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भारतीय रिज़र्व बैंक - समसामयिक पत्र – खंड 44, संख्या 2, 2023

30 सितंबर 2024

भारतीय रिज़र्व बैंक - समसामयिक पत्र – खंड 44, संख्या 2, 2023

आज, भारतीय रिज़र्व बैंक अपने समसामयिक पत्रों का खंड 44, संख्या 2, 2023 जारी किया, जो उसके स्टाफ-सदस्यों के योगदान द्वारा तैयार की गई एक शोध पत्रिका है। इस अंक में तीन आलेख और तीन पुस्तक समीक्षाएं हैं।

आलेख:

1. सीमा पार पूंजी प्रवाह और अचानक रुकावटें: उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं से सीख

यह पत्र तीन दशकों (1992 की पहली तिमाही से 2022 की पहली तिमाही तक) की अवधि को शामिल करते हुए, उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) पर जोर देते हुए, सीमा पार पूंजी प्रवाह में विकसित गतिकी की जांच करता है। यह पत्र पूंजी प्रवाह प्रतिवर्तन के प्रमुख प्रकरणों, विशेष रूप से “अचानक रुकावट” का विवरण प्रदान करता है, और विश्लेषण से पता चलता है कि सकल और निवल प्रवाह के संदर्भ में जीएफ़सी की अवधि ईएमई के ​​लिए एकमात्र प्रमुख अचानक रुकावट का प्रकरण है। 2020 की तीसरी और चौथी तिमाही की महामारी वाली तिमाहियाँ, निवल पूंजी प्रवाह के मामले में अचानक रुकावट वाले चरण थे। पूरक लॉग-लॉग रिग्रेशन मॉडल का उपयोग करते हुए, यह पत्र वैश्विक कारकों (यथा वैश्विक आर्थिक संवृद्धि, जोखिम, चलनिधि, दीर्घकालिक ब्याज दरें और नीतिगत दर में परिवर्तन), घरेलू संवृद्धि और सांकेतिक विनिमय दर की गतिकी की भूमिका को ईएमई के मामले में पूंजी प्रवाह प्रतिवर्तन वाले प्रकरणों के प्रमुख चालकों के रूप में उजागर करता है। पूंजी प्रवाह प्रबंधन उपायों (सीएफएम) और समष्टि विवेकपूर्ण नीतिगत उपायों (एमपीएम) के उचित उपयोग के साथ-साथ घरेलू समष्टि आर्थिक और वित्तीय मूल तत्वों को मजबूत करने तथा विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियों के रूप में पर्याप्त बफर्स ​​से ईएमई को समष्टि आर्थिक और वित्तीय स्थिरता को बनाए रखते हुए पूंजी प्रवाह में उतार-चढ़ाव को बेहतर ढंग से नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।

2. कुल कारक उत्पादकता माप में प्रचक्रीयता: भारत केएलईएमएस डेटा का विश्लेषण

यह पत्र भारत-केएलईएमएस 2022 डेटाबेस के आधार पर 1981-82 से 2019-2020 तक भारतीय अर्थव्यवस्था में कुल कारक उत्पादकता (टीएफपी) में प्रचक्रीयता की जांच करता है। यह पत्र टीएफपी अनुमान के लिए पारंपरिक संवृद्धि लेखांकन पद्धति में सुधार करता है और आंशिक संतुलन मॉडल का उपयोग करके परिवर्तनीय पूंजी उपयोग दर और श्रम प्रयासों के लिए समायोजन करते हुए नए टीएफपी सूचकांकों का निर्माण करता है।

प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

  • समायोजित टीएफपी वृद्धि कम प्रचक्रीय पाई गई। टीएफपी संवृद्धि और योजित सकल मूल्य (जीवीए) संवृद्धि के बीच सहसंबंध, समग्र अर्थव्यवस्था के लिए समायोजित टीएफपी शृंखला के लिए असमायोजित शृंखला के लिए 0.88 से घटकर 0.75 हो गया।

  • श्रम-प्रधान विनिर्माण क्षेत्रों, यथा कपड़ा, तथा सेवा क्षेत्रों, जैसे निर्माण, होटल, व्यावसायिक सेवाएँ, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल में प्रचक्रीय विचलन अधिक थे।

  • पूंजी संचय भारत की आर्थिक संवृद्धि के लिए एक प्रमुख चालक रहा है और समय के साथ इसकी भूमिका बढ़ती गई है। टीएफपी संवृद्धि का योगदान, जो 2000 के दशक के दौरान गिर गया था, 2010 के दशक के दौरान बेहतर हुआ। भारत की संभावित संवृद्धि और मध्यम अवधि की संवृद्धि संभावनाओं को बढ़ावा देने के लिए उत्पादकता संवृद्धि में और अधिक निरंतर वृद्धि आवश्यक होगी।

