18 मई 2022
मौद्रिक नीति समिति की 2 से 4 मई 2022 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त
[भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडएल के अंतर्गत]
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45जेडबी के तहत गठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की पैंतीसवीं बैठक 2 और 4 मई 2022 के दौरान उभरती मुद्रास्फीति-वृद्धि की गतिशीलता के पुनर्मूल्यांकन और 6-8 अप्रैल 2022 की बैठक के बाद के गतिविधियों के प्रभाव के लिए एक ऑफ-साइकिल बैठक के रूप में आयोजित की गई थी।
2. बैठक में सभी सदस्य – डॉ. शशांक भिड़े, माननीय वरिष्ठ सलाहकार, नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च, दिल्ली; डॉ. आशिमा गोयल, अवकाश प्राप्त प्रोफेसर, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च, मुंबई; प्रो. जयंत आर. वर्मा, प्रोफेसर, भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद; डॉ. राजीव रंजन, कार्यपालक निदेशक (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडबी (2) (सी) के अंतर्गत केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित रिज़र्व बैंक के अधिकारी); डॉ. माइकल देवब्रत पात्र, मौद्रिक नीति के प्रभारी उप गवर्नर उपस्थित रहें और इसकी अध्यक्षता श्री शक्तिकान्त दास, गवर्नर द्वारा की गई।
3. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडएल के अनुसार, रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति समिति की प्रत्येक बैठक के चौदहवें दिन इस बैठक की कार्यवाहियों का कार्यवृत्त प्रकाशित करेगा जिसमें निम्नलिखित शामिल होगा:
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मौद्रिक नीति समिति की बैठक में अपनाया गया संकल्प;
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उपर्युक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर मौद्रिक नीति के प्रत्येक सदस्य को प्रदान किया गया वोट; और
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उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर धारा 45ज़ेडआई की उप-धारा (11) के अंतर्गत मौद्रिक नीति समिति के प्रत्येक सदस्य का वक्तव्य।
4. एमपीसी ने स्टाफ के समष्टि आर्थिक मूल्यांकन और संभावना के लिए विभिन्न जोखिमों से संबंधित वैकल्पिक परिदृश्यों की विस्तार से समीक्षा की। उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए और मौद्रिक नीति के रुख पर व्यापक चर्चा के बाद, एमपीसी ने निम्नलिखित संकल्प को अपनाया।
संकल्प
5. वर्तमान और उभरती समष्टि आर्थिक परिस्थिति का आकलन करने के आधार पर मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आज (4 मई 2022) अपनी बैठक में यह निर्णय लिया है कि:
परिणामस्वरूप, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 4.15 प्रतिशत और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 4.65 प्रतिशत हो गई है।
ये निर्णय, संवृद्धि को सहारा प्रदान करते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति को +/- 2 प्रतिशत के दायरे में रखते हुए 4 प्रतिशत का मध्यावधि लक्ष्य हासिल करने के अनुरूप है।
इस निर्णय में अंतर्निहित मुख्य विचार नीचे दिए गए विवरण में व्यक्त की गई हैं;
आकलन
वैश्विक अर्थव्यवस्था
6. अप्रैल 2022 में एमपीसी की बैठक के बाद से, भू-राजनीतिक तनावों और प्रतिबंधों से प्रेरित व्यवधान, कमियाँ और कीमतों में बढ़ोत्तरी स्थिर बनी हुई हैं और अधोगामी जोखिम बढ़ गए हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने तीन महीने से भी कम अंतराल में 2022 के लिए वैश्विक उत्पादन संवृद्धि के अपने पूर्वानुमान को 0.8 प्रतिशत अंक घटाकर 3.6 प्रतिशत कर दिया है। विश्व व्यापार संगठन ने 2022 के लिए विश्व व्यापार संवृद्धि के अनुमान को 1.7 प्रतिशत अंक घटाकर 3.0 प्रतिशत कर दिया है।
घरेलू अर्थव्यवस्था
7. मार्च-अप्रैल में कोविड-19 की तीसरी लहर के कम होने और प्रतिबंधों में ढील के साथ घरेलू आर्थिक गतिविधि स्थिर हो गई। ऐसा प्रतीत होता है कि शहरी मांग ने विस्तार बनाए रखा है लेकिन ग्रामीण मांग में कुछ कमजोरी बनी हुई है। निवेश गतिविधि जोर पकड़ती दिख रही है। वस्तु निर्यात ने अप्रैल में लगातार चौदहवें महीने दोहरे अंकों में विस्तार दर्ज किया। घरेलू मांग में सुधार के कारण गैर-तेल गैर-स्वर्ण के आयात में भी मजबूती वृद्धि हुई।
8. समग्र प्रणाली चलनिधि में वृहद अधिशेष बनी रही। 22 अप्रैल 2022 तक बैंक ऋण में 11.1 प्रतिशत की वृद्धि (वर्ष-दर-वर्ष) हुई। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 2022-23 में (22 अप्रैल तक) 6.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर घटकर 600.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
9. मार्च 2022 में, हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति फरवरी में 6.1 प्रतिशत से बढ़कर 7.0 प्रतिशत हो गई, जो बड़े पैमाने पर भू-राजनीतिक स्पिलओवर के प्रभाव को दर्शाती है। खाद्य मुद्रास्फीति 154 आधार अंक बढ़कर 7.5 प्रतिशत और मूल मुद्रास्फीति 54 आधार अंक बढ़कर 6.4 प्रतिशत हो गई। मुद्रास्फीति में तेजी से वृद्धि ऐसे माहौल में हो रही है जिसमें दुनिया भर में मुद्रास्फीति के दबाव बढ़ रहे हैं। आईएमएफ का अनुमान है कि 2022 में उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति 2.6 प्रतिशत अंक बढ़कर 5.7 प्रतिशत हो जाएगी और उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में 2.8 प्रतिशत अंक बढ़कर 8.7 प्रतिशत हो जाएगी।
