14 अक्तूबर 2022
मौद्रिक नीति समिति की 28-30 सितंबर 2022 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त
[भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45ज़ेडएल के अंतर्गत]
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45जेडबी के तहत गठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की अड़तीसवीं बैठक 28 से 30 सितंबर 2022 के दौरान आयोजित की गई थी।
2. बैठक में सभी सदस्य – डॉ. शशांक भिड़े, माननीय वरिष्ठ सलाहकार, नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च, दिल्ली; डॉ. आशिमा गोयल, अवकाश प्राप्त प्रोफेसर, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च, मुंबई; प्रो. जयंत आर. वर्मा, प्रोफेसर, भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद; डॉ. राजीव रंजन, कार्यपालक निदेशक (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडबी (2) (सी) के अंतर्गत केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित रिज़र्व बैंक के अधिकारी); डॉ. माइकल देवब्रत पात्र, मौद्रिक नीति के प्रभारी उप गवर्नर उपस्थित रहें और इसकी अध्यक्षता श्री शक्तिकान्त दास, गवर्नर द्वारा की गई।
3. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडएल के अनुसार, रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति समिति की प्रत्येक बैठक के चौदहवें दिन इस बैठक की कार्यवाहियों का कार्यवृत्त प्रकाशित करेगा जिसमें निम्नलिखित शामिल होगा:
(क) मौद्रिक नीति समिति की बैठक में अपनाया गया संकल्प;
(ख) उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर मौद्रिक नीति के प्रत्येक सदस्य को प्रदान किया गया वोट; और
(ग) उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर धारा 45ज़ेडआई की उप-धारा (11) के अंतर्गत मौद्रिक नीति समिति के प्रत्येक सदस्य का वक्तव्य।
4. एमपीसी ने रिज़र्व बैंक द्वारा उपभोक्ता विश्वास, परिवारों की मुद्रास्फीति प्रत्याशा, कॉर्पोरेट क्षेत्र के प्रदर्शन, ऋण की स्थिति, औद्योगिक, सेवाओं और आधारभूत संरचना क्षेत्रों के लिए संभावनाएं और पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के अनुमानों का आकलन करने के लिए किए गए सर्वेक्षणों की समीक्षा की। एमपीसी ने इन संभावनाओं के विभिन्न जोखिमों के इर्द-गिर्द स्टाफ के समष्टि आर्थिक अनुमानों और वैकल्पिक परिदृश्यों की विस्तृत रूप से भी समीक्षा की। उपर्युक्त पर और मौद्रिक नीति के रुख पर व्यापक चर्चा करने के बाद एमपीसी ने संकल्प अपनाया जिसे नीचे प्रस्तुत किया गया है।
संकल्प
5. वर्तमान और उभरती समष्टि आर्थिक परिस्थिति का आकलन करने के आधार पर मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आज (30 सितंबर 2022) अपनी बैठक में यह निर्णय लिया है कि:
परिणामस्वरूप, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 5.65 प्रतिशत और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.15 प्रतिशत हो गई है।
ये निर्णय, संवृद्धि को सहारा प्रदान करते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति को +/- 2 प्रतिशत के दायरे में रखते हुए 4 प्रतिशत का मध्यावधि लक्ष्य हासिल करने के अनुरूप है।
इस निर्णय में अंतर्निहित मुख्य विचार नीचे दिए गए विवरण में व्यक्त की गई हैं।
आकलन
वैश्विक अर्थव्यवस्था
6. यूक्रेन में दीर्घकालिक संघर्ष और दुनिया भर में आक्रामक मौद्रिक नीति कार्रवाइयों और रुख के प्रभाव में वैश्विक आर्थिक गतिविधि कमजोर हो रही है। जैसे-जैसे वित्तीय स्थितियां सख्त होती जा रही हैं, इक्विटी और बॉण्ड बाजारों में छिटपुट बिकवाली और अमेरिकी डॉलर मजबूत होकर 20 वर्ष के उच्च स्तर पर पहुंच जाने के कारण वैश्विक वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव का अनुभव हो रहा है। उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) को वैश्विक मुद्रास्फीति के झटके के अलावा पोर्टफोलियो प्रवाह में कमी, मुद्रा मूल्यह्रास, आरक्षित भंडारों में कमी और वित्तीय स्थिरता जोखिमों से तीव्र दबाव का सामना करना पड़ रहा है। जैसे-जैसे बाहरी मांग बिगड़ती है, उनकी समष्टि आर्थिक संभावना तेजी से प्रतिकूल होती जा रही है।
घरेलू अर्थव्यवस्था
7. 2022-23 की पहली तिमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वर्ष-दर-वर्ष (वाई-ओ-वाई) 13.5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। जबकि घरेलू सकल मांग के सभी घटकों ने वर्ष-दर-वर्ष विस्तार किया और अपने महामारी-पूर्व के स्तर को पार कर लिया, निवल निर्यात में अवरोध ने एक ऑफसेट प्रदान किया। आपूर्ति पक्ष पर, 2022-23 की पहली तिमाही में सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) में 12.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसमें सभी घटकों, विशेष रूप से सेवाओं ने वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि दर्ज की।
8. आपूर्ति की सकल स्थिति में सुधार हो रहा है। दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा का 29 सितंबर को दीर्घकालिक औसत (एलपीए) से 7 प्रतिशत अधिक होने और इसके कमी वाले कुछ क्षेत्रों में इसके स्थानिक वितरण के कारण, खरीफ की बुवाई जोर पकड़ रही है। इसका क्षेत्रफल 23 सितंबर को सामान्य बुवाई क्षेत्र से 1.7 प्रतिशत अधिक था और पिछले वर्ष के कवरेज से केवल 1.2 प्रतिशत कम था। प्रथम अग्रिम अनुमान (एफएई) के अनुसार खरीफ खाद्यान्न का उत्पादन पिछले वर्ष के चौथे अग्रिम अनुमान (पिछले वर्ष के एफएई से केवल 0.4 प्रतिशत कम) से 3.9 प्रतिशत कम था। उद्योग और सेवा क्षेत्रों में गतिविधि विस्तार में बनी हुई है, विशेष रूप से उत्तरवर्ती, जैसा कि क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) और अन्य उच्च आवृत्ति संकेतकों में परिलक्षित होता है। हालांकि, औद्योगिक उत्पादन वृद्धि का सूचकांक जुलाई में 2.4 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) तक धीमा हो गया।
9. मांग पक्ष पर, त्योहारी समय से पहले विवेकाधीन खर्च से शहरी खपत में वृद्धि हो रही है और ग्रामीण मांग में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। निवेश की मांग भी बढ़ रही है, जैसा कि बढ़ते आयात और पूंजीगत वस्तुओं के घरेलू उत्पादन, स्टील की खपत और सीमेंट उत्पादन में परिलक्षित होता है। पण्य निर्यात ने अगस्त में मामूली बढ़ोत्तरी हुई। तेल से इतर एवं स्वर्ण से इतर के आयात में तेजी रही।
10. अगस्त 2022 में सीपीआई मुद्रास्फीति बढ़कर 7.0 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) हो गई, जो जुलाई में 6.7 प्रतिशत थी, क्योंकि अनाज, सब्जियों, दालों, मसालों और दूध की कीमतों के कारण खाद्य मुद्रास्फीति अधिक हो गई थी। केरोसिन (पीडीएस) की कीमतों में कमी के कारण ईंधन मुद्रास्फीति में नरमी आई, हालांकि यह दोहरे अंकों में बनी रही। मूल सीपीआई (अर्थात्, खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) मुद्रास्फीति, विभिन्न घटक वस्तुओं और सेवाओं में ऊर्ध्वमुखी दबाव के साथ उच्च स्तर पर बनी हुई है।
