21 अक्तूबर 2024
आरबीआई बुलेटिन – अक्तूबर 2024
आज, रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन का अक्तूबर 2024 अंक जारी किया। बुलेटिन में मौद्रिक नीति वक्तव्य (7-9 अक्टूबर) 2024-2025, छह भाषण, सात आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।
सात आलेख इस प्रकार हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. भारत में मौद्रिक नीति संचरण: हालिया अनुभव; III. भारत में खाद्य मुद्रास्फीति का तात्कालिक अनुमान: मशीन लर्निंग के माध्यम से मूल्य और मूल्य से इतर संकेतों का लाभ उठाना; IV. भारतीय बैंक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को कैसे अपना रहे हैं?; V. कोविड-19 और भारत में एमएसएमई क्लस्टरों का कार्य-निष्पादन; VI. भारत के लिए नकदी उपयोग संकेतक; तथा VII. नई डिजिटल अर्थव्यवस्था और उत्पादकता का विरोधाभास।
I. अर्थव्यवस्था की स्थिति
वैश्विक अर्थव्यवस्था 2024 की पहली छमाही में आघात-सह बनी रही, जिसमें घटती मुद्रास्फीति ने घरेलू व्यय को सहारा दिया। मौद्रिक नीति में ढील के बीच संवृद्धि की स्थिर गति अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं में प्रचलित विषय बन रही है। भू-राजनीतिक तनावों के बावजूद, भारत की संवृद्धि की संभावना को मजबूत घरेलू इंजनों का समर्थन प्राप्त है। हालाँकि, कुछ उच्च आवृत्ति संकेतकों ने 2024-25 की दूसरी तिमाही में गति में मंदी दिखाई है, जो आंशिक रूप से अगस्त और सितंबर में असामान्य रूप से भारी बारिश जैसे विशिष्ट कारकों के कारण है। आगे चलकर, निजी निवेश, प्रमुख संकेतकों के संदर्भ में कुछ उत्साहजनक संकेत दिखा रहा है, जबकि त्योहारी सीजन में उपभोग व्यय में सुधार हो रहा है। लगातार दो महीनों तक लक्ष्य से नीचे रहने के बाद, सितंबर में मुद्रास्फीति में उछाल आया, क्योंकि खाद्य मूल्य गति में पुनरुत्थान से प्रतिकूल सांख्यिकीय आधार प्रभाव और बढ़ गया।
II. भारत में मौद्रिक नीति संचरण: हालिया अनुभव
माइकल देवब्रत पात्र, इंद्रनील भट्टाचार्य, जोय्स जॉन और अवनीश कुमार द्वारा
यह लेख भारत में मई 2022 से लागू की गई मौद्रिक नीति सख्ती के प्रभाव का मूल्यांकन करता है, जो वित्तीय बाजारों के स्पेक्ट्रम से वास्तविक अर्थव्यवस्था तक फैल रहा है।
मुख्य बातें:
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मौद्रिक नीति के आघातों ने मुद्रा, सरकारी प्रतिभूतियों और कॉर्पोरेट बॉण्ड बाजार खंडों को काफी प्रभावित किया, जबकि विदेशी मुद्रा और शेयर बाजार पर इसका अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ा।
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नीतिगत दरों में सख्ती से मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं को नियंत्रित किया जा सकता है - जिससे 2024-25 की दूसरी तिमाही तक कुल मांग और हेडलाइन मुद्रास्फीति में 160 आधार अंकों की कमी आएगी।
III. भारत में खाद्य मुद्रास्फीति का तात्कालिक अनुमान: मशीन लर्निंग के माध्यम से मूल्य और मूल्य से इतर संकेतों का लाभ उठाना
निशांत सिंह और अभिरुचि राठी द्वारा
भारत के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में खाद्य पदार्थों की उच्च हिस्सेदारी और उससे जुड़ी कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव के कारण खाद्य मुद्रास्फीति का सटीक पूर्वानुमान लगाना हेडलाइन मुद्रास्फीति अनुमानों के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। सटीक पूर्वानुमानों के लिए एक मूल्यवान इनपुट तात्कालिक अनुमान (नाउकास्ट) - वर्तमान अवधि का मुद्रास्फीति अनुमान, है। विस्तृत डेटा की बढ़ती उपलब्धता का लाभ उठाते हुए, यह अध्ययन भारत में खाद्य मुद्रास्फीति का तात्कालिक अनुमान लगाने के लिए उच्च आवृत्ति मूल्य और मूल्य से इतर संकेतकों की पूर्वानुमान शक्ति का परीक्षण करता है। इसके अलावा, यह अध्ययन पारंपरिक रैखिक बेंचमार्क की तुलना में मशीन लर्निंग (एमएल) तकनीकों की उपयोगिता का पता लगाता है।
मुख्य बातें:
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अनुभवजन्य निष्कर्ष दर्शाते हैं कि इनपुट सूचना सेट का विस्तार करने तथा परंपरागत एकल परिवर्ती मॉडलिंग से आगे जाकर अन्य के अलावा उच्च आवृत्ति खुदरा और थोक खाद्य कीमतों के साथ-साथ वर्षा, मजदूरी और मंडी में फसल की आवक सहित अन्य मूल्य से इतर सूचनाओं को शामिल करने से तात्कालिक अनुमान की सटीकता में सुधार होता है।
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नियमितीकरण (संकोचन) विधियों और डीप लर्निंग एमएल मॉडलों को नियोजित करके तात्कालिक अनुमान की सटीकता को और बढ़ाया जाता है, जो उच्च-आयामी डेटा को संसाधित करने और गैर-रैखिकता को कैप्चर करने में उत्कृष्टता के लिए जाने जाते हैं।
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संयुक्त तात्कालिक अनुमान के माध्यम से विविध मॉडलों को संयोजित करने से सटीकता में और वृद्धि होती है, तथा पूर्वानुमानात्मक मॉडलिंग अभ्यासों में एक समूह दृष्टिकोण को अपनाने का समर्थन करती है।