संभावना
10. अत्यधिक अनिश्चितता मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र को घेर हुए है, जो उभरती भू-राजनीतिक स्थिति पर काफी निर्भर है। वैश्विक कमोडिटी मूल्य गतिशीलता भारत में खाद्य मुद्रास्फीति का कारण बनी हुई है, जिसमें मुद्रास्फीति संवेदनशील वस्तुओं की कीमतें शामिल हैं जो उत्पादन हानि और प्रमुख उत्पादक देशों द्वारा निर्यात प्रतिबंधों के कारण हो रही वैश्विक कमी से प्रभावित हैं। अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतें उच्च लेकिन अस्थिर बनी हुई हैं, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रभावों के माध्यम से मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र के लिए काफी ऊर्ध्वगामी जोखिम पैदा कर रही हैं। आने वाले महीनों में मूल मुद्रास्फीति के उच्च बने रहने की संभावना है, जो उच्च घरेलू पंपों कीमतों और आवश्यक दवाओं की कीमतों के दबाव को दर्शाती है। प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में कोविड-19 संक्रमण के फिर से बढ़ने के कारण पुनः लगने वाले लॉकडाउन और आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान लंबे समय तक उच्च लॉजीस्टिक लागत को बनाए रख सकते हैं। ये सभी कारक एमपीसी के अप्रैल के वक्तव्य में निर्धारित मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र के लिए महत्वपूर्ण ऊर्ध्वगामी जोखिम पैदा करते हैं।
11. जहां तक घरेलू आर्थिक गतिविधि के संभावनाओं का संबंध है, सामान्य दक्षिण-पश्चिम मानसून का पूर्वानुमान खरीफ उत्पादन की संभावनाओं को बढ़ा देता है। तीसरी लहर की कमी और बढ़ते टीकाकरण कवरेज के कारण संपर्क-गहन सेवाओं में सुधार जारी रहने की उम्मीद है। निवेश गतिविधि को मजबूत सरकारी पूंजीगत व्यय, क्षमता उपयोग में सुधार, सुदृढ़ कॉर्पोरेट बैलेंस शीट और अनुकूल वित्तीय स्थितियों से संवृद्धि मिलनी चाहिए। दूसरी ओर, उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीति के सामान्यीकरण से अस्थिर प्रभाव-विस्तार के साथ बिगड़ते बाह्य वातावरण, वस्तुओं की उच्च कीमतें और लगातार आपूर्ति बाधाओं से विकट बाधाएँ पैदा होती हैं। सभी पहलुओं पर विचार करने पर, भारतीय अर्थव्यवस्था भू-राजनीतिक परिस्थितियों में गिरावट का सामना करने में सक्षम प्रतीत होती है, लेकिन जोखिमों संतुलन की निरंतर निगरानी करना विवेकपूर्ण है।
12. इस पृष्ठभूमि में, एमपीसी का विचार है कि जबकि आर्थिक गतिविधि अंतर्निहित बुनियादी सिद्धांतों और बफर के बल पर आघात सहनीयता के साथ दुनिया का सामना करने वाली ताकतों के भंवर को मार्ग निर्देशन कर रही है, निकट अवधि के मुद्रास्फीति संभावनाओं के जोखिम तेजी से मूर्त हो रहे हैं, जैसा कि मार्च के मुद्रास्फीति प्रिंट और उसके बाद की गतिविधियों में परिलक्षित होता है। इस परिवेश में, एमपीसी को उम्मीद है कि मुद्रास्फीति उच्च बनी रहेगी, जिससे मुद्रास्फीति की उम्मीदों को स्थिर करने और दूसरे दौर के प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए दृढ़ और कैलिब्रेटेड कदमों की आवश्यकता होगी। तदनुसार, एमपीसी ने नीतिगत रेपो दर को 40 आधार अंक बढ़ाकर 4.40 प्रतिशत करने का निर्णय लिया। एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करते हुए निभावकारी बने रहने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति आगे चलकर संवृद्धि को सहारा प्रदान करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे।
13. एमपीसी के सभी सदस्य – डॉ. शंशाक भिडे, डॉ. आशिमा गोयल, प्रो. जयंत आर. वर्मा, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने नीतिगत रेपो दर को 40 आधार अंक बढ़ाकर 4.4 प्रतिशत करने के लिए सर्वसम्मति से मतदान किया।
14. सभी सदस्यों अर्थात् डॉ. शशांक भिड़े, डॉ. आशिमा गोयल, प्रो. जयंत आर. वर्मा, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने सर्वसम्मति से निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करते हुए निभावकारी बने रहने के लिए सर्वसम्मति से मतदान किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति आगे चलकर संवृद्धि को सहारा प्रदान करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे।
15. एमपीसी की बैठक का कार्यवृत्त 18 मई 2022 को प्रकाशित किया जाएगा।
16. एमपीसी की अगली बैठक 6-8 जून 2022 के दौरान निर्धारित है।
पॉलिसी रेपो दर को बढ़ाकर 4.4 फीसदी करने के संकल्प पर मतदान |
सदस्य |
मत |
डॉ. शशांक भिड़े |
हाँ |
डॉ. आशिमा गोयल |
हाँ |
प्रो. जयंत आर. वर्मा |
हाँ |
डॉ. राजीव रंजन |
हाँ |
डॉ. माइकल देवब्रत पात्र |
हाँ |
श्री शक्तिकान्त दास |
हाँ |
डॉ. शशांक भिड़े का वक्तव्य
17. 6-8 अप्रैल की अपनी बैठक में, एमपीसी ने मुद्रास्फीति के दबावों के संवर्धन पर ध्यान दिया था, जो फरवरी में प्रत्याशित नहीं था। परिणामस्वरूप, वित्त वर्ष 2023 के लिए अनुमानित संभावना फरवरी में प्रदान किए गए आकलन से ऊपर औसत मुद्रास्फीति दर को दर्शाता है। अप्रैल की बैठक में वित्तीय वर्ष 2023 की पहली तिमाही के लिए वर्ष-दर-वर्ष सीपीआई मुद्रास्फीति दर 6.3 प्रतिशत अनुमानित की गई थी, जो फरवरी की बैठक में अनुमानित 4.9 प्रतिशत से अधिक थी।
18. यह भी देखा गया कि समग्र जीडीपी की संवृद्धि में सुधार, जोकि महत्वपूर्ण थी, विशेष रूप से खपत मांग के संदर्भ में अधूरी थी। वैश्विक बाजारों में आपूर्ति शृंखला में व्यवधानों को देखते हुए, संवृद्धि का माहौल भी अल्पावधि में महत्वपूर्ण अनिश्चितता के अधीन था। वित्त वर्ष 2023 के लिए जीडीपी की संवृद्धि दर अप्रैल में 7.2 प्रतिशत अनुमानित थी, जो फरवरी में अनुमानित 7.8 प्रतिशत से कम थी।
