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प्रेस प्रकाशनी

वर्ष 2011-12 में समष्टि रूप से आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां

16 अप्रैल 2012

वर्ष 2011-12 में समष्टि रूप से आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज वर्ष 2011-12 में समष्टि रूप से आर्थिक और मौद्रिक गतिविधयां जारी की। यह दस्‍तावेज़ 17 अप्रैल 2012 को घोषित किए जाने वाले मौद्रिक नीति वक्‍तव्‍य की पृष्‍ठभूमि को दर्शाता है।

समग्र संभावना

समष्टि रूप से आर्थिक चुनौतियां, मौद्रिक नीति के सावधानीपूर्वक समायोजन का समर्थन करती है

  • वर्ष 2012-13 में विकास में सामान्‍य सुधार की संभावना है। जबकि मुद्रास्‍फीति कम हुई है, मुद्रास्‍फीति जोखिम अब भी अधिक बना हुआ है। तदनुसार, मौद्रिक नीति को चाहिए कि मांग को अत्‍यधिक बढ़ाते हुए मुद्रास्‍फीति और बाह्य असंतुलनों के बिना विकास को सहायता दें।

  • आगे मामूली उल्‍लेखनीय कमी की संभावना के साथ मुद्रास्‍फीति वर्ष के दौरान चालू स्‍तर पर कठिन बने रहने की संभावना है।

  • राजकोषीय समेकन को सुनिश्चित करते हुए निजी निवेश में बढ़ोतरी के लिए सार्वजनिक निवेश में तेज़ी लाने में राजकोषीय नीति की प्रमुख भूमिका रहेगी।

वैश्विक आर्थिक स्थितियां

वर्ष 2012 में वैश्विक विकास संभवत: सामान्‍य बना रहेगा

  • वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था बहु-तेज़ विकास के जारी चरण में दिखाई दे रही है। यूरो क्षेत्र हल्‍की-सी मंदी में प्रवेश कर रहा है, जबकि अमरीका में विकास और रोज़गार स्थितियों में सुधार हो रहा है।

  • उभरते बाज़ारों खासकर, चीन और भारत में विकास, पूर्व में की गई अपेक्षा से अधिक धीमा है।

  • विकास में कमी के बावजूद विश्‍व की अर्थव्‍यवस्‍था का और एक मंदी में जाने की संभावना नहीं है।

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था

उत्‍पादन

वर्ष 2011-12 की तीसरी तिमाही में विकास निम्‍नतम बिंदु पर पहुंच गया हो किंतु आगे का सुधार संभवत: धीमा होगा

  • वैश्विक अनिश्चितताओं और घरेलू चक्रीय और ढांचागत घटकों ने विकास को वर्ष 2011-12 में सात प्रतशित से कम कर दिया है।

  • ऋण में बढ़ोतरी, सीमेंट में बढ़ोतरी, खरीदी प्रबंधक के सूचकांक में बढ़ोतरी, रिज़र्व बैंक के सेवा संयोजन संकेतक में वृद्धि जैसे शुरूआती संकेतक यह सुझाव देते है कि विकास निम्‍नतम बिंदु पर पहंच चुका होगा।

  • कृषि के लिए संभावनाएं प्रोत्‍साहक हैं। अग्रणी संकेतकों के लिए रिज़र्व बैंक का अपना आकलन यह सुझाव देता है कि 2012 का मानसून सामान्‍य रहेगा। तथापि, भारत का मौसम विज्ञान विभाग द्वारा पूर्वानुमान के बाद एक स्‍पष्‍ट चित्र उभरेगा।

  • उद्योग क्षेत्र में पुनर्ज्‍जीवन खासकर, ऊर्जा और खनिज पदार्थ घाटे में, आपूर्ति बाध्‍यताओं को सुगम बनाने के लिए प्रोत्‍साहनों पर निर्भर रहना पड़ता है। ऊर्जा क्षेत्र को पुनर्ज्‍जीवित करने के लिए सरकार के प्रयास विकास की गति को पुनर्ज्‍जीवित करने में सहायक होगा।

सकल मांग

निवेश में गिरावट बढ़ी, सार्वजनिक निवेश में तेज़ी के फलस्‍वरूप निजी निवेश बढ़ेंगे

  • निवेश में तेज़ गिरावट, निजी उपभोग में कुछ संयम और निवल बाह्य मांग में गिरावट के कारण विकास की गति धीमी हुई है।

