18 जनवरी 2013
फेमा के अंतर्गत कंपाउडिंग के लिए व्यक्तिगत सुनवाई :
भारतीय रिज़र्व बैंक का स्पष्टीकरण
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज स्पष्ट किया है कि कंपाउडिंग प्राधिकारी के समक्ष व्यक्तिगत सुनवाई हेतु उपस्थित होना स्वैच्छिक है और आवेदक इसमें उपस्थित नहीं भी हो सकते हैं। आवेदक 28 जून 2010 तथा 13 दिसंबर 2011 के क्रमश: एपी(डीआईआर श्रृंखला) परिपत्र सं. 56 और 57 में यथानिर्धरित मामले से संबंधित पूरी जानकारी आवेदन के साथ संलग्न करें अथवा उसके बाद सुनवाई के लिए उपस्थित होने के संबंध में अपने विवेकानुसार कार्रवाई करें।
रिज़र्व बैंक ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि आवेदक व्यक्तिगत सुनवाई के लिए उपस्थित होना चाहता है तो रिज़र्व बैंक कानूनी विशेषज्ञों / सलाहकारों द्वारा प्रतिनिधित्व की अपेक्षा आवेदक को सीधे इसके लिए प्रोत्साहित करेगा क्योंकि कंपाउडिंग केवल स्वीकृत उल्लंघनों के लिए है। रिज़र्व बैंक ने पुन: यह कहा है कि उपस्थित होने अथवा व्यक्तिगत सुनावाई में शामिल नहीं होने से कंपाउडिंग आदेश में शामिल दण्ड की राशि पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
विदेशी मुद्रा नियमावली (कंपाउडिंग कार्रवाही), 2000 के नियम 8(2) में कहा गया है कि कंपाउडिंग प्राधिकारी यथासंभव शीघ्रता से सभी संबंधित व्यक्तियों को सुनवाई का एक अवसर प्रदान करने के बाद तथा आवेदन की तारीख से 180 दिनों के भीतर कंपाउडिंग का आदेश पारित करेगा। कई आवेदक इस प्रावधान / सुविधा की व्याख्या यह मतलब निकालने के लिए करते हैं कि व्यक्तिगत सुनवाई अनिवार्य है और यह कि सलाहकार / अधिवक्ता कंपाउडिंग प्राधिकारी के समक्ष व्यक्तिगत सुनवाई में उनका प्रतिनिधित्व कर सकते हैं।
अल्पना किल्लावाला
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/1215 |