7 जून 2024
गवर्नर का वक्तव्य: 7 जून 2024
1. हाल के वर्षों में, दुनिया एक के बाद एक संकटों से गुज़री है; और यह सिलसिला जारी है। इस पृष्ठभूमि के बावजूद, भारतीय अर्थव्यवस्था, वित्तीय स्थिरता और सकारात्मक संवृद्धि की गति के साथ, मजबूत बुनियादी ढांचे प्रदर्शित करती है। फिर भी, हमें इस अस्थिर वैश्विक माहौल में सतर्क रहने की आवश्यकता है। तकनीकी प्रगति; आपूर्ति शृंखला पुनर्गठन, व्यापार और वित्तीय विखंडन; तथा जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न नई वास्तविकताएं, अवसरों के साथ-साथ चुनौतियां भी प्रस्तुत करती हैं। इस परिस्थिति में, भारत अनुकूल जनसांख्यिकी1, बेहतर उत्पादकता और प्रौद्योगिकी तथा अनुकूल नीतिगत माहौल की सहायता से परिवर्तन के एक नए युग की शुरुआत करने के लिए तैयार है। इन कारकों का संगम आने वाले वर्षों में भारत में सतत उच्च संवृद्धि की संभावनाओं को उजागर करता है।2
2. जैसे-जैसे रिज़र्व बैंक अपने शताब्दी वर्ष, RBI@100 की ओर बढ़ रहा है, वह भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए पहले से ही और भी अधिक तैयार होगा। यह वैश्विक स्तर पर भारत की उपस्थिति को सुदृढ़ करने के लिए उपाय करेगा। अगले दशक के दौरान अपनी यात्रा के लिए, हमने रिज़र्व बैंक को दक्षिण विश्व के लिए एक आदर्श केंद्रीय बैंक के रूप में स्थापित करने की दिशा में नीतिगत कार्रवाइयों से युक्त कार्यनीतियां तैयार की हैं। RBI@100 तक पहुँचने के लिए एजेंडा इस वक्तव्य के अनुलग्नक में प्रलेखित है। मैं भारतीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली के उत्सुक पर्यवेक्षकों से आग्रह करता हूं कि वे इन कार्य योजनाओं पर बारीकी से नज़र डालें। यह एक स्थिर दस्तावेज़ नहीं है क्योंकि हम एक गतिशील दुनिया में रह रहे हैं। हमारा प्रयास इसे आवश्यकतानुसार लगातार अपडेट करना होगा।
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के निर्णय और विचार-विमर्श
3. मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक 5, 6 और 7 जून 2024 को हुई। उभरती समष्टि- आर्थिक और वित्तीय गतिविधियों और संभावना के विस्तृत मूल्यांकन के बाद, इसने 4-2 की बहुमत से नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने का निर्णय लिया। परिणामस्वरूप, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 6.25 प्रतिशत और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.75 प्रतिशत पर बनी हुई है। एमपीसी ने 6 में से 4 सदस्यों के बहुमत से निर्णय लिया कि वह निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखेगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संवृद्धि का समर्थन करते हुए मुद्रास्फीति उत्तरोत्तर लक्ष्य के साथ संरेखित हो।
4. अब मैं संक्षेप में इन निर्णयों के औचित्य को बताऊंगा। मुद्रास्फीति-संवृद्धि का संतुलन अनुकूल रूप से आगे बढ़ रहा है। संवृद्धि स्थिर बनी हुई है। मुद्रास्फीति में नरमी जारी है, जो मुख्य रूप से मूल घटक3 द्वारा संचालित है और यह अप्रैल 2024 की वर्तमान सीरीज में अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गया।4 ईंधन की कीमतों में अपस्फीति जारी है।5 हालांकि, खाद्य मुद्रास्फीति अभी भी उच्च बनी हुई है।6
5. एमपीसी ने अब तक संवृद्धि को हानि पहुंचाए बिना प्राप्त की गई अवस्फीति पर ध्यान दिया है, लेकिन यह मुद्रास्फीति से संबंधित किसी भी उर्ध्व्गामी जोखिम, खासकर खाद्य मुद्रास्फीति से, के प्रति सतर्क है, जो अवस्फीति का पथभ्रष्ट कर सकती है। अतः, मौद्रिक नीति को अवस्फीतिकारी बने रहना चाहिए और मुद्रास्फीति को टिकाऊ आधार पर 4.0 प्रतिशत के लक्ष्य के अनुरूप लाने की अपनी प्रतिबद्धता में दृढ़ रहना चाहिए। धारणीय मूल्य स्थिरता, उच्च संवृद्धि की अवधि के लिए मजबूत आधार तैयार करेगी। तदनुसार, एमपीसी ने इस बैठक में नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत् रखने का निर्णय लिया। एमपीसी ने निर्णय लिया कि वह निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखेगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति की संभावनाएं नियंत्रित हो और पूर्णतः नीतिगत संचरण हो।7
संवृद्धि और मुद्रास्फीति का आकलन
वैश्विक संवृद्धि
