6 जून 2025
गवर्नर का वक्तव्य: 6 जून 2025
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की 55वीं बैठक मानसून ऋतु की शीघ्र और आशाजनक शुरुआत, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, की पृष्ठभूमि में आयोजित की गई। इसके विपरीत, वैश्विक पृष्ठभूमि कमजोर और अत्यधिक अस्थिर बनी हुई है। अप्रैल में एमपीसी की बैठक के बाद से वैश्विक आर्थिक संभावना के संबंध में अनिश्चितता कुछ हद तक कम हुई है, जो अस्थायी टैरिफ राहत और व्यापार वार्ता के बारे में आशावाद के कारण हुई। तथापि, मनोभावों को कमजोर करने और वैश्विक संवृद्धि की संभावनाओं को कम करने के लिए यह अभी भी उच्च है। तदनुसार, बहुपक्षीय एजेंसियों द्वारा वैश्विक संवृद्धि और व्यापार अनुमानों को अधोगामी संशोधित किया गया है।1 इसके अलावा, अवस्फीति का अंतिम मील अधिक लंबा होता जा रहा है। चूंकि संवृद्धि-मुद्रास्फीति ट्रेड-ऑफ अधिक चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है, मौद्रिक प्राधिकरण अधिक सतर्क और सावधानीपूर्वक सुविचारित नीति प्रक्षेपवक्र तैयार कर रहे हैं।
2. निकट भविष्य से परे देखें तो, बढ़ता आर्थिक और वित्तीय विखंडन वैश्विक अर्थव्यवस्था को नया आकार दे रहा है। इसके अलावा, वित्तीय प्रणाली के भीतर जटिल अंतर्संबंध, ऋणों के उच्च स्तर और अग्रणी प्रौद्योगिकियों का बढ़ता प्रभाव वित्तीय स्थिरता की चिंताओं को बढ़ा रहा है। पूंजी प्रवाह और विनिमय दरों में बढ़ती अस्थिरता के साथ-साथ सीमित नीतिगत गुंजाइश के कारण, उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंकों के लिए वैश्विक प्रभाव-विस्तार के विरुद्ध अपनी अर्थव्यवस्थाओं को स्थिर करना एक कठिन कार्य है।
3. इस वैश्विक परिस्थिति में, भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती, स्थिरता और अवसर की तस्वीर प्रस्तुत कर रही है। सबसे पहले, मजबूती पाँच प्रमुख क्षेत्रों - कॉर्पोरेट, बैंक, परिवारों, सरकार और बाह्य क्षेत्र के मजबूत तुलन-पत्र से आती है। दूसरा, तीनों क्षेत्रों - मूल्य, वित्त और राजनीति – में स्थिरता है जो इस गतिशील रूप से उभरती वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में नीतिगत और आर्थिक निश्चितता प्रदान करती है। तीसरा, भारतीय अर्थव्यवस्था 3D – जनसांख्यिकी (demography), डिजिटलीकरण (digitalisation) और घरेलू मांग (domestic demand) के माध्यम से निवेशकों को अपार अवसर प्रदान करती है।2 आधार तंत्र का यह 5x3x3 मैट्रिक्स भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक प्रभाव-विस्तार के विरुद्ध समर्थन प्रदान करने तथा इसे तेज़ गति से बढ़ने हेतु प्रेरित करने के लिए आवश्यक मूलभूत मजबूती प्रदान करता है।
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के निर्णय
4. मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक 4, 5 और 6 जून को संपन्न हुई, जिसमें नीतिगत रेपो दर पर विचार-विमर्श किया गया और निर्णय लिया गया। उभरती समष्टि-आर्थिक और वित्तीय गतिविधियों तथा संभावना के विस्तृत मूल्यांकन के बाद, एमपीसी ने चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीतिगत रेपो दर को तत्काल प्रभाव से 50 आधार अंक घटाकर 5.50 प्रतिशत करने का निर्णय लिया; परिणामस्वरूप, स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 5.25 प्रतिशत तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 5.75 प्रतिशत पर समायोजित हो जाएगी।
