आरबीआई/2022-23/131
विवि.एमआरजी.आरईसी.76/00-00-007/2022-23
11 अक्तूबर 2022
महोदय / महोदया,
भारतीय रिज़र्व बैंक (गैर बचाव (अनहेज्ड) विदेशी मुद्रा एक्सपोजर) निदेश, 2022
भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों को समय-समय पर उनसे उधार लेने वाली संस्थाओं के गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर (यूएफसीई) के संबंध में कई दिशानिर्देश/अनुदेश/निर्देश जारी किए हैं।
2. हमें बैंकों से संदर्भ प्राप्त हुए हैं जिनमें विभिन्न पहलुओं पर स्पष्टीकरण मांगा गया है, इसमे अन्य बातों के साथ-साथ 'संस्थाओं' की परिभाषा जिनके लिए यूएफसीई का आकलन किया जाएगा, छूट प्राप्त एक्सपोजर/इकाइयों, छोटी संस्थाओं के लिए वैकल्पिक पद्धति, भारतीय बैंकों की विदेशी सहायक कंपनियों/ शाखाओं द्वारा भारत के बाहर निगमित संस्थाओं के यूएफसीई का आकलन आदि शामिल हैं।
3. तदनुसार, मौजूदा दिशा-निर्देशों की व्यापक समीक्षा की गई है और ऊपर बताए गए मुद्दों पर संशोधन/स्पष्टीकरण सहित इस विषय पर सभी मौजूदा निदेशों को यहां संलग्न निदेशों में समेकित किया गया है। इन निदेशों के लिए पार्श्वभूमि प्रदान करने वाला एक व्याख्यात्मक नोट भी संलग्न है।
प्रयोज्यता (लागू होना)
4. यह परिपत्र सभी वाणिज्यिक बैंकों (भुगतान बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) पर लागू है।
5. ये निदेश 1 जनवरी 2023 से लागू होंगे।
भवदीया,
(उषा जानकीरमन)
मुख्य महाप्रबंधक
विनियमन विभाग
दिनांक 11 अक्टूबर 2022 की अधिसूचना सं.विवि.एमआरजी.77/00-00-007/2022-23
भारतीय रिज़र्व बैंक (गैर बचाव (अनहेज्ड) विदेशी मुद्रा एक्सपोजर) निदेश, 2022
बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (आगे अधिनियम कहा गया है) की धारा 35क के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, भारतीय रिज़र्व बैंक (आगे, रिज़र्व बैंक कहा गया है) द्वारा, इस बात से संतुष्ट होकर कि ऐसा करना सार्वजनिक हित में आवश्यक और समीचीन है, एतदद्वारा, निर्दिष्ट दिशा-निर्देश जारी किए जाते हैं।
अध्याय I – प्रस्तावना
1. संक्षिप्त शीर्षक और प्रारंभ
क) इन निदेशों को भारतीय रिज़र्व बैंक (गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर) निदेश, 2022 कहा जाएगा।
ख) ये निदेश 1 जनवरी 2023 से प्रभावी होंगे।
2. प्रयोज्यता
इन निदेशों के प्रावधान भुगतान बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर सभी वाणिज्यिक बैंकों (इसके बाद सामूहिक रूप से "बैंक" के रूप में संदर्भित) पर लागू होंगे। ये निदेश भारत में निगमित बैंकों की विदेशी शाखाओं/सहायक कंपनियों पर भी लागू होंगे, जैसा कि खंड 10 में निर्दिष्ट किया गया है।
3. परिभाषाएं
(क) इन निदेशों में, जब तक कि संदर्भ में अन्यथा न कहा गया हो, यहां दिए गएशब्दों का अर्थ निम्नानुसार होगा:
i. "ब्याज और मूल्यह्रास से पहले की आय (ईबीआईडी)" का वही अर्थ होगा जो ऋण चुकौती कवरेज अनुपात (डीएससीआर) की गणना के लिए परिभाषित किया गया है, अर्थात ईबीआईडी = कर के बाद लाभ + मूल्यह्रास + ऋण पर ब्याज + लीज रेंटल, यदि कोई हो।