6. वैश्विक संवृद्धि 2024 में अपनी गति बनाए रखेगी और वैश्विक व्यापार में उछाल के कारण इसके आघात-सह बने रहने की संभावना है।8 मुद्रास्फीति कम हो रही है, लेकिन इस अवस्फीति यात्रा का अंतिम चरण कठिन हो सकता है। मुद्रास्फीति के विरुद्ध अपनी लड़ाई में केंद्रीय बैंक दृढ़ और आंकड़ों पर निर्भर बने हुए हैं। प्राप्त आंकड़ों और केंद्रीय बैंक संचार के कारण ब्याज दरों में कटौती के समय और गति के बारे में बाजार की उम्मीदें भी बदल रही हैं।9 अमेरिकी डॉलर और सॉवरेन बॉण्ड के प्रतिफल सीमित दायरे में बनी हुई है। जबकि स्वर्ण की कीमतों में सुरक्षित स्थान की मांग के कारण उछाल आया है, पिछली एमपीसी बैठक के बाद से उन्नत और उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्थाओं दोनों में इक्विटी बाजारों में तेजी आई है।
घरेलू संवृद्धि
7. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी अनंतिम अनुमानों में 2023-24 में भारत के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।10 2024-25 के दौरान अब तक घरेलू आर्थिक गतिविधि आघात-सहनीय बनी हुई है। घरेलू मांग में मजबूती के कारण विनिर्माण गतिविधि में तेजी जारी है। अप्रैल 2024 में आठ मूल उद्योगों ने अच्छी वृद्धि दर्ज की। विनिर्माण में क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) मई 2024 में मजबूती दर्शाता रहा और यह वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक है।11 उपलब्ध उच्च आवृत्ति संकेतकों से स्पष्ट रूप से सेवा क्षेत्र में उछाल बना रहा।12 मई 2024 में पीएमआई सेवाएं 60.2 पर मजबूत बनी रहीं, जो गतिविधि में निरंतर और मजबूत विस्तार का संकेत है।
8. शहरी क्षेत्रों में स्थिर विवेकाधीन व्यय के कारण निजी खपत, कुल मांग का मुख्य आधार, में सुधार हो रहा है13। कृषि क्षेत्र की गतिविधि में सुधार से ग्रामीण मांग में सुधार को बढ़ावा मिल रहा है।14 खाद्य से इतर बैंक ऋण में चल रहे विस्तार15 के कारण निवेश गतिविधि में तेजी जारी है।16 वैश्विक मांग में सुधार के कारण अप्रैल में वस्तु निर्यात में वृद्धि हुई। तेल से इतर स्वर्ण से इतर आयात सकारात्मक क्षेत्र में प्रवेश कर गया।17 सेवाओं के निर्यात और आयात में उछाल आया और अप्रैल 2024 में मजबूत वृद्धि दर्ज की गई।18
9. आगे, भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी)19 द्वारा सामान्य से अधिक दक्षिण-पश्चिम मानसून के पूर्वानुमान से खरीफ उत्पादन को बढ़ावा मिलने और जलाशयों के स्तर में वृद्धि होने की उम्मीद है।20 कृषि क्षेत्र की गतिविधि को मजबूत करने से ग्रामीण खपत को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। दूसरी ओर, सेवा गतिविधि में निरंतर उछाल से शहरी खपत को समर्थन मिलना जारी रहना चाहिए। बैंकों और कॉरपोरेट्स के स्वस्थ तुलन-पत्र; पूंजीगत व्यय पर सरकार का निरंतर जोर; उच्च क्षमता उपयोग21; और व्यापार आशावाद निवेश गतिविधि के लिए शुभ संकेत हैं। वैश्विक व्यापार की संभावनाओं में सुधार से बाहरी मांग को बढ़ावा मिलना चाहिए। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2024-25 के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जिसमें पहली तिमाही में 7.3 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 7.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 7.3 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।
मुद्रास्फीति
10. मार्च-अप्रैल के दौरान सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति में और नरमी आई, हालांकि खाद्य मुद्रास्फीति के सतत दबाव ने कोर में अवस्फीति और ईंधन समूहों में अपस्फीति के लाभ को संतुलित कर दिया।22 कुछ नरमी के बावजूद, दालों और सब्जियों की मुद्रास्फीति दोहरे अंकों में मजबूती से बनी रही। सर्दियों के मौसम में मामूली करेक्शन के बाद गर्मियों में सब्जियों की कीमतों में उछाल देखने को मिल रहा है।23 ईंधन में अपस्फीति की प्रवृत्ति मुख्य रूप से मार्च की शुरुआत में एलपीजी की कीमतों में कटौती से प्रेरित थी।24 जून 2023 के बाद से लगातार 11वें महीने कोर मुद्रास्फीति में नरमी आई है।25 सेवाओं की मुद्रास्फीति ऐतिहासिक रूप से कम हुई है और वस्तुओं की मुद्रास्फीति नियंत्रित रही।26