5. अब मैं इन निर्णयों के औचित्य को संक्षेप में प्रस्तुत करूंगा। पिछले छह महीनों में मुद्रास्फीति में काफी नरमी आई है, जो अक्तूबर 2024 में सहन-सीमा बैंड से ऊपर थी, अब यह व्यापक आधार पर नरमी के संकेत के साथ लक्ष्य से काफी नीचे आ गई है। निकट अवधि और मध्यम अवधि की संभावना से अब हमें न केवल पिछली बैठक में व्यक्त किए गए 4 प्रतिशत के लक्ष्य के साथ हेडलाइन मुद्रास्फीति के टिकाऊ संरेखण का विश्वास प्राप्त होता है, बल्कि यह विश्वास भी है कि वर्ष के दौरान, इसके लक्ष्य से कुछ हद तक कम रहने की संभावना है। जबकि खाद्य मुद्रास्फीति की संभावना सौम्य बनी हुई है, वैश्विक संवृद्धि में प्रत्याशित मंदी के अनुरूप अंतर्राष्ट्रीय पण्य कीमतों में कमी के कारण मूल मुद्रास्फीति के सौम्य बने रहने की आशा है। वर्ष के लिए मुद्रास्फीति की संभावना को 4.0 प्रतिशत के पिछले पूर्वानुमान से घटाकर 3.7 प्रतिशत किया जा रहा है। दूसरी ओर, चुनौतीपूर्ण वैश्विक वातावरण और बढ़ी हुई अनिश्चितता के बीच संवृद्धि हमारी आकांक्षाओं से कम रही है।
6. अतः, संवृद्धि की गति को बढ़ाने के लिए नीतिगत उपायों के माध्यम से घरेलू निजी खपत और निवेश को प्रोत्साहित करना जारी रखना अनिवार्य है। इस बदली हुई संवृद्धि-मुद्रास्फीति गतिकी के लिए न केवल नीतिगत नरमी जारी रखना आवश्यक है, बल्कि संवृद्धि को समर्थन प्रदान करने के लिए दरों में कटौती को भी आगे बढ़ाना होगा। तदनुसार, एमपीसी ने नीतिगत रेपो दर को 50 आधार अंक घटाकर 5.50 प्रतिशत करने के लिए वोट किया।
7. फरवरी 2025 से लगातार नीतिगत रेपो दर में 100 आधार अंकों की कटौती करने के बाद, मौजूदा परिस्थितियों में, मौद्रिक नीति के पास संवृद्धि को समर्थन प्रदान करने के लिए बहुत सीमित गुंजाइश बची है। अतः, एमपीसी ने रुख को निभावकारी से बदलकर तटस्थ करने का भी निर्णय लिया। इसके बाद, एमपीसी प्राप्त आंकड़ों और उभरती संभावना का सावधानीपूर्वक आकलन करेगी ताकि सटीक संवृद्धि-मुद्रास्फीति संतुलन बनाने के लिए मौद्रिक नीति के भविष्य के मार्ग को तैयार किया जा सके। तेजी से बदलती वैश्विक आर्थिक स्थिति भी उभरती समष्टि आर्थिक संभावना की निरंतर निगरानी और आकलन को आवश्यक बनाती है।
संवृद्धि और मुद्रास्फीति का आकलन
संवृद्धि
8. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी अनंतिम अनुमानों में 2024-25 में भारत की वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।3 2025-26 के दौरान अब तक घरेलू आर्थिक गतिविधियों में आघात-सहनीयता दिखी है। कृषि क्षेत्र मजबूत बना हुआ है। खरीफ और रबी दोनों ही मौसमों में बहुत अच्छी फसल के कारण, प्रमुख खाद्य फसलों की आपूर्ति पर्याप्त है।4 जलाशय का स्तर अच्छा बना हुआ है।5 पिछले चार वर्षों में गेहूं की सबसे अधिक खरीद6 एक पर्याप्त स्टॉक स्थिति प्रदान करती है।7 औद्योगिक गतिविधि धीरे-धीरे बढ़ रही है, भले ही बहाली की गति असमान हो।8 सेवा क्षेत्र में गति बने रहने की आशा है।9 मई 2025 में पीएमआई सेवाएं 58.8 पर मजबूत रहीं, जो गतिविधि में मजबूत विस्तार का संकेत देती हैं।10
9. मांग के संबंध में, निजी खपत, जो कुल मांग का मुख्य आधार है, विवेकाधीन व्यय में क्रमिक वृद्धि के साथ मजबूत बनी हुई है।11 ग्रामीण मांग12 स्थिर बनी हुई है, जबकि शहरी मांग13 में सुधार हो रहा है। उच्च आवृत्ति संकेतकों से पता चलता है कि निवेश गतिविधि में बहाली हो रही है।14 हाल के दिनों में सुस्त निष्पादन के बाद अप्रैल 2025 में पण्य निर्यात में मजबूत वृद्धि दर्ज की गई।15 तेल से इतर, स्वर्ण से इतर आयात में दोहरे अंकों की वृद्धि दर्ज की गई, जो घरेलू मांग की अच्छी स्थिति को दर्शाता है।16 सेवाओं का निर्यात मजबूत संवृद्धि पथ पर जारी है।17