3. समष्टि विवेकपूर्ण नीति और भारत में संवृद्धि पर इसके अंतिम प्रभाव

यह पत्र जोखिम-आधारित संवृद्धि ढांचे में उनके अंतिम प्रभावों को देखकर ऋण और उत्पादन पर समष्टि विवेकपूर्ण नीतिगत कार्रवाइयों के प्रभावों का विश्लेषण करता है। निष्कर्ष बताते हैं कि समष्टि विवेकपूर्ण नीति उच्च ऋण वृद्धि को नियंत्रित करती है, जिससे वित्तीय स्थिरता बनी रहती है। ये नीतिगत उपाय मध्यम अवधि में उत्पादन में सुधार करते हैं जब वास्तविक उत्पादन अपनी क्षमता के स्तर से नीचे होता है; तथापि, जब उत्पादन अपनी क्षमता से बहुत ऊपर होता है तो इन नीतिगत उपायों का उत्पादन पर प्रभाव सांख्यिकीय रूप से महत्वहीन होता है। इस पत्र में समष्टि विवेकपूर्ण नीतियों के सामान्यीकरण के सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण अनुकूल प्रभावों को देखा गया है, विशेषतया सेवा क्षेत्र पर, जब यह अपनी क्षमता से कम कार्य-निष्पादन कर रहा हो। एक सख्त नीतिगत रुख ऋण वृद्धि को कम करके और मध्यम अवधि में उच्च उत्पादन की सुविधा प्रदान करके वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करता है। कुल मिलाकर, समष्टि विवेकपूर्ण नीति के लाभ इसकी लागतों से अधिक हैं। समष्टि विवेकपूर्ण नीति मध्यम अवधि में प्रभावी रूप से संवृद्धि में सुधार करती है, जबकि नीति कार्यान्वयन की लागत बहुत महत्वपूर्ण नहीं होती है।

पुस्तक समीक्षाएँ:

भारतीय रिज़र्व बैंक समसामयिक पत्र के इस अंक में तीन पुस्तक समीक्षाएँ भी शामिल हैं:

  1. सांभवी ढींगरा ने एरिक एंगनर द्वारा लिखित पुस्तक “हाउ इकोनॉमिक्स कैन सेव द वर्ल्ड: सिंपल आइडियाज टू सॉल्व अवर बिगेस्ट प्रॉब्लम्स” की समीक्षा की है। यह पुस्तक मानव जीवन को प्रभावित करने वाले सबसे बड़ी समस्याओं के वास्तविक, व्यावहारिक और साक्ष्य-आधारित समाधान प्रस्तुत करती है। इसमें जलवायु संकट का कैसे समाधान करें, अच्छे माता-पिता कैसे बनें, साथ ही खुश कैसे रहें, जैसे कई प्रश्न शामिल हैं। ऐसा करते हुए, एंगनर की पुस्तक उन क्षेत्रों में अर्थशास्त्र की प्रासंगिकता को स्वीकार करने के महत्व को रेखांकित करती है जहाँ यह तुरंत स्पष्ट नहीं हो सकता है।

  2. प्रतीक्षित जोशी ने गैविन जैक्सन द्वारा लिखित पुस्तक "मनी इन वन लेसन: हाउ इट वर्क्स एंड व्हाई" की समीक्षा की। यह पुस्तक मानव समाज में मुद्रा की अवधारणा की जटिलताओं और यह हमारे दैनिक जीवन को कैसे प्रभावित करती है, पर प्रकाश डालती है। आधुनिक समय की मुद्रा को आकार देने वाले वैश्विक ऐतिहासिक गतिविधियों और समष्टि अर्थशास्त्र के आवश्यक स्तंभों को छूते हुए, यह पुस्तक ज्वलंत उदाहरणों के उपयोग के माध्यम से अपने पाठकों के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। यह पुस्तक मुद्रा के विचार को आकार देने में सरकारों और केंद्रीय बैंकों की भूमिका और उनके कार्यों का अर्थव्यवस्था के साथ-साथ मानव जीवन पर कैसे प्रभाव पड़ता है, पर भी प्रकाश डालती है।

  3. पारस ने चार्ल्स का यूई लेउंग द्वारा संपादित पुस्तक "हैंडबुक ऑफ रियल एस्टेट एंड मैक्रोइकॉनॉमिक्स" की समीक्षा की। पुस्तक में शामिल पत्र स्थावर संपदा (रियल एस्टेट) और समष्टि अर्थशास्त्र के परस्पर प्रभाव का मूल्यांकन करते हैं। इसमें घर की कीमतों की गतिकी से लेकर वित्तीय संकट, संरचनात्मक परिवर्तनों से लेकर गैर-आवासीय स्थावर संपदा और अन्य विषयों पर चर्चा की गई है। आर्थिक प्रणाली में स्थावर संपदा की गतिकी संबंधी अध्यायों का परिवारों, उत्पादकों और नीति निर्माताओं के लिए उनके निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में अनुप्रयोग होता है।

    (पुनीत पंचोली) 
    मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/1194


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