ii. "संस्था" का अर्थ उस प्रतिपक्षकार से है जिससे बैंक का एक्सपोजर किसी भी मुद्रा में है।
व्याख्या: एक्सपोजर का मतलब सभी निधि-आधारित और गैर-निधि-आधारित एक्सपोजर होगा।
iii. "वित्तीय बचाव" का अर्थ किसी वित्तीय संस्थान के साथ डेरिवेटिव अनुबंध के माध्यम से बचाव करना होगा। वित्तीय बचाव व्यवस्था पर केवल तभी मान्य होगी जब संस्था ने डेरिवेटिव अनुबंध की शुरुआत में बचाव के उद्देश्य और रणनीति का दस्तावेजीकरण किया हो और समय-समय पर बचाव लिखत के रूप में इसकी प्रभावशीलता का आकलन किया हो।
नोट: बचाव की प्रभावशीलता का आकलन करने के उद्देश्य से, इस मामले पर लागू लेखा मानकों और इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के प्रासंगिक मार्गदर्शन नोटों (टिप्पणियों) से मार्गदर्शन लिया जा सकता है।
iv. संस्था के "विदेशी मुद्रा एक्सपोजर (एफसीई)" का अर्थ संस्था के तुलन-पत्र पर उन सभी मदों का सकल योग होगा जो विदेशी मुद्रा दरों में परिवर्तन के कारण उसके लाभ और हानि खाते पर प्रभाव डालते हैं।
v. "सूचीबद्ध संस्थाओं" का अर्थ है मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध संस्थाएं।
vi. "प्राकृतिक बचाव" का अर्थ ऐसे बचाव से है जिसमे विदेशी मुद्रा एक्सपोजर (एफसीई) से उत्पन्न होने वाले जोखिम को कंपनी के संचालन से उत्पन्न नकदी प्रवाह ऑफसेट करता है।
नोट: एक्सपोजर को प्राकृतिक रूप से बचाव के रूप में तभी माना जाएगा जब ऑफसेटिंग एक्सपोजर की परिपक्वता/नकदी प्रवाह उसी लेखा वर्ष के भीतर हो।1
vii. "गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर (यूएफसीई)" का अर्थ वह विदेशी मुद्रा एक्सपोजर (एफसीई) होगा, जिसमें उन मदों को शामिल नहीं किया जाए जो एक दूसरे के प्रभावी बचाव हैं। किसी इकाई के यूएफसीई का आकलन करते समय, बैंक केवल दो प्रकार के बचाव पर विचार करेंगे - वित्तीय बचाव और प्राकृतिक बचाव।
(ख) अन्य सभी अभिव्यक्तियों, जिन्हे यहाँ परिभाषित नहीं किया गया है, का वही अर्थ होगा जो बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 या भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 और उसके तहत बनाए गए नियमों / विनियमों, या किसी सांविधिक संशोधन या पुन: अधिनियमन या वाणिज्यिक भाषा में प्रयोग, जैसा भी मामला हो, के अनुरूप है।
अध्याय II - सामान्य दिशानिर्देश
4. यूएफसीई की गणना
(क) बैंक कम से कम वार्षिक आधार पर सभी संस्थाओं2 के विदेशी मुद्रा एक्सपोजर (एफसीई) का पता लगाएंगे। बैंक एफसीई की गणना संस्था के लिए लागू प्रासंगिक लेखा मानक का पालन करते हुए करेंगे।
स्पष्टीकरण: बैंक अगले पांच वर्षों की अवधि में परिपक्व होने वाली या नकदी प्रवाह वाली मदों का आकलन करेंगे।
नोट: संस्थाओं के विदेशी मुद्रा एक्सपोजर पर पहुंचने के लिए, विदेशी मुद्रा उधार और बाहरी वाणिज्यिक उधार सहित सभी स्रोतों से उनके एक्सपोजर को ध्यान में रखा जाएगा।
(ख) बैंक विदेशी मुद्रा एक्सपोजर वाली संस्थाओं के गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर (यूएफसीई) का आकलन संबंधित संस्था से यूएफसीई पर जानकारी प्राप्त करके करेंगे।
