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गवर्नर का वक्तव्य

8 फरवरी 2023

गवर्नर का वक्तव्य

नए वर्ष के प्रथम मौद्रिक नीति वक्तव्य को शुरू करते हुए मुझे भारतीय रिज़र्व बैंक हेतु वर्ष 2023 के ऐतिहासिक महत्व का स्मरण होता है। एक संयुक्त स्टॉक कंपनी से, भारतीय रिज़र्व बैंक को 1 जनवरी 19491 को सार्वजनिक स्वामित्व में लाया गया। इस प्रकार, वर्ष 2023 भारतीय रिज़र्व बैंक के सार्वजनिक स्वामित्व और एक राष्ट्रीय संस्था के रूप में इसके उद्भव का 75वां वर्ष है। इस अवधि में मौद्रिक नीति के विकास पर संक्षेप में विचार करने का यह एक उपयुक्त क्षण है। आज़ादी के बाद के दो दशकों में भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत अर्थव्यवस्था की ऋण अपेक्षाओं को समर्थन प्रदान करने की थी। अगले दो दशक 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण, तेल के आघात, बड़े बजट घाटे के मुद्रीकरण तथा मुद्रा आपूर्ति और मुद्रास्फीति में तेज वृद्धि के रूप में अभिलक्षित होते हैं। 1980 के दशक के मध्य में मुद्रा आपूर्ति में संवृद्धि को रोकने और मुद्रास्फीति के दबावों को कम करने हेतु मौद्रिक लक्ष्यीकरण को अपनाया गया। 1990 के दशक की शुरुआत से, भारतीय रिज़र्व बैंक ने बाजार सुधारों और संस्था निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया। अप्रैल 1998 में एक बहुसंकेतक दृष्टिकोण अपनाया गया जिसके अंतर्गत नीति निर्माण के लिए कई संकेतकों की निगरानी की गई। वैश्विक वित्तीय संकट और टेंपर टैंट्रम के बाद, भारत में मुद्रास्फीति की स्थिति बिगड़ने के कारण, मौद्रिक नीति को एक विश्वसनीय मौद्रिक अवलंब प्रदान करने हेतु लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (एफ़आईटी) को औपचारिक रूप से जून 2016 में अपनाया गया। जैसा कि हम जानते हैं, एफआईटी ढांचे के अंतर्गत मौद्रिक नीति का प्राथमिक उद्देश्य संवृद्धि के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना है।

2. वर्तमान समय में, पिछले तीन वर्षों की अभूतपूर्व घटनाओं ने वैश्विक स्तर पर मौद्रिक नीति ढांचे को परीक्षण पर रख दिया है। बहुत ही कम अवधि में, विश्व भर में मौद्रिक नीतियां परस्परव्याप्त आघातों की एक श्रृंखला की प्रतिक्रिया में एक चरम से दूसरे चरम पर आ गई हैं। 1990 के दशक के महान संतुलन युग और इस सदी के शुरुआती वर्षों के विपरीत, मौद्रिक नीति को आर्थिक गतिविधियों में अभूतपूर्व संकुचन के साथ वैश्विक मुद्रास्फीति में वृद्धि का सामना करना पड़ा। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था और मुद्रास्फीति की गतिशीलता में संरचनात्मक परिवर्तनों और मौद्रिक नीति के संचालन के लिए उनके निहितार्थों की गहरी समझ को आवश्यक बनाता है।

3. वर्तमान अस्थिर वैश्विक वातावरण में, उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाएं (ईएमई) नीतिगत विश्वसनीयता को बनाए रखते हुए आर्थिक गतिविधियों को समर्थन प्रदान करने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के बीच तीव्र समझौताकारी समन्वयन का सामना कर रही हैं। जैसे-जैसे व्यापार, प्रौद्योगिकी और निवेश प्रवाह में वैश्विक खामियाँ उभरती हैं, वैश्विक सहयोग को सुदृढ़ करने की तत्काल आवश्यकता है। विश्व कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में वैश्विक सहभागिता को क्रियाशील करने हेतु भारत, जो इस समय जी-20 का अध्यक्ष है, की ओर देख रही है। यह मुझे महात्मा गांधी की कही बात याद दिलाता है: "मुझे विश्वास है कि ... भारत ... दुनिया की शांति और ठोस प्रगति में स्थायी योगदान दे सकता है।"2

मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के निर्णय और विचार-विमर्श

4. मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक 6, 7 और 8 फरवरी 2023 को हुई। समष्टि आर्थिक स्थिति और इसकी संभावना के मूल्यांकन के आधार पर, एमपीसी ने 6 में से 4 सदस्यों के बहुमत से तत्काल प्रभाव से नीतिगत रेपो दर को 25 आधार अंक बढ़ाकर 6.50 प्रतिशत करने का निर्णय लिया है। परिणामस्वरूप, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर संशोधित होकर 6.25 प्रतिशत; तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ़) दर और बैंक दर 6.75 प्रतिशत प्रतिशत हो गई है। एमपीसी ने 6 में से 4 सदस्यों के बहुमत से निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति आगे चलकर संवृद्धि को सहारा प्रदान करते हुए लक्ष्य के भीतर बनी रहे।

5. अब मैं नीतिगत दर और रुख पर इन निर्णयों के लिए एमपीसी के तर्क के बारे में बताता हूं। वैश्विक आर्थिक परिदृश्य अब उतना विकट नहीं दिखता जितना कुछ महीने पहले था। प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में संवृद्धि की संभावनाओं में सुधार हुआ है, जबकि मुद्रास्फीति अधोगामी है, तथापि प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में यह अभी भी लक्ष्य से काफी ऊपर है। स्थिति अस्थिर और अनिश्चित बनी हुई है। हाल की आशापूर्ण दृष्टि को दर्शाते हुए, आईएमएफ़ ने 2022 और 2023 के लिए वैश्विक संवृद्धि अनुमानों को ऊर्ध्वगामी संशोधित किया है।3 मूल्य दबाव कम होने के कारण, कई केंद्रीय बैंकों ने धीमी दर वृद्धि या विराम का विकल्प चुना है। अमेरिकी डॉलर दो दशकों के अपने उच्चतम स्तर से तेजी से नीचे आया है। आक्रामक मौद्रिक नीति कार्रवाइयों, अस्थिर वित्तीय बाजारों, ऋण संकट, लंबी भू-राजनीतिक युद्धस्थिति और विखंडन के कारण सख्त वित्तीय स्थितियां वैश्विक अर्थव्यवस्था की संभावना को गंभीर अनिश्चितता प्रदान करती हैं।

6. इन अस्थिर वैश्विक घटनाक्रमों के बीच, भारतीय अर्थव्यवस्था आघात सहनीय बनी हुई है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, 2022-23 में वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 7.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है। उच्च रबी क्षेत्रफल, अविरत शहरी मांग, ग्रामीण मांग में सुधार, मजबूत ऋण विस्तार, उपभोक्ता और कारोबार प्रत्याशा में वृद्धि और केंद्रीय बजट 2023-24 में पूंजीगत व्यय और बुनियादी ढांचे पर सरकार का बढ़ा हुआ जोर आने वाले वर्ष में आर्थिक गतिविधि का समर्थन करेगा। कमजोर बाह्य मांग और अनिश्चित वैश्विक वातावरण, तथापि, घरेलू संवृद्धि की संभावनाओं पर दबाव डालेंगे।

7. भारत में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति नवंबर-दिसंबर 2022 के दौरान सब्जियों की कीमतों में भारी गिरावट के कारण ऊपरी सहन स्तर से नीचे आ गई। मूल मुद्रास्फीति, तथापि, स्थिर बनी हुई है।

8. आगे देखते हुए, जबकि 2023-24 में मुद्रास्फीति के कम होने की आशा है, इसके 4 प्रतिशत लक्ष्य से ऊपर रहने की संभावना है। संभावना पर भू-राजनीतिक तनावों, वैश्विक वित्तीय बाजार में अस्थिरता, गैर-तेल कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि और कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से जारी अनिश्चितताओं के बादल छाए हुए हैं। वहीं, भारत में आर्थिक गतिविधियों के ठीक रहने की आशा है। मई 2022 से दरों में वृद्धि अभी भी प्रणाली के माध्यम से अपना काम कर रही है। समग्र रूप से, एमपीसी का विचार था कि मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को नियंत्रित करने, मूल मुद्रास्फीति की सततता को तोड़ने और इस तरह मध्यम अवधि की संवृद्धि संभावनाओं को मजबूत करने के लिए आगे सुविचारित मौद्रिक नीति कार्रवाई की आवश्यकता है। तदनुसार, एमपीसी ने नीतिगत रेपो दर को 25 आधार अंकों से बढ़ाकर 6.50 प्रतिशत करने का निर्णय लिया। एमपीसी उभरती मुद्रास्फीति संभाना पर कड़ी निगरानी बनाए रखना जारी रखेगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह सहन-सीमा के भीतर बनी रहे और उत्तरोत्तर लक्ष्य के साथ संरेखित हो।

