21 मई 2024
आरबीआई बुलेटिन – मई 2024
रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का मई 2024 अंक प्रकाशित किया। बुलेटिन में तीन भाषण, चार आलेख और वर्तमान आंकड़े शामिल हैं।
चार लेख हैंः I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. विकेन्द्रीकृत वित्त: वित्तीय प्रणाली पर प्रभाव; III. भारतीय रिज़र्व बैंक का मुद्रा स्वैप: जीएफएसएन में भूमिका और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहयोग को बढ़ावा देना; IV. भारत में उपभोक्ता विश्वास: एक क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य।
I. अर्थव्यवस्था की स्थिति
वैश्विक अर्थव्यवस्था की संभावना कमजोर हो रही है क्योंकि मुद्रास्फीति की गिरावट बाधित हो रही है,जिससे वैश्विक वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम फिर से बढ़ रहा है। पूंजी प्रवाह अस्थिर हो गया है क्योंकि धैर्यहीन निवेशक जोखिम से विमुख हो रहे हैं।
एक बढ़ता आशावाद यह है कि भारत लंबे समय से प्रतीक्षित आर्थिक टेक-ऑफ के मार्ग पर है। हाल ही के संकेतक सकल मांग की गति में तेजी की ओर इशारा कर रहे हैं। खाद्येतर व्यय को ग्रामीण व्यय की बहाली में तेजी द्वारा बढ़ाया जा रहा है। अप्रैल 2024 के रीडिंग में देखी गई हेडलाइन मुद्रास्फीति में मामूली कमी, इस आशा की पुष्टि करती है कि लक्ष्य के साथ संरेखण की असमान और मध्यम गति चल रही है।
II. विकेन्द्रीकृत वित्त: वित्तीय प्रणाली पर प्रभाव
श्रीजश्री सरदार, दीपक आर. चौधरी और संगीता दास द्वारा
विकेन्द्रीकृत वित्त (डिफ़ी) पारंपरिक वित्तीय प्रणाली में मध्यस्थहीनता लाना चाहता है। तथापि, एफटीएक्स क्रिप्टो एक्सचेंज का पतन, बिनेंस में गिरावट और स्थिर कॉइन में अस्थिरता की घटनाओं जैसे गतिविधियों ने पूरे क्रिप्टो प्रणाली में विश्वास की कमी उत्पन्न कर दी है। यह आलेख एक एक्सपोनेंशियल जनरल ऑटोरेग्रेस्सिव कंडीशनल हेटेरोस्केडस्टिक (ईजीएआरसीएच) मॉडल का प्रयोग करके डिफी और पारंपरिक वित्तीय प्रणालियों के साथ उसके अंतरसंबद्धता का मूल्यांकन करता है।
मुख्य बातें:
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डिफ़ी प्रतिलाभ में अस्थिरता, इक्विटी प्रतिलाभ जैसे आस्ति वर्गों द्वारा प्रदान की जाने वाली परंपरागत उच्च प्रतिफल की तुलना में कहीं अधिक होती है।
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प्रमुख वैश्विक वित्तीय संस्थानों का क्रिप्टो प्रणाली में प्रत्यक्ष एक्सपोजर होता है, तथापि प्रबंधन के अंतर्गत कुल आस्तियों की तुलना में समग्र एक्सपोजर, कम होने का अनुमान है।
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अनुभवजन्य विश्लेषण से पता चलता है कि डिफ़ी प्रतिलाभ और प्रतिलाभ में उतार-चढ़ाव मुख्यतः सट्टे के उद्देश्य से प्रेरित होते हैं।
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अनुभवजन्य साक्ष्य से विदेशी मुद्रा बाजार और शेयर बाजार की अस्थिरता के संबंध में डिफ़ी में बढ़ती अस्थिरता का पता चलता है।
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डिफ़ी की सीमाहीन विशेषता के कारण देशों में चलनिधि सहबद्धता का प्रभाव-विस्तार एक बड़ा जोखिम है।
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जैसे-जैसे डिफ़ी विकसित और परिपक्व हो रही है तथा पारंपरिक वित्तीय प्रणाली के साथ इसकी परस्पर क्रियाशीलता बढ़ती जा रही है, जोखिमों के विरुद्ध इसकी उपयोगिता, और अधिक विश्लेषण की मांग करती है।
III. भारतीय रिज़र्व बैंक का मुद्रा स्वैप: जीएफएसएन में भूमिका और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहयोग को बढ़ावा देना