बशर्ते कि यूएफसीई पर जानकारी संबंधित संस्था से सांविधिक लेखा परीक्षा, आंतरिक लेखा परीक्षा अथवा स्व-घोषणा के आधार पर तिमाहिकप्राप्त की जाएगी।
बशर्ते यह भी कि यूएफसीई पर जानकारी का लेखा परीक्षा और प्रमाणन संस्था के सांविधिक लेखा परीक्षकों द्वारा कम से कम वार्षिक आधार पर किया जाएगा।
5. प्रावधान और पूंजी आवश्यकताएँ
(क) बैंक यूएफसीई से एक संस्था को संभावित हानि का निर्धारण करने के लिए पिछले दस वर्षों3 के दौरान यूएसडी-आईएनआर विनिमय दरों में सबसे बड़ी वार्षिक अस्थिरता का उपयोग करेंगे।
नोट: यूएसडी के अलावा अन्य मुद्राओं में गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर (यूएफसीई) को यूएफसीई से संभावित हानि का निर्धारण करने के लिए मौजूदा बाजार दरों का उपयोग करते हुए यूएसडी में परिवर्तित किया जाएगा।
(ख) बैंक किसी संस्था के प्रतिकूल विनिमय दर परिवर्तनों के प्रति संवेदनशीलता का निर्धारण यूएफसीई से संस्था को संभावित हानि और सांविधिक लेखा परीक्षकों4 द्वारा प्रमाणित नवीनतम तिमाही परिणामों के अनुसार पिछले चार तिमाहियों में संस्था के ईबीआईडी के अनुपात की गणना करेंगे।
नोट: (1) ऐसे मामलों में जहां बैंक खातों को अंतिम रूप देने से पहले ऐसी जानकारी के प्रकटीकरण पर प्रतिबंध के कारण नवीनतम तिमाही के लिए सूचीबद्ध संस्थाओं से यूएफसीई या ईबीआईडी पर जानकारी प्राप्त करने की स्थिति में नहीं हैं, बैंकों के पास पूंजी और प्रावधानीकरण आवश्यकताओं की गणना के लिए तत्काल पूर्ववर्ती पिछली चार तिमाहियों तक संबंधित डेटा का उपयोग करने का विकल्प होगा।
(2) असूचीबद्ध संस्थाओं के मामले में जहां अंतिम तिमाही के लेखापरीक्षित परिणाम उपलब्ध नहीं हैं, नवीनतम उपलब्ध लेखापरीक्षित तिमाही या वार्षिक परिणामों का उपयोग किया जाएगा। प्रयोज्य वार्षिक ईबीआईडी आंकड़ा कम से कम पिछले वित्तीय वर्ष का होना चाहिए।
(ग) तदनुसार, बैंक ऐसी संस्थाओं के लिए सभी एक्सपोजरों के लिए वृद्धिशील पूंजी और प्रावधानीकरण आवश्यकताओं5 को निम्नानुसार लागू करेंगे:
संभावित हानि / ईबीआईडी (%) |
वृद्धिशील प्रावधानीकरण आवश्यकता |
वृद्धिशील पूंजी आवश्यकता |
15 प्रतिशत तक |
0 |
0 |
15 प्रतिशत से अधिक और 30 प्रतिशत तक |
20 बीपीएस |
0 |
30 प्रतिशत से अधिक और 50 प्रतिशत तक |
40 बीपीएस |
0 |
50 प्रतिशत से अधिक और 75 प्रतिशत तक |
60 बीपीएस |
0 |
75 प्रतिशत से अधिक |
80 बीपीएस |
जोखिम भार में 25 प्रतिशत बिन्दु6 की वृद्धि |
नोट: यूएफसीई के लिए वृद्धिशील प्रावधान मानक आस्ति प्रावधान की गणना के लिए उपयोग की गयी कुल एक्सपोजर राशि पर आधारित होगा और यूएफसीई के लिए वृद्धिशील पूंजी आवश्यकताएं क्रेडिट जोखिम पूंजी आवश्यकताओं की गणना के लिए उपयोग की गयी कुल एक्सपोजर राशि पर आधारित होंगी।
(घ) बैंक कम से कम तिमाही आधार पर वृद्धिशील प्रावधानीकरण और पूंजी आवश्यकताओं की गणना करेंगे।