9. 2023-24 की चौथी तिमाही में मुद्रास्फीति के औसतन 5.6 प्रतिशत रहने की आशा है, जबकि नीतिगत रेपो दर 6.50 प्रतिशत है। मुद्रास्फीति के लिए समायोजित, नीतिगत दर अभी भी अपने महामारी पूर्व स्तर से कम है। जनवरी 2023 में एलएएफ के अंतर्गत ₹1.6 लाख करोड़ के औसत दैनिक अवशोषण के साथ चलनिधि अधिशेष है। अतः, समग्र मौद्रिक स्थिति निभावकारी बनी हुई है और इसलिए, एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया।

संवृद्धि और मुद्रास्फीति का आकलन

संवृद्धि

10. 2022-23 की तीसरी और चौथी तिमाही के लिए उपलब्ध आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में आर्थिक गतिविधि आघात-सह बनी हुई है। विशेष रूप से यात्रा, पर्यटन और आतिथ्य जैसी सेवाओं पर विवेकाधीन व्यय में निरंतर बहाली के कारण शहरी खपत की मांग मजबूत हो रही है। यात्री वाहन बिक्री और घरेलू हवाई यात्री यातायात ने मजबूत वर्ष-दर-वर्ष (वाई-ओ-वाई) संवृद्धि दर्ज की। दिसंबर 2022 में पहली बार घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या महामारी से पहले के स्तर को पार कर गई। दिसंबर में ट्रैक्टर की बिक्री और दोपहिया वाहनों की बिक्री बढ़ने के कारण ग्रामीण मांग में सुधार के संकेत जारी हैं। कई उच्च आवृत्ति संकेतक4 भी गतिविधि के मजबूत होने का संकेत दे रहे हैं।

11. निवेश गतिविधि में तेजी जारी है। 27 जनवरी 2023 को गैर-खाद्य बैंक ऋण में 16.7 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) की वृद्धि दर्ज की गई। वाणिज्यिक क्षेत्र में संसाधनों के कुल प्रवाह में 2022-23 के दौरान अब तक 20.8 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है, जबकि एक वर्ष पहले यह 12.5 लाख करोड़ रुपये थी। नियत निवेश के संकेतकों - सीमेंट उत्पादन; स्टील की खपत; और पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन और आयात में नवंबर और दिसंबर में मजबूत संवृद्धि दर्ज की गई। सीमेंट, स्टील, खनन और रसायन जैसे कई क्षेत्रों में निजी क्षेत्र में अतिरिक्त क्षमता सृजित होने के संकेत मिल रहे हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक के सर्वेक्षण के अनुसार, 2022-23 की दूसरी तिमाही में मौसमी रूप से समायोजित क्षमता उपयोग बढ़कर 74.5 प्रतिशत हो गया। दूसरी ओर, निवल बाह्य मांग में कमी, 2022-23 की तीसरी तिमाही में वाणिज्य वस्तु निर्यात के संकुचन के रूप में जारी रही।

12. आपूर्ति पक्ष पर, अच्छी रबी बुवाई, उच्च जलाशय स्तर, मिट्टी की अच्छी नमी, अनुकूल सर्दियों के तापमान और उर्वरकों की सहज उपलब्धता के साथ कृषि गतिविधि मजबूत बनी हुई है।5 जनवरी 2023 में पीएमआई विनिर्माण और पीएमआई सेवाओं का विस्तार क्रमशः 55.4 और 57.2 रहा।

13. संभावना की ओर मुड़ते हुए, अपेक्षित उच्च रबी उत्पादन ने कृषि और ग्रामीण मांग की संभावनाओं में सुधार किया है। संपर्क-गहन क्षेत्रों में निरंतर वृद्धि से शहरी खपत को समर्थन मिलना चाहिए। व्यापक-आधारित ऋण संवृद्धि, क्षमता उपयोग में सुधार, पूंजीगत व्यय और बुनियादी ढांचे में निवेश पर सरकार के जोर से, निवेश गतिविधि को बढ़ावा मिलना चाहिए। हमारे सर्वेक्षणों के अनुसार, विनिर्माण, सेवा और बुनियादी ढांचा क्षेत्र की कंपनियां कारोबारी संभावना को लेकर आशावादी हैं। दूसरी ओर, दीर्घकालिक भू-राजनीतिक तनाव, सख्त वैश्विक वित्तीय स्थितियां और बाहरी मांग का धीमा होना घरेलू उत्पादन के लिए अधोगामी जोखिम के रूप में जारी रह सकता है। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2023-24 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि दर पहली तिमाही में 7.8 प्रतिशत; दूसरी तिमाही में 6.2 प्रतिशत; तीसरी तिमाही में 6.0 प्रतिशत; और चौथी तिमाही में 5.8 प्रतिशत के साथ 6.4 प्रतिशत अनुमानित है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।