19. मुद्रास्फ़ीतिकारक दबावों के संदर्भ में नीतिगत प्रतिक्रिया की उभरती आवश्यकता को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया था। लेकिन वैश्विक आर्थिक स्थितियों के परिणामस्वरूप संवृद्धि और मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र दोनों की अनिश्चितता पर भी विचार करना महत्वपूर्ण था।
20. मार्च 2022 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति दर, जो अप्रैल की बैठक के एक सप्ताह बाद उपलब्ध हुई, ने हेडलाइन संख्या में तेज वृद्धि दिखाई और कीमतों में वृद्धि उपभोग की सभी मुख्य वस्तुओं में व्यापक रूप से फैली हुई थी। 2022 में लगातार तीसरे महीने हेडलाइन मुद्रास्फीति दर 6 प्रतिशत से ऊपर थी। मुद्रास्फ़ीतीय दबाव, जोकि बाह्य गतिविधियों- रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों से उत्पन्न आपूर्ति में व्यवधान, से काफी हद तक उत्पन्न हो रहे हैं - इंडोनेशिया द्वारा ताड़ के तेल के निर्यात पर प्रतिबंध और नए कोविड 19 मामलों के उभरने के परिणामस्वरूप चीन में आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिबंध के रूप में अतिरिक्त चिंताएँ सामने आई हैं।
21. इन बाह्य कीमतों और आपूर्ति में अचानक कमी ने खुदरा स्तर पर प्रत्यक्ष रूप से और घरेलू आपूर्ति पर लागत दबावों के माध्यम से भी परोक्ष रूप से मुद्रास्फीति के दबाव को जन्म दिया है। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में ऊर्जा और खाद्य कीमतों में वृद्धि ने घरेलू कीमतों को प्रभावित किया है। बाहरी बाजार की स्थितियों का व्यापार और चालू खाता घाटे और बदले में कीमतों पर भी प्रभाव पड़ता है। संवृद्धि को समर्थन देने वाली मौजूदा निभावकारी मौद्रिक स्थितियां भी आपूर्ति शृंखला के माध्यम से मूल्य वृद्धि आवेगों के संचरण को नियंत्रित नहीं कर रही हैं।
22. संवृद्धि के मोर्चे पर, सुधार, व्यापक संकेतकों जैसे बैंक क्रेडिट और जीएसटी संग्रह और विशिष्ट संकेतकों जैसे कि अप्रैल 2022 माह के लिए विनिर्माण और सेवाओं के लिए पीएमआई में परिलक्षित होते हैं। निर्यात, वित्त वर्ष 2022 के दौरान कुल मांग का चालक रहा है। हालांकि, 2023 में धीमी वैश्विक जीडीपी और व्यापार वृद्धि की उम्मीदों के संदर्भ में संवृद्धि के प्रक्षेपवक्र पर अनिश्चितता भी महत्वपूर्ण है।
23. मुद्रास्फीति और आर्थिक संवृद्धि की स्थिति के वर्तमान आकलन को देखते हुए, मुद्रास्फीति की गतिशीलता को रोकने के लिए मौद्रिक नीति के उपाय आवश्यक हो गए हैं। जबकि इस तरह के मौद्रिक नीति उपायों का प्रभाव अल्पावधि में संवृद्धि की गति को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है, समग्र बाहरी परिस्थितियों में यह भी आवश्यक है कि घरेलू मुद्रास्फीति के दबावों को शीघ्रता से नियंत्रित किया जाए। घरेलू आपूर्ति शृंखलाओं पर कोविड महामारी के प्रभाव को कम करने के कुछ आशावाद के साथ, अब मूल्य स्थिरता प्राप्त करने पर ध्यान देने की आवश्यकता है, साथ ही हेडलाइन मुद्रास्फीति दर 4 प्रतिशत के लक्ष्य के करीब पहुंच रही है। बदलती परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हर कदम उठाना होगा।
24. तदनुसार, मैं नीतिगत रेपो दर को 40 आधार अंक बढ़ाकर 4.4 प्रतिशत करने के लिए मतदान करता हूं।
25. मैं निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करते हुए निभावकारी बने रहने के लिए भी मतदान करता हूं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति आगे चलकर संवृद्धि का समर्थन करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे।
डॉ. आशिमा गोयल का वक्तव्य
26. वैश्विक मंदी के बावजूद भारतीय संवृद्धि काफी मजबूत बनी हुई है, खासकर जब से कोविड -19 के संभावित चौथी लहर का खतरा कम होता दिख रहा है। मांग में बढ़ोत्तरी के कारण संपर्क उद्योगों में भी पुनरुद्धार देखा जा रहा है। जैसे-जैसे अधिक से अधिक देश अपने आयात में विविधता लाना चाहते हैं, एमएसएमई निर्यात आदेशों से लाभान्वित हो रहे हैं।
27. मुद्रास्फीति, अब चिंता का विषय है। इसने अभूतपूर्व आघातों के परिणामस्वरूप मार्च में आधिकारिक और निजी पूर्वानुमानों को पीछे छोड़ दिया है। लंबे समय से चल रहे यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें उच्च बनी हुई है। इससे खाद्य पदार्थों के कीमत भी बढ़ रहे हैं।
28. भारत में पिछले आघातों का इतिहास दिखाता है कि खाद्य और तेल की कीमत मुद्रास्फीति एक साथ दूसरे दौर के प्रभावों को जन्म दे सकती है। 2010 के दशक में यही हुआ था। लेकिन अभी तक वेतन में प्रभाव अंतरण नदारद है और उपभोक्ता की मांग सौम्य है। उच्च कृषि उत्पादकता, खाद्यान्न भंडार, उचित नीतिगत प्रतिक्रिया, न्यून ऊर्जा तीव्रता और युद्ध संबंधी मूल्य दबावों में कमी के कारण ये समय भिन्न हो सकते हैं।
29. एक दूसरे के बाद आपूर्ति में विविध कमी के कारण मुद्रास्फीति उच्च बनी हुई है। फिर भी, मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण व्यवस्था में यह आवश्यक हो जाता है कि अपेक्षाओं को स्थिर करने के लिए लगातार सहन सीमा बैंक से ऊपर बनी हुई मुद्रास्फीति पर प्रतिक्रिया दी जाए।
