06 अप्रैल 2017
भारतीय रिज़र्व बैंक की विकासात्मक और विनियामकीय नीतियों से संबंधित वक्तव्य
यह विवरण भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा हाल ही में घोषित किए गए नीतिगत विवरणों द्वारा किए गए विविध विकासात्मक और विनियामकीय नीतिगत उपायों के संबंध में हुई प्रगति की समीक्षा प्रस्तुत करता है और चलनिधि प्रबंधन ढांचे को और अधिक युक्तिसंगत बनाने के लिए नए उपायों का निर्धारण करता है; ताकि बैंकिंग विनियमन और पर्यवेक्षण को सुदृढ़; वित्तीय बाजारों को व्यापक और गहन बनाया जा सके तथा भुगतान एवं निपटान प्रणालियों की कुशलता में वृद्धि करते हुए वित्तीय सेवाओं की पहुंच को विस्तार प्रदान किया जा सके।
I. मौद्रिक नीति परिचालनों के लिए चलनिधि प्रबंधन ढांचा
2. चलनिधि प्रबंधन ढांचे को अप्रैल 2016 में संशोधित करते हुए, टिकाऊ और प्रतिरोधात्मक दानों प्रकार की चलनिधि के संबंध में आश्वस्त किया गया था जिसका उद्देश्य प्रणाली में औसत प्रत्याशित चलनिधि की कमी को क्रमिक रूप से कम करते हुए उसे तटस्थता की स्थिति तक लाया जा सके। इस आश्वासन के परिप्रेक्ष्य में भारतीय रिज़र्व बैंक ने वर्ष के दौरान 8 नवंबर 2016 तक सक्रिय रूप से खुला बाजार खरीद परिचालनों, निवल फोरेक्स बाजार परिचालनों और सरकारी प्रतिभूतियों की पुन:-खरीद के माध्यम से ₹ 2.1 ट्रिलियन की टिकाऊ चलनिधि बाजार में डाल दी। इससे प्रणालीगत स्तर पर प्रत्याशित चलनिधि की कमी दैनिक औसत आधार पर ति1 में लगभग ₹ 813 बिलियन घट गई और ति2 में ₹ 292 बिलियन तथा ति3 (8 नवंबर 2016 तक) में 64 बिलियन का अधिशेष हो गया।
3. विमुद्रीकरण (नोटबंदी) के बाद, निरंतर बड़ी मात्रा में ढांचागत चलनिधि अधिशेष ने बैंकिंग प्रणाली को प्रभावित किया है। रिज़र्व बैंक ने परंपरागत और अपरंपरागत लिखतों दोनों के मिश्रित माध्यम से अधिशेष चलनिधि को अवशोषित कर लिया ताकि मुद्रा बाजार की दरें रेपो दर के समकक्ष बनी रहें। जनवरी के पूर्वार्द्ध में शिखर पर पहुंचे अधिशेष के आकार में क्रमिक रूप से कमी आने के साथ ही साथ और एमएसएस के तहत प्राधिकृत की गई प्रतिभूतियों की अवधि समाप्त होने के कारण रिज़र्व बैंक ने अधिशेष चलनिधि को अवशोषित करने के लिए क्रमिक रूप से परिवर्तनशील दर रिवर्स रेपो परिचालनों की ओर कदम बढ़ाया है, जिसमें से कुछ 2017-18 तक जारी रह सकते हैं।
4. अधिशेष चलनिधि का प्रबंधन: रिज़र्व बैंक प्रणालीगत चलनिधि के संबंध में तटस्थता के समकक्ष स्थिति प्राप्त करने के लिए कटिबद्ध है जो मौद्रिक नीति के रुझान के अनुरूप ही है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के प्रति, रिज़र्व बैंक लिखतों के मिश्रण का उपयोग करेगा ताकि बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के अनुरूप सभी सामान्य चलनिधि अपेक्षाओं को पूरा किया जा सके:
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परिचालन में मौजूद मुद्रा का विस्तार क्रमिक रूप से नोटबंदी से जुड़े कुछ अधिशेष को अलग कर देगा, जबकि शेष प्रभावों को परिवर्तनशील रिवर्स रेपो नीलामियों, जिसमें दीर्घावधि को तरजीह दी जाएगी, के माध्यम से प्रबंधित किया जाएगा।