मुद्रास्फीति

14. हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति अक्तूबर 2022 में अपने 6.8 प्रतिशत के स्तर से नवंबर-दिसंबर 2022 के दौरान 105 आधार अंक कम हो गई। यह सब्जियों की कीमतों में तीव्र अपस्फीति से जनित खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी के कारण था, जो अनाज, प्रोटीन-आधारित खाद्य पदार्थों और मसालों से मुद्रास्फीति के दबावों की वृद्धि से कहीं अधिक था। सब्जियों की कीमतों में अनुमान से पहले और तेज मौसमी गिरावट के परिणामस्वरूप, 2022-23 की तीसरी तिमाही के लिए मुद्रास्फीति हमारे अनुमानों से कम हो गई। मूल सीपीआई मुद्रास्फीति (अर्थात, खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई), तथापि, उच्च बनी रही।

15. आगे बढ़ते हुए, गेहूं और तिलहन की प्रधानता में रबी की बंपर फसल की संभावना से खाद्य मुद्रास्फीति की संभावना में लाभ होगा। मंडी की आवक और खरीफ धान की खरीद अच्छी रही है, जिससे चावल के बफर स्टॉक में सुधार हुआ है। ये सभी घटनाक्रम 2023-24 में खाद्य मुद्रास्फीति की संभावना के लिए अनुकूल हैं।

16. कच्चे तेल की कीमत सहित वैश्विक कमोडिटी कीमतों के संभावित प्रक्षेपवक्र पर काफी अनिश्चितता बनी हुई है। दुनिया के कुछ हिस्सों में कोविड-19 से संबंधित प्रतिबंधों में ढील के साथ कमोडिटी की कीमतें स्थिर रह सकती हैं। इनपुट लागतों का निरंतर पास-थ्रू, विशेष रूप से सेवाओं में, मुख्य मुद्रास्फीति को ऊंचे स्तर पर रख सकता है। केंद्रीय बजट 2023-24 में राजकोषीय समेकन की प्रतिबद्धता और सकल राजकोषीय घाटे को कम करने के भविष्य के प्रक्षेपवक्र से समष्टिआर्थिक स्थिरता का वातावरण तैयार होगा। यह मुद्रास्फीति की संभावना के लिए अच्छा संकेत है। इसके अलावा, समकक्ष मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपये की कम अस्थिरता, आयातित मूल्य दबावों और अन्य वैश्विक स्पिलओवर के प्रभाव को सीमित करती है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए और 95 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल की औसत कच्चे तेल की कीमत (भारतीय टोकरी) मानते हुए, 2022-23 में मुद्रास्फीति 6.5 प्रतिशत, चौथी तिमाही में 5.7 प्रतिशत के साथ होने का अनुमान लगाया गया है। सामान्य मानसून की आशा पर, 2023-24 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 5.3 प्रतिशत, पहली तिमाही में 5.0 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.6 प्रतिशत अनुमानित है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।

17. हेडलाइन मुद्रास्फीति नवंबर और दिसंबर 2022 में नकारात्मक गति के साथ कम हुई है, लेकिन मुख्य या अंतर्निहित मुद्रास्फीति की स्थिरता चिंता का विषय है। हमें मुद्रास्फीति में निर्णायक नरमी देखने की जरूरत है। हमें मुद्रास्फीति कम करने की अपनी प्रतिबद्धता पर अटल रहना होगा। इस प्रकार, मौद्रिक नीति को टिकाऊ अवस्फीति प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए तैयार किया जाना चाहिए। 25 आधार अंकों की दर वृद्धि को वर्तमान समय में उपयुक्त माना जाता है। दर वृद्धि के आकार में कमी से, मुद्रास्फीति की संभावना और बड़े स्तर पर अर्थव्यवस्था पर अब तक की गई कार्रवाइयों के प्रभावों का मूल्यांकन करने का अवसर मिलता है। यह भविष्य में उचित कार्रवाई और नीतिगत रुख निर्धारित करने के लिए प्राप्त हो रहे सभी डेटा और पूर्वानुमानों का मूल्यांकन करने के लिए पर्याप्त समय भी प्रदान करता है। अर्थव्यवस्था की चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिए मौद्रिक नीति मुद्रास्फीति के प्रक्षेपवक्र में आगे बढ़ने वाले हिस्सों के लिए चुस्त और सतर्क बनी रहेगी।