11. असाधारण रूप से गर्म ग्रीष्म ऋतु और जलाशयों का कम स्तर सब्जियों और फलों की ग्रीष्मकालीन फसल पर दबाव डाल सकता है। दालों और सब्जियों की रबी फसल पर सावधानीपूर्वक नज़र रखने की ज़रूरत है।27 वैश्विक खाद्य कीमतों में तेज़ी से वृद्धि शुरू हो गई है।28 चालू कैलेंडर वर्ष में अब तक औद्योगिक धातुओं की कीमतों में दोहरे अंकों की वृद्धि दर्ज की गई है।29 यदि ये रुझान बरकरार रहे तो फर्मों के लिए इनपुट लागत की स्थिति में हाल ही में आई तेजी और बढ़ सकती है।30
12. दूसरी ओर, सामान्य से अधिक मानसून का पूर्वानुमान खरीफ सीजन के लिए अच्छा संकेत है। गेहूं की खरीद पिछले वर्ष के स्तर से अधिक हो गई है। गेहूं और चावल के बफर स्टॉक मानक से काफी ऊपर हैं।31 ये घटनाक्रम खाद्य मुद्रास्फीति के दबावों, खासकर अनाज और दालों में राहत ला सकते हैं। भू-राजनीतिक तनाव के कारण कच्चे तेल की कीमतों से संबंधित संभावना अनिश्चित बनी हुई है। सामान्य मानसून को मानते हुए, 2024-25 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जिसका पहली तिमाही में 4.9 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 3.8 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 4.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।
मौद्रिक नीति के लिए मुद्रास्फीति और संवृद्धि की इन स्थितियों का क्या अर्थ है?
13. संवृद्धि और मुद्रास्फीति से संबंधित गतिविधियां हमारी उम्मीदों के अनुरूप ही सामने आ रहे हैं। जब 2024-25 के लिए 7.2 प्रतिशत की अनुमानित जीडीपी वृद्धि साकार होगी, तो यह लगातार चौथा वर्ष होगा जब संवृद्धि दर 7 प्रतिशत या उससे अधिक होगी। हेडलाइन सीपीआई लगातार अवस्फीतिकारी प्रक्षेप पथ पर है। मौद्रिक नीति ने इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह 2022-23 की पहली तिमाही और 2023-24 की चौथी तिमाही के बीच हेडलाइन मुद्रास्फीति में 2.3 प्रतिशत अंकों की गिरावट से स्पष्ट है।32 आपूर्ति पक्ष की गतिविधियां और सरकारी उपायों ने भी हेडलाइन मुद्रास्फीति को कम करने में योगदान दिया। हालांकि, बार-बार खाद्य कीमतों में उतार-चढ़ाव ने समग्र अवस्फीति प्रक्रिया को धीमा कर दिया।33
14. हमारे अनुमानों के अनुसार, 2024-25 की दूसरी तिमाही में हेडलाइन मुद्रास्फीति में कुछ सुधार होने की संभावना है, लेकिन अनुकूल आधार प्रभावों के कारण यह एकबारगी होने की संभावना है और तीसरी तिमाही में यह वापस लौट सकता है।34 वर्तमान समय में, खाद्य मूल्य संभावना से संबंधित अनिश्चितताओं पर कड़ी निगरानी की आवश्यकता है, विशेष रूप से हेडलाइन मुद्रास्फीति पर उनके प्रभाव-प्रसार के जोखिमों पर।35 इसके साथ ही, मूल घटक की गतिविधियों पर भी सावधानीपूर्वक नज़र रखने की ज़रूरत है। हमें संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए मुद्रास्फीति को टिकाऊ आधार पर 4 प्रतिशत के लक्ष्य तक कम करने की ज़रूरत है।
15. एक मत यह है कि मौद्रिक नीति के मामलों में, रिज़र्व बैंक ‘फेड का अनुसरण करने’ के सिद्धांत द्वारा निर्देशित होता है।36 मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगा कि हम इस बात पर नजर तो रखते हैं कि दूर क्षितिज पर बादल बन रहे हैं या छंट रहे हैं, लेकिन हम स्थानीय मौसम और पिच की स्थिति के अनुसार ही खेल खेलते हैं। दूसरे शब्दों में, यद्यपि हम उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीति का भारतीय बाजारों पर पड़ने वाले प्रभाव पर विचार करते हैं, तथापि हमारी कार्रवाइयां मुख्य रूप से घरेलू संवृद्धि-मुद्रास्फीति की स्थितियों और संभावनाओं से निर्धारित होती हैं।
चलनिधि और वित्तीय बाज़ार की स्थितियाँ
16. चालू वित्त वर्ष के दौरान अब तक प्रणालीगत चलनिधि अधिशेष से घाटे की स्थिति में पहुंच गई और जून की शुरुआत में फिर से अधिशेष में पहुंच गई है।37 अप्रैल की नीतिगत वक्तव्य में चलनिधि प्रबंधन के लिए सक्रिय और लचीला बने रहने की प्रतिबद्धता के अनुरूप और बदलती चलनिधि गतिकी को देखते हुए, रिज़र्व बैंक ने अप्रैल के पहले पखवाड़े में परिवर्ती दर प्रतिवर्ती रेपो (वीआरआरआर) नीलामियों के माध्यम से अधिशेष चलनिधि को वापस लिया, जबकि अप्रैल के उत्तरार्ध और मई में परिवर्ती दर रेपो (वीआरआर) परिचालनों के माध्यम से चलनिधि को निवेश किया।38 जून के पहले सप्ताह में वीआरआरआर नीलामी आयोजित की गई है।39 2024-25 के दौरान अब तक चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) के लिए बैंकों का सहारा कम रहा है।40