11. जून-जुलाई में ₹3.8 लाख करोड़ की तुलना में अगस्त-सितंबर (28 सितंबर 2022 तक) के दौरान चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत ₹2.3 लाख करोड़ की औसत दैनिक अवशोषण के साथ सकल प्रणाली चलनिधि अधिशेष में बनी रही। 9 सितंबर 2022 तक मुद्रा आपूर्ति (एम3) में वर्ष-दर-वर्ष 8.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसमें वाणिज्यिक बैंकों की कुल जमाराशियों में 9.5 प्रतिशत और बैंक ऋण में 16.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 23 सितंबर 2022 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 537.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
संभावना
12. उच्च और दीर्घकालिक अनिश्चिताओं से घिरी भू-राजनीतिक परिस्थितियों ने मुद्रास्फीति की संभावनाओं को काफी प्रभावित किया है। हालांकि, कोमोडिटी की कीमतों में नरमी आई है और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) में मंदी के जोखिम बढ़ रहे हैं। घरेलू मोर्चे पर, बुवाई में देरी से हुए सुधार खरीफ उत्पादन के लिए शुभ संकेत है। जलाशयों के पर्याप्त स्तर के कारण रबी फसल की बफर में रहने की संभावनाएं हैं। हालांकि, अत्यधिक / बेमौसम बारिश से फसल के नुकसान का खतरा बना रहता है। इन कारकों का खाद्य मूल्य संभावना पर प्रभाव पड़ता है। उच्च आयातित मुद्रास्फीति दबाव, मुद्रास्फीति के भावी प्रक्षेपवक्र के लिए एक अर्ध्वगामी जोखिम बना हुआ है, जो अमेरिकी डॉलर की निरंतर मूल्यवृद्धि से बढ़ा है। आपूर्ति और मांग दोनों से संबंधित परिचारक चिंताओं के कारण कच्चे तेल की कीमतों से संबंधित संभावना काफी अनिश्चित है और भू-राजनीतिक गतिविधियों के साथ जुड़ा हुआ है। भारतीय रिज़र्व बैंक का उद्यम सर्वेक्षण, विनिर्माण, सेवाओं और अवसंरचना फर्मों में इनपुट लागत और आउटपुट मूल्य दबावों में कुछ कमी की ओर इशारा करता है; हालांकि, कीमतों के लिए इनपुट लागत का प्रभाव-अंतरण अधूरा है। इन कारकों और कच्चे तेल की औसत कीमत (भारतीय समूह) 100 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल को ध्यान में रखते हुए, 2022-23 में मुद्रास्फीति के 6.7 प्रतिशत होने का अनुमान है, जिसका दूसरी तिमाही में 7.1 प्रतिशत; तीसरी तिमाही में 6.5 प्रतिशत; और चौथी तिमाही में 5.8 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है और जोखिम समान रूप से संतुलित है। 2023-24 की पहली तिमाही के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 5.0 प्रतिशत पर अनुमानित है (चार्ट 1)।
13. संवृद्धि के संबंध में, कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए बेहतर संभावना और सेवाओं में सुधार से सकल आपूर्ति की संभावनाएं बढ़ रही हैं। पूंजीगत व्यय पर सरकार का निरंतर जोर, विनिर्माण में क्षमता उपयोग में सुधार और गैर-खाद्य ऋण में वृद्धि से जुलाई में रुकी औद्योगिक गतिविधि में सुधार होना चाहिए। ग्रामीण मांग में तेजी और वर्ष की दूसरी छमाही में सामान्य वृद्धि से शहरी मांग के और मजबूत होने की उम्मीद के कारण समग्र मांग की संभावना सकारात्मक है। भारतीय रिज़र्व बैंक के सर्वेक्षणों के अनुसार, उपभोक्ता संभावना स्थिर बना हुआ है और विनिर्माण, सेवा और अवसंरचना क्षेत्रों के फर्म, मांग की स्थिति और बिक्री की संभावनाओं के बारे में आशावादी हैं। दूसरी ओर, भू-राजनीतिक तनावों से संबंधित बाधाओं, वैश्विक वित्तीय स्थितियों की सख्ती और धीमी बाह्य मांग से प्रतिकूल परिस्थितियों ने निवल निर्यात और इसके कारण भारत के सकल घरेलू उत्पाद की संभावना के लिए नकारात्मक जोखिम उत्पन्न किया है। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2022-23 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 7.0 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है, जिसका दूसरी तिमाही 6.3 प्रतिशत; तीसरी तिमाही में 4.6 प्रतिशत; और चौथी तिमाही में 4.6 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है तथा जोखिम व्यापक रूप से संतुलित हो। 2023-24 की पहली तिमाही के लिए, यह 7.2 प्रतिशत पर अनुमानित है (चार्ट 2)।
14. एमपीसी के विचार में, मुद्रास्फीति 2022-23 की पहली तीन तिमाहियों के दौरान 6 प्रतिशत के ऊपरी सहन-सीमा स्तर से ऊपर रहने की संभावना है, जिसमें मूल मुद्रास्फीति उच्च बनी हुई है। अस्थिर भू-राजनीतिक स्थिति, वैश्विक वित्तीय बाजार में उतार-चढ़ाव और आपूर्ति में व्यवधान को देखते हुए संभावना काफी अनिश्चित बनी हुई है। इस बीच, घरेलू आर्थिक गतिविधि में सुधार हो रहा है और उपभोक्ता और व्यापार आशावाद के बीच त्योहारी समय की मांग के कारण 2022-23 की दूसरी छमाही में इसके तेज होने की उम्मीद है। एमपीसी का विचार है कि मुद्रास्फीति की उम्मीदों को नियंत्रित रखने, मूल्य दबावों के विस्तार को रोकने और दूसरे दौर के प्रभावों को स्थानांतरित करने के लिए और सुविचारित मौद्रिक नीति कार्रवाई की आवश्यकता है। एमपीसी को लगता है कि इस कार्रवाई से मध्यम अवधि की संवृद्धि की संभावनाओं को समर्थन मिलेगा। तदनुसार, एमपीसी ने नीतिगत रेपो दर को 50 आधार अंकों से बढ़ाकर 5.90 प्रतिशत करने का निर्णय लिया। एमपीसी ने यह भी सुनिश्चित करने के लिए निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया कि आगे चलकर मुद्रास्फीति संवृद्धि का समर्थन करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे।
15. डॉ. शशांक भिड़े, प्रो. जयंत आर. वर्मा, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने नीतिगत रेपो दर में 50 आधार अंकों की वृद्धि करने के लिए मतदान किया। डॉ. आशिमा गोयल ने रेपो दर में 35 आधार अंकों की वृद्धि के लिए मतदान किया।
16. डॉ. शशांक भिड़े, डॉ. आशिमा गोयल, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए मतदान किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति आगे चलकर संवृद्धि को सहारा प्रदान करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे। प्रो. जयंत आर. वर्मा ने संकल्प के इस हिस्से के विरुद्ध मतदान किया।
17. एमपीसी की बैठक का कार्यवृत्त 14 अक्तूबर 2022 को प्रकाशित किया जाएगा।
18. एमपीसी की अगली बैठक 5-7 दिसंबर 2022 के दौरान निर्धारित है।
पॉलिसी रेपो दर को बढ़ाकर 5.90 प्रतिशत करने के संकल्प पर मतदान
सदस्य |
मत |
डॉ. शशांक भिडे |
हाँ |
डॉ. आशिमा गोयल |
नहीं |
प्रो. जयंत आर. वर्मा |
हाँ |
डॉ. राजीव रंजन |
हाँ |
डॉ. माइकल देवब्रत पात्र |
हाँ |
श्री शक्तिकान्त दास |
हाँ |
डॉ. शशांक भिड़े का वक्तव्य
19. वैश्विक समष्टि आर्थिक स्थितियां, खासकर उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के लिए, संवृद्धि और स्थिरता के लिए प्रतिकूल हो गई हैं। जहां दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में संवृद्धि की धीमी गति के स्पष्ट संकेत दिख रहे हैं, वहीं मुद्रास्फीति कई देशों के लक्ष्य की तुलना में उच्च दर पर बनी हुई है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अनिश्चितता ने ऊर्जा आपूर्ति और कीमतों को प्रभावित करना जारी रखा है। जबकि कोविड-19 महामारी कमजोर हो गई है, लेकिन फिर भी कुछ प्रमुख देशों में थोड़े-बहुत उछाल चिंता का विषय बना हुआ है। मुद्रास्फीति के दबावों को नियंत्रित करने के लिए वैश्विक मौद्रिक नीति सख्ती से वित्तीय बाजारों में महत्वपूर्ण वैश्विक संवृद्धि ह्रास और अस्थिरता की संभावना बढ़ गई है। निर्यात के अवसरों में गिरावट जबकि आयात अपेक्षाकृत अधिक रहने के कारण ऊर्जा आयात करने वाले ईएमई के लिए प्रतिकूल बाह्य वातावरण में वृद्धि हुई है।