  • आनेवाले समय में जारी निवेशों और नए कंपनी निवेश इरादों में कमी के कारण निवेश में धीमी गति जारी रहने की संभावना है।

  • बचत और निवेश में कमी दीर्घावधि विकास के कार्यनिष्‍पादन के लिए चिंता का विषय है।

  • नवीनतम बजट में पूँजीगत व्‍यय में बढ़ोतरी और मार्ग परियोजनाओं के ठेके में तेज़ गति यह सुझाव देते हैं कि 2012-13 के बाद के हिस्‍से में निवेश में कुछ सुधार होगा।

  • आर्थिक सहायता को सकल घरेलू उत्‍पाद के 2 प्रतिशत की सीमा की बाध्‍यता एक सकारात्‍मक कदम है। जोखिम बढ़ेगा यदि लागू पेट्रोलियम उत्‍पादों के मूल्‍यों में लचीलेपन को चरणबद्ध रूप से रोकने में विलंब होता है। तब कम वसूलियां 2011-12 से अधिक होंगी और इससे अत्‍यधिक राजकोषीय गिरावट आएगी। यह वर्ष 2012-13 के दौरान सकल मांग प्रबंध के लिए चुनौती होगी।

बाह्य क्षेत्र

भुगतान संतुलन जोखिमें गंभीर हो रही हैं, सावधानी की जरूरत है

  • एक व्यापक चालू खाता घाटा, बढ़ता हुआ बाह्य ऋण, कमजोर होती हुई  निवल अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति (एनआइआइपी) ह्रासोन्मुख संवेदनशीलता संकेतक बाह्य क्षेत्र और माँग प्रबंध नीतियों में व्यापक बुद्धिमता की ज़रूरत को रेखांकित करते हैं।

  • निरंतर व्यापार विविधीकरण के बावजूद निर्यात वृद्धि कमजोर हो सकती है क्योंकि उभरती हुई और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि मंद हो रही है।

  • आयात बिल तब तक उच्च बने रहेंगे जब तक पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें एक संपूर्ण पास-थ्रू के लिए बढ़ायी नहीं जाती हैं तथा बहुमूल्य धातुओं की माँग को सीमित नहीं किया जाता है।

  • जबकि वर्ष 2012 की चौथी तिमाही में पूँजी अंतर्वाहों में सुधार हुआ है, वैश्विक अनिश्चितताएँ बाह्य संभावना के प्रति शुरुआती जोखिमों को बढ़ा रही हैं।

  • ऋण-सृजक  पूँजी अंतर्वाहों पर निर्भरता को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए तेज सुधारों के माध्यम से नवीकृत इक्विटी प्रवाहों को प्रोत्साहित करते हुए कम करने की ज़रूरत है।

मौद्रिक और चलनिधि स्थितियां

रिज़र्व बैंक द्वारा प्रारंभिक चलनिधि डालने पर चलनिधि घाटा कम होता है

  • यद्यपि मुद्रास्‍फीति उच्‍च बनी हुई है, घटती हुई मुद्रास्‍फीति और वृद्धि दरों ने रिज़र्व बैंक को प्रेरित किया कि नीति दरों में कोई परिवर्तन किए बिना दिसंबर 2011 से एक तटस्‍थ मौद्रिक रुझान अपनाया जाए।

  • चलनिधि घाटा संरचनात्‍मक और वित्तीय दोनों कारकों के कारण मुख्‍य रूप से क्रमश: विदेशी मुद्रा परिचालनों तथा सरकार के नकदी शेषों के इकठ्ठा होने से नवंबर 2011 से ही व्‍यापक हो गया है। चलनिधि घाटा भारी सरकारी व्‍यय के कारण अप्रैल 2012 में कम हुआ है।

  • रिज़र्व बैंक ने संरचनात्‍मक चलनिधि घाटे के समाधान के लिए खुले बाज़ार परिचालन (ओएमओ) खरीद के माध्‍यम से `2 ट्रीलियन से अधिक का स्‍थायी चलनिधि डाला तथा प्रारक्षित निधि अनुपात (सीआरआर) में 125 आधार अंकों की कमी की।