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अन्य स्रोतों से प्राप्त होने वाली चलनिधि को खजाना बिलों और दिनांकित प्रतिभूतियों का उपयोग करते हुए बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) के तहत परिचालनों से नियंत्रित किया जाएगा।
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यदि अपेक्षित हुआ तो, प्रणालीगत चलनिधि को तटस्थता के स्तर तक लाने के दृष्टिकोण से खुला बाजार परिचालनों (ओएमओ खरीद और बिक्री) के जरिए टिकाऊ चलनिधि को प्रबंधित किया जाएगा।
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सरकारी परिचालनों के जरिए उत्पन्न होने वाले स्थायी अधिशेषों को समुचित अवधि वाले नकदी प्रबंधन बिलों (सीएमबी) के निर्गम द्वारा प्रबंधित किया जाएगा जो कि भारत सरकार के साथ किए गए समझौता ज्ञापन के अनुसार होगा।
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विभिन्न परिपक्वताओं वाली परिवर्तनशील रेपो दर/ रिवर्स रेपो दर नीलामियों के रूप में परिचालनों को युक्तिपरक बनाना जारी रखा जाएगा ताकि दिन-प्रति-दिन की चलनिधि आवश्यकताओं को नियंत्रित किया जा सके।
5. रिज़र्व बैंक ने नवंबर 2015 से भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम में संशोधन करते हुए स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) को लागू करने का प्रस्ताव किया हुआ है, जो सरकार के पास विचाराधीन है। इस सुविधा को लागू करने से रिज़र्व बैंक के पास अपने चलनिधि परिचालनों को प्रबंधित करने के लिए और अधिक लचीलापन उपलब्ध हो सकेगा।
6. मौद्रिक नीति दर संबंधी दायरे को संकीर्ण बनाना: मौद्रिक नीति ढांचे को संशोधित और सुदृढ़ बनाने हेतु बनाए गए विशेषज्ञ समूह (अध्यक्ष: डॉ. ऊर्जित आर. पटेल) की सिफारिशों के अनुसरण में नीतिगत दर संबंधी दायरे को अप्रैल 2016 में +/-100 आधार अंक से कम करके +/- 50 आधार अंक को इस दृष्टि से संकीर्ण किया गया था ताकि मौद्रिक नीति के परिचालन लक्ष्य अर्थात् भारित औसत काल दर (डब्ल्यूएसीआर) को रेपो दर के साथ बेहतर रूप से सुसंगत बनाया जा सके। अत्यधिक कठोर चलनिधि स्थितियों या लगातार अधिशेष चलनिधि की स्थितियों में जब बाजार के प्रतिभागीगण एक दिवसीय चलनिधि के लिए बाजार की किसी एक दिशा में हों तो, उस स्थिति में संकीर्ण दायरेके माध्यम से नीतिगत दर को परिचालन लक्ष्य को बखूबी सुसंगत बनाया जा सकता है। तदनुसार, यह निर्णय लिया गया है कि तत्काल प्रभाव से नीतिगत दर को +/-25 आधार अंक के दायरे में रखने के बजाय +/- 50 आधार अंक दायरे में रखा जाए। इसके परिणामस्वरूप, चलनिधि समायोजन सुविधा के तहत रिवर्स रेपो दर नीतिगत रेपो दर से 25 आधार अंक नीचे रहेगी और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर नीतिगत रेपो दर से 25 आधार अंक अधिक रहेगी।
7. एलएएफ मीयादी रेपो के तहत संपार्श्विक का प्रतिस्थापन : वर्तमान में एलएएफ प्रतिभागियों के लिए मीयादी रेपो के तहत रिज़र्व बैंक को संपार्श्विक के रूप में पेशकश की गई प्रतिभूति को प्रतिस्थापित करने का कोई प्रावधान नहीं है। यह निर्णय लिया गया है कि एलएएफ के तहत मीयादी रेपो में बाजार प्रतिभागियों द्वारा पेशकश किए गए संपार्श्विक को प्रतिस्थापित करने की अनुमति प्रदान की जाए, जो संपार्श्विकों की तरलता में वृद्धि करते हुए उन्हें परिचालनगत लचीलापन उपलब्ध कराएगी। यह कार्यपद्धति 17 अप्रैल 2017 से उपलब्ध होगी।