30. वास्तविक दरों में बृहद विचलन को रोकने के लिए प्रतिक्रिया देना भी आवश्यक है, जो ओवरहीटिंग या मंदी के जोखिम का कारण बनता है। जीएफसी के बाद वास्तविक ब्याज दरें अत्यधिक नकारात्मक थीं, जिसके कारण ओवरहीटिंग हुई और 2010 के दशक में वे बड़ी सकारात्मक संख्या (4.85 प्रतिशत के शिखर पर1) तक पहुंच गईं, जिससे मंदी बढ़ गई। नीति का लक्ष्य वास्तविक दरों में संतुलन बनाना होना चाहिए और वास्तविक दरों में बड़े उतार-चढ़ाव से बचना चाहिए।
31. उचित बहाली और मुद्रास्फीति में तेज वृद्धि को देखते हुए, जिससे मुद्रास्फीति के अनुमान भी बढ़ेंगे, वास्तविक दर को बहुत अधिक नकारात्मक होने से बचाने के लिए दरों में बढ़ोतरी की आवश्यकता है। नकारात्मक वास्तविक ब्याज दरों के जोखिमों में ऐसे परिवार शामिल हैं जो स्वर्ण की खरीददारी करते हैं और इस प्रकार चालू खाते के घाटे को बढ़ाते हैं और वित्तीय मध्यस्थता को नुकसान पहुंचाते हैं।
32. अपने पिछले कार्यवृत्त में मैंने आगाह किया था कि बाहर निकलने की गति प्राप्त आंकड़ों पर निर्भर करती है और रेपो बढ़ोतरी एलएएफ कॉरिडोर के सामान्यीकरण का अनुसरण कर सकती है। बाजार पहले से ही वैश्विक जोखिम और पिछले वर्ष शुरू हुई चलनिधि में समायोजन के लिए अत्यधिक प्रतिक्रिया दे रहे थे और दरों में अत्यधिक बढ़ोतरी हुई है। चूंकि उपभोक्ता मांग सौम्य बनी हुई है, और मुद्रास्फीति से इसके और कम होने की संभावना है, मुद्रास्फीति को कम करने के लिए आवश्यक उत्पादन त्याग की मात्रा को लागू करने के लिए दर में इस तरह की अत्यधिक वृद्धि की आवश्यकता नहीं है। दर वृद्धि चक्र की शुरुआत में एक आश्चर्य करने वाली अघोषित बैठक आगे की अति-प्रतिक्रिया को कम करने के लिए बेहतर हो सकता है।
33. अतः, मैं, निभावकारी रहते हुए रेपो दर को 40 बीपीएस तक बढ़ाने के लिए मतदान करती हूँ तथा निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करते हुए यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति आगे चलकर संवृद्धि को समर्थन देते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे।
34. मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के प्रति प्रतिबद्धता का एक विश्वसनीय प्रदर्शन, जो ओएमओ के साथ मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं को सहन सीमा बैंड में लाता है, को अत्यधिक प्रतिफल स्प्रेड को कम करना चाहिए। जब अल्पकालिक दरों में कटौती की गई तो स्प्रेड बढ़ गया और अब प्रतिफल वक्र को समतल करते हुए, जब वे बढ़ गए हैं तो इसे संकीर्ण होना चाहिए। अपेक्षाकृत अच्छी संवृद्धि, और घरेलू चलनिधि में अधिशेष, अतिरिक्त निभाव को वापस लेने के बावजूद शेयर बाजार का समर्थन करेगी। घरेलू निवेशकों में एक बेहतर विविधीकरण है, जिनका दृष्टिकोण विदेशी निवेशकों से विपरीत है।
35. आपूर्ति-पक्ष पर सरकार की कार्रवाई भी भविष्य की दर वृद्धि, उत्पादन त्याग और उधार लागत को कम कर सकती है। यूक्रेन संकट के कारण केंद्रीय और राज्य दोनों करों में उछाल है और सब्सिडी लागत में शायद ही किसी भी वृद्धि से अधिक होने की संभावना है, जिससे उन्हें ईंधन पर करों में कटौती करने के लिए जगह मिल रही है। यदि ईंधन की कीमतें गिरने से कहीं अधिक बढ़ जाती हैं क्योंकि कच्चे तेल की कीमतें गिरने पर कर बढ़ते हैं लेकिन कीमतें बढ़ने पर गिरती नहीं हैं, तो मुद्रास्फीति को बढ़ाने वाले शाफ़्ट प्रभाव को रोकने के लिए प्रतिचक्रीय ईंधन कर की आवश्यकता हो सकती है। ऐसा शाफ़्ट प्रशासित कीमतों के युग में हुआ और ये मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के अनुकूल नहीं है। विश्व कच्चे तेल की कीमतें 2021 की शुरुआत में 2014 के मध्य की तुलना में कम थीं। लेकिन भारतीय कीमतें अधिक थीं। यदि ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि को नियंत्रित किया जाता है तो उर्वरक सब्सिडी भी कम हो जाएगी। जिन राज्यों ने पिछले वर्ष नवंबर में करों में कटौती नहीं की, उन्हें शुरू करना चाहिए, इससे दूसरे दौर की कटौती शुरू हो जाएगी। ऐसे समय में जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें उच्च स्तर पर बनी हुई हैं और उसका उपभोक्ताओं पर प्रभाव अंतरण हो रहा है, देश के इन क्षेत्रों में ईंधन की कीमतें सबसे अधिक हैं।
प्रो. जयंत आर. वर्मा का वक्तव्य
36. वार्षिक कैलेंडर से इतर एमपीसी की बैठकें गवर्नर के एकमात्र विवेक पर होती हैं जो एक अतिरिक्त बैठक की आवश्यकता पर उनके विचार पर निर्भर है। अतः, मैं अपने वक्तव्य को इस अतिरिक्त बैठक में की जाने वाली कार्रवाई के महत्व तक सीमित रखता हूं।
37. अप्रैल में अपने वक्तव्य में, मैंने कहा था कि उस समय नीतिगत दर पर तत्काल कार्रवाई नहीं करने का मुख्य कारण यह था कि फरवरी की बैठक में दिए गए आगे के मार्गदर्शन ने इस तरह की कार्रवाई को प्रभावी ढंग से रोक दिया था। मैंने यह भी कहा था कि आगे के मार्गदर्शन को वापस लेने और अप्रैल में किसी भी रुख की अनुपस्थिति का अर्थ है कि भविष्य की बैठकों में, एमपीसी नीतिगत दरों पर कोई भी कार्रवाई, जो आवश्यक हो सकती है, करने के लिए स्वयं को पूरी तरह से स्वतंत्र मानेगी। यह बैठक अप्रैल की बैठक के लगभग एक महीने बाद हो रही है, और एमपीसी अब दर वृद्धि पर विचार करने के लिए स्वतंत्र है, जो कि फरवरी में आगे के मार्गदर्शन की अनुपस्थिति में अप्रैल में ही हो सकती थी।