  • प्रारक्षित मुद्रा वृद्धि सीआरआर में कटौती को दर्शाते हुए वर्ष 2011-12 की चौथी तिमाही में कम हुई। तथापि, समायोजित प्रारक्षित मुद्रा सृजन की गति हाल में बढ़ी है। व्‍यापक मुद्रा वृद्धि में जमा वृद्धि में गिरावट को दर्शाते हुए मार्च 2012 के अंत तक रिज़र्व बैंक की सांकेतिक सीमा से कम हुई है।

वित्तीय बाज़ार

वित्तीय बाज़ार तनाव कम हुए लेकिन जोखिमें बनी हुई है

  • यूरो क्षेत्र में नीति हस्‍तक्षेप तथा अमरीका से सकारात्‍मक आंकड़ों के बाद वैश्विक बाज़ार भावनाओं में सुधार हुआ है।

  • अनुकूल अंतर्राष्‍ट्रीय गतिविधियों और उन्‍नत वित्तीय स्थितियों से सहारा लेते हुए भारतीय वित्तीय बाज़ार वर्ष 2011-12 की चौथी तिमाही में जीवंत हुए है।

  • तथापि, यह पुनर्ज्‍जीवन प्रारंभिक रूप से चलनिधि संचालित रहा है। सुधार को बनाए रखने के लिए समष्टिआर्थिक मौलिक तत्‍वों में सुधार की ज़रूरत है।

  • कड़ी चलनिधि स्थितियों ने मुद्रा बाज़ार दरों को कड़े होते हुए देखा। सरकारी प्रतिभूति प्रतिलाभ भी व्‍यापक बाज़ार उधार कार्यक्रम की प्रतिक्रिया में बजट के बाद कड़े हो गए।

  • वित्तीय बाज़ारों में तनाव उल्‍लेखनीय रूप से बाह्य वाणिज्यिक उधार द्वारा भारी चलनिधि डालने के बाद वर्ष 2012 की पहली तिमाही के दौरान कम हुए। आगे जाकर यूरो क्षेत्र तथा वैश्विक बाज़ारों में पण्‍य वस्‍तुओं खासकर तेल में वित्तीयकरण से अवरोधात्‍मक जोखिमे होसकती हैं।

मूल्‍य स्थिति

वर्ष 2012-13 के लिए मुद्रास्‍फीति का पथ कठिन हो सकता है

  • सामान्‍यीकृत मूल्‍य दबाव नरम हुए हैं क्‍योंकि वृद्धि में गिरावट से मांग कम हुई है। यह वर्ष 2011-12 की चौथी तिमाही के दौरान मुख्‍य मुद्रास्‍फीति में उल्‍लेखनीय गिरावट से भी प्रत्‍यक्ष है। कंपनियों की मूल्‍य निर्धारण शक्ति ने मांग में नरमी की चेतावनी दी है।

  • तथापि, वर्ष 2012-13 में मुद्रास्‍फीति का पथ तेल की उच्‍चतर कीमतों, दबी हुई भारी मुद्रास्‍फीति, विनिमय दर पास-थ्रू, महसूल और कर बढ़ोतरी के प्रभाव, पारिश्रमिक दबाव और आपूर्ति प्रतिक्रिया में संरचनात्‍मक बाधाओं के कारण कठिन रह सकता है।

  • प्राथमिक खाद्य मुद्रास्‍फीति तेज़ गिरावट के बाद प्रत्‍यावर्तित हो गई है क्‍योंकि अंतरण प्रभाव खत्‍म हो गए है। ऊर्जा कीमतों को आगे जाकर मुद्रास्‍फीति का एक उल्‍लेखनीय स्रोत बना रहना संभावित है क्‍योंकि तंल, कोयला और विद्युत कीमतें की दबी हुई घरेलू कीमतें बढ़ने पर समायोजित की जाती हैं।

  • ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में पारिश्रमिक मूल्‍य दबाव अभी कम होने बाकी हैं। उपभोक्‍ता मूल्‍य मुद्रास्‍फीति भी उच्‍च बनी हुई है। मुद्रास्‍फीति प्रत्‍याशाएं वर्ष 2012-13 की चौथी तिमाही में कम हुई हैं। बढ़ती हुई मुद्रास्‍फीति के प्रति उल्‍लेखनीय जोखिम के साथ वृद्धि की गति में गिरावट को रोकने के लिए नीति के संतुलन का बदलाव करते समय मौद्रिक नीति को उन्‍हें व्‍यवस्थित रखने की ज़रूरत है।

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/1653


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