(ड.) कार्यान्वयन के तहत परियोजनाओं और नई संस्थाओं के लिए, बैंक संस्था के वाणिज्यिक परिचालन शुरू होने की तारीख से तीन वर्षों के लिए अनुमानित औसत वार्षिक ईबीआईडी के आधार पर वृद्धिशील प्रावधान और पूंजी आवश्यकताओं की गणना करेंगे।
बशर्ते कि वृद्धिशील पूंजी और प्रावधान आवश्यकता की न्यूनतम सीमा 20 बीपीएस होगी।
(च) नीचे उप-खंड (छ) में प्रदान की गई वैकल्पिक पद्धति के तहत शामिल छोटी संस्थाओं को छोड़कर, ऐसे मामलों में जहां बैंक यूएफसीई का आकलन करने और वृद्धिशील पूंजी तथा प्रावधान आवश्यकताओं की गणना के लिए पर्याप्त डेटा प्राप्त करने में सक्षम नहीं है, बैंक द्वारा एक अनुदार दृष्टिकोण अपनाया जाएगा और संस्था के प्रति एक्सपोजर को अंतिम पंक्ति में रखा जाएगा, जिसके लिए 80 बीपीएस की वृद्धिशील प्रावधान और जोखिम भार में 25 प्रतिशत की वृद्धि की आवश्यकता होगी।
(छ) बैंकों के पास छोटी संस्थाओं, जिनके पास विदेशी मुद्रा एक्सपोजर है और जो खंड 4 (ख) के अनुसार अपने यूएफसीई पर जानकारी प्रदान करने की स्थिति में नहीं हैं, के एक्सपोजर के लिए एक वैकल्पिक पद्धति का पालन करने का विकल्प होगा। इस वैकल्पिक पद्धति के तहत बैंक खण्ड 5(क) से 5(ड.) में दिए गए प्रावधान के अनुसार वृद्धिशील पूंजी और प्रावधानीकरण आवश्यकताओं की गणना करने के बजाय मौजूदा मानक आस्ति प्रावधान से 10 बीपीएस अधिक का वृद्धिशील प्रावधान लागू करेंगे।
स्पष्टीकरण: इस उद्देश्य के लिए, छोटी संस्थाएं वे संस्थाएं हैं जिन पर बैंकिंग प्रणाली का कुल एक्सपोजर 50 करोड़ रुपये या उससे कम है।
6. व्यवस्था और नियंत्रण
(क) बैंक अपनी आंतरिक क्रेडिट रेटिंग प्रणाली और क्रेडिट जोखिम प्रबंधन नीतियों और प्रक्रियाओं में संस्थाओं के यूएफसीई के जोखिम को शामिल करेंगे।
(ख) बैंक बोर्ड समग्र अनुमोदित जोखिम नीति के भीतर यूएफसीई के लिए आंतरिक सीमाएं निर्धारित करेंगे।
7. संघ व्यवस्था के तहत उधार
(क) संघ व्यवस्था/बहु बैंकिंग व्यवस्था के मामले में, सबसे बड़ा एक्सपोजर रखने वाले / संघ व्यवस्था अग्रणी बैंक की संस्थाओं के गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर की निगरानी में प्रमुख भूमिका होगी।
नोट: बैंक 'संघ व्यवस्था/बहु बैंकिंग व्यवस्था के तहत उधार' पर दिनांक 8 दिसंबर 2008 के परिपत्र बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.94/08.12.001/2008-2009, समय-समय पर यथा संशोधित के अनुसार सूचना साझा करने और प्रसार के लिए एक प्रणाली स्थापित करेंगे।
8. छूट/ढील
(क) बैंकों के पास यूएफसीई की गणना से निम्नलिखित एक्सपोजर को बाहर करने (छोड़ने) का विकल्प होगा:
(i) संप्रभु7, बैंक8 और व्यष्टि के रूप में वर्गीकृत संस्थाओं के प्रति एक्सपोजर।
(ii) अनर्जक आस्तियों के रूप में वर्गीकृत एक्सपोजर।
(iii) भारत9 के बाहर निगमित बहुराष्ट्रीय निगमों (एमएनसी) के इंट्रा-ग्रुप विदेशी मुद्रा एक्सपोजर,
बशर्ते कि बैंक इस बात से संतुष्ट हो कि इस तरह के विदेशी मुद्रा एक्सपोजर का मूल संस्था द्वारा उचित रूप से बचाव या प्रबंधित किया जाता है।
(iv) डेरिवेटिव लेनदेन और / या संस्थाओं के साथ फैक्टरिंग लेनदेन से उत्पन्न होने वाले एक्सपोजर, बशर्ते ऐसी संस्थाओं का भारत में बैंकों के लिए कोई अन्य एक्सपोजर न हो।
