16 सितंबर 2022
आरबीआई बुलेटिन – सितंबर 2022
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का सितंबर 2022 अंक जारी किया। बुलेटिन में चार भाषण, तीन आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।
ये तीन आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. इनपुट कीमतों के प्रति आउटपुट कीमतों की संवेदनशीलता: भारत के लिए एक अनुभवजन्य विश्लेषण; और III. भारतीय राज्यों में आर्थिक गतिविधि पर कोविड-19 का प्रभाव।
I. अर्थव्यवस्था की स्थिति
वैश्विक आर्थिक गतिविधि में गति का ह्रास मुद्रास्फीति के असर को कुछ कम कर सकता है, जो कि बढ़ी हुई है। वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में वृद्धि की गति में मामूली कमी को निकाल फेंकने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था तैयार है। कुल मांग मजबूत है और त्यौहारी मौसम शुरू होने के साथ-साथ इसके और बढ़ने की संभावना है। घरेलू वित्तीय स्थितियां वृद्धि के आवेगों में सहायता कर रही हैं। मुद्रास्फीति उच्च बनी हुई है और सहनशीलता के स्तर से ऊपर है, जो मौद्रिक नीति के लिए अप्रत्यक्ष प्रभावों को नियंत्रित रखने और मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को सुदृढ़ता से स्थिर रखने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
II. इनपुट कीमतों के प्रति आउटपुट कीमतों की संवेदनशीलता: भारत के लिए एक अनुभवजन्य विश्लेषण
यह आलेख लागत-जन्य दबावों के अप्रत्यक्ष प्रभावों का आकलन करने के लिए इनपुट कीमतों से आउटपुट कीमतों तक अंतरण के स्वरूप की व्याख्या करता है। यूरोप में महामारी की बारंबार लहरों और युद्ध के बाद इनपुट कीमतों में व्यापक आधार वाली वृद्धि देखी गई है। इस अवधि के दौरान अर्थव्यवस्था में लगातार मंदी के कारण आउटपुट कीमतों में आनुपातिक रूप से वृद्धि नहीं होने के कारण, इनपुट और आउटपुट कीमतों के बीच अंतराल बढ़ गया है।
प्रमुख बिंदु:
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इनपुट लागत से आउटपुट कीमतों के प्रभाव का अंतरण एक अरैखिक प्रक्रिया है, जिसमें आउटपुट कीमतों की संवेदनशीलता इनपुट कीमतों की उच्चतर मात्रा के अनुसार बढ़ती है। इसके अलावा, उच्चतर इनपुट कीमतों का संचरण शीघ्र होता है और मूल (कोर) मुद्रास्फीति की तुलना में हेडलाइन मुद्रास्फीति पर अधिक मजबूत प्रभाव पड़ता है।
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मांग की स्थिति में सुधार के बाद, विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में फर्मों ने अपनी बढ़ती लागत का एक हिस्सा बिक्री कीमतों में अंतरित करना शुरू कर दिया है।
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आगे चलकर, विपरीत शक्तियों के बीच उभरता समीकरण - मांग में बढ़ोतरी; हाल के महीनों में इनपुट कीमत दबावों में कुछ कमी और जारी वैश्विक अनिश्चितताएं - हेडलाइन मुद्रास्फीति पर प्रभाव का निर्धारण कर सकती है।
III. भारतीय राज्यों में आर्थिक गतिविधि पर कोविड-19 का प्रभाव
यह आलेख राज्य स्तर पर आर्थिक गतिविधियों में रुझानों का पता लगाने के लिए प्रमुख संकेतकों को लेकर एक समग्र सूचकांक बनाता है और विश्लेषण करता है कि महामारी के दौरान आवाजाही में प्रतिबंधों के समय आर्थिक गतिविधि कैसी रही।
प्रमुख बिंदु:
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महामारी के दौरान सभी राज्यों में आवाजाही प्रतिबंधों की सीमा में काफी फर्क था। साथ ही, विभिन्न राज्यों में आर्थिक गतिविधियों के रुझान अलग-अलग रहे।
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जो राज्य कृषि, वानिकी और लकड़ी के कारोबार (लॉगिंग) पर अधिक निर्भर हैं, उनमें आर्थिक गतिविधियों पर आवाजाही प्रतिबंधों का अपेक्षाकृत मामूली प्रभाव देखा गया। हालांकि, अपने राज्य योजित सकल मूल्य (जीएसवीए) में विनिर्माण और सेवाओं की उच्च हिस्सेदारी वाले राज्यों ने आर्थिक गतिविधियों पर अपेक्षाकृत अधिक प्रभाव देखा।
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इस प्रकार, राज्यों में आवाजाही प्रतिबंधों के दौरान आर्थिक गतिविधि का स्वरूप अलग-अलग रहा और संभव है कि आर्थिक संरचनाओं में भिन्नता प्रभावों में भिन्नता का कारण रही हो। राष्ट्रीय स्तर पर नीतिगत कार्रवाई के पूरक में यह राज्य-विशिष्ट हस्तक्षेपों की भूमिका को रेखांकित करता है जो कि उनकी आर्थिक संरचना के अनुरूप हो।
बुलेटिन आलेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों को व्यक्त नहीं करते हैं।
(योगेश दयाल)
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/882 |