IV. भारतीय बैंक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को कैसे अपना रहे हैं?
शोभित गोयल, दीर्घौ के राउत, मधुरेश कुमार, और मनु शर्मा द्वारा
अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और संबंधित तकनीकों का तेजी से विकास और अपनाया जाना देखा गया है। बैंकिंग क्षेत्र भी सेवा दक्षता और गुणवत्ता में सुधार के लिए एआई के संभावित उपयोग के मामलों की खोज कर रहा है। यह लेख भारत में प्रमुख सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए एआई को अपनाने संबंधी अनुभवजन्य मूल्यांकन प्रदान करता है, जिसमें 2015-16 से 2022-23 तक बैंकों की वार्षिक रिपोर्टों पर टेक्स्ट माइनिंग तकनीकों का उपयोग किया गया है। यह बैंकों द्वारा वित्तीय संकेतकों और एआई अन्वेषण के बीच संबंधों का भी परीक्षण करता है।
मुख्य बातें:
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बैंक ग्राहक सेवा चैटबॉट, पूर्वानुमान विश्लेषण, ग्राहक विभाजन, जोखिम मूल्यांकन और धोखाधड़ी का पता लगाने जैसे मामलों के लिए एआई और संबंधित प्रौद्योगिकियों की खोज कर रहे हैं।
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हाल के वर्षों में भारतीय बैंकों द्वारा एआई-संबंधित प्रौद्योगिकियों पर ध्यान लगातार बढ़ गया है, तथा रोबोटिक प्रोसेस ऑटोमेशन (आरपीए), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) और नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (एनएलपी) जैसी नई प्रौद्योगिकियों की खोज की जा रही है।
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जबकि निजी क्षेत्र के बैंक शुरू में एआई और संबंधित प्रौद्योगिकियों के प्रति अधिक सक्रिय थे, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की वार्षिक रिपोर्टों में एआई से संबंधित प्रौद्योगिकियों की आवृत्ति में वृद्धि हुई है, जो हाल के वर्षों में एआई पर उनके बढ़ते फोकस का संकेत देती है, और कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अब मोटे तौर पर अपने निजी क्षेत्र के समकक्षों के बराबर दिखाई देते हैं।
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बैंकों की कुल आस्ति का आकार और पूंजी की तुलना में जोखिम-भारित आस्ति अनुपात (सीआरएआर) सकारात्मक रूप से एआई को अपनाने के साथ जुड़ा हुआ पाया गया है, जो तकनीक को अपनाने को प्रभावित करने में मापदंड की स्थिति और वित्तीय स्वास्थ्य की भूमिका को दर्शाता है।
V. कोविड-19 और भारत में एमएसएमई क्लस्टरों का कार्य-निष्पादन
राजीब दास, धन्या वी, अमरेंद्र आचार्य, रमेश गोलाइत, सिलु मुदुली और अरिजीत शिवहरे द्वारा
यह आलेख भारत में चुनिंदा एमएसएमई क्लस्टरों के बीच किए गए प्राथमिक सर्वेक्षण के डेटा का उपयोग करके कोविड के बाद के परिदृश्य में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के कार्य-निष्पादन का मूल्यांकन करता है। यह विभिन्न क्लस्टरों में एमएसएमई के औपचारिकीकरण की स्थिति की भी जांच करता है।
मुख्य बातें:
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सर्वेक्षण किए गए क्लस्टरों में एमएसएमई के एक बड़े हिस्से ने पंजीकरण के माध्यम से अपने परिचालन को औपचारिक बना लिया है।
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सर्वेक्षण के अनुसार, अधिकांश एमएसएमई कंपनियाँ बैंक से संबद्ध पाई गईं, जिनमें से लगभग 70 प्रतिशत एमएसएमई इकाइयां अपने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान उनके बैंक खातों के माध्यम से करती हैं। लगभग 98 प्रतिशत मध्यम उद्यमों ने कर्मचारियों के बैंक खातों में सीधे वेतन जमा किया; सूक्ष्म उद्यमों के लिए यह अनुपात लगभग 67 प्रतिशत था।