चलनिधि और वित्तीय बाजार की स्थिति

18. जैसे हम 2022-23 के अंत की ओर बढ़ रहे हैं, पिछले एक वर्ष के दौरान मौद्रिक नीति के मोर्चे पर प्रमुख गतिविधियों को दोहराना सार्थक होगा। यूरोप में युद्ध की शुरुआत के बाद, जिसने भारत सहित विश्वभर में संवृद्धि- मुद्रास्फीति की गतिशीलता को काफी हद तक बदल दिया, हमने भारतीय अर्थव्यवस्था के सर्वोत्तम हित में कई कदम उठाए हैं। हमने अप्रैल 2022 में संवृद्धि पर मूल्य स्थिरता को प्राथमिकता दी; हमने स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) की शुरुआत के माध्यम से मौद्रिक नीति संचालन प्रक्रिया में एक बड़ा सुधार किया है; हमने नीतिगत कॉरिडोर की चौड़ाई को उसके पूर्व-महामारी स्तर पर बहाल कर दिया; हमने मई में ऑफ-साइकिल बैठक में रेपो दर में 40 बीपीएस और आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में 50 बीपीएस की बढ़ोत्तरी की; हमने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए नीतिगत रुख में बदलाव किया; हमने एमपीसी की प्रत्येक बैठक में दरों में सख्ती का चक्र जारी रखा; और हमने आवश्यकता के अनुसार परिवर्ती दर प्रतिवर्ती रेपो (वीआरआरआर) और परिवर्ती दर रेपो (वीआरआर) परिचालन दोनों का संचालन करके चलनिधि प्रबंधन के लिए एक फुर्तीला और लचीला दृष्टिकोण अपनाया। इन सभी उपायों के परिणामस्वरूप, वास्तविक नीतिगत दर को सकारात्मक क्षेत्र में लाया गया है; बैंकिंग प्रणाली अतिरिक्त चलनिधि के चक्रव्यूह6 से बाहर निकल चुकी है; मुद्रास्फीति कम हो रही है; और आर्थिक संवृद्धि लचीला बना हुआ है।

19. जब मैं यह वक्तव्य प्रस्तुत कर रहा हूं, अप्रैल 2022 की तुलना में क्रमिक रूप से कम होने के बावजूद, प्रणालीगत तरलता अधिशेष में बनी हुई है। आगे की अवधि में, जबकि उच्च सरकारी व्यय और विदेशी मुद्रा प्रवाह की प्रत्याशित वापसी से प्रणालीगत तरलता में वृद्धि होने की संभावना है, यह फरवरी से अप्रैल 2023 के दौरान एलटीआरओ और टीएलटीआरओ7 निधियों के निर्धारित मोचन द्वारा संशोधित हो जाएगा। रिज़र्व बैंक अर्थव्यवस्था की उत्पादक आवश्यकताओं को पूरा करने के प्रति लचीला और उत्तरदायी बना रहेगा। हम चलनिधि की उभरती परिस्थितियों के आधार पर एलएएफ के दोनों ओर परिचालनों का संचालन करेंगे।

20. चलनिधि और बाजार परिचालनों को सामान्य करने की दिशा में हमारे क्रमिक कदम के हिस्से के रूप में, अब यह निर्णय लिया गया है कि सरकारी प्रतिभूति बाजार के लिए बाजार के समय को पूर्व-महामारी का समय सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे8 तक बहाल किया जाए। इसके अलावा, सरकारी प्रतिभूति बाजार को और विकसित करने के हमारे चल रहे प्रयास के हिस्से के रूप में, हम जी-सेक को ऋण देने और उधार लेने की अनुमति देने का प्रस्ताव करते हैं। यह निवेशकों को अपनी निष्क्रिय प्रतिभूतियों को लगाने, पोर्टफोलियो रिटर्न बढ़ाने और व्यापक सहभागिता की सुविधा प्रदान करने का अवसर प्रदान करेगा। यह उपाय जी-सेक बाजार में गहराई और तरलता भी जोड़ेगा; कुशल मूल्य खोज में सहायता प्रदान करेगा; और केंद्र और राज्यों के बाजार उधारी कार्यक्रम को सुचारू रूप से पूरा करने की दिशा में काम करेगा।

21. वर्तमान कड़े चक्र में, उधार और जमा दरों के प्रति मौद्रिक नीति कार्रवाइयों के संचरण की गति मजबूत हुई है। मई से दिसंबर 2022 के दौरान नए रुपया ऋण और बकाया ऋण पर भारित औसत उधार दर (डबल्यूएएलआर) में क्रमशः 137 बीपीएस और 80 बीपीएस की वृद्धि हुई। नए जमा और बकाया जमा पर भारित औसत घरेलू मीयादी जमा दर में क्रमश: 213 बीपीएस और 75 बीपीएस की वृद्धि हुई।