9. पूंजी मान्यता और प्रकटीकरण
यूएफसीई के लिए वृद्धिशील प्रावधान आवश्यकता को प्रकटीकरण और टीयर 2 पूंजी में समावेशन के लिए सामान्य प्रावधान के रूप में माना जाएगा।
10. विदेशी शाखाएं/सहायक कंपनियां
(क) इन निदेशों के प्रावधान बैंकों की विदेशी शाखाओं/सहायक कंपनियों पर निम्नलिखित के अधीन लागू होंगे:
(i) भारत के बाहर निगमित संस्थाओं के एक्सपोजर के संबंध में, यूएफसीई पर जानकारी आंतरिक लेखा परीक्षा या स्व-घोषणा के आधार पर ऐसी संस्थाओं से तिमाहिकी प्राप्त किया जाएगा और वार्षिक आधार पर सांविधिक लेखा परीक्षकों से प्रमाण पत्र की आवश्यकता, जैसा कि खंड 4 (ख) में बताया गया है, पर जोर नहीं दिया जाएगा। ऐसे मामलों में जहां बैंक संबंधित संस्थाओं से यूएफसीई के बारे में जानकारी प्राप्त करने में सक्षम नहीं है, खंड 5(च) में दिए गए अनुसार मानता लागू होगी।
(ii) बैंक यूएफसीई के कारण संभावित हानि की गणना आईएनआर को उस क्षेत्राधिकार की घरेलू मुद्रा से और यूएसडी को विदेशी मुद्रा (अर्थात उस क्षेत्राधिकार की घरेलू मुद्रा के अलावा अन्य मुद्रा) जिसमें संस्था का खंड 5 (क) में अधिकतम एक्सपोजर है से प्रतिस्थापित कर के करेंगे।
नोट: बैंक पिछले दस वर्षों की अवधि में सबसे बड़ी वार्षिक अस्थिरता की गणना निम्नलिखित तरीके से करेंगे: सबसे पहले, विदेशी विनिमय दरों में दैनिक परिवर्तन की गणना पिछले दिन की दर से आज की दर के लॉग रिटर्न के रूप में की जाएगी। दूसरा, दैनिक अस्थिरता की गणना एक वर्ष (250 अवलोकन) की अवधि में इन रिटर्न के मानक विचलन के रूप में की जाएगी। तीसरा, इस दैनिक अस्थिरता को 250 के वर्गमूल से गुणा करके वार्षिक किया जाएगा। यह गणना पिछले दस वर्षों में सभी दिनों के लिए दैनिक आधार पर की जाएगी। इस प्रकार गणना की गई सबसे बड़ी वार्षिक अस्थिरता को यूएफसीई के साथ गुणा करके संभावित हानि की गणना के लिए उपयोग किया जाएगा।
अध्याय III – निरस्त किए गए प्रावधान
11.1 इन निदेशों के जारी होने के साथ ही रिज़र्व बैंक द्वारा जारी निम्नलिखित परिपत्रों में निहित अनुदेश/दिशानिर्देश निरस्त समझे जाते हैं।
|
परिपत्र सं |
दिनांक |
विषय |
1 |
बैपविवि.बीपी.बीसी.37/21.04.048/2001-2002 |
27 अक्तूबर 2001 |
मौद्रिक और ऋण नीति उपाय - वर्ष 2001-2002 के लिए मध्यावधि समीक्षा - कॉरपोरेट्स के गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर |
2 |
बैपविवि.बीपी.बीसी.51/21.04.103/2003-2004 |
05 दिसंबर 2003 |
वर्ष 2003-04 के लिए मौद्रिक और ऋण नीति की मध्यावधि समीक्षा - कॉरपोरेट्स के गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर |
3 |
बैपविवि.बीपी.बीसी.96/21.04.103/2008-09 |
10 दिसंबर 2008 |
ग्राहकों का अप्रतिबंधित गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर - बैंकों द्वारा निगरानी |
4 |
बैपविवि.बीपी.बीसी.76/21.04.103/2011-12 |
2 फरवरी 2012 |
मौद्रिक नीति 2011-12 की दूसरी तिमाही की समीक्षा - कॉरपोरेट्स के गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर |
5 |
बैपविवि.बीपी.बीसी.61/21.04.103/2012-13 |
21 नवंबर 2012 |
मौद्रिक नीति 2012-13 की दूसरी तिमाही की समीक्षा - कॉरपोरेट्स के गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर |
6 |
बैपविवि.बीपी.बीसी.85/21.06.200/2013-14 |
15 जनवरी 2014 |
गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर वाली संस्थाओं को एक्सपोजर के लिए पूंजी और प्रावधान संबंधी आवश्यकताएं |
7 |
बैपविवि.बीपी.बीसी.116/21.06.200/2013-14 |
3 जून 2014 |
गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर वाली संस्थाओं को एक्सपोजर के लिए पूंजी और प्रावधान संबंधी आवश्यकताएं-स्पष्टीकरण |
8 |
मेल बॉक्स स्पष्टीकरण |
8 जुलाई 2016 |
गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर वाली संस्थाओं को एक्सपोजर के लिए पूंजी और प्रावधान संबंधी आवश्यकताएं |
9 |
विवि.सं.एमआरजी.बीसी.41/21.06.200/2020-21 |
17 फरवरी 2021 |
गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर वाली संस्थाओं को एक्सपोजर के लिए पूंजी और प्रावधान संबंधी आवश्यकताएं |
11.2 उपर्युक्त परिपत्रों के तहत दिए गए सभी अनुमोदन/स्वीकृति को इन निदेशों के तहत दिये गए हैं ऐसा माना जाएगा।
11.3 सभी निरसित परिपत्र इन निदेशों के प्रभाव में आने से पूर्व प्रभावी माने जाएंगे।
_____________________________________________________________
भारतीय रिज़र्व बैंक (गैर बचाव (अनहेज्ड) विदेशी मुद्रा एक्सपोजर) निदेश, 2022 के लिए व्याख्यात्मक नोट1
11 अक्तूबर 2022
परिचय
1. किसी भी संस्था के गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर न केवल उस व्यक्तिगत संस्था के लिए बल्कि संपूर्ण वित्तीय प्रणाली के लिए भी चिंता का विषय बन जाता है। ऐसी इकाइयां जो अपने विदेशी मुद्रा एक्सपोजर का बचाव नहीं करती हैं, उन्हें विदेशी विनिमय दरों में अत्यधिक अस्थिरता की अवधि के दौरान भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। ये नुकसान बैंकिंग प्रणाली से लिए गए ऋणों को चुकाने की उनकी क्षमता को कम कर सकते हैं और उनके चूक की संभावना को बढ़ा सकते हैं जिससे बैंकिंग प्रणाली के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।
पार्श्वभूमि और औचित्य
2. भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा पहली बार अक्तूबर 1999 में जोखिम प्रबंधन प्रणाली के एक हिस्से के रूप में यह अवधारणा पेश की गई थी, जब कुछ देशों में आर्थिक संकट के दौरान यह पाया गया था कि बैंक उन संस्थाओं पर अतिरिक्त ऋण जोखिम उठाते हैं, जिन्होंने विदेशी मुद्रा जोखिम का बचाव नहीं किया है। तदनुसार, बैंकों को सूचित किया गया था कि वे उन संस्थाओं के विदेशी मुद्रा जोखिम की नियमित निगरानी के लिए एक उपयुक्त ढांचा विकसित करें जिनके पास प्राकृतिक बचाव नहीं है और क्रेडिट निर्णय लेने के लिए जोखिम रेटिंग प्रणाली में संस्थाओं के ऐसे गैर बचाव एक्सपोजर को शामिल किया जाए।