20. भारत में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर सीपीआई मुद्रास्फीति, मार्च और जून 2022 के बीच 7 प्रतिशत या उससे अधिक की रहने के बाद, जुलाई में घटकर 6.7 प्रतिशत हो गई और अगस्त में फिर से बढ़कर 7 प्रतिशत हो गई। अपवाद के रूप में कुछ उत्पाद समूहों को छोड़ दे, तो मूल्य वृद्धि की उच्च दरें काफी व्यापक थी। सीपीआई के खाद्य और पेय पदार्थ तथा ईंधन और प्रकाश उप-समूहों ने जुलाई में खाद्य और पेय पदार्थों के मामले में 6.7 प्रतिशत की दर को छोड़कर मार्च से अगस्त तक की इस अवधि के दौरान 7 प्रतिशत से अधिक की वर्ष-दर-वर्ष दरें दर्ज की। आवास मूल्य सूचकांक को छोड़कर जो अगस्त में 4.1 प्रतिशत बढ़ा था, सीपीआई में 12.45 प्रतिशत के संयुक्त भार के साथ सीपीआई की प्रमुख श्रेणियों में केवल आवास और पान, तंबाकू और नशीले पदार्थों के मामले में, मुद्रास्फीति दर 4 प्रतिशत से नीचे थी। अन्य शेष उप-श्रेणियों में, कपड़ों और जूतों में लगभग 9 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर दर्ज की गई और अन्य शेष उपभोग वस्तुओं, जिसमें ‘विविध’ उप-श्रेणी भी शामिल है, ने मार्च और अप्रैल में 7 प्रतिशत से अधिक मुद्रास्फीति दर दर्ज की, इसके बाद मई-अगस्त की अवधि में 5-7 प्रतिशत की न्यून दर दर्ज की गई। हालांकि, मई 2022 में समग्र सीपीआई की माह-दर-माह गति में गिरावट आई और यह जून-अगस्त के दौरान स्थिर रही।
21. दुनिया भर में नीतिगत प्रतिक्रिया मौद्रिक नीति सख्ती की रही है। यह नीतिगत रुख मुद्रास्फीति लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जारी रहने की उम्मीद है।
22. घरेलू बाजार में वस्तु और क्षेत्रीय स्तरों पर मूल्य वृद्धि की उच्च दर की निरंतरता अंतरराष्ट्रीय बाज़ार की उच्च कीमतों और साथ ही घरेलू कारकों दोनों के प्रत्यक्ष या स्पील-ओवर प्रभाव के कारण है। उपभोक्ता स्तर पर कीमतों में किसी भी तरह की गिरावट निविष्टि कीमतों के ऊंचे स्तरों से सीमित प्रतीत होती है, हालांकि भारतीय रिज़र्व बैंक के उद्यम सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में निविष्टि मूल्य दबाव कम होने का अनुमान है।
23. कीमतों की अपेक्षाओं पर सितंबर 2022 में आरबीआई द्वारा किए गए परिवारों का सर्वेक्षण मुद्रास्फीति की निरंतर उच्च दर की उम्मीदों को इंगित करता है, जिसमें औसत अपेक्षित मुद्रास्फीति दर जुलाई 2022 में किए गए सर्वेक्षण की तुलना में अधिक है। मुद्रास्फीति की दर भी मौजूदा स्थिति की तुलना में 3 महीने आगे और एक वर्ष आगे भी उच्च रहने की उम्मीद है। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कमोडिटी की कीमतों में गिरावट के संभावित प्रभाव की तुलना में भविष्य की कीमत रीडिंग की उम्मीदें वर्तमान परिस्थितियों से अधिक प्रभावित होती हैं।
24. सितंबर 2022 में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए उद्यम सर्वेक्षण (औद्योगिक संभावना सर्वेक्षण) वित्तीय वर्ष 2022-23 की दूसरी छमाही में बिक्री की कीमतों पर कुछ राहत को दर्शाता है, क्योंकि वित्तीय वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही की तुलना में उन उत्तरदाताओं के अनुपात में गिरावट आई है, जिनका यह मानना है कि बिक्री की कीमतों में बढ़ोत्तरी होगी। हालांकि वित्तीय लागत बढ़ने की तथा अन्य इनपुट लागत दबावों में कमी आने की उम्मीद है। थोक मूल्य सूचकांक, जो उत्पादक स्तर पर मूल्य स्थितियों को दर्शाता है, ने जुलाई और अगस्त में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर दोहरे अंकों में वृद्धि दर्ज की है। जहां वस्तुओं की व्यापक श्रेणी में मूल्य परिवर्तन में भिन्नता है, वही कुछ प्रमुख श्रेणियों की वस्तुओं में मूल्य वृद्धि काफी अधिक है। सब्जियों, फलों, कच्चे पेट्रोलियम, पेट्रोल, डीजल, एलपीजी और बिजली के मामले में जुलाई और अगस्त में थोक मूल्य सूचकांक में दोहरे अंकों की दर से वृद्धि हुई। अनाज के मामले में जुलाई में 9.8 प्रतिशत और अगस्त में 11.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी। घरेलू कीमतों पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में गिरावट का असर अभी तक घरेलू उपभोक्ता कीमतों पर नहीं पड़ा है।
25. जून-सितंबर की मानसून अवधि की वर्षा सितंबर के अंतिम सप्ताह तक दीर्घकालिक औसत की तुलना में अधिक हुई है, हालांकि मानसून की अधिकांश अवधि में पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में वर्षा कम रही है। कुल मिलाकर मॉनसून की बारिश ने रबी फसल की संभावनाओं में सुधार किया है। खपत समूह में खाद्य वस्तुओं की कीमतें अल्पावधि में खरीफ फसल की मात्रा के अधीन होंगी।
26. निरंतर उच्च मुद्रास्फीति दर के संदर्भ में, मई और अगस्त 2022 के बीच मौद्रिक नीति दर में वृद्धि हुई है। हालांकि इस वृद्धि का प्रभाव बैंकिंग क्षेत्र की उधार और जमा दरों को प्रभावित करना शुरू कर रहा है, मुद्रास्फीति पर इसका मुख्य प्रभाव भविष्य की मुद्रास्फीति दर में गिरावट के अनुमान और कुल मांग के माध्यम से होगा। निश्चित रूप से अन्य कारक भी हैं जैसे कि वैश्विक अर्थव्यवस्था का धीमा होना और निर्यात और कुल मांग पर इसका प्रभाव। इस समय, त्योहारी मौसम की मांग और खरीफ की फसल जैसे मौसमी कारकों से सकल मांग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
27. वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही के लिए एनएसओ के राष्ट्रीय आय का अनुमान ने पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में स्थिर कीमतों में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 13.5 प्रतिशत रखा है। यह एमपीसी की अगस्त की बैठक में प्रदान किए गए भारतीय रिज़र्व बैंक के 16.2 प्रतिशत के अनुमान से कम है। अनुमानित वृद्धि से कम होने के बावजूद, यह 2019-20 के महामारी-पूर्व उत्पादन स्तर, जो कि वित्तीय वर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही में शुरू हुआ था, की तुलना में संवृद्धि में सतत सुधार को दर्शाता है। निजी अंतिम उपभोग व्यय और सकल स्थायी पूंजी निर्माण दोनों, जो कुल मांग के दो प्रमुख घटक हैं, ने वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर तेज वृद्धि दर्ज की गई। इस अर्थ में, समग्र संवृद्धि गति पहली तिमाही में सतत बनी हुई प्रतीत होती है।
28. पहली तिमाही के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि के न्यून अनुमानों को देखते हुए, एमपीसी की अगस्त की बैठक में अनुमानित पूरे वर्ष के लिए 7.2 प्रतिशत की वृद्धि हासिल करने के लिए आवश्यक संवृद्धि की गति को बनाए रखने पर अनिश्चितता बनी हुई है। भारतीय रिज़र्व बैंक के उद्यम सर्वेक्षण (औद्योगिक संभावना) के गुणात्मक परिणामों में मांग की स्थिति में कमजोरी के भी संकेत हैं। उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण (शहरी परिवार) के अनुसार समग्र उपभोक्ता विश्वास सूचकांक एक वर्ष आगे के अनुमानों के लिए आशावाद के संकेत देते हैं, हालांकि, मौजूदा परिस्थितियों को निराशावादी देखा जाता है। पिछले वर्ष और एक वर्ष आगे के अनुमानों की तुलना में खपत व्यय में वृद्धि को 'अनावश्यक व्यय' की तुलना में 'आवश्यक व्यय' के संबंध में अधिक व्यापक रूप से साझा किया गया है। सितंबर 2022 के लिए उद्यम सर्वेक्षण के आधार पर वित्त वर्ष 2022-23 की शेष तिमाहियों में समग्र कारोबारी संभावना की उम्मीदें आशावाद को दर्शाती हैं, लेकिन विनिर्माण, सेवाओं और अवसंरचना क्षेत्रों में मनोभावों में भी भिन्नता को दर्शाती हैं। इस संदर्भ में, वित्त वर्ष 2022-23 के लिए संशोधित सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि का अनुमान अगस्त में 7.2 प्रतिशत की तुलना में अब 7.0 प्रतिशत है। संकल्प में वर्ष के लिए त्रैमासिक विकास दर प्रदान की गई है।