17. चलनिधि गतिकी को दर्शाते हुए, भारित औसत मांग दर (डब्ल्यूएसीआर) औसतन, कॉरिडोर के मध्य के करीब रही।41 मियादी मुद्रा बाजार खंड में, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफ़सी) द्वारा जारी किए गए जमा प्रमाणपत्र (सीडी), वाणिज्यिक पत्र (सीपी) और 3 महीने के ट्रेजरी बिल (टी-बिल) पर प्रतिफल में भी कमी आई।42 ऋण बाजार में, मौद्रिक संचरण जारी है।43
18. जैसा कि आपको विदित है, रिज़र्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड ने लेखा वर्ष 2023-24 के लिए केंद्र सरकार को अधिशेष के रूप में ₹2.11 लाख करोड़ अंतरित करने का निर्णय लिया है। चूंकि अर्थव्यवस्था मजबूत और आघात-सहनीय बनी हुई है, इसलिए बोर्ड ने इस अवसर का उपयोग करके आकस्मिक आरक्षित बफर (सीआरबी) के अंतर्गत जोखिम प्रावधान को 2022-23 में 6.0 प्रतिशत से बढ़ाकर 2023-24 के लिए रिज़र्व बैंक की तुलन-पत्र का 6.5 प्रतिशत करने का निर्णय लिया है।44 इससे रिज़र्व बैंक का तुलन-पत्र और मजबूत होगा। विवेकशीलता हमारी मानक परिचालन प्रक्रिया का मूल है।
19. विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) के बहिर्वाह के बीच दबाव में कारोबार करने के बावजूद, भारतीय रुपया (आईएनआर) 2024-25 के दौरान अब तक (5 जून तक) अल्प अस्थिरता के साथ एक संकीर्ण दायरे में चला गया।45 भारतीय रुपये की सापेक्षिक स्थिरता भारत की सुदृढ़ एवं आघात-सहनीय आर्थिक बुनियाद, समष्टि-आर्थिक एवं वित्तीय स्थिरता तथा बाह्य संभावना में सुधार का प्रमाण है।
20. आगे चलकर, रिज़र्व बैंक रेपो और प्रतिवर्ती रेपो दोनों में मुख्य और परिष्कृत कार्य परिचालन के माध्यम से अपने चलनिधि प्रबंधन में सक्रिय और आघात-सह बना रहेगा। हम घर्षण और टिकाऊ चलनिधि दोनों को नियंत्रित करने के लिए लिखतों का एक उपयुक्त मिश्रण नियोजित करेंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रा बाजार की ब्याज दरें एक व्यवस्थित तरीके से विकसित हों जो वित्तीय स्थिरता को बनाए रखें। जैसा कि हाल की अवधि में हमारे कार्यों से पता चला है, भारतीय रिज़र्व बैंक अपने द्वारा विनियमित वित्तीय बाज़ारों और संस्थाओं के सभी क्षेत्रों में स्थिरता और सुव्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
वित्तीय स्थिरता
21. 2023-24 के वार्षिक वित्तीय परिणाम संकेत देते हैं कि बैंकिंग प्रणाली, आस्ति गुणवत्ता में सुधार, खराब ऋणों के लिए बढ़ा हुआ प्रावधानीकरण, निरंतर पूंजी पर्याप्तता और लाभप्रदता में वृद्धि के कारण सुदृढ़ और आघात-सहनीय बनी हुई है।46 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) ने भी बैंकिंग क्षेत्र के अनुरूप मजबूत वित्तीय प्रदर्शन किया। उल्लेखनीय रूप से, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) और एनबीएफसी की सकल अनर्जक आस्तियां (जीएनपीए) मार्च 2024 के अंत तक कुल अग्रिमों के 3 प्रतिशत से कम हैं।47 यह महत्वपूर्ण है कि विनियमित संस्थाएं (आरई) अपने संगठन में अभिशासनिक मानकों, जोखिम प्रबंधन प्रथाओं और अनुपालन संस्कृति में सुधार जारी रखें।
22. पिछले वर्ष नवंबर में हमने असुरक्षित खुदरा ऋणों में अत्यधिक वृद्धि और बैंक वित्तपोषण पर एनबीएफसी की अत्यधिक निर्भरता पर कुछ चिंताएं जताई थीं। हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि इन ऋणों और अग्रिमों में कुछ कमी आई है।48 हम प्राप्त आंकड़ों पर बारीकी से नज़र रख रहे हैं ताकि पता लगाया जा सके कि क्या आगे कोई उपाय करने की आवश्यकता है। आरई के बोर्ड और शीर्ष प्रबंधन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक कारोबार के लिए जोखिम सीमा और एक्सपोजर उनके संबंधित जोखिम क्षमता ढांचे के भीतर ही रखे जाएँ। ऋण और जमा संवृद्धि दरों के बीच लगातार अंतर, बैंकों के बोर्ड द्वारा अपनी व्यावसायिक योजनाओं पर फिर से कार्यनीति बनाने के लिए पुनर्विचार की मांग करता है। आस्तियों और देयताओं के बीच एक विवेकपूर्ण संतुलन बनाए रखना होगा।