38. अप्रैल के बाद से, मुद्रास्फीति जोखिम, परिमाण और दृढ़ता दोनों के संदर्भ में अधिक स्पष्ट हो गए हैं। दूसरी ओर, संवृद्धि आघात पहले की तुलना में कम गंभीर प्रतीत होता है जिसका मुझे पहले डर था, क्योंकि अधिकांश नाउकास्ट अनुमान बताते हैं कि अर्थव्यवस्था भू-राजनीतिक तनाव और चीन के लॉकडाउन का अच्छी तरह से मुकाबला कर रही है। इस संदर्भ में, मौद्रिक सख्ती की आवश्यकता और अधिक तीव्र हो गई है। इसके अलावा, करने के लिए बहुत कुछ है क्योंकि एमपीसी ने (ए) वर्ष 2020 और वर्ष 2021 की शुरुआत में महामारी के चरम पर आर्थिक बहाली को प्राथमिकता दी, और (बी) महामारी थमने के बहुत लंबे समय तक आगे के मार्गदर्शन को जारी रखते हुए सामान्यीकरण में देरी की। इसका अर्थ यह है कि अब जहां तक संभव हो, दर कार्रवाई को फ्रंट-लोड करना अनिवार्य है।
39. मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत जल्द दर में 100 से अधिक आधार अंकों की वृद्धि किए जाने की आवश्यकता है। अतः मेरी प्राथमिकता इस बैठक में रेपो दर में 50 आधार अंक की बढ़ोतरी की है। एमपीसी का बहुमत उन कारणों से 40 आधार अंकों के पक्ष में है जो मेरे लिए बहुत स्पष्ट नहीं हैं। बढ़ोतरी को 50 आधार अंक से नीचे रखने से जो भी प्रतीकात्मक या मनोवैज्ञानिक लाभ हो सकता है, उससे 25 आधार अंक के गोल गुणज में जाने की सादगी और स्पष्टता अधिक महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, अब वृद्धि को 10 आधार अंकों से कम करने के लिए किसी समय पर अतिरिक्त 10 आधार अंक की वृद्धि की आवश्यकता होगी (और शायद बाद में के बजाय जल्द ही)। फिर भी, मेरा मानना है कि इस मुद्दे पर असहमत होना उचित नहीं है क्योंकि इष्टतम दर वृद्धि ऐसी चीज नहीं है जिसकी गणितीय सटीकता के साथ गणना की जा सकती है, और 40 आधार अंक 50 आधार अंकों से बहुत ज्यादा भिन्न नहीं हैं। मैं बहुमत का आभारी हूं कि उन्होंने 37.5 आधार अंकों की बढ़ोतरी (यथार्थतः 25 और 50 के बीच में) को नहीं चुनकर मेरे निर्णय को और अधिक कठिन नहीं बनाया। इन सब को देखते हुए मैं नीतिगत रेपो दर को बढ़ाकर 4.40 प्रतिशत करने के पक्ष में वोट करता हूं।
40. दूसरा संकल्प अप्रैल वाले के समान है, और उस समय इस निर्णय के पक्ष में मेरे तर्क मान्य हैं। इस बैठक में 40 आधार अंकों की बढ़ोतरी के बावजूद मौद्रिक नीति बेहद निभावकारी बनी हुई है। वास्तव में, यदि वास्तविक नीतिगत दर को नाममात्र दर से नवीनतम मुद्रास्फीति प्रिंट घटाकर मापा जाता है, तो इस बैठक के बाद की वास्तविक नीतिगत दर, अप्रैल की बैठक के बाद के दर की तुलना में कम है क्योंकि प्रकाशित हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति दो बैठकों के बीच 40 आधार अंकों से अधिक बढ़ गई है। निस्सन्देह, वास्तविक नीतिगत दर की गणना 3-4 तिमाही आगे की पूर्वानुमानित मुद्रास्फीति दर घटाकर करना अधिक उचित है, लेकिन अगर कोई ऐसा करता है, तो यह स्पष्ट है कि वास्तविक नीतिगत दर तेजी से नकारात्मक बनी रहेगी, और इसलिए अत्यधिक निभावकारी रहेगी। दूसरे संकल्प का पहला भाग इसलिए केवल तथ्य का एक विवरण है, और संकल्प का सक्रिय भाग दूसरा भाग है जो निभाव को वापस लेने की बात करता है। मैंने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि निभाव को शीघ्र वापस लेने की आवश्यकता क्यों है।
41. तथापि, अप्रैल की बैठक के संबंध में अधिकांश विश्लेषक "रुख" शब्द को छोड़ने के सचेत निर्णय के बावजूद एक रुख के रूप में "निभावकारी बने रहें" वाक्यांश की व्याख्या करते हुए प्रतीत होते हैं। मुझे उम्मीद है कि इस बार एमपीसी के आशय को और स्पष्ट रूप से समझा जाएगा, लेकिन यदि ऐसा नहीं होता है, तो एमपीसी को इस संकल्प को दुबारा परिभाषित करने पर विचार करना चाहिए। एमपीसी के लिए यह उचित नहीं होगा कि वह उस भाषा को अपनाते रहें जो किताबी दृष्टि से तो सही हो, लेकिन संचार क्षमता में कम हो। लेकिन इस तरह की रिफ्रेजिंग भविष्य की बैठक का एक मामला है, और इस बार के लिए, मैं निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करते हुए निभावकारी बने रहने के निर्णय के पक्ष में मतदान करता हूं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आगे मुद्रास्फीति संवृद्धि का समर्थन करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे।
डॉ. राजीव रंजन का वक्तव्य
42. फरवरी 2022 से वैश्विक समष्टि आर्थिक और वित्तीय वातावरण, यूक्रेन में युद्ध की शुरुआत के कारण बेहद प्रतिकूल हो गया है और वास्तविक समय के समष्टि आर्थिक मूल्यांकन और प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां प्रस्तुत कर रहा है। इस पृष्ठभूमि में, पिछले 3-4 महीनों में तेजी से हुए घटनाक्रमों का संक्षेप में वर्णन करना उपयोगी होगा। 10 फरवरी 2022 की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के समय, युद्ध की शुरुआत से पहले, कोविड-19 संक्रमण के कम होने की कारण, सब्जियों की कीमतों में सर्दियों में होने वाले मजबूत मौसमी सुधार, रबी की बंपर फसल की संभावना और आपूर्ति श्रृंखलाओं के सामान्यीकरण के आधार पर, वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए औसत मुद्रास्फीति दर के 4.5 प्रतिशत रहने के साथ वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही तक मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र 4 प्रतिशत के लक्ष्य तक कम होने का अनुमान लगाया गया था। इसने मौद्रिक नीति को निभावकारी बने रहने, संवृद्धि को प्राथमिकता देने और घरेलू बहाली को समर्थन देने के लिए प्रेरित किया।