II. बैंकिंग विनियमन और पर्यवेक्षण
8. बैंकों के लिए संशोधित त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) संबंधी रूपरेखा – वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (एफएसडीसी-एससी) की उप-समिति की सिफारिशों के आधार पर वित्तीय पर्यवेक्षण बोर्ड (बीएफएस) के अनुमोदन से बैंकों की वर्तमान पीसीए रूपरेखा की समीक्षा की गई है, उसे अद्यतन बनाते हुए अंतिम रूप दिया गया है। संकेतकों में पूंजी [जोखिम भारित आस्तियों की तुलना में पूंजी अनुपात (सीआरएआर) एवं सामान्य इक्विटी टिअर 1 (सीईटी1) अनुपात], निवल अनर्जक आस्ति (एनपीए) अनुपात और आस्तियों पर प्रतिलाभ शामिल हैं, जो अद्यतित पीसीए में सक्रिय होंगे। लीवरेज पर अतिरिक्त रूप से निगरानी रखी जाएगी। पीसीए के अंतर्गत आने वाले बैंकों को रिज़र्व बैंक द्वारा तय की गई इस प्रकार की अनिवार्य एवं विवेकपूर्ण कार्रवाई के अनुसार कार्य करना होगा। बैंकों के लिए संशोधित पीसीए रूपरेखा अप्रैल 2017 के मध्य तक जारी की जाएगी।
9. आस्ति पुनर्निर्माण कंपनियां (एआरसी) : निवल स्वाधिकृत निधियों (एनओएफ) के न्यूनतम स्तर को बढ़ाना - वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्रचना एवं प्रतिभूति हित का प्रवर्तन (सरफेसी) अधिनियम, 2002 में पूर्व न्यूनतम प्रावधान 'स्वाधिकृत निधियों का ₹2 करोड़', को वर्ष 2016 में संशोधित 'निवल स्वाधिकृत निधियों का ₹2 करोड़ (एनओएफ)' कर दिया गया था, साथ ही वित्तीय आस्तियों के 15 प्रतिशत की स्वाधिकृत निधि की उच्चतम सीमा को हटा दिया गया था। एआरसी की बढ़ती भूमिका और अधिक-से-अधिक नकदी आधारित लेनदेनों के मद्देनज़र यह प्रस्ताव किया गया है कि एआरसी के लिए न्यूनतम ₹100 करोड़ का एनओएफ निर्धारित किया जाए। इस संबंध में आवश्यक अनुदेश अप्रैल 2017 के अंत तक जारी किए जाएंगे।
10. क्रेडिट में आंशिक ऋण वृद्धि (पीसीई) : पूंजी की आवश्यकता – यह प्रस्ताव किया गया है कि यदि पीसीई वर्धित बांड की पूर्व-वृद्धि रेटिंग निर्गम के वक्त की रेटिंग के मुकाबले बाद में बेहतर होती हैं, तो परिकलित पूंजी, पूर्व-वृद्धि एवं पश्च-वृद्धि रेटिंग में प्रचलित अंतर के मुताबिक होंगी और यह निर्गम के वक्त या तो वर्तमान न्यूनतम सीमा (फ्लोर) (पीसीई वंर्धित बांड के निर्गम के वक्त पीसीई के लिए पूंजी संबंधी आवश्यकता) अथवा रेटिंग में सुधार के स्तरों की संख्या को बनाए रखने के संबंध में रोक दोनों से मुक्त होंगे। आवश्यक अनुदेश अप्रैल 2017 के अंत तक जारी कर दिए जाएंगे। यह प्रस्ताव भी किया गया है कि बैंकों को पीसीई के लिए पात्र बनने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा मान्यता-प्राप्त दो क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा अपने बांड की रेटिंग करवानी होंगी।
11. बैंकिंग केंद्र (बैंकिंग आउटलेट्स) : अंतिम दिशानिर्देश – बैंकिंग केंद्रों के संबंध में अंतिम दिशानिर्देश जारी करने का प्रस्ताव किया गया है, जिसमें 'बैंकिंग केंद्र' क्या है और कम सेवा प्राप्त क्षेत्रों में बैंकिंग केंद्रों को खोलने के प्रयोजनार्थ बैंक की भिन्न-भिन्न रूप में उपस्थिति में एकरूपता लाने के संबंध में स्पष्टीकरण दिया गया है। यह दिशानिर्देश वर्तमान शाखा लाइसेंसिंग दिशानिर्देशों का अतिक्रमण करेगा। विस्तृत दिशानिर्देश अप्रैल 2017 के अंत तक जारी कर दिए जाएंगे।