23. ग्राहक सुरक्षा रिज़र्व बैंक की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर है। सामान्य तौर पर, हमने देखा है कि मुख्य तथ्य विवरण (केएफएस) पर दिशानिर्देशों49 का पालन किया जाता है, लेकिन कुछ आरई अभी भी ऐसे शुल्क आदि वसूलते हैं जो मुख्य तथ्य विवरण (केएफएस) में निर्दिष्ट या प्रकट नहीं किए गए हैं। कुछ व्यष्टि वित्त फाइनेंस संस्थानों और एनबीएफसी में यह भी देखा गया है कि छोटे मूल्य के ऋणों पर ब्याज दरें अधिक हैं और सूदखोरी होती हैं। ब्याज दरों और शुल्कों के संबंध में विनियमित संस्थाओं की विनियामक स्वतंत्रता का उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए ताकि उत्पादों और सेवाओं के उचित और पारदर्शी मूल्य निर्धारण को सुनिश्चित किया जा सके। रिज़र्व बैंक ग्राहकों के हितों की रक्षा करने और समग्र वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए ऐसी वित्तीय संस्थाओं के साथ अपनी रचनात्मक बात-चीत जारी रखता है।
बाह्य क्षेत्र
24. कम व्यापार घाटे, मजबूत सेवा निर्यात वृद्धि50 और मजबूत प्रेषण के कारण, 2023-24 की चौथी तिमाही में चालू खाता घाटा कम होने की उम्मीद है।51 सेवा निर्यात मुख्य रूप से सॉफ्टवेयर निर्यात, अन्य कारोबारी सेवाओं और यात्रा निर्यात द्वारा संचालित था।भारत में वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) के अभूतपूर्व उदय ने भारत के सॉफ्टवेयर और कारोबारी सेवाओं के निर्यात को महत्वपूर्ण बढ़ावा दिया है।52 भारत - 2024 में विश्व के प्रेषण में 15.2 प्रतिशत की अपेक्षित हिस्सेदारी के साथ - वैश्विक स्तर पर प्रेषण का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता बना हुआ है। कुल मिलाकर, 2024-25 के लिए चालू खाता घाटा अपने धारणीय स्तर के भीतर रहने की उम्मीद है।
25. बाह्य वित्तपोषण के मामले में, 2023-24 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) प्रवाह में वृद्धि हुई, जिसमें निवल एफपीआई अंतर्वाह 41.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा। हालांकि, 2024-25 की शुरुआत से, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक घरेलू बाजार में 5.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवल बहिर्वाह के साथ निवल विक्रेता बन गए हैं (5 जून तक)। 2023 में, भारत ने एशिया प्रशांत क्षेत्र में ग्रीनफील्ड प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) के लिए सबसे आकर्षक गंतव्य के रूप में अपनी स्थिति बरकरार रखी।53 2023-24 में सकल एफ़डीआई मजबूत रहा, लेकिन निवल एफ़डीआई में कमी आई।54 बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) और गैर-निवासी जमाओं में पिछले वर्ष की तुलना में अधिक निवल अंतर्वाह दर्ज किया गया।55 वर्ष के दौरान ईसीबी करार की मात्रा में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई।56
26. एक नया मील का पत्थर छूते हुए, भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि 31 मई 2024 तक 651.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच गयी। भारत का बाह्य क्षेत्र आघात-सह बना हुआ है और प्रमुख बाह्य भेद्यता संकेतकों में सुधार जारी है। 57 कुल मिलाकर, हमें विश्वास है कि हम अपनी बाह्य वित्तपोषण आवश्यकताओं को आराम से पूरा कर लेंगे।
अतिरिक्त उपाय
27. अब मैं कुछ अतिरिक्त उपायों की घोषणा करूंगा।
बैंकों में थोक जमा की सीमा की समीक्षा
28. थोक जमा सीमा की समीक्षा करने पर, एससीबी (आरआरबी को छोड़कर) और एसएफबी के लिए थोक जमा की परिभाषा को ‘3 करोड़ रुपये और उससे अधिक की एकल रुपया सावधि जमा’ के रूप में संशोधित करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा, स्थानीय क्षेत्र के बैंकों के लिए थोक जमा सीमा को ‘एक करोड़ रुपये और उससे अधिक की एकल रुपया सावधि जमा’ के रूप में परिभाषित करने का भी प्रस्ताव है, जैसा कि आरआरबी के मामले में लागू है।
विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (फेमा), 1999 के अंतर्गत वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात और आयात के लिए दिशानिर्देशों का युक्तिकरण
29. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की बदलती गतिशीलता को देखते हुए तथा विदेशी मुद्रा विनियमन के प्रगतिशील उदारीकरण के अनुरूप, वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात और आयात पर मौजूदा फेमा दिशानिर्देशों को युक्तिसंगत बनाने का प्रस्ताव है। इससे कारोबार करने में आसानी को बढ़ावा मिलेगा तथा प्राधिकृत डीलर बैंकों को अधिक परिचालनगत लचीलापन मिलेगा। हितधारकों की प्रतिक्रिया के लिए शीघ्र ही मसौदा दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे।
डिजिटल भुगतान इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म की स्थापना
30. भारतीय रिज़र्व बैंक ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने तथा उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पिछले कुछ वर्षों में अनेक उपाय किए हैं। इन उपायों से उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ा है। हालाँकि, डिजिटल भुगतान धोखाधड़ी के बढ़ते मामले, ऐसी धोखाधड़ी को रोकने और कम करने के लिए एक प्रणाली-व्यापी दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। अतः, डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र में नेटवर्क स्तर की इंटेलिजेंस और वास्तविक समय डेटा साझा करने के लिए एक डिजिटल भुगतान इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म स्थापित करने का प्रस्ताव है। इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए, रिज़र्व बैंक ने प्लेटफॉर्म की स्थापना के विभिन्न पहलुओं की जांच के लिए एक समिति गठित की है।
ई-मैन्डेट ढांचे के अंतर्गत स्व- पुनःपूर्ति (ऑटो-रिप्लेनिशमेंट) सुविधा के साथ आवर्ती भुगतान को शामिल करना
31. आवर्ती भुगतान लेनदेन के लिए ई-मैन्डेट का उपयोग बढ़ रहा है। अब फास्टैग, नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड (एनसीएमसी) आदि में शेष राशि की पुनःपूर्ति जैसे भुगतानों जो ई-मैन्डेट ढांचे में आवर्ती प्रकृति के हैं, लेकिन उनकी कोई निश्चित आवधिकता नहीं है, को भी शामिल करने का प्रस्ताव है। इससे ग्राहकों को फास्टैग, एनसीएमसी आदि में शेष राशि को स्वतः पुनःपूर्ति की सुविधा मिल जाएगी, यदि शेष राशि उनके द्वारा निर्धारित सीमा से कम हो जाती है। इससे यात्रा/गतिशीलता संबंधी भुगतान करने में सुविधा बढ़ेगी।
यूपीआई लाइट वॉलेट के स्व- पुनःपूर्ति (ऑटो-रिप्लेनिशमेंट) की शुरूआत – ई-मैंडेट ढांचे के अंतर्गत समावेशन
32. यूपीआई लाइट की शुरुआत सितंबर 2022 में ऑन-डिवाइस वॉलेट के माध्यम से त्वरित और निर्बाध तरीके से छोटे मूल्य के भुगतान को सक्षम करने के लिए की गई थी। यूपीआई लाइट को व्यापक रूप से अपनाने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए, अब इसे ई-मैन्डेट ढांचे के अंतर्गत लाने का प्रस्ताव है, जिसके अंतर्गत ग्राहकों के लिए एक सुविधा शुरू की जाएगी, जिससे यदि उनके द्वारा निर्धारित सीमा से कम शेष राशि हो जाती है, तो उनके यूपीआई लाइट वॉलेट में स्वतः राशि जमा हो जाएगी। इससे छोटे मूल्य के डिजिटल भुगतान करने में आसानी होगी।
HaRBInger 2024 – परिवर्तन के लिए नवाचार
33. रिज़र्व बैंक ने हाल के वर्षों में फिनटेक क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए कई अग्रणी पहल की हैं। ऐसी ही एक प्रमुख पहल है वैश्विक हैकाथॉन: ‘HaRBInger- परिवर्तन के लिए नवाचार’। हैकाथॉन के पहले दो संस्करण क्रमशः वर्ष 2022 और 2023 में पूरे हुए। वैश्विक हैकथॉन का तीसरा संस्करण, “HaRBInger 2024” का लोकार्पण दो थीमों, अर्थात् ‘शून्य वित्तीय धोखाधड़ी’ और ‘दिव्यांग अनुकूल होना’ के साथ शीघ्र ही किया जाएगा।
निष्कर्ष
34. रिज़र्व बैंक में हमारा काम संतुलन, धैर्य और दृढ़ता की मांग करता है। भारत की हालिया आर्थिक प्रगति, आर्थिक गतिविधियों में निरंतर गति और समग्र आशाजनक संभावनाएं, नीति निर्माण के प्रति हमारे दृष्टिकोण को मान्य करती हैं। इस समय, भारतीय अर्थव्यवस्था, अपने पथ पर चयन बिंदु पर है जो अधिक परिवर्तनकारी बदलावों की ओर अग्रसर है, जो अधिक स्थिरता और विकास लाएंगे।