43. तथापि, 24 फरवरी को यूरोप में युद्ध शुरू होने के बाद से स्थिति में काफी बदलाव आया है। संभावित प्रतिकूल वैश्विक कमोडिटी मूल्य प्रभाव-विस्तार का संज्ञान लेते हुए, 8 अप्रैल 2022 के एमपीसी संकल्प ने वर्ष 2022-23 के लिए मुद्रास्फीति अनुमान को 120 बीपीएस बढ़ाकर 5.7 प्रतिशत कर दिया। युद्ध के कारण मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र के लिए बड़े पैमाने पर ऊर्ध्वगामी जोखिम और घरेलू संवृद्धि के लिए अधोगामी जोखिम के साथ, एमपीसी, निभावकारी रुख के साथ बना रहा, तथापि मूल्य स्थिरता को संवृद्धि से अधिक प्राथमिकता दी गई थी, साथ ही एक कैलिब्रेटेड तरीके से बहु-वर्ष की अवधि में निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित किया गया। स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) की शुरुआत करते समय चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) कॉरिडोर को भी सामान्य किया गया। एमपीसी ने अपने अप्रैल के संकल्प में आधारभूत मुद्रास्फीति और संवृद्धि प्रक्षेपवक्र के लिए पांच प्रमुख जोखिमों पर प्रकाश डाला: (i) भू-राजनीतिक तनावों को दूर करना; (ii) वैश्विक कमोडिटी कीमतों का सामान्यीकृत सख्त होना; (iii) लंबे समय तक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान की संभावना; (iv) व्यापार और पूंजी प्रवाह में अव्यवस्था; और (v) विभिन्न मौद्रिक नीति प्रतिक्रियाएं और संबद्ध अस्थिरता। यह आशा की गई थी कि ये जोखिम समय के साथ समाप्त हो जाएंगे, लेकिन हाल के घटनाक्रमों से पता चलता है कि ऊर्ध्वगामी मुद्रास्फीति जोखिम अनुमान से पहले आ गया जैसा कि मार्च सीपीआई प्रिंट में दर्शाया गया है और अप्रैल प्रिंट में बढ़ने का अनुमान है, जिसके कारण एमपीसी की ऑफ-साइकिल बैठक की आवश्यकता पड़ी।
44. मार्च 2022 सीपीआई रिलीज ने घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए अनुमान से अधिक वैश्विक मूल्य आघात के व्यापक-आधारित पास-थ्रू का संकेत दिया। खाद्य मुद्रास्फीति में सख्ती, जो जनवरी में मुख्य रूप से अनाज और सब्जियों द्वारा जनित थी, तब से अनाज और सब्जियों के अलावा मांस और मछली, दूध, खाद्य तेल, मसाले और प्रसंस्कृत भोजन तक फैल गई है। मार्च में मूल मुद्रास्फीति दबावों (खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) की 6.4 प्रतिशत तक और गहनता, उप-समूहों में व्यापक-आधारित मूल्य दबावों से उत्पन्न हुई। आवास, पान-तंबाकू और नशीले पदार्थों और शिक्षा को छोड़कर, सभी मुख्य उप-समूहों में मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत से ऊपर थी।
45. मैं नवीनतम प्रिंट में मुद्रास्फीति के सामान्यीकरण पर एक और परिप्रेक्ष्य देता हूं। कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से, अक्टूबर 2020 में उच्चतम हेडलाइन मुद्रास्फीति 7.6 प्रतिशत पर दर्ज हुई। अक्टूबर 2020 में, प्रमुख चालक सब्जियां, परिवहन, मांस और मछली, खाद्य तेल, व्यक्तिगत देखभाल और दालें थे। इन उप-समूहों (सीपीआई समूह में लगभग 28 प्रतिशत भार के साथ) का हिस्सा मुद्रास्फीति में लगभग 60 प्रतिशत रहा। मार्च 2022 में, इन वस्तुओं का योगदान 7.0 प्रतिशत की हेडलाइन मुद्रास्फीति में केवल 41 प्रतिशत था। यह हाल की अवधि में मुद्रास्फीति के चालकों में एक महत्वपूर्ण बदलाव का सुझाव देता है।
46. मुद्रास्फीति दबावों का विस्तार विभिन्न सीपीआई प्रसार सूचकांकों2 में भी परिलक्षित होता है। इन सूचकांकों में 6 प्रतिशत की मौसमी रूप से समायोजित वार्षिक दर (एसएएआर) पर या उससे अधिक की कीमतों में तेज उछाल आया है, विशेष रूप से मार्च में, यह पुष्टि करता है कि यह न केवल सीपीआई में कीमतों में वृद्धि की घटना है, बल्कि यह भी है कि कीमत बहुत अधिक दर से बढ़ रही है। यह हेडलाइन के साथ-साथ मुख्य श्रेणियों के लिए भी सत्य है। सीपीआई मुद्रास्फीति3 के उत्तम औसत उपाय बताते हैं कि मार्च में उनकी वृद्धि की गति तेज हो गई।
47. इन सभी से संकेत मिलता है कि भू-राजनीतिक उथल-पुथल और बढ़ी हुई अनिश्चितता के बीच, लागत-प्रेरित दबावों में तेज वृद्धि, मुद्रास्फीति में एक सामान्यीकृत उछाल में तब्दील हो रही है, जो 12 अप्रैल को मार्च सीपीआई प्रिंट जारी होने के बाद स्पष्ट हो गया। विदित हो कि सीपीआई प्रिंट ने 2020 और 2021 में दो अवसरों पर पहले भी 6 प्रतिशत का आंकड़ा पार किया था। इनमें से प्रत्येक प्रकरण में, मपीसी ने उन्हें क्षणिक मूल्य आघात के रूप में देखने का सही निर्णय लिया। तथापि, वर्तमान मूल्य वृद्धि भी अनिवार्य रूप से आपूर्ति-आघात से प्रेरित है, लेकिन इसकी व्यापक-आधारित प्रकृति, प्रभाव-विस्तार और दृढ़ता को देखते हुए इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, जिसमें मुद्रास्फीति की प्रत्याशा के अस्थिर होने का जोखिम है। इस प्रकार, समष्टि आर्थिक गतिकी के इस स्तर पर, मूल्य स्थिरता की प्रधानता को बहाल करना और प्रदर्शनकारी कार्यों के माध्यम से मौद्रिक नीति की विश्वसनीयता को मजबूत करना आवश्यक है।