29. संक्षेप में, संवृद्धि और मुद्रास्फीति के प्रक्षेपवक्र पर काफी अनिश्चितताएं बनी हुई हैं। संवृद्धि के स्तर पर, कोविड-19 महामारी संबंधी आपूर्ति पक्ष की बाधाएं महत्वपूर्ण नहीं लगती हैं। निजी निवेश और उपभोग व्यय में सुधार के लिए मूल्य स्थिरता की आवश्यकता होगी। जनवरी 2022 के बाद से सीपीआई मुद्रास्फीति दर 6 प्रतिशत से ऊपर/ अधिक बनी हुई है। जबकि मूल्य वृद्धि की गति में गिरावट के संकेत हैं, इसी गति में इस गिरावट को बनाए रखना मुद्रास्फीति और संवृद्धि के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है। मुद्रास्फीति के अनुमानों को मुद्रास्फीति की नीतिगत लक्ष्य दर के साथ संरेखित करने के लिए, इस समय नीतिगत दरों में और वृद्धि आवश्यक है।
30. मैं नीतिगत रेपो दर को 50 आधार अंक बढ़ाकर 5.9 प्रतिशत करने के लिए वोट करता हूं। मैं निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए भी वोट करता हूं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति आगे चलकर संवृद्धि का समर्थन करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे।
डॉ. आशिमा गोयल का वक्तव्य
31. वैश्विक कारकों के साथ शुरू करें तो, प्रमुख उन्नत अर्थव्यवस्था के केंद्रीय बैंक कोविड-19 के बाद अति-उत्तेजित हुए और अब मुद्रास्फीति पर अनावश्यक प्रतिक्रिया कर रहे हैं, जिससे उभरते बाजारों (ईएम) में सीमापारीय प्रवाह में अतिरिक्त अस्थिरता पैदा हो रही है। ऐसे अनिश्चित समय में प्रगामी मार्गदर्शन, चाहे हॉकिश हो या डोविश, हानिकारक है। डेटा-आधारित होने से बाजारों पर ब्याज दरों के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए वास्तविक क्षेत्र में बदलाव की अनुमति मिलती है।
32. हालाँकि, भारत के लिए दो शमन कारक हैं। सबसे पहले, प्रारंभिक चरम प्रतिक्रिया के बाद, सीमापारीय प्रवाह देश के आधार पर भेदभावपूर्ण होता है। जैसे-जैसे वैश्विक मंदी के कारण कमोडिटी की कीमतों में नरमी आती है, कुछ निवेशक जो कमोडिटी मुद्रास्फीति की चपेट में आने के कारण भारत छोड़ चुके थे, वे वापस आ जाएंगे। दूसरा, भारत अभी भी वैश्विक आघात को कम करने के लिए नीतिगत स्थान रखता है। घरेलू मांग गिरती निर्यात मांग का मुकाबला कर सकती है। नीति निर्माताओं के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे भय और अनावश्यक प्रतिक्रिया को कम करने के लिए शांत रहें।
33. घरेलू स्थिति की बात करें तो, वैश्विक पण्य कीमतों में नरमी, शुरू में थोक मूल्य सूचकांक को अधिक प्रभावित करती है। अनाज और मानसून के अंत में खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी के कारण सीपीआई बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप घरेलू मुद्रास्फीति के अनुमान बढ़ें, जबकि आईआईएम अहमदाबाद के सर्वेक्षण के अनुसार फर्मों की मुद्रास्फीति में लगभग 5% का उतार-चढ़ाव आया। बढ़ती अनिश्चितता घरेलू मुद्रास्फीति के अनुमानों के बढ़ते प्रसार में दिखाई देती है। लेकिन कंपनियां अभी भी 2023 के मध्य तक मुद्रास्फीति को 5.5% पर देखती हैं।
34. जबकि भारत दुनिया में सबसे अधिक वर्ष-दर-वर्ष संवृद्धि दर वालों में से एक है, फिर भी कुछ धीमा होने के संकेत हैं। तिमाही दर तिमाही सकल घरेलू उत्पाद पहली तिमाही में संकुचित हुई। ओईसीडी बताता है कि मौसमी रूप से समायोजित तिमाही दर तिमाही भारतीय संवृद्धि, चीन और पोलैंड के बाद सबसे कम थी। यह अनिश्चित है कि त्योहारी बढ़ोत्तरी के बाद घरेलू मांग बनी रहेगी या नहीं। भारतीय रिज़र्व बैंक के उपभोक्ता सर्वेक्षणों से पता चलता है कि 45% परिवारों ने एक वर्ष पहले की तुलना में आय के स्तर में कोई वृद्धि नहीं होने की सूचना दी।
35. हालांकि महामारी के समय रेपो दर में की गई बड़ी कटौती को उलट दिया गया है, हम अभी तक अंतिम दर पर नहीं हैं। चालू खाते के घाटे को कम करने के लिए अन्य उपायों के साथ-साथ मांग में कमी को भी योगदान देना होगा। सहन सीमा से अधिक मुद्रास्फीति के प्रति एक दृढ़ मौद्रिक नीति प्रतिक्रिया, अपेक्षाओं को नियंत्रित करने में मदद करती है। रेपो रेट को और बढ़ाना होगा। लेकिन क्या समय के साथ वृद्धि को आगे बढ़ाया जाना चाहिए या उसे रोकना चाहिए? हम फ्रंटलोडिंग के पक्ष और विपक्ष में तर्कों की जांच करते हैं।
36. जब व्यवहार अग्रगामी होता है तो फ्रंट लोडिंग मुद्रास्फीति के दबावों को रोक सकता है। लेकिन अगर भारत की तरह मौद्रिक नीति के विलंबित प्रभाव बड़े हैं, तो अनावश्यक प्रतिक्रिया बहुत महंगी हो सकती है। हानिकारक प्रभाव बहुत देर से स्पष्ट होते हैं और उन्हें उलटना मुश्किल हो जाता है। क्रमिक डेटा-आधारित कार्रवाई अनावश्यक प्रतिक्रिया की संभावना को कम करती है। 2011, 2014 और 2018 में भारतीय रेपो दरों को बहुत अधिक बढ़ा दिया गया, जिसकी कीमत भी चुकानी पड़ी। ऋण और निवेश मंदी बढ़ गई और निरंतर बनी रही। अब बहुत सावधानी से आगे बढ़ना आवश्यक है कि भविष्योन्मुखी वास्तविक ब्याज दरें सकारात्मक हों।
37. यदि बेरोजगारी कम है और मांग अधिक है तो सख्ती से उत्पादन का त्याग कम है। अतिरिक्त मांग को शून्य पर कम करने के लिए दरें निर्धारित करने से उत्पादन लागत कम होती है और भविष्य में दरों में बढ़ोतरी की आवश्यकता कम हो जाती है। भारत में, हालांकि, बेरोजगारी अधिक है। यह कि वेतन वृद्धि से लेकर सुस्त श्रम बाजारों तक दूसरे दौर की मुद्रास्फीति नहीं है। रोजगार वैश्विक आघातों की एक शृंखला से ठीक हो रहा है और मांग धीमी हो रही है।
38. उच्च अनिश्चितता भी धीमे कदमों की मांग करती है। अगर वैसे भी मांग कम होती है, तो कम नीतिगत सख्ती की आवश्यकता होगी। मुद्रास्फीति और संवृद्धि दोनों भारतीय रिज़र्व बैंक की पिछली तिमाही के अनुमान की तुलना में थोड़ा कम थे, जिससे संकेत मिलता है कि सख्ती के प्रभाव को कम करके आंका गया था। कमोडिटी की कीमतों में नरमी पर नजर रखना जरूरी है। यदि वे गिरते हैं तो वास्तविक दरें 2014-15 की तरह बहुत अधिक बढ़ सकती हैं।
39. यदि मुद्रास्फीति के अनुमान अनियंत्रित हैं तो उनके प्रत्यावर्तन के लिए एक बड़ा त्याग करना पड़ सकता है। लेकिन ईएम में संचार का अधिक प्रभाव पड़ता है। आपूर्ति-पक्ष की निरंतर कार्रवाई, वैश्विक नरमी और इन कारकों के बारे में पारदर्शी संचार से सभी मुद्रास्फीति अनुमानों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। यदि लक्ष्य एक बड़े कमोडिटी घटक के साथ हेडलाइन मुद्रास्फीति है, जिसके लिए राजकोषीय कार्रवाई का अधिक प्रभाव पड़ता है, तो सरकार पर कार्रवाई करने की अधिक जिम्मेदारी होती है। भारत सरकार ने जीवन यापन की लागत कम करने और बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया है।
40. 6 ईएम सहित पिछले देश के अनुभव के एक बीआईएस अध्ययन1 में पाया गया कि फ्रंट-लोडेड कार्रवाइयां सॉफ्ट लैंडिंग के बाद होती हैं, लेकिन नीति दर वृद्धि का औसत 45% सॉफ्ट लैंडिंग में फ्रंटलोड किया गया था और औसत सांकेतिक दर वृद्धि 2% थी। भारत में महामारी के समय में भारी कटौती के प्रत्यावर्तन के लिए बड़ी बढ़ोतरी की आवश्यकता थी। चूंकि यह पूरा हो गया है, अब धीमी गति से चलने से नीति चुस्त और डेटा-आधारित हो जाएगी। चरम हमेशा खतरनाक होते हैं; 100% फ्रंट लोडिंग आसानी से ओवरशूट कर सकती है। मॉडरेशन बेहतर है।