35. मुद्रास्फीति के मामले में हम सही रास्ते पर हैं, लेकिन अभी भी काम करना शेष है। वैश्विक स्तर पर, इस बात की चिंता है कि निरंतर भू-राजनीतिक संघर्षों, आपूर्ति में व्यवधानों और कमोडिटी की कीमतों में उतार-चढ़ाव के बीच, अवस्फीति की अंतिम मंजिल लंबी और कठिन हो सकती है। भारत में, संवृद्धि स्थिर रहने के कारण, मौद्रिक नीति के पास मूल्य स्थिरता को बनाए रखने के लिए अधिक गुंजाइश है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति टिकाऊ आधार पर लक्ष्य के अनुरूप बनी रहे। वर्तमान स्थिति में, मौद्रिक नीति, मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने तथा एक निश्चित समयावधि में सतत संवृद्धि के लिए आवश्यक आधार प्रदान करने के लिए मूल्य स्थिरता पर पूरी तरह केंद्रित है। महात्मा गांधी के शब्द यहां गूंजते हैं और मैं यह उद्धृत करता हूं, "यदि हम अपने मार्ग के बारे में निश्चित हैं... तो हमें इसके लिए निरंतर और बिना रुके प्रयास करते रहना चाहिए।"58
धन्यवाद। नमस्कार।
(पुनीत पंचोली)
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/452
अनुबंध
बहु-वर्षीय समय-सीमा में RBI@100 के लिए आकांक्षात्मक लक्ष्य
1. मौद्रिक नीति और चलनिधि प्रबंधन
• रिज़र्व बैंक को वैश्विक दक्षिण के नेता के रूप में स्थापित करना
• निम्नलिखित के लिए मौद्रिक नीति ढांचे की समीक्षा:
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उभरती बाजार अर्थव्यवस्था (ईएमई) के परिप्रेक्ष्य से मूल्य स्थिरता और आर्थिक संवृद्धि में संतुलन;
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मौद्रिक नीति संचार में सुधार; और
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प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में निजी और सार्वजनिक ऋण के कारण उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव- विस्तार।
2. भारत के वित्तीय क्षेत्र का वैश्वीकरण
• वित्तीय क्षेत्र में सुधार निम्नलिखित से संबंधित हैं:
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राष्ट्रीय संवृद्धि के अनुरूप घरेलू स्तर पर बैंकिंग का विस्तार करना;
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आकार और परिचालन के संदर्भ में शीर्ष 100 वैश्विक बैंकों में 3-5 भारतीय बैंकों को स्थान दिलाना;
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वित्तीय बाजारों/संस्थाओं/बुनियादी ढांचे का गहनीकरण एवं आधुनिकीकरण; और
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गिफ्ट सिटी को एक अग्रणी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय केंद्र बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (आईएफएससीए) को समर्थन देना।
3. रिज़र्व बैंक के पर्यवेक्षण को वैश्विक मॉडल बनाना
• जोखिम केंद्रित पर्यवेक्षण:
• निरंतर क्षितिज स्कैनिंग और समग्र जोखिम मूल्यांकन द्वारा ‘चक्र के माध्यम से’ जोखिम मूल्यांकन ढांचे का निर्माण;
• ग्राहक-केंद्रित पर्यवेक्षण: उचित पर्यवेक्षी फोकस के माध्यम से ग्राहकों के हितों की रक्षा और बढ़ावा देने के लिए एसई के आचरण में सुधार करना;
• प्रभावी सुधारात्मक कार्रवाई: विवेकपूर्ण पर्यवेक्षी निर्णय और पर्यवेक्षी प्रभावशीलता के आकलन पर ध्यान केंद्रित करना; और
• डेटा एनालिटिक्स यूनिवर्स का निर्माण करना।
4. डिजिटल भुगतान प्रणालियों का गहनीकरण और सार्वभौमिकरण – घरेलू और वैश्विक स्तर पर
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भारत की भुगतान प्रणालियों का अंतर्राष्ट्रीयकरण – यूपीआई/आरटीजीएस/एनईएफटी;
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विभिन्न देशों में भुगतान प्रणाली लिंकेज परियोजनाओं में सहभागिता – द्विपक्षीय और बहुपक्षीय;
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डिजिटल भुगतान के घरेलू उपयोग को बढ़ाना – हर पेमेंट डिजिटल; तथा
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केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (ई-रुपया) का चरणबद्ध कार्यान्वयन।
5. वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना
6. ऋण उपलब्धता का विस्तार
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डेटा संग्रहण को मजबूत करना;
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ऋण आवश्यकताओं की सहायता और निगरानी के लिए व्यापक ऋण सूचना भंडार (सीसीआईआर);
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एकीकृत ऋण इंटरफेस (यूएलआई); और