48. आर्थिक बहाली पहले की तुलना में बेहतर होने के साथ, यह समय मुद्रास्फीति के मोर्चे पर चिंताओं को दूर करने का समय है, जिसकी गतिकी यूरोप में युद्ध के प्रकोप से मौलिक रूप से बदल गई है। यद्यपि मौद्रिक नीति का, युद्ध के कारण उत्पन्न बाह्य वैश्विक कमोडिटी कीमतों के आघातों पर प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं हो सकता है, यह मुद्रास्फीति के दबावों के सामान्यीकरण से बचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यदि मौद्रिक नीति इन आघातों को देखने का निर्णय लेती है, और विशेष रूप से यदि वे क्षणभंगुर नहीं हैं, तो मुद्रास्फीति की प्रत्याशा अनियंत्रित हो सकती हैं, जिससे इसमे लगातार ऊर्ध्वगामी प्रवृत्ति हो सकती है जो प्रारंभिक झटके के पूरी तरह से समाप्त होने के बाद भी आघात पूर्व के स्तर पर वापस नहीं आ सकती है। हाल की मुद्रास्फीति गतिकी को देखते हुए, पारंपरिक 25 आधार अंकों से अधिक की रेपो दर वृद्धि प्रत्याशाओं को स्थिर करने में अधिक प्रभावी होगी। अतः, मैं नीतिगत रेपो दर में 40 बीपीएस की वृद्धि के लिए वोट करता हूं, जो इस समय उपयुक्त है, न तो बहुत कम है और न ही बहुत अधिक है। यह आशा की जाती है कि ऑफ-साइकिल बैठक में इस अग्र कार्रवाई का अधिक स्पष्ट प्रभाव होगा। मैं अप्रैल की नीति के अपरिवर्तित रुख का भी समर्थन करता हूं, जो ऋण उठाव को बनाए रखने और अर्थव्यवस्था की उत्पादक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त चलनिधि बनाए रखने के हमारे रुख के अनुरूप निभावकारी है। इस संबंध में, सीआरआर में 50 बीपीएस की वृद्धि, अधिशेष चलनिधि को धीरे-धीरे वापस लेने के हमारे उद्देश्य के अनुरूप है, जो मूल्य के मोर्चे पर किसी भी अनपेक्षित प्रभाव को कम करेगा।
डॉ. माइकल देवब्रत पात्र का वक्तव्य
49. भू-राजनीतिक स्पिलओवर ने हम पर मुद्रास्फीति की गति में भारी उछाल दिया है जिसे हम बर्दाश्त नहीं कर सकते। जब तक भू-राजनीतिक संकट और जवाबी कार्रवाई बनी रहेगी, तब तक मुद्रास्फीति बनी रहेगी। जब तक मुद्रास्फीति बनी रहेगी और अपने दायरे में व्यापक होगी, लोगों को यह विश्वास होगा कि यह पहुंच से बाहर हो रहा है और यह उसके भविष्य के पथ के बारे में उनकी अपेक्षाओं को कम कर सकता है। अतः मौद्रिक नीति प्राधिकारियों को कमी और बाधाओं के कारण कीमतों में वृद्धि का जवाब देने के लिए मजबूर किया जा रहा है क्योंकि वे कुछ भी नहीं कर सकते हैं क्योंकि उनके सामने आने वाली समस्या अत्यधिक मांग नहीं बल्कि अपर्याप्त आपूर्ति है। आपूर्ति बढ़ाने के उपायों और/या आपूर्ति बाधाओं को कम करने के अभाव में, वे वह करेंगे जो वे कर सकते हैं - अपने कार्यों को आगे बढ़ाएं, मांग को कम करें और मृत बहाली को प्रतिपादित करें। वैश्विक स्तर पर, स्टैगफ्लेशन एक जोखिम परिदृश्य से एक आधारभूत परिदृश्य में परिवर्तित हो सकती है। स्टैगफ्लेशनरी झटका वैश्विक है लेकिन हर जगह देश-विशिष्ट कारकों द्वारा इसे समकालिक तरीके से बढ़ाया जा रहा है। महामारी के अभी भी कच्चे निशान सहन करने के लिए और भी अधिक कष्टदायी और अधिक स्थायी हो जाएंगे।
50. साथ ही, वित्तीय बाजार हमें बता रहे हैं कि आज जो विन्यास मौजूद हैं – अमेरिकी प्रतिफल का सख्त होना; हमेशा मजबूत अमेरिकी डॉलर; इक्विटी बेचना; उभरती मुद्रा मूल्यह्रास और पूंजी बहिर्वाह; बढ़ता कर्ज संकट – 1993-1994 की याद ताजा करती है, जिसके बाद उभरते बाजार संकट का एक सिलसिला शुरू हुआ। कम से कम, एक सामान्यीकृत वित्तीय उत्तोलन के सभी लक्षण मौजूद हैं।
51. इस परिवेश में, एक मापा हुआ दृष्टिकोण और एक शांत सर अपेक्षित है। हाल के आने वाले आंकड़ों से पता चलता है कि भारत के समष्टि- मूलभूत, आयातित खाद्य और ईंधन मुद्रास्फीति को छोड़कर, अभी भी बरकरार हैं और बहाली के साथ तालमेल बिठा रहे हैं जो महामारी की लहरों में से अपना रास्ता बना रहा है। विनिर्माण और सेवाओं में श्रम अवशोषण बढ़ रहा है, क्षमता उपयोग में सुधार हो रहा है और नए निवेश के धीरे-धीरे आने के संकेत मिल रहे हैं। फिर भी, सुधार की गति अभी भी संपूर्ण स्तर से नीचे है, जिसके लिए नीतिगत समर्थन की आवश्यकता है। आईपीओ और रिस्क-ऑन रिस्क-ऑफ पोर्टफोलियो प्रवाह के रोटेशन से भारत को एक निश्चित दिन में थोड़ी राहत मिल सकती है, लेकिन अन्य दिनों में हमारे बाजारों में फिर से उथल-पुथल मच जाती है, जैसे कि अन्य ईएमई गुजर रहे हैं।
52. इस अशांत पृष्ठभूमि में और लगातार तीसरे महीने ऊपरी सहिष्णुता बैंड से ऊपर बनी रहने वाली हेडलाइन मुद्रास्फीति के साथ दूसरे क्रम के प्रभावों के संकेत के साथ, असाधारण निभाव को उलटने का दृष्टिकोण - नीति दर और चलनिधि दोनों के संदर्भ में - जो महामारी के जवाब में किया गया था, मेरे विचार से, सही दृष्टिकोण है। जब यह हो जाएगा, तो हम निष्पक्ष निभाव के एक चरण में पहुंच गए होंगे - असाधारण महामारी समय निभाव के विपरीत - जहां से अगले चरण की प्रतिक्रियाओं को अंशशोधित (कैलिब्रेट) किया जा सकता है। तदनुसार, मैं नीति दर में 40 आधार अंकों की वृद्धि के लिए मतदान करता हूं – जो 22 मई 2020 को लागू नीति दर में कमी को उलट सकती है – और निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करते हुए निभावकारी बने रहने के लिए, जैसा कि 4 मई 2022 के एमपीसी के संकल्प में व्यक्त किया गया है।
श्री शक्तिकान्त दास का वक्तव्य
53. 8 अप्रैल 2022 के अपने एमपीसी वक्तव्य में, मैंने कहा था कि रिज़र्व बैंक अर्थव्यवस्था के लचीलेपन को बढ़ाते हुए समष्टि आर्थिक और वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने के लिए अपने सभी नीतिगत साधनों का उपयोग करेगा। मैंने इस बात पर भी जोर दिया था कि स्थिति गतिशील और तेजी से बदल रही है और हमारे कार्यों को उसी के अनुरूप बनाया जाएगा। उस दिन घोषित उपायों के साथ, इन वक्तव्यों के पीछे विचार यह था कि यूरोप में युद्ध के कारण मुद्रास्फीति में वृद्धि से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए आरबीआई की तत्परता से अवगत कराया जाए। तब से घटनाओं ने भू-राजनीतिक स्थिति में और गिरावट को जन्म दिया है, भले ही घरेलू मुद्रास्फीति तत्काल उपचारात्मक उपायों के लिए अधिक व्यापक-आधारित हो गई हो। 2 और 4 मई 2022 को हुई ऑफ-साइकिल बैठक को इसी पृष्ठभूमि में देखा जा सकता है।