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सर्वेक्षण में शामिल एमएसएमई कंपनियों ने अपने उद्यमों के खर्चों के प्रबंध हेतु ज़्यादातर व्यक्तिगत बचत, व्यापार ऋण और प्रतिधारित आय का इस्तेमाल किया। लगभग 80 प्रतिशत ऋण संस्थागत स्रोतों से लिए गए हैं, जिनमें से 96 प्रतिशत राशि संस्थागत स्रोतों से आती है।
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एमएसएमई के सामने आने वाली चुनौतियाँ मुख्य रूप से संरचनात्मक हैं। बिजली, किराया और ऋण सेवा से संबंधित व्यय एमएसएमई के निवल लाभ मार्जिन को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक बनकर उभरे हैं।
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रिज़र्व बैंक द्वारा चलनिधि और विनियामक उपायों तथा आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) जैसी सरकारी योजनाओं ने महामारी के बाद इन उद्यमों को सहायता प्रदान की।
VI. भारत के लिए नकदी उपयोग संकेतक
प्रदीप भुयान द्वारा
नकद भुगतान की अनामिकता, भुगतान के तरीके के रूप में नकदी के उपयोग के प्रत्यक्ष माप में बाधा डालती है। यह आलेख नकदी के उपयोग को मापने के विभिन्न तरीकों की जांच करता है और भारत में भुगतान के तरीके के रूप में नकदी के उपयोग को मापने के लिए एक त्रैमासिक नकदी उपयोग संकेतक (सीयूआई) विकसित करता है।
मुख्य बातें
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सीयूआई के मूल्यों से पता चलता है कि भारत में नकदी का उपयोग महत्वपूर्ण है, लेकिन इसमें लगातार गिरावट आ रही है।
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इस आलेख में प्रस्तावित संकेतक देश में नकदी के उपयोग की निगरानी के लिए एक उपयोगी साधन हो सकता है।
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यह संकेतक देश में मुद्रा प्रबंधन संबंधी नीतियों को बढ़ाने के लिए बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है।
VII. नई डिजिटल अर्थव्यवस्था और उत्पादकता का विरोधाभास
साधन कुमार चट्टोपाध्याय, श्रीरूपा सेनगुप्ता और श्रुति जोशी द्वारा
डिजिटल प्रौद्योगिकियां अर्थव्यवस्थाओं को बदल रही हैं और अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में कंपनियों की समग्र उत्पादकता को काफी हद तक बढ़ाने की क्षमता रखती हैं। विडंबना यह है कि क्लाउड कंप्यूटिंग, बिग डेटा और रोबोटिक्स के इर्द-गिर्द नई डिजिटल तकनीकों का उदय ओईसीडी देशों में उत्पादकता में गिरावट के साथ हुआ - एक ऐसी घटना जिसे अक्सर 'सोलो उत्पादकता विरोधाभास' के रूप में जाना जाता है। इस पृष्ठभूमि के सापेक्ष, यह आलेख उत्पादकता संवृद्धि में डिजिटलीकरण के योगदान का अनुमान लगाता है और भारत के लिए सोलो उत्पादकता विरोधाभास की जांच करता है।
मुख्य बातें:
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उत्पादन संवृद्धि में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का योगदान 1981-1990 में 5.0 प्रतिशत से बढ़कर 1992-2023 के दौरान 13.2 प्रतिशत हो गया।
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औसतन, संपूर्ण नमूना अवधि के दौरान आईसीटी क्षेत्र की उत्पादकता गैर-आईसीटी क्षेत्र की तुलना में बेहतर रही।
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आईसीटी का उत्पादकता प्रभाव 1980 से 2000 तक सबसे अधिक था, जो सोलो के भारत के लिए उत्पादकता विरोधाभास को गलत सिद्ध करता है। वैश्विक वित्तीय संकट (जीएफसी) के बाद की अवधि के दौरान, भारत में सोलो के उत्पादकता विरोधाभास को वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप देखा गया है।
बुलेटिन के आलेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
(पुनीत पंचोली)
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/1345 |