12. स्थावर संपदा निवेश न्यास (आरईआईटीएस) एवं आधारभूत संरचना निवेश न्यास (आईएनवीआईटीएस) : बैंकों की सहभागिता - भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने आरईआईटीएस एवं आईएनवीआईटीएस के लिए विनियम निर्धारित किया है और रिज़र्व बैंक से अनुरोध किया है कि वे बैंकों को इन योजनाओं में भाग लेने की अनुमति प्रदान करें। वर्तमान में, बैंकों को इक्विटी-संबद्ध म्यूचुअल फंड, जोखिम पूंजी निधि (वीसीएफ) एवं इक्विटी में उनके एनओएफ के 20 प्रतिशत तक निवेश करने की अनुमति प्राप्त है। यह प्रस्ताव किया गया है कि बैंकों को इस अधिकतम सीमा में रहते हुए आरईआईटीएस एवं आईएनवीआईटीएस में निवेश करने की अनुमति प्रदान की जाए। विस्तृत दिशानिर्देश मई 2017 के अंत तक जारी कर दिए जाएंगे।
13. प्रतिचक्रीय पूंजी बफर – रिज़र्व बैंक द्वारा 05 फरवरी 2015 को जारी किए गए दिशनिर्देशों के अनुसार प्रतिचक्रीय पूंजी बफर की रूपरेखा (सीसीसीबी) लागू की गई थी, जिसमें सूचित किया गया था कि सीसीसीबी को परिस्थितियों के मुताबिक सक्रिय किया जाएगा और यह निर्णय सामान्यतः चार तिमाहियों की समयावधि पूर्व घोषित किए जाएंगे। इस रूपरेखा में जीडीपी की तुलना में ऋण के अंतर को एक प्रमुख संकेतक के रूप में लिया गया है, जिसका अन्य पूरक संकेतकों, यथा, तीन वर्षों की चल अवधि के लिए ऋण-जमा (सी-डी) अनुपात (जीडीपी की तुलना में ऋण का अंतर और जीएनपीए वृद्धि के साथ उसके पारस्परिक संबंध को देखते हुए), औद्योगिक संभावना (आईओ) आकलन सूचकांक (जीएनपीए वृद्धि के साथ उसके पारस्परिक संबंध पर विधिवत ध्यान देते हुए), एवं ब्याज कवरेज अनुपात (जीडीपी की तुलना में ऋण के अंतर के साथ उसके पारस्परिक संबंध पर ध्यान देते हुए) के साथ उपयोग किया जा सकता है। सीसीसीबी संकेतकों की समीक्षा और अनुभवजन्य परीक्षणों के आधार पर यह निर्णय लिया गया है कि इस समय सीसीसीबी को लागू करना जरूरी नहीं है।
III. वित्तीय बाजार
14. फॉरेक्स एक्पोज़र के लिए हेजिंग सुविधा को सरल बनाना : दिशानिर्देशों का प्ररूप - रिज़र्व बैंक ने 25 अगस्त 2016 को एक योजना की शुरूआत की थी, जिसमें विनिमय दर जोखिम का सामना कर रहे निवासी अथवा अनिविासी संस्थाओं को किसी भी समय 30 मिलियन अमरीकी डॉलर तक की सीमा के लिए सरलीकृत प्रक्रिया के साथ हेजिंग करने की अनुमति दी गई थी। प्रस्तावित योजना से संबंधितदिशानिर्देश का प्रारूप अप्रैल 2017 के मध्य तक आम जनता केव्यापक फीडबैक के लिए मुख्य बेवसाइट पर प्रस्तुत किया जा रहा है।
15. त्रि-पक्षीय रेपो की शुरूआत: ड्राफ्ट फ्रेमवर्क – भारत में कार्पोरेट बांड बाजार गतिविधि से संबंधित कार्यकारी समूह (अध्यक्ष: श्री एच. आर. खान) द्वारा की गई सिफारिश के अनुसार त्रि-पक्षीय रेपो की शुरूआत करनेसे संबंधित ड्राफ्ट पॉलिसी फ्रेमवर्क अप्रैल 2017 के मध्य तक आम जनता के व्यापक फीडबैक के लिए मुख्य बेवसाइट पर प्रस्तुत किया जा रहा है।
IV. भुगतान और निपटान