54. अप्रैल एमपीसी के बाद की घटनाओं ने और चिंता बढ़ा दी है। सबसे पहले, 12 अप्रैल 2022 को जारी की गई मार्च के लिए हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति, उम्मीद से बढ़कर 7 प्रतिशत हो गई, क्योंकि सीपीआई बास्केट में प्रतिकूल वैश्विक कमोडिटी कीमतों के झटके का प्रभाव महसूस किया गया था। दूसरा, खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के सूचकांकों में परिलक्षित वैश्विक कमोडिटी और खाद्य कीमतों तथा विश्व बैंक ने घरेलू खाद्य मूल्य की स्थिति के प्रभाव के साथ मार्च में ऐतिहासिक उच्च स्तर को छुआ है। ये दबाव के बने रहने की संभावना है। तीसरा, मुख्य मुद्रास्फीति के लगभग सभी उपायों में मार्च में 6 प्रतिशत से अधिक की तीव्र वृद्धि दर्ज की गई है। चौथा, कई राज्यों में प्रशासित बिजली दरों में संशोधन और आवश्यक दवाओं की कीमतों में वृद्धि ने अल्पावधि में मुद्रास्फीति के लिए और जोखिम पैदा किया है। पांचवां, यूरोप में युद्ध - आपूर्ति श्रृंखलाओं, कमी और कीमतों के लिए इसके परिचर परिणामों के साथ - अब पहले की अपेक्षा अधिक लंबे समय तक चलने की उम्मीद है। इन परिस्थितियों में, अप्रैल के लिए मुद्रास्फीति प्रिंट – जो 12 मई को जारी होगी - और अधिक बढ़ने की उम्मीद है। अतः, ऑफ-साइकिल नीति बैठक के माध्यम से कार्य करना आवश्यक हो जाता है। जून एमपीसी तक एक महीने तक इंतजार करने का मतलब होगा कि युद्ध से संबंधित मुद्रास्फीति के दबाव के दौरान इतना समय गंवाना। इसके अलावा, इसे जून एमपीसी में अधिक मजबूत कार्रवाई की आवश्यकता हो सकती है जो परिहार्य है।
55. इस बीच, घरेलू आर्थिक गतिविधियों में तेजी धीरे-धीरे सामान्य हो रही है। शहरी मांग में सुधार के बीच संपर्क-गहन सेवाओं में सुधार से व्यक्तिगत खपत बढ़ रही है। 2022 के लिए सामान्य दक्षिण-पश्चिम मानसून पूर्वानुमान के मद्देनजर कृषि के लिए दृष्टिकोण सकारात्मक बना हुआ है, जो ग्रामीण खपत का समर्थन करेगा। उच्च क्षमता उपयोग और पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि के साथ निवेश गतिविधि गति पकड़ रही है। निर्यात लचीला बना हुआ है, जबकि उच्च आयात वृद्धि जारी रहना घरेलू मांग में सुधार का संकेत है। तथापि, लंबे समय से चले आ रहे भू-राजनीतिक संघर्ष, महत्वपूर्ण आदानों की लंबी कमी और प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा नीति को सख्त करने के मद्देनजर उच्च वैश्विक कमोडिटी की कीमतें घरेलू आर्थिक गतिविधियों के लिए नकारात्मक जोखिम पैदा करती हैं।
56. मुद्रास्फीति के बिगड़ते दृष्टिकोण के कारण दूसरे दौर के प्रभावों को रोकने के लिए समय पर कार्रवाई की आवश्यकता होती है जिससे मुद्रास्फीति की उम्मीदों पर अंकुश लग सकता है। बढ़ी हुई अनिश्चितता और अस्थिर वित्तीय बाजार भी इस तरह की उम्मीदों को बढ़ा सकते हैं। तदनुसार, अर्थव्यवस्था को किसी भी अनपेक्षित झटके से बचने के लिए निर्णायक और मापित मौद्रिक नीति प्रतिक्रिया आवश्यक है।
57. इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, अब स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) के माध्यम से अप्रैल 2022 में की गई चलनिधि अवशोषण दर में वृद्धि के शीर्ष पर रेपो दर में वृद्धि करना आवश्यक हो गया है। तदनुसार, मैं नीतिगत रेपो दर में 40 बीपीएस की वृद्धि के लिए मतदान करता हूं जो कि हमारे 22 मई 2020 के उपाय का उलट है। आगे, विकास का समर्थन करते हुए हमें यह सुनिश्चित करने के लिए निभाव को वापस लेने पर अपना ध्यान केंद्रित रखना चाहिए। अतः, मैं अप्रैल नीति के अनुसार यथास्थिति बनाए रखने के लिए मतदान करता हूं। इसके अलावा, रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति और समष्टि आर्थिक गतिविधियों के साथ एक बहु-वर्ष की अवधि में चरणबद्ध तरीके से चलनिधि को वापस लेना जारी रखेगा। लगातार चलनिधि की अधिकता को देखते हुए, रिज़र्व बैंक द्वारा आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में 50 बीपीएस की वृद्धि एक बहु-वर्ष की अवधि में निभाव वापस लेने के हमारे इरादे का संकेत देती है।
58. जैसे ही कई तूफान एक साथ आए, हमारी मौद्रिक नीति प्रतिक्रिया को, जहाज को स्थिर करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जाना चाहिए। भारतीय और साथ ही वैश्विक साक्ष्य स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि उच्च मुद्रास्फीति की दृढ़ता बचत, निवेश, प्रतिस्पर्धा और विकास को नुकसान पहुंचाती है। इसका जनसंख्या के गरीब तबके पर अधिक स्पष्ट प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। मुद्रास्फीति को कम करने और मुद्रास्फीति की उम्मीदों को स्थिर करने के उद्देश्य से आज की हमारी मौद्रिक नीति कार्रवाइयों से अर्थव्यवस्था की मध्यम अवधि की विकास संभावनाओं को मजबूत करने और समाज के कमजोर वर्गों की क्रय शक्ति की रक्षा करने में मदद मिलनी चाहिए। अत्यधिक अनिश्चित स्थिति को देखते हुए, आने वाले डाटा और सूचनाओं की लगातार निगरानी की जाएगी ताकि दृष्टिकोण का पुनर्मूल्यांकन किया जा सके और आवश्यक उपाय किए जा सके। जिस तरह हम पिछले दो वर्षों के दौरान लगातार सतर्क रहे और महामारी के कारण विकास में कमजोरियों का जवाब दिया, इस बार भी हम अपने नियंत्रण में सभी संभावित साधनों के माध्यम से मुद्रास्फीति को लक्ष्य के करीब लाने के लिए समान रूप से दृढ़ और प्रतिबद्ध रहेंगे।
(योगेश दयाल)
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/230
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