22. भारतीय रुपया कैलेंडर वर्ष 2022 में अपने एशियाई समकक्षों के बीच सबसे कम अस्थिर मुद्राओं में से एक रहा है और इस वर्ष भी ऐसा ही बना हुआ है।9 इसी तरह, कई झटकों के मौजूदा चरण के दौरान भारतीय रुपये का मूल्यह्रास और अस्थिरता, वैश्विक वित्तीय संकट और टेपर टैंट्रम10 की तुलना में बहुत कम है। एक मौलिक अर्थ में, रुपये का चलन भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलेपन को दर्शाती है।

बाहरी क्षेत्र

23. 2022-23 की पहली छमाही के लिए चालू खाता घाटा (सीएडी) सकल घरेलू उत्पाद का 3.3 प्रतिशत रहा। 2022-23 की तीसरी तिमाही में स्थिति में सुधार देखा गया है क्योंकि कमोडिटी कीमतों में गिरावट के चलते आयात में कमी आई है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पाद व्यापार घाटा कम हुआ है। इसके अलावा, 2022-23 की तीसरी तिमाही में सेवाओं का निर्यात 24.9 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) बढ़ा, जो सॉफ्टवेयर, करोबार और यात्रा सेवाओं द्वारा संचालित था। वैश्विक सॉफ्टवेयर और आईटी सेवाओं पर व्यय 2023 में मजबूत रहने की उम्मीद है। 2022-23 की पहली छमाही में भारत के लिए विप्रेषण संवृद्धि लगभग 26 प्रतिशत थी - वर्ष के लिए विश्व बैंक के अनुमान से दोगुने से अधिक। खाड़ी देशों की बेहतर संवृद्धि संभावनाओं के कारण इसके मजबूत बने रहने की संभावना है। सेवाओं और विप्रेषण के अंतर्गत शुद्ध शेष बड़े अधिशेष में रहने की उम्मीद है, जो व्यापार घाटे को आंशिक रूप से कम कर देगा। 2022-23 की दूसरी छमाही में सीएडी मध्यम होने की उम्मीद है और यह प्रमुख रूप से प्रबंधनीय और व्यवहार्यता के मापदंडों के भीतर रहेगा।11

24. वित्तपोषण पक्ष पर, शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) प्रवाह अप्रैल-दिसंबर 2022 के दौरान 22.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर (पिछले वर्ष की इसी अवधि में 24.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर) पर मजबूत रहा। विदेशी पोर्टफोलियो प्रवाह ने इक्विटी प्रवाह(विदेशी पोर्टफोलियो प्रवाह, हालांकि, वित्तीय वर्ष के दौरान अब तक नकारात्मक हैं) के नेतृत्व में जुलाई से 6 फरवरी के दौरान 8.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सकारात्मक प्रवाह के साथ सुधार के संकेत दिखाए हैं। अप्रैल-नवंबर 2022 के दौरान अनिवासी जमा के अंतर्गत शुद्ध अंतर्वाह एक वर्ष पहले के 2.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 3.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जिसे रिज़र्व बैंक के 6 जुलाई के उपायों से बल मिला। विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियां 21 अक्तूबर 2022 को 524.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 27 जनवरी 2023 को 576.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो 2022-23 के अनुमानित आयात के लगभग 9.4 महीनों को शामिल करता है। भारत का बाहरी ऋण अनुपात अंतरराष्ट्रीय मानकों से कम है।12

अतिरिक्त उपाय

25. अब मैं कतिपय अतिरिक्त उपायों की घोषणा करूंगा।

ऋणों पर दंडात्मक प्रभार

26. वर्तमान में, विनियमित संस्थाओं (आरई) के पास अग्रिमों पर दंडात्मक ब्याज लगाने के लिए एक नीति होना आवश्यक है। हालांकि, आरई ऐसे प्रभार लगाने पर अलग-अलग पद्धतियों का पालन करते हैं। कुछ मामलों में, ये शुल्क अत्यधिक पाए जाते हैं। पारदर्शिता, औचित्य और उपभोक्ता संरक्षण को और बढ़ाने के लिए, हितधारकों से टिप्पणियां प्राप्त करने के लिए दंड प्रभार लगाने पर मसौदा दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे।

जलवायु जोखिम और धारणीय वित्त

27. जलवायु संबंधी वित्तीय जोखिमों, जिनमें वित्तीय स्थिरता निहितार्थ हो सकते हैं, के महत्व को स्वीकार करते हुए रिज़र्व बैंक ने जुलाई 2022 में जलवायु जोखिम और धारणीय वित्त पर एक चर्चा पत्र जारी किया था। प्राप्त प्रतिक्रिया के आधार पर, यह निर्णय लिया गया है कि आरई को (i) हरित जमाराशि की स्वीकृति के लिए एक व्यापक रूपरेखा; (ii) जलवायु संबंधी वित्तीय जोखिमों पर प्रकटीकरण ढांचा; और (iii) जलवायु परिदृश्य विश्लेषण और तनाव परीक्षण पर मार्गदर्शन, संबंधी दिशानिर्देश जारी किए जाए।