41. परिवारों का दृष्टिकोण स्टेग्फ़्लेश्नरी होती है, इसलिए वे उम्मीद करते हैं कि संवृद्धि गिरने पर मुद्रास्फीति बढ़ेगी2। इसके अलावा, भारतीय परिवारों को लगता है कि अगर रेपो दर बढ़ता है तो मुद्रास्फीति बढ़ेगी3। अत्यधिक दर वृद्धि मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण को विश्वसनीय नहीं बनाएगी यदि वे आपूर्ति-पक्ष मुद्रास्फीति को कम करने में असमर्थ हैं तो और इसके बजाय यह मांग और निवेश में गिरावट के रूप में लागत बढ़ाते हैं।
42. ज्यादातर विश्लेषक अमेरिकी नीति दरों के साथ स्प्रेड को बनाए रखने के लिए 50 बीपीएस की वृद्धि के लिए तर्क दे रहे हैं। यह एक डर प्रेरित अनावश्यक प्रतिक्रिया है। 2000 के दशक के मध्य में स्प्रेड150 बीपीएस से कम था और पूंजी अंतर्वाह अधिक थे। पिछले 2 वर्षों में 300 बीपीएस से अधिक के स्प्रेड से ऋण प्रवाह नहीं हुआ है। यदि अंतिम फेड दर 5% है, तो क्या हमें इसे 8% तक बढ़ाने की आवश्यकता होगी? कैरी ट्रेड वित्तपोषण का एक स्थिर स्रोत नहीं है। भारत ने अन्य देशों की नीतिगत त्रुटियों से खुद को बचाने के लिए पर्याप्त स्वतंत्रता अर्जित की है।
43. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, और कार्रवाई में कमी का संकेत देने के लिए, मैं रेपो दर में 35 बीपीएस की वृद्धि के लिए वोट करती हूं। वित्तीय वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक और एसपीएफ़ हेडलाइन दोनों का पूर्वानुमान लगभग 5% हैं, जिसका अर्थ है कि वास्तविक दर लगभग 0.75% होगी, जिसमें रेपो दर 5.75% होगी। यह लगभग एक है, और अगर मुद्रास्फीति में गिरावट अधिक है तो यह समान स्टार को पार कर सकता है। अगर संवृद्धि धीमा हुआ तो यह खतरनाक हो सकता है। एमपीसी को 6 महीने से एक वर्ष आगे की वास्तविक दर पर ध्यान केंद्रित करना होगा, क्योंकि यही वह क्षितिज है जहां मौद्रिक नीति का सबसे बड़ा प्रभाव होग।
44. इसके अलावा, जैसे-जैसे बैंकिंग चलनिधि सख्त होती जा रही है, वैसे-वैसे और अधिक प्रभाव अंतरण होगा। समय के साथ एलएएफ लिखत और चलनिधि आघातों का पूर्वानुमान उस बिंदु तक विकसित होना चाहिए जहां एक तटस्थ एमपीसी रुख को अपनाया जाता है और भारित औसत मुद्रा बाजार दरों को एलएएफ कॉरिडोर के बीच में बनाए रखा जाता है। वर्तमान में मैं 'निभाव रुख को वापस लेने' को जारी रखने के लिए वोट करती हूं क्योंकि टिकाऊ चलनिधि अभी भी अधिशेष में है। यह, अल्पावधि चलनिधि के पर्याप्त समायोजन के साथ, आवश्यकता के अनुसार वैश्विक मात्रात्मक सख्ती (क्यूटी) और संभावित बहिर्वाह का मुकाबला करने के लिए आवश्यक है। अगर हम भाग्यशाली हैं, तो नीतिगत दरों में तेजी से समन्वित वैश्विक वृद्धि के बावजूद वित्तीय अस्थिरता को रोकने के लिए चुनिंदा सीबी हस्तक्षेपों के साथ बड़े अधिशेष की तुलना में क्यूटी की बहुत धीमी गति पर्याप्त हो सकती है।
प्रो. जयंत आर. वर्मा का वक्तव्य
45. मैंने अपने अगस्त के वक्तव्य में कहा था कि उस बैठक में दर वृद्धि से अधिक निभाव को वापस लेने की आवश्यकता है। तथापि, मैंने यह भी संकेत दिया था कि हम टर्मिनल रेपो दर के करीब पहुंचना शुरू कर सकते हैं। मेरे विचार आज भी काफी हद तक वही है, और इसके आधार पर, मुझे लगता है कि एमपीसी को अब नीतिगत दर को बढ़ाकर 6 प्रतिशत करना चाहिए और फिर विराम लेना चाहिए।
46. इस वृद्धि के बाद एक विराम की आवश्यकता है क्योंकि मौद्रिक नीति अंतराल के साथ कार्य करती है। नीतिगत दर को वास्तविक अर्थव्यवस्था में संचरण होने में 3-4 तिमाहियों का समय लग सकता है, और अधिकतम प्रभाव को 5-6 तिमाहियों तक का समय लग सकता है। यदि हम इस बैठक में रेपो दर को बढ़ाकर लगभग 6 प्रतिशत कर देते हैं, तो यह केवल चार महीनों के अंतराल में लगभग दो प्रतिशत अंकों की संचयी वृद्धि होगी। यह भी मौद्रिक सख्ती की सीमा को व्यक्त करता है, क्योंकि कुछ महीने पहले, मुद्रा बाजार की दरें प्रतिवर्ती रेपो दर (रेपो दर से 65 आधार अंक नीचे) के करीब थीं। इसे ध्यान में रखते हुए, मौद्रिक सख्ती का पूर्ण परिमाण 250 आधार अंकों से अधिक होगा।
47. इस बड़ी मौद्रिक नीति कार्रवाई का अधिकतम प्रभाव वास्तविक अर्थव्यवस्था में महसूस किया जाना शेष है। वास्तव में, नीतिगत दर कार्रवाई का अधिकांश भाग ब्याज दरों के व्यापक समूह तक संचारित होना बाकी है। उदाहरण के लिए, अप्रैल-अगस्त के दौरान रेपो दर में हुई वृद्धि एक तिहाई से भी कम, खुदरा बैंक जमा दरों में संचारित हुई है। बैंक जमा ब्याज दरें बचत को प्रोत्साहित करने, खपत की मांग को कम करने और इस तरह मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हमें आगामी तिमाहियों में अधिक संचारण की आशा करनी चाहिए। जबकि नीतिगत दरों से उधार दरों तक अपेक्षाकृत अधिक संचारण हुआ है, उधार दरों से वास्तविक अर्थव्यवस्था में संचारण में भी समय लगेगा।
48. इन सबका मतलब यह है कि यह जानना जल्दबाजी होगी कि अब तक की नीतिगत कार्रवाई पर्याप्त है या नहीं। यह भी हो सकता है कि और भी अधिक मौद्रिक सख्ती की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन यह देखने के लिए इंतजार करना और यह देखना कि क्या मुद्रास्फीति को लक्ष्य के भीतर वापस लाने के लिए लगभग 6 प्रतिशत की रेपो दर पर्याप्त है या नहीं, का कोई अर्थ नहीं है। यदि हम वास्तविकता की जांच के बिना सख्ती जारी रखते हैं, तो हमें मूल्य स्थिरता प्राप्त करने के लिए आवश्यक रेपो दर से आगे निकलने का जोखिम उठाना होगा। यह सच है कि मुद्रास्फीति इस समय 6 प्रतिशत से काफी ऊपर है। तथापि, चूंकि मौद्रिक नीति अंतराल के साथ काम करती है, जो प्रासंगिक है, वह है अगली 3-4 तिमाहियों का मुद्रास्फीति पूर्वानुमान। आरबीआई के पूर्वानुमान और पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के सर्वेक्षण दोनों से पता चलता है कि अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में मुद्रास्फीति घटकर लगभग 5 प्रतिशत हो जाएगी। इस पूर्वानुमान के सापेक्ष, लगभग 6 प्रतिशत की नीतिगत दर न केवल एक सकारात्मक वास्तविक दर होगी, बल्कि तटस्थ दर से भी अधिक होने की संभावना है।
49. मेरे विचार में, ऐसे वातावरण में जहां संवृद्धि की संभावना कमजोर है, नीति दर को तटस्थ दर से ज्यादा अधिक ऊपर ले जाना खतरनाक है। जबकि आर्थिक उत्पादन का स्तर महामारी पूर्व के स्तर तक पहुंच गया है, यह महामारी पूर्व प्रवृत्ति रेखा से काफी नीचे है। वैश्विक वित्तीय स्थितियों में सख्ती और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की आशंका, घरेलू अर्थव्यवस्था पर भी दबाव का काम कर रही है। कमजोर निर्यात संवृद्धि का अर्थ है कि आर्थिक संवृद्धि को घरेलू मांग, जो अभी भी पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं है, से प्रेरित होना होगा। आर्थिक संवृद्धि की अधिकांश प्रत्याशा, बढ़ती क्षमता उपयोग के सापेक्ष निजी निवेश की बहाली की संभावना पर टिकी हुई है। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए सावधान रहना चाहिए कि अनुचित रूप से उच्च वास्तविक ब्याज दर, निवेश चक्र के इस आवश्यक उछाल को विफल ना करे। पिछली बैठक की तुलना में, कच्चे तेल की कीमतों में नरमी और अन्य कमोडिटी की कीमतों में निरंतर कमजोरी के कारण मुद्रास्फीति के लिए ऊर्ध्वगामी जोखिम कम हो गया है।
