के माध्यम से भेजी/ प्राप्त की जाएंगी।
v. बैंक हेज संबंधी सभी लेनदेनों और संस्था द्वारा किए गए तत्संबंधी विप्रेषणों के पूरे ब्योरे अपने रिकॉर्ड में रखेंगे।
vi. बैंक संस्था के सांविधिक लेखापरीक्षकों से इस आशय का वार्षिक प्रमाणपत्र प्राप्त करेंगे कि हेज संबंधी लेनदेन और मार्जिन विप्रेषण संस्था के एक्सपोज़र के अनुरूप हैं। पण्यवस्तु मूल्य जोखिम और भाड़े संबंधी जोखिम के प्रति एक्पोज़र की हेजिंग के संबंध में संस्था की जोखिम प्रबंधन नीति तथा ऐसे एक्सपोज़रों की मात्रा के परिकलन की क्रियाविधि की उपयुक्तता के संबंध में भी सांविधिक लेखापरीक्षक टिप्पणी प्रस्तुत करेंगे।
vii. बैंक किसी अनियमितता या इन निर्देशों के दुरुपयोग के मामले में त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई करेंगे। ऐसे सभी मामले की रिपोर्टिंग मुख्य महाप्रबंधक, वित्तीय बाज़ार विनियमन विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक को की जानी चाहिए।
8. एवज़ी साख-पत्र (एसबीएलसी)/ गारंटियां – बैंकों को इस बात की अनुमति है कि वे अपने ग्राहकों द्वारा किए गए पण्य बचाव लेनदेनों के लिए मार्जिन राशि का विप्रेषण करने के बदले में अपने ग्राहकों की ओर से एवज़ी साख-पत्र (एसबीएलसी) / गारंटिया जारी कर सकते हैं। बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन एसबीएल / गारंटियों का ग्राहकों द्वारा नियत उद्देश्य के लिए उपयोग किया जाए।
9. विदेशी विनिमय की प्राप्ति और प्रत्यावर्तन - इस निर्देश के तहत अनुमेय लेनदेनों के परिणाम से पात्र संस्थाओं को बकाया अथवा उपचित विदेशी विनिमय की प्राप्ति और प्रत्यावर्तन, विदेशी विनिमय प्रबंधन (प्राप्त, प्रत्यावर्तन और विदेशी विनिमय की सुपुर्दगी) विनियमन, 2015 के उपबंधों द्वारा निर्देशित होगा।
10. रिज़र्व बैंक को रिपोर्ट करना - बैंकों को चाहिए कि वे ई-मेल के माध्यम से एक्सेल फाइल के रूप में अनुबंध-I में उपलब्ध प्रारूप में तिमाही रिपोर्ट मुख्य महाप्रबंधक, वित्तीय बाजार विनियमन विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करें।
अनुबंध-।
रिपोर्ट – ................ को समाप्त तिमाही की स्थिति के अनुसार ओवरसीज़ बाज़ारों में
पण्य मूल्य जोखिम और भाड़े संबंधी जोखिम की हेजिंग
प्राधिकृत व्यापारी का नाम :
1.
पण्य |
एक्सपोज़र (मात्रा) |
बुक किए गए हेज (मात्रा) |
सकल बहिर्वाह (मिलियन यूएस डॉलर) |
सकल अंतर्वाह (मिलियन यूएस डॉलर) |
प्रत्यक्ष |
परोक्ष |
ओटीसी |
एक्सचेंज |
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2. पण्य मूल्य जोखिम की हेजिंग हेतु जारी कुल बकाया एसबीएलसी/ गारंटियां
बकाया एसबीएलसी (मिलियन यूएस डॉलर) |
बकाया गारंटियां (मिलियन यूएस डॉलर) |
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3. ओवरसीज़ प्रतिपक्षकार (ग्राहकवार) द्वारा लागू किए गए एसबीएलसी/ गारंटियां :
तारीख |
ग्राहक |
लागू किए गए एसबीएलसी/ गारंटी राशि (मिलियन यूएस डॉलर) |
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