अजेश पलायी द्वारा
केंद्रीय बैंक मुद्रा स्वैप, वैश्विक वित्तीय सुरक्षा नेट (जीएफएसएन) का एक अभिन्न अंग हैं और इनके द्वारा वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से वैश्विक वित्तीय प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई है। यह आलेख भारतीय रिज़र्व बैंक की विभिन्न केंद्रीय बैंक के साथ मुद्रा स्वैप व्यवस्थाओं और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहयोग को बढ़ावा देने में इनकी भूमिका का परीक्षण करता है।
मुख्य बातें:
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सार्क मुद्रा स्वैप ढांचे और ब्रिक्स आकस्मिक आरक्षित निधि व्यवस्था के माध्यम से भारतीय रिज़र्व बैंक जीएफएसएन में प्रमुख भूमिका निभाता है।
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2012 में शुरू होने के बाद से, रिज़र्व बैंक ने सार्क मुद्रा स्वैप ढांचे के अंतर्गत 6.1 बिलियन अमरीकी डॉलर का स्वैप समर्थन प्रदान किया है। कोविड-19 महामारी के दौरान, रिज़र्व बैंक का स्वैप समर्थन काफी बढ़ गया।
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विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियों के मजबूत स्तर के कारण केंद्रीय बैंक मुद्रा स्वैप, भारत के बाह्य वित्तीय सहयोग को सुदृढ़ और प्रगाढ़ करने की क्षमता रखते हैं।
IV. भारत में उपभोक्ता विश्वास: एक क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य
सौरज्योति सरदार, आदित्य मिश्रा, मनु स्वर्णकार और तुषार बी. दास द्वारा
यह आलेख भारत में उपभोक्ता मनोभावों से संबंधित क्षेत्रीय प्रवृत्तियों का अध्ययन करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण (सीसीएस) की गुणात्मक आंकड़ों का उपयोग करता है। इसने "क्षेत्रीय मनोभाव सूचकांक" (आरएसआई) की शुरुआत की और यह विभिन्न क्षेत्रों में सर्वेक्षण प्रतिक्रियाओं में भिन्नताओं की जांच करने के लिए कोहेरेन्स विश्लेषण और ओर्ड़र्ड लॉजिस्टिक रिग्रेशन जैसी गुणात्मक डेटा विश्लेषण तकनीकों का प्रयोग करता है।
मुख्य बातें:
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इस अध्ययन में उपभोक्ता विश्वास में क्षेत्रीय परिवर्तनों का विश्लेषण किया गया, जिसमें दक्षिण और पश्चिम क्षेत्रों में राष्ट्रीय औसत की तुलना में इसके उच्च स्तर दिख रहे हैं, जबकि उत्तरी क्षेत्र में अनियमित आशावाद प्रदर्शित हो रहा है।
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कोहेरेन्स विश्लेषण ने सामान्य आर्थिक स्थिति, विशेषकर पूर्वी क्षेत्र में उपभोक्ताओं के अवधारणाओं पर मूल्य स्तर के महत्वपूर्ण प्रभाव को उजागर किया।
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इस अध्ययन में पाया गया कि अपनी आय पर परिवारों के मनोभावों और समग्र रोजगार परिदृश्य पर उनके दृष्टिकोण के बीच संबंध, सभी क्षेत्रों के लिए महामारी-पूर्व स्तर पर वापस आ गया है, जिसमें सबसे मजबूत संबद्धता उत्तरी क्षेत्र में देखी गई है।
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समग्र रूप से व्यय मुख्य रूप से आवश्यक व्यय से प्रेरित हो रहा है, जो कि मुख्यतया कीमत लोचहीन होते हैं। अध्ययन से यह भी पता चला कि उच्च आय वाले समूहों ने महामारी के बाद अधिक आशावाद प्रदर्शित किया।
बुलेटिन के आलेखों में व्यक्त किए गए विचार लेखकों के हैं और यह भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
(पुनीत पंचोली)
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/341 |