3. इस ढांचे का उद्देश्य यह था कि बैंकों को गैर बचाव विदेशी मुद्रा एक्सपोजर (यूएफसीई) के जोखिम को क्रेडिट जोखिम प्रीमियम के रूप में मूल्यांकित करना चाहिए जिससे संस्थाओं को बाजार में अपने विदेशी मुद्रा एक्सपोजर का बचाव करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। इसके लिए, बैंकों को निर्देश की एक श्रृंखला के माध्यम से सूचित किया गया था कि ए) संस्थाओं के बड़े विदेशी मुद्रा एक्सपोजर के गैर बचाव हिस्से की नियमित रूप से निगरानी की जाए; बी) विदेशी मुद्रा ऋणों के बचाव पर बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति हो; और ग) संघ व्यवस्था के तहत उधार के मामले में यूएफसीई पर सूचना साझा करने के लिए एक तंत्र हो। हालांकि, संस्थाओं के विदेशी मुद्रा एक्सपोजर का एक बड़ा हिस्सा बचाव रहित रह गया, जिसके परिणामस्वरूप यह संस्थाओं के तुलन पत्र के लिए महत्वपूर्ण लेकिन परिहार्य जोखिम बन गया, जिसके कारण, बैंक की आस्तियों की गुणवत्ता प्रभावित हुई हैं।
4. बैंक की बहियों में जोखिम को दूर करने के लिए, बैंकों को सूचित किया गया था कि वे यूएफसीई वाली संस्थाओं के प्रति अपने एक्सपोजर के लिए वृद्धिशील प्रावधान और पूंजी आवश्यकताओं को बनाए रखें। वृद्धिशील प्रावधानीकरण और पूंजी आवश्यकताओं की गणना की प्रक्रिया को निम्नलिखित चरणों में संक्षेप में प्रस्तुत किया जा सकता है:
ए) चरण 1: संस्था के विदेशी मुद्रा एक्सपोजर (एफसीई) का आकलन करना।
बी) चरण 2: दो प्रकार के बचाव - प्राकृतिक बचाव और वित्तीय बचाव को ध्यान में रखते हुए संस्थाओं के एफसीई से यूएफसीई की राशि का पता लगाना।
सी) चरण 3: विनिमय दर में उतार-चढ़ाव के कारण संस्था के यूएफसीई एक्सपोजर से संस्था को संभावित नुकसान का अनुमान लगाना।
डी) चरण 4: संस्था की समग्र लाभप्रदता पर संभाव्य /संभावित हानि के प्रभाव के आधार पर बैंक के संस्था के प्रति एक्सपोजर पर वृद्धिशील प्रावधानीकरण और पूंजी आवश्यकताओं को बनाए रखना।
5. बैंकों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर, परिचालन स्पष्टता और प्राप्त जानकारी की सटीकता के लिए दिशा-निर्देशों में कुछ संशोधन किए गए थे। इनमें अन्य बातों के साथ-साथ, संस्थाओं से (स्व-प्रमाणित / लेखापरीक्षित यूएफ़सीई प्रमाणपत्रों के माध्यम से) सीधे यूएफ़सीई पर जानकारी एकत्र करने की अनुमति देना; यूएफसीई के लिए वृद्धिशील प्रावधानीकरण आवश्यकता के पूंजी उपायों पर स्पष्टीकरण; और यदि बैंक संस्था से यूएफसीई के बारे में जानकारी प्राप्त करने में असमर्थ है तो उक्त से संबंधित उपाय भी शामिल थे। बैंकों को छोटी संस्थाओं में अपने एक्सपोजर के लिए एक वैकल्पिक पद्धति का पालन करने का विकल्प भी दिया गया था। इस वैकल्पिक पद्धति के तहत, छोटी संस्थाओं से यूएफसीई के बारे में जानकारी प्राप्त करने के बजाय, बैंक ऐसे एक्सपोजर के लिए 10 बीपीएस की वृद्धिशील प्रावधान बनाए रख सकते हैं।
6. इसके अलावा, कुछ एक्सपोजर को इन निदेशों के दायरे से बाहर रखा गया था, अर्थात्, अंतर-बैंक एक्सपोजर, भारत के बाहर निगमित बहुराष्ट्रीय निगमों के इंट्रा-ग्रुप एक्सपोजर और उन संस्थाओं के एक्सपोजर, जिन्होंने भारतीय बैंकिंग प्रणाली से उधार नहीं लिया है।