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उभरती जरूरतों को सक्रियतापूर्वक पूरा करने के लिए प्राथमिकता क्षेत्र के दिशानिर्देशों की समीक्षा।
7. पूंजी खाता उदारीकरण और भारतीय रुपया (आईएनआर) का अंतर्राष्ट्रीयकरण
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गैर-निवासियों को भारतीय रुपया में सीमा पार लेनदेन की सुविधा के लिए भारतीय रुपया की उपलब्धता को सक्षम बनाना;
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भारत से बाहर रहने वाले व्यक्तियों (पीआरओआई) के लिए आईएनआर खातों की पहुंच बढ़ाना;
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ब्याज-असर वाली अनिवासी जमाराशियों के प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना; और
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विदेशी निवेश के माध्यम से भारतीय बहुराष्ट्रीय निगमों (एमएनसी) और भारतीय वैश्विक ब्रांडों को बढ़ावा देना।
8. जलवायु परिवर्तन से निपटना
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जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए विनियामक/पर्यवेक्षी ढांचा;
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जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन करने के लिए विनियमित संस्थाओं (आरई) के लिए उनके परिसंपत्ति पोर्टफोलियो का तनाव परीक्षण करने हेतु मार्गदर्शन को अंतिम रूप देना;
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वित्तीय स्थिरता के नजरिए से आरई पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का समष्टि तनाव परीक्षण;
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जलवायु जोखिमों के प्रति भुगतान प्रणालियों की आघात सहनीयता को मजबूत करना;
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आरई के लिए जलवायु जोखिम प्रकटीकरण मानदंड विकसित करना;
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जलवायु जोखिमों पर वर्गीकरण को अंतिम रूप देने के लिए सरकार को इनपुट प्रदान करना; तथा
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जलवायु-संबंधी वित्तीय जोखिमों के प्रबंधन के लिए जोखिम प्रबंधन ढांचे का प्रकाशन।
9. रिज़र्व बैंक में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/मशीन लर्निंग (एआई/एमएल) को अपनाना
• बैंक के लिए एआई नीति की अभिव्यक्ति।
• एआई/एमएल का उपयोग:
10. वित्तीय क्षेत्र क्लाउड ढांचा (इंफ्रास्ट्रक्चर)
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भारतीय वित्तीय क्लाउड: वित्तीय क्षेत्र के लिए लागत प्रभावी क्लाउड सुविधा की स्थापना करना, ताकि वित्तीय क्षेत्र के डेटा की सुरक्षा, अखंडता और गोपनीयता को बढ़ाया जा सके, साथ ही मापनीयता (स्केलेबिलिटी) और व्यवसाय निरंतरता को सुविधाजनक बनाया जा सके; और
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आंतरिक एआई क्लाउड: परिचालन दक्षता, उत्पादकता, डेटा विश्लेषण, जोखिम प्रबंधन, निर्णय लेने और ग्राहक अनुभव को बढ़ाने के लिए एआई/एमएल क्षमताओं के साथ एक उद्यम-व्यापी मंच विकसित करना।
11. डेटा संग्रहण, प्रसंस्करण और भंडारण में परिवर्तनकारी बदलाव
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आरई के साथ डेटा मेश विकसित करना;
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एनालिटिक्स के लिए क्लाउड क्वांटम कंप्यूटिंग सेवाएं; और
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उच्च आवृत्ति डेटा विश्लेषण के समर्थन के लिए जियो-टैगिंग।
12. भुगतान धोखाधड़ी से उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा
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उपभोक्ता जागरूकता को व्यापक एवं गहन बनाना;
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भुगतान प्रणालियों को अधिक सुरक्षित बनाना; और
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धोखाधड़ी की सक्रिय रोकथाम और त्वरित निवारण के लिए समाधानों की पहचान करना और उनका कार्यान्वयन करना।
13. सुरक्षित वैश्विक वित्तीय संदेश हब विकसित करना
14. रिज़र्व बैंक के मानव संसाधन और बुनियादी ढांचे को भविष्य के लिए तैयार करना।
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