50. मैंने उस व्यापक विश्लेषक व्याख्या पर सावधानीपूर्वक विचार किया है जिसमें सुझाव दिया गया है कि 6.25 या 6.50 प्रतिशत की टर्मिनल रेपो दर उपयुक्त है। यह विश्लेषण मूल रूप से भुगतान संतुलन के दृष्टिकोण से है। यह सच है कि अतीत में (विशेषकर 1998 और 2013 में), भारत ने मुद्रा के बचाव के लिए ब्याज दरों का बहुत सफलतापूर्वक उपयोग किया है। तथापि, ये सभी प्रकरण 2016 में एमपीसी लक्षित मुद्रास्फीति की शुरुआत से पहले थे। सांविधिक अधिदेश, एमपीसी को ब्याज दरें निर्धारित करते समय केवल दो कारकों पर विचार करने के लिए प्रतिबंधित करता है - मुद्रास्फीति और संवृद्धि। यह एक सचेत विधायी विकल्प था कि मौद्रिक नीति को घरेलू आर्थिक कारकों द्वारा निर्धारित किया जाए, और बाह्य क्षेत्र को अन्य लिखतों के उपयोग द्वारा प्रबंधित करने के लिए छोड़ दिया जाए। इसका अर्थ यह है कि एमपीसी को विभेदक ब्याज दर पर वैश्विक मौद्रिक सख्ती के प्रभाव से निर्देशित नहीं किया जा सकता है।
51. एमपीसी प्रस्तावों पर मेरे वोट इन विचारों से प्रभावित हैं। दर वृद्धि की मात्रा पर पहले संकल्प के लिए, मैंने तीन विकल्पों पर विचार किया है: क्रमशः 5.75, 5.90 और 6.00 प्रतिशत की रेपो दरों के अनुरूप 35, 50, और 60 आधार अंक। मुझे लगता है कि 5.75 प्रतिशत टर्मिनल रेपो दर से काफी कम होगा, जिससे मौद्रिक सख्ती का काम अधूरा रह जाएगा, और अगली बैठक में दरों में फिर से बढ़ोतरी करना आवश्यक हो जाएगा। मेरी प्राथमिकता स्पष्ट रूप से 6 प्रतिशत के स्तर पर एक प्रगामी वृद्धि के लिए है जिसके समर्थन में मैंने उपरोक्त पैराग्राफ में तर्क दिया है। एमपीसी के बहुमत ने 5.90 प्रतिशत को चुना है जो कि मेरी 6 प्रतिशत की इच्छित दर से थोड़ा ही कम है। जैसा कि मैंने पिछले वक्तव्यों में स्पष्ट किया है, 10 आधार अंक महत्वपूर्ण नहीं हैं और मुझे इस मुद्दे पर एमपीसी के बहुमत के साथ जाने में प्रसन्नता है। अतः मैं नीतिगत रेपो दर को 50 आधार अंक बढ़ाकर 5.90 प्रतिशत करने के पक्ष में वोट करता हूं। तथापि, मैं दूसरे संकल्प के विरुद्ध वोट करता हूं क्योंकि मेरे विचार में एमपीसी को अब और सख्ती पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय विराम देना चाहिए।
डॉ राजीव रंजन का वक्तव्य
52. विश्व भर के केंद्रीय बैंकों ने इस वर्ष मुद्रास्फीति के विरुद्ध अपनी लड़ाई जारी रखी हैं और एक दर्जन से अधिक केंद्रीय बैंकों ने एक बार में 75 बीपीएस या उससे भी अधिक की दरों में बढ़ोतरी की है। जबकि वैश्विक वित्तीय बाजार, रिस्क-ऑफ रुख और अमेरिकी डॉलर की मजबूती के कारण भारत सहित उभरते बाजारों के लिए संबद्ध प्रभाव-विस्तार के साथ तत्काल आघात का सामना कर रहे हैं, 'ऐतिहासिक' वैश्विक संवृद्धि मंदी एक मध्यम अवधि का जोखिम है जिसका सामना वैश्विक अर्थव्यवस्था को करना है।
53. विश्व के कई अन्य हिस्सों की तुलना में भारत काफी बेहतर स्थिति में है। संवृद्धि आघात-सह है, और यह वर्ष 2022-23 की दूसरी, तीसरी और चौथी तिमाहियों के संवृद्धि पूर्वानुमानों में बढ़ोत्तरी अनुमानित करती है। यद्यपि निर्यात वैश्विक संवृद्धि की गिरावट के प्रति संवेदनशील हैं, लेकिन निम्नलिखित पैराग्राफों में उल्लिखित अन्य कारकों के साथ-साथ न्यूनतर वैश्विक कमोडिटी कीमतों से कुछ अनुकूल प्रभाव-विस्तार द्वारा इसकी भरपाई की जा सकती है।
54. वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही के लिए, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने वास्तविक जीडीपी संवृद्धि का अनुमान 13.5 प्रतिशत रखा, जो हमारे 16.2 प्रतिशत के अनुमान से कम था। निजी उपभोग और निवेश में एक मजबूत वृद्धि, जिसने पहली तिमाही में समग्र मांग का समर्थन किया, के बावजूद, सरकारी उपभोग में न्यूनतर संवृद्धि और निवल निर्यात से उच्चतर अवरोध ने वास्तविक जीडीपी संवृद्धि को रोका। वास्तविक आयात में उच्चतर संवृद्धि ने - आयात की कीमतों में तेज वृद्धि के बावजूद 13.7 प्रतिशत की प्रत्याशा से कम अपस्फीतिकारक मुद्रास्फीति के साथ - वास्तविक निर्यात संवृद्धि को काफी पीछे छोड़ दिया।
55. पुनः, व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और प्रसारण से संबंधित सेवाओं में जीवीए संवृद्धि से परिलक्षित संपर्क-गहन सेवाओं में संवृद्धि भी प्रत्याशा से कम हो गई है। जबकि यह क्षेत्र इसके महामारी पूर्व स्तर से 2021-22 की चौथी तिमाही, जो ओमिक्रोन से प्रभावित थी, में 1.7 प्रतिशत आगे निकल गया था, यह 2022-23 की पहली तिमाही, जो अपेक्षाकृत सामान्य थी, में अपने महामारी पूर्व स्तर से 15.5 प्रतिशत नीचे फिसल गया। यह मानते हुए कि यदि यह क्षेत्र 2022-23 की पहली तिमाही में महामारी पूर्व (अर्थात 2019-20 की पहली तिमाही) स्तर पर पहुंच जाता, तो तिमाही के दौरान वास्तविक जीवीए संवृद्धि 16.1 प्रतिशत रही होती। विशेष रूप से, इस उप-समूह का महामारी पूर्व अवधि की जीवीए में लगभग पांचवां हिस्सा था।
56. तदनुसार, 2022-23 की दूसरी छमाही के अनुमान को ऊर्ध्वगामी संशोधित किया गया है। यह आशा है कि अतिरिक्त घरेलू बचत के बफर के साथ दो वर्ष बाद त्योहारों के पूर्ण उत्सव के कारण आर्थिक गतिविधि द्वारा संवेग प्राप्त करने की संभावना है, जिससे निजी उपभोग में वृद्धि होगी। भले ही परिवारों की वित्तीय बचत 2020-21 के दौरान जीडीपी के 12.0 प्रतिशत के चरम स्तर से 2021-22 में 8.3 प्रतिशत तक सामान्यीकृत हो गई है, यह अनुमान है कि मार्च 2022 के अंत में उनकी निवल मालियत, जो मार्च 2020 के अंत के स्तर से अधिक है, के आधार पर परिवारों के पास अभी भी जीडीपी के लगभग 7 प्रतिशत अतिरिक्त बचत थी।4 जैसे-जैसे उपभोग बढ़ता है और क्षमता उपयोग एक सीमा से अधिक हो जाता है, यह निवेश, संवृद्धि का दूसरा इंजन, को बढ़ावा दे सकता है। हमारे समष्टि आर्थिक मॉडल के आधार पर 2023-24 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है।5 भारत द्वारा 2023 में जी-20 की अध्यक्षता ग्रहण करने से उच्चतर बुनियादी संरचना और पर्यटन संबंधी निवेश के साथ आर्थिक गतिविधियों को समर्थन मिलने की संभावना है।
57. पिछले द्विमासिक के बाद से, हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति जुलाई में 6.7 प्रतिशत कम होने के बाद अगस्त में बढ़कर 7.0 प्रतिशत हो गई। फिर भी, जून-अगस्त 2022 के दौरान हेडलाइन सीपीआई (या मूल्य गति) में माह-दर-माह परिवर्तन लगभग 0.5 प्रतिशत पर स्थिर था और मुद्रास्फीति में दोतरफा गति आधारभूत प्रभावों के कारण थी। खाद्य और मूल सीपीआई (खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई) ने हाल के महीनों में कीमतों में तेजी लाई है, मूल मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत की उच्चतर सहन सीमा के आसपास बनी हुई है। दालों, दूध, सब्जियों और मसालों के साथ-साथ अनाजों में कीमतों के दबाव के ज़ोर के कारण अगस्त में खाद्य मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई। मूल रूप के विभिन्न अपवर्जन-आधारित उपाय अगस्त में 5.9 प्रतिशत से 6.2 प्रतिशत के बीच थे। वास्तव में, मुख्य मुद्रास्फीति के सभी सुव्यवस्थित औसत माप अगस्त में बढ़े और 6.2 प्रतिशत से 6.8 प्रतिशत की सीमा में थे और भारित औसत अगस्त में 80 बीपीएस की मजबूत वृद्धि के साथ 6.5 प्रतिशत दर्ज किया गया। कुछ मायनों में अगस्त में मूल प्रसार सूचकांकों, जो अगस्त में मजबूत हुए, से भी मूल रूप में मूल्य दबाव में बढ़ोतरी दिखाई दे रही है। मुद्रास्फीति प्रत्याशाएं भी उच्च बनी हुई हैं।