16. राष्ट्रीय इलेक्ट्रानिक निधि अंतरण (एनईएफटी) के लिए अतिरिक्त निपटान बैच की शुरूआत – भुगतान और निपटान प्रणाली विज़न 2018 के दस्तावेज में यह उल्लेख किया गया है कि नईएफटीनिपटान बैचों की समयावधि को एक घंटे के बैच से घटाकर आधे घंटे का बैच किया जाएगा। फलस्वरूप, 11 अतिरिक्त निपटान बैच पूर्वाह्न 8:30 से प्रारंभ हो जाएंगे जिससे दिनभर में आधे घंटे के बैचों की कुल संख्या 23 हो जाएगी। इससे एनईएफटी प्रणाली की कुशलता बढ़ेगी तथा ग्राहकों को अधिक सुविधाजनक हो जाएगा। बैच की शुरूआत पूर्वाह्न 8:00 बजे से होगी और अंतिम बैच का समय यथावत अर्थात शाम 7:00 रहेगा। वापसी-व्यवस्था वर्तमान प्रथा के अनुसार पूर्ववत अर्थात बी+2 घंटे (निपटान बैच समय +दो घंटे) बनी रहेगी।
17. मर्चेंट डिस्काउंट दर (एमडीआर) : सुसंगत बनाना – रिजर्व बैंक ने 16 फरवरी 2017 को ‘‘डेबिट कार्ड लेनदेन के लिए मर्चेंट डिस्काउंट दर को सुसंगत बनाना’’ के संबंध में एक ड्राफ्ट परिपत्र जारी किया था। इस संबंध में सरकार, बैंक, कार्ड नेटवर्क, भारतीय बैंक संघ, भारतीय भुगतान परिषद, निजी संस्थाओं और वैयक्तिकों से प्राप्त व्यापक फीडबैक का परीक्षण किया जा रहा है। जब तक अंतिम दिशानिर्देश जारी नहीं किए जाते हैं, तब तक डेबिट कार्ड लेनदेन के लिए एमडीआर संबंधी मौजूदा दिशानिर्देश लागू रहेंगे।
18. भारत में प्री-पेड भुगतान लिखत (पीपीआई) जारी करना और उनका परिचालन – रिज़र्व बैंक ने 20 मार्च 2017 को ‘‘भारत में प्री-पेड भुगतान लिखत (पीपीआई) जारी करना और परिचालन संबंधी मास्टर निर्देश’’ से संबंधित ड्राफ्ट परिपत्र जारी किया था जिस पर अभिमत देने की अंतिम तारीख 31 मार्च 2017 तक थी। अनेक पक्षों से प्राप्त अनुरोधों के आधार पर फीडबैक/अभिमत प्राप्त करने की तारीख को 15 अप्रैल 2017 तक बढ़ा दिया गया है। पीपीआई से संबंधित अंतिम दिशानिर्देश मई 2017 तक जारी किए जाएंगे।
V. वित्तीय समावेशन
19. वित्तीय साक्षरता संबंधी प्रायोगिक परियोजना : वित्तीय साक्षरता के लिए केंद्र (सीएफएल) – रिज़र्व बैंकद्वारा ब्लॉक स्तरपर वित्तीय साक्षरता संबंधी एक प्रायोगिक परियोजना प्रारंभ की जा रही है ताकि वित्तीय साक्षरता के लिए नवोन्मेषी और सहभागी दृष्टिकोण की संभावना तलाश की जा सके।इस प्रायोगिक परियोजना को गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा प्रायोजक बैंक के साथ मिलकर 9 राज्यों के 80 ब्लॉकों में प्रारंभ किया जाएगा। बैंकों के साथ मिलकर इस परियोजना को कार्यान्वित करने के लिए जमाकर्ता शिक्षा और जागरूकता निधि में पंजीकृत छह एनजीओ अर्थात क्रिसिल फाउंडेशन, मुबंई;धन फाउंडेशन; स्वाधार फिन ऐक्सेस, मुंबई; इंडियन स्कूल ऑफ माइक्रो फायनैंस फार वीमेन (आईएसएमडब्ल्यू);समर्पित, छत्तीसगढ़;और पीएसीई फाउंडेशन का चयन किया गया है।प्रायोगिक परियोजना का कार्यान्वन निम्नलिखित व्यापक उद्देश्यों के साथ किया जाएगा: सक्रिय बचत और बेहतर उधारी; वित्तीय योजना और लक्ष्य-निर्धारण; तथा डिजिटलमाध्यमों को अपनाना और उपभोक्ता संरक्षण। सीएफएल की स्थापना एक समान नाम और एम समान लोगो–‘‘वित्तीय साक्षरता के लिए मुद्रा-वार केंद्र’’ के अंतर्गत की जाएगी। प्रायोजक बैंकों को तीन महीनों के भीतर अर्थात 30 जून 2017 तक निर्दिष्ट एनजीओ के साथ संविदा करनी होगी। उसके उपरांत, एनजीओ को बैंकों के साथ की गई संविदा के तीन महीनों के भीतर सीएफएल का परिचालन शुरू करना होगा।
जोस जे. कट्टूर
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2016-2017/2691 |