10. आगे चलकर, दक्षिण-पश्चिम मानसून की सामान्य से अधिक बारिश के अनुमान से कृषि क्षेत्र और ग्रामीण मांग के लिए संभावना को और बढ़ावा मिलने की आशा है।18 दूसरी ओर, सेवा गतिविधि में निरंतर उछाल से शहरी खपत में बहाली को बढ़ावा मिलेगा। बैंकों और कॉरपोरेट्स के मजबूत तुलन-पत्र; पूंजीगत व्यय पर सरकार के निरंतर जोर;19 उच्च क्षमता उपयोग;20 कारोबारी आशावाद में सुधार21 और वित्तीय स्थितियों में सुगमता से निवेश गतिविधि की और बहाली में मदद मिलेगी। तथापि व्यापार नीति अनिश्चितता, वस्तु निर्यात की संभावनाओं पर भारी पड़ रही है, जबकि यूनाइटेड किंगडम22 के साथ मुक्त व्यापार करार (एफ़टीए) के निष्कर्ष और अन्य देशों के साथ प्रगति से वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार को बढ़ावा मिलना चाहिए। दीर्घकालिक भू-राजनीतिक तनाव तथा वैश्विक व्यापार और मौसम संबंधी अनिश्चितताओं से उत्पन्न होने वाले प्रभाव विस्तार संवृद्धि के लिए अधोगामी जोखिम उत्पन्न कर रहे हैं। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2025-26 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो पहली तिमाही में 6.5, दूसरी तिमाही में 6.7, तीसरी तिमाही में 6.6 और चौथी तिमाही में 6.3 प्रतिशत रहेगी। होगी। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।
मुद्रास्फ़ीति
11. सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति में मार्च-अप्रैल के दौरान गिरावट जारी रही, अप्रैल 2025 में हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति लगभग छह वर्ष के निचले स्तर 3.2 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) पर आ गई। इसका मुख्य कारण खाद्य मुद्रास्फीति थी, जिसने लगातार छठी मासिक गिरावट दर्ज की। ईंधन समूह ने अपस्फीति की स्थिति में बदलाव देखा तथा मार्च और अप्रैल के दौरान सकारात्मक मुद्रास्फीति प्रिंट दर्ज किए गए, जो आंशिक रूप से एलपीजी की कीमतों में वृद्धि को दर्शाता है। सोने की कीमतों में वृद्धि के कारण ऊर्ध्वगामी दबाव के बावजूद, मार्च-अप्रैल के दौरान मूल23 मुद्रास्फीति काफी हद तक स्थिर और नियंत्रित रही।24
12. मुद्रास्फीति की संभावना प्रमुख घटकों में सौम्य कीमतों की ओर इशारा करती है। गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन और रबी फसल के मौसम में प्रमुख दालों के उच्च उत्पादन से प्रमुख खाद्य वस्तुओं की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित होनी चाहिए। आगे चलकर, मानसून के जल्दी आने के साथ-साथ इसके सामान्य से बेहतर होने की उम्मीद, खरीफ फसल की संभावनाओं के लिए शुभ संकेत है। इसे दर्शाते हुए, मुद्रास्फीति की प्रत्याशाएँ, खासकर ग्रामीण परिवारों के लिए एक मंद प्रवृत्ति दिखा रही हैं।25 अधिकांश अनुमान, कच्चे तेल सहित प्रमुख वस्तुओं की कीमतों में निरंतर कमी का संकेत दे रहे हैं। इन अनुकूल पूर्वानुमानों के बावजूद, हमें मौसम संबंधी अनिश्चितताओं और अभी भी उभर रही टैरिफ संबंधी समस्याओं के साथ वैश्विक कमोडिटी कीमतों पर उनके प्रभाव पर भी नजर रखनी होगी। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए और सामान्य मानसून को मानते हुए, वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति अब 3.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो पहली तिमाही में 2.9 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 3.4 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 3.9 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.4 प्रतिशत रहेगी। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं।
बाह्य क्षेत्र