58. तथापि, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा दर वृद्धि और आपूर्ति बाधाओं में कमी के धीमे प्रभाव को देखते हुए, अगले वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति के घटकर सहन स्तर के भीतर रहने की आशा है। भारतीय रिज़र्व बैंक के त्रैमासिक मॉडल-आधारित पूर्वानुमान से पता चलता है कि 2023-24 के दौरान मुद्रास्फीति की दर औसतन 5.2 प्रतिशत होगी।
59. वर्तमान समष्टि आर्थिक सम्मिश्र में, जबकि इस बैठक में दरों में बढ़ोतरी आवश्यक है, 35 से 50 बीपीएस के बीच वृद्धि का विकल्प उचित है। संवृद्धि-मुद्रास्फीति गतिकी को देखते हुए, मेरा वोट रेपो दर में 50 बीपीएस की वृद्धि तथा यह सुनिश्चित करने के लिए, कि मुद्रास्फीति संवृद्धि का समर्थन करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे, निभाव को वापस लेने के नीतिगत रुख के साथ जारी रहने के लिए है। सबसे पहले, मुद्रास्फीति के मौजूदा स्तर और इसके आसपास की अनिश्चितता के कारण, मूल्य दबावों को व्यापक होने से रोकने और केंद्रीय बैंक की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं पर रोक लगाना महत्वपूर्ण है, जिसके लाभ मैंने अपने पिछले कार्यवृत्त में बताए थे। दूसरा, मुद्रास्फीति लक्ष्य के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता दिखाते हुए, मौद्रिक नीति अपने 'मुद्रास्फीति अधिदेश’ पर ध्यान केंद्रित करती है। जैसा कि हम एक सूचना-समृद्ध विश्व में रह रहे हैं, हम कुछ सूचना-अंशों से प्रभावित होकर प्रत्याशाओं का निर्माण कर सकते हैं, जिससे कीमतें, उपभोग और निवेश प्रभावित होता है। जब भी वर्तमान मुद्रास्फीति बढ़ जाती है, प्रतिबद्ध मौद्रिक नीति कार्रवाइयां अर्थव्यवस्था में विभिन्न एजेंटों का ध्यान 'मुद्रास्फीति अधिदेश' पर केंद्रित करती हैं। इससे बदले में, पुनः मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को स्थिर करने में मदद मिलेगी।6 तीसरा, आघात-सह संवृद्धि, जिसके बारे में मैंने पहले उल्लेख किया था, हमें कार्रवाई करने का अवसर प्रदान करती है। चौथा, इस कथित तथ्य, कि वास्तविक तटस्थ दरों में विश्व स्तर पर और साथ ही भारत में भी गिरावट आई है7, का समर्थन करने वाले हाल के अनुभवजन्य साक्ष्य के बावजूद हमें इस समय वर्तमान मुद्रास्फीति के स्तर और अधिक चलनिधि की स्थिति को ध्यान में रखना होगा।
60. नीतिगत रेपो दर में वृद्धि को दर्शाते हुए, मई से अगस्त 2022 की अवधि के दौरान अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के नए रुपया ऋणों पर भारित औसत उधार दर (डब्ल्यूएएलआर) में 82 आधार अंकों की वृद्धि हुई है। बाह्य बेंचमार्क उधार दर (ईबीएलआर) से जुड़े ऋणों (जून 2022 के अंत में 46.9 प्रतिशत) की हिस्सेदारी में वृद्धि के साथ-साथ ऐसे ऋणों के लिए न्यून पुनर्निर्धारण अवधि ने बकाया ऋणों पर डब्ल्यूएएलआर में संचारण की गति में काफी सुधार किया है। देयता पक्ष पर, यदि खुदरा और थोक जमा दोनों पर विचार करें, तो मियादी जमा दरों पर प्रभाव अंतरण अधिक है। कुछ छोटी बचत लिखतों पर ब्याज दरों में वृद्धि के साथ संचारण सीमा में और सुधार होने की आशा है।
61. ऐसे परिदृश्य में जहां संवृद्धि संवेग में तेजी हो और मुद्रास्फीति के दबाव का वर्ष के शेष भाग में उच्च रहने का अनुमान हो, 2023-24 की पहली तिमाही में कमी दर्ज करने से पहले, मौद्रिक नीति को यह सुनिश्चित करने के लिए कि अंशशोधित नीतिगत दर वृद्धि से मुद्रास्फीति प्रत्याशा कम हो और मूल्य स्थिरता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता मजबूती से स्थापित हो, निभाव को वापस लेने के साथ दृढ़ रहना होगा। यह संवृद्धि और मुद्रास्फीति के इष्टतम सम्मिश्र को प्राप्त करने में मदद करेगा जो मध्यम अवधि में उच्च संवृद्धि प्रक्षेपवक्र की नींव रखेगा।
डॉ. माइकल देवव्रत पात्र का वक्तव्य
62. केंद्रीय बैंक अपने स्वयं के ऐतिहासिक अनुभव से कहीं अधिक नीतिगत दरों को बढ़ाने के लिए लॉकस्टेप में दौड़ लगाते हैं। आखिरकार, मुद्रास्फीति का मौजूदा स्तर दशकों में नहीं देखा गया है। क्या वे ओवरशूटिंग कर रहे हैं, या इसे ज़्यादा कर रहे हैं?
63. वे मुद्रास्फीति के ऊंचे और लगातार बने रहने के जोखिमों के विरुद्ध मंदी की संभावनाओं को संतुलित कर रहे हैं। अपने जनादेश और विश्वसनीयता को देखते हुए वे अर्जित करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं (महामारी में, उन्होंने मूल्य स्थिरता पर पुनरुद्धार को प्राथमिकता दी, जिसे दोष नहीं दिया जा सकता है, लेकिन यह है), वे 1970 के दशक के रेडक्स के डर से अब मुद्रास्फीति को लक्ष्य तक लाने के अपने दृढ़ संकल्प में जल्दबाजी के पक्ष में गलती करना पसंद करते हैं।
64. मुद्रास्फीति का यह झटका पारंपरिक पूर्वानुमान मॉडल को हरा देता है। हाल के विकास की विशेषता वाले मापदंड पारंपरिक मॉडलों द्वारा अनुमानित सीमाओं से बहुत बाहर हैं। वास्तव में कोई नहीं जानता कि इस माहौल में क्या बहुत दूर है या क्या काफी दूर है। इसलिए, केंद्रीय बैंक जोखिम कम करने की रणनीति अपनाते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे उन्हें सही पथ पर जाने और बाद में यदि आवश्यक हो तो ब्याज दरों को कम करने की अनुमति देते हुए मुद्रास्फीति को समाप्त कर सकते हैं।
65. फिर भी, मुद्रास्फीति के वर्तमान में उपलब्ध अनुमानों से पता चलता है कि वास्तविक नीतिगत दरें 2022 के अंत तक नकारात्मक ही रहेंगी। इसलिए, यदि टर्मिनल दरों को हासिल करना है तो 2023 में मौद्रिक नीति को और अधिक सख्त करने की आवश्यकता हो सकती है। यह आक्रामक आगे के मार्गदर्शन में परिलक्षित हो रहा है, जिसने हाल के दिनों में बड़ी दर की कार्रवाइयों में मूल्य निर्धारण के मद्देनजर राहत रैली को प्रभावी ढंग से रोक दिया है। करेंसी स्लाइड क्लिफ इवेंट बन गए हैं। इक्विटी और बॉन्ड समान रूप से बिक रहे हैं। अत्यधिक जोखिम प्रतिकूलता बाजारों और निवेशकों को जकड़ लेता है।
66. असंभव त्रिमूर्ति के क्रिस्टलीकरण से मुद्रास्फीति प्रबंधन अचानक जटिल हो जाता है। घरेलू रूप से उन्मुख मौद्रिक नीति का संचालन, एक समान दिशा वाली विनिमय बाज़ार अस्थिरता और मोबाइल पूंजी प्रवाह के प्रति बंधक बनता जा रहा है और यह सुरक्षित आश्रय की तलाश में है। मंदी के जोखिम क्षितिज को गंभीर कर सकते हैं, लेकिन तत्काल रूप से, वैश्विक समष्टि आर्थिक और वित्तीय स्थिरता खतरे में है। कोई भी देश अछूता नहीं है। प्रणालीगत केंद्रीय बैंकों को इस संभावना पर ध्यान देना चाहिए कि आज का स्पिलओवर कल का स्पिलबैक बन सकता है।
67. भारत जैसे शुद्ध वस्तु आयातकों के लिए, सीपीआई के एक तिहाई से अधिक आयात के साथ, व्यापार सदमे की एक नकारात्मक शर्त, समष्टि आर्थिक प्रबंधन को जटिल बनाती हैं। जैसे-जैसे चालू खाते का घाटा बढ़ता है और पूंजी प्रवाह अस्थिर होता है, आरक्षित निधि में कमी न केवल जोखिम वाले बाजार के लिए विदेशी मुद्रा तरलता का स्रोत बन जाती है, बल्कि संभावनाओं को स्थिर करने का साधन भी बन जाती है - आरबीआई स्थिरता के लिए मौजूद है। विनिमय दर में अस्थिरता को कम करना, दो दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण हो जाता है: (ए) विदेशी मुद्रा एक्सपोजर और निगमों के मार्जिन पर दबाव से वित्तीय स्थिरता के जोखिमों को सीमित करना; तथा (बी) वित्तीय बाजारों के व्यवस्थित कामकाज को सुनिश्चित करना ताकि अस्थिरता वित्तीय स्थिरता जोखिमों में परिवर्तित न हो जाए। खुशी के समय के दौरान संचय विवेकपूर्ण साबित हुआ है।