ट्रेड्स के दायरे का विस्तार

28. एमएसएमई के लाभ के लिए, रिज़र्व बैंक ने 2014 में व्यापार प्राप्य बट्टा प्रणाली (ट्रेड्स) के माध्यम से उनके व्यापार प्राप्तियों के वित्तपोषण की सुविधा के लिए एक रूपरेखा जारी की थी। अब (i) इन्वॉइस वित्तपोषण के लिए बीमा सुविधा प्रदान करके; (ii) फैक्टरिंग कारोबार करने वाली सभी संस्थाओं /संस्थानों को ट्रेड्स में वित्तपोषकों के रूप में भाग लेने की अनुमति देकर; और (iii) बीजक की पुनर्भुनाई की अनुमति (अर्थात, ट्रेड्स में द्वितीयक बाजार विकसित करना) देकर, ट्रेड्स के दायरे को बढ़ाने का प्रस्ताव है। इन उपायों से एमएसएमई के नकदी प्रवाह में सुधार की उम्मीद है।

भारत में आने वाले यात्रियों के लिए यूपीआई का विस्तार

29. यूपीआई भारत में खुदरा डिजिटल भुगतान के लिए बेहद लोकप्रिय हो गया है। अब यह प्रस्ताव है कि भारत आने वाले सभी यात्रियों को देश में रहते हुए अपने व्यापारिक भुगतान (पी2एम) के लिए यूपीआई का उपयोग करने की अनुमति दी जाए। शुरुआत में यह सुविधा चुनिंदा अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डों पर पहुंचने वाले जी-20 देशों के यात्रियों को दी जाएगी।

क्यूआर कोड आधारित कॉइन वेंडिंग मशीन – प्रायोगिक परियोजना

30. भारतीय रिज़र्व बैंक 12 शहरों में क्यूआर कोड आधारित कॉइन वेंडिंग मशीन (क्यूसीवीएम) पर एक प्रायोगिक परियोजना शुरू करेगा। ये वेंडिंग मशीनें बैंकनोटों की भौतिक भुनाई के बजाय यूपीआई का उपयोग करके ग्राहक के खाते में होने वाले नामे के बदले सिक्के वितरित करेंगी। इससे सिक्कों की उपलब्धता में आसानी होगी। प्रायोगिक परियोजना से प्राप्त अनुभव के आधार पर बैंकों को इन मशीनों के इस्तेमाल से सिक्कों के वितरण को बढ़ावा देने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे।

निष्कर्ष

31. जैसा कि नववर्ष की शुरुआत हुई है, यह हमारी अब तक की यात्रा पर तथा आगे क्या करने वाले हैं, इस पर विचार करने का एक अच्छा समय है। जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं, तो यह जानकर प्रसन्नता होती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने पिछले तीन वर्षों में कई बड़े झटकों का सफलतापूर्वक सामना किया और पहले से और अधिक मजबूत होकर उभरी है। भविष्य में आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए भारत के पास अंतर्निहित शक्ति, एक सक्षम नीतिगत माहौल और मजबूत समष्टि-आर्थिक आधार और बफर हैं। मुझे यहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस के शब्द याद आ रहे हैं: "....... भारत की नियति पर अपना विश्वास कभी न खोएं"13

धन्यवाद। नमस्कार।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/1679


1 भारतीय रिज़र्व बैंक के स्वामित्व को "रिज़र्व बैंक (लोक स्वामित्व में अंतरण) अधिनियम, 1948" के अंतर्गत केंद्र सरकार की अधिसूचना के माध्यम से सरकार को हस्तांतरित किया गया था।

2 यंग इंडिया, 1927-1928, विविधता में एकता, 11 अगस्त 1927।

3 अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के जनवरी 2023 की वैश्विक आर्थिक संभावना के अद्यतन के अनुसार, 2022 के लिए वैश्विक संवृद्धि को ऊर्ध्वगामी संशोधित कर 3.2 प्रतिशत से 3.4 प्रतिशत कर दिया गया है, जबकि 2023 के लिए वैश्विक संवृद्धि को अक्टूबर 2022 में अनुमानित 2.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 2.9 प्रतिशत कर दिया गया है।

4 बंदरगाह माल ढुलाई; रेलवे माल यातायात; टोल संग्रह; ई-वे बिल; डीजल की खपत; और बिजली की खपत।