13. मजबूत सेवा निर्यात26 और विप्रेषण प्राप्तियों के साथ-साथ 2024-25 की चौथी तिमाही में व्यापार घाटे में कमी के कारण, 2024-25 के लिए चालू खाता घाटा (सीएडी) कम रहने की उम्मीद है।27 इसके अलावा, बढ़ती भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं और व्यापार संबंधी तनावों के बावजूद, अप्रैल 2025 में भारत का पण्य व्यापार मजबूत बना रहा। चूंकि, निर्यात की तुलना में आयात तेज़ी से बढ़ा, इसलिए महीने के दौरान व्यापार घाटा बढ़ गया।28 आगे चलकर, निवल सेवाएँ और विप्रेषण प्राप्तियाँ अधिशेष में रहने की संभावना है, जो व्यापार घाटे में वृद्धि को संतुलित करेगी। 2025-26 के लिए सीएडी के धारणीय स्तर के भीतर रहने की उम्मीद है।
14. 2024-25 में वित्तपोषण के मामले में, भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) तेजी से घटकर 1.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया, क्योंकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने इक्विटी में मुनाफावसूली की।29 निवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई)30 में भी कमी आई। यह बताना उचित है कि यह कमी, प्रत्यावर्तन और निवल जावक एफडीआई में वृद्धि के कारण है, जबकि सकल एफडीआई में वास्तव में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। प्रत्यावर्तन में वृद्धि एक परिपक्व बाजार का संकेत है जहां विदेशी निवेशक आसानी से प्रवेश और निकास कर सकते हैं, जबकि उच्च सकल एफडीआई यह दर्शाता है कि भारत, निवेश के लिए एक आकर्षक गंतव्य बना हुआ है। दूसरी ओर, बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) और अनिवासी जमाराशियों में पिछले वर्ष की तुलना में अधिक निवल अंतर्वाह देखा गया।31 30 मई 2025 तक भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि 691.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी। ये 11 महीने से अधिक के वस्तु आयात32 को वित्तपोषित करने और लगभग 96 प्रतिशत बकाया बाह्य ऋण के लिए पर्याप्त हैं।33 कुल मिलाकर, भारत का बाह्य क्षेत्र आघात-सह बना हुआ है क्योंकि बाह्य क्षेत्र से संबंधित प्रमुख भेद्यता संकेतक लगातार बेहतर हो रहे हैं।34 हम अपनी बाहरी वित्तपोषण आवश्यकताओं को पूरा करने के प्रति आश्वस्त हैं।
चलनिधि और वित्तीय बाज़ार की स्थितियाँ
15. जनवरी से बैंकिंग प्रणाली में कुल ₹9.5 लाख करोड़ की टिकाऊ चलनिधि बढ़ाई गई।35 परिणामस्वरूप, दिसंबर के मध्य से घाटे में रहने के बाद, मार्च के अंत में चलनिधि की स्थिति अधिशेष में बदल गई। यह दैनिक वीआरआर नीलामी के प्रति धीमी प्रतिक्रिया36 और उच्च एसडीएफ शेष राशि- अप्रैल-मई के दौरान औसत दैनिक शेष राशि ₹2.0 लाख करोड़ थी, से भी स्पष्ट है।
16. चलनिधि की स्थिति में सुधार को दर्शाते हुए, भारित औसत मांग दर (डब्ल्यूएसीआर) - मौद्रिक नीति का परिचालन लक्ष्य - पिछली नीति के बाद से एलएएफ़ कॉरीडोर के निचले स्तर पर रहा है।37 बैंकिंग प्रणाली में पर्याप्त चलनिधि अधिशेष ने नीतिगत रेपो दर में कटौती के संचरण को अल्पकालिक दरों में अंतरित किया है।38 तथापि, हमें अभी भी ऋण बाजार के क्षेत्र में एक प्रत्यक्ष संचरण देखना बाकी है, यद्यपि हमें यह ध्यान में रखना होगा कि यह थोड़ी देरी से होता है।39
17. रिज़र्व बैंक बैंकिंग प्रणाली को पर्याप्त चलनिधि प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। आगे भी टिकाऊ चलनिधि प्रदान करने के लिए, वर्ष के दौरान चरणबद्ध तरीके से आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को 100 आधार अंक (बीपीएस) घटाकर निवल मांग और मियादी देयताओं (एनडीटीएल) के 3.0 प्रतिशत तक कम करने का निर्णय लिया गया है। यह कटौती 6 सितंबर, 4 अक्टूबर, 1 नवंबर और 29 नवंबर 2025 से शुरू होने वाले पखवाड़े से 25 बीपीएस की चार बराबर किस्तों में की जाएगी। सीआरआर में कटौती से दिसंबर 2025 तक बैंकिंग प्रणाली में लगभग ₹2.5 लाख करोड़ की प्राथमिक चलनिधि बढ़ जाएगी। टिकाऊ चलनिधि प्रदान करने के अलावा, यह बैंकों के वित्त पोषण की लागत को कम करेगा, जिससे ऋण बाजार में मौद्रिक नीति के संचरण में मदद मिलेगी। मैं दोहराना चाहूंगा कि हम चलनिधि और वित्तीय बाजार की उभरती स्थितियों की निगरानी करना जारी रखेंगे और आवश्यकतानुसार आगे सक्रिय कार्रवाई करेंगे।