68. स्पिलओवर वैश्विक और अत्यधिक तीव्र है; हालांकि, स्थिरता प्राप्त करने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय है। प्रत्येक देश अपने आप में है।
69. भारत में, मई 2022 में शुरू हुई मुद्रास्फीति में नरमी, आपूर्ति के झटके से बाधित हो गई है जो सितंबर तक बढ़ सकती है। हालांकि ये झटके इस मोड़ पर क्षणभंगुर दिखाई देते हैं - ऊर्जा की कीमतों को छोड़कर, जो कि विकसित हो रही भू-राजनीतिक स्थिति से आकार लेंगे - यदि झटके बने रहते हैं या फिर से आते हैं तो दूसरे क्रम के प्रभावों के बारे में सतर्क रहना महत्वपूर्ण है। हालांकि, जो चिंता की बात है, वह यह है कि इन अस्थायी प्रभावों से छीनी गई मुद्रास्फीति, मुद्रास्फीति लक्ष्य के ऊपरी सहिष्णुता बैंड के आसपास अडिग और कसकर सीमाबद्ध हो गई है। आरबीआई के दूरंदेशी सर्वेक्षणों से पता चलता है कि विनिर्माण और सेवाओं में बिक्री की कीमतें और बढ़ सकती हैं क्योंकि निविष्टि लागत दबाव से प्रभाव अंतरण अधूरा रहता है। विनिमय दर में उतार-चढ़ाव, विशेष रूप से प्रमुख आयात कीमतों को अमेरिकी डॉलर में चालान किए जाने के मद्देनजर, इन मुख्य मूल्य दबावों को बढ़ा रहा है। मुद्रास्फीति की उम्मीदें बढ़ रही हैं, इस संकेत के साथ कि वे एक वर्ष आगे के क्षितिज से मुक्त हो रहे हैं। उत्पादन अंतराल बंद होने, विनिर्माण में क्षमता उपयोग में बढ़ोत्तरी, सेवाओं की बढ़ती मांग और त्योहारी सीजन के साथ-साथ खर्च में तेजी को देखते हुए मौद्रिक नीति को रेड अलर्ट की ओर जाना चाहिए।
70. इस महत्वपूर्ण मोड़ पर, मौद्रिक नीति को अर्थव्यवस्था के लिए नाममात्र आश्रय की भूमिका निभानी है क्योंकि यह एक नया संवृद्धि प्रक्षेपवक्र तैयार करता है। लक्ष्य के साथ मुद्रास्फीति को संरेखित करने में समय के अनुरूप होने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में, मौद्रिक नीति कार्रवाइयों का प्रारम्भिक भार, मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को मजबूती से स्थिर रख सकता है और आपूर्ति के प्रति मांग को संतुलित कर सकता है ताकि मुख्य मुद्रास्फीति दबाव कम हो सके। यह मुद्रास्फीति को लक्ष्य पर वापस लाने से जुड़े मध्यम अवधि के संवृद्धि बलिदान को भी कम करेगा क्योंकि यह घरेलू अर्थव्यवस्था की हो रही बहाली को मजबूत करने के लिए समय पर किया जा रहा है और जिससे वर्ष के दौरान गति प्राप्त करने की संभावना है।
71. तदनुसार, मैं नीतिगत रेपो दर में 50 आधार अंकों की वृद्धि करने और निभाव को वापस लेने के रुख को बनाए रखने के लिए वोट करता हूं।
श्री शक्तिकान्त दास का वक्तव्य
72. दुनिया आक्रामक मौद्रिक नीति के कड़े होने और उन्नत अर्थव्यवस्था (एई) केंद्रीय बैंकों से और भी अधिक आक्रामक प्रगामी मार्गदर्शन से उत्पन्न एक नए तूफान की नजर में है। इसके परिणामस्वरूप वैश्विक वित्तीय स्थितियाँ सख्त हो गई हैं, वित्तीय बाजारों में अत्यधिक अस्थिरता, निवेशकों के बीच जोखिम विमुखता और अमेरिकी डॉलर की तीव्र वृद्धि हुई है। मुद्रास्फीति के वैश्वीकरण और व्यापार के विघटन के साथ इस तरह के बाजार में उथल-पुथल का, उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) के लिए बेहद नकारात्मक परिणाम हैं। एई में भी, यह तेजी से गतिरोध से संभावित मंदी की ओर बढ़ रही है। ये घटनाक्रम तब भी हो रहे हैं जब दुनिया अभी भी कोविड-19 के झटके और यूक्रेन में संघर्ष से जूझ रही है।
73. इन सबके बीच, भारतीय अर्थव्यवस्था समष्टि आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के साथ लचीलेपन की तस्वीर प्रस्तुत करती है। कॉरपोरेट्स और बैंकों जैसे प्रमुख हितधारकों के तूलैन-पत्र मजबूत बनी हुई है। हालांकि, एक दूसरे से जुड़ी दुनिया में, भारतीय अर्थव्यवस्था स्पष्ट रूप से अस्थिर वैश्विक वातावरण से प्रभावित होती है। न केवल हमारी घरेलू मुद्रास्फीति और संवृद्धि की गतिशीलता के लिए, बल्कि वित्तीय बाजारों के लिए भी स्पष्ट परिणाम हैं।
74. संवृद्धि के संबंध में, आर्थिक गतिविधियों में लगातार सुधार हो रहा है। हालाँकि, मिश्रित संकेत हैं। जबकि उच्च आवृत्ति संकेतक गतिविधि में निरंतर गति दिखा रहे हैं, वैश्विक कारक बाहरी मांग पर दबाव डाल रहे हैं। अतः, 2022-23 के लिए 7.0 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान जोखिम भरा है जो मोटे तौर पर संतुलित है। सामने आने वाला परिदृश्य जो भी हो, दुनिया में भारत, सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने की उम्मीद है।
75. दूसरी ओर, हेडलाइन मुद्रास्फीति लक्ष्य के ऊपरी सहिष्णुता बैंड से ऊपर और ऊपर बनी हुई है। वर्तमान अनुमानों के अनुसार, हेडलाइन सीपीआई 2022-23 की चौथी तिमाही में 5.8 प्रतिशत तक और 2023-24 की पहली तिमाही में 5.0 प्रतिशत तक रहने की उम्मीद है। भविष्य के प्रक्षेपवक्र में, निरंतर भू-राजनीतिक संघर्षों, आपूर्ति में व्यवधान की संभावना, अस्थिर वित्तीय बाजार की स्थिति और घरेलू मौसम संबंधी कारकों से उत्पन्न अनिश्चितताओं के बादल छाए हुए हैं।
76. कुल मिलाकर, मैं भारतीय अर्थव्यवस्था की भविष्य की संभावनाओं, इसकी लचीलापन और वर्तमान और उभरती चुनौतियों से निपटने की क्षमता के बारे में आशावादी हूं। हमें मूल्य दबावों के विस्तार को रोकने, मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को स्थिर करने और दूसरे दौर के प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए जो कुछ भी आवश्यक है और अपने नियंत्रण में करने की आवश्यकता है। समय की मांग है कि हमारी मध्यम अवधि की संवृद्धि संभावनाओं को बनाए रखने के लिए एक स्पष्ट समझ के साथ अंशशोधित मौद्रिक नीति कार्रवाई की जाए। तदनुसार, मैं नीतिगत रेपो दर को 50 आधार अंक बढ़ाने के लिए वोट करता हूं। जहां तक रुख का संबंध है, मैं निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करने हेतु वोट करता हूं यह सुनिश्चित करने के लिए कि संवृद्धि का समर्थन करते हुए मुद्रास्फीति लक्ष्य के भीतर बनी रहे। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भले ही नीतिगत दर पूर्व-महामारी के स्तर पर चली गई हो, चलनिधि की स्थिति और मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए समग्र मौद्रिक स्थितियाँ उदार बनी हुई हैं। निवल चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) तीन वर्षों से अधिक समय से अधिशेष में बनी हुई है। बैंकों की अतिरिक्त सीआरआर और एसएलआर धारिता और सरकार के राजस्व और व्यय पैटर्न सहित सभी चलती चरों को ध्यान में रखते हुए प्रणाली में तरलता को समग्रता में देखा जा सकता है।
77. प्राप्त आंकड़ों और उभरती परिस्थितियों के आधार पर आगे बढ़ते हुए, मौद्रिक नीति को सतर्क और चुस्त रहने की जरूरत है। हमें अपने समष्टि आर्थिक बुनियादी सिद्धांतों को मजबूत करते हुए मुद्रास्फीति के मोर्चे पर सतर्क रहना चाहिए। वित्तीय और बाहरी क्षेत्र भी रिज़र्व बैंक की कड़ी निगरानी में हैं। अंतिम विश्लेषण में, भारत की विकास गाथा के इर्द-गिर्द आशावाद और विश्वास है और हमारी वर्तमान कार्रवाई से उस आख्यान में विश्वास जोड़ने की उम्मीद है।
(योगेश दयाल)
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/1043
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