निदेशों में महत्वपूर्ण बदलाव
7. इस विषय पर सभी निदेशों को एक ही स्थान पर समेकित करने के अलावा, इन निदेशों में शामिल किए गए प्रमुख परिवर्तन निम्नानुसार हैं:
7.1 संस्था की परिभाषा: वर्तमान में, बैंकों द्वारा सभी संस्थाओं के यूएफसीई का आकलन किए जाने की आवश्यकता है। 'संस्था' शब्द को उन संस्थाओं के रूप में परिभाषित किया गया है, जिन्होंने बैंकों से उधार लिया है, जिसमें भारतीय रुपया और अन्य मुद्राओं में उधार लेना शामिल है, भले ही एक्सपोजर / संस्था का मान कुछ भी हो। समीक्षा करने पर, संस्था की संशोधित परिभाषा में कहा गया है कि "संस्था" का अर्थ एक प्रतिपक्ष है, जिसके पास किसी भी मुद्रा में बैंक का एक्सपोजर है।
7.2 यूएफसीई दिशानिर्देशों से छूट: वर्तमान में, बैंकों के किसी संस्था के प्रति केवल डेरिवेटिव लेनदेन से उत्पन्न होने वालेएक्सपोजर को यूएफसीई दिशा-निर्देशों के दायरे से बाहर रखा गया है। इस छूट का विस्तार करके फैक्टरिंग लेनदेन को शामिल किया गया है। तदनुसार, बैंकों के किसी संस्था के प्रति केवल डेरिवेटिव लेनदेन और/या फैक्टरिंग लेनदेन से उत्पन्न होने वाले एक्सपोजर को यूएफसीई दिशानिर्देशों के दायरे से बाहर रखा जाएगा। इसके अलावा, और स्पष्टता प्रदान करने के लिए, इन दिशानिर्देशों के दायरे से छूट प्राप्त संस्थाओं को अलग से विवरण दिया गया है।
7.3 छोटी संस्थाओं के प्रति एक्सपोजर के लिए वैकल्पिक तरीका: वर्तमान में, बैंकों के पास उन 'छोटी संस्थाओं' के प्रति एक्सपोजर के लिए एक वैकल्पिक पद्धति का पालन करने का विकल्प है, जिनमें ए) यूएफसीई है; और बी) वे अपने यूएफ़सीई के बारे में बैंक को जानकारी प्रदान करने की स्थिति में नहीं हैं। हालांकि, ऐसी संस्थाओं से यूएफसीई के बारे में जानकारी प्राप्त किए बिना [उपर्युक्त (बी) देखें)], बैंक यह पता लगाने की स्थिति में नहीं होंगे कि संस्था के पास यूएफ़सीई है या नहीं [उपर्युक्त (ए) देखें)]। इस मुद्दे का समाधान करने के लिए, वैकल्पिक पद्धति को 'छोटी संस्थाओं' के प्रति एक्सपोजर के लिए लागू किया गया है, जिनके पास एफ़सीई है, यूएफ़सीई के बजाय, और जो अपने यूएफ़सीई पर जानकारी प्रदान करने की स्थिति में नहीं हैं। इसके अलावा, इस उद्देश्य के लिए 'छोटी संस्थाओं' की परिभाषा को संशोधित किया गया है।
7.4 वृद्धिशील पूंजी आवश्यकता: वर्तमान में, अंतिम पंक्ति में आने वाले एक्सपोजर के लिए वृद्धिशील पूंजी आवश्यकता जोखिम भार में 25 प्रतिशत की वृद्धि के रूप में प्रदान की गयी है। यह स्पष्ट किया जाता है कि वृद्धिशील आवश्यकता जोखिम भार में 25 प्रतिशत अंक की वृद्धि है। उदाहरण के लिए, यदि कोई संस्था, जो अन्यथा 50% जोखिम भार को आकर्षित करती है, अंतिम पंक्ति में आती है तो लागू जोखिम भार 75% (50% + 25%) होगा। इसका कारण यह है कि एक ही पंक्ति में आने वाले एक्सपोजर के जोखिम में समान वृद्धि होगी, भले ही लागू मूल जोखिम भार कुछ भी हो।
_____________________________________________________________
|