5 रबी की बुवाई, 3 फरवरी 2023 को, एक वर्ष पहले की तुलना में 3.3 प्रतिशत अधिक थी (आज की तारीख के अनुसार सामान्य से 9.3 प्रतिशत अधिक)। 02 फरवरी 2023 को जलाशय का स्तर पूरी क्षमता के 63 प्रतिशत पर था जो दशकीय औसत 53 प्रतिशत से अधिक था।

6 चक्रव्यूह: दुश्मनों को घेरने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक सैन्य गठन, जिसे भारतीय महाकाव्य महाभारत में दर्शाया गया है। यह कई रक्षात्मक दीवारों की भूलभुलैया जैसा दिखता है, जिसमें से बाहर निकलना बहुत मुश्किल है और यह केवल बहुत ही कुशल योद्धाओं के कार्य के लिए ही जाना जाता है।

7 रिज़र्व बैंक ने फरवरी से अप्रैल 2020 के दौरान बैंकों को 3 वर्ष तक की परिपक्वता वाली रेपो दर पर कम लागत वाली निधियां प्रदान कीं, ताकि मौद्रिक संचरण में सुधार हो सके, कोविड-महामारी के प्रभाव को कम किया जा सके और दीर्घकालिक रेपो परिचालन (एलटीआरओ) और लक्षित दीर्घावधि रेपो परिचालन (टीएलटीआरओ) के अंतर्गत संस्थाओं/विशिष्ट क्षेत्रों में चलनिधि के तनाव को कम किया जा सके।

8 हमने पहले दिसंबर 2022 में मुद्रा बाज़ार के कई खंड में सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक का बाज़ार का समय बहाल किया था।

9 भिन्नता के गुणांक के संदर्भ में मापी गई अस्थिरता कैलेंडर वर्ष 2022 के दौरान भारतीय रुपये के लिए 3.5 प्रतिशत थी, जबकि मलेशियाई रिंगिट के लिए 3.7 प्रतिशत, थाई बहत के लिए 4.7 प्रतिशत और फिलीपीन पेसो के लिए 4.8 प्रतिशत थी।

10 वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान, 1 अप्रैल 2008 और 3 मार्च 2009 के बीच अमेरिकी डॉलर के सापेक्ष भारतीय रुपये में 23 प्रतिशत की गिरावट आई। इसी तरह, 01 मई 2013 और 28 अगस्त 2013 के बीच टेपर टैंट्रम के दौरान इसमें 22 प्रतिशत की गिरावट आई। हालांकि, प्रतिकूल समय के बाद के प्रत्येक प्रकरण में रुपये के मूल्यह्रास की सीमा कम थी। महामारी के शुरुआती दिनों में, अर्थात्17 फरवरी 2020 और 21 अप्रैल 2020 के बीच रुपये में केवल 7 प्रतिशत की गिरावट आई। जबकि 2022 में यूक्रेन से उभर रहे भू-राजनीतिक तनाव की अवधि के दौरान भी, 24 फरवरी, 2022 और 19 अक्तूबर, 2022 के बीच अमेरिकी डॉलर के सापेक्ष रुपये में 9 प्रतिशत की गिरावट आई, इसने सबसे उन्नत और कई उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं को पीछे छोड़ दिया। 10 अक्तूबर 2008 को वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान रुपये की 1 महीने की अंतर्निहित अस्थिरता 25 प्रतिशत के उच्च स्तर पर पहुंच गई और 29 अगस्त 2013 को टेंपर टैंट्रम अवधि के दौरान 20 प्रतिशत हो गई। हालांकि, कोविड-19 महामारी के दौरान, निहित अस्थिरता 24 मार्च, 2020 को 10% पर पहुंच गई।

11 दास, शक्तिकान्त (2023); "भारत में वित्तीय बाजार: स्थिरता और विकास की खोज में"; 27 जनवरी 2023 को दुबई में 22वें FIMMDA-PDAI वार्षिक सम्मेलन में मुख्य भाषण।

12 भारत का बाह्य ऋण/जीडीपी अनुपात मार्च 2022 में 19.9 प्रतिशत से गिरकर सितंबर में 19.2 प्रतिशत हो गया। ऋण सेवा अनुपात 2021-22 में 5.2 प्रतिशत से घटकर सितंबर 2022 में 5.0 प्रतिशत हो गया।

13 "भारत आज़ाद होगा" - पूर्वी एशिया में भारतीयों के लिए 17 अगस्त 1945 का संदेश - सुभाष चंद्र बोस का चुनिंदा भाषण, प्रकाशन प्रभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार।


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