वित्तीय स्थिरता
18. अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) के प्रणाली-स्तरीय वित्तीय मापदंड मजबूत बने हुए हैं।40 आस्ति गुणवत्ता मापदंड, चलनिधि बफर और लाभप्रदता मापदंड में और सुधार हुआ है। दिसंबर 2024 के अंत में बैंकिंग प्रणाली के लिए ऋण जमा अनुपात 81.84 प्रतिशत था, जो मोटे तौर पर एक वर्ष पहले के समान था। इसी तरह, एनबीएफसी के प्रणाली-स्तरीय मापदंड भी पर्याप्त पूंजी स्थिति और बेहतर जीएनपीए अनुपात के साथ सुदृढ़ हैं।41
19. अरक्षित व्यक्तिगत ऋण और क्रेडिट कार्ड प्राप्तियों के पोर्टफोलियो जैसे खुदरा क्षेत्रों में पहले देखा गया तनाव कम हो गया है, जबकि लघु-वित्त क्षेत्र का तनाव बना हुआ है। इन क्षेत्रों में सक्रिय बैंक और एनबीएफसी पहले से ही अपने व्यवसाय मॉडल को पुनः समायोजित कर रहे हैं, अपनी ऋण हामीदारी पद्धतियों को मजबूत कर रहे हैं और भविष्य में इस स्तर पर किसी भी तरह के अत्यधिक जोखिम से बचने के लिए अपने वसूली प्रयासों को बढ़ा रहे हैं।
समापन टिप्पणी
20. मुद्रास्फीति और संवृद्धि दोनों स्तरों पर, भारतीय अर्थव्यवस्था सुव्यवस्थित रूप से और मोटे तौर पर अपेक्षा के अनुसार आगे बढ़ रही है। मजबूत समष्टि-आर्थिक मूल तत्व और सौम्य मुद्रास्फीति की संभावना, मूल्य स्थिरता के लक्ष्य के अनुरूप बने रहते हुए मौद्रिक नीति को संवृद्धि का समर्थन करने का अवसर प्रदान करते हैं। चूंकि वैश्विक वातावरण अनिश्चित बना हुआ है, इसलिए सतत मूल्य स्थिरता के बीच घरेलू संवृद्धि पर ध्यान केंद्रित करना और भी महत्वपूर्ण हो गया है। तदनुसार, आज की मौद्रिक नीति कार्रवाइयों को संवृद्धि को एक उच्च आकांक्षात्मक प्रक्षेपवक्र पर ले जाने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जाना चाहिए।
21. यहाँ, मैं इस बात पर प्रकाश डालना चाहूँगा कि मध्यम और दीर्घ अवधि में मूल्य स्थिरता और संवृद्धि के बीच कोई संघर्ष नहीं है। मूल्य स्थिरता क्रय शक्ति को संरक्षित करती है, परिवारों और व्यवसायों को उनकी बचत और निवेश निर्णयों में निश्चितता प्रदान करती है तथा अनुकूल ब्याज दर और वित्तीय स्थितियाँ सुनिश्चित करती है और ये सभी, उपभोग, निवेश और समग्र गतिविधि को बढ़ावा देती हैं। इसके अलावा, यह न्यायसंगत संवृद्धि और साझा संपन्नता के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसकी अनुपस्थिति गरीबों पर असमान रूप से बोझ डालती है।
22. मुझे यह भी कहना चाहिए कि मूल्य स्थिरता एक आवश्यक शर्त है, लेकिन यह संवृद्धि को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। एक सहायक नीतिगत माहौल बहुत महत्वपूर्ण है। यह वर्तमान समय जैसे उच्च अनिश्चितताओं की अवधि के दौरान और भी अधिक महत्वपूर्ण है। इसलिए, रिज़र्व बैंक में, जबकि मूल्य स्थिरता मौद्रिक नीति का केंद्र बनी हुई है, हम समृद्धि और संपन्नता का समर्थन करने वाली पूरक मौद्रिक और ऋण नीतियों तथा विनियमों को लागू करने के प्रति उदासीन नहीं हैं।
धन्यवाद, नमस्कार और जय हिंद
(पुनीत पंचोली)
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2025-2026/490
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