24 अक्टूबर 2011
समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियॉं : दूसरी तिमाही समीक्षा 2011-12
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियॉं - दूसरी तिमाही समीक्षा 2011-12 जारी किया। यह दस्तावेज़ 25 अक्टूबर 2011 को घोषित किए जानेवाले मौद्रिक नीति वक्तव्य 2011-12 की पृष्ठभूमि को दर्शाता है।
मुख्य-मुख्य बातें :
समग्र संभावना
जबकि मुद्रास्फीति बनी हुई है, वृद्धि जोखिम से नीति जटिलता बढ़ी है
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बेसलाईन मुद्रास्फीति पथ अभी भी जारी है और व्यापक रूप से पूर्व के अनुमानों के अनुसार है। दूसरी ओर वैश्विक आशंकाओं और घरेलू कारकों के कारण वृद्धि जोखिम में बढ़ोतरी हुई है। वर्तमान आकलन के अनुसार वर्ष 2011-12 में पूर्व में किए गए अनुमान की अपेक्षा वृद्धि में हल्के सुधार की संभावना है।
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जबकि निरंतर जारी मुद्रास्फीति वृद्धि को प्रभावित कर रही है, निवेश गिर रहा है। वर्ष 2010-12 की दूसरी छमाही के बाद से नए कंपनी निर्धारित निवेश में गिरावट उल्लेखनीय रहा है और आने वाले वर्षों में संभावित निवेश को प्रभावित कर सकता है।
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तथापि मुद्रास्फीति जोखिम जारी है। नीति विकल्प अधिक जटिल हो गया है। इस पृष्ठिभूमि में मौद्रिक नीति सीमा को पिछली कार्रवाईयों के परिणाम का अंतरण नहीं होने पर भी उभरती हुई वृद्धि मुद्रास्फीति गतिशीलता द्वारा मार्गदर्शित करने की ज़रूरत होगी।
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रिज़र्व बैंक और बाहरी एजेंसियॉं दोनों द्वारा आयोजित विभिन्न सर्वेक्षण यह प्रस्तावित करते हैं कि कारोबारी संभावनाएं प्रभावित हुई हैं जबकि मुद्रास्फीति प्रत्याशाएं उच्चतर रही हैं। मौद्रिक नीति संरचना में बढ़ी हुई पारदर्शिता के लिए अगले कदम के रूप में रिज़र्व बैंक पहली बार नीति के एक दिन पहले 'समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियो' के साथ स्वयं के द्वारा आयोजित संरक्षण जारी कर रहा है।
र्वश्विक आर्थिक स्थितियॉं
ऋण बकाए से वैश्विक वृद्धि घिरी हुई है
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वैश्विक वृद्धि की संभावना में गिरावट दिख रही है यद्यपि अभी तक सुधार नहीं हो सका है। वृद्धि अनुमानों में महत्वपूर्ण ह्रासोन्मुख संशोधन हुए हैं। यूरो क्षेत्र संकट की सहायता से कारोबारी और उपभोक्ता विश्वास कमज़ोर हुए हैं। निजी क्षेत्र तुलनपत्र जोखिम में हैं और बैंकिंग क्षेत्र में महत्वपूर्ण कमज़ोरी पुन: उभरी है।
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वैश्विक पण्य वस्तु कीमतें विशेषकर धातु की कीमतें कम हुई हैं लेकिन वे उच्चतर बनी हुई हैं। कुछ सुधारों के बाद भी वर्तमान ब्रेंट कच्चे तेल की कीमतें अभी भी वर्ष 2010-11 के अपने औसत से 25 प्रतिशत अधिक बनी हुई हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने इडीई के लिए अपने वृद्धिशील उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति अनुमान को संशोधित किया है।
भारतीय अर्थव्यवस्था
उत्पादन
वर्ष 2011-12 में प्रवृत्ति के नीचे वृद्धि में सुधार
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वर्ष 2011-12 में वृद्धि को प्रवृत्ति के नीचे सुधरने की संभावना है। कृषि संभावनाएं उल्लेखनीय खरीफ फसल की संभावना के साथ उत्साहजनक बनी हुई हैं तथापि औद्यौगिक गतिविधि और कुछ सेवाओं में सुधार दिखाई दे रहा है।
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घरेलू कारकों के अतिरिक्त वैश्विक कारक वृद्धि को मंद कर सकते हैं। कम़लोर वैश्विक पीएमआइ को देखते हुए वैश्विक औद्योगिक चक्र के साथ घरेलू औद्योगिक वृद्धि की बढ़ती हुई सहबद्धता से आगे कुछ और सुधार की संभावना है।
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क्षमता बाध्यताएं कुछ विनिर्माण क्षेत्रों खासकर सीमेंट, उर्वरक और स्टील में आसान होती दिख रही हैं। निर्माण गतिविधि धीमी हुई हैं और अग्रणी संकेतक प्रस्तावित करते हैं कि आगे जाकर सेवा वृद्धि कुछ कमज़ोर हो सकती है।
सकल मॉंग
निवेश में मंदी अगली वृद्धि को प्रभावित कर सकती है
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मौद्रिक कड़ाई, अनुमान कार्य में बाधाएं, गिरते हुए कारोबारी विश्वास और वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी सहित कई कारकों के सम्मिलित परिणाम के अनुसार निवेश मॉंग कमज़ोर हो रही है।
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नई परियोजनाओं में योजनाबद्ध कंपनी निर्धारित निवेश वर्ष 2010-11 के दूसरी तिमाही के बाद से उल्लेखनीय रूप से कम हुआ है और वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही में कम रहा है। परिणामत: निवेश की संभावना में वर्ष 2012-13 में वृद्धि के जोखिम को देखते हुए इसके कम होने की संभावना है।
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निजी उपभोग भी अंशों में कमज़ोर होना शुरू हुआ है लेकिन समग्र रूप में यह मज़बूत बना हुआ है जैसाकि कंपनी बिक्री और कार्यनिष्पादन से प्रत्यक्ष है। बिक्री में वृद्धि मज़बूत बनी हुई है लेकिन लाभ दबाव में है।
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वर्ष 2011-12 के दौरान राजकोषीय गिरावट सकल मॉंग प्रबंध के कार्य को जटिल बना सकता है। वृद्धि की कुँजी आवश्यक रूप से सरकारी उपभोग से सार्वजनिक और निजी निवेश की मॉंग के पुनर्संतुलन द्वारा निवेश के समर्थन में निहित है।
बाह्य क्षेत्र
यदि वैश्विक व्यापार और पूँजी प्रवाह कम होता है तो सीएडी में विस्तार जोखिम पैदा करेगा
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चालू खाता घाटा (सीएडी) निर्यात और उच्चतर निवल अदृश्य प्राप्तियों में उछाल के बावजूद वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही में बढ़ गया। आगे जाकर निर्यात में गिरावट हो सकती है जैसे ही वैश्विक वृद्धि में गिरावट होगी। यूएस और यूरो क्षेत्र में गिरावट के कारण अदृश्य आय में भी गिरावट हो सकती है और इससे सॉफ्टवेयर निर्यात प्रभावित हो सकता है।
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वर्ष 2011-12 की दूसरी तिमाही में विदेशी संस्थागत निवेश प्रवाहों में तेज़ गिरावट से मज़बूत एफडीआइ प्रवाहों की व्यापक शुरुआत हुई है तथापि बढ़े हुए वित्तीय दबाव और खराब वैश्विक वृद्धि संभावनाओं के साथ पूँजी प्रवाह एक अनिश्चित चरण में प्रवेश कर हे हैं। बाह्य क्षेत्र संभावना यद्यपि स्थायी है, इसकी निकट से निगरानी आवश्यक है।
मौद्रिक और चलनिधि स्थितियॉं
चलनिधि सहज़ बनी हुई है, ऋण वृद्धि सीमा से अधिक है
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वर्ष 2011-12 की दूसरी तिमाही के दौरान चलनिधि स्थितियॉं यद्यपि नीति उद्देश्य के अनुरूप घाटे के स्वरूप में हैं, वे सहज बनी हुई हैं। मुद्रा वृद्धि में सुधार होते ही आधारभूत मुद्रा में गिरावट हुई है। तथापि, मुद्रा (एम3) वृद्धि कुछ कम तेज़ी से सुधरी है और मुद्रा गुणक में बढ़ोतरी होने से सांकेतिक सीमा के ऊपर बनी हुई है।
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बैंक दर वृद्धि वर्तमान में सांकेतिक सीमा से अधिक है। इसकी पूर्ति गैर बैंकिंग स्रोतों से बढ़े हुए संसाधन प्रवाहों द्वारा की गई है। आगे जाकर जैसे ही वृद्धि मंद होगी ऋण वद्धि में कमी की आशा है।
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मौद्रिक नीति फरवरी 2010 से नीति दरों में 500 आधार अंकों की प्रभावी वृद्धि और सीआरआर में 100 आधार अंकों की प्रभावी वृद्धि के साथ उल्लेखनीय रूप से कड़ी हुई है लेकिन मौद्रिक अंतरण अभी भी स्पष्ट नहीं है। तथा वास्तविक ब्याज दरें निम्नतर और वृद्धि के प्रति अवरोधमुक्त बनी हुई है।
वित्तीय बाज़ार
घरेलू ईक्विटी और मुद्रा बाज़ारों के प्रति उतार-चढ़ाव को रोका गया है
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वर्ष 2011-12 की दूसरी छमाही में वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में उतार-चढ़ाव अधिक था। बढ़ते हुए जोखिम से बचने के कारण ऋण अंतर व्यापक हो गया। उतार-चढ़ाव के प्रभाव में एक सीमित रूप में घरेलू मुद्रा और ईक्विटी बाज़ारों को प्रभावित किया।
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वर्ष 2011-12 की दूसरी तिमाही में रुपया अवमूल्यन और ईक्विटी संकेतकों में गिरावट अधिकांश अन्य उभरते हुए बाज़ारों के ढॉंचे के अनुरूप थे। मुद्रा बाज़ार दरें नीति संकेतकों के अनुरूप बनी हुई थी। जबकि सरकारी प्रतिभूति प्रतिलाभ अतिरिक्त बाज़ार उधार की घोषणा के बाद कड़े हो गए थे।
मूल्य स्थिति
गिरती हुए वैश्विक पण्य वस्तु कीमतें द्वारा सीमित सुविधा उपलब्ध कराने से मुद्रास्फीति जोखिम बना हुआ है
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सुधार होने के पूर्व अगले दो महीनों के दौरान उच्चतर मुद्रास्फीति के जारी रहने की संभावना है क्योंकि गिरती हुई वैश्विक पण्य वस्तु कीमतें अब तक रुपया अवमूल्यन द्वारा शुरू हुई है। गिरती हुई वैश्विक पण्य वस्तु कीमतों के प्रभाव को सीमित करने के लिए अपूर्ण पास-थ्रू सेभावित है। पण्य वस्तुओं का वित्तीयकरण भविष्य में पण्य वस्तु मूल्यपथ को अनिश्चित बनाता है।
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घरेलू मूल्य दबाव अभी भी महत्वपूर्ण और व्यापक आधारित हैं। खाद्यान्य मुद्रास्फीति में गैर अन्न में मॉंग आपूर्ति असंतुलनों और भारी एमएसपी संशोधनों के कारण उच्चतर रहनी की संभावना है। वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही में वास्तवित पारश्रमिक मुद्रास्फीति बढ़ गई है। सारांश में मुद्रास्फीति चुनौती महत्वपूर्ण बनी